बुद्धिवर्धक देसी जड़ी बूटी शंखपुष्पी Homegrown Herbs Shankpushpi



आयुर्वेद में वर्णित महत्वपूर्ण औषधि शंखपुष्पी

आयुर्वेद में हर तरह के रोगों व विकारों का रामबाण इलाज यथासंभव है यह ऐलोपैथिक डॉक्टरों ने भी माना है। आयुर्वेद में वर्णित महत्वपूर्ण औषधि शंखपुष्पी (वानस्पतिक नाम :Convolvulus pluricaulis) स्मरणशक्ति को बढ़ाकर मानसिक रोगों व मानसिक दौर्बल्यता को नष्ट करती है। इसके फूलों की आकृति शंख की भांति होने के कारण इसे शंखपुष्पी कहा गया है। इसे लैटिन में प्लेडेरा डेकूसेटा के नाम से जाना जाता है। शंखपुष्पी को स्मृति सुधा भी कहते हैं यह एक तरह की घास होती है जो गर्मियों में अधिक फैलती है। शंखपुष्पी का पौधा हिन्दुस्तान के जंगलों में पथरीली जमीन पर पाया जाता है। शंखपुष्पी का पौधा लगभग 1 फुट ऊंचा होता है। इसकी पत्तियां 1 से 4 सेंटीमीटर लम्बी, 3 शिराओं वाली होती है, जिसको मलने पर मूली के पत्तों जैसी गंध निकलती है। शंखपुष्पी की शाखाएं और तना पतली, सफेद रोमों से युक्त होती है। पुष्प भेद से शंखपुष्पी की 3 जातियां लाल, सफेद और नीले रंग के फूलों वाली पाई जाती है। लेकिन सफेद फूल वाली शंखपुष्पी ही औषधि प्रयोग के लिए उत्तम मानी जाती है। इसमें कनेर के फूलों से मिलती-जुलती खुशबू वाले 1-2 फूल सफेद या हल्के गुलाबी रंग के लगते हैं। फल छोटे, गोल, चिकने, चमकदार भूरे रंग के लगते हैं, जिनमें भूरे या काले रंग के बीज निकलते हैं। जड़ उंगली जैसी मोटी, चौड़ी और संकरी लगभग 1 इंच होती है। शंखपुष्पी को संस्कृत में क्षीरपुष्पी, मांगल्य कुसुमा, शंखपुष्पी, हिंदी में शंखाहुली, मराठी में शंखावड़ी, बंगाली में डाकुनी या शंखाहुली गुजराती में शंखावली और लैटिन में प्लेडेरा डेकूसेटा कहते है।
गुण : यह एक तरह की घास होती है जो गर्मियों में अधिक फैलती है। शंखपुष्पी की जड़ को अच्छी तरह से धोकर, पत्ते, डंठल, फूल, सबको पीसकर, पानी में घोलकर, मिश्री मिलाकर, छानकर पीने से दिमाग में ताज़गी और स्फूर्ति आती है। शंखपुष्पी का पौधा हिन्दुस्तान के जंगलों में पथरीली जमीन पर पाया जाता है। शंखपुष्पी का पौधा लगभग 1 फुट ऊंचा होता है। इसकी पत्तियां 1 से 4 सेंटीमीटर लम्बी, 3 शिराओं वाली होती है, जिसको मलने पर मूली के पत्तों जैसी गंध निकलती है। शंखपुष्पी की शाखाएं और तना पतली, सफेद रोमों से युक्त होती है। पुष्पभेद से शंखपुष्पी की 3 जातियां लाल, सफेद और नीले रंग के फूलों वाली पाई जाती है। लेकिन सफेद फूल वाली शंखपुष्पी ही औषधि प्रयोग के लिए उत्तम मानी जाती है। गुण : आयुर्वेद के अनुसार : शंखपुष्पी तीखी रसवाली, चिकनी, विपाक में मीठी, स्वभाव में ठंडी, वात, पित और कफ को नाश करती है, यह चेहरे की चमक, बुद्धि, शक्तिवर्धक, याददाश्त को शक्ति बढ़ाने वाली, तेजवर्द्धक, मस्तिष्क के दोष खत्म करने वाली होती है। यह हिस्टीरिया, नींद नही आना, याददाश्त की कमी, पागलपन, मिर्गी, दस्तावर, पेट के कीड़े को खत्म करता है। शंखपुष्पी कुष्ठ रोग, विषहर, मानसिक रोग, शुक्रमेह, हाई बल्डप्रेशर, बिस्तर पर पेशाब करने की आदत में गुणकारी है। यूनानी चिकित्सा पद्धति में- शंखपुष्पी का रस बलवान होता है। नाड़ियों को ताकत देने, याददाश्त बढ़ाने, मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ाने, पागलपन, मिर्गी, शंका और नींद दूर करने की यह एक अच्छी औषधि है।
आयुर्वेद के अनुसार : शंखपुष्पी तीखी रसवाली, चिकनी, विपाक में मीठी, स्वभाव में ठंडी, वात, पित और कफ को नाश करती है, यह चेहरे की चमक, बुद्धि, शक्तिवर्धक, याददाश्त को शक्ति बढ़ाने वाली, तेजवर्द्धक, मस्तिष्क के दोष खत्म करने वाली होती है। यह हिस्टीरिया , नींद नही आना ,याददाश्त की कमी, पागलपन, मिर्गी , दस्तावर, पेट के कीड़े को खत्म करता है। शंखपुष्पी कुष्ठ रोग , विषहर, मानसिक रोग , शुक्रमेह, हाई बल्डप्रेशर , बिस्तर पर पेशाब करने की आदत में गुणकारी है।
यूनानी चिकित्सा पद्धति में- शंखपुष्पी का रस बलवान माना गया है। यह नाड़ियों को ताकत देने, याददाश्त बढ़ाने, मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ाने, पागलपन, मिर्गी, शंका और नींद दूर करने की यह एक अच्छी औषधि है।
वैज्ञानिकों के अनुसार : शंखपुष्पी की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसका सक्रिय तत्व एक स्फटिकीय एल्केलाइड शंखपुष्पी होता है। इसके अतिरिक्त इसमें एक एशेंसियल ऑइल भी पाया जाता है। दिमागी शक्ति को बढ़ाने वाले उत्तम रसायनों में शंखपुष्पी को उत्तम माना जाता है। दिमागी काम करने वालों के लिए यह एक उत्तम टॉनिक है। मानसिक उत्तेजनाओं, तनावों को शांत करने में यह मददगार साबित हुई है।
शुद्धता की पहचान करना - श्वेत, रक्त एवं नील तीनों प्रकार के पौधों की ही मिलावट होती है । शंखपुष्पी नाम से श्वेत, पुष्प ही ग्रहण किए जाने चाहिए । नील पुष्पी नामक (कन्वांल्व्यूलस एल्सिनाइड्स) क्षुपों को भी शंखपुष्पी नाम से ग्रहण किया जाता है जो कि त्रुटिपूर्ण है । इसके क्षुप छोटे क्रीपिंग होते हैं । मूल के ऊपर से 4 से 15 इंच लंबी अनेकों शाखाएँ निकली फैली रहती हैं । पुष्प नीले होते हैं तथा दो या तीन की संख्या में पुष्प दण्डों पर स्थित होते हैं । इसी प्रकार शंखाहुली, कालमेघ (कैसकोरा डेकुसेटा) से भी इसे अलग पहचाना जाना चाहिए । अक्सर पंसारियों के पास इसकी मिलावट वाली शंखपुष्पी बहुत मिलती है । फूल तो इसके भी सफेद होते हैं पर पौधे की ऊँचाई, फैलने का क्रम, पत्तियों की व्यवस्था अलग होती है । नीचे पत्तियां लंबी व ऊपर की छोटी होती हैं । गुण धर्म की दृष्टि से यह कुछ तो शंखपुष्पी से मिलती है पर सभी गुण इसमें नहीं होते । प्रभावी सामर्थ्य भी क्षीण अल्पकालीन होती है।
संग्रह तथा संरक्षण एवं कालावधि - छाया में सुखाएं गए पंचांग को मुखंबद डिब्बों में सूखे शीतल स्थानों में रखते हैं । यह सूखी औषधि चूर्ण रूप में या ताजे स्वरस कल्क के रूप में प्रयुक्त हो सकती है । यदि संभाल कर रखी जाए तो 1 साल तक खराब नहीं होती।

शंखपुष्पी से विभिन्न रोगों में उपचार
  • उच्च रक्तचाप : शंखपुष्पी के पंचांग का काढ़ा 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन करते रहने से कुछ ही दिनों में उच्चरक्तचाप में लाभ मिलता है।
  • थायराइड-ग्रंथि के स्राव से उत्पन्न दुष्प्रभाव : शंखपुष्पी के पंचांग का चूर्ण बराबर मात्रा में मिश्री के साथ मिलाकर 1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से धड़कन बढ़ने, कंपन, घबराहट, अनिंद्रा (नींद ना आना) में लाभ होगा।
  • गला बैठने पर : शंखपुष्पी के पत्तों को चबाकर उसका रस चूसने से बैठा हुआ गला ठीक होकर आवाज साफ निकलती है।
  • बवासीर : 1 चम्मच शंखपुष्पी का चूर्ण प्रतिदिन 3 बार पानी के साथ कुछ दिन तक सेवन करने से बवासीर का रोग ठीक हो जाता है।
  • केशवर्द्धन हेतु : शंखपुष्पी को पकाकर तेल बनाकर प्रतिदिन बालों मे लगाने से बाल बढ़ जाते हैं।
  • हिस्टीरिया : 100 ग्राम शंखपुष्पी, 50 ग्राम वच और 50 ग्राम ब्राह्मी को मिलाकर पीस लें। इसे 1 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ रोज 3 बार कुछ हफ्ते तक लेने से हिस्टीरिया रोग में लाभ होता है।
  • कब्ज के लिए : 10 से 20 मिलीलीटर शंखपुष्पी के रस को लेने से शौच साफ आती हैं। प्रतिदिन सुबह और शाम को 3 से 6 ग्राम शंखपुष्पी की जड़ का सेवन करने से कब्ज (पेट की गैस) दूर हो जाती है।
  • कमज़ोरी : 10 से 20 मिलीलीटर शंखपुष्पी का रस सुबह-शाम सेवन करने से कमज़ोरी मिट जाती है।
  • पागलपन : ताजा शंखपुष्पी के 20 मिलीलीटर पंचांग का रस 4 चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से पागलपन का रोग बहुत कम हो जाता है।
  • बुखार में बड़बड़ाना :शंखपुष्पी के पंचांग का चूर्ण और मिश्री को मिलाकर पीस लें। इसे 1-1 चम्मच की मात्रा में पानी से प्रतिदिन 2-3 बार सेवन करने से तेज बुखार के कारण बिगड़ा मानसिक संतुलन ठीक हो जाता है।
  • बिस्तर में पेशाब करने की आदत : शहद में शंखपुष्पी के पंचांग का आधा चम्मच चूर्ण मिलाकर आधे कप दूध से सुबह-शाम प्रतिदिन 6 से 8 सप्ताह तक बच्चों को पिलाने से बच्चों की बिस्तर पर पेशाब करने की आदत छूट जाती है।
  • मिर्गी में :ताजा शंखपुष्पी के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ते) का रस 4 चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन करने से कुछ महीनों में मिर्गी का रोग दूर हो जाता है।
  • शुक्रमेह में : आधा चम्मच काली मिर्च और शंखपुष्पी का पंचांग का 1 चम्मच चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम दूध के साथ कुछ सप्ताह सेवन करने से शुक्रमेह का रोग खत्म हो जाता है।
  • स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए : 200 ग्राम शंखपुष्पी के पंचांग के चूर्ण में इतनी ही मात्रा में मिश्री और 30 ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीस लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम प्रतिदिन 1 कप दूध के साथ सेवन करते रहने से स्मरण शक्ति (दिमागी ताकत) बढ़ जाती है।
शंखपुष्पी का शर्बत घर पर कैसे बनाए
  • सर्वप्रथम 250 ग्राम सुखी साबुत या पीसी हुई शंखपुष्पी ले और जिन्हें कब्ज हो वह 150 ग्राम शंखपुष्पी +100 ग्राम भृंगराज ले सकते है।
  • रात्रि में 1.5 लीटर (डेढ़ लीटर) पानी मे डाल दे और सुबह धीमी आग पर पकाए। यदि मिट्टी के बर्तन सुलभ हो तो उसमे पकाना अधिक गुणकारी है।
  • इसे इतना पकाए कि पानी 1/3 भाग रह जाए। बचे हुए पानी को साफ़ कपड़े से छान ले । ठंडा होने पर कपड़े मे दबा कर बाकी पानी निकाल ले और बचे हुए को किसी पेड़ के नीचे डाल दे। खाद का काम करेगा।
  • इसके बाद प्राप्त शंखपुष्पी के काढ़े मे 1 ग्राम सोडियम बेंजोएट (SODIUM BENZOATE ) मिला दे, यह केमिस्ट के पास मिलेगा।
  • अब इस काढ़े को रात भर रख दे ताकि मिट्टी जैसा अंश नीचे बैठ जाएगा और अगले दिन इसमे 1 किलो खांड या मिश्री व 10 ग्राम छोटी इलायची मिलाकर धीमी आग पर पकाए। जब मीठा घुल जाए तब इसे उतार ले। ठंडा होने पर काँच या प्लास्टिक कि बोतल मे भर ले। 2 चम्मच से 4 चम्मच दूध मे मिलाकर पियें या पिलाए।


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एनडीए - अच्छी नौकरी के साथ-साथ देश सेवा का जज्बा NDA - Good Job with the Passion to Serve the Country



 

थल सेना हो, नौसेना हो या वायु सेना, सेना में ऑफिसर बनना छात्रों का ख्वाब होता है। अपने इस ख्वाब को वे हकीकत में बदल सकते हैं नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए) के माध्यम से। यूपीएससी द्वारा इसके लिए साल में दो बार प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है। सेना में नौकरी का अलग ही क्रेज है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि देश सेवा का बेहतरीन अवसर मिलता है। अब सैलरी भी काफी दमदार हो गयी है। यही कारण है कि अधिकतर युवा इस नौकरी को पाने के लिये प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते है। एनडीए में नौकरी करने का एक अलग ही क्रेज होता है। इस नौकरी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि आपको कम उम्र मे ही कई अहम जिम्मेदारियां मिल जाती है। करीब छह दशक पूर्व अपनी स्थापना से लेकर आज तक नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) सेना के तीनों विंग्स - आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के ऑफिसर कैडेट को ट्रेनिंग देने में अग्रणी रहा है। भारतीय सशस्त्र सेना के अधिकांश ऑफिसर आज इसी संस्थान के पूर्व छा़त्र है।


 

तकनीकी विकास के अनुरूप कैडेट्स को बेहतर ट्रेनिंग देने के मद्देनजर अपनी स्थापना से लेकर अब तक इस संस्थान के स्वरूप में काफी बदलाव आया है। संस्थान की 2500 छात्रों को प्रशिक्षित करने की क्षमता भी अब बढ़कर 3000 हो चुकी है। खास बात यह है कि बेहतर ट्रेनिंग और समझ के लिये संस्थान द्वारा विश्व के अन्य प्रमुख मिलिट्री संस्थानों, जैसे यूनाइटेड स्टेट्स मिलिट्री एकेडमी, आस्ट्रेलियन डिफेंस एकेडमी आदि के साथ मिलकर संयुक्त अभियान भी चलाया जाता है। इसके अलावा संस्थान द्वारा विभिन्न देशों, जैसे अफगानिस्तान, ईरान, इराक, नेपाल, श्रीलंका, उज्बेकिस्तान आदि के कैडेट्स को भी ट्रेनिंग दी जाती है। ऐसे महत्वपूर्ण संस्थान का हिस्सा आप भी बन सकते है, एनडीए की प्रवेश परीक्षा में सफलता प्राप्त करके।


डिफरेंट एग्जाम, डिफरेंट प्रिपरेशन

एनडीए की परीक्षा अन्य परीक्षाओं से काफी अलग होती है। अन्य परीक्षाओं में जहां मानसिक मजबूती देखी जाती है, तो वहीं इस परीक्षा में शारीरिक और मानसिक दोनों की मजबूती आवश्यक है। यही कारण है कि इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले स्टूडेंट्स कम उम्र में ही सैन्य अधिकारी बन जाते है।


बारहवीं उत्तीर्ण जरूरी

एनडीए एंट्रेंस टेस्ट के लिए अभ्यर्थी की आयु जारी अधिसूचना के अनुसार साढ़े 16 से 19 वर्ष के बीच होनी चाहिए। जो अभ्यर्थी आर्मी में प्रवेश पाना चाहते है, उनके लिए किसी भी संकाय से 12वीं या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना जरूरी है। एयरफोर्स और नेवी में जाने के इच्छुक छात्रों के लिए मैथमेटिक्स और फिजिक्स से 12वीं या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना जरूरी है। 12वीं की परीक्षा दे चुके छात्र भी एंट्रेंस टेस्ट के लिए अप्लाई कर सकते है। लेकिन उन्हें एसएसबी इंटरव्यू के समय 12वीं उत्तीर्ण करने का प्रमाण देना होगा। आवेदन करते समय छात्रों को स्पष्ट रूप से यह बताना होगा कि वे किस विंग में जाना चाहते है। हालांकि अंतिम चयन लिखित परीक्षा और एसएसबी में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर ही होता है।


एग्जाम पैटर्न

एनडीए में प्रवेश के इच्छुक छात्रों को तीन चरणों में एंट्रेंस टेस्ट से गुजरना होता है। सबसे पहले उन्हें यूपीएससी द्वारा आयोजित लिखित परीक्षा में बैठना होता है। इसमें दो पेपर होते है- मैथ्स (300 अंकों का) और जनरल एबिलिटी (600 अंकों का)। दोनों ही पेपर ढाई-ढाई घंटे के होते है। सभी प्रश्न ऑब्जेक्टिव टाइप के होंगे और गलत उत्तरों के लिये अंक काटे जाएंगे।


एसएसबी से ओएलक्यू की जाँच

रिटेन टेस्ट क्लियर करने वाले अभ्यर्थियों को सेना के सर्विस सेलेक्शन बोर्ड यानी एसएसबी द्वारा इंटरव्यू और व्यक्तित्व परीक्षण के लिये कॉल किया जाता है। इसका उददेश्य अभ्यर्थी की पर्सनैलिटी, बुद्धिमता और सेना में एक ऑफिसर के रूप में उसकी ऑफिसर लाइक क्वालिटी (ओएलक्यू) को जांचना होता है। एसएसबी के सेंटर कई शहरों में है और अभ्यर्थी को उसके निकटवर्ती सेंटर पर ही बुलाया जाता है। आमतौर पर एसएसबी इंटरव्यू पांच दिनों तक होता है, लेकिन इसमें पहले दिन स्क्रीनिंग टेस्ट ही होता है, जिसमें साइकोलॉजिस्ट टेस्ट देने होते है। इस दौरान उनका ग्रुप डिस्कशन यानी जीडी, साइकोलॉजिस्ट टेस्ट, इंटरव्यू बोर्ड तथा ग्रुप टास्क ऑफिसर द्वारा उनकी ओएलक्यू को जांचा-परखा जाता है। एनडीए परीक्षा के आधार पर अंतिम रूप् से चुने गये अभ्यर्थियों को नेशनल डिफेंस एकेडमी, खडगवासला, पुणे में तीन वर्ष की ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के दौरान वे अपनी स्ट्रीम के अनुसार ग्रेजुशन की पढाई भी पूरा करते है। इसके लिये उनके पास फिजिक्स, कैमिस्ट्री, मैथ एवं कम्प्यूटर साइंस विष्यों के साथ बीएससी का या पोलिटिकल साइंस, इकोनॉमिक्स, हिस्ट्री आदि विषयों के साथ बैचलर ऑफ़ आट्र्स यानी बीए का विकल्प होता है। हालांकि, ट्रेनिंग के पहले वर्ष में तीनों सेनाओं के लिये चयनित अभ्यर्थियों को एक ही कोर्स की पढाई करनी होती है। दूसरे साल में उनके द्वारा चुने गये बिंग यानी आर्मी, नेवी या एयरफोर्स के आधार पर उनके कोर्स का लिेबस बदल जाता है। एनडीए में तीन वर्ष की ट्रेनिंग के उपरान्त कैडेट्स को उनके द्वारा चुनी गई बिंग की विशेष जानकारी के लिये स्पेशल ट्रेनिंग पर भेजा जाता है। इसके तहत् आर्मी के लिये चयनित कैंडिडेट्स को इंडियन मिलिट्री एकेडमी (देहरादून), एयरफोर्स के कैंडिडैट्स को एयरफोर्स एकेडमी (हाकिमपेट) तथा नेवी के लिये चुने गए कैंडिडेट्स को नेवल एकडमी (लोनावाला) भेजा जाता है। ट्रेनिंग को सफलतापूर्वक पूरा करने वाले कैडेट्स को उनके द्वारा चुने गए सेना के किसी एक बिंग में कमीशंड ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया जाता है। अगर आप इस पद के लिये गंभीर है, तो इसकी तैयारी शुरू कर दें।


तैयारी कैसे करें


मैथमेटिक्स मैथमेटिक्स के प्रश्नों को हल करने के लिए कॉन्सेप्ट क्लियर रखें तथा तीन राउंड में प्रश्नों को हल करने की कोशिश करें। इससे आप अधिक से अधिक प्रश्नों का सही जवाब दे सकते है। शॉर्टकट मेथड फायदेमंद होते है। मैथ्स के लगभग सभी टॉपिक से प्रश्न पूछे जाते है। इसलिए पूरे सिलेबस पर अपनी कमांड बनाए रखें।

अंग्रेजी के पेपर में अधिक अंक आएं, इसके लिए रीडिंग पर खूब ध्यान देना चाहिए। इससे कॉम्प्रिहेंशन सवालों को हल करने में मदद मिलती है। इसके अलावा वोकाबुलरी को मजबूत बनाने, एंटोनीम्स और सिनोनिम्स सेंटेंस में ग्रामर संबंधी गलतियां पहचानने और टेंस व प्रीपोजीशन की प्रैक्टिस करने पर काफी ध्यान देना चाहिए। बेहतर रीडिंग के लिए इन बातों का ध्यान रखें। किसी समाचार-पत्र के संपादकीय को नियमित रूप से पढ़े। साथ ही सामान्य पत्र-पत्रिकाएं भी पढ़ते रहें। फिक्शन, साइंस स्टोरी आदि पढ़ने का भी अभ्यास किसी भी रीडिंग के दौरान स्टोरी के थीम को समझने की कोशिश करें। साथ ही वर्ड्स और सेंटेंस को समझने की कोशिश करें। किसी भी रीडिंग के दौरान स्टोरी के थीम को समझने की कोशिश करें। साथ ही वर्ड्स और सेंटेंस को समझने की कोशिश करें। वोकाबुलरी की तैयारी के दौरान प्रत्येक सिटिंग में 49-50 शब्द याद करें और फिर हर दूसरे-तीसरे दिन उन्हें दोहराते भी रहें। जो वड्र्स याद न हो, उन्हें फिर से याद करने की कोशिश करें। ऐसे शब्दों को लिखकर दीवार पर टांग दें, ताकि नजर बार-बार उन पर जाए। इडियम्स ऐंड फे्रजैज पर खास घ्यान दें।

जनरल नॉलेज में साइंस बैकग्राउंड वाले छात्रों के मुकाबले आर्ट बैकग्राउंड के छात्रों को जनरल नॉलेज में अधिक मेहनत करने की जरूरत होती है। विज्ञान विषयों में कांसेप्ट क्लियर होना चाहिए, जबकि आर्ट्स विषयों में सेलेक्टिव स्टडी फायदेमंद होती है। मॉडल प्रश्न-पत्र से यह आकलन किया जा सकता है कि किस सेक्शन से अधिक प्रश्न पूछे जाते है। करंट अफेयर्स की तैयारी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और समाचार-पत्रों से नियमित रूप से करनी चाहिए। जनरल नॉलेज की तैयारी के लिए 11वीं - 12वीं स्तर की किताबों का अध्ययन ठीक ढंग से करें।

एग्जाम टिप्स


टेस्ट के दौरान किसी भी प्रॉब्लम पर ज्यादा देर तक रुके रहना बहुमूल्य समय को बर्बाद करना है। ऐसे में सबसे अच्छा तरीका यह है कि प्रश्न-पत्र को तीन राउंड से सॉल्व करें। पहले राउंड (10 से 12 मिनट) में सबसे आसान प्रश्नों को हल करें। साथ ही मार्क करते जाए कि किन प्रश्नों को दूसरे राउंड में हल करना है। इस राउंड में कुछ मुश्किल प्रश्न हल हो जाएंगे। इसके बाद बचे हुए समय में यानी तीसरे राउंड में मुश्किल प्रश्नों को हल करने का प्रयास करें।

कोई जरूरी नहीं कि पूरे नियम से ही किसी प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ा जाये। कई बार विकल्पों पर नजर डालने से भी आपको थोड़े से मेंटल कैलकुलेशन से उत्तर का पता चल जाता है। इससे मुश्किल सवालों को हल करने के लिए समय की बचत होती है। शॉर्टकट मेथड फायदेमंद होते है।

प्रैक्टिस का फायदा तो होता ही है। इसलिए मॉडल प्रश्न-पत्रों को हल करने का अधिक से अधिक प्रयास करें।

चूंकि सवाल 11 - 12वीं स्तर के होते हैं। इसलिए संबंधित सिलेबस की पढ़ाई शुरू से ही ठीक ढंग से करें।

वर्बल एबिलिटी को इम्प्रूव करें। बेहतर अंक लाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।



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प्रेरक प्रसंग लाईफ चेंजिंग स्टोरी Motivational Context - Life Changing Story



प्रेरक प्रसंग - लाईफ चेंजिंग स्टोरी Motivational Context - Life Changing Story 

नन्हीं बच्ची की मुस्कान ने बदला जीने का नजरिया

एक आदमी हर दिन ऑफिस जाने के लिए कालोनी के बाहर बस स्टॉप पर खड़ा रहता है। एक दिन उसने देखा कि एक महिला अपनी बच्ची के साथ वहाँ खड़ी थी। उसने उससे बस की जानकारी मांगी। आदमी ने बसों के क्रम के अनुसार उनके नंबर बता दिए। इस दौरान उस बच्ची ने उसे प्यारी-सी स्माइल दी, जो उसके मन को छू गई, उसने जेब से चॉकलेट निकालकर उसे दे दी, जो वह अकसर घर के लिए ले लिया करता था। उस बच्ची ने उसे थैंक्यू कहा। अब लगभग हर दिन बस स्टॉप पर उस व्यक्ति की उस महिला और उसकी बच्ची से नजरें मिल ही जाती थी। वह बच्ची स्माइल करती और गुड बाय बोलकर अपनी माँ के साथ बस में चली जाती थी। कुछ दिनों में पता चला कि वह बच्ची उस कालोनी में ही रहती थी। वह अकसर अन्य के साथ खेलती दिख जाती थी।
फिर एक दिन बस स्टॉप पर वह दोनों नहीं दिखे। उस आदमी ने सोचा कि हो सकता है बच्ची की छुट्टी वगैरह हो। कुछ दिन बीत गए, लेकिन वह बच्ची और उसकी माँ बस स्टॉप पर नहीं आई। वह मैदान में अन्य बच्चों के साथ भी नहीं दिखी। आदमी की जिज्ञासा बढ़ गई, उसने उनके बारे में जानकारी निकाली। पता चला कि वह महिला दुनिया छोड़ कर चली गई। महिला का पति उसे धोखा देकर छोड़ गया था। उसके पास कोई नौकरी वगैरह नहीं थी, माँ-बेटी की गुजर-बसर नहीं हो पा रही थी। अकेलेपन और तनावभरी जिंदगी से उसने हार मान ली थी। उस आदमी ने उसकी बच्ची के बारे में पूछा, तो पता चला कि उसे अनाथालय में रखा गया है क्योंकि उसका कोई नहीं था और कोई उसकी जिम्मेदारी उठाने के लिए भी तैयार नहीं था।
अगले ही दिन वह आदमी अनाथालय पहुँच गया। वहाँ उसने उस बच्ची के बारे में पूछा, तो उसे इशारे से बताया गया। वह अन्य बच्चों के साथ बगीचे में खेल रही थी। उसकी नज़रें उस व्यक्ति पर पड़ी, उसने फिर वही स्माइल दी। फिर वह उसके पास आई और कहने लगी - मेरी चॉकलेट कहाँ है। आदमी मुस्कुरा दिया और उसके लिए खरीदी चॉकलेट उसे दे दी। उसने फिर मधुर आवाज में उसे थैंक्यू कहा और वह चली गई। आदमी उसे खेल ते और मस्ती करते देखता रहा। रास्ते भर वह अपनी परेशानियों के बारे में सोचता रहा। वह उनके बारे में सोचता रहा, जिन्होंने उसे तकलीफ पहुँचाई। फिर भी उसे अब सब आसान लग रहा था। उसने सोचा, ये बच्ची इस हालात में भी मुस्कुरा सकती है, तो मैं क्यों नहीं। इस तरह उसने अपनी जिंदगी से निगेटिव सोच निकाल दी और अब पहले से ज्यादा खुश रहता है।
किसी काम को छोटा न समझे
नेपोलियन कहीं जा रहा था। रास्ते में उसकी नजर एक दृश्य पर पड़ी। वह रूक गया। कई कुली मिलकर भारी-भारी खंभों को उठाने का प्रयास कर रहे थे। और मारे पसीने के तरबतर थे। पास में खड़ा एक आदमी उन सबको तरह-तरह के निर्देश दे रहा था।
नेपोलियन ने उस आदमी के करीब जाकर कहा, "भला आप क्यों नहीं इन बेचारों की कुछ मदद करते ?"
उसे गुस्सा आ गया और झिड़कते हुए वह बोला, "तुझे मालूम है, मैं कौन हूँ ?"
"नहीं भाई, मैं तो अजनबी हूँ, मैं क्या जानूं कि आप कौन हैं ?" नेपोलियन ने विनम्रता से कहा।
"मैं इस काम का ठेकेदार हूँ", रोब जमाते हुए उसने कहा। नेपोलियन बिना कुछ कहे मजदूरों की तरफ चला गया और उन मजदूरों के काम में हिस्सा बांटने लगा। जब वह जाने लगा तो ठेकेदार से पूछा, "और तू कौन है ?"
"ठेकेदार साहब, बंदे को लोग नेपोलियन कहते हैं" नेपोलियन का नाम सुनते ही ठेकेदार की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। उसने अपनी असभ्यता के लिए उससे माफी मांगी। नेपोलियन ने उसे समझाया,"किसी भी काम को अपने ओहदे से नहीं देखना चाहिए और न ही किसी काम को छोटा समझना चाहिए।"


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