नवदुर्गास्तोत्रम NAVDURGA




।।  ॐ ऐं ह्री क्लीं चामूण्डायै विच्चे ।।

मार्कण्डेयपुराणे देवी माहात्म्ये देवि कवचे

...........|| नवदुर्गास्तोत्रम ||..............

ॐ प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चंद्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम।।

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठम कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रिश्च महागौरीति चाष्टमम।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।।

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे ।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ता: शरणम गता: ।।

न तेषां जायते किश्चिदशुभं रणसङ्कटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदु:खभयं नहि ।।

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धि:प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशी रक्षशे नात्रशंशय: ।।

ॐ तत्सत


माता के उक्त नौ रूपों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं ---
  1. शैलपुत्री - पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण मां दुर्गा को शैलपुत्री कहा जाता है।
  2. ब्रह्मचारिणी - ब्रह्मचारिणी अर्थात जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव को पाया था।
  3. चंद्रघंटा - चंद्रघंटा अर्थात जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है।
  4. कुष्मांडा - ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें कुष्मांडा कहा जाने लगा। उदर से अंड तक वे अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं। इसीलिए कुष्मांडा कहलाती हैं।
  5. स्कंदमाता - उनके पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है, इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं।
  6. कात्यायनी - यज्ञ की अग्नि में भस्म होने के बाद महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था, इसीलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं।
  7. कालरात्रि - मां पार्वती देवी काल अर्थात हर तरह के संकट का नाश करने वाली हैं, इसीलिए कालरात्रि कहलाती हैं।
  8. महागौरी - माता का वर्ण पूर्णत: गौर अर्थात गौरा (श्वेत) है, इसीलिए वे महागौरी कहलाती हैं।
  9. सिद्धिदात्री - जो भक्त पूर्णत: उन्हीं के प्रति समर्पित रहता है, उसे वे हर प्रकार की सिद्धि दे देती हैं, इसीलिए उन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।

जय माँ भवानी...












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श्री दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्त्रोतम्



शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने ।
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ।।

ऊँ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी ।
आर्या दुर्गा जय चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ।।

पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघंटा महातपाः ।
मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः ।।

सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी ।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्या-भव्या सदागतिः ।।

शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा ।
सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ।।

अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती ।
पट्टाम्बरपरिधाना कलमञ्जीररञ्जिनी ।।

अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी ।
वनदुर्गा च मातंगी मतंगमुनिपूजिता ।।

ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा ।
चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरूषाकृतिः ।।

विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा ।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना ।।

निशुम्भ-शुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी ।
मधुकैटभहन्त्री च चण्ड-मुण्डविनाशिनी ।।

सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी ।
सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ।।

अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी ।
कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ।।

अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा ।
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ।।

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी ।
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ।।

शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी ।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ।।

य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम् ।
नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ।।

धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च ।
चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ।।

कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् ।
पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ।।

तस्य सिद्घिर्भवेद् देवि ! सर्वैः सुरवरैरपि ।
राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ।।

गोरोचना-लक्तक-कुंकुमेन सिन्दूर-कर्पूर-मधुत्रयेण ।
विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ।।

भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्र शतभिषां गते ।
विलिख्य प्रपठेत् स्त्रोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ।।

।। जय माँ भवानी ।।



नोट ► ये तन्त्रोक्त पाठ स्त्रियों के लिये विशेष है
विशेषतः ये अमावस्या की मध्य रात्रि में मां भगवती का पूजन करें उसके बाद इसका 108 बार पाठ करके लाभ उठा सकती हैं








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अष्टम स्वरुप महागौरी Eighth Form of Goddess- MahaGauri Stuti Mantra



श्वेते वृषे समारूढा: श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभम दद्यान्महदेवप्रमोददा ।।
Shwete Vrashe Samarudhah Shwetambar-dhara Shuchi।
Mahagauri Shubham Dadhyanmahdev-pramodada ।।
Representing Calmness and absolute innocence, this form of goddess represents the parvati aspect of the Great Goddess.
The eighth manifestation of Great Goddess Durga is MahaGauri. The white goddess, the fairness of her being is constantly compared to the conch, moon and kund flowers. All her adornments, clothes and jewelery are always white. She is always envisaged and worshiped as an 8-years old.
Due to Intense and prolonged nature of her arduous tapasya, the body of Sati was shriveled and blackened. When Shiva was moved bu her devotion, he consented to take sati as his consort and bathed her body with the waters of the celestial river Ganga and immediately her body became dazzling white and returned to the fresh vitality of 8-years old, the age at which possibly the goddess as a young girl heard the words of Narada muni, which moved her to seek the most perfect of bride-grooms, Shiva as her consort.
Mahagauri holds in 2 of her hands the Trishool and Damroo, symbols most closely associated with Lord Shiva. The benign goddess symbolizes the purity of childlike innocence as well as the unwavering determination needed to fulfill her arduous meditation.


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