स्‍वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर



Swatantryaveer Vinayak Damodar Savarkar
महाराष्‍ट्र के नासिक जिलें में मगूर नामक गाँव में दामोदर सावरकर एवं राधा वाई के यहॉं 28 मई 1883 को विनायक का जन्‍म हुआ।बचपन में माता पिता महाभारत, रामायण, शिवाजी और राणाप्रताप केविषय में बताते रहते थे। उन्‍होने मित्रमेला नाम की संस्‍था बचपन में ही बनाई थी और इसके द्वारा क्रान्तिकारी गतिविधियों का प्रचार करते थे। कक्षा 10 उत्‍तीर्ण करने के पश्‍चात कविताएँ लिखने लगे। तिलक जी से परिचय होने के पश्चात सन् 1905 में विदेशी वस्‍त्रो की होली जलाई। बी0ए0 में अध्‍ययन के पश्चात सशस्‍त्र क्रान्ति के लिये अभिनव भारत नाम की संस्‍था बनाई।
Swatantryaveer Vinayak Damodar Savarkar
6 जून 1906 को कानून की पढ़ाई के लिये लंदन गये , वहाँ इण्डिया सोसाइटी बनाई। मेजिनी का जीवन चरित्र और सिखों का स्‍फूर्तिदायक इतिहास नामक ग्रंथ लिखा। 1908 में मराठी भाषा में 1857 का स्‍वातंत्र्य समर लिखा और यह जब्‍त कर ली गई। इन्‍ही की प्रेरणासे मदन लाल धींगरा ने कर्जन वायली की हत्‍या कर दी गई। सन् 1906 में ही राजेश दामोदर सावरकर को लेल भेजा गया और सावरकर बन्‍धुओं की सारी सम्‍पत्ति जब्‍त कर ली गई। कुछ दिनो बाद इग्‍लैंड से पेरिस गये और वहाँ से पुन: लंदन पहुँचने पर अपनी भाभी मृत्‍युपत्र नामक मराठी काव्‍य लिखा।
Hindu Samhati salutes Vinayak Damodar Savarkar
सावरकर जी को जलयान द्वारा भारत लाये जाते समय फ्रांस के निकट जहाज के आते ही शौचालय से छेकर समुद्र में कूद पड़े परन्‍तु पुन: पकडे पकड़े गये । बम्‍बई की विशेष अदालत ने आजन्‍म कारावास की सजा दी और काले पानी के लिये आंडमान भेज दिया गया। इसी जेल में उनके बड़़े भाई भी बंद थे। जेल में रह कर कमला गोमान्‍तक और रिहोच्‍छ्वास काव्य लिखा। 10 वर्ष बाद 1921 में अण्‍डमान जेल से लाकर रत्‍नागिरि जेल में उन्‍हे बंद कर दिया गया। यहाँ हिन्‍दुत्‍व, हिन्‍दूपदपादशाही, उ:श्राप, उत्‍तरक्रियासठयस्‍त्र, संयस्‍त खड्ग आदि ग्रंथ लिखे। हिन्‍दू महासभा की स्‍थापना कर शुद्धि का बिगुल फूका और हिन्‍दी भाषा का प्रचार किया। 10 मई 1934 को यहाँ से वे मुक्त हुये। महात्‍मा गांधी की हत्‍या होने पर उन्‍हे पुन: बंदी बनाया गया। फरवरी 1949 को ससम्‍मान मुक्त हुये। 20 फरवरी 1966 को वह देशभक्त बीर संसार से विदा हो गया।
 
स्‍वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर के जीवन की प्रमुख घटनाएँ
  • पढाई के दौरान के विनायक ने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करके "मित्र मेलों" का आयोजन करना शुरू कर नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्रान्ति की ज्वाला जगाना प्रारंभ कर दिया था।
  • 1904 में उन्हॊंने अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की।
  • 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद उन्होने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई।
  • फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देकर युवाओ को क्रांति के लिए प्रेरित करते थे ।
  • बाल गंगाधर तिलक के अनुमोदन पर 1906 में उन्हें श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली ।
  • इंडियन सोशियोलाजिस्ट और तलवार नामक पत्रिकाओं में उनके अनेक लेख प्रकाशित हुये, जो बाद में कलकत्ता के युगान्तर पत्र में भी छपे ।
  • 10 मई, 1907 को इन्होंने इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई । इस अवसर पर विनायक सावरकर ने अपने ओजस्वी भाषण में प्रमाणों सहित 1847 के संग्राम को गदर नहीं, अपितु भारत के स्वातन्त्र्य का प्रथम संग्राम सिद्ध किया ।
  • 1908 में इनकी पुस्तक 'The Indian war of Independence - 1947" तैयार हो गयी |
  • मई 1909 में इन्होंने लन्दन से बार एक्ट ला (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु उन्हें वहाँ वकालत करने की अनुमति नहीं मिली ।
  • लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाऊस की देखरेख करते थे ।
  • 1 जुलाई, 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था ।
  • 13 मई, 1910 को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया |
  • 8 जुलाई, 1910 को एस०एस० मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले ।
  • 24 दिसंबर, 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी ।
  • 31 जनवरी, 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया ।
  • नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया ।
  • 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे ।
  • 1921 में मुक्त होने पर वे स्वदेश लौटे और फिर 3 साल जेल भोगी । जेल में उन्होंने हिंदुत्व पर शोध ग्रन्थ लिखा ।
  • मार्च, 1925 में उनकी भॆंट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक, डॉ० हेडगेवार से हुई ।
  • फरवरी, 1931 में इनके प्रयासों से बम्बई में पतित पावन मन्दिर की स्थापना हुई, जो सभी हिन्दुओं के लिए समान रूप से खुला था।
  • 25 फरवरी, 1931 को सावरकर ने बम्बई प्रेसीडेंसी में हुए अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की ।
  • 1937 में वे अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के कर्णावती (अहमदाबाद) में हुए 19वें सत्र के अध्यक्ष चुने गये, जिसके बाद वे पुनः सात वर्षों के लिये अध्यक्ष चुने गये ।
  • 15 अप्रैल, 1938 को उन्हें मराठी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया ।
  • 13 दिसम्बर, 1937 को नागपुर की एक जन-सभा में उन्होंने अलग पाकिस्तान के लिये चल रहे प्रयासों को असफल करने की प्रेरणा दी थी ।
  • 22 जून, 1941 को उनकी भेंट नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई ।
  • 9 अक्तूबर, 1942 को भारत की स्वतन्त्रता के निवेदन सहित उन्होंने चर्चिल को तार भेज कर सूचित किया । सावरकर जीवन भर अखण्ड भारत के पक्ष में रहे । स्वतन्त्रता प्राप्ति के माध्यमों के बारे में गान्धी और सावरकर का एकदम अलग दृष्टिकोण था ।
  • 1943 के बाद दादर, बम्बई में रहे ।
  • 19 अप्रैल, 1945 को उन्होंने अखिल भारतीय रजवाड़ा हिन्दू सभा सम्मेलन की अध्यक्षता की ।
  • अप्रैल 1946 में बम्बई सरकार ने सावरकर के लिखे साहित्य पर से प्रतिबन्ध हटा लिया ।
  • 1947 में इन्होने भारत विभाजन का विरोध किया। महात्मा रामचन्द्र वीर नामक (हिन्दू महासभा के नेता एवं सन्त) ने उनका समर्थन किया ।
  • 15 अगस्त, 1945 को उन्होंने सावरकर सदान्तो में भारतीय तिरंगा एवं भगवा, दो-दो ध्वजारोहण किये। इस अवसर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने पत्रकारों से कहा कि मुझे स्वराज्य प्राप्ति की खुशी है, परन्तु वह खण्डित है, इसका दु:ख है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य की सीमायें नदी तथा पहाड़ों या सन्धि-पत्रों से निर्धारित नहीं होतीं, वे देश के नवयुवकों के शौर्य, धैर्य, त्याग एवं पराक्रम से निर्धारित होती हैं ।
  • 5 फरवरी, 1948 को गान्धी-वध के उपरान्त उन्हें प्रिवेन्टिव डिटेन्शन एक्ट धारा के अन्तर्गत गिरफ्तार कर लिया गया ।
  • 4 अप्रैल, 1950 को पाकिस्तानी प्रधान मंत्री लियाक़त अली ख़ान के दिल्ली आगमन की पूर्व संध्या पर उन्हें सावधानीवश बेलगाम जेल में रोक कर रखा गया ।
  • मई, 1952 में पुणे की एक विशाल सभा में अभिनव भारत संगठन को उसके उद्देश्य (भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्ति) पूर्ण होने पर भंग किया गया ।
  • 10 नवम्बर, 1957 को नई दिल्ली में आयोजित हुए 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के शाताब्दी समारोह में वे मुख्य वक्ता रहे ।
  • 8 अक्तूबर, 1959 को उन्हें पुणे विश्वविद्यालय ने डी०.लिट० की मानद उपाधि से अलंकृत किया।
  • सितम्बर, 1966 से उन्हें तेज ज्वर ने आ घेरा, जिसके बाद इनका स्वास्थ्य गिरने लगा ।
  • 1 फरवरी, 1966 को उन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया ।
  • 26 फरवरी, 1966 को बम्बई में भारतीय समयानुसार प्रातः १० बजे उन्होंने पार्थिव शरीर छोड़कर परमधाम को प्रस्थान किया ।
Hindu Samhati salutes Vinayak Damodar Savarkar
सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी थी जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। सावरकर के अनुसार -"मातृभूमि ! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की है|"

जन्‍मदिवस पर वि‍शेष


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गांधी का ब्रह्मचर्य और स्‍त्री प्रसंग



नेहरू के विभिन्‍न स्‍त्रियों से सम्‍बन्‍धो की चर्चा तो हमेशा होती ही रही है किन्‍तु अभी गांधी जी के स्‍त्रियों के के सम्‍बन्‍ध पर मौन प्रश्‍न विद्यमान है। गांधी जी ने अपनी पुस्‍तक सत्‍य के प्रयोग में अपने बारे में जो कुछ लिखा है उसमें कितना सही है, यह गांधी से अच्‍छा कौन जान सकता है? गांधी जी के जीवन के सम्बन्ध में अभी तक इतना ही जाना जा सकता है जितना कि नवजीवन प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। आज गांधी की वास्तविक स्थिति हम अनभिज्ञ है, बहुत से बातों में गांधी को समझ पाना कठिन है। गांधी की नज़रों में गीता माता है, पर वे गीता के हर श्‍लोक से बंधे नहीं थे, वह हिन्दू धर्म को तो मानते थे किन्तु मंदिर जाना अपने लिये गलत मानते थे, वे निहायत आस्तिक थे किन्तु भगवान सत्य से बड़ा या भिन्न हो सकता है उन्‍हे इसका संदेह था ठीक इसी प्रकार ब्रह्मचर्य उनका आदर्श रहा, लेकिन औरत के साथ सोना और उलंग होकर सोना उसके लिए स्वाभाविक बन गया था।

गांधी के सत्‍य के प्रयोगों में ब्रह्मचर्य भी प्रयोग जैसा ही था, विद्वानों का कथन है कि गांधी जी अपने इस प्रयोग को लेकर अपने कई सहयोगियों से चर्चा और पत्राचार द्वारा बहस भी की। एक पुस्तक में एक घटना का उल्लेख किया जाता है - पद्मजा नायडू (सरोजिनी नायडू की पुत्री) ने लिखा है कि गांधी जी उन्हें अक्सर चिट्ठी लिखा करते थे ( पता नही गांधी जी और कितनी औरतों को चिट्ठी लिखा करते थे :-) ), एक हफ्ते में पद्मजा के पास गांधी जी की दो तीन चिट्ठियाँ आती है, पद्मजा की बहन लीला मणि कहती है कि बुड्डा (माफ करे, गांधी के लिये यही शब्द वहाँ लिखा था, एक बार मैंने बुड्डे के लिये बुड्ढा शब्द प्रयोग किया था तो कुछ लोग भड़क गये थे, बुड्डे को बुड्ढा क्यों बोला) जरूर तुमसे प्यार करता होगा, नही तो ऐसी व्‍यस्‍ता में तुमको चिट्ठी लिखने का समय कैसे निकल लेता है ?

लीला मणि की कही गई बातो को पद्मजा गांधी जी को लिख भेजती है, कि लीलामणि ऐसा कहती है। गांधी जी का उत्तर आता है। '' लीलामणि सही ही कहती है, मै तुमसे प्रेम करता हूँ। लीलामणि को प्रेम का अनुभव नही, जो प्रेम करता है उसे समय मिल ही जाता है।'' पद्मजा नायडू की बात से पता चलता है कि गांधी जी की औरतो के प्रति तीव्र आसक्ति थी, यौन संबंधों के बारे में वे ज्यादा सचेत थे, अपनी आसक्ति के अनुभव के कारण उन्हे पाप समझने लगे। पाप की चेतना से ब्रह्मचर्य के प्रयोग तक उनमें एक ऊर्ध्वमुखी विकास है । इस सारे प्रयोगो के दौरान वे औरत से युक्त रहे मुक्त नहीं। गांधी का पुरूषत्‍व अपरिमेय था, वे स्वयं औरत, हिजड़ा और माँ बनने को तैयार थे, यह उनकी तीव्रता का ही लक्षण था। इसी तीव्रता के कारण गांधी अपने यौन सम्‍बन्‍धो बहुआयामी बनाने की सृजनशीलता गांधी में थी। वो मनु गांधी की माँ भी बने और उसके साथ सोये भी।

गांधी सत्‍य के प्रयोग के लिये जाने जाते है। उनके प्रयोग के परिणाम आये भी आये होगा और बुरे भी। हमेशा प्रयोगों के लिए कमजोरो का ही शोषण होता है- इसी क्रम में चूहा, मेंढक आदि मारे जाते है। गांधी ने अपने ब्रह्मचर्य के प्रयोग जो अन्‍यों पर किये होगे वे कौन है और उन पर क्या बीती होगी, यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है। गांधी की दया सिर्फ स्वयं तक सीमित रही, वह भिखरियों से नफरत करके है, उनके प्रति उनकी तनिक भी सहानुभूति नही दिखती है ये बो गांधी जिसे भारत के तत्कालीन परिस्थिति से अच्छा ज्ञान रहा होगा। गांधी के इस रूप से गांधी से कर इस दुनिया में कौन हो सकता है, जो पुरुष हो कर माँ बनना चाहता है।

इस लेख के सम्पूर्ण तथ्य राज कमल प्रकाशन से प्रकाशित किशन पटनायक की पुस्तक विकल्पहीन नहीं है दुनिया के पृष्‍ठ संख्‍या 101 में गांधी और स्त्री शीर्षक के लेख से लिये गये है।


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जन्‍मदिवस पर पंगेबाज को मिला मंत्रीपद, पाला बदलने से महत्‍वपूर्ण औहदो से नवाजे गये भगवा ब्‍लागर




आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से उनके निजी सचिव ने भारत के नंबर एक चित्रकार पंगेबाज को उनके 44 वें जन्मदिवस पर स्थिर सरकार का तोहफा भेजा। पंगेबाज के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि अब हमें मजबूत सरकार के लिये आपका समर्थन चाहिये। देश विनाश के लिये कांग्रेस में लोगों की बहुत कमी पड़ रही है, जब जाट शिरोमणि अजित सिंह को भी कांग्रेस में शामिल होने को कहा जा रहा है तो अब आप से वैर कैसे किया जा सकता है, हम आपको भी निमंत्रित कर रहे है। उन्होंने कहा कि आपको कांग्रेस पर आने पर केवल सोनिया मैडम और राहुल जी की ही जय बोलना पड़ेगा हमारी नहीं भी करेंगे तो भी कोई बात नहीं क्योंकि और कोई भी नहीं करता है। जबकि भाजपा में अटल-आडवाणी-जोशी-जसवंत-यशवंत-जेटली पता नही किसकी किसकी बोलना पड़ता जिसकी न बोलो वो नाराज और कट गया आपका टिकट। जबकि हमारी कांग्रेस पार्टी में मेरी भी क्‍या औकात कि किसी का टिकट काट दूँ ? और तो और राहुल बाबा और मैडम के अलावा किसी और की तूती बोलती भी नहीं है।
राहुल गांधी ने वर्तमान चुनाव में चिट्ठाकारी के प्रभाव से बहुत प्रभावित हुये। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को आदेश देते हुये कहा कि पंगेबाज के जन्मदिन पर मौके की नजाकत को देखते हुए उन्हें बधाई दीजिए और अपने मंत्रालय में एक चिट्ठाकारी मंत्रालय की स्थापना कर उन्हें कैबिनेट स्तर के मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल जगह दीजिए। राहुल गांधी का यह सोचना भी गलत नहीं है, क्योंकि वर्तमान समय में हिन्दी चिट्ठाकारी में करीब 10 हजार (करीब 5000 प्रतिशत की वृद्धि )चिट्ठाकार हो चुके है जबकि 2006 तक से केवल 200 तक ही थे , और 2014 के आम चुनाव तक करीब 5 करोड़ हिन्‍दी ब्लॉगर हो जाएंगे। जिनकी उपयोगिता के लिहाज से अनदेखा करना ठीक न होगा। पंगेबाज के निजी सचिव ने बताया कि पंगेबाज मंत्रीपद की शपथ लेने के लिये शपथ ग्रहण समारोह स्थल पर रवाना हो चुके है।
ममता, अजित, लालू, मुलायम, माया, पासवान, नीतीश,पवार, करुणानिधि जैसे विरोधियों को अपनी ओर करने से उत्साहित राहुल की नजर अब भगवा ब्‍लागरों पर है। इसी को देखते हुए राहुल गांधी ने भगवा फायरब्राड़ ब्‍लागर सुरेश चिप्‍लूकर और प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह को भी मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग की तर्ज पर चिट्टाकारी आयोग की स्थापना कर, क्रमश: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बना कर लाल बत्ती से नवाजने की की पेशकश कर कांग्रेस से जोड़ने की कोशिश। सुरेश चिप्‍लूकर जी ने अपने ब्लॉग पर लिखे, कांग्रेस विरोधी लेख न मिटने की शर्त रखने पर ही अध्यक्ष पद तो स्वीकार करने की बात कही, राहुल गांधी ने सुरेश जी से निवेदन करते हुए कहा कि आप सही है कि ब्लॉगरों के लेख उनकी अमूल्य निधि होते है वो उसे कैसे डिलीट कर कर सकते है, मै आपकी भावनाओं को समझ सकता हूँ, पर आपसे निवेदन है कि साईड बार में जो कांग्रेस विरोधी लेखों के लिंक दौड़ रहे है उन्‍हे आप हटा दीजिए। सुरेश जी ने कहा कि इतना तो किया ही जा सकता है, लेख तो ब्‍लागरों के बेटे होते है उन्‍हे डिलीट करना बेटो का वध करना होगा, लिंक तो हटा ही सकते है, क्‍या हम अपने बेटो के बाल ओर नाखून आदि नही काटते ?
महाशक्ति के प्रमेन्द्र उपाध्यक्ष पद पाने से खुश हो ही रहे थे कि चिट्ठाकारों विधि सलाहकार दिनेश राय द्विवेदी ने कहा कि प्रमेन्‍द्र आप तो विधि के छात्र हो आपको तो पता होना चाहिए कि किसी भी संवैधानिक पद की पद को धारण करने की उम्र की सीमा 25 वर्ष की होती है, और अभी तुम 22 वर्ष के ही हो, अत: तुम अभी इस पद के लिये अयोग्य हो। न्याय विद् द्विवेदी ली की बात से प्रमेन्द्र तो कम राहुल बाबा बहुत दुखी हुये। उनका मानना था कि घोषणा के बाद युवा का नाम काटा जाना ठीक न होगा वोट पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, अभी महाराष्ट्र के चुनाव भी होने वाले है, ऐसा खतरा लेना ठीक नहीं। उन्होंने समाधान निकालते हुए प्रमेन्द्र को अखिल भारतीय पत्रकार कांग्रेस कमेटी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया।
अभी खबर लिखे जाने तक पंगेबाज अपने 44 जन्मदिन पर चिट्ठाकार मंत्री की शपथ ले चुके थे, चिट्ठाकार आयोग के प्रथम अध्‍यक्ष सुरेश जी भी अपने नये दफ्तर में बैठ झक्कास पोस्ट लिखने की तैयारी कर रहे थे उपाध्यक्ष का पद हिन्दू चेतना के चंदन चौहान को देने की बात तय हुई, राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर प्रमेन्द्र के महाशक्ति ब्‍लाग पर युवाओं का रैला टूट पड़ा। चिट्ठाकारों में इस खबर से कांति के रूप में देखा जा रहा है। मंत्री व अध्‍यक्षों ने एक दूसरे को बधाई दी, ब्‍लागरों में भी पंगेबाज को जन्मदिवस व मंत्री पद पाने पर बधाई देने की होड़ लगी थी। काफी वरिष्ठ ब्लॉगर अपने पुराने संबंधों का हवाला देते हुए पिछले सम्‍बन्‍धो का हवाला देते हुए पिछले गेट से घुसकर बधाई देने की होड़ लगी थी। तथाकथित सेक्युलर ब्‍लागर बदले माहौल से हतप्रभ थे उन्होंने भी स्वीकार किया कि हम संप्रदायिक भगवा ब्‍लागर क्यों न थे ?
इस पूरी खबर को कवर किया इलाहाबाद के पत्रकार और नये ब्लॉगर हिमांशु पाण्डेय ने जो कल ही अपना ब्लॉग मेरी आवाज सुनो के साथ चिट्ठाकारी में आये है, इनका भी टिप्‍पणी से स्वागत किया जाये। मीडिया की अलग अलग खबरों के हवाले से खबर है कि कांग्रेस की सर्वेसर्वा मैडम सोनिया ने प्रधानमंत्री पद का ऑफर किया था, पर पंगेबाज ने इंकार कर दिया है। चूंकि यह मीडिया है, खबरों के भिन्नता न हो तो मीडिया का मतलब ही नहीं पता चलेगा। :)


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