सफलता की सीढ़ी है- दृढ़ संकल्प



एक कक्षा में ऐसा विद्यार्थी था, जो मासिक परीक्षा में मुश्किल से उत्तीर्ण होता था। वार्षिक परीक्षा में जब उसे सर्वप्रथम स्थान मिला, तब लोग आश्चर्य चकित रह गए कि इतना अयोग्य विद्यार्थी प्रथम कैसे आया? जरूर इसने नकल की होगी।
इस प्रकरण की छान-बीन करने के लिए कालेज ने एक जांच समिति नियुक्त की। समिति द्वारा उस विद्यार्थी की मौखिक परीक्षा में भी उसने बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए थे। अब पूरे कालेज में उसकी ही चर्चा थी। एक मित्र के पूछने पर अपनी गौरवपूर्ण सफलता का रहस्य बताते हुए उस विद्यार्थी ने कहा- ‘‘मैंने संकल्प कर लिया था कि मैं वार्षिक परीक्षा में अवश्य सर्वप्रथम स्थान प्राप्त करूंगा। मैंने जी लगाकर मेहनत की, कठिनाइयों से निराश नहीं हुआ और मनोयोग पूर्वक अपने अध्ययन में जुटा रहा। मेरी सफलता मेरे दृढ़ संकल्प का ही परिणाम है।’’
वास्तव में सच्चाई यही है निरन्तर प्रयत्न और परिश्रम जिनका मूल मंत्र होता है, उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं होता, यदि हम जीवन में अपना लक्ष्य प्राप्त करना चाहते है, अपनी मंजिल पाना चाहते हैं तो संकल्पशील होना आवश्यक है।


Share:

हनुमान जयंती पर विशेष : राम काज करिबे को आतुर



हनुमान जयंती पर विशेष : राम काज करिबे को आतुर

एक बार भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न तीनों भाइयों ने माता सीता जी से मिलकर विचार किया कि हनुमान जी हमें राम जी की सेवा करने का मौका ही नहीं देते, पूरी सेवा अकेले ही किया करते हैं। अतः अब रामजी की सेवा का पूरा काम हम ही करेंगे, हनुमान जी के लिये कोई भी काम नहीं छोड़ेंगे। ऐसा विचार करके उन्होंने सेवा का पूरा काम आपस में बाँट लिया। जब हनुमान जी सेवा के लिये सामने आये, तब उनको रोक दिया और कहा कि आज से प्रभु की सेवा बाँट दी गयी है, आपके लिये कोई सेवा नहीं है। हनुमान जी ने देखा कि भगवान को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने की सेवा किसी ने भी नहीं ली है। अतः उन्होनें यही सेवा अपने हाथ में ले ली। यह सेवा किसी के ख्याल में नहीं आयी थी। हनुमान जी में प्रभु की सेवा करने की लगन थी। जिसमें लगन होती है, उसको कोई न कोई सेवा मिल ही जाती है। अब हनुमान जी दिन भर राम जी के सामने ही बैठे रहे और उनके मुख की तरफ देखते रहे क्योंकि रामजीको कब जम्हाई आ जाये जब रात हुई तब भी हनुमान जी उसी तरह बैठे रहे। भरत आदि सभी भाइयों ने हनुमान जी से कहा कि रात में आप यहाँ नहीं बैठ सकते, अब आप चले जायॅं। हनुमान जी बोले कैसे चला जाउॅं, रात को न जाने कब राम जी को जम्हाई आ जाय! जब बहुत आग्रह किया, तब हनुमान जी वहाँ से चले गये और छत पर जाकर बैठ गये। वहाँ बैठकर उन्होंने लगातार चुटकी बजाना शुरू का दिया, क्योंकि रामजी को न जाने कब जम्हाई आ जाय! यहाँ रामजी को ऐसी जम्हाई आयी कि उनका मुख खुला ही रह गया, बन्द हुआ ही नहीं! यह देखकर सीता जी बड़ी व्याकुल हो गयीं कि न जाने रामजी को क्या हो गया है! भरत आदि सभी भाई आ गये। वैद्यों को बुलाया गया तो वे भी कुछ कर ही नहीं सके। वशिष्ठ जी आये तो उनको आश्चर्य हुआ कि ऐसी चिन्ता जनक स्थिति में हनुमान जी दिखायी नहीं दे रहे है। और सब तो यहाँ है और हनुमान जी कहाँ है। खोज करने पर हनुमान जी छत पर बैठे चुटकी बजाते हुए मिले। उनको बुलाया गया और वे राम जी के पास आये तो चुटकी बजाना बन्द करते ही राम जी का मुख स्वाभाविक स्थिति में आ गया! अब सबकी समझ में आया कि यह सब लीला हनुमान जी के चुटकी बजाने के कारण ही थी। भगवान ने यह लीला इसलिये की थी कि जैसे भूखे को अन्न देना ही चाहिये, ऐसे ही सेवा के लिये आतुर हनुमान जी को सेवा का अवसर देना चाहिये, बन्द नहीं करना चाहिये। फिर भरत आदि भाइयों ने ऐसा आग्रह नहीं रखा।


Share: