चिट्ठाकारी में कोई व्यक्ति मेरे सबसे नजदीक रहा है तो उनमे से एक नाम फरीदाबाद स्थित अरुण अरोड़ा जी अर्थात पंगेबाज। अरुण जी के साथ चिट्ठकारी में काम करने का अपना ही अलग आनंद था, अत्मीयता थी। अपने से आधे उम्र के लड़के का सम्मान देने की क्षमता थी तो कुछ गंभीर मुद्दों पर कंधे से कंधा मिला कर रोध/प्रतिरोध का तार्किक शब्द प्रहार भी उनके अंदर था।
आज चिट्ठकारी के प्रति मेरी थोड़ी भी उदासीनी हुई तो उसका एक मात्र कारण अरुण जी है, उनके पंगेबाज बिना महाशक्ति की शक्ति भी अधूरी है। पंगेबाज जी हमेशा याद आते है किन्तु आज कुछ ज्यादा ही याद आये, आज मैंने उनके द्वारा भेजा गया पहले ईमेल को पढ़ा, उस मेल के शब्द थे - परमेन्दर जी आप के नाम पाती के बाद आज मोहल्ला से पंगा ले ही लिया कृपया चिट्ठा पढकर टिप्पणी अवश्य दे आपका अरुण, ८ अप्रैल २००७ के इस लघु पत्र को पढ़ कर आज मै उनको बहुत मिस कर रहा हूँ । पंगेबाज जितने अच्छे ब्लागर थे उससे भी अच्छे इंसान है, मुझे उनके साथ किये ये विभिन्न मुद्दो पर काम, आज उस पल का याद कर गम के आंसू दे रहे है। कोई व्यक्ति 24 घंटे मे किसी पर कितना विश्वास किसी पर पर कर सकता है मेरे द्वारा ९ अप्रैल २००७ को भेजे इस मेल से किया जा सकता है - अरूण जी, आपके लेख मे मात्रात्मक गल्तियॉं थी मैने उन्हे ठीक कर दिया है। लेख उत्तम है। यह तब के समय की बात है जब गिने ब्लागर थे, उन्होने मुझे अपने पंगेबाज ब्लाग लेख के वर्तनी सुधार के लिये ब्लाग पर प्रशासक का स्थान दिया था। तब न हमारे बीच कोई चैंट हुई थी न फोन पर बात बस एक अजीब से एक लक्ष्य दोनो को एक साथ काम करने को तत्पर कर दिया। मुझे दिल्ली की एक घटना याद आती है मै दिल्ली मे था तथा काफी ऊब गया था, मैने अरूण जी को प्रात: करीब 6 बजे फोन कर कहा शिकयत भरे लहजे मे कहा कि आपका छोटा भाई दिल्ली मे अकेले है और आपने आज तक उसकी फ्रिक नही की, उस समय पंगेबाज पूरी तरह नींद मे थे और बोले सॉरी.... तुम बदरपुर बॉर्डर पहुँचो मै तुमसे मिलता हूँ, जब हम बदरपुर पहुंचे तो अरुण जी हमसे पहले वहाँ मौजूद थे। इससे बड़ा आत्मीयता का उदाहरण मै नही दे सकता, अनजाने शहर में किसी से इतनी भी उम्मीद करना कठिन होता है। अरुण जी से वो मुलाकात मेरे चेहरे पर वो मुस्कान दे गई, मेरे लिये उस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत थी, जिन्दगी मे पहली बार अपने परिवार से मै दूर किसी स्थान पर था। जब तक वो साथ रहे किसी प्रकार की कमी होने नही दी।
आज पंगेबाज जी महाशक्ति पर पहली टिप्पणी (19 April, 2007) को देखता हूँ जो स्टार न्यूज पर हमला मीडिया के बडबोले मुँह पर तमाचा और मेरी पोस्ट पर सबसे अन्तिम पोस्ट अल्लाह ने दिये अबाध बिजली आपूर्ति की गारंटी पर (09 December, 2008 को) उन्होंने की थी जब उनकी मात्राओं की गलतियों को आसानी से देखा जा सकता था और बाद की टिप्पणी में सुधार, ऐसा इसलिए नहीं था कि अरुण जी को हिंदी नहीं आती थी अपितु आज से 3 साल पहले हिन्दी चिट्ठाकारी इसलिए कोई अच्छे हिन्दी टाईपिंग के माध्यम उपलब्ध नहीं थे। अरुण जी शायद कभी पंगेबाज न बनते और न कभी चिट्ठाकारी करते किन्तु 2007 की चिट्ठाकारी का जो परिदृश्य था उसके कारण एक पाठक होने के कारण उनको चित्रकारी मे आना पड़ा और मेरी और उनकी वैचारिक समानता ने हमे एक किया।
पंगेबाज जी का नम्बर मेरे पास है (यदि बदला न हो तो) किन्तु मै बात करने का साहस नही जुटा पा रहा हूँ, क्योकि मै उनकी वापसी की माँग करूँगा, और वो न करेगे और न सुनने की आदत मुझमे नही है। अरूण जी आपका छोटा भाई दिल कड़ा लिखता है उसका दिल उतना कड़ा नही है, काश आपकी कमी के कारण हुये मेरे दर्द और छति को समझ पाते आज भी आप बहुत याद आते हो। मै आपके वापसी की प्रतीक्षा कर रहा हूँ, आज अपने शीर्षक को एक ब्लागर था पंगेबाज को एक ब्लागर है पंगेबाज करना चाहता हूँ।
आपके और मेरे संवाद बहुत है फिर आपको याद करते हुये लिखूँगा.......... जय श्रीराम
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