आज हमारी एमए की परीक्षा समाप्त हो गयी, मुझे पूर्ण विश्वास है कि अक्टूबर तक हम परास्नाकत डिग्री धारक हो जायेगे। फरवरी माह से ही परीक्षा दे दे कर थक गये थे। करीब दो माह तक अब कोई परीक्षा नही है, अगर आ गई तो परीक्षा की खैर नही, हमारी तैयारी जोरो से चल रही है। :)
इधर बहुत दिनों से कुछ गम्भीर लेखन नही हुआ, कुछ मजा नही आ रहा है। कहते है गर्म तावे पर पानी डालने पर जो आवाज निकलती है उसे सुन कर बड़ा मजा आता है। उसी गर्म तावे की भातिं मेरी भी स्थिति है, काफी दिनों से अन्दर ही अन्दर बहुत विषयों की का तावा बहुत गर्म हो गया है बस लिख कर पोस्ट करने की देर है, फिर देखिये आपके गर्मा गर्म टिप्पणी रूपी पानी क्या गुल खिलाता है। :)
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इन जयचन्द्रों का अंत कब होगा ?
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के एक हिन्दू विधायक को वहां का मुलायम और लालू बनने का शौक चढ़ा है। तभी उसे हिन्दुओं के 52 शक्तिपीठों में एक हिंगलाज मंदिर को समाप्त कर, बांध बनाने का पूरी विधानसभा में अकेला समर्थन कर रहा था। यह हिन्दुत्वों का और उस माता का दुर्भाग्य है कि उसके कैसे जयचंदो को जन्म दिया।
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बलूचिस्तान प्रांत में हिन्दू के 52 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज माता के मंदिर का अस्तित्व खतरे में नज़र आ रहा है। पाकिस्तान की संघीय सरकार ने मंदिर पास बांध बनाने का प्रस्ताव रखा है जिसे बलूचिस्तान प्रदेश सरकार ने संघीय सरकार से अपनी परियोजना को बदलने का अनुरोध किया है।
इस मंदिर के महत्व में कहा जाता है कि यह हिंगलाज हिंदुओं के बावन शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर काफी दुर्गम स्थान पर स्थित है, पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नी सती के पिता दक्ष ने जब शिवजी की आलोचना की तो सती सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने आत्मदाह कर लिया। माता सती के शरीर के 52 टुकड़े गिरे जिसमें से सिर गिरा हिंगलाज में। हिंगोल यानी सिंदूर, उसी से नाम पड़ा हिंगलाज। हिंगलाज सेवा मंडली के वेरसीमल के देवानी ने बीबीसी को बताया कि चूंकि माता सती का सिर हिंगलाज में गिरा था इसीलिए हिंगलाज के मंदिर का महत्व बहुत अधिक है।
जब किसी पवित्र खजू़र के पेड़ को बचाये जाने के लिये सड़क को मोड़ा जा सकता था तो 52 शक्ति पीठों में से एक हिंगलात माता के मन्दिर को क्यो नही बचाया जा सकता है। प्रान्तीय सरकार के सभी सदस्य इस मंदिर को बचाये जाने के पक्ष में है किन्तु हर जगह लालू-मुलायम जैसे सेक्यूलर नेता पाये जाते है। ऐसा ही उस प्रान्त भी है हिंदू समुदाय से संबंध रखने वाले एक विधायक ने मंदिर के पास बाँध के निर्माण की हिमायत की। बलूचिस्तान प्रांतीय असेंबली के सदस्य बसंत लाल गुलशन ने ज़ोर दे कर कहा है कि `धर्म को सामाजिक-आर्थिक विकास की राह में अवरोध बनाए बगैर' सरकार को इस परियोजना पर काम जारी रखना चाहिए।
हे भगवान इस धरा से इन जयचन्द्रों का अंत कब होगा ?
इस मंदिर के महत्व में कहा जाता है कि यह हिंगलाज हिंदुओं के बावन शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर काफी दुर्गम स्थान पर स्थित है, पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नी सती के पिता दक्ष ने जब शिवजी की आलोचना की तो सती सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने आत्मदाह कर लिया। माता सती के शरीर के 52 टुकड़े गिरे जिसमें से सिर गिरा हिंगलाज में। हिंगोल यानी सिंदूर, उसी से नाम पड़ा हिंगलाज। हिंगलाज सेवा मंडली के वेरसीमल के देवानी ने बीबीसी को बताया कि चूंकि माता सती का सिर हिंगलाज में गिरा था इसीलिए हिंगलाज के मंदिर का महत्व बहुत अधिक है।
जब किसी पवित्र खजू़र के पेड़ को बचाये जाने के लिये सड़क को मोड़ा जा सकता था तो 52 शक्ति पीठों में से एक हिंगलात माता के मन्दिर को क्यो नही बचाया जा सकता है। प्रान्तीय सरकार के सभी सदस्य इस मंदिर को बचाये जाने के पक्ष में है किन्तु हर जगह लालू-मुलायम जैसे सेक्यूलर नेता पाये जाते है। ऐसा ही उस प्रान्त भी है हिंदू समुदाय से संबंध रखने वाले एक विधायक ने मंदिर के पास बाँध के निर्माण की हिमायत की। बलूचिस्तान प्रांतीय असेंबली के सदस्य बसंत लाल गुलशन ने ज़ोर दे कर कहा है कि `धर्म को सामाजिक-आर्थिक विकास की राह में अवरोध बनाए बगैर' सरकार को इस परियोजना पर काम जारी रखना चाहिए।
हे भगवान इस धरा से इन जयचन्द्रों का अंत कब होगा ?
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फेडरर तुम हार गये पर दिल जीत लिया
फेडरर होने का मतलब शानदार खेल होता है, और फेडरर इसीलिये वर्षो से नम्बर एक नही है। फेडरर कई वर्षो से अपने कैरियर के चरम पर थे और चरम पर होने पर गिरवाट की 100 प्रतिशत सम्भवन होती है, इसी गिरावट का दौर फेडरर के साथ हो रहा है। पहले विम्बडन के पहने दो सेट तो नाडल ने हलुआ की तरह जीत लिया मानो वह किसी गैरवरीय के खिलाफ खेल रहे थे लगा कि लीन सेटों मेंखेल समाप्त हो जायेगा, किन्तु खेल अभी खत्म नही हुआ था अगले दो सेटों में फेडरर ने वापसी की जो मेरे हिसाब से असंम्भव थी क्योकि दो सेटो में फेडरर की 80 प्रतिशत नाव डूब चुकी थी किन्तु फेडरर ने अपने आपको बचाया और खेल को अपनी नाम के अनुसार पाँच दौर तक ले गये।
नडाल ने रविवार को विंबलडन के इतिहास के सबसे लंबे फाइनल में 6-4, 6-4, 6-7, 6-7, 9-7 से जीत दर्ज करके फेडरर का लगातार छठा विंबलडन खिताब जीतने का सपना भी तोड़ दिया। नडाल ने चार बार फ्रेंच ओपन का खिताब जीता है जबकि यह उनका पहला विंबलडन खिताब है। विंबलडन में सेंटर कोर्ट पर हुये इस ऐतिहासिक मैच को मै आधा ही देख सका, जब तक मेरा फेडरर हारता रहा। :) क्योकि वर्षा बाधित मैंच का यही दौर था। फेडरर की बादशाहत अभी खत्म नही हुई है अभी वह नाडल से 500 एटीपी प्वाइंट लेखकर 231वें हफ्ते दुनिया के नंबर एक बने रहेंगे जबकि नडाल भी लगातार 155वें हफ्ते दुनिया के दूसरे खिलाड़ी रहेंगे।
राफएल नाडल, रोजर फेडरर के लिये कहते है कि मुझे पता है कि इस तरह का फाइनल हारना कितना मुश्किल होता है। वह महान चैंपियन हैं। वह हारे या जीते उनका दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक रहता है। हम करीबी मित्र नहीं हैं लेकिन मैं हमेशा उसका काफी सम्मान करता हूं। मैं अपने लिए काफी खुश हूं लेकिन उसके लिए दुखी भी हूं क्योंकि वह इस खिताब का भी हकदार था। हार से उनकी अहमियत कम नही होती है आल इंग्लैंड क्लब के बेताज बादशाह रहे रोजर फेडरर अब भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ टेनिस खिलाड़ी हैं।
नाडाल को खिताबी जीत पर मेंरी ओर से खिताब की बहुत बहुत बधाई। पर बच कर रहना अबकी बार फ्रेंच ओपन का विजेता फेडरर होगा। क्योंकि विंबलडन में मिथक टूटा है तो अगली बार रोलां गैरोस पर फेडरर ही जीतेंगे।
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नडाल ने रविवार को विंबलडन के इतिहास के सबसे लंबे फाइनल में 6-4, 6-4, 6-7, 6-7, 9-7 से जीत दर्ज करके फेडरर का लगातार छठा विंबलडन खिताब जीतने का सपना भी तोड़ दिया। नडाल ने चार बार फ्रेंच ओपन का खिताब जीता है जबकि यह उनका पहला विंबलडन खिताब है। विंबलडन में सेंटर कोर्ट पर हुये इस ऐतिहासिक मैच को मै आधा ही देख सका, जब तक मेरा फेडरर हारता रहा। :) क्योकि वर्षा बाधित मैंच का यही दौर था। फेडरर की बादशाहत अभी खत्म नही हुई है अभी वह नाडल से 500 एटीपी प्वाइंट लेखकर 231वें हफ्ते दुनिया के नंबर एक बने रहेंगे जबकि नडाल भी लगातार 155वें हफ्ते दुनिया के दूसरे खिलाड़ी रहेंगे।
राफएल नाडल, रोजर फेडरर के लिये कहते है कि मुझे पता है कि इस तरह का फाइनल हारना कितना मुश्किल होता है। वह महान चैंपियन हैं। वह हारे या जीते उनका दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक रहता है। हम करीबी मित्र नहीं हैं लेकिन मैं हमेशा उसका काफी सम्मान करता हूं। मैं अपने लिए काफी खुश हूं लेकिन उसके लिए दुखी भी हूं क्योंकि वह इस खिताब का भी हकदार था। हार से उनकी अहमियत कम नही होती है आल इंग्लैंड क्लब के बेताज बादशाह रहे रोजर फेडरर अब भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ टेनिस खिलाड़ी हैं।
नाडाल को खिताबी जीत पर मेंरी ओर से खिताब की बहुत बहुत बधाई। पर बच कर रहना अबकी बार फ्रेंच ओपन का विजेता फेडरर होगा। क्योंकि विंबलडन में मिथक टूटा है तो अगली बार रोलां गैरोस पर फेडरर ही जीतेंगे।
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फेडरर तुम हार गये पर दिल जीत लिया
फेडरर होने का मतलब शानदार खेल होता है, और फेडरर इसीलिये वर्षो से नम्बर एक नही है। फेडरर कई वर्षो से अपने कैरियर के चरम पर थे और चरम पर होने पर गिरवाट की 100 प्रतिशत सम्भवन होती है, इसी गिरावट का दौर फेडरर के साथ हो रहा है। पहले विम्बडन के पहने दो सेट तो नाडल ने हलुआ की तरह जीत लिया मानो वह किसी गैरवरीय के खिलाफ खेल रहे थे लगा कि लीन सेटों मेंखेल समाप्त हो जायेगा, किन्तु खेल अभी खत्म नही हुआ था अगले दो सेटों में फेडरर ने वापसी की जो मेरे हिसाब से असंम्भव थी क्योकि दो सेटो में फेडरर की 80 प्रतिशत नाव डूब चुकी थी किन्तु फेडरर ने अपने आपको बचाया और खेल को अपनी नाम के अनुसार पाँच दौर तक ले गये।
नडाल ने रविवार को विंबलडन के इतिहास के सबसे लंबे फाइनल में 6-4, 6-4, 6-7, 6-7, 9-7 से जीत दर्ज करके फेडरर का लगातार छठा विंबलडन खिताब जीतने का सपना भी तोड़ दिया। नडाल ने चार बार फ्रेंच ओपन का खिताब जीता है जबकि यह उनका पहला विंबलडन खिताब है। विंबलडन में सेंटर कोर्ट पर हुये इस ऐतिहासिक मैच को मै आधा ही देख सका, जब तक मेरा फेडरर हारता रहा। :) क्योकि वर्षा बाधित मैंच का यही दौर था। फेडरर की बादशाहत अभी खत्म नही हुई है अभी वह नाडल से 500 एटीपी प्वाइंट लेखकर 231वें हफ्ते दुनिया के नंबर एक बने रहेंगे जबकि नडाल भी लगातार 155वें हफ्ते दुनिया के दूसरे खिलाड़ी रहेंगे।
राफएल नाडल, रोजर फेडरर के लिये कहते है कि मुझे पता है कि इस तरह का फाइनल हारना कितना मुश्किल होता है। वह महान चैंपियन हैं। वह हारे या जीते उनका दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक रहता है। हम करीबी मित्र नहीं हैं लेकिन मैं हमेशा उसका काफी सम्मान करता हूं। मैं अपने लिए काफी खुश हूं लेकिन उसके लिए दुखी भी हूं क्योंकि वह इस खिताब का भी हकदार था। हार से उनकी अहमियत कम नही होती है आल इंग्लैंड क्लब के बेताज बादशाह रहे रोजर फेडरर अब भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ टेनिस खिलाड़ी हैं।
नाडाल को खिताबी जीत पर मेंरी ओर से खिताब की बहुत बहुत बधाई। पर बच कर रहना अबकी बार फ्रेंच ओपन का विजेता फेडरर होगा। क्योकि विंबलडन में मिथक टूटा है तो अगली बार रोला गैरोस पर फेडरर ही जीतेगे।
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बहस - भारत के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की न्यूनतम आयु कितनी है ?
भारत के प्रधानमंत्री की न्यूनतम आयु कितनी है ? इस प्रश्न पर में और कुछ मित्रों में पिछले कई दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है और हम सभी विभिन्न प्रकार की सामान्य ज्ञान तथा सविंधान की पुस्तकों का गहन अध्ययन कर रहे है। आपके नज़र में प्रधान मंत्री पद की न्यूनतम आयु पर अपनी स्पष्ट राय रखें। साथ ही साथ दाई और मतदान बोर्ड पर अपना मत अंकित करें। मै अपनी बात अगली पोस्ट में रखूँगा। :)
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चिट्ठाकारी में महाशक्ति के दो साल
बीते माह की 30 तारीख को हमारे चिट्ठाकारी जीवन 2 साल पूरे हो गये, और देखिए, मै यहीं बात भूल गया कि 30 जून को मैने अपना ब्लाग बनाया था। खैर देर आये दुरूस्त आये की तर्ज पर हम दुरूस्त आ गये है, और अपने चिट्ठाकारी के तीसरे साल में पहुँच कर 2 साल पूरे करने की घोषणा करते है।
हुआ यो कि मै अपने पढ़ाई लिखाई, खेल कूद जैसे विषयों पर छुट्टी में ज्यादा व्यस्त था। और इन दिनों मुझे याद ही नही रहा कि मै कभी चिट्ठाकार भी हुआ करता था। :) आज अचानक गाहे बगाहे ही याद आ गया कि मेरे चिट्ठाकारी शुरू किये दो साल पूरे हो गये है। थोड़ा दुख भी हुआ कि उस दिन पोस्ट न डाल सका, क्योकि खास दिन की पोस्ट का कुछ खास ही महत्व होता है।
इधर चिट्ठाकारी और कम्प्यूटर से दूरी का मुझे सकारात्मक परिणाम देखने को भी मिला, 2006 के ग्रेजुएशन में मेरा अब तक का सबसे खराब शैक्षिक प्रदर्शन हुआ था, और मै मात्र 0.42 प्रतिशत अंक की कमी के कारण 50 प्रतिशत अंक भी नही पा पाया था, मुझे इसकी कसक आज तक है। कई ऐसी परीक्षाये आयोजित होती है जिसमें 50 प्रतिशत की मॉंग होती है और मै अयोग्य हो जाता हूँ और दिल पर सिर्फ और सिर्फ खीझ और सिर्फ निराशा ही हाथ आती है।
चूकिं मेरी इच्छा विधि की पढ़ाई की थी और 2006 की असफलता के ग्रहण के कारण इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश न हो सका था। इच्छा के विपरीत साल न खराब हो इस लिये राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से एम ए का फार्म भर दिया था और फिर इस बार मैने पक्का इरादा किया था कि परास्नातक में अच्छा प्रर्दशन करूँगा। और इसी विश्वास के कारण अर्थशास्त्र परास्नातक में प्रथम सेमेस्टर में 58, द्वितीय में 65 तथा हफ्ते भर पूर्व घोषित तृतीय सेमेस्टर में 76 प्रतिशत अंक लाये थे। यह मेरी अब तक की दी गई किसी भी परीक्षा का सर्वोत्तम अंक है। निश्चित रूप से आशा के अनुरूप सफलता पर खुशी मिलती है।
2007 के शुरू होते ही विधि की पढ़ाई की प्रबल इच्छा फिर जाग गई, और असमजस में था कि एमए के साथ विधि कैसे होगा, किन्तु कुछ मित्रों ने बताया कि मुक्त विश्वविद्यालय की पढ़ाई के साथ किसी और विश्वविद्यालय से डिग्री कोर्श कर सकते है, मुक्त विश्वविद्यालय के गुरूजनों से सम्पर्क किया तो उन्होने भी ऐसा ही उत्तर दिया। अक्टूबर माह में मैने विधि में प्रवेश ले लिया और कम समय में पर्याप्त तैयारी के बोझ के साथ लग गया। फरवरी में एमए तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा के बाद ही 15 अप्रेल से विधि के पर्चे भी प्रारम्भ हो गये। मेरी बहुत अच्छी तैयारी नही थी, किन्तु जहां चाह तहाँ राह की धारण सत्य हुई 2 जुलाई को मेरा विधि का परिणाम हुआ, रिजल्ट आशा के विवरीत हुआ, करीब 60 से 65 प्रतिशत की उम्मीद लगा कर बैठा था किन्तु 56 प्रतिशत पर आ कर रूक गया, तो भी परिणाम ठीक ही रहा। 7 और 9 जुलाई को मेरा एमए का अन्तिम सेमेस्टर होगा, और इस साल मेरे पास काफी समय होगा विधि के लिये और पूरी कोशिश करूँगा कि अगली परीक्षाऍं भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करूँ।
पिछले तीस जून 2007 का लेख - चिट्ठाकारी में महाशक्ति के एक साल
हुआ यो कि मै अपने पढ़ाई लिखाई, खेल कूद जैसे विषयों पर छुट्टी में ज्यादा व्यस्त था। और इन दिनों मुझे याद ही नही रहा कि मै कभी चिट्ठाकार भी हुआ करता था। :) आज अचानक गाहे बगाहे ही याद आ गया कि मेरे चिट्ठाकारी शुरू किये दो साल पूरे हो गये है। थोड़ा दुख भी हुआ कि उस दिन पोस्ट न डाल सका, क्योकि खास दिन की पोस्ट का कुछ खास ही महत्व होता है।
इधर चिट्ठाकारी और कम्प्यूटर से दूरी का मुझे सकारात्मक परिणाम देखने को भी मिला, 2006 के ग्रेजुएशन में मेरा अब तक का सबसे खराब शैक्षिक प्रदर्शन हुआ था, और मै मात्र 0.42 प्रतिशत अंक की कमी के कारण 50 प्रतिशत अंक भी नही पा पाया था, मुझे इसकी कसक आज तक है। कई ऐसी परीक्षाये आयोजित होती है जिसमें 50 प्रतिशत की मॉंग होती है और मै अयोग्य हो जाता हूँ और दिल पर सिर्फ और सिर्फ खीझ और सिर्फ निराशा ही हाथ आती है।
चूकिं मेरी इच्छा विधि की पढ़ाई की थी और 2006 की असफलता के ग्रहण के कारण इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश न हो सका था। इच्छा के विपरीत साल न खराब हो इस लिये राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से एम ए का फार्म भर दिया था और फिर इस बार मैने पक्का इरादा किया था कि परास्नातक में अच्छा प्रर्दशन करूँगा। और इसी विश्वास के कारण अर्थशास्त्र परास्नातक में प्रथम सेमेस्टर में 58, द्वितीय में 65 तथा हफ्ते भर पूर्व घोषित तृतीय सेमेस्टर में 76 प्रतिशत अंक लाये थे। यह मेरी अब तक की दी गई किसी भी परीक्षा का सर्वोत्तम अंक है। निश्चित रूप से आशा के अनुरूप सफलता पर खुशी मिलती है।
2007 के शुरू होते ही विधि की पढ़ाई की प्रबल इच्छा फिर जाग गई, और असमजस में था कि एमए के साथ विधि कैसे होगा, किन्तु कुछ मित्रों ने बताया कि मुक्त विश्वविद्यालय की पढ़ाई के साथ किसी और विश्वविद्यालय से डिग्री कोर्श कर सकते है, मुक्त विश्वविद्यालय के गुरूजनों से सम्पर्क किया तो उन्होने भी ऐसा ही उत्तर दिया। अक्टूबर माह में मैने विधि में प्रवेश ले लिया और कम समय में पर्याप्त तैयारी के बोझ के साथ लग गया। फरवरी में एमए तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा के बाद ही 15 अप्रेल से विधि के पर्चे भी प्रारम्भ हो गये। मेरी बहुत अच्छी तैयारी नही थी, किन्तु जहां चाह तहाँ राह की धारण सत्य हुई 2 जुलाई को मेरा विधि का परिणाम हुआ, रिजल्ट आशा के विवरीत हुआ, करीब 60 से 65 प्रतिशत की उम्मीद लगा कर बैठा था किन्तु 56 प्रतिशत पर आ कर रूक गया, तो भी परिणाम ठीक ही रहा। 7 और 9 जुलाई को मेरा एमए का अन्तिम सेमेस्टर होगा, और इस साल मेरे पास काफी समय होगा विधि के लिये और पूरी कोशिश करूँगा कि अगली परीक्षाऍं भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करूँ।
पिछले तीस जून 2007 का लेख - चिट्ठाकारी में महाशक्ति के एक साल
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इश्क
वफाओं को हमने चाहा,
वफाओं का साथ मिला।
इश्क की गलियो में भटकते रहे,
घर आये तो बाबू जी का लात मिला।।
वफाओं का साथ मिला।
इश्क की गलियो में भटकते रहे,
घर आये तो बाबू जी का लात मिला।।
घर लातों को तो हम झेल गये,
क्योकि यें अन्दर की बात थी।
पर इश्क का इन्ताहँ तब हुई जब,
गर्डेन में उसके भाई का हाथ पड़ा।।
क्योकि यें अन्दर की बात थी।
पर इश्क का इन्ताहँ तब हुई जब,
गर्डेन में उसके भाई का हाथ पड़ा।।
इश्क का भूत हमनें देखा है,
जब हमारे बाबू जी ने उतारा था।
फिछली दीवाली में पर,
जूतों चप्पलों से हमारा भूत उतारा था।।
जब हमारे बाबू जी ने उतारा था।
फिछली दीवाली में पर,
जूतों चप्पलों से हमारा भूत उतारा था।।
इश्क हमारी फितरत में है,
इश्क हमारी नस-नस में है।
बाबू की की धमकियों से हम नही डरेगें,
हम तो खुल्लम खुल्ला प्यार करेगें।।
इश्क हमारी नस-नस में है।
बाबू की की धमकियों से हम नही डरेगें,
हम तो खुल्लम खुल्ला प्यार करेगें।।
अब आये चाहे उसका भाई,
चाहे साथ लेकर चला आये भौजाई।
इश्क किया है कोई चोरी नही की,
तुम्हारे बाप के सिवा किसी से सीना जोरी नही की।।
चाहे साथ लेकर चला आये भौजाई।
इश्क किया है कोई चोरी नही की,
तुम्हारे बाप के सिवा किसी से सीना जोरी नही की।।
कई अरसें से कोई कविता नही लिखी, मित्र शिव ने कहा कि कुछ लिख डालों कुछ भाव नही मिल नही रहे थे किन्तु एक शब्द ने पूरी रचना तैयार कर दी, मै इसे कविता नही मानता हूँ, क्योकि यह कविता कोटि में नही है, आप चाहे जो कुछ भी इसे नाम दे सकतें है, यह बस किसी के मन को रखने के लिये लिखा गया।
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ब्लागर/चिट्ठाकार पर निबन्ध
- यह मानव जाति में एक विशेष प्रकार का कुत्ता होता है जो भौकता ज्यादा है और कटता कम है।
- चिट्ठाकार के परिवार में कई सदस्य होते है।
- इसके पिता का नाम डेक्सटाप होता है क्योकि ज्यादातर समय उसे घूरता रहता है।
- माता का नाम सीपीयू है, जो इसकी सभी कमियों को नज़र अंदाज करती है।
- इसकी प्रेमी/प्रेमिका माऊस होती है, जिसके बदन पर वह हमेशा हाथ फिराता रहता है।
- लेख/पोस्ट इसके पति/पत्नि होते है, क्योकि इनमें लड़ई झगड़ा, भड़ास प्रेम सभी का मेल मिलता है।
- गुमनाम टिप्पणी, भद्र टिप्पणी, अभद्र टिप्पणी इसने बच्चों का नाम है, क्योकि ये चुलबुले होते है, बच्चे कितने भी खराब क्यो न हो, अच्छे ही होते है।
- कीबोर्ड इसका नौकर होता है, जिसे समय बेसमय-बेरहम होकर मारता है।
- इसे रह रहे कर पोस्टिग और टिप्पणी प्राप्त करने के दौरे पड़ते है।
- उपरोक्त बातों से कहा जाता सकता है कि आदमी की तरह दिखने वाला बिना सींग पूछ का यह प्राणी मनुष्य नही होता है।
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मेरी लड़की फेल हो जायेगी, मुझे आउट हुआ पेपर दे दों
परसों इलाहाबाद विश्वविद्यालय का बीएससी-3 का का परिणाम निकल आया था। कुछ तो परसों ठीक अपना परिणाम जानने के लिये आ गये, किन्तु कल और भी रोमांचक स्थिति लेकर कई छात्र आ धमके की इस रोल नम्बर के आस पास कोई मैथ-कैमेस्ट्री हो तो बताओं मैने करीब 40 रोल नम्बर देखा तो उसमें एक ही मैथ-कैमेस्ट्री मिली, और लड़के संन्तुष्ट हो गये।
बाद में जब हम घर से बाहर निकले तो तो उक्त रोल नम्बर की वास्तविकता का पता चला। लड़को ने बताया कि यह अमुख लड़की का रोल नम्बर है। परीक्षा में हम लोगों ने इसकी खूब मदद की थी। इसका बाप भी ऐन पेपर के दिन बेटा-बाबू, लड़की है बेचारी का कैरियर खराब हो जायेगा कह कर आउट हुआ पेपर और इम्पटेन्टस ले जाता था। आज रिजल्ट निकलने के बाद जब हम लोगों ने रिजल्ट पता करने के लिये फोन किया तो बाप कहता है कि कौन हो तुम लोग ?? मेरी लड़की पास हो या फेल तुम जानकर क्या करोगें।
भाई लड़के है उनकी भी उत्सुक्ता थी कि आखिर जिसकी इतनी मदद किया, पता तो चले कि वह कौन से डिविजन में पास हुई है। और लड़के इन्टनेट के जरिये पता लगाने में सफल भी हो गये। मेरे मन में सिर्फ इतनी सी बात कौध रही है क्या आज शिक्षा का स्तर यही है कि बाप आउट हुआ पेपर खोजता फिरे, यही नैतिकता है?
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आजा हँसले - हँसले, मेरे यार तू हँस ले
माँ - अरे बेट चंदू, कहाँ जा रहे हो ?
चंदू - साधू महाराज का प्रवचन सुनने।
माँ - ना बादल, न बरसात फिर ये छाता क्यो ?
चंदू - महाराज वहाँ ज्ञान की वर्षा जो कर रहे है।
चंदू - साधू महाराज का प्रवचन सुनने।
माँ - ना बादल, न बरसात फिर ये छाता क्यो ?
चंदू - महाराज वहाँ ज्ञान की वर्षा जो कर रहे है।
:-) :-) :-) :-) :-) :-) :-) :-)
सोनिया ने मनमोहन से कहा - मन्नू मुझे किसी एक्पेन्सिव प्लेस पर ले चलो।
मनमोहन बोले - मैछम जी तैयार हो जाइये।
सोनिया ने पूछा - हम कहाँ जा रहे है ?
मनमोहन ने कहा - पेट्रोल पम्प।
:-) :-) :-) :-) :-) :-) :-) :-)
एक आदमी को एक लड़की ने सपने में जोर की चप्पल मारी।
वह सबसे पहले बैंक गया और अपने बैंक के खाते को बंद कर दिया।
बैंक कर्मी ने पूछा - सर आप ऐसा क्यो कर रहे है ?
आदमी ने कहा - आजपेपर में इस्तहार था कि '' हम आपके सपने को सच करेगे।
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प्रेरक प्रंसग - प्रकृति प्रेमी स्वामी रामतीर्थ
सैन फ्रांसिस्को के उपनगर शास्तस्प्रिंग में एक बार शास्ता पर्वत की चोटी पर पहुँचने की प्रतियोगिता हुई जिसमें बहुत से अमेरिकन युवक भाग लेने के लिये आये। इस प्रतियोगिता में एक भारतीय संयासी ने भी भाग लिया। इस दुबले पहले भारतीय संयासी को देखकर अमेरिकन युवक मुस्कराने लगे। प्रतियोगिता आरम्भ हुई सभी दर्शक तथा प्रतियोगी आश्चर्य से देखते रहे, सन्यासी सबसे बहने शास्ता पर्वत पर पहुँचकर खड़ा मुस्कारा रहा था।
उस प्रतियोगिता के विजेता का पुरस्कार उस सन्यासी को दिये जाने की घोषणा की गयी, लेकिन आश्चर्य! सन्यासी ने यह कहकर उस उपहार को अस्वीकार कर दिया कि मै शास्ता पर्वत की चोटी पर प्रकृति प्रेम के कारण उस चोटी की शोभा देखने गया था, उपहार हेतु नही। वह सन्यासी कोई और नही निर्भीक स्वामी रामतीर्थ थे।
उस प्रतियोगिता के विजेता का पुरस्कार उस सन्यासी को दिये जाने की घोषणा की गयी, लेकिन आश्चर्य! सन्यासी ने यह कहकर उस उपहार को अस्वीकार कर दिया कि मै शास्ता पर्वत की चोटी पर प्रकृति प्रेम के कारण उस चोटी की शोभा देखने गया था, उपहार हेतु नही। वह सन्यासी कोई और नही निर्भीक स्वामी रामतीर्थ थे।
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चैंलेज स्वीकार है?
कुछ दिनों पहले आरकुट के चिरकुटिया माहोल से दूर हो गया था किन्तु हाल में ही आरकुट पर काफी अच्छी अच्छी ज्ञानवर्धक आईटम चालू हुआ है उसमें मुझे Traveler IQ Challenge काफी अच्छा और मनोरंजक के के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी लगा। अभी दो चार दिन पहले ही खेलना चालू किया था 6ठें स्तर से ऊपर जा ही नही पा रहा था किन्तु आज सुबह सुबह गेम के 10वें स्तर को पार करने में सफल हो ही गया। काफी अच्छा गेम है समय मिले तो एक बार जरूर चैलेंज स्वीकार जरूर कीजिएगा। फिर देखिये क्या आप का दिमाग भी पॉंचवीं पास से तेज है?
इस गेम की यह खासियत है कि इसमें दिये गये देशो के नामों को विश्व मानचित्र पर सही स्थानों पर पर भरना होता है। और जितना अधिक सही आप करते है उतने अधिक अंक आपको मिलते है और खेल के अंत में IQ Point मिलता है।
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ठीक एक साल पहले की पोस्ट
एक साल पहले यह (तोड़ दिया सन्यास - विषय गम्भीर था ) पोस्ट लिखी थी आज फिर लिख रहा हूँ, और अपने माता पिता की हार्दिक बधाई दे रहा हूँ। मै आज ज्यादा कुछ तो नही किया, और न ही हमारे यहॉं कोई विशेष कार्यक्रम आयोजन की परम्परा ही है। आज दोपहर में थोड़ा बहुत खाते पीने का आईटम ले आया था, वह सब खाने पीने के बाद यह लिख रहा हूँ।
पुन:श्च माता-पिता को विवाह की वर्षगाठ की हार्दिक बधाई।
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हिन्दू धर्म की विशेषता
यही तो हिन्दू धर्म की विशेषता है कि वह बाहर से आने वालों को अपना लेता है। हिन्दू धर्म एक महासागर है। जैसे सागर में सब नदियां मिल जाती हैं, वैसे हिन्दू धर्म में सब समा जाते हैं। हिन्दू धर्म का रहस्य जानना केवल हिन्दुओं का नहीं, सारे भारतीयों का काम है। हिन्दू धर्म अपनी बुनियाद में निहित इसी स्वदेशी की भावना के कारण स्थितिशील और परिणामत: अत्यंत शक्तिशाली बन गया है। चूंकि वह मतान्तरण की नीति में विश्वास नहीं करता इसलिए वह सबसे ज्यादा सहिष्णु है और आज भी वह अपना विस्तार करने में उतना ही समर्थ है, जितना भूतकाल में था। स्वदेशी भावना के कारण हिन्दू अपने धर्म का परिवर्तन करने से इनकार करता है। मैंने हिन्दुत्व के विषय में जो कुछ कहा है, वह मेरे विचार से संसार के सभी मत-पंथों पर लागू है। हां, हिन्दू धर्म के बारे में यह विशेष रूप से सही है।
-महात्मा गांधी (मद्रास में 'स्वदेशी' पर भाषण, 14 फरवरी 1916)
-महात्मा गांधी (मद्रास में 'स्वदेशी' पर भाषण, 14 फरवरी 1916)
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अब हम न भए
अब हम न भए तो क्या हुआ दुनिया का चलना काम है। मेरे रूकने से दुनिया नही रूकेगी, मै अपना काम करूँगा और दुनिया अपना, यही प्रकृति के नियमानुसार कार्य होता रहेगा। आज मुझे कोई लेख लिखे करीब 15 दिन के आस पास हो रहा है, यह कम्प्यूटर के नजदीक होने के बाद भी इतना बड़ा गैप पहली बार हो रहा है।
किसी भी एग्रीगेटर पर गये भी करीब हफ्ते भर से ज्यादा समय हो रहा है, एक दो टिप्पणी अपने चहेते ब्लागों पर हुई वह एक अपवाद हो सकता है। पिछले कुछ महों से हिन्दी ब्लाग जगत में अभूतपूर्व बदलाव के माहोल देखने को मिला, कि आज के व्यक्ति को ओछी हरकत करने के लिये कोई भी जगह नही है, शायद यही कारण है कि आज हिन्दी ब्लाग में भी स्तरीय गिरवट देखने को मिल रहा है।
किसी भी एग्रीगेटर पर गये भी करीब हफ्ते भर से ज्यादा समय हो रहा है, एक दो टिप्पणी अपने चहेते ब्लागों पर हुई वह एक अपवाद हो सकता है। पिछले कुछ महों से हिन्दी ब्लाग जगत में अभूतपूर्व बदलाव के माहोल देखने को मिला, कि आज के व्यक्ति को ओछी हरकत करने के लिये कोई भी जगह नही है, शायद यही कारण है कि आज हिन्दी ब्लाग में भी स्तरीय गिरवट देखने को मिल रहा है।
जहॉं अच्छा माहोल व व्यवहार होता है वहॉं लिखने बैठने का मन करता है किन्तु मन कहता है कि हिन्दी ब्लागिंग में कि अब हम न भए। .... लिखने की इच्छा थी किन्तु आवाश्यक काम आ गया, समय मिला तो फिर लिखेगे :)
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