मठाधीशी के आगे झूठ भी सच पर भारी पड़ता है



चिट्ठाकारी के मठाधीशों का असली चेहरा लेख से काफी कुछ सीख मिली, कुछ भाईयों को स्‍नेह मिला तो कुछ के रोष का शिकार हुआ। पंकज भाई की बात मुझे बहुत अच्‍छी निश्चित रूप से मै उसे अमल में करने की कोशिश करूँगा। पंकज भाई सहित कई नाम ऐसे है जिनसे मैने इस चिट्ठाकारी में ब‍हुत कुछ सीखा है, पर भाई आपने मेरे लिये कुछ प्रश्‍न छोड़ रखे थे जिन्‍हे अनु‍त्तरित छोड़ना कठिन था- भाई जी अगर आप देबाशीष जी की टिप्‍पणी और मेरी पोस्‍ट को ध्‍यान पूर्वक पढ़ा होता तो आप यह न पूछते कि उन्‍होने क्‍या है? मै कतई बैन की बात को न उठाता, किन्‍तु जैसी टिप्पणी देबाशीष जी पढ़ी उससे तो मुझे लगा कि उनकी यही मंशा लगी कि आ बैल मुझे मार। क्‍योकि मेरा उनसे सिर्फ यही पूछना था कि आखिर किस बात पर मुझे बैन किया है? अगर मैने यह पूछकर गलत किया तो मै गुनाहगार हूँ। अगर कोई मेरे बैन का सही कारण न बताकर, अपनी ही बात बल दे कि जो मैने किया सही किया तो मै यह भी मानने को अब तैयार हूँ कि चिट्ठाकारी में मठाधीशी नही है। अगर निर्दोष होते हुऐ, अपने को दोषी ठहराये जाने का विरोध करना गलत है तो मै यह भी मानने को तैयार हूँ कि मै गलत हूँ। देबाशीष जी के पक्ष में लामबन्‍द टीम, यह जानना जरूरी न समझे कि बात क्‍या थी कि सच्‍चाई क्‍या है तो मै यह भी स्‍वीकार करने को तैयार हूँ कि मठाधीशी नही है। यह सब मेरे स्‍वीकार कर लेने से शायद गलत कदम सही नही मान जायेगा। मुझे टिप्‍पणी के आलावा कुछ नि‍जी ईमेल भी मिली थी किन्‍तु उसका जिक्र करना ठीक नही है क्‍योकि मैने उन्‍हे अपनी बात ईमेल से ही बता दी थी।
समदर्शी भाई आप ही बातये कि शीर्ष पुरूष अगर खुद ही भिडने को तैयार हो तो मेरी क्‍या भूमिका होनी चाहिये? आपकी बातों और इरादों से मै समझ सकता हूँ कि एक बड़ा छोटे से क्‍या अपेक्षा रखता है। और आपने अपनी भावनाऐं प्रकट की अच्‍छा लगा। मेरा कतई उद्देश्‍य नही था कि कोई विवाद हो, ममला शान्‍त ही रहता अगर अगर देबाशीष जी की बात में सच्‍चाई थी कि मैने साम्‍प्रदायिक पोस्‍ट की थी तो, मेरे स्‍पष्‍टीकरण माँगे जाने पर मौन क्‍यो? अगर मेरा स्‍पष्टिकरण मॉंगना गलत है तो स्‍पष्‍ट करें कि सही क्‍या है? खुद सोचिये भरे समाज में कोई चार जूते आपको मार कर चला जाये और आप आपको पता न हो कि आपका आपराध क्‍या है?
अमित भाई थोक मेल की बात मैने आपको बताई थी और जहॉं जहॉं वह थोक मेल गई थी उसके लिये मैने वहॉं पर पुन: ऐसी घटना न होने की बात कह आया था। सच बात जानना चाहते है तो मैने थोक मेल 25/1/2008 की गई थी तथा मुझे 24 जनवरी को ही बैन कर दिया गया था। अगर मै बैन न होता तो भूलवश वह ईमेल जरूर चिट्ठकार ग्रुप मेल में जाती किन्‍तु बैन के चलते वह ईमेल मेरे पास लौट आई, जिसका प्रमाण मेरे पास है। मै किसी की भैस को अपनी नही बनाने जा रहा हूँ, और तो और चारागाह में जाकर उसे छेडने का प्रयास भी नही किया। फिर यह मेरे ऊपर झूठा आरोप लगाना कि चार्टर का उलंग्‍घन किया है तो यह गलत है। मै मौन था और मौन रहना ही चहता था किन्‍तु मौन की अपनी सी‍माऐं होती है।

आलोक भाई आपने चिट्ठकारी और मठीधीशी की परिभाषा से रूबरू करवाया अच्‍छा लगा। जहाँ तक मेरा मानना और समझना है तो मैने यही जाना है कि कई व्‍यक्ति एक विषय की परिभाषा कई प्रकार से दे सकते है, जैसे एडम स्थिम अर्थशास्‍त्र को धन की विज्ञान कहते थे तो मार्शल भौतिक काल्‍यण सम्‍बन्धी और धीरे धीरे अर्थशास्‍त्र की परिभाषा व्‍यापक होती गई अर्थशास्‍त्र नही बदला, इसी प्रकार चिट्ठकारी के आप बहुत पुराने ब्‍लागर है और आपकी परिभाषा क्‍लासिकल श्रेणी में आती है किन्‍तु वर्तमान में चिट्ठाकारी में जो बदलाव आये है उसमें यह कहना गलत होगा कि मठाधीशी नही है। मठाधीशी यही है कि एक प्रभावी व्‍यक्ति की ही तरफदारी करना, वह व्‍यक्ति गलत यह जानते हुऐ भी न जानने का ढोग करना मठाधीशी ही होती है। मठा‍धीशी की चिन्‍ता करना जायज है क्‍योकि नासूर में सड़न पैदा होने से पहले ही काट दिया जाना चाहिऐ। आज बात कहना इसलिये भी आवश्‍यक है कि भविष्‍य के लिये यह सबक रहे।
आज अनूप जी की टिप्‍पणी पहली बार ही, कष्‍ट नही दे रही है, इसके भी उदाहरण मेरे पास बहुत है किन्‍तु मै देना उचित नही समझता हूँ, उनके ये शब्‍द इ‍सलिये भी कटु है क्यों मै जानता हूँ कि वह मुझसे बहुत लगाव रखते है। मै मानता हूँ कि भाषा महत्‍व रखती है किन्‍तु मेरी भाषा की समीक्षा करने से पहले देबाशीष जी की समीक्षा भी की जाने चाहिए थी, क्‍योकि मेरा यह लेख उनके भाषाई लहजे का प्रतिउत्‍तर था। मुझे निराशा इसलिये भी हुई कि आना वस्‍तुस्थिति को देखना और मुस्‍करा कर चल देना। 
कृतीश भाई आपकी भावनाओं का कद्र करता हूँ, मेरा विरोध इस बात से नही है कि साईट उनकी नही, तथा इस बात का भी नही कि उन्‍हे नियम निर्धारण का अधिकार नही है। बस मेरा बार-बार यही कहना है कि नियम और व्‍यक्ति के आड़ में मनमानी नही होने देना चाहिऐ।
नीरज भाई आपको भी अफशोश हुआ जान कर दु:ख हुआ, आप भी शोक सभा में शामिल हुऐ धन्‍यवाद।
कानून के जानकार द्विवेदी जी की अनुपस्थि‍ती भी खल रही है क्‍योकि जो कुछ भी बात आगे बढ़ी उसमें वि‍धि, कानून का उल्‍लेख होने कारण बढ़ी, अगर द्विवेदी जी देवाशीष जी की बात को कानून सम्‍मत न कहते तो शायद बात इतनी आगे न जाती, क्‍योकि बिना पूर्ण प्रकरण जाने उनके द्वारा न्‍याय कर दिया जाना, मुझ जैसे विधि के छात्र के लिये कष्‍टदायक था।
मेरे पास इस लेख को लेकर कई मेल आये और मैने उनके जवाब भी दिये किन्‍तु किसी के उत्तर नही मिला, मै समझ सकता हूँ उनकी मनोदशा क्‍या होगी? 
 
मेरे लिखने का उद्देश्‍य पूरा हुआ, मै अपनी बात रखना चाहता था, रखा मै जानता था कि गलत कार्यवाही की गई और बहुत लोग स्‍वीकार भी करते है। आज क्‍या हुआ यह कल के लिये इतिहास होगा, और इतिहास कभी भुलाया नही जाता है। जो हुआ नही उसका दोषी ठहराया जाना गलत है और अपनी बात को सा‍‍बित करने के लिये इस तर्क का सहायता लेना की चिट्ठकार मेरी सम्‍पत्ति है मुझे मनमानी करने का पूरा हक है तो इससे ज्‍यादा गिरी हुई हरकत और क्‍या हो सकती है? चिट्ठाकार पर बैन का विरोध इसलिये नही है कि उस मंच से मुझे कोई विशेष लाभ मिलता है, बात यही है कि जो भी सदस्‍य उस पर मेरे स्‍टेसस को देगेगें उनके मन में यही आयेगा कि निश्चित रूप से गलत काम करने के कारण यह बैन हुआ है। हर व्‍यक्त्ति को अपने नाम और सम्‍मान की चिन्‍ता होती है, और मुझे भी है।
 
जो भी देवाशीष जी का सर्मथन कर रहे है, चाहे उनकी प्रथम चिट्ठकार पुरूष होने के कारण या फिर मठाधीशी में प्रभावी स्थिति के कारण मुझे किसी कोई शिकायत नही है, किन्‍तु इतना जरूर कहना चाहूँगा कि वे सच्चाई को लाख झूठ के पुलिन्‍दे के आड़ में छिपा ली जाये सच्‍चाई छिपती नही है। आज देवाशीष जी की चुप्‍पी उनके दोषी और मेरी बेगुनाही का सबूत है। क्‍योकि ऐसा कुछ हुआ ही, जिसका प्रमाण दे सकें। और जो सच्‍चाई है वह आपके समाने है। अगर झूठ के सर्मथन में इतने लोग खडे हो जाये तो यह कहना कि मठाधीशी नही है अपने आप में झूठ के रूप में सच होगा क्‍योकि मठाधीशी के आगे झूठ भी सच पर भारी पड़ता है और आज पहली बार देखने को मिल रहा है कि जिससे जानबूझ एक्‍सीडेन्‍ट किया, लोग उसी का सर्मथन कर रहे और घायल को दोषी ठहरा रहे है। उक्‍त लेख पर टिप्‍पणीकारों के मत से तो यही प्रतीत होता है। बस मेरा यही कहना है कि देबाशीष को जो मनमानी करनी हो करें मुझे उससे कोई मतलब नही है किन्‍तु मेरे नाम को लेकर वह कुछ गलत काम करेगें वह असहनीय है। नैतिकता इसी में है कि वह झूठ का सहारा न ले और मेरे बैन को समाप्‍त करें, और मै उस ग्रुप को सहर्ष त्‍याग दूँगा।


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एक और सच



आये दिन देश में मुस्लिमों की दशा को लेकर आरक्षण का खेल खेला जाता है और इस खेल में पिसता है बहुसंख्यक वर्ग का अधिकार। आज ये आंकड़े अपने आप में बहुत कुछ बायन कर रहे है कि देश की वर्तमान स्थिति क्या है? मुस्लिमों की संख्या में वृद्धि का दो कारण है कि उनकी धार्मिक रूढ़िवादिता तथा दूसरी है घुसपैठ अगर इन दोनों विषयों से निपट लिया जाये तो निश्चित रूप से मुस्लिमों को देशा की मुख्‍य धारा से जुड़ने से कोई रोक नही सकता है। इन आंकड़ों पर गौर करें-

1991 से 2001 के बीच बांग्लादेश से सटे असम
सीमावर्ती: जिलों का जनसंख्या वृ
द्धि प्रतिशत
सीमावर्ती जिले
मुस्लिम
गैर मुस्लिम
कुल
धुबरी
29.5
7.1
22.9
ग्वालपाड़ा
31.7
14.4
23.0
हैलाकांडी
27.2
13.3
20.9
करीमगंज
29.4
14.5
21.9
कछार
24.6
16.0
18.9
अन्य जिले
बरपेटा
25.8
10.0
18.9
नगांव
32.1
11.3
22.2
मारीगांव
27.2
16.3
21.2
दरांग
28.9
9.6
15.8
असम की जनसंख्या में मुसलमानों का बढ़ता प्रतिशत
सीमावर्ती जिले
1991
2001
धुबरी
70.4
74.3
ग्वालपाड़ा
50.2
53.6
हैलाकांडी
54.8
57.6
करीमगंज
49.2
52.3
कछार
34.5
36.1
अन्य जिले
बरपेटा
56.1
59.4
नगांव
47.2
51.0
मारीगांव
46.0
47.6
दरांग
32.0
35.6
पश्‍िचम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या (प्रतिशत में)
सीमावर्ती जिले
1991
2001
दक्षि24 परगना
29.9
33.2
उत्तर 24 परगना
24.2
24.2
नादिया
24.9
25.4
मुर्तिशाबाद
61.4
63.7
मालदा
47.5
49.7
कोलकाता
17.7
20.3
दक्षिण दिनाजपुर
36.8
38.4
उत्तर दिनाजपुर
36.8
38.4
जलपाईगुड़ी
10.0
10.8
कूच बिहार
23.4
24.2
कुल
23.6
25.2

यदि आज कोई सच में मुस्लिमों का हितचिंतक है और उनकी दशा और दिशा की चिंता करता है तो इन आंकड़ों पर गौर करे और उन्हें धार्मिक अंधविश्वास से दूर कर, उनके समुचित जीवन के निर्माण की व्यवस्था की जा सकती है, और घुसपैठ पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिऐ क्योकि घुसपैठी न तो हिन्दू न मुसलमान, घुसपैठियों घुट पेठिया होता है तभी अरब के देशों में भी घुसपैठ मुस्लिमों के साथ अत्यधिक कड़ा रुख रखा जाता है।


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