सरदार पटेल का गाँधी को उनके ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर खत



सरदार पटेल का गाँधी को उनके ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर खत

25 जनवरी, 1947 लड़कियों के साथ गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर सरदार पटेल के क्रोध की कोई सीमा नहीं थी। गांधी जब मरियम-हीरापुर में थे तब पटेल ने लिखा था, ‘‘किशोर लाल मशरूवाला, मथुरादास और राजकुमारी अमृत कौर के नाम आपके पत्र पढ़े। आपने हमें पीड़ा के अग्निकुंड में धकेल दिया है। मैं समझ नहीं सकता कि आपने यह प्रयोग दोबारा शुरू करने का विचार क्यों किया? पिछली बार आपसे बात करने के बाद हमें लगा था कि यह अध्याय खत्म हो चुका है। आपको हमारी भावनाओं की परवाह नहीं है। हम नितांत असहाय महसूस कर रहे हैं। देवदास की भावनाओं को गहरी ठेस पहुंची है। हम सब की पीड़ा की कोई सीमा नहीं है। अगली चर्चा तक आप यह सब रोक दें...’’
16 फरवरी, 1947 पटेल के पत्र से पहले गांधी ने नवजीवन प्रकाशन के जीवन देसाई को पत्र लिखकर कहा था कि वे उनके ब्रह्मचर्य के प्रयोगों का विवरण हरिजन सहित नवजीवन के प्रकाशनों में छापें। पटेल ने लिखा: ‘‘...इनके प्रचार से दुनिया को कोई लाभ नहीं होगा। आप कहते हैं कि दूसरों को आपके ब्रह्मचर्य के प्रयोगों का अनुकरण नहीं करना चाहिए। आपके इस कथन का कोई अर्थ नहीं। लोग बड़ों के दिखाए रास्ते पर चलते हैं। न जाने क्यों आप लोगों को धर्म की बजाए अधर्म के रास्ते पर धकेलने पर तुले हैं...लाचारी की इस हालत में नवजीवन के ट्रस्टी इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि चाहे जो हो जाए, वे इस प्रयोग के बारे में कुछ नहीं छाप सकते.’’

सरदार पटेल का गाँधी को उनके ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर खत


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टोपी वालो आतंक मचाओ सपा आपके साथ है..



साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नंबर एस 6 को लगभग 1500 शांतिप्रिय समुदाय के लोगों ने घेर पर उसमें आग लगा दी। इस अग्निकांड में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हुई, जिसमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे। कोच को आग के हवाले करने वाले लोग इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि कोच एस 6 में कारसेवक और उनके परिवार वाले यात्रा कर रहे है। कोई हिंदू यात्री बोगी से बाहर ना निकल पाए इसलिए योजना के अनुसार उन पर पत्थर भी बरसाए जाने लगे। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस घटना को एक सोची-समझी साजिश के तहत अंजाम दिया गया। गुजरात पुलिस ने भी अपनी जांच में ट्रेन जलाने की इस वारदात को आईएसआई की साजिश ही करार दिया था, जिसका मकसद हिंदू कारसेवकों की हत्या कर राज्य में साम्प्रदायिक तनाव पैदा करना था।

हिन्दू कारसेवकों की हत्या कर राज्य में साम्प्रदायिक

हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है। गुजरात के कई शहरों में भड़के साम्प्रादायिक दंगे गोधरा की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आए। इन दंगों का कारण कुछ और नहीं बल्कि साबरमती एक्सप्रेस में जिंदा जलाए गए कारसेवकों की मौत का बदला लेना था। विदेशी चरित्र वाली मीडिया तथा वोट की राजनीति करने वालों ने गोधरा कांड की प्रतिक्रिया के रूप में उभरे गुजरात दंगों के बाद हिंदुओं को पूरे विश्व में दंगाइयों के रूप में प्रस्तुत कर दिया। और उस पर तुर्रा ये कि दंगों की बात करते समय कहीं भी ये नहीं कहा गया कि इसके पीछे गोधरा का भीषण नरसंहार जिम्मेदार था।
साबरमती एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे निर्दोष और मासूम कारसेवक व उनके परिवार जिसमें छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल थे, को निर्मम तरीके से आग के हवाले करने वाले दंगाई मुसलमान ही थे। गोधरा नरसंहार पर किसी मीडिया या किसी राजनीतिक पार्टी ने मुस्लिमों पर निशाना नहीं साधा, लेकिन जब गोधरा नरसंहार की प्रतिक्रिया हुई तो मीडिया और सेक्युलर पार्टियों द्वारा प्रचारित किया गया कि गुजरात में हिंदूओं ने मुसलमान आबादी को अपना निशाना बनाया तो वैश्विक स्तर पर हिंदू धर्म के लोगों को एक कट्टर और क्रूर धर्म के रूप में प्रचारित किया गया।
टोपी वालो आतंक मचाओ सपा आपके साथ है..
पहले कहा जाता था कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और आज मुजफ्फरनगर दंगों के के बाद कहा जा रहा है कि दंगों का कोई धर्म नहीं होता है, ये बाते वही लोग कह रहे है जो भगवा आतंकवाद की बात करते है और गुजरात दंगो को हिंदू दंगा कहा गया था, आखिर आज पैमाने क्यों बदल रहे है क्योंकि आज उत्तर प्रदेश में टोपी वालो की सरकार है? पंथ/धर्म निरपेक्षता यह कहती है सभी वर्गों के लिए समान व्यवहार हो किन्तु वोट की राजनीति सारे आंकड़े और पैमाने बदल रही है।
आज गोधरा पर बात करने की जरूरत मुझे आज इसलिए पड़ी क्योंकि आज समय है की इन छद्म वोट लोभियों उनकी करतूतों का बात जनता के बीच ले जाया जा सके। क्योंकि गृह मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि अखिलेश सरकार के गठन के बाद सांप्रदायिक दंगो/झडपो का शतक लग चुका है और मुज्जफरनगर में चल रहे दंगो में सैकड़ों लोग जान-माल से हाथ धो चुके है। किन्तु आज न तो मीडिया और न ही सेक्युलर रुदालियों के आखो में आंसू है क्योंकि ये दंगा शांतिप्रिय लोगों के नेतृत्व में सपा सरकार द्वारा प्रायोजित है। हज की रवानगी के साथ अखिलेश यादव की टोपी यही सन्देश देती है कि टोपी वालो आतंक मचाओ सपा आपके साथ है।


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मुजफ्फरनगर दंगा: अब तक 41 मरे



  • सांप्रदायिक हिंसा की आग में जल रहे मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाके को तीसरे दिन भी राहत नहीं मिली। सोमवार को हुई हिंसा में 13 लोगों की जान चली गई। अब तक मरने वालों की कुल संख्या 41 तक पहुंच चुकी है।
  • अलग-अलग स्थानों में धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाने के अलावा कई घरों को भी आग के हवाले कर दिया गया। देर शाम रतनपुरी क्षेत्र में दो भाइयों की हत्या कर दी गई।
  • मीरापुर के पड़ाव चौक पर उन्मादी युवकों ने मेरठ के सनोटा और परीक्षितगढ़ के एक-एक व्यक्ति का गला रेत डाला। इनमें से एक की मौत हो गई, जबकि दूसरे का उप
    चार चल रहा है।
  • तितावी क्षेत्र के मुकंदपुर में एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई जबकि उसका भतीजा गंभीर रूप से घायल हो गया। तितावी क्षेत्र के धौलरा में भी एक युवक को चाकुओं से गोदकर फेंक दिया गया। बुढ़ाना के जौला नहर से एक लाश बरामद हुई है। इन दोनों की अभी तक पहचान नहीं हो सकी है।
  • मंसूरपुर थाना क्षेत्र के जौहरा गांव में एक व्यक्ति की गर्दन काटकर हत्या की गई है। शाहपुर के कुटबा-कुटबी में एक लाश बरामद हुई है। प्रशासन ने यहां से अब तक 104 लोगों को गिरफ्तार करने का दावा किया है।
  • उधर, शामली जिले में बाबरी गांव के कुरमाली गांव में एक धर्मगुरु की गोली मारकर हत्या कर दी गई। बागपत में सोमवार को अलग-अलग स्थानों पर लाशें मिलने से सनसनी फैल गई।
  • काठा गांव में युवक की हत्या कर चेहरा बुरी तरह जला दिया गया, उसकी भी शिनाख्त नहीं हो पाई। बड़ौत के पास नहर में अज्ञात शव मिला है। इसके अलावा एक महिला का भी शव मिला है
  • इस बीच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी स्थिति सामान्य होने के बाद घटना की जांच करने की बात कही है। सोमवार को दंगाइयों ने मुजफ्फरनगर में आठ, शामली में एक और बागपत में चार लोगों की हत्या कर दी।
  • अलग-अलग स्थानों में धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाने के अलावा कई घरों को भी आग के हवाले कर दिया गया। देर शाम रतनपुरी क्षेत्र में दो भाइयों की हत्या कर दी गई।


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 मुज्जफरनगर दंगे की अखबारों में कहानी
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