सबसे चर्चित अनमोल वचन एवं अमृत वचन - Amrit Vachan



amrit vachan

  1. अतीत पर ध्यान केंद्रित मत करो, भविष्य का सपना भी मत देखो। वर्तमान क्षण ध्यान केंद्रित करो।
  2. आध्यात्मिकता का एकमात्र उद्देश्य आत्म अनुशासन है। हमें दूसरों की आलोचना करने के बजाय खुद का मूल्यांकन और आलोचना करनी चाहिए।
  3. आपका सबसे व्यर्थ समय वो है, जिसे आपने बिना हंसे बिता दिया।
  4. किसी से शत्रुता करना अपने विकास को रोकना है। - विनोबा भावे
  5. तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो। जैसा तुम अपने प्रति चाहते हो। - जॉन लॉक
  6. दूसरों से सहायता की आशा करना या भीख माँगना किसी दुर्बलता का चिन्ह है। इसलिये बंधुओं निर्भयता के साथ यह घोषणा करो की हिंदुस्तान हिंदुओं का ही है। अपने मन की दुर्बलता को बिल्कुल दूर भगा दो।
  7. न ही किसी मंदिर की जरूरत है और न ही किसी जटिल दर्शनशास्त्र की। मेरा मस्तिष्क और मेरा हृदय ही मेरा मंदिर है और करुणा ही मेरा दर्शनशास्त्र है।
  8. परम पूज्य डॉ हेडगेवार जी ने कहा ( अमृत वचन ) – "अपने हिंदू समाज को बलशाली और संगठित करने के लिए ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जन्म लिया है।"
  9. परम पूज्य डॉ हेडगेवार जी ने कहा ( अमृत वचन ) – "हिंदू जाति का सुख ही मेरा और मेरे कुटुंब का सुख है। हिंदू जाति पर आने वाली विपत्ति हम सभी के लिए महासंकट है और हिंदू जाति का अपमान हम सभी का अपमान है। ऐसी आत्मीयता की वृत्ति हिंदू समाज के रोम – रोम में व्याप्त होनी चाहिए यही राष्ट्र धर्म का मूल मंत्र है।"
  10. परम पूज्य श्री गुरूजी ने कहा – " छोटी-छोटी बातों को नित्य ध्यान रखें बूंद – बूंद मिलकर ही बड़ा जलाशय बनता है। एक – एक त्रुटि मिलकर ही बड़ी बड़ी गलतियां होती है। इसलिए शाखाओं में जो शिक्षा मिलती है उसके किसी भी अंश को नगण्य अथवा कम महत्व का नहीं मानना चाहिए।"
  11. बिना उत्साह के कभी किसी महान लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। - एमर्सन
  12. मनुष्य का सर्वांगीण विकास करना ही शिक्षा का मूल उद्देश्य है। - प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया
  13. मनुष्य में जो संपूर्णता सुप्त रूप से विद्यमान है। उसे प्रत्यक्ष करना ही शिक्षा का कार्य है। - स्वामी विवेकानंद
  14. महर्षि अरविन्द ने कहा ( अमृत वचन ) – “जब दरिद्र तुम्हारे साथ हो , तो उनकी सहायता करो। लेकिन अध्ययन करो। और यह प्रयास भी करो कि तुम्हारी सहायता पाने के लिए दरिद्र लोग न बचे रहे।"
  15. महान संघ याने हिन्दुओं की संगठित शक्ति। हिन्दुओं की संगठित शक्ति इसलिए कि इस देश का भाग्य निर्माता है। वे इसके स्वाभाविक स्वामी है। उनका ही यह देश है और उन पर ही देश का उत्थान और पतन निर्भर है।
  16. मैं इस बात को लेकर चिंतित नहीं रहता कि ईश्वर मेरे पक्ष में है या नहीं। मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि मैं ईश्वर के पक्ष में रहूं, क्योंकि ईश्वर हमेशा सही होते हैं।
  17. यह देश, धर्म, दर्शन और प्रेम की जन्मभूमि है। ये सब चीजें अभी भी भारत में विद्यमान है। मुझे इस दुनिया की जो जानकारी है, उसके बल पर दृढ़ता पूर्वक कह सकता हूँ कि इन बातों में भारत अन्य देशों की अपेक्षा अब भी श्रेष्ठ है।
  18. युवकों की शिक्षा पर ही राज्यों का भाग्य आधारित है। - अरस्तू
  19. रिश्वत और कर्तव्य दोनों एक साथ नहीं निभ सकते। - प्रेमचंद
  20. वास्तव में शिक्षा मूलत: ज्ञान के प्रसार का एक माध्यम है। चिंतन तथा परिप्रेक्ष्य के प्रसार का एक तरीका है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जीवन के सही मूल्यों को आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना है। - सदाशिव माधव गोलवलकर (पूजनीय श्री गुरु जी)
  21. शांति हमारे अंदर से आती है। आप इसे कहीं और न तलाशें।
  22. श्री गुरूजी ने कहा ( अमृत वचन ) – "संपूर्ण राष्ट्र के प्रति आत्मीयता का भाव केवल शब्दों में रहने से क्या काम नहीं चलेगा। आत्मीयता को प्रत्यक्ष अनुभूति होना आवश्यक है समाज के सुख-दुख यदि हमें छुपाते हैं तो यही मानना चाहिए कि यह अनुभूति का कोई अंश हमें भी प्राप्त हुआ है। "
  23. सज्जनों से की गई प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती। - कालिदास
  24. स्वामी विवेकानंद ने कहा – "आगामी वर्षों के लिए हमारा एक ही देवता होगा और वह है अपनी ‘मातृभूमि’ | भारत दूसरे देवताओं को अपने मन में लुप्त हो जाने दो हमारा मातृ रूप केवल यही एक देवता है जो जाग रहा है। इसके हर जगह हाथ है , हर जगह पैर है , हर जगह काम है , हर विराट की पूजा ही हमारी मुख्य पूजा है। सबसे पहले जिस देवता की पूजा करेंगे वह है हमारा देशवासी।"
  25. स्वामी विवेकानंद ने कहा ( अमृत वचन ) – "जिस उद्देश्य एवं लक्ष्य कार्य में परिणत हो जाओ उसी के लिए प्रयत्न करो। मेरे साहसी महान बच्चों काम में जी जान से लग जाओ अथवा अन्य तुच्छ विषयों के लिए पीछे मत देखो स्वार्थ को बिल्कुल त्याग दो और कार्य करो।"
  26. स्वामी विवेकानद ने कहा ( अमृत वचन ) – "लुढ़कते पत्थर में काई नहीं लगती " वास्तव में वे धन्य है जो शुरू से ही जीवन का लक्ष्य निर्धारित का लेते है। जीवन की संध्या होते – होते उन्हें बड़ा संतोष मिलता है कि उन्होंने निरूद्देश्य जीवन नहीं जिया तथा लक्ष्य खोजने में अपना समय नहीं गवाया। जीवन उस तीर की तरह होना चाहिए जो लक्ष्य पर सीधा लगता है और निशाना व्यर्थ नहीं जाता।"
  27. हमारे निर्माता ईश्वर ने हमारे मस्तिष्क और व्यक्तित्व में विशाल क्षमता और योग्यता संग्रहित की है। प्रार्थना के जरिए हम इन्हीं शक्तियों को पहचान कर उसका विकास करते हैं।

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