अंतर्राष्ट्रीय सदमा



विश्व के ख्यातिलब्ध पॉप गायक माइकल जैक्सन की 50 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। माईकल अपने जीवन काल में हमेंशा चर्चित रहे, भले ही बुराइयों ने उनका साथ न छोड़ा हो किन्तु अपनी प्रशंसकों समक्ष भगवान से कम नहीं थे। इस गायक की मौत की खबर पढ़कर वाकई मै भी हतप्रभ हूँ और ईश्वर से आत्मा की शान्ति प्रार्थना करता हूँ।

माइकल जैक्सन ने अपना संगीत करियर अपने परिवार के पॉप ग्रुप द जैक्सन फ़ाइव के साथ शुरू किया था। 1982 में रिलीज़ हुआ उनका संगीत अलबम थ्रिलर अब तक का सबसे ज़्यादा बिकने वाले अलबम है। माइकल जैक्सन ने ब्रिटेन में भी कई बेहतरीन संगीत अलबम बनाए थे और 13 ग्रैमी अवार्ड्स भी जीते थे। अपने कैरियर मे बच्‍चो के साथ शारीरिक शोषण के मामले में दोषी भी पाये गये थे। विवादो में बीच में वो ऐस शक्स था जो विश्व के संगीत पटल पर हमेशा छाया रहा। आपके समक्ष माईकल का ही मर्म स्‍पर्शी गीत Heel the world रख रहा हूँ जो मुझे भी बहुत अच्‍छा लगता है और अगर मै माईकल को पंसद करता हूं तो सिर्फ Michael Jackson के गीत Heel the world के कारण ही।



इस गाने के सुनते समय मेरे आँखे में आँसू है, पता नही क्‍यो ?


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क्या चाय की दुकान खोलना हीन काम है?




आज के जनमत के साथ फिर हाजिर हूँ, आज का प्रश्‍न है कि - क्या चाय की दुकान खोलना हीन काम है? इस प्रश्‍न के पक्ष और विपक्ष में काफी नोकझोक रही। अपनी टिप्‍पणी के द्वारा हीन काम कहने वाले भी पीछे नही रहे तो अपनी तार्किक बात से काम को सही ठहराने वाले भी कम नही थे।
उपरोक्‍त जनमत से यही लग रहा है कि 89% लोग इसे गलत नही माते है, और करीब 13% इसे गलत मानते है। चाय को गलत काम मान कर प्रथम व्‍यक्ति कहते है - मुझे नही लगता मेरे भाई की आपको कोई भी जवाब यंहा ग़लत मिलेगा लेकिन मेरा जहाँ तक मानना है आप अच्छे विद्वान व्यक्ति है और आप जो निर्णय लोगे सोच विचार के ही लोगे- लेकिन भाई जी आपने ये नही सोचा की आप एक उस आदमी के रोज़गार का हनन कर रहे है जो वाकई केवल ये कर सकता है आप तो फिर भी कोई अन्य कार्य कर सकते है लेकिन जो जरूरतमद है वो ही ये कार्य करे तो शोभा देता है आप अपने शौक के लिए अगर के कर रहे है तो में नही समझता की चाय की दुकान खोलना अच्छा है। कोई भी कम कम छोटा या बड़ा नही है ये हम सब जानते है लेकिन जो सोच विचार कर किया जाए वही उचित है।
द्वितीय व्‍यक्ति कहते है - दिल से सोचो तो नही और दिमाग से सोचो तो हाँ
तथा 87% में कुछ ऐसे भी मतदाता थे तो अपनी बातें रखे थे, प्रथम व्‍यक्ति कहते है - यदि आप आलस के कारण, एक आसान काम समझ कर चाय की दुकान खोल रहे हैं तो यह गलत होगा। यदि तमाम दिक्कतों और कमियों के बाद भी हम एक बडा लक्ष्य सामने रख कर चाय की दुकान खोलते हैं तो फिर शर्म कैसी? याद रहे हमारा लक्ष्य और सपने बडे होने जरूरी हैं।
द्वितीय व्‍यक्ति कहते है - Chai ke sath Coffie bhi honi chayiye aur cold drink bhi, Kaam koi bhi chota Bada nahi hota, AAj ki sab badi industries Kal bahut choti si dukany hi thi, Aaj cahi ki dukan , 30 Saal baad Hotal chain mai badal jaye.
आप क्‍या मानते है ?
पिछला जनमत :- 85% लोगो को नही पता है भारत के प्रधानमंत्री पद धारण करने की न्यूनतम आयु


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सरकार तो है सबकी माई-बाप पर सगी तो है नही



उत्तर प्रदेश के महाविद्यालयों में जींस को लेकर शासन की राय आ ही गई, शासन की ओर से कहा गया कि युवतियों को कॉलेज में जींस पहनने से कोई रोक नही है। सरकार की ओर से आई यह राय निश्चित रूप से गलत कदम है, क्योंकि शिक्षण संस्थान में मर्यादा की आवश्यकता होती है न कि देह प्रदर्शन की। आज के दौर में शिक्षण संस्थान पढ़ाई के कम प्रेम प्रपंचों के अड्डे भर बन कर रहे गये है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय का विज्ञान संकाय अक्सर युवक और युवतियों के जोड़ों का जमघट बना रहता है, कभी प्रॉक्‍टर के छापे की खबर से ये जोड़े भागे डगर नही पाते है, आखिर क्यों ऐसी स्थिति आती है? जब आपको लगता है कि आप गलत नही कर रहे हो तो प्रॉक्‍टर के आने पर भाग कर क्यों गलत बन जाते हो। इसका साफ कारण है कि उन्हें पता होता है कि यह शिक्षा की स्‍थली है न प्रेमाश्रय, उन्हें डर होता है कि पकड़े जाने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही होगी और पढ़ाई का कैरियर खराब हो जायेगा। आखिरकार तय है कि अनुशासन के डंडे से ये जोड़े भाई-बहन भी बनने को तैयार हो जाते है, अर्थात सईया को भैया बनने में देर नही लगती है।
जींस को लेकर कालेज प्रशासन का रवैया बिल्कुल जायज है, क्योंकि जींस में न सिर्फ लडकिया असुरक्षित होती है बल्कि सबसे ज्यादा छींटाकशी इन्ही पर की जाती है। आज दस साल पहले जींस का इतना क्रेज नही था, आज हो गया है, कल को मिनी स्कर्ट और बिकनी का क्रेज होना तय है तो क्या ये भविष्‍य के विद्यालयी परिधान माना जा सकता है। अभी दैनिक भास्कर को पढ़ रहा था, प्रधानाचार्य परिषद के इस फैसले को देशी तालिबानी फैसला कह कर न्यूज़ प्रकाशित की थी, अगर मीडिया को महिलाओं को खुलेपन हिमायती है तो क्यों नहीं मुस्लिमों को बुर्के के विरोध में आती? विरोध नही कर सकते, कारण है कि मुस्लिम मीडिया की आडम्बरी ताकत के महल को एक पल नेस्तनाबूद कर देंगे।
मेरा यह मानना है कि महिलाओं के लिये ही नही पुरुषों के लिये भी विभिन्‍न संस्‍थानों में सामान्‍य वेशभूषा के नियम होने चाहिये। पुरुषों को भी ऐसे वस्त्र धारण करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए वह अश्लील श्रेणी में आते हो। जब आफिस- कार्यालय में आप ड्रेस कोड से बंधे हुए हो तो शिक्षण संस्थान में क्यो नही ? शिक्षण संस्थान को रैंप नही जो अंग प्रदर्शन की जगह बनाई जाए। आज जीन्स के लिये प्रदर्शन हो रहे है, कल को शॉट जींस, ब्रा-बिकनी के लिये होगे।
गौर तलब हो कि हर समर्थन करने वाला, कम से कम अपने घर की महिलाओं को इस ऐसे वस्त्रों में देखना पसंद नही करता है। मगर विरोध प्रदर्शन और मानवाधिकार की दुहाई में सबसे आगे दिखते है, जरूरी है अपनी रोटी जो सेकनी होती है। सरकार तो है सबकी माई-बाप पर सगी तो है नहीं, जो पहनाये पहन लो। :)


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