आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाले नवरात्र को ‘शारदीय’ कहा जाता है। इन दिनों महामाया दुर्गा माता व कन्या पूजन का माहात्म्य है। नवरात्रि पूजन प्रतिपदा से दशमी तक किया जाता है। प्रातःकाल उठकर स्नान करके, मंदिर में जाकर या घर पर ही नवरात्रों में दुर्गा जी का ध्यान करके यह कथा पढ़नी चाहिए। कन्याओं के लिए यह व्रत विशेष फलदायी है।
कथा
बृहस्पति बोले- हे ब्रह्मा जी! आप अत्यंत बुद्धिमान, सर्वशास्त्र और चारों वेदों को जानने वालों में श्रेष्ठ हैं। हे प्रभु! कृपा कर मेरा वचन सुनो। चैत्र, आश्विन, माघ और आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में नवरात्रि का व्रत और उत्सव क्यों मनाया जाता है? हे भगवान्! इस व्रत का फल क्या है? किस प्रकार इसे करना उचित है? और पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहिये। बृहस्पति जी का ऐसा प्रश्न सुनकर ब्रह्मा जी कहने लगे कि हे बृहस्पति! प्राणियों का हित करने की इच्छा से तुमने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेवी, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। यह नवरात्र व्रत सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र चाहने वाले को पुत्र, धन चाहने वाले को धन, विद्या चाहने वाले को विद्या और सुख चाहने वाले को सुख मिल सकता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है और कारागार में पड़ा हुआ मनुष्य बंधन से छूट जाता है।
मनुष्य की तमाम विपत्तियां दूर हो जाती हैं और उसके घर में संपूर्ण सम्पत्तियां आकर उपस्थित हो जाती हैं। बन्ध्या और काक बन्ध्या को इस व्रत के करने से पुत्र हो जाता है। समस्त पापों को दूर करने वाले इस व्रत को करने से ऐसा कौन सा मनोरथ है जो सिद्ध नहीं हो सकता। जो मनुष्य इस अलभ्य मनुष्य देह को पाकर भी नवरात्रि का व्रत नहीं करता है वह माता-पिता से हीन हो जाता है। उसके शरीर में कुष्ठ हो जाता है और अंगहीन हो जाता है। इस व्रत को न करने वाले को अनेक कष्ट सहने पड़ते हैं। यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करे और उस दिन बान्धवों सहित नवरात्र व्रत की कथा श्रवण करे।
हे बृहस्पति! जिसने सबसे पहले इस महाव्रत को किया है उसका पवित्र इतिहास मैं तुम्हें बताता हूं। पीठत नाम के मनोहर नगर में एक अनाथ ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके सम्पूर्ण सद्गुणों से युक्त मानों ब्रह्मा जी की सबसे पहली रचना हो, ऐसी यथार्थ नाम वाली सुमति नाम की एक अत्यंत सुंदर कन्या हुई। वह कन्या सुमति अपने घर के बालकपन में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे पक्ष में चंद्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और होम किया करता था। उस समय वह भी नियम से वहां उपस्थित होती थी। एक दिन वह सुमति अपनी सखियों के साथ खेलने गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और पुत्री से कहने लगा कि हे दुष्ट पुत्री! आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ठी और दरिद्र मनुष्य से तुम्हारा विवाह करूंगा। इस प्रकार कुपित पिता के वचन सुनकर सुमति को बड़ा दुख हुआ और वह पिता से कहने लगी कि हे पिता जी! मैं आपकी कन्या हूं। मैं आपके सब तरह से अधीन हूं। जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। रोगी, कुष्ठी अथवा और किसी के साथ जैसी आपकी इच्छा हो, मेरा विवाह कर सकते हो। होगा वही, जो मेरे भाग्य में लिखा है, मेरा तो इस पर पूरा विश्वास है।
मनुष्य न जाने कितने मनोरथों का चिंतन करता है पर होता वही है जो भाग्य में विधाता ने लिखा है। जो जैसा करता है उसको फल भी उस कर्म के अनुसार ही मिलता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के अधीन है। पर फल देव के अधीन है। जैसे अग्नि में पड़े हुए तृणादि उसको अधिक प्रदीप्त कर देते हैं उसी तरह अपनी कन्या के ऐसे निर्भयता से कहे हुए वचन सुनकर उस ब्राह्मण को अधिक क्रोध आया। तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी के साथ विवाह कर दिया और अत्यंत क्रुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि जाओ-जाओ जल्दी जाओ अपने कर्म का फल भोगो। देखें केवल भाग्य भरोसे पर रहकर क्या करती हो?
![कूष्माण्डा कूष्माण्डा](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjj8Rt_fJUV6AYUXMzpNq65CtbS6ZYSv-p45a7WO2SFhWD_h1K2JWo4xgZl52qzfMUuTv-4sh3PDTDe0stXn9F-01GgZYwf-UcfEkf2x4faw1CH1xhUWMiDdNOQuhsYQ7WBKG8Q6g/s400/navratri_wallpaper_10.jpg)
![स्कंदमाता स्कंदमाता](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJ3aR-HfNWdLQCnMxJ_e81cbSp5liRjnrmRIUKMcOY6-34JnM8PLdGgb_aI0LygMP0FXGKrUA500A75FBwdP5N-QXjpHrpaWpcoMpXLNOTG2u9hccwWk49ZsOuYAKGzCG9Vcwq3g/s400/navratri_wallpaper_9.jpg)
तुम्हारे पूर्व जन्म का वृत्तांत तुम्हें सुनाती हूं सुनो! तू पूर्व जन्म में निषाद की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तेरे को और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया ओर न जल ही पिया। इसलिए 9 दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर तुम्हें मनोवांछित वस्तु दे रही हूं तुम्हारी जो इच्छा हो सो मांगो। इस प्रकार दुर्गा जी के कहे हुए वचन सुनकर ब्राह्मणी बोली कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे! आपको प्रणाम करती हूं। कृपा करके मेरे पति के कोढ़ को दूर करो। देवी कहने लगीं कि उन दिनों में तुमने जो व्रत किया था उस व्रत के एक दिन का पुण्य अपने पति का कोढ़ दूर होने के लिए अर्पण करो मेरे प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से रहित और सोने के जैसे शरीर वाला हो जायेगा।
![कात्यायनी कात्यायनी](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFnaynL03ITlQ2x_KXR4Nm0CIF9amTMzPlXPGEMBuDOl96Cco3CN23m4cCdDGPHUmB03BW3-a4zVkPUQcmKkrjokRDOP14QqNjCWqMxbKxqapwORHkUp0asGhli3FgdCtToJ9mjw/s400/navratri_wallpaper_8.jpg)
ब्रह्माजी बोले कि इस प्रकार देवी का वचन सुनकर ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से ठीक है, ऐसे बोली। तब तक उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ठ हीन होकर अति कान्तियुक्त हो गया जिसकी कान्ति के सामने चंद्रमा की कान्ति भी क्षीण हो जाती है।
![कालरात्रि कालरात्रि](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhyvGnjPqpygpTX_WJJ_BVHd9V22JBOfVSyWz1UDpULBptFQXmmtQrKbJTS5aOKYXdWGUZHsM_fgE89CZcuUV6ddlOULyBwv7VyCB2pBoE3s5EXjWZ2JxTrNvS9vGH_E2H2-EU0sQ/s400/navratri_wallpaper_6.jpg)
वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देखकर देवी को अति पराक्रमी समझकर स्तुति करने लगी कि हे दुर्गे! आप दुर्गत को दूर करने वाली तीनों जगत का संताप हरने वाली, समस्त दुखों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न होने पर मनोवांछित वस्तु को देने वाली और दुष्ट मनुष्य का नाश करने वाली हो। तुम ही सारे जगत की माता और पिता हो। हे अम्बे! मुझ अपराध रहित अबला का मेरे पिता ने कुष्ठा के साथ विवाह कर मुझे घर से निकाल दिया। आपने ही मेरा इस आपत्ति रूपी समुद्र से उद्धार किया है। हे देवी! मैं आपको प्रणाम करती हूं। मुझ दीन की रक्षा करो।
![महागौरी : मां दुर्गा का आठवां स्वरूप महागौरी : मां दुर्गा का आठवां स्वरूप](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhEmCjyaKmNjckkmNmk-T4WQsbqpFSpA1Pss-ojb-cpi9Rrx_wr1kSAOy_BP5YL2qLJ3skJ_yQtIv8kLhu33DYl0pKMIr7G9OuFdalBUd8c8EFYrz_jPz1qByFMvUDFva5EuLECMQ/s400/navratri_wallpaper_5.jpg)
ब्रह्माजी बोले कि हे बृहस्पति! इसी प्रकार उस सुमति ने मन से देवी की बहुत स्तुति की, उससे की हुई स्तुति सुनकर देवी को बहुत संतोष हुआ और ब्राह्मणी से कहने लगीं कि हे ब्राह्मणी! तुम्हारे उदालय नाम का एक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीघ्र ही होगा। ऐसा कहकर वह देवी उस ब्राह्मणी से फिर कहने लगीं कि हे ब्राह्मणी और जो कुछ तेरी इच्छा हो वही मनवांछित वस्तु मांग सकती हो। भगवती दुर्गा का ऐसा वचन सुनकर सुमति बोली कि हे भगवती दुर्गे! अगर आप मेरे पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्र विधि बताइए। हे दयावती! जिस विधि से नवरात्र व्रत करने से आप प्रसन्न होती हैं उस विधि और उसके फल को मेरे लिए विस्तार से वर्णन करें।
![सिद्धिदात्री : मां दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री : मां दुर्गा का नौवां रूप](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXMPTwGXWpNobPUyS89SoxqvoMy573q8moeGwDhRtfgBZLsIQbF3IA7hzUKDKWNk8qL8pAYIakOXcX1uZmtbibTbr9ZQ286z9SC39Vfb4p1FvfieYRwYfnXan723LhN4K-elcdEg/s400/navratri_wallpaper_4.jpg)
इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुनकर दुर्गा कहने लगीं कि हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हारे लिए संपूर्ण पापों को दूर करने वाली नवरात्र व्रत विधि बतलाती हूं जिसको सुनने से तमाम पापों से छूटकर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर 9 दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें। यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय का भोजन करें। पढ़े-लिखे ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापना करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियां बनाकर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से अघ्र्य दें। बिजौरा के फूल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से कीर्ति, दाख से कार्य की सिद्धि होती है। इस प्रकार फलों से अघ्र्य देकर यथा विधि हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिम्ब, नारियल, दाख और कदम्ब, इनसे हवन करें। गेहूं होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। खीर व चम्पा से धन और पत्तों से तेज और सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति और केले से पुत्र प्राप्त होता है। कमल से राज सम्मान और दाखों से सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल, इनसे तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है।
![सती, साध्वी, भवप्रीता, भवानी, भवमोचनी, आर्या, दुर्गा, जया, आद्या, त्रिनेत्रा, शूलधारिणी, पिनाकधारिणी, चित्रा, चंद्रघंटा, महातपा, मन, बुद्धि, अहंकारा, चित्तरूपा, चिता, चिति, सर्वमंत्रमयी, सत्ता, सत्यानंदस्वरुपिणी, अनंता, भाविनी, भव्या, अभव्या, सदागति, शाम्भवी, देवमाता, चिंता, रत्नप्रिया, सर्वविद्या, दक्षकन्या, दक्षयज्ञविनाशिनी, अपर्णा, अनेकवर्णा, पाटला, पाटलावती, पट्टाम्बरपरिधाना, कलमंजरीरंजिनी, अमेयविक्रमा, क्रूरा, सुंदरी, सुरसुंदरी, वनदुर्गा, मातंगी, मतंगमुनिपूजिता, ब्राह्मी, माहेश्वरी, ऐंद्री, कौमारी, वैष्णवी, चामुंडा, वाराही, लक्ष्मी, पुरुषाकृति, विमला, उत्कर्षिनी, ज्ञाना, क्रिया, नित्या, बुद्धिदा, बहुला, बहुलप्रिया, सर्ववाहनवाहना, निशुंभशुंभहननी, महिषासुरमर्दिनी, मधुकैटभहंत्री, चंडमुंडविनाशिनी, सर्वसुरविनाशा, सर्वदानवघातिनी, सर्वशास्त्रमयी, सत्या, सर्वास्त्रधारिणी, अनेकशस्त्रहस्ता, अनेकास्त्रधारिणी, कुमारी, एककन्या, कैशोरी, युवती, यति, अप्रौढ़ा, प्रौढ़ा, वृद्धमाता, बलप्रदा, महोदरी, मुक्तकेशी, घोररूपा, महाबला, अग्निज्वाला, रौद्रमुखी, कालरात्रि, तपस्विनी, नारायणी, भद्रकाली, विष्णुमाया, जलोदरी, शिवदुती, कराली, अनंता, परमेश्वरी, कात्यायनी, सावित्री, प्रत्यक्षा, ब्रह्मावादिनी।](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjP6oqLagSH3kdOu5ueJnwM50Iz10Nj_5q1i8hgQw6BUyPdbMHeL6IjnpZxDKtVRtrETmPX5AFx3EZ2ItU6lBd929VEWOgXKfh3_WITtEo0kzCkNTCKAh4B3vwRK4u1o0kaZRpzvQ/s400/navratri_wallpaper_3.jpg)
व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यंत विनम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। इन 9 दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है, उसका करोड़ों गुना मिलता है। इस नवरात्रि के व्रत करने से ही अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में ही विधि के अनुसार करें।
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ब्रह्माजी बोले कि हे बृहस्पति! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अंतर्ध्यान हो गईं। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूर्वक करता है वह इस लोक में सुख पाकर अंत में दुलर्भ मोक्ष को प्राप्त होता है। हे बृहस्पते! यह दुर्लभ व्रत का माहात्म्य मैंने तुम्हारे लिये बतलाया है। ब्रह्माजी के यह वचन सुनकर बृहस्पति जी आनंद के कारण रोमांचित हो गये और ब्रह्माजी से कहने लगे कि हे ब्रह्माजी! आपने मुझ पर अति कृपा की जो अमृत के समान इस नवरात्रि व्रत का माहात्म्य सुनाया।
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हे प्रभो! आपके बिना और कौन इस माहात्म्य को सुना सकता है? बृहस्पति जी के ऐसे वचन सुनकर ब्रह्माजी बोले कि हे बृहस्पते! तुमने सब प्राणियों का हित करने वाले इस अलौकिक व्रत को पूछा है इसलिए तुम धन्य हो। यह भगवती शक्ति संपूर्ण लोगों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है।
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