क्या हम राष्‍ट्रमंडल खेलो के आयोजक है !!!



राष्‍ट्रमंडल खेलो को लेकर भारत सरकार ने जो तैयारियों का प्रदर्शन विश्‍व समुदाय से सम्‍मुख किया उसी का नतीजा है कि आई ओ सी के अध्‍यक्ष जैक्स रॉग्‍स ने भारतीय खेल आधिकारियों के मुँह पर तैयारियों के झूठ का गुब्‍बारा की हवा दो मिनट मे निकाल दी। जैक्‍स ने कड़े शब्‍दो मे ढ़ीली तैयारियों की अपत्ति आईओए अध्‍यक्ष सुरेश कलमाड़ी से कर चुके है। उन्‍होने साफ-साफ शब्‍दो मे कहा है कि आप खिलाडि़यो को दी जाने वाली मूलभूत सुविधाओ को भी अभी तक पूरा नही कर सके है। मुझे इस बात से याद आता है कि दो वर्ष पूर्व चीन की राजधानी बींजिंग मे होने वाली ओलम्पिक खेलो की तैयारी का जयाजा लेने वाले प्रतिनिधि मंडल ने चीन सरकार के काम पर आश्‍चर्यजनक ढ़ग से एक आग्रह किया कि आप कृपया करके कामो इतने तेजी से मत निपटाईये कि आपके द्वारा बनवाये गये स्‍टेडियम, खेल हॉल व अन्‍य खेल परिसर तत्‍कालीन समय पर पुराने लगने लगे। इस प्रकार दो विश्‍व के सबसे बड़े विकाससील राष्‍ट्रो के कार्य सम्‍पन्‍नता मे कितनी भिन्‍न देखी जा सकती है। एक ओर तो समय समय पूर्व काम खत्‍म हो जा रहा है जबकि दूसरी ओर खेल का आयोजन मुहाने पर खड़ा है और दूसरी तरह सरकार की हीला हवाली और लीपा पोती ही देखी जा रही है। इतने बड़े खेल का आयोजन हम 4 साल पूर्व हमें मिल चुका था किन्‍तु हमारी कुम्‍भकरणीय नींद तथा काम के प्रति तत्‍परता सबके सम्मुख है कि विदेश से आने वाले आधिकारी खरी खोटी सुनाकर चले जा रहे है। मुझे हंसी आती है कि जब हम 2016 के ओलम्‍पिक खेलो लिये अपनी दावेदारी भारत सरकार और सुरेश कलमाड़ी पेश कर रहे थे।

भारतीय सरकारी कार्य करने रवैया जग जाहिर है, जब तक कि बाराज दुआर पर आ न जाये तब तब दु‍ल्‍हन की सजावट करने वाली परच‍ारिकाऍं गायब रहती है। अब जब कि बारात रूपी खेलो के आयोजन का समय नजदीक आ चुका है तब इस काम को करने की अंधी दौड मे दिल्‍ली सरकार लोगो के जान जोखिम मे डाल कर कार्य पूर्ण करने का प्रयास किया जा रहा है। इसी का परिणाम है‍ कि दिल्‍ली मेट्रो के विस्‍तार के समय अनेक बार बड़ी तथा अनगिनत छोटी-मोटी र्दुघटनाऍं कार्य के समय होती रही है और इसके परिणाम स्‍वरूप गरीब मजदूर अपनी जान गवां रहे है। इस अपाधापी मे बनने वाले मेट्रो के फ्लाईओवर व स्‍टेशन निर्माण की गुणवत्‍ता पर भी प्रश्‍न चिन्‍ह उठ रहा है कि निर्माण के दौरान यह स्थिति है तो तब खेलो के दौरान आने वाली महाकुम्‍भी भीड़ को क्‍या होगा? गौरतलब है कि जिस कम्‍पनी के संरक्षण मे ढा़चा गिरा, क्रेन पलटी तथा मजूदूरो की मौत हुई उस कम्‍पनी को काली सूची मे डालने के बजाये मानो कार्य विस्‍तार देकर उसे र्दुघटना का पुरस्‍कार दिया जा रहा है।
आज किसी भी खेलो के आयोजन मे सबसे बड़ी कमजोरी हमारी सुरक्षा व्‍यवस्‍था प्रतीत होती है, भले ही विश्व समुदाय के सम्‍मुख भारत के गृहमंत्री चिदम्‍बरम इंग्‍लैंड की बैडमिन्‍टन टीम के भारत दौरे को रद्द करने के जबावी कार्यवाही करत हुये बैडमिन्‍टन का मैच देखने के लिये दर्शन दीर्घा मे जा पहुँचे और मैच के बाद खीस निपोरते हुये वक्तव्‍य देते है कि इग्‍लैंड की बैडमिन्‍ट टीम को भारत का दौरा करना चाहिये था भारत का सुरक्षा तंत्र देखो कितना मजबूत है मै भी आम दर्शक बन कर मैंच देख रहा हूँ किन्‍तु यही चिदम्‍बरम यह भूल जात है कि आईपीएल 2009 के दौरान चुनाव के दौरान सुरक्षा न दे पाने का हवाला देते हुये आयोजन को आईपीएल के समय सीमा को 3 माह के लिये टालने की बात की थी किन्‍तु आईपीएल के आयोजको ने इसे स्‍थान्‍तरित कर दक्षिण आफ्रिका मे आयोजित करवाया, इससे तो विश्‍व समुदाय के समाने सुरक्षा को लेकर जो छवि गई वो आज भी देखने को मिल रही है और इसके साथ ही साथ भारत‍ीय धन विदेश गया सो अलग। आईपीएल 2010 भी सरकार की गरिमा पर चार चाँद लगाना तेलंगाना मुद्दे पर आंध्र प्रदेश में होने वाले मैचों को सुरक्षा के नाम पर नागपुर और मुंबई में ठेल दिया गया। जयपुर में बम विस्फोट के कारण इंग्लैंड क्रिकेट टीम ने 7 एक दिवसीय मैचों की श्रृंखला को सुरक्षा का हवाला देते हुए 5 मैच खेल कर ही स्वदेश रवाना हो गई और भारतीय सुरक्षा व्यवस्था पर गृहमंत्री बयान पर विश्व समुदाय ताली बजाकर उनके बड़बोले पन का परिहास कर रहा था। यह तो केवल बानगी मात्र ही है किन्तु हालिया घटनाओं ने भारत की सुरक्षा व्यवस्था को तार-तार कर दिया है जिस प्रकार छत्तीसगढ़ और बंगाल में नक्सली और बिहार और झारखंड में माओवादी अपना कहर बरपा रहे है उनके इन मंसूबे से राष्ट्रमंडल सुरक्षित नहीं प्रतीत हो रहा है कि कब ये तत्व दिल्ली पर हमला न हो।


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महाशक्ति चिट्ठकारी के पॉच साल, कारनामो भरा ब्‍लागर सम्‍मेलन



इलाहाबाद चिट्ठाकारी की दुनिया मे आपना नाम स्‍थापित कर चुका है, इलाहाबाद का यही नाम कई लोगो की ऑखो मे किरकिरी बना हुआ है। जहाँ तक मै समझता हूँ कि हर काम मे जहाँ किसी का सहयोग लिया जा सकता है लिया जाना चाहिये तथा जहाँ पर किसी को किसी हद तक सहयोग दिया ज सकता है दिया जाना चाहिये , हिन्‍दी के चिट्ठाकारी मे पिछले 5 सालो मे यह कमी मुझे बहुत देखने को मिली। हमेशा सिक्‍के के दो पहलू होते है अगर कुछ लोग खुरापाती टाईप के भी होते है तो कुछ इस दुनिया मे आत्‍मीय भी है। यही अत्‍मीयता हमेशा मिलने मिलने को प्रेरित करती है।
मैने अपनी पोस्ट इलाहाबाद मिलन का अंतिम सच में आत्‍मीय लोगों के बारे मे लिखा था जिनसे एक बार नहीं बार बार मिलने को मन करता है। आज पुन: नीशू तिवारी और मिथिलेश दूबे का आत्‍मीय साथ मिला, वकाई शाम के 4 बजे से रात्रि के 8.30 कब हो गये पता ही नही चला। इसी बीच अपनी बुद्धवासरीय अवकाश के कारण इलाहाबाद के पत्रकार हिमांशु पाण्डेय जी और उनके पुत्र चिरंजीवी सोम का भी साथ मिला। जिस प्रकार 15 जून को जूनियर ब्‍लागर एसोसिएशन की प्रथम बैठक हुई उसी की अगली मे एक और कड़ी जुड़ गई।
इसे मै इत्‍फाक ही कहूँ कि अत्‍मीयता आज के दिन ही मेरा हिन्‍दी ब्‍लाग की दुनिया मे पदार्पण हुआ था और मेरे साथ मेरे ब्‍लागिंग का 5वीं वर्षगांठ को मनाने के लिये ब्‍लागर मित्रो का साथ होना कितना सुखद एहसास दे रहा है। शायद ही किसी ब्‍लागर के ब्‍लाग पदार्पण की वर्षगांठ पर इत्‍फाकन ब्‍लागर मीट का आयोजन हुआ हो। इस कार्यक्रम से पूर्व इलाहाबाद मे सलाना अवतरित होने वाले अमेरी‍की ब्‍लागर रामचंद्र मिश्र अपने परिणय निमंत्रण देने के लिये आये। यह सब इतना जल्‍दी हुआ कि भाई वीनस केसरी और केएम मिश्र जी को भी अपने याद पल मे शामिल नही कर सका। निश्चित रूप से कार्यक्रम मे उनकी कमी खली। प्राईमरी के मास्‍टर जी से भी बात हुई तो जब मैने प्रतीक पांडेय जी को फोन मिलाया तो वे रिसीव न कर सके और जब उन्‍होंने काल की तो मै रिसीव न कर सका, और उनकी कॉल को रिसीव किया एक और ब्‍लागर मिथलेश जी ने, इत्‍फाको से भी ब्लागर मीट मजेदार रही और चिट्ठकारी के 5 वर्ष के कारनामो मे ये सब घटानये और चिट्ठकारी के इतिहास मे नया अध्‍याय जोड़ गई।
उन सभी पाठकों तथा ब्‍लागर मित्रों के सहयोग के लिये भी धन्‍यवाद जिनके सहयोग और मार्गदर्शन के कारण पॉच सालो के चिट्ठाकारी कि दुनिया में आज तक बना हुआ हूँ।


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ब्‍लावाणी को लेकर ''हम''



ब्लॉगवाणी का एका एक बंद होना हर किसी ब्‍लागर के लिये बहुत बड़ा झटका था, खासकर उन लोगों के लिए जो टिप्पणी के लिये लेखन करते थे/है। आज भले ही इंडली/चिट्ठा जगत/ अलावाणी और फलावाणी का नाम लिया जाये किन्‍तु ब्‍लागमानस मे जो स्‍थान ब्‍लागवाणी ने स्थापित किया है अगर कोई चिट्ठा संकलक इस मुकाम पर पहुँचता है तो यह निश्चित रूप से हिन्दी चिट्ठाकारी को इससे लाभ पहुंचेगा।

मुझे यह कहने मे हिचक नही है कि ब्‍लागवाणी इस स्थिति मे कि इसकी निन्‍दा करने वाले भी आज इसे याद कर रहे है।आज जो कुछ भी है ब्‍लागवाणी कम से कम सभी ब्‍लागरों को याद आ रही है, आपनी गुणवत्ता के कारण, मै नही कहता कि चिट्ठाजगत अच्‍छा काम नही कर रहा है। चिट्ठाजगत की अपनी पहचान अधिकतम चिट्ठो के संकलन के कारण है।
 
मैने किसी पोस्‍ट मे कहा था कि न तो चिट्ठाकारी किसी एक व्‍यक्ति से है और न ही किसी एग्रीगेटर के कारण, चिट्ठकारी का अस्तित्‍व प्रत्‍येक चिट्ठकाकर के हर छोटी बड़ी पोस्‍ट के कारण है। आज ब्‍लागवाणी काम नही कर रही है इसका मतलब यह नही है कि चिट्ठाकारी का अंत हो गया अपितु यह कहना उचित होगा कि जिस प्रकार परिवार के अभिन्‍न सदस्‍य के चले जाने से एक शून्‍य स्‍थापित होता है, उ‍सी प्रकार चिट्ठकार परिवार से ब्‍लागवाणी की अनुपस्थिति उस शून्‍य का आभास करा रही है।

एक बात मै कड़े शब्‍दो में कहना चाहूँगा कि अक्‍सर छोटी मोटी बातो को लेकर लोग अपनी शक्ति प्रदर्शन आपने ब्‍लागो पर करते थे कि ब्‍लागवाणी ऐसी कि ब्‍लागवाणी वैसी, ब्‍लागवाणी ने ये ठीक नही किया कि ब्‍लागवाणी ने वो ठीक नही किया। आखिर इसका मतलब क्‍या है ? आखिर ब्‍लागवाणी ने शुरू मे ही अपनी नीतियों पर काम करने का फैसला लिया था, और मै इसका शुरूवाती से हिमायती रहा हूँ। आज भी अपेक्षा करता हूँ कि ब्‍लागवाणी अपनी नीतियों पर काम करें, किसी की चिल्‍ल-पो सुनने की जरूरत नही है। मै अपने लिये भी कह चुका हूँ कि अगर ब्‍लागवाणी की नीतियों पर मेरा ब्‍लाग भी न हो तो उसे हटा दिया जाये मुझे कोई अपत्ति नही होगी क्‍योकि हमने ब्‍लागवाणी और उनके संचालको को दिया ही क्‍या है जो अपेक्षा करते है कि हम कुछ पाने की अपेक्षा करें। कुछ बाते बोलनी बहुत आसान होती है किन्‍तु करना उतना ही कठिन, मैने इसका अनुभव किया है। आज हम ब्‍लागवाणी से कुछ आशा करते है तो वह अनायास ही नही है।

श्री मैथली जी, श्री अरुण जी हो, या सिरिल भाई या स्वयं में हमारे लिये ब्लॉग हो या ब्लॉगवाणी वह अपनों से बढ़कर नहीं है, मुझे यह कहने में हिचक नहीं है कि हम सब के लिये ब्लॉग साधन है साध्य नही है। अरुण जी ने भी ब्लॉग त्‍याग में पीछे नहीं रहे, मैने भी पोस्टिंग कम कर दिया किन्तु अभी मोह छोड़ नहीं पा रहा हूँ, मैथली परिवार भी ब्लॉगवाणी से मची नूराकुश्ती से अजीज आ कर ब्लॉगवाणी को बंद कर दिया। क्योंकि हमारे व्यक्तिगत ब्लॉग हमसे है न कि हम अपने ब्लॉग से, यह सत्य है। मुझे इस बात की खुशी है कि जो लोग ब्लॉगवाणी को लेकर मूड़ पीटते थे ब्लागवाणी के निलंबित होने से अब उलूल जुलल हरकत और बयानबाजी कर रहे है। आखिर मे ऐसे लोगो को पता चल गया कि ब्लॉगवाणी का महत्व उनकी चिट्ठाकारी के लिये क्या था, आखिर कुछ लोगों के ब्‍लागो की दुकान सिर्फ और सिर्फ ब्लॉगवाणी के बल पर ही चलती थी, ऐसे लोगों को ब्लॉगवाणी के जाने से जरूर आघात पहुँचा होगा। ब्लॉगवाणी के बंद होने से मेरे ब्लॉग के पोस्टिंग वाले दिनों में पाठकों पर प्रभाव जरूर पड़ा है किन्तु यह वह प्रभाव नहीं है आज भी नियमित पाठको की आवाजाही होती है। मै आशा करता हूँ कि ब्लॉगवाणी पुन: हम ब्लॉगरों के बीच होगी, ऐसे लोगों की ब्लॉग दुकान नहीं बंद होने देगी जो सिर्फ ब्लॉगवाणी के दम पर ही अपनी दुकान चलाते थे।


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