हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 ख के अधीन तलाक का आधार



हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 ख के तहत वे लोग आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर कर सकते है। धारा 13 ख में कहा गया है कि दोनों पार्टी संयुक्त रूप से जिला न्यायालय में शादी को ख़त्म करने की याचिका दे सकते है अगर वे एक साल या उससे अधिक की अवधि के लिए अलग रह रहे है, और ये की वो अब साथ रहने में सक्षम नहीं है और दोनों सहमत है शादी को खत्म करने के लिए राजी है।
इसके बाद अदालत दोनों पार्टी का संयुक्त बयान रिकॉर्ड करती है और विवाद को हल करने के लिए दोनों पार्टियों को 6 महीने का समय देती है, अगर फिर भी दोनों पार्टी निर्धारित समय के भीतर मुद्दों को हल करने में असमर्थ रहते है, तो कोर्ट तलाक की डिक्री को पारित करेगा। तो इसलिए, आपसी सहमति से तलाक में लगभग 6-7 महीने लगते हैं।
सामान्य नियम ये है की आपसी सहमति से तलाक के लिए दोनों पार्टी संयुक्त रूप से आवेदन करती है और उनका संयुक्त बयान अदालत में उनके परिवार और वकीलों की उपस्थिति में दर्ज किया जाता है और जिला न्यायाधीश के हस्ताक्षर होते है। यह प्रक्रिया दो बार दोहराई जाती है है जब संयुक्त याचिका दी जाती है जिसे पहला प्रस्ताव कहते है और 6 महीने बाद, जिससे दूसरा प्रस्ताव कहते है।
इस प्रक्रिया के पूरे होने के बाद, न्यायाधीश दोनों की सहमति से तलाक के लिए सभी मुद्दों पर जैसे बच्चे की निगरानी, स्थायी गुजारा भत्ता और रखरखाव, स्त्रीधन की वापसी और संयुक्त रूप से स्वामित्व वाली संपत्तियों का निपटारा, पर तलाक दिया जाता है।
आपको अपने पति/पत्नी के साथ तलाक की नियमों और शर्तों के संबंध में एक समझौता करार करना चाइए। इसमें बटवारा जैसे स्त्रीधन, स्थायी गुजारा भत्ता और रखरखाव, ये की इस राशि से एक पूर्ण और अंतिम भुगतान हो जाएगा और किसी भी पार्टी दूसरी पार्टी के खिलाफ किसी भी रूप में कोई अन्य अधिकार नहीं होगाऔर इस समझौते में 2 गवाहों द्वारा हस्ताक्षर करवाये जाते है। अगर आपकी पत्नी या पति आपसी तलाक के लिए तैयार नहीं है, तो आप इस आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) के तहत एक याचिका दायर कर सकते हैं। भारत में तलाक के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत निम्नलिखित आधार है:
  • व्यभिचार - शादी के बाहर संभोग सहित यौन संबंध के किसी भी प्रकार में लिप्त का कार्य व्यभिचार के रूप में करार दिया गया है। व्यभिचार को एक आपराधिक दोष के रूप में गिना जाता है और यह स्थापित करने के लिए पर्याप्त सबूत आवश्यक हैं। 1976 में कानून में संशोधन में कहा गया है कि व्यभिचार में से एक एकल अभिनय याचिकाकर्ता को तलाक पाने के लिए पर्याप्त है।
  • क्रूरता - एक पति या पत्नी तलाक का केस दर्ज कर सकते है जब उसे किसी भी प्रकार का मानसिक या शारीरिक चोट पहुची है जिससे जीवन के लिए खतरे का कारण बन सकता है। मानसिक यातना केवल एक घटना पर निर्भर नहीं है बल्कि घटनाओं की श्रृंखला पर आधारित है। भोजन देने से इनकार करना, निरंतर दुर्व्यवहार और दहेज प्राप्ति के लिए गाली देना, विकृत यौन कार्य आदि क्रूरता के अंदर शामिल किए गए हैं।
  • परित्याग - अगर पति या पत्नी में से एक भी कोई कम से कम दो साल की अवधि के लिए अपने साथी को छोड़ देता है, तो परित्याग के आधार पर तलाक ला मामला दायर किया जा सकता हैं।
  • धर्मान्तरण - अगर पति या पत्नी, दोनों में से किसी ने भी अपने आप को किसी अन्य धर्म में धर्मान्तरित किया है, तो दूसरा इस आधार पर तलाक के लिए अपनी याचिका दायर कर सकता है।
  • मानसिक विकार - मानसिक विकार एक तलाक दाखिल करने के लिए आधार है अगर याचिकाकर्ता का साथी असाध्य मानसिक विकार और पागलपन से ग्रस्त है और इसलिए दोनों को एक साथ रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
  • कुष्ठ - एक 'उग्र और असाध्य' कुष्ठ रोग के मामले में, एक याचिका इस आधार पर दायर की जा सकती है।
  • यौन रोग - अगर जीवन साथी को एक गंभीर बीमारी है जो आसानी से संक्रामक है, तो तलाक के लिए याचिका दायर की जा सकती है। एड्स जैसे रोग यौन रोग की बीमारी के अंतर्गत आते है।
  • त्याग - एक पति या पत्नी तलाक के लिए याचिका दायर कर सकते है अगर दूसरा एक धार्मिक आदेश को अपनाने से सभी सांसारिक मामलों का त्याग करता है।
  • जिंदा नहीं मिलना - अगर एक व्यक्ति को सात साल की एक निरंतर अवधि तक जिन्दा देखा या सुना नहीं जाता, तो व्यक्ति को मृत माना जाता है। दूसरा साथी तलाक के याचिका दायर कर सकता है अगर वह पुनर्विवाह में रुचि रखता है।
  • सहवास की बहाली - अगर अदालत ने अलग रहने का आदेश दे दिया है लेकिन फिर भी साथी किसी के साथ रह रहा है तो इसे तलाक के लिए आधार माना जाता है।
भारत में तलाक के लिए निम्नलिखित आधार है जिस पर याचिका केवल पत्नी की ओर से दायर की जा सकती हैं:
  • अगर पति बलात्कार या पाशविकता में लिप्त है तो।
  • अगर शादी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हुई है और पति ने पहली पत्नी के जीवित होने के बावजूद दूसरी औरत से शादी की है, तो पहली पत्नी तलाक के लिए मांग कर सकती है।
  • एक महिला तलाक के लिए याचिका दायर कर सकती है अगर उसकी शादी पंद्रह वर्ष की उम्र से पहले कर दी गयी हो तो और वो शादी को त्याग सकती है जब तक उसकी उम्र अठारह साल नहीं हो जाती।
  • अगर एक वर्ष तक पति के साथ कोई सहवास है और पति अदालत के पत्नी के रखरखाव के फैसले की अनदेखी करता है, तो पत्नी तलाक के लिए याचिका दे सकती है।


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महिला मामले क्या कहते हैं मानवाधिकार कानून



 Women's Human Rights

 Women's Human Rights

पूछताछ के दौरान अधिकार

  1. आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-160 के अंतर्गत किसी भी महिला को पूछताछ के लिए थाने या अन्य किसी स्थान पर नहीं बुलाया जाएगा।
  2. उनके बयान उनके घर पर ही परिवार के जिम्मेदार सदस्यों के सामने ही लिए जाएंगे।
  3. रात को किसी भी महिला को थाने में बुलाकर पूछताछ नहीं करनी चाहिए। बहुत जरूरी हो तो परिवार के सदस्यों या 5 पड़ोसियों के सामने उनसे पूछताछ की जानी चाहिए।
  4. पूछताछ के दौरान शिष्ट शब्दों का प्रयोग किया जाए।
गिरफ्तारी के दौरान अधिकार
  1. महिला अपनी गिरफ्तारी का कारण पूछ सकती है।
  2. गिरफ्तारी के समय महिला को हथकड़ी नहीं लगाई जाएगी।
  3. महिला की गिरफ्तारी महिला पुलिस द्वारा ही होनी चाहिए।
  4. सी.आर.पी.सी. की धारा-47(2) के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति को ऐसे रिहायशी मकान से गिरफ्तार करना हो, जिसकी मालकिन कोई महिला हो तो पुलिस को उस मकान में घुसने से पहले उस औरत को बाहर आने का आदेश देना होगा और बाहर आने में उसे हर संभव सहायता दी जाएगी।
  5. यदि रात में महिला अपराधी के भगाने का खतरा हो तो सुबह तक उसे उसके घर में ही नजरबंद करके रखा जाना चाहिए। सूर्यास्त के बाद किसी महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
  6. गिरफ्तारी के 24 घंटों के भीतर महिला को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना होगा।
  7. गिरफ्तारी के समय महिला के किसी रिश्तेदार या मित्र को उसके साथ थाने आने दिया जाएगा।
थाने में महिला अधिकार
  1. गिरफ्तारी के बाद महिला को केवल महिलाओं के लिए बने लॉकअप में ही रखा जाएगा या फिर महिला लॉकअप वाले थाने में भेज दिया जाएगा।
  2. पुलिस द्वारा मारे-पीटे जाने या दुर्व्यवहार किए जाने पर महिला द्वारा मजिस्ट्रेट से डॉक्टरी जांच की मांग की जा सकती है।
  3. सी.आर.पी.सी. की धारा-51 के अनुसार जब कभी किसी स्त्री को गिरफ्तार किया जाता है और उसे हवालात में बंद करने का मौका आता है तो उसकी तलाशी किसी अन्य स्त्री द्वारा शिष्टता का पालन करते हुए ली जाएगी।
तलाशी के दौरान अधिकार
  1. धारा-47(2)के अनुसार महिला की तलाशी केवल दूसरी महिला द्वारा ही शालीन तरीके से ली जाएगी। यदि महिला चाहे तो तलाशी लेने वाली महिला पुलिसकर्मी की तलाशी पहले ले सकती है। महिला की तलाशी के दौरान स्त्री के सम्मान को बनाए रखा जाएगा। सी.आर.पी.सी. की धारा-1000 में भी ऐसा ही प्रावधान है।
  2. जांच के दौरान अधिकार
  3. सी.आर.पी.सी. की धारा-53(2) के अंतर्गत यदि महिला की डॉक्टरी जांच करनी पड़े तो वह जांच केवल महिला डॉक्टर द्वारा ही की जाएगी।
  4. जांच रिपोर्ट के लिए अस्पताल ले जाते समय या अदालत में पेश करने के लिए ले जाते समय महिला सिपाही का महिला के साथ होना जरुरी है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) दर्ज कराते समय अधिकार
  1. पुलिस को निर्देश है कि वह किसी भी महिला की एफ.आई.दर्ज करें।
  2. रिपोर्ट दर्ज कराते समय महिला किसी मित्र या रिश्तेदार को साथ ले जाएं।
  3. रिपोर्ट को स्वयं पढ़ने या किसी अन्य से पढ़वाने के बाद ही महिला उस पर हस्ताक्षर करें।
  4. उस रिपोर्ट की एक प्रति उस महिला को दी जाए।
  5. पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न किए जाने पर महिला वरिष्ठ पुलिस अधिकारी या स्थानीय मजिस्ट्रेट से मदद की मांग कर सकती है।
  6. धारा-437 के अंतर्गत किसी गैर जमानत मामले में साधारणयता जमानत नहीं ली जाती है, लेकिन महिलाओं के प्रति नरम रुख अपनाते हुए उन्हें इन मामलों में भी जमानत दिए जाने का प्रावधान है।
  7. किसी महिला की विवाह के बाद सात वर्ष के भीतर संदिग्ध अवस्था में मृत्यु होने पर धारा-174(3) के अंतर्गत उसका पोस्टमार्टम प्राधिकृञ्त सर्जन द्वारा तथा जांच एस.डी.एम. द्वारा की जानी अनिवार्य है।
  8. धारा-416 के अंतर्गत गर्भवती महिला को मृत्युदंड से छूट दी गई है। 

 मानवाधिकार नियम के तहत निम्नलिखित कारणों के आधार पर भेदभाव करना गैर-कानूनी माना जाता है

  1. लिंग - जिसमें गर्भधारण और शिशु-जन्म शामिल है; तथा यौनान्तरण-लिंगी (transgender) और अंतर लिंगी (intersex) व्यक्तियों के प्रति उनके लिंग या लैंगिक-पहचान के कारण भेदभाव शामिल है।
  2. वैवाहिक स्थिति – जिसमें विच्छेदित विवाह और सिविल यूनियन शामिल है।
  3. धार्मिक विचारणा – परंपरागत या मुख्य-धारा धर्मों तक सीमित नहीं है।
  4. नैतिक विचारणा – किसी प्रकार का धार्मिक विश्वास न रखना।
  5. त्वचा का रंग, नस्ल, या प्रजातीय या राष्ट्रीय मूल – जिसमें राष्ट्रीयता या नागरिकता शामिल है।
  6. विकलांगता – जिसमें शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या मनोवैज्ञानिक विकलांगता या बीमारी शामिल है।
  7. आयु – 16 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों को आयु के आधार पर भेदभाव से संरक्षण प्राप्त है।
  8. विचारणा – जिसमें कोई भी राजनैतिक विचारणा न रखना शामिल है।
  9. रोज़गार की स्थिति – बेरोज़गार होना, कोई लाभ प्राप्त करना या ACC पर निर्भर होना। इसमें कार्यरत होना या राष्ट्रीय पेंशन प्राप्त करना शामिल नहीं है।
  10. परिवारिक स्थिति – जिसमें बच्चों या अन्य आश्रितों के लिए जिम्मेदार न होना शामिल है।
  11. लैंगिक रुझान – विषमलिंगी, समलिंगी, स्त्री-समलिंगी (lesbian) या उभयलिंगी (bisexual) होना।
  12. ये आधार किसी व्यक्ति के पहले के समय, वर्तमान समय या मान्य परिस्थितियों में लागू होते हैं। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति के साथ वर्तमान में हुए, पहले कभी हुए या किसी अन्य के द्वारा अभिकल्पित मानसिक रोग के आधार पर भेदभाव-पूर्ण व्यवहार करना गैर-कानूनी होता है।li>


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स्वाध्याय के लिए सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक विचारक एवं पुस्तकों



स्वाध्याय के लिए हमेशा सत्साहित्य का ही अध्ययन करना चाहिए। इसके लिए हमारे प्राचीन ऋषि – मुनियों का ग्रन्थ बहुत ही उपयोगी है किन्तु सभी संस्कृत में है तथा जिनका अनुवाद हुआ वह भी संस्कृत स्तर का ही है अतः उन्हें हर किसी के लिए समझ पाना थोड़ा कठिन होता है । फिर भी जो कोई भी इन ग्रंथो से स्वाध्याय करना चाहे कर सकता है । इनमें वेद, उपनिषद, गीता, योगवाशिष्ठ, रामायण आदि मुख्य है । जिन्हें इन्हें पढ़ने की सुविधा ना हो वह निम्नलिखित लेखकों के साहित्य का अध्ययन कर सकते है ।
 
  • महर्षि दयानंद – दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फ़रवरी टंकारा में सन् 1824 में मोरबी (मुम्बई की मोरवी रियासत) के पास काठियावाड़ क्षेत्र (जिला राजकोट), गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी और माँ का नाम यशोदाबाई था। उनके पिता एक कर-कलेक्टर होने के साथ ब्राह्मण परिवार के एक अमीर, समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति थे। दयानंद सरस्वती का असली नाम मूलशंकर था और उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता। आगे चलकर एक पण्डित बनने के लिए वे संस्कृत, वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए। इनकी पुस्तके आपको आर्य समाज की किसी भी वेबसाइट पर मुफ्त में डाउनलोड करने अथवा पढ़ने के लिए मिल जाएगी। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कई धार्मिक व सामाजिक पुस्तकें अपनी जीवन काल में लिखीं। प्रारम्भिक पुस्तकें संस्कृत में थीं, किन्तु समय के साथ उन्होंने कई पुस्तकों को आर्यभाषा (हिन्दी) में भी लिखा, क्योंकि आर्यभाषा की पहुँच संस्कृत से अधिक थी। हिन्दी को उन्होंने 'आर्यभाषा' का नाम दिया था। उत्तम लेखन के लिए आर्यभाषा का प्रयोग करने वाले स्वामी दयानन्द अग्रणी व प्रारम्भिक व्यक्ति थे। स्वामी दयानन्द सरस्वती की मुख्य कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
    • सत्यार्थप्रकाश
    • ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका
    • ऋग्वेद भाष्य
    • यजुर्वेद भाष्य
    • चतुर्वेदविषयसूची
    • संस्कारविधि
    • पञ्चमहायज्ञविधि
    • आर्याभिविनय
    • गोकरुणानिधि
    • आर्योद्देश्यरत्नमाला
    • भ्रान्तिनिवारण
    • अष्टाध्यायीभाष्य
    • वेदाङ्गप्रकाश
    • संस्कृतवाक्यप्रबोध
    • व्यवहारभानु
  • स्वामी विवेकानंद – स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।स्वामी विवेकानंद की बहुत सारी पुस्तके Internet archive पर उपलब्ध है । आप वहाँ से डाउनलोड कर सकते है।
  • स्वामी रामतीर्थ – स्वामी रामतीर्थ का जन्म सन् 1873 की दीपावली के दिन पंजाब के गुजरावालां जिले मुरारीवाला ग्राम में पण्डित हीरानन्द गोस्वामी के एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके बचपन का नाम तीर्थराम था। विद्यार्थी जीवन में इन्होंने अनेक कष्टों का सामना किया। भूख और आर्थिक बदहाली के बीच भी उन्होंने अपनी माध्यमिक और फिर उच्च शिक्षा पूरी की। पिता ने बाल्यावस्था में ही उनका विवाह भी कर दिया था। वे उच्च शिक्षा के लिए लाहौर चले गए। सन् 1891 में पंजाब विश्वविद्यालय की बी० ए० परीक्षा में प्रान्त भर में सर्वप्रथम आये। इसके लिए इन्हें 90 रुपये मासिक की छात्रवृत्ति भी मिली। अपने अत्यंत प्रिय विषय गणित में सर्वोच्च अंकों से एम० ए० उत्तीर्ण कर वे उसी कालेज में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हो गए।[3] वे अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा निर्धन छात्रों के अध्ययन के लिये दे देते थे। इनका रहन-सहन बहुत ही साधारण था। लाहौर में ही उन्हें स्वामी विवेकानन्द के प्रवचन सुनने तथा सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिला। उस समय वे पंजाब की सनातन धर्म सभा से जुड़े हुए थे।  तुलसी, सूर, नानक, आदि भारतीय सन्त; शम्स तबरेज, मौलाना रूसी आदि सूफी सन्त; गीता, उपनिषद्, षड्दर्शन, योगवासिष्ठ आदि के साथ ही पाश्चात्य विचारवादी और यथार्थवादी दर्शनशास्त्र, तथा इमर्सन, वाल्ट ह्विटमैन, थोरो, हक्सले, डार्विन आदि मनीषियों का साहित्य इन्होंने हृदयंगम किया था। इन्होंने अद्वैत वेदांत का अध्ययन और मनन प्रारम्भ किया और अद्वैतनिष्ठा बलवती होते ही उर्दू में एक मासिक-पत्र "अलिफ" निकाला। इसी बीच उन पर दो महात्माओं का विशेष प्रभाव पड़ा - द्वारकापीठ के तत्कालीन शंकराचार्य और स्वामी विवेकानन्द।वेदांत पर इनकी पुस्तके बहुत ही उपयोगी है । यह भी आप Internet archive से प्राप्त कर सकते है।
  • महर्षि अरविन्द – राष्ट्रीय आन्दोलन में लगे हुए विद्यार्थियों को शैक्षिक सुविधाएं प्रदान करने हेतु कलकत्ता में एक राष्ट्रीय महाविद्यालय स्थापित किया गया। श्री अरविन्द को 150 रु प्रति माह के वेतन पर इस कॉलेज का प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया। इस अवसर का लाभ उठाते हुए श्री अरविन्द ने 'राष्ट्रीय शिक्षा' की संकल्पना का विकास किया तथा अपने शिक्षा-दर्शन की आधारशिला रखी। यही कॉलेज आगे चलकर जादवपुर विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। प्रधानाचार्य का कार्य करते हुए श्री अरविन्द अपने लेखन तथा भाषणों द्वारा देशवासियों को प्रेरणा देते हुए राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेते रहे। 1908 ई में राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के कारण श्री अरविन्द गिरफ्तार हुए व जेल में रहे। उन पर मुकदमा चलाया गया तथा अदालत में दैवयोग से उनके मुकदमे की सुनवाई सैशन जज सी पी बीचक्राफ्ट ने की जो अरविन्द के ICS के सहपाठी रह चुके थे तथा अरविन्द की कुशाग्र बुद्धि से प्रभावित थे। अरविन्द के वकील चितरंजन दास ने जज बीचक्राफ्ट से कहा- "जब आप अरविन्द की बुद्धि से प्रभावित हैं तो यह कैसे संभव है कि अरविन्द किसी षडयन्त्र से भाग ले सकते हैं?" बीच क्राफ्ट ने अरविन्द को जेल से मुक्त कर दिया।महर्षि अरविन्द की पुस्तकों के संदर्भ में हम कुछ निश्चितता से कह नहीं सकते क्योंकि इनकी पुस्तके बहुत कम मिलती है । google search से आपको मिल जाएगी।
  • परमहंस योगानंद – परमहंस योगानन्द बीसवीं सदी के एक आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को क्रिया योग उपदेश दिया तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया। योगानंद के अनुसार क्रिया योग ईश्वर से साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है, जिसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। योगानन्द प्रथम भारतीय गुरु थे जिन्होने अपने जीवन के कार्य को पश्चिम में किया। योगानन्द ने 1920 में अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। संपूर्ण अमेरिका में उन्होंने अनेक यात्रायें की। उन्होंने अपना जीवन व्याख्यान देने, लेखन तथा निरन्तर विश्व व्यापी कार्य को दिशा देने में लगाया। उनकी उत्कृष्ट आध्यात्मिक कृति योगी कथामृत (An Autobiography of a Yogi) की लाखों प्रतिया बिकीं और सर्वदा बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा रही हँ।इनकी पुस्तकें स्वाध्याय के लिए बहुत ही उपयोगी है । क्योंकि इनकी पुस्तकों में शास्त्रीय बातें कम और जीवन के अनुभव अधिक हुआ करते है ।
  • स्वामी शिवानन्द – स्वामी शिवानन्द सरस्वती वेदान्त के महान आचार्य और सनातन धर्म के विख्यात नेता थे। उनका जन्म तमिलनाडु में हुआ पर संन्यास के पश्चात उन्होंने जीवन ऋषिकेश में व्यतीत किया। स्वामी शिवानन्द का जन्म अप्यायार दीक्षित वंश में 8 सितम्वर 1887 को हुआ था। उन्होने बचपन में ही वेदान्त की अध्ययन और अभ्यास किया। इसके वाद उन्होने चिकित्साविज्ञान का अध्ययन किया। तत्पश्चात उन्होने मलाया में डाक्टर के रूप में लोगों की सेवा की। सन् 1924 में चिकित्सा सेवा का त्याग करने के पश्चात ऋषिकेष में बस गये और कठिन आध्यात्मिक साधना की। सन् 1932 में उन्होने शिवानन्दाश्रम और 1936 में दिव्य जीवन संघ की स्थापना की। अध्यात्म, दर्शन और योग पर उन्होने लगभग 300 पुस्तकों की रचना की। 14 जुलाई 1963 को वे महासमाधि लाभ किये।स्वामी शिवानन्द की सभी पुस्तके आप DSSV की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते है ।
  • पंडित श्री राम शर्मा आचार्य – पंडित श्री राम शर्मा आचार्य की पुस्तके सबसे अच्छी है क्योंकि इन्होने जीवन के हर पहलु पर ३००० से अधिक पुस्तके लिखी है । इनकी पुस्तकों का मुख्य उद्देश्य ही मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास और विचारों का परिवर्तन है । गायत्री परिवार की अखण्डज्योति पत्रिका १९४० से आज भी नवीन साधकों के लिए संजीवनी का कार्य कर रही है । पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य भारत के एक युगदृष्टा मनीषी थे जिन्होने अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना की। उनने अपना जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। उन्होने आधुनिक व प्राचीन विज्ञान व धर्म का समन्वय करके आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया ताकि वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना किया जा सके। उनका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व दृष्टा का समन्वित रूप था।
    • पुस्तकें
      •     अध्यात्म एवं संस्कृति
      •     गायत्री और यज्ञ
      •     विचार क्रांति
      •     व्यक्ति निर्माण
      •     परिवार निर्माण
      •     समाज निर्माण
      •     युग निर्माण
      •     वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
      •     बाल निर्माण
      •     वेद पुराण एवम् दर्शन
      •     प्रेरणाप्रद कथा-गाथाएँ
      •     स्वास्थ्य और आयुर्वेद
    • आर्श वाङ्मय (समग्र साहित्य)
      •     भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व
      •     समस्त विश्व को भारत के अजस्र अनुदान
      •     गायत्री महाविद्या
      •     यज्ञ का ज्ञान-विज्ञान
      •     युग परिवर्तन कब और कैसे
      •     स्वयं में देवत्व का जागरण
      •     समग्र स्वास्थ्य
      •     यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया
      •     ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है?
      •     निरोग जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र
      •     जीवेम शरदः शतम्
      •     विवाहोन्माद : समस्या और समाधान
    • क्रांतिधर्मी साहित्य
      •     शिक्षा ही नहीं विद्या भी
      •     भाव संवेदनाओं की गंगोत्री
      •     संजीवनी विद्या का विस्तार
      •     आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना
      •     जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
      •     नवयुग का मत्स्यावतार
      •     इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण
      •     महिला जागृति अभियान
      •     इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १
      •     इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग २
      •     युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग १
      •     युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग २
      •     सतयुग की वापसी
      •     परिवर्तन के महान् क्षण
      •     महाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण
      •     प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
      •     नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी
      •     समस्याएँ आज की समाधान कल के
      •     मन: स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
      •     स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा
      •     जीवन देवता की साधना-आराधना
      •     समयदान ही युग धर्म
      •     युग की माँग प्रतिभा परिष्कार


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