राजा भोज द्वारा निर्मित म.प्र. के धार जिला में माँ सरस्वती का विशाल मदिर एवं महाविद्यालय था जो भोजशाला के नाम से विख्यात था। जहाँ आज नमाज पढ़ी जाती है। हमारे देश का दुर्भाग्य रहा कि देश के प्राचीन मंदिर एवं महाविद्यालयों को आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त कर उसमें मस्जिद या दरगाह बना दिया गया। कुछ आक्रमणकारी जो बाहर से आये वो मंदिरों को तोड़कर उसमें रखी हुई धन सम्पत्ति को लूटकर चले गए तथा बहुत से सल्तनत और मुगल कालीन शासकों ने देश में मंदिर और महाविद्यालयों को ध्वस्त कर उसमें मस्जिद या दरगाह बना दिया। हिन्दुस्तान में ऐसे मंदिरों की संख्या हजारों में है। जिसमें भोजशाला भी एक है।
परमार वंश का शासक राजा भोज का 1000 से 1055 तक प्रभाव रहा। म.प्र. के धार जिला में राजा भोज का मंदिर है। राजा भोज मां सरस्वती के उपासक थे, फलस्वरूप राजा भोज ने मां सरस्वती का विशाल मंदिर और एक महाविद्यालय की स्थापना की, जो भोजशाला के नाम से विख्यात हुआ। उन दिनों राजा भोज की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी, मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और ओड़ीशा में ज्ञानार्जन करने हेतु आते थे। उनका प्रभाव अधिक था। भोजशाला के महाविद्यालय में देश- विदेश से विद्यार्थी अपनी राजा भोज की कृपा से विद्यार्थी वेद, योग, सांख्य, न्याय, ज्योतिष, धर्म, वस्तुशास्त्र, औषधि विज्ञान, राज व्यवहार शास्त्र सहित कई शास्त्रों का अध्ययन करते थे। हजारों की संख्या में विद्यार्थी यहाँ के विद्धानों, आचार्यों के सानिन्ध्य में आलोकिक ज्ञान प्राप्त करते थे। इन आचार्यों में भवभूति, माघ, वाणभट्ट, कालिदास, मानतुंग, भास्करभट, धनपाल, बौद्ध संत बन्सवाल, समुद्रघोष आदि विश्व विख्यात हैं। कहने का तात्पर्य यह महाविद्यालय बहुत बड़ा शिक्षा का केन्द्र था। जहाँ सभी विषयों का अध्ययन अध्यापन होता था। भोजशाला में माँ सरस्वती की आराधना के साथ-साथ विशाल हवन कुंड में हवन एवं वेद मंत्रों के उच्चारण से भोजशाला गूंजता था। भोजशाला एक खुले प्रांगण में बना है। जिसमें विशाल स्तम्भों की श्रंखला है-जिसके पीछे एक विशाल प्रार्थना घर है। नक्काशीदार स्तम्भ तथा नक्काशीदार छत भोजशाला की पहचान है। राजा भोज सरस्वती के उपासक थे इसलिए उन्होंने वाग्देवी का विशाल मंदिर बनवाया था, जिसमें राजा भोज द्वारा आराधना की जाती थी। 1902 में लार्ड कर्जन के शासन काल में वाग्देवी की प्रतिमा लंदन ले जाया गया। आज भी लंदन के संग्रहालय में वाग्देवी की प्रतिमा मौजूद है।
राजा भोज के शासन के पश्चात् 200 वर्षों तक भोजशाला में अध्ययन- अध्यापन का कार्य भोज के शासनकाल की भांति निरन्तर जारी रहा जैसे राजा में था। हजारों की संख्या में दूर दराज से विद्यार्थी अध्ययन-अध्यापन का कार्य करते थे। 1305 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर आक्रमण कर माँ वाग्देवी की प्रतिमा को खंडित कर दिया। इसके अलावा उसने भोजशाला के कुछ भाग को ध्वस्त कर करीब 1200 आचार्यों एवं विद्यार्थियों की हत्या कर हवन कुंड में डाल दिया। कहा जाय तो भोजशाला का बहुत सा भाग ध्वस्त कर दिया। उस समय वहाँ का शासक मेदनी मौलाना कमालुद्दीन का मकबरा और दरगाह का निर्माण करवाया क्योंकि खिलजी शासकों के समय में मौलाना कमालुद्दीन बहुत प्रसिद्ध था। मौलाना कमालुद्दीन हिन्दुओं का धर्मान्तरण कर इस्लाम कुबुल करवाता था। इस्लाम न कुबुल करने पर हिन्दुओं का कत्ल करवा देता। इसलिए कमालुद्दीन खिलजी शासकों का प्रिय मौलाना था। महमू खिलजी द्वारा कमालुद्दीन का मकबरा और दरगाह बनने के बाद भोजशाला पर मुस्लिमों का अधिकार हो गया। भोजशाला में नमाज अदा होने लगी। माँ सरस्वती की पूजा के लिए हिन्दुओं को बहुत संघर्ष करना पड़ा। अभी भी माँ सरस्वती की पूजा संघर्ष चल है।
1935 में म.प्र. के धार स्टेट का दीवान नाडकार ने भोजशाला को कमाल मौलाना का मस्जिद बताते हुए सिर्फ मुस्लिमों को नमाज अदा करने की अनुमति दे दिया। तथा हिन्दुओं को माँ सरस्वती की आराधना का अधिकार समाप्त कर दिया। 1997 में म.प्र. के कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने तो हिन्दुओं का भोजशाला में प्रवेश ही बंद करवा दिया। उसी वर्ष बहुत संघर्ष के बाद 12 मई 1997 को कलेक्टर द्वारा हिन्दुओं को बसंत पंचमी पर पूजा करने की अनुमति मिली। 2002 में शुक्रवार को बसंत पंचमी और कमाल मौलाना का जन्मदिन एक साथ पड़ा। उस दिन बहुत हंगामा हुआ। सरकारी आज्ञानुसार सुबह से 12 बजे तक सरस्वती पूजा एवं 1 बजे से 3 बजे तक नमाज अदा करने की अनुमति मिली। उस दिन 12 बजते ही पूजा बंद करवा दी गयी, हवन कुंड में पानी डाल कर मंदिर परिसर खाली करा दिया गया। मंदिर परिसर खाली करते समय थोड़ा विलम्ब होने पर पुलिस ने लाठियां बरसाना शुरु कर दिया। पथराव होने लगा। बच्चे महिलाओं सहित 1400 लोग घायल हुए, 2 दर्जन गम्भीर रूप से घायल हुए। सारा फसाद राजनैतिक कुटिलता और तुष्टीकरण की प्रवित्ति के कारण हुआ।
इससे स्पष्ट होता है कि मस्जिद और दरगाह भोजशाला को तोड़कर ही बनाया गया है। राजाभोज के भोजशाला में अगर नमाज अदा की जाती है इसपर तर्क संगत विचार होना चाहिए। सही इतिहास पर चर्चा होना चाहिए। लेकिन आज सम्प्रदाय विशेष की तुष्टीकरण के लिए ही सही इतिहास छुपाने की परम्परा चल गयी है। मंदिर एवं स्थलों पर, जहाँ पूजा और नमाज अदा की जाती है, उसे एकता का मिसाल कह कर सेक्यूलरिस्ट अपना पल्ला झाड़ते हैं। एकता का मिसाल जब माना जाता जब आज नवनिर्मित मस्जिदों में भी एक छोटा से ही पूजा स्थल बना दिया जाता, तब हम गर्व से कहते कि भारत के मंदिरों में मस्जिद होना एकता की मिसाल है।
परमार वंश का शासक राजा भोज का 1000 से 1055 तक प्रभाव रहा। म.प्र. के धार जिला में राजा भोज का मंदिर है। राजा भोज मां सरस्वती के उपासक थे, फलस्वरूप राजा भोज ने मां सरस्वती का विशाल मंदिर और एक महाविद्यालय की स्थापना की, जो भोजशाला के नाम से विख्यात हुआ। उन दिनों राजा भोज की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी, मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और ओड़ीशा में ज्ञानार्जन करने हेतु आते थे। उनका प्रभाव अधिक था। भोजशाला के महाविद्यालय में देश- विदेश से विद्यार्थी अपनी राजा भोज की कृपा से विद्यार्थी वेद, योग, सांख्य, न्याय, ज्योतिष, धर्म, वस्तुशास्त्र, औषधि विज्ञान, राज व्यवहार शास्त्र सहित कई शास्त्रों का अध्ययन करते थे। हजारों की संख्या में विद्यार्थी यहाँ के विद्धानों, आचार्यों के सानिन्ध्य में आलोकिक ज्ञान प्राप्त करते थे। इन आचार्यों में भवभूति, माघ, वाणभट्ट, कालिदास, मानतुंग, भास्करभट, धनपाल, बौद्ध संत बन्सवाल, समुद्रघोष आदि विश्व विख्यात हैं। कहने का तात्पर्य यह महाविद्यालय बहुत बड़ा शिक्षा का केन्द्र था। जहाँ सभी विषयों का अध्ययन अध्यापन होता था। भोजशाला में माँ सरस्वती की आराधना के साथ-साथ विशाल हवन कुंड में हवन एवं वेद मंत्रों के उच्चारण से भोजशाला गूंजता था। भोजशाला एक खुले प्रांगण में बना है। जिसमें विशाल स्तम्भों की श्रंखला है-जिसके पीछे एक विशाल प्रार्थना घर है। नक्काशीदार स्तम्भ तथा नक्काशीदार छत भोजशाला की पहचान है। राजा भोज सरस्वती के उपासक थे इसलिए उन्होंने वाग्देवी का विशाल मंदिर बनवाया था, जिसमें राजा भोज द्वारा आराधना की जाती थी। 1902 में लार्ड कर्जन के शासन काल में वाग्देवी की प्रतिमा लंदन ले जाया गया। आज भी लंदन के संग्रहालय में वाग्देवी की प्रतिमा मौजूद है।
राजा भोज के शासन के पश्चात् 200 वर्षों तक भोजशाला में अध्ययन- अध्यापन का कार्य भोज के शासनकाल की भांति निरन्तर जारी रहा जैसे राजा में था। हजारों की संख्या में दूर दराज से विद्यार्थी अध्ययन-अध्यापन का कार्य करते थे। 1305 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर आक्रमण कर माँ वाग्देवी की प्रतिमा को खंडित कर दिया। इसके अलावा उसने भोजशाला के कुछ भाग को ध्वस्त कर करीब 1200 आचार्यों एवं विद्यार्थियों की हत्या कर हवन कुंड में डाल दिया। कहा जाय तो भोजशाला का बहुत सा भाग ध्वस्त कर दिया। उस समय वहाँ का शासक मेदनी मौलाना कमालुद्दीन का मकबरा और दरगाह का निर्माण करवाया क्योंकि खिलजी शासकों के समय में मौलाना कमालुद्दीन बहुत प्रसिद्ध था। मौलाना कमालुद्दीन हिन्दुओं का धर्मान्तरण कर इस्लाम कुबुल करवाता था। इस्लाम न कुबुल करने पर हिन्दुओं का कत्ल करवा देता। इसलिए कमालुद्दीन खिलजी शासकों का प्रिय मौलाना था। महमू खिलजी द्वारा कमालुद्दीन का मकबरा और दरगाह बनने के बाद भोजशाला पर मुस्लिमों का अधिकार हो गया। भोजशाला में नमाज अदा होने लगी। माँ सरस्वती की पूजा के लिए हिन्दुओं को बहुत संघर्ष करना पड़ा। अभी भी माँ सरस्वती की पूजा संघर्ष चल है।
1935 में म.प्र. के धार स्टेट का दीवान नाडकार ने भोजशाला को कमाल मौलाना का मस्जिद बताते हुए सिर्फ मुस्लिमों को नमाज अदा करने की अनुमति दे दिया। तथा हिन्दुओं को माँ सरस्वती की आराधना का अधिकार समाप्त कर दिया। 1997 में म.प्र. के कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने तो हिन्दुओं का भोजशाला में प्रवेश ही बंद करवा दिया। उसी वर्ष बहुत संघर्ष के बाद 12 मई 1997 को कलेक्टर द्वारा हिन्दुओं को बसंत पंचमी पर पूजा करने की अनुमति मिली। 2002 में शुक्रवार को बसंत पंचमी और कमाल मौलाना का जन्मदिन एक साथ पड़ा। उस दिन बहुत हंगामा हुआ। सरकारी आज्ञानुसार सुबह से 12 बजे तक सरस्वती पूजा एवं 1 बजे से 3 बजे तक नमाज अदा करने की अनुमति मिली। उस दिन 12 बजते ही पूजा बंद करवा दी गयी, हवन कुंड में पानी डाल कर मंदिर परिसर खाली करा दिया गया। मंदिर परिसर खाली करते समय थोड़ा विलम्ब होने पर पुलिस ने लाठियां बरसाना शुरु कर दिया। पथराव होने लगा। बच्चे महिलाओं सहित 1400 लोग घायल हुए, 2 दर्जन गम्भीर रूप से घायल हुए। सारा फसाद राजनैतिक कुटिलता और तुष्टीकरण की प्रवित्ति के कारण हुआ।
इससे स्पष्ट होता है कि मस्जिद और दरगाह भोजशाला को तोड़कर ही बनाया गया है। राजाभोज के भोजशाला में अगर नमाज अदा की जाती है इसपर तर्क संगत विचार होना चाहिए। सही इतिहास पर चर्चा होना चाहिए। लेकिन आज सम्प्रदाय विशेष की तुष्टीकरण के लिए ही सही इतिहास छुपाने की परम्परा चल गयी है। मंदिर एवं स्थलों पर, जहाँ पूजा और नमाज अदा की जाती है, उसे एकता का मिसाल कह कर सेक्यूलरिस्ट अपना पल्ला झाड़ते हैं। एकता का मिसाल जब माना जाता जब आज नवनिर्मित मस्जिदों में भी एक छोटा से ही पूजा स्थल बना दिया जाता, तब हम गर्व से कहते कि भारत के मंदिरों में मस्जिद होना एकता की मिसाल है।
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