विश्व व्यापी ध्येय पथ पर धर्म विजयी हो हमारा ॥
सत्य पथ अपना सनातन, नित्य नूतन चिर पुरातन
व्यष्टि से परमेष्ठी तक है, चेतना का एक स्पंदन
वेद वाणी के स्वरों में, गुंजति संस्कार धारा ॥1॥
सब सुखी हो सब निरामय, इस धरा का मूल चिंतन
विश्व को मांगल्य देने, कर दिया सर्वस्व अर्पण
गरल पीकर शिव बने हम शक्ति का यह रूप न्यारा ॥2॥
जननी है वसुधा हमारी, मातृ मन का भाव जागे
एकता का मंत्र दे कर, जगति में एकात्म साधे
विश्व गुरु के परम पद पर, हो प्रतिष्ठित धर्म प्यारा ॥3॥
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