मेरे पूर्व के लेख ताजमहल एक शिव मंदिर में मैने प्रसिद्ध राष्ट्रवादी इतिहासकार प्रो. पुरूषोत्तम नाथ ओक जी की किताब पर आधारित एक लेख तैयार किया था जिसमे तर्को के साथ ताज महल के प्राचीन शिव मंदिर तेजोमहालय और अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर नामक शिव लिंग होने की बात कहते है। श्री ओक साहब ने इस सम्बन्ध में एक याचिका भी दायर की थी, जिसमें उन्होंने ताज को एक हिन्दू स्मारक घोषित करने एवं कब्रों तथा शील्ड कक्षों को खोलने व यह देखने कि उनमें शिव लिंग, या अन्य मन्दिर के अवशेष हैं, या नहीं पता लगाने की अपील थी किंतु माननीय सर्वोच्च न्न्यायालय द्वारा उनकी इस याचिका को अस्वीकार कर दिया गया। माननीय सवोच्च न्न्यायालय द्वारा उनकी याचिका को अस्वीकार करने के सम्बन्ध मे अनेक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तत्कालीन कारण हो सकते है।
प्रो. ओक आपने तथ्यों के आधार पर जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान शिव की मूर्ति, त्रिशूल, कलश और ॐ आदि वस्तुएँ प्रयोग की जाती हैं। ताजमहल मे ऐसी बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी तथ्य और दृश्य इस बात की ओर इंगित करते हैं जो इस बात को सोचने की ओर विवश करते है कि ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.
ताजमहल को श्री रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा ”समय के गाल पर, एक आँसू” के रूप में वर्णित किया गया था ताजमहल का ऐसा विवरण हिन्दू समाज की तात्कालिक बेबसी को उजागर करता है बटेश्वर से मिला एक संस्कृत शिलालेख से ताजमहल के मूलतः शिव मंदिर होने का उल्लेख मिलता है । इस शिलालेख को बटेश्वर शिलालेख कहा जाता है, वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ अजायबघर के सबसे ऊपर मंज़िल स्थित कक्ष में संरक्षित है, इस शिलालेख के अनुसार : “एक विशाल शुभ शिव मंदिर ने भगवान शिव को ऐसा मोहित किया कि उन्होंने वहाँ आने के बाद फिर कभी अपने मूल निवास स्थान कैलाश वापस न जाने का निश्चय कर लिया।”
शाहजहाँ के आदेशानुसार सन् 1155 के इस शिलालेख को तात्कालिक शिव मंदिर की वाटिका से उखाड़ दिया गया और शिव मंदिर को मकबरे में तब्दील कर दिया गया। यह शिलालेख बटेश्वर में कैसे पहुँचा इस सम्बन्ध में विभिन्न मत हो सकते है सम्भवत: यह भी हो सकता कि किसी शिव भक्त द्वारा इसे संरक्षित करने के उद्देश्य से ही बटेश्वर लाया गया हो। वास्तविकता तो यह है कि इस शिलालेख का नाम ‘तेजोमहालय शिलालेख’ होना चाहिये क्योंकि यह तेजो-महालय शिव मंदिर की वाटिका में जड़ा हुआ था और शाहजहाँ के आदेश से इसे निकाल कर फेंक दिया गया था। बटेश्वर अपने आंचल में रामायण और महाभारत कालीन इतिहास को समेटे रहा है, तीर्थ बटेश्वर ने मुगलों के कई आक्रमणों को झेला है और मंदिर ध्वंश करने की मुग़ल-कालीन परंपरा का अडिग हो हिन्दू धर्म की पुर्रर की आस्था का उद्धरण पेश किया। ताजमहल के नाम पर शिव मंदिर तेजो महालय को मिटा देने की सदियों पुरानी षडयंत्रो से बटेश्वर सेप्राप्त शिलालेख ने पर्दा उठाने का काम किया है। उलटी दिशा में बहती यमुना और इसके किनारे स्थापित 101 शिव मंदिर आज भी श्रद्धालुओं की आस्था को जीवित रखे हुए हैं।
ताजमहल में पीछे की खिड़कियाँ और बंद दरवाजों का दृश्य
ताज के पिछले हिस्से का दृश्य और बाइस कमरों का समूह
ताजमहल में वैदिक शैली मे निर्मित गलियारा
इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जय सिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था, इस तथ्य को आजतक छुपाये रखा गया | विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में “तेज-लिंग” का वर्णन आता है। ताजमहल में “तेज-लिंग” प्रतिष्ठित था इसलिये उसका नाम तेजो-महालय पड़ा था। तेजो महालय मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान शिव को समर्पित था और आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था। ताज महल में आज भी संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित है मन्दिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है। 1985 में न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के दरवाज़े की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर यह सिद्ध किया कि यह दरवाज़ा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है।
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं, जो आम जनता की पहुँच से परे हैं। ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर जहाँ मुमताज की कब्र मानी जाती है। वहाँ पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है, यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी भी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता, जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिव लिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है। ताजमहल की यह बनावट वास्तव मे किसी प्राचीन शिव मंदिर के आधार पर ही है जो शिव लिंक के जल अभिषेक की प्रक्रिया का निर्वाहन करती है।
ईंटों से बंद किया गया विशाल रोशनदान
नोट - मेरे विरोध के बाद भी विकिपीडिया कुछ तथाकथित सेक्युलर एवं वामपंथी तत्वों द्वारा मेरे विरोध के बाद भी गुंडागर्दी वाली भाषा के साथ "क्या ताजमहल एक शिव मंदिर है" विषयक लेख को ज़बरदस्ती हटा दिया गया। मुझे लगा कि यह मुहीम रूकनी नही चाहिये और अन्य तथ्यों के साथ इस विषय पर लेख लिखे जाने की अवाश्यकता है।
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