महिलाओं के प्रति हिंसा बलात्कार



कुछ माह पूर्व उत्तर प्रदेश की न्यायिक राजधानी इलाहाबाद में मुख्यमंत्री मायावती का सघन दौरा होता है उसी मे एक महिला मुख्यमंत्री के पैरो में गिर कर कहती है कि, हमार बलात्कार हुआ है और न्याय नाही मिला। मुख्यमंत्री के समक्ष यह महिला अपनी व्यथा बता पाने मे सफल हुई और इसका परिणाम हुआ कि डीजीपी शाम तक उक्त बलात्कार की जांच करने स्वयं पहुँचे। आज महिलाओं के प्रति अपराध में सर्वप्रथम सूची में बलात्कार की घटना आती है, इस आपराधिक घटना के बाद बलात्कार पीड़ित महिला को न्याय की आस में अपना आत्मसम्मान तक छोड़ना पड़ता है, तब पर भी वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था में न्याय की कोई गारंटी नहीं होती।


हाल के दिनों बलात्कार की घटनाओ में बेतहाशा वृद्धि हुई है। बलात्कार की घटनाएं दिल्ली-मुम्‍बई जैसे बड़े नगरों को सीमाओं को तोड़ते हुई इलाहाबाद जैसे मझोले तथा बांदा, राय बरेली और और औरैया जैसे छोटे शहरों में पैर पसार चुकी है। बांदा में जिस प्रकार सत्ता पक्ष का विधायक बलात्कार करता है और उलटे बलात्कार पीड़िता को चोरी के फर्जी मामले में फंसा कर जेल में डाल दिया जाता है, उक्त घटनाएं यह सोचने पर मजबूर करती है आज भी भारत की शासन व्यवस्था कानून पर नहीं प्रभावी तत्वों के प्रभाव पर चलती है। भले ही बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उक्त घटना को स्वसंज्ञान में लिया और शीलू की रिहाई का आदेश देती है। शीलू जैसे हजारों मामलों में से कुछ ही मामलों में त्वरित प्रतिक्रिया देखने को मिलती है, जहां मीडिया की सक्रियता पर ही प्रशासन चेतता है।
मैंने देश के विभिन्न शहरों की कुछ दिनों की खबरों पर गौर किया तो मेरठ में दो नाबालिग किशोरियों के साथ बलात्कार, आगरा में नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार, रायबरेली में बलात्कार के आरोप में किशोर गिरफ्तार किया गया, फतेहपुर व उन्नाव में बलात्कार का प्रयास युवकों को गिरफ्तार किया गया। इस प्रकार की न जाने कितनी घटनाएं पूरे देश में घट रही है जिनसे तो कुछ ही सामने आ पाती है और बहुत सी लोक-लाज और दबंगों के प्रभाव से उभारी जाती है और न ही उभरने दिया जाता है। न्याय की देरी और न्यायिक व्यवस्था की लचर व्यवस्था के कारण आज भी भारतीय परिवेश में बलात्कार की घटनाओं को दबा ले जाना उचित माना जाता है।
आखिर कब तक हम सामाजिक डर से ऐसे अपराधों को सहते चले आयेंगे? जब सामाजिक डर से अपराध करने की प्रवृत्ति में कोई कमी नहीं आती तो अपराध के को सहने की प्रवृत्ति क्यों? क्या यह वही भारत है जहाँ 'नारी सर्वत्र पूज्यते' की अवधारणा विद्यमान रही है? किन्तु वर्तमान समय में भारतीय संस्कृति को किस प्रकार ह्रास किया जा रहा है उसी का परिणाम है कि बलात्कार की घटनाएं घटित हो रही है। इसका मूल कारण है कि आज पारिवारिक मूल्य टूट रहे है, मर्यादा-लोक-लाज और मर्यादा की सीमा रेखा को लांघा जा रहा है। यह सोचनीय विषय है कि जिस उम्र में युवाओं को अपने करियर और एजुकेशन की ओर सोचना चाहिये वो इस उम्र में बलात्कार जैसे कृत्य कर रहे होते है। कभी भी बलात्कार जैसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई उपाय क्यों नहीं सोचा गया? इस पर हमें विचार करना होगा क्योंकि अगर हम आज के समय में इस विषय पर विचार न किया गया तो हमारे देश में अमेरिका से भी वीभत्स रूप देखने को को मिलेगा। सन 1990 ई. की FBI रिपोर्ट से पता चलता है कि अमेरिका में उस साल 1,02555 बलात्कार की घटनाएँ दर्ज की गयी रिपोर्ट में यह बात भी बताई गयी है कि इस तरह की कुल घटनाओं में से केवल 16 प्रतिशत ही प्रकाश में आ पाई हैं इस प्रकार 1990 ई. की बलात्कार की घटना का सही अंदाज़ा लगाने के लिए उपरोक्त संख्या को 6.25 गुना करके जो योग सामने आता है वह है 6,40,968 इस पूरी संख्या को 365 दिनों में बनता जाये तो प्रतिदिन के लिहाज से 1756 संख्या सामने आती है। अगर हम भारत से अमेरिका की तुलना करें तो जनसंख्या के मामले में हम उससे 6 गुणा अधिक होते है, यदि हम प‍ाश्‍चात संस्कृति का अनुकरण करते रहे तो भारत में भी 10 हजार प्रति दिन बलात्कार की घटनाएं दर्ज होगी। यह भी विचारणीय बात है राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी रिपोर्ट भारत में अपराध (2009) के मुताबिक लड़कियों के साथ उनके ही रिश्तेदारों द्वारा बलात्कार किए जाने की घटना में तीस प्रतिशत का इजाफा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2009 में जहां इस तरह के 404 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2008 में इस तरह के 309 मामले दर्ज किए गए थे और इनमें पिछले साल के मुकाबले 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके साथ ही 21,397 बलात्कार की घटनाओं में 94.9 प्रतिशत मामलों में पीड़ित लड़की उस व्यक्ति से परिचित थी। इससे साफ स्पष्ट होता है कि हम नैतिक पथभ्रष्टता की ओर उन्मुख हो रहे है। उक्त रिपोर्ट की बाते उजागर करती है कि भारतीयों में जो पारिवारिक रिश्तों की मर्यादा जो महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करती थी उसे पाश्चात्य संस्कृति की आड़ में हम तार-तार करते जा रहे है।
आज नेता नगरी में बलात्कार की सजा क्या हो इस विषय पर विचार किया जा रहा है, नेता विपक्ष सुषमा स्वराज ने फांसी की सजा चाहती है किन्तु क्या इससे बलात्कार की घटनाएं कम हुई है ? बलात्कार के बाद हत्या के अपराध में अन्तिम बार धनंजय चटर्जी को फांसी दी गई, उसके बाद भी बलात्कार के बाद हत्या के मामलों में कोई कमी नहीं आयी। हम यह क्यों विचार नहीं करते है कि बलात्कार की घटना कम हो या बिल्कुल न हो। ऐसा नहीं है कि हम बलात्कार की प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगा सकते है दिक्कत ये है कि हम इस विषय पर सोचते नहीं है। वाकई आज अगर अगर कोई शक्ति है जो बलात्कार की घटनाओं पर अंकुश लगा सकता है तो भारतीय परम्परा को जीवित रखना, नौनिहालों को सेक्स शिक्षा देने के बजाय ऐसी शिक्षा प्रदान करता जिससे वो बलात्‍कार की पथ जाने के बजाय संस्कार के पथ पर जाये।


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अच्युताष्टकम् - Achyutastakam



Narayan, Vishnu, Krishna, Balkrishna, Krishna with Flute, Achyutam Keshavam RamNarayanam Krishna damodaram vasudevam Harim
जय श्री कृष्ण
अच्युतं केशवं रामनारायणं  कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं  जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे ॥

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं  माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् ।
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं  देवकी नन्दनं नन्दजं सन्दधे ॥

विष्णवे जिष्णवे शङ्खिने चक्रिणे  रुक्मणीरागिणे जानकी जानये ।
वल्लवीवल्वभायार्चितायात्मने  कंशविध्वंसिने वंशिने ते नमः ॥

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण  श्रीपते वासुदेवाजित  श्रीनिधे ।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज  द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ॥

राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो  दण्डकरण्यभूपुण्यताकारणः ।
लक्ष्मणेनान्वितो वानरैः सेवितो  ऽगस्त्यसम्पूजितो राघवः पातु माम् ॥

धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा  केशिहा कंसह्रद्वंशिकावादकः ।
पूतनाकोपकः सूरजाखेलनो  बालगोपालकः पातु मां सर्वदा ॥

विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं  प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम् ।
वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं  लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥

कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं  रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः ।
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं  किङ्किणी मञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥

अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं  प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम् ।
वृत्ततः सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्य वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ॥

श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतमच्युताष्टकं शुभम् ।

Achyutam Keshavam, Narayan, Bal Krishna, with mother



Achyutastakam in English and Unicode Sanskrit
Achyutham Kesavam Rama-Narayanam
Krishna-Damodaram Vasudevam Harim;
Shreedharam Madhavam Gopikavallabham
Janakee-Nayakam Ramachandram Bhaje[1]

Achyutham Keshavam Satyabhamadhavam
Madhavam Shreedharam Radhikaradhakam;
Indiramandiram Chetasa Sundaram
Devakee-Nandanam Nandajam Sandadhe[2]

Vishnave Jishnave Shakhine Chakrine
Rukmineeragine Janakeejanaye;
Vallaveevallabha Yarchitayatmane
Kamsavidhvamsine Vamshine Te Namah[3]

Krishna Govinda he Rama Narayana
Shreepate Vasudevajite Shreenidhe;
Achyutanata he Madhavadhokshaja
Dvarakanayaka Draupadee-Rakshakaa[4]

Rakshasakshobhitah Seetayah Shobhito
Dandakaranya Bhoopunyata Karanah;
Lakshmanenanvito Vanariah Sevito
Gastyasampoojito Raghavah Patumam[5]

Dhenukarishtaka Nishtakriddveshinam
Keshiha Kamsahridvamshiko vadakah;
Poothanakopakah Soorajakhelano
Bala-Gopalakah Patu mam Sarvada[6]

Vidyududyotavan Prasphuradvasasam
Pravridambhodavat Prollasavigraham;
Vanyaya Malaya Shobitorasthalam
Lohitanghridvayam Varijaksham Bhaje[7]

Kunchitaih Kuntalairbhrajamananam
Ratnamaulim Lasatkundalam Gandayoh;
Harakeyoorakam Kankanaprojjvalam
Kinkineemanjulam Shyamalam Tam Bhaje[8]

Achyuta syastakam Yah Pathedistadam
Prematah Pratyaham Purusah Saspruham;
Vrittatah Sundaram Kartrivisvambharas
Tasya Vasyo Harirjayate Satvaram[9]

Achyutastakam  Meaning 
(pronounced Acyutāṣṭakam)

I adore Rāmacandra, Who is infallible, Who is Keśava, Rāma, Nārāyaṇa, Kṛṣṇa, Dāmodara, Vāsudeva, Hari, Śrīdhara, Mādhava, Who is dear to Gopikā, and Who is the consort of Jānakī.[1]

I offer a salute with my hands together to Keśava, Who is infallible, Who is the consort of Satyabhāmā (as Kṛṣṇa), Mādhava, Śrīdhara, Who is longed-for by Rādhikā, Who is the temple of Lakṣmī (Indirā), Who is beautiful by thought, Who is dear to Devakī, and Who is dear to all.[2]

Salutations for Viṣṇu, Who conquers everyone, Who holds a conch-shell and a discus, Who is dear to Rukmiṇī (Kṛṣṇa), Who is the consort of Jānakī (Rāma), Who is dear to cowherdesses, Who is offered [in sacrifices], Who is the Ātman (soul), Who destroyed Kaṁsa, and Who plays the flute.[3]

O Kṛṣṇa! O Govinda! O Rāma! O Nārāyaṇa, Who is the consort of Lakṣmī! O Vāsudeva, Who attained the treasure of Lakṣmī! O Acyuta, Who is immeasurable! O Mādhava, O Adhokṣaja, Who is the leader of Dvārikā, and Who is the protector of Draupadī!1[4]

May Rāghava — Who upsetted the demons, Who adorned Sītā, Who is Danḍaka-forest purification cause, Who is accompanied by Lakṣmaṇa, Who was served by monkeys, and Who is revered by Sage Agastya — protect me.[5]

May Baby Gopāla (Kṛṣṇa) — Who was unfavorable to Dhenukāsura and Ariṣṭāsura, Who destroyed Keśī, Who killed Kaṁsa, Who plays the flute, and Who got angry on Pūtanā2 — always protect me.[6]

I sing praise of Acyuta, Who is adorned by a lightening like shining yellow robe, Whose body is resplendent like a cloud of the rainy-season, Who is adorned by a wild-flower garland at His chest, Whose twin-feet are of copper-red color, and Who has lotus-like eyes.[7]

I sing praise of that Śyāma, Whose face is adorned by falling locks of curly tresses, Who has jewels at forehead, Who has shining ear-rings on the cheeks, Who is adorned with a Keyūra (flower) garland, Who has a resplendent bracelet, and Who has a melodious anklet.[8]

Poet: Ādi Śaṅkara
Book: Bṛhatstotraratnākaraḥ
Translation by Animesh Kumar

Achyut, Keshav, Krishna, Narayan, Srimad Shankraracharya krit, Vishnu, अच्युताष्टकम्, श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचित, 


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