मै कुछ दिनों से असक्रिय रहा, इसी बीच मुझे इण्डिया कम्युनिटी से बिना कारण बताए बाहर कर दिया गया। साथ ही साथ मैंने गांधी विषय एक प्रश्न को भी इस मंच से निकाल दिया गया। जो कि पूर्णात: गलत है। यह काम कम से कम इण्डिया कम्युनिटी का नही ही हो सकता है, सही आज अनुभव हुआ कि इंडिया में भी एक पाकिस्तान रहता है। अगर गांधी विषयक प्रश्न के कारण मुझे निकाला गया है तो यह और भी गलत कृत्य है। कयोकि मै एक स्वथ्य चर्चा चाह रहा था, और चर्चा वैसी ही चल रही थी।गांधी विषयक यह प्रश्न केवल आज का युवा मन टटोलने की कोशिस भर था। अगर स्वस्थ चर्चा होती है तो इसमें कम्यूनिटी ऑनर या मॉडरेटर को क्या आपत्ति हो सकती है? आज के दौर मे जब राम पर प्रश्न उठाया जा रहा है तो गांधी पर चर्चा से परहेज क्यों ? यह प्रश्न उठाने का मुख्य वह मुझे आपने ब्लाग http://pramendra.blogspot.com/ पर गांधी विषयक लेख http://pramendra.blogspot.com/2007/10/blog-post.html के लिये था। गांधी के ऊपर सच्चाई भरा लेख जल्द ही मै इसकी अगली कड़ी लेकर आने वाला हूँ। वैसे यह प्रश्न केवल एक इस ही कम्यूनिटी में नही रखा गया था। और आज भी सभी जगह चचाऐं हो रही है।
अगर मेरा यह प्रश्न इस कम्युनिटी में गलत था, तो मै स्वयं इस कम्यूनिटी में नहीं रहना चाहूँगा। पर मै अपनी पूरी बात जरूर रखूँगा। किंतु मुझे अपनी बात रखें बिना यहां से हटाना कायरता होगी। अगर यही कारण है मुझे हटाने कि तो मै स्वंय अपनी बात रख कर, 7 दिनों के भीतर इस कम्यूनिटी को छोड़ दूंगा। मुझे ऐसी छुई मुई कम्युनिटी का सदस्य कहलाने में शर्म आती है। सही एक बात तो है इस कम्युनिटी का नाम भारत नहीं रखा इण्डिया रखा है क्योंकि ऐसी घटिया अल्प विकसित सोच अंग्रेजों के इंडिया की ही हो सकती है।
जय हिन्द जय भारत
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बोध कथा- ध्यान और सेवा
एक बार ज्ञानेश्वर महाराज सुबह-सुबह नदी तट पर टहलने निकले। उन्होंने देखा कि एक लड़का नदी में गोते खा रहा है। नजदीक ही, एक सन्यासी ऑखें मूँदे बैठा था। ज्ञानेश्वर महाराज तुरंत नदी में कूदे, डूबते लड़के को बाहर निकाला और फिर सन्यासी को पुकारा। संन्यासी ने आँखें खोलीं तो ज्ञानेश्वर जी बोले- क्या आपका ध्यान लगता है? संन्यासी ने उत्तर दिया- ध्यान तो नहीं लगता, मन इधर-उधर भागता है। ज्ञानेश्वर जी ने फिर पूछा लड़का डूब रहा था, क्या आपको दिखाई नहीं दिया? उत्तर मिला- देखा तो था लेकिन मैं ध्यान कर रहा था। ज्ञानेश्वर समझाया- आप ध्यान में कैसे सफल हो सकते है? प्रभु ने आपको किसी का सेवा करने का मौका दिया था, और यही आपका कर्तव्य भी था। यदि आप पालन करते तो ध्यान में भी मन लगता। प्रभु की सृष्टि, प्रभु का बगीचा बिगड़ रहा है1 बगीचे का आनन्द लेना है, तो बगीचे का सँवरना सीखे।
यदि आपका पड़ोसी भूखा सो रहा है और आप पूजा पाठ करने में मस्त है, तो यह मत सोचिये कि आपके द्वारा शुभ कार्य हो रहा है क्योंकि भूखा व्यक्ति उसी की छवि है, जिसे पूजा-पाठ करके आप प्रसन्न करना या रिझाना चाहते है। क्या वह सर्व व्यापक नही है? ईश्वर द्वारा सृजित किसी भी जीव व संरचना की उपेक्षा करके प्रभु भजन करने से प्रभु कभी प्रसन्न नहीं होगे।
प्रेरक प्रसंग, बोध कथा
यदि आपका पड़ोसी भूखा सो रहा है और आप पूजा पाठ करने में मस्त है, तो यह मत सोचिये कि आपके द्वारा शुभ कार्य हो रहा है क्योंकि भूखा व्यक्ति उसी की छवि है, जिसे पूजा-पाठ करके आप प्रसन्न करना या रिझाना चाहते है। क्या वह सर्व व्यापक नही है? ईश्वर द्वारा सृजित किसी भी जीव व संरचना की उपेक्षा करके प्रभु भजन करने से प्रभु कभी प्रसन्न नहीं होगे।
प्रेरक प्रसंग, बोध कथा
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मेरियन जोंस
अर्श से फर्श की कहावत तो हम सबने सुनी ही है। कुछ दिनों पूर्व यह कहावत चरितार्थ भी हो गई। विश्व रेस ट्रैक की महारानी कही जाने वाली मेरियन जोंस ने अपने पूरे करियर में प्रतिबंधित दवाओं के सेवन की बात स्वीकार ली, और खेल से संन्यास ले लिया। मैरियन की यह स्वीकारोक्ति निश्चित रूप में मेरे जैसे लाखों, प्रशंसकों को एक सदमा तो जरूर पहुचाया है। सबसे अधिक खिन्नता यह सोच कर होती है कि रेस कोर्स में हम जिस खिलाड़ी का सर्मथन कर रहे थे वह विश्वासघाती खिलाड़ी निकली। खैर मारियन ने सिडनी ओलम्पिक के 7 साल बाद मारियन ने यह स्वीकार किया वह अपने कृत्य के लिए दोषी है।

प्रतिबंधित दवा का सेवन करने की बात स्वीकार करने के बाद मारियन ने संन्यास लेने के बाद 2000 के सिडनी ओलंपिक में जीते सभी पांच पदक यूनाइटेड स्टेट ओलंपिक कमेटी को वापस लौटा दिए। इसके साथ ही साथ कमेटी ने जोंस से बोनस व इनाम के रूप में मिले एक लाख अमेरिकी डॉलर भी लौटाने को कहा है, जो नैतिक रूप से सही भी है क्योंकि वह गलती स्वीकार कर लेने के बाद किसी भी प्रकार से पुरस्कार की हकदार नही रह जाती है। अब मेरियन जोंस द्वारा लौटाये गये पदक उनके सही हकदारों को लौटा दिया जायेगा।

अमेरिका की फर्राटा धावक मैरियन जोंस ने 2000 के सिडनी ओलंपिक खेलों से पहले स्टेरॉयड का सेवन किया था, उसने सिडनी ओलंपिक में तीन स्वर्ण सहित पांच पदक जीते थे। जोंस ने 1999 की शुरुआत से लगभग दो वर्ष तक बे एरिया लेबोरेटरी कोऑपरेटिव (बालको) द्वारा उत्पादित ‘द क्लीयर’ नाम के स्टेरॉयड का सेवन किया था। इसी प्रतिबंधित दवा के सेवन के मामले में उन्हें दोषी पाया गया था।
अब मैरियन की सफलता कहा जाये या धोखाधड़ी, उन्होंने 2000 सिडनी ओलंपिक में 100, 200 व 4 गुणा 400 मीटर में स्वर्ण और 4 गुणा 100 मीटर दौड़ व लांग जंप का कार्य तथा 1997 की वर्ल्ड कप चैंपियनशिप में दो, 1999 में सेविले और 2001 में एडमंटन में एक-एक स्वर्ण पदक जीते थे। निश्चित रूप से गोल्डन गर्ल कहलाने वाली जोंस ने अपने कुकृत्यों के कारण अपना नाम खराब कर लिया है। क्योंकि खेल में खेल भावना अहम होती है न कि जीत-हार किंतु मेरियन ने खेल भावना को अपमानित किया है।
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