पिछली बार 15 अगस्त को आयोजित अनुगूँज मैने एक लेख लिखा था तथा अनुगूँज से संबंधित पोस्ट पर कई टिप्पणी भी किया था किन्तु आज के दिन न किसी पोस्ट पर मेरी टिप्पणी ही है और न ही मेरी पोस्ट को अनुगूँज में शामिल ही किया गया। यह मेरा अनुगूँज में पहला प्रयास था और हर चिट्ठाकार की इच्छा होती है कि वह भी इसका अंग बने इसीलिये मैने काफी उत्सुक होकर इसमें भाग भी लिया था किन्तु पिछले कटु अनुभवों से लगता है कि अबकी बार अनुगूँज में भाग लेना ठीक नहीं है।
निश्चित रूप से मेरी पोस्ट को या तो अनुगूँज के लायक नहीं समझा गया या तो कोई कारण रहा हो इसके विषय में मै नही जानता हूँ। किन्तु मेरा धारणा है कि जहाँ सम्मान न हो वहाँ रहना ठीक नहीं है। कनिष्ट जरूर हूँ तिरष्कृत नही हूँ। आज कल हिन्दी ब्लागिंग में खाई बढ़ती ही जा रही है। आज भी गुटबाजी का दौर बरकरार है। और अपने पराए का भेदभाव बरकरार है।
सच कहूँ तो आज गुटबाजी अपने चरम पर है और इसी गुटबाजी का ही परिणाम है कि लोग अपनी वैचारिक दूरी को अपनी व्यावहारिक जिन्दगी मे उतार लेते है। आज हिन्दी चिट्ठाकारिता में कुछ मठाधीशों मठाधीशी और कुछ सक्रिय चटुकाओं की चाटुकारिता का परिणाम है कि आज हिन्दी ब्लॉग में यह वैमनस्य आ गया है। मठाधीशी मै इस लिये कह रहा हूँ कि कुछ लोग आज भी अपने आपके हिन्दी ब्लॉगिंग के स्वयंभू मनवाने में लगे हुऐ है और कुछ लोग तो उनकी चाटुकारिता करके अपने अस्तित्व को बचाये रखने की जद्दोजहद में लगे है। यही कारण है कि कुछ ब्लागर सिर्फ कुछ ब्लागों तक ही कूपमंडूप दिखते है। उनकी सीमाएं सिर्फ आपस मे ही लै टिप्पणी दै टिप्पणी तक ही होती है।
अनुगूँज के बहाने आज काफी कुछ मुँह से निकल गया है,किन्तु जो कुछ भी निकला है गलत नही है, आज मेरे किसी भी ब्लाग का लिंक शायद ही किसी के बलाग पर हो। किन्तु मेरे बर्तमान दो सक्रिय ब्लाग पर इस समय दो दर्जन से ज्यादा लिंक मौजूद है। मुझे आश्चर्य तो तब हुआ कि जब मेरी टेक्नोराटी रेटिंग 54 से घट कर 44 पर आज जाती है। अर्थात आज भी ऐसे तत्व मौजूद है जो लिंक हटाने के काम में लगे है। मेरे उपर इन बातों का कोई असर नही होने वाला है मेरे ब्लाग पर जो भी अपना लिंक डालने को कहता है मै सहर्ष डालने को तैयार हूँ, मुझे कोई आपत्ति नही है। किन्तु वह ब्लाग सभ्य हो।
मै लिखता हूँ तो सिर्फ आपने पाठको के लिये न किसी व्यक्ति विशेष की टिप्पणी के लिए, न ही मै किसी की टिप्पणी का भूखा हूँ न कि किसी वाह वाह या अति सुन्दर शब्द सुनने के लिये। मै सप्ताहिक लगभग 55 टिप्पणी कर पाता हूँ जो पोस्ट अच्छी लगती है उसी पर करता हॅूं, नही तो जाकर वापस भी आ जाता हूँ। यही कारण है कि किसी किसी की 6-7 माह पुरानी पोस्ट पर भी टिप्प्णी हो जाती है।
जहाँ तक अनुगूँज की घोषणा हो गई है और मै अनुगूँज की बहिष्कार करता हूँ, क्योकि मै किसी कि मठाधीशी और चाटुकारिता नही करूँगा। भाड़ में जाये अनुगूँज और भाड़ मे जाये मठाधीशी, आज 4 माह बाद अपने लेख को अनुगूँज पर न देखकर निश्चित रूप से दुख तो हुआ ही है। अब मै दोबारा अवसर नही दूंगा।
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