आस्‍था की नगरी मे मौत का नर्तन



दिनांक 10/1/2007 को इलाहाबाद के दिल कहे जाने वाले सिविल लाइंस इलाके में बहुमंजिला इमारत ढह गई। इमारत के गिरते ही आस-पास के माहौल में हड़कंप मच गया। कुछ का कहना कि शायद कोई विमान आ कर गिरा है तो कोई सोच रहा था कि भूकंप आया है, तो कुछ व्यक्ति सोच रहे थे कि अर्ध कुम्भ के दौरान आतंकवादियों ने हमला कर दिया है। जितने मुँह उतनी बातें हो रही थी। पर बात कोई और थी, सिविल लाइन्‍स क्षेत्र की करोड़ों की जमीन का मामला था पांच मंजिले सिर्फ 1 माह में बनकर तैयार कर दी गई थी। प्रत्येक आठ दिनों में एक मंजिल का लेंटर डाला जा रहा था।

मामला पूरा का पूरा राजनीति व स्थानीय अधिकारियों की शह पर हो रहा था, इस जमीन पर निर्माण करने करने वाला बिल्‍डर जमील अहमद स्थानीय अधिकारियों के बीच जाना माना नाम है जिसके नाम से अधिकारी भी खौफ खाते है। वह पिछले एक दशक से इस प्रकार का अवैध कार्य कर रहा है, परंतु अधिकारियों के कान पर जूँ तक नहीं रेंग रही थी और जिसका परिणाम था कि इस बिल्डिंग का धराशाई होना। यह बिल्डर होने के साथ ही साथ सपा का नेता भी है, और अन्य दलों के नेताओं से भी मधुर सम्बन्ध भी है।

इस निर्माण के साथ साथ कई अन्य निर्माण भी वह करा रहा है, और वह करेली मोहल्ले मे लगभग 400 बीधे की कालोनी का भी निर्माण करा रहा था। पर आश्चर्य करने की बात यह है कि इलाहाबाद विकास प्राधिकरण (ADA) को इस कालोनी के निर्माण की जानकारी भी नहीं है।

इस हासदे की खबर पूरे महानगर मे महामारी की तरह फैल गई, स्‍थानीय लोग, संद्य के स्वयंसेवक, सेना तथा स्थानीय प्रशासन ने मौके पर फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने का प्रयास किया। हर जुबान पर इस हादसे की चर्चा हो रही थी और बत्‍दुआ निकल रही थी कि इन दोषियों को नर्क भी न नसीब हो। स्‍थानीय प्रशासन ने मामले को भरसक दबाने का प्रयास किया कारण उत्तर प्रदेश के चुनाव भी हो सकते है। प्रशासन ने मात्र तीन लोगों की मरने की घोषणा कि जबकि प्रत्यक्ष दर्शी मजदूरों का कहना था कि लगभग 150 लोग कार्य कर रहे थे लगभग 80 के दबे होने की संभावना है। जिले के सबसे बड़े अस्पताल स्वरूपरानी मेडिकल कालेज मे न तो दवा उपलब्ध थी न तो पट्टी।

मजदूरों का कहना था कि रात 8 बजे से ही बिल्डिंग से चर्र चर्र की आवाज आ रही थी पर किसी ने ध्यान नही दिया जिसका परिणाम आज हमारे सामने है। अब प्रश्न उठता है कि क्या दस दोषियों को सजा मिल पाएगी या फिर सरकार इन्‍हे मौत के तांडव का लाइसेंस देती रहेगी। सम्बन्धित लेख के चित्र के लिये चूहे का खटका चापें करे अदिति पर जाइये


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कृपया पक्ष मे टिप्‍पड़ी करे अन्‍यथा न करें



नववर्ष के दिन मैने अमित जी के ब्लॉग एक लेख देखा, जिस पर उन्होंने कुछ बातो का उल्लेख किया था। मैने भी उनके इस लेख पर अपनी एक टिप्पणी प्रस्तुत की थी किन्तु वह माडरेशन की शिकार हो गई। कुछ अटपटा सा लगा कि मैंने ऐसा क्या लिख दिया कि वह पठनीय नही था। मैने उस टिप्पणी की कोई प्रति अपने पास सुरक्षित नहीं रखी थी, पर मुझे जहां तक याद है मै अक्षरस: बताने का प्रयास करूँगा।
 
मैंने जो कुछ भी टिप्पणी में लिखा वह निम्न है ----- 
 ‘अमित जी आपके दोस्त को पूरा ध्यान पूर्वक पढ़ लगा कि दिव्याभ जी ने जिन शब्दो का प्रयोग किया वह कदापि उचित नही था और मै इन शब्दों के प्रयोग की कढ़ी शब्‍दो मे निंदा करता हूँ। पर ध्यान देने योग्य यह भी है कि जैसा आपने कहा कि मै चिठ्ठाकार को ईमेल भेज रहे थे वह उनके पास गया तो गलती तो अपकी थी अगर आपने इसकी माफी मॉंग ली होती कि भूल से चला गया है तो बात वही खत्म हो जाती। और एक बात जब बात द्विपक्षीय हो रही हो तो उसे बहुपक्षीय बनने से स्थिति और खराब होती है। आपने जिस प्रकार दिव्याभ जी के ईमेल को सार्वजनिक किया वह ठीक नहीं था। कोशिश करनी चाहिये कि इस प्रकार के झंझटो से बचा जाय। मै एक बार फिर से किसी चिठ्ठाकार या किसी के प्रति इन प्रकार के शब्दों की निंदा करता हूँ।‘
मेरी पूरी टिप्पणी मेरे विवेकानुसार जो मैने लिखा था वह यही है, और इसमे क्या माडरेशन वाली बात थी जिसे माडरेशन का कोप भाजन का होना पड़ा और इसे प्रकाशित नहीं किया गया मुझे नही समझ मे आया, अगर अपने मन की ही टिप्पणी की इच्छा हो तो इस पर लिख दिया जाए कि केवल पक्ष में बोलने वाले ही टिप्पणी करे विपक्ष में लिखने वालों की टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं किया जायेगा। तो मैं टिप्पणी करता न ही इस पोस्ट को लिखता। अब तो मै सोचने पर मजबूर हूँ कि माडरेशन वाली ब्लॉगों पर टिप्पणी करूँ भी कि नहीं। क्योंकि आधे घंटे-पन्द्रह मिनट बैठ कर टाइप करों और किसी को पसंद न आया तो टिप्पणी को कोप का भाजन बनना पड़े, आप सभी से माडरेशन वालों से निवेदन है कि आप अपने ब्लॉग पर नोटिस चस्पा कर दे कि आपको किस प्रकार की टिप्पणी की जाए ताकि भूलवश कोई आपके मन के विपरीत टिप्पणी न करे और टिप्पणीकार की करनी का परिणाम उसकी टिप्पणी को न भुगतना पडे।


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