देवी भगवती को चढ़ने वाले पत्र पुष्पों



आज हम देवी भगवती को चढ़ने वाले पत्र पुष्पों के बारे में बताएगें। भगवान शंकर की पूजा में जो पत्र पुष्प विहित है, वे सभी भगवती गौरी को प्रिय है अपामार्ग उन्हें विशष प्रिय है। भगवान शंकर पर चढाने के लिए जिन फूलों का निषेध है तथा जिन फूलों का नाम नहीं लिया गया है वे भी भगवती  पर चढ़ाये जाते है। जितने लाल फूल है वे सभी भगवती को अभीष्ट है तथा समस्त सुगन्धित श्वेत फूल भी भगवती को विशेष प्रिय है।



बेला, चमेली, केसर, श्वेत और लाल फूल, श्वेत कमल, पलाश, तगर, अशोक, चंपा, मौल्शिरी, मंदार, कुंद लोध, कनेर, आक, शीशम, और अपराजिता( शंखपुष्पी)आदि के फूलों से देवी की भी पूजा की जाती है।

इन फूलों में आक और मंदार इन दोनों फूलों का निषेध भी मिलता है। अतः ये दोनों विहित भी है और प्रतिषिद्ध भी हैं। जब अन्य विहित फूल न मिलें तब इन दोनों का उपयोग करें। दुर्गा से भिन्न देवियों पर इन दोनों को न चढ़ाएं। किंतु दुर्गा जी पर चढ़ाया जा सकता है, क्यों कि पूजा में इन दोनों का विधान हैं।

शमी, अशोक, कर्णिकार( कनियार या अमलतास), गूमा, दोपहरिया, अगस्त्य, मदन, सिंदुवार, शल्लकी, माधवी आदि लताएँ, कुश की मंजरियाँ, बिल्वपत्र, केवड़ा, कदम्ब, भटकटैया, कमल, ये फूल भगवती को प्रिय है।

देवी के लिए विहीत-प्रतिषिद्ध
आक और मदार की तरह दूर्वा, तिलक, मालती, तुलसी भंगरैया और तमाल विहीत-प्रतिषिद्ध हैं अर्थात ये शास्त्र से विहित भी हैं और निषिद्ध भी हैं। विहित-प्रतिषिद्ध के सम्बन्ध में तत्व सागर संहिता का कथन है कि जब शास्त्रों से विहित फूल न मिल पायें तो विहीत-प्रतिषिद्ध फूलों से पूजा कर लेनी चाहियें




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International Boarder Lines



विभिन्न देशों की अंतराष्ट्रीय सीमा रेखाओं के नाम
 
  1. 17 वीं समानांतर रेखा (17th Parallel), किसके बीच – उत्तरी वियतनाम तथा द. वियतनाम, वियतनाम के एकीकरण के पहले यह देश को दो भागों में बांटती थी।
  2. 24 वीं समानांतर रेखा (24th Parallel), किसके बीच – भारत तथा पाकिस्तान, पाकिस्तान के अनुसार कच्छ क्षेत्र का यह रेखा सही निर्धारण करती है लेकिन भारत इस रेखा को स्वीकार नहीं करता है।
  3. 38 वीं समानांतर रेखा (38th Parallel), किसके बीच – उत्तर कोरिया तथा दक्षिण कोरिया, कोरिया को दो भागों में बांटती है।
  4. 49 वीं समानांतर रेखा (49th Parallel), किसके बीच – अमेरिका तथा कनाडा, अमेरिका तथा कनाडा को दो भागों में बांटती है।
  5. ओडरनास रेखा (Order-Neisse Line), किसके बीच – जर्मनी तथा पोलैंड, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद निर्धारित की गई।
  6. डूरंड रेखा (Durand Line), किसके बीच – पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान, 1886 में सर मार्टिमर डूरंड द्वारा निर्धारित।
  7. मैकमाहोन रेखा (Macmahon Line), किसके बीच – भारत तथा चीन , 1120 किमी. लंबी यह रेखा सर हेनरी मैकमोहन द्वारा निर्धारित की गई थी। लेकिन चीन इसे स्वीकार नहीं करता।
  8. मैगिनाट रेखा (Maginot Line), किसके बीच – जर्मनी तथा फ्रांस, जर्मनी के आक्रमण से बचाव के लिए फ्रांस ने यह रेखा बनाई थी।
  9. रेडक्लिफ रेखा (Radcliffe Line), किसके बीच – भारत तथा पाकिस्तान, 1947 में भारत-पाकिस्तान सीमा आयोग के अध्यक्ष सर सायरिल रेडक्लिफ द्वारा निर्धारित।
  10. सीजफ्राइड रेखा (Seigfrid Line), किसके बीच – जर्मनी तथा फ्रांस, जर्मनी ने यह रेखा बनाई थी
  11. हिंडनबर्ग रेखा (Hindenburg Line), किसके बीच – जर्मनी तथा पोलैंड, प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की सेना यहीं से वापस लौटी थी।


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Tribes Of India



भारत की प्रमुख जनजातियाँ

भारत की प्रमुख जनजातियाँ - भारत में जनजातीय समुदाय के लोगों की काफी बड़ी संख्या है और देश में 50 से भी अधिक प्रमुख जनजातीय समुदाय हैं। देश में रहने वाले जनजातीय समुदाय के लोग नेग्रीटो, ऑस्ट्रेलॉयड और मंगोलॉयड प्रजातियों से सम्बद्ध हैं। देश की प्रमुख जनजातियां निम्नलिखित हैं-
  1. आंध्र प्रदेश - चेन्चू, कोचा, गुड़ावा, जटापा, कोंडा डोरस, कोंडा कपूर, कोंडा रेड्डी, खोंड,सुगेलिस, लम्बाडिस, येलडिस, येरुकुलास, भील, गोंड, कोलम, प्रधान, बाल्मिक
  2. असम व नगालैंड - बोडो, डिमसा गारो, खासी, कुकी, मिजो, मिकिर, नगा, अबोर, डाफला, मिशमिस, अपतनिस, सिंधो, अंगामी
  3. झारखण्ड - संथाल, असुर, बैगा, बन्जारा, बिरहोर, गोंड, हो, खरिया, खोंड, मुंडा, कोरवा, भूमिज, मल पहाडिय़ा, सोरिया पहाडिय़ा, बिझिया, चेरू लोहरा, उरांव, खरवार, कोल, भील
  4. महाराष्ट्र - भील, गोंड, अगरिया, असुरा, भारिया, कोया, वर्ली, कोली, डुका बैगा, गडावास, कामर, खडिया, खोंडा, कोल, कोलम, कोर्कू, कोरबा, मुंडा, उरांव, प्रधान, बघरी।
  5. पश्चिम बंगाल - होस, कोरा, मुंडा, उरांव, भूमिज, संथाल, गेरो, लेप्चा, असुर, बैगा, बंजारा, भील, गोंड, बिरहोर, खोंड, कोरबा, लोहरा।
  6. हिमाचल प्रदेश - गद्दी, गुर्जर, लाहौल, लांबा, पंगवाला, किन्नौरी, बकरायल।
  7. मणिपुर - कुकी, अंगामी, मिजो, पुरुम, सीमा।
  8. मेघालय - खासी, जयन्तिया, गारो।
  9. त्रिपुरा - लुशाई, माग, हलम, खशिया, भूटिया, मुंडा, संथाल, भील, जमनिया, रियांग, उचाई।
  10. कश्मीर - गुर्जर
  11. गुजरात - कथोड़ी, सिद्दीस, कोलघा, कोटवलिया, पाधर, टोडिय़ा, बदाली, पटेलिया।
  12. उत्तर प्रदेश - बुक्सा, थारू, माहगीर, शोर्का, खरवार, थारू, राजी, जॉनसारी।
  13. उत्तरांचल - भोटिया, जौनसारी, राजी।
  14. केरल - कडार, इरुला, मुथुवन, कनिक्कर, मलनकुरावन, मलरारायन, मलावेतन, मलायन, मन्नान, उल्लातन, यूराली, विशावन, अर्नादन, कहुर्नाकन, कोरागा, कोटा, कुरियियान,कुरुमान, पनियां, पुलायन, मल्लार, कुरुम्बा।
  15. छत्तीसगढ़ - कोरकू, भील, बैगा, गोंड, अगरिया, भारिया, कोरबा, कोल, उरांव, प्रधान, नगेशिया, हल्वा, भतरा, माडिया, सहरिया, कमार, कंवर।
  16. तमिलनाडु - टोडा, कडार, इकला, कोटा, अडयान, अरनदान, कुट्टनायक, कोराग, कुरिचियान, मासेर, कुरुम्बा, कुरुमान, मुथुवान, पनियां, थुलया, मलयाली, इरावल्लन, कनिक्कर,मन्नान, उरासिल, विशावन, ईरुला।
  17. कर्नाटक - गौडालू, हक्की, पिक्की, इरुगा, जेनु, कुरुव, मलाईकुड, भील, गोंड, टोडा, वर्ली, चेन्चू, कोया, अनार्दन, येरवा, होलेया, कोरमा।
  18. उड़ीसा - बैगा, बंजारा, बड़होर, चेंचू, गड़ाबा, गोंड, होस, जटायु, जुआंग, खरिया, कोल, खोंड, कोया, उरांव, संथाल, सओरा, मुन्डुप्पतू।
  19. पंजाब - गद्दी, स्वागंला, भोट।
  20. राजस्थान - मीणा, भील, गरसिया, सहरिया, सांसी, दमोर, मेव, रावत, मेरात, कोली।
  21. अंडमान-निकोबार द्वीप समूह -  औंगी आरबा, उत्तरी सेन्टीनली, अंडमानी, निकोबारी, शोपन।
  22. अरुणाचल प्रदेश - अबोर, अक्का, अपटामिस, बर्मास, डफला, गालोंग, गोम्बा, काम्पती, खोभा मिसमी, सिगंपो, सिरडुकपेन।


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भगवान शंकर की पूजा के लिए विहित और निषिद्ध पुष्प और पत्र



भगवान शिव को ही महादेव, भोलेनाथ, महेश, रुद्र, नीलकंठ शंकर


भगवान शिव को ही महादेव, भोलेनाथ, महेश, रुद्र, नीलकंठ और शंकर के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हीं का नाम भैरव है। वैदिक ऋचाओं में इन्हीं का नाम रुद्र है।  भगवान शिव को भोले भंडारी कहा जाता है। अगर कोई इन्हें सच्चे मन से एक लोटा जल ही चढ़ा दें तो भी वो प्रसन्न होकर उसे सब कुछ दे डालते हैं।
ऐसे परम दयालू देवादि-देव महादेव भगवान शिव पर फूल चढ़ाने का बहुत अधिक महत्व है।

तपःशील गुणोपेते विप्रे वेदस्य पारगे।
दत्त्वा सुवर्णस्य शतं तत्फलं कुसुमस्य च।   वीरमित्रोदय )

एक तप शील सर्व गुण संपन्न और वेदों में निष्णात किसी ब्राह्मण को सौ सुवर्ण दान करने पर जो फल प्राप्त होता है, वह भगवान शंकर पर सौ फूल चढ़ा देने से प्राप्त हो जाता है ।

कौन से पत्र-पुष्प शिव के लिए विहित है और कौन से निषिद्ध इसकी जानकारी अपेक्षित है, आज हम आपको इस बारे में बताएंगे।

भगवान विष्णु के लिए जो पत्र और पुष्प विहित है वे सब भगवान शंकर पर भी चढ़ाये जा सकते है केवल केतकी और केवड़े के पुष्प का निषेध है। -

विष्णोर्यानीह चोक्तानि पुष्पाणि च पत्रिकाः ।
केतकीपुष्पमेकं तु विना तान्यखिळान्यपि ।
शस्तान्येव सुरश्रेष्ठ शंकराराधनाय  हि ।।  (नारद )

शास्त्रों में भगवान शंकर की पूजा में मौलसिरी अर्थात बक/बकुल के पुष्प को अधिक महत्व दिया है -
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं शिवं स्पृष्ट्वॆदमुच्यते।
बकपुष्पेण चैकेन शैवमर्चनमुत्तमं।।  -  (वीरमित्रोदय )

आचारेन्दु में ‘बक’ का अर्थ ‘बकुल’ से किया गया है और ‘बकुल’ का अर्थ है ‘मौलसिरी’।  वीरमित्रोदय के उपरोक्त श्लोक में मौलसिरी का विधान है लेकिन अन्य कथन  ‘बकुलैर्नार्चयेद् दॆवं’ में निषेध किया गया है जो विरोधाभासी प्रतीत होता है। काल विशेष के द्वारा इस विरोधाभास का निवारण हो जाता है - ‘सायाह्ने बकुलं शुभम्’,  अर्थात मौलसिरी को दिन के समय चढ़ाने का निषेध है इसे सायं काल चढ़ाना शुभ  है।

भविष्य पुराण में भगवान शंकर पर चढ़ाने योग्य जिन फूलों को वर्णन किया गया है वे इस प्रकार है –
करवीर अर्थात कनेर, मौलसिरी(बक/बकुल), धतूरा, बड़ी कटेरी, कुरची या कुरैया,  मन्दार यानि आक, अपराजिता, शमी का फूल, शंखपुष्पी, चिचिड़ा(अपामार्ग), कमल,चमेली, नागचम्पा या नागकेसर, चम्पा, खस, तगर,  किंकिरात यानि कटसरैया, गूमा, शीशम, गूलर,  बेला, पलाश जिसे ढाँख के नाम से भी जाता है, बेलपत्र, कुङ्कुम अर्थात केसर, नील कमल और लाल कमल।

वीरमित्रोदय में बतलाया गया है की समस्त फूलों की जातियों में सबसे बढ़कर नील कमल होता है

जल और थल में उत्पन्न होने वाले जितने भी सुगन्धित फूल है वे सभी भगवान शंकर को प्रिय हैं

शास्त्रों में फूलों को चढ़ाने से मिलने वाले फल का तारतम्य भी बताया गया है। जो इस प्रकार है-

दस सुवर्ण माप के बराबर सुवर्ण दान करने का फल एक आक के पुष्प को चढ़ाने से मिल जाता है। एक हजार आक के फूलों को चढ़ाने का जो फल होता है मात्र एक कनेर का पुष्प चढ़ाने से मिल जाता है और एक हजार कनेर पुष्पों का फल एक बिल्व पत्र चढ़ाने से मिल जाता है। एक हजार बिल्व पत्रों का फल एक गूमा फूल चढ़ाने से मिल जाता है इसी तरह एक हजार गूमा से बढ़कर एक चिचिड़ा और हजार चिचिडों से बढ़कर एक कुश का फूल हजार कुश पुष्पों से बढ़कर एक शमी का पत्ता हजार शमी के पत्तों से बढ़ कर एक नील कमल, हजार नील कमल से बढ़कर एक धतूरा और हजार धतूरों से बढ़कर एक शमी का फूल होता है। 
 
 
 
 
 
 
 

शिवार्चन में निषिद्ध पत्र पुष्प 
भगवन शंकर पर जो फूल नहीं चढ़ाने चाहिए वे इस प्रकार है - सारहीन पुष्प, कदम्ब, शिरीष, तिन्तिणी, बकुल (मौलसिरी), कोष्ठ, कैथ, गाजर, बहेड़ा, कपास, गंभारी, पत्रकंटक, सेमल, अनार, धव, केवड़ा और केतकी, बसंत ऋतु में खिलने वाला कंद, कुंद, जूही, मदन्ति, शिरीष सर्ज और दोपहरिया के फूल भगवान  शंकर पर नहीं चढ़ाने चाहिए। केवडा की दो प्रजातियाँ होती है - सफेद और पीली। सफेद जाति को केवड़ा और पीली को केतकी कहते है।


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भगवान गणेश की पूजा में कौन से पुष्प और पत्र का प्रयोग करें?



ॐ श्री गणेशाय नमः
भगवान गणेश की पूजा में कौन से पुष्प और पत्र का प्रयोग करें? गणेशजी की उपासना से व्यक्ति का सुख-सौभाग्य बढ़ता है और सभी तरह की रुकावटें दूर होती हैं।

हिन्दू संस्कृति में, भगवान श्री गणेश जी को, प्रथम पूज्य का स्थान दिया गया है। प्रत्येक शुभ कार्य में सबसे पहले, भगवान गणेश की ही पूजा की जाती है। जब किसी लोक संस्कार या शुभ  कार्य के लिए 'श्री गणेश' का नाम शुभआरम्भ का पर्याय सूचक है।

देवता भी अपने कार्यों को विघ्न रहित पूरा करने के लिए गणेश जी की अर्चना सबसे पहले करते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि देवगणों ने स्वयं उनकी अग्र पूजा का विधान बनाया है।

सनातन शास्त्रों में भगवान गणेश जी को, विघ्नहर्ता अर्थात सभी तरह की परेशानियों को खत्म करने वाला बताया गया है। पुराणों में गणेशजी की उपासना शनि सहित सारे ग्रह दोषों को दूर करने वाली भी बताई गई हैं। हर बुधवार के शुभ दिन गणेशजी की उपासना से व्यक्ति का सुख-सौभाग्य बढ़ता है और सभी तरह की रुकावटें दूर होती हैं।

गणपति पूजन से आपके हर कार्य सफलता पूर्वक हो इसलिए हम गणपति को चढने वाले पत्र पुष्प के बारे में जानकारी देना चाहते है।


हरिताः श्वेतवर्णा वा पञ्चत्रि पत्रसंयुताः ।
दूर्वाङ्कुुरा मया दत्ता एकविंशतिसम्मिताः।।
(गणेशपुराण )


गणेश जी को दूब अर्थात दूर्वा अधिक प्रिय है, इसलिए गणेश जी को सफ़ेद या हरी दूब अवश्य चढ़ानी चाहिए।दूर्वा को चुनते समय एक बात अवश्य ध्यान में रखें की इसकी फुनगी में तीन या पाँच पत्तियां होनी चाहिए।



एक बात विशेष रूप से ध्यान में रखे की कभी भी गणेश जी पर तुलसी न चढ़ाये। पद्म पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है – “न तुलस्या गनाधिपम” अर्थात तुलसी पत्र से गणेश जी की पूजा न की जाये

गणेश जी की तुलसी पत्र से पूजा न करें। गणेश जी को तुलसी छोड़ कर सभी पत्र पुष्प प्रिय है


कार्तिक महात्म्य में इस बात का वर्णन किया गया है की “गणेशं तुलसी पत्रैः दुर्गां नैव तु दुर्वया” अर्थात गणेश जी की तुलसी पत्र से और माँ दुर्गा की दूर्वा से पूजा न करें। आचारभूषण इस विषय को और विस्तार देता है।

तुलसीं वर्जयित्वा सर्वाण्यपि पत्रपुष्पाणि गणपतिप्रियाणि 

अर्थात गणेश जी को तुलसी छोड़ कर सभी पत्र पुष्प प्रिय है इसलिए सभी अनिषिद्ध पत्र पुष्प गणपति पर चढाये जाते है।


गणपति को नैवेद्य में लड्डू अधिक प्रिय है, आचारेन्दु ग्रन्थ  इस बात पर इस प्रकार प्रकाश डालता है –
“गणेशो लड्डुक प्रियः”
इस लिए गणेश जी को लड्डू और मोदक के भोग लगाना बिलकुल न भूलें।
गणपति को नैवेद्य में लड्डू अधिक प्रिय है,



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उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिली एकल बढ़त - मिल सकती है 315 सीट



प्रथम चरण से पांचवे चरण तक बसपा, सपा और कांग्रेस कि स्थिति में उत्तरोत्तर गिरावट आई है... 
उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिली एकल बढ़त - मिल सकती है 315 सीट
पहले 3 चरणों के चुनाव में भाजपा को सपा से कुछ हद तक चुनौती दिखती मिल रही थी इस स्थिति में भाजपा लगभग 45% से 50% सीट जीतने की ओर दिख रही थी, किंतु चौथे और पांचवे चरण के चुनाव में सपा और कांग्रेस से यह स्थान बसपा ने छीन लिया किंतु कोई भी भाजपा से बढ़त नहीं ले पाया है चौथे और पाचवे चरण के चुनाव में भाजपा 52% से 58% .. 

छठे और सातवें चरण के चुनाव में भाजपा एकल बढ़त की ओर है और अंतिम दो चरणों में 70% सीट जीत सकती है.. 

मेरा विश्लेषण कहता है कि पूर्वांचल के भावी वोटरों के समर्थन के कारण शुरुवाती तौर पर भाजपा जहाँ पहले 3 चरणों के रूझान के कारण कुल 180 के पास जीतती दिख रही थी वह चौथे और पांचवे चरण के बाद 230 और अंतिम दौर में जिस तरह भाजपा अकेले बची अब मैं कह सकता हूँ भाजपा 270 से 320 सीट आराम से जीत सकती है...



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जस्टिस सी. एस. कर्णन पर कार्यवाही और शिकायत में जाँच से परहेज क्यों?



सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की महापंचाट ने ‘जस्टिस सी. एस. कर्णन को नोटिस जारी कर दिया है और उन्हें न्यायिक और प्रशासनिक काम देने से रोक दिया है। जजों के विरुद्ध जज की टिप्पणी पर जाँच करने के बजाय खुद शिकायतकर्ता को सुने चाप चड़ा देना कहा तक उचित है?

सुप्रीम कोर्ट ने साबित किया कि खुद के चरित्र पर लांछन को पोछने के लिए एक जज पर एकतरफा कार्यवाही जा सकती है तो आम आदमी को बोलने कि कोई हैसियत नही है।देश में ऐसे कई मौके आये है जब उच्च न्यायपालिका में जजनिर्मल यादव जैसे जज रंगे हाथ पकड़े गए और सुप्रीमकोर्ट ने कोई कार्यवाही नहीं, इसका अर्थ यही निकला जा सकता है कि सर्वोच्च न्यायपालिका में भ्रष्टाचार स्वीकार है किंतु भ्रष्टाचार का लांछन नही।

महान्यायवादी मुकुल रोहतगी कि इस मामले में भूमिका गैरजिम्मेदाराना और निष्पक्ष नही रही, अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बहस शुरू करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को ये निर्देश दें कि जस्टिस कर्णन को कोई काम नहीं दिया जाए। अब यह प्रशासनिक मसला नहीं रहा, जस्टिस कर्णन पर कार्यवाही पर तो बोले किन्तु, न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर मौन रहे। मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी जी को चाहिए कि वह तत्काल मुकुल रोहतगी को महान्यायवादी पद के दायित्व से मुक्त करें। सरकार का पक्ष निष्पक्ष होना चाहिए न कि सुप्रीमकोर्ट के न्यायमूर्तियों प्रभाव में किसी के प्रति अन्याय मेंं।

जज न्यायपालिका में खुद भ्रष्टाचार कि आग लगी है तो न्यायपीठ पर बैठी होलिका रुपी असुरी शक्तियों के जलने का वक्त आ गया है..


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औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947



 The Industrial Disputes Act, 1947

 The Industrial Disputes Act, 1947

औद्योगिक विवाद अधिनियम-1947 क्या है ?

आज जब किसी उद्योग के कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया जाए, उसे उस की नौकरी का लाभ न दिया जाए, या कर्मचारी अपनी सेवा शर्तों को गैरवाजिब मान कर हड़ताल कर दें या फिर स्वयं उद्योग के प्रबंधक ही उद्योग में तालाबंदी, छंटनी या ले-ऑफ कर दें तो हमें तुरंत औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की याद आती है। मौजूदा औद्योगिक विवाद अधिनियम आजादी के तुरंत पहले 1 अप्रेल 1947 को अस्तित्व में आया था। इस के लिए केन्द्रीय असेम्बली में विधेयक 8 अक्टूबर 1946 को प्रस्तुत हुआ था तथा दिनांक 31 मार्च 1947 को पारित कर दिया गया था। तब से अब तक 1956, 1964, 1965, 1971, 1972, 1976, 1982, 1984,1996 तथा 2010 में इस अधिनियम में संशोधन किए गये हैं। इस के अतिरिक्त अन्य विधेयकों के द्वारा भी इस में 28 बार संशोधित किया गया है। इस तरह इस अधिनियम को कुल 38 बार संशोधित किया गया है।

ब्रिटिश भारत में सर्वप्रथम 1929 में ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल लाया गया था। इस बिल के द्वारा जनउपयोगिता के उद्य़ोगों में हड़ताल और तालाबंदी को प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन उन औद्योगिक विवादों के निपटारे के लिए कोई विकल्प प्रदान नहीं किया गया था और इसे दमनकारी माना गया था। युद्ध के दौरान इस अधिनियम के इस अभाव को दूर करने के लिए डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स के नियम 81-ए में प्रावधान किया गया था कि केन्द्र सरकार किसी भी औद्योगिक विवाद को न्यायाधिकरण को सौंप सकती है और उस के द्वारा प्रदान किए गए अधिनिर्णय को लागू करवा सकती है। ये नियम युद्ध की समाप्ति के साथ ही दिनांक 1 अक्टूबर 1946 को समाप्त हो गये लेकिन नियम 81-ए को इमरजेंसी पावर्स (कंटीन्यूअस) ऑर्डिनेंस 1946 से इसे जारी रखा गया। इसी ऑर्डिनेंस के स्थान पर बाद में औद्योगिक विवाद अधिनियम अस्तित्व में आया।

औद्योगिक विवादों का अन्वेषण तथा उनका समाधान करना औद्योगिक विवाद अधिनियम-1947 का प्रमुख उद्देश्य है। इस अधिनियम के अंतर्गत दो तरह की संस्थाएँ बनाई गईं। बड़े उद्योगों में जहाँ 100 या उससे अधिक श्रमिक नियोजित हो श्रमिकों और नियोजकों के प्रतिनिधियों की संयुक्त वर्क्स कमेटी बनाने का उपबंध किया गया। वहीं औद्योगिक विवादों के समाधान केलिए समझौता अधिकारियों की नियुक्ति और बोर्डों का गठन करने के उपबंध किये गए। समझौता संपन्न न होने पर औद्योगिक विवादों के न्याय निर्णयन के लिए श्रम न्यायालय, औद्योगिक न्यायाधिकरण की व्यवस्था की गई तथा हड़तालों व तालाबंदियों को रोकने के लिए भी उपबंध किए गए हैं।

औद्योगिक विवाद के विवाद हैं जो औद्योगिक संबंधों में कोई असहमति हो जाने के कारण उत्‍पन्‍न होते हैं। औद्योगिक संबंध शब्‍द से नियोजक और कर्मचारियों के बीच; कर्मचारियों के बीच तथा नियोजकों के बीच परस्‍पर संवादों के कई पहलू जुड़े हुए हैं।

ऐसे संबंधों में जब भी हितों को लेकर कोई विरोध होता है तो इससे जुड़े किसी एक पक्ष में असंतोष पैदा हो जाता है और इस प्रकार औद्योगिक विवाद अथवा संघर्ष हो जाता है, यह विवाद कई रूप ले लेता है जैसे कि विरोध, हड़ताल, धरना, तालाबंदी, छंटनी, कर्मचारियों की बर्खास्‍तगी, आदि।

औद्योगिक विवाद के मुख्य कारण
औद्योगिक विवाद के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार है:-

  1. अधिक वेतन और भत्तों की मांग करना
  2. बोनस का भुगतान करने और उसकी दर निर्धारित करने की मांग करना।
  3. सामाजिक सुरक्षा के लाभों को बढ़ाने की मांग करना।
  4. कार्य की अच्छी और सुरक्षित दशाओं जिसमें कार्य दिवस के घंटे, मध्यावकाश और कार्य के बीच-बीच में अवकाश और शारीरिक श्रम के लिए परिवेश की मांग करना।
  5. श्रम कल्‍याण और अन्‍य लाभों में वृद्धि करने की मांग करना। उदाहरणार्थ, अच्छी कैंटीन, विश्राम, मनोरंजन और आवास की सुविधा, दूरवर्ती स्‍थानों की जाने और जाने की यात्रा की व्यवस्था, आदि।
  6. इसके अलावा, खराब कार्मिक प्रबंध; परस्पर विरोधी विधायी उपाय एवं सरकारी नीतियों; और मनोवैज्ञानिक घटकों जैसे कि कर्मचारी द्वारा उसकी आत्माभिव्यक्ति, व्यक्तिगत उपलब्धि और उन्नति की मूल आकांक्षा की तुष्टि करने के लिए अवसर प्रदान करने से इंकार करना, आदि के कारण भी श्रमिकों संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।


औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947
भारत में, औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 सभी औद्योगिक विवादों की जांच पड़ताल एवं निपटान करने के लिए एक प्रमुख विधान है। इस अधिनियम में उन संभावनाओं की हड़ताल अथवा तालाबंदी की जा सकती है, उन्‍हें अवैध अथवा गैर-कानूनी घोषित किया जा सकता है, कर्मचारी की जबरदस्‍ती कामबंदी, छंटनी, उसे सेवामुक्‍त करना अथवा गबर्खास्‍त करने की दशाओं, उन परिस्थितियों जिनमें औद्योगिक इकाई को बंद किया जा सकता है और औद्योगिक कर्मचारियों तथा नियोजकों से जुड़े अन्‍य कई मामलों का उल्‍लेख किया गया है।

यह अधिनियम श्रम मंत्रालय द्वारा उसके औद्योगिक संबंध प्रभाग के माध्‍यम से प्रशासित किया जाता है। यह प्रभाग विवादों का निपटान करने के लिए संस्‍थागत ढांचों में सुधार करने और औद्योगिक संबंधों से जुड़े श्रमिक कानूनों में संशोधन करने से संबंधित है। यह सुनिश्चित करने के प्रयास से कि देश को एक स्‍थायी, प्रतिष्ठित और कुशल कार्यबल प्राप्‍त हो, जिसका शोषण न किया जा सके और उत्‍पादन के उच्‍च स्‍तर स्‍थापित करने में सक्षम हो, यह केन्‍द्रीय औद्योगिक संबंध मशीनरी (सीआईआरएम) के साथ अच्‍छे तालमेल से कार्य करता है। सीआईआरएम जो कि श्रम मंत्रालय का एक संगठन कार्यालय है को मुख्‍य श्रम आयुक्‍त (केन्‍द्रीय) [सीएलसी (सी)] संगठन के नाम से भी जाना जाता है। सीआईआरएम के प्रमुख मुख्‍य श्रम आयुक्‍त (केन्‍द्रीय) हैं। इसे औद्योगिक संबंधों को रखने, श्रम संबंधी कानूनों को लागू करने और केन्द्रीय क्षेत्र में व्यापार संघ की सदस्यता के सत्यापन का कार्य सौंपा गया है। यह निम्‍नलिखित के माध्‍यम से सद्भावपूर्ण औद्योगिक संबंधों को सुनिश्चित करता है :-

केन्द्रीय क्षेत्र में औद्योगिक संबंधों की निगरानी
विवादों का निपटारा करने के लिए औद्योगिक विवादों में हस्तक्षेप, मध्यस्थता और उनका समाधान करना;
हड़ताल और तालाबंदी को रोकने के लिए हड़ताल और तालाबंदी की संभावना की स्थिति में हस्तक्षेप;
व्‍यवस्‍थाओं और पंचाटों का कार्यान्वयन।

अधिनियम के मुख्‍य उद्देश्‍य
अधिनियम के अनुसार, ‘औद्योगिक विवाद’ शब्द का अर्थ है नियोजकों और नियोजकों के बीच, अथवा नियोजकों और कर्मचारियों के बीच, अथवा कर्मचारियों और कर्मचारियों के बीच किसी तरह का विवाद अथवा मतभेद जिसका संबंध नियोजन अथवा नियोजन भिन्‍न मामले अथवा नियोजन की शर्तों अथवा किसी व्यक्ति के श्रम की दशाओं से है।

अधिनियम के मुख्‍य उद्देश्‍य इस प्रकार हैं :-

  1. औद्योगिक वि‍वादों का न्‍यायसंगत, उचित और शांतिपूर्ण ढंग से निपटारा करने के लिए एक उपयुक्‍त मशीनरी प्रदान करना।
  2. नियोजक और कर्मचारियों के बीच मित्रता एवं अच्‍छे संबंध स्‍थापित करने और उन्‍हें कायम रखने के उपायों को बढ़ावा देना।
  3. गैर-कानूनी हड़तालों और तालाबंदी को रोकना।
  4. कर्मचारियों को जबरदस्‍ती कामबंदी, छंटनी, गलत तरीके से बर्खास्‍तगी और उत्‍पीड़न से राहत प्रदान करना।
    सामूहिक सौदाकारी को बढ़ावा देना।
  5. कर्मचारियों की दशा सुधारना।
  6. अनुचित श्रम प्रणालियों को रोकना

अधिनियम की कार्यप्रणाली
इस अधिनियम के तहत औद्योगिक विवादों के समाधान और निर्णय के लिए एक सांविधिक तंत्र का गठन किया गया है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं :-

  1. अधिनियम में उपयुक्‍त सरकार द्वारा ‘समझौता अधिकारियों’ की नियुक्ति का प्रावधान, जिन्‍हें औद्योगिक विवादों के निपटारे में मध्यस्थता करने और उसका समर्थन करने का कार्य सौंपा गया है। उन्हें किसी विशेष क्षेत्र अथवा विशेष क्षेत्र में विशेष उद्योगों अथवा एक अथवा एक से अधिक विशेष उद्योगों के लिए स्थायी तौर पर अथवा सीमित अवधि के लिए नियुक्त किया जाएगा। कर्मचारियों और आयोजकों को मिलाना तथा उनके मतभेदों का निवारण करने में उनकी मदद करना इन अधिकारियों का कर्तव्य है। यदि विवाद का निपटारा हो जाता है तो वह इस आशय की सूचना उपयुक्‍त सरकार को देगा।
  2. उपयुक्‍त सरकार अवसर आने पर एक समझौता बोर्ड का गठन करेगी जिसमें एक अध्यक्ष और दो या चार जैसा कि उपयुक्त सरकार उचित समझेगी, अन्‍य सदस्‍य शामिल होंगे। अध्यक्ष एक स्वतंत्र व्यक्ति होगा और अन्‍य सदस्‍य विवाद में पक्षों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक समान संख्या में नियुक्त किए गए व्यक्ति होंगे। जहां विवाद बोर्ड को भेजा गया हो तो बोर्ड बिना विलंब किए, विवाद की छानबीन करेगा और ऐसी हर कार्रवाई करेगा जो वह पक्षकारों को विवाद का न्यायसंगत और शांतिपूर्ण निपटारा करने के लिए प्रेरित करने के प्रयोजन से उचित समझेगा।
  3. उपयुक्‍त सरकार अवसर आने पर ऐसी किसी मामले जो औद्योगिक विवाद से संबंधित अथवा संगत प्रतीत हो, की जांच पड़ताल करने के लिए ‘जांच न्‍यायालय’ का भी गठन करेगी। तत्‍पश्‍चात यह सामान्‍यतया शुरू होने के छह माह की अवधि के अंदर इसकी सूचना सरकार को देगा इस न्‍यायालय में एक स्‍वतंत्र व्‍यक्ति अथवा उतने स्‍वतंत्र व्‍यक्ति होंगे जितने उपयुक्‍त सरकार उचित समझेगी और जहां इसमें दो अथवा दो से अधिक सदस्‍य निहित होंगे उनमें से एक की नियुक्ति अध्‍यक्ष के रूप में की जाएगी।
  4. उपयुक्‍त सरकार एक अथवा एक से अधिक ‘श्रम न्‍यायालयों’ का गठन करेगी जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्‍ट किसी मामले से संबंधित औद्योगिक विवादों जैसे कि स्‍थायी आदेशों, कर्मचारियों की सेवा मुक्‍त अथवा बर्खास्‍त करने, गैर कानूनी रूप से अथवा अन्‍यथा की गई हड़ताल अथवा तालाबंदी, प्राप्‍त हो रहे किसी लाभ को वापस लेने, आदि से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेंगे और उन्‍हें इस अधिनियम के तहत सौंपे गए किन्‍हीं अन्‍य कार्यों का निर्वहन करेंगे। श्रम न्‍यायालय में केवल एक व्‍यक्ति शामिल होगा जिसकी नियुक्ति उपयुक्‍त सरकार द्वारा की जाएगी।
  5. उपयुक्त सरकार एक अथवा एक से अधिक ‘औद्योगिक अधिकरणों’ का गठन करेगी जो किसी भी मामले के संबंध में चाहे वह दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हो अथवा तीसरी अनुसूची में, हुए औद्योगिक वि‍वादों पर निर्णय लेंगे और इस अधिनियम के तहत उन्‍हें सौंपे गए किन्हीं अन्य कार्यों का निर्वहन करेंगे। इस अधिकरण में केवल एक ही व्यक्ति शामिल होगा जिसकी नियुक्ति उपयुक्‍त सरकार द्वारा की जाएगी। तीसरी अनुसूची में वेतन, बोनस, भत्ते और कुछ अन्य लाभ, कार्य की दशाएँ, अनुशासन, यौक्तिकीकरण, छंटनी और प्रतिष्ठान की समाप्ति जैसे मामले शामिल हैं।
  6. केन्द्र सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक अथवा एक से अधिक राष्‍ट्रीय औद्योगिक अधिकरणों का गठन करेगी जो उन औद्योगिक विवादों पर निर्णय लेंगे जो केंद्र सरकार की राय में राष्‍ट्रीय महत्‍व के प्रश्नों से संबंधित हों अथवा इस किस्म के हों कि उनसे एक से अधिक राज्यों में स्थित औद्योगिक प्रतिष्ठानों का हित जुड़ा हो अथवा वे ऐसे विवादों से प्रभावित हो सकते हों। ऐसे अधिकरण में केवल एक व्‍यक्ति शामिल होगा जिसकी नियुक्ति केन्‍द्र सरकार द्वारा की जाएगी।
  7. अधिनियम में नियोक्‍ता के लिए यह अनिवार्य है कि वह किसी ऐसे औद्योगिक प्रतिष्‍ठान में जहां पिछले बारह महीनों में पचास अथवा इससे अधिक कर्मचारियों को नियुक्‍त किया गया है, एक ‘शिकायत निपटान प्राधिकरण (जीएसए)’ की स्‍थापना करें। उस प्रतिष्‍ठान में नियुक्‍त हर कर्मचारी के औद्योगिक विवादों को निपटाना उस प्राधिकरण की जिम्‍मेदारी होगी।

विवादों की जांच और उनका निपटारा
औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत केन्‍द्रीय सरकार ही केन्‍द्रीय सरकार के विभागीय उपक्रमों, प्रमुख पत्तनों, खानों, तेल क्षेत्रों, छावनी (केंटोनमेंट) बोर्डों, बैकिंग और बीमा कम्‍पनियों, भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी), भारतीय औद्योगिक वित्त निगम लि., तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लि., इंडियन एयरलांइस, एयर इंडिया, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण और सभी हवाई यात्रा सेवाओं से संबंधित औद्योगिक विवादों की जांच करने और उनका निपटारा करने के‍ लिए एक उपयुक्‍त सरकार है। जबकि अन्‍य औद्योगिक प्रतिष्‍ठानों के संबंध में राज्‍य सरकार ही उपयुक्‍त सरकार है।

तदनुसार, केन्द्रीय सरकार औद्योगिक अधिकरणों (सीजीआईटी) एवं श्रम न्‍यायालयों की देश के भिन्‍न-भिन्‍न भागों में स्थापना की गई है। इस समय 17 सीजीआईटी हैं जहां औद्योगिक विवादों को निर्णय के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। ये सीजीआईटी एवं श्रम न्यायालय नई दिल्‍ली, मुंबई (2 सीजीआईटी), बंगलौर, कोलकाता, आसनसोल, धनबाद (2 सीजीआईटी), जबलपुर, चण्‍डीगढ़, कानपुर, जयपुर, लखनऊ, नागपुर, हैदराबाद, चेन्नई और भुवनेश्‍वर में हैं। इन केन्द्रीय सरकार औद्योगिक अधिकरणों में से 2 केन्द्रीय सरकार औद्योगिक अधिकरणों नामत: मुंबई और कोलकाता, को राष्ट्रीय औद्योगिक अधिकरण घोषित किया गया है।

 इसके अलावा, मुख्य श्रम आयुक्‍त (केन्‍द्रीय) संगठन औद्योगिक विवादों के लिए केन्द्र सरकार में एक मुख्य समझौता एजेंसी के रूप में कार्य करता है क्षेत्रीय आयुक्‍त (केन्‍द्रीय) और सहायक श्रम आयुक्‍त (केन्‍द्रीय) भी हैं जो देश के भिन्‍न-भिन्‍न भागों में मुख्य श्रम आयुक्‍त (केन्‍द्रीय) की ओर से समझौता अधिकारियों के तौर पर कार्य करते हैं।



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प्रधानमंत्री मुद्रा योजना - Pradhan Mantri Mudra Yojana



मोदी सरकार ने जरूरतमंद की मदद के लिए कई योजनायें शुरू की है। उन्हीं में से एक है मुद्रा लोन योजना, इसे प्रधानमंत्री मुद्रा योजना भी कहा जाता है। इस योजना का उद्देश्य उचित ब्याज दर पर लोन उपलब्ध कराने के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करना है। यह व्यापार लोन के आकार पर निर्भर करती है और उसी के अनुसार पेशकश की जा रही है। इस योजना के तहत 10 लाख रूपये तक का लोन प्रदान किया जाना है। शिशु लोन, किशोर लोन और तरुण लोन – मुद्रा लोन के रूप में वर्गीकृत किये गए हैं। यह मूल रूप देश के गैर कॉर्पोरेट छोटे व्यापारियों के वित्तीय पोषण जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत सरकार द्वारा तैयार किया गया उपक्रम है। यह विचार छोटे व्यापारियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए है क्योंकि भारत में इन्हीं छोटे व्यापार करने वालों की आबादी ज्यादा है। 
मुद्रा बैंक लोन योजना
यहाँ छोटे संगठन, कम्पनियाँ और स्टार्ट अप्स भारत में इंटरप्रेंयूर्स हैं। इन्हें सामूहिक रूप से सूक्ष्म इकाई माना जाता है। इनके लिए यह महसूस किया गया है कि इन इकाइयों में वित्तीय समर्थन में कमी है। यदि इन्हें वित्तीय सहायता प्रदान की जाये तो उनमें अभी की तुलना में वृद्धी हो सकती है। मुद्रा का पूरा नाम “माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी लिमिटेड” है, यह एक संस्था है जिसे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया है। मुद्रा बैंक मन में केवल एक ही लक्ष्य के साथ स्थापित की गई है वह है गैर कॉर्पोरेट छोटे व्यवसायियों के सभी धन की जरूरतों को पूरा करना।

मुद्रा बैंक की जिम्मेदारियाँ
  • नीतिगत दिशानिर्देश की तैयारी और शुभारंभ
  • माइक्रो फाइनेंस इंस्टिट्यूशन संस्थानों के पंजीकरण और विनियमन
  • एक क्रेडिट गारंटी योजना को चलाना
उन्हें लोन (वित्तीय सहायता) उपलब्ध कराने से सूक्ष्म व्यापार की सेवा के लिए एक अच्छा आर्किटेक्चर बनाना। इस योजना के तहत मुद्रा बैंक की सभी आवश्यक जिम्मेदारियों और कामकाजों को किया जायेगा। अब लोगों के मन एक बड़ा सवाल यह उठता है कि मुद्रा बैंक लोन का हिस्सा बनने के लिए पात्रता मानदंड क्या है और लोन आवेदन की प्रक्रिया क्या है। अन्य महत्वपूर्ण बातें ब्याद दर और आवेदन पत्र है। लेकिन इस पर जाने से पहले यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आपके व्यवसाय की श्रेणी क्या है। मैक्रो यूनिट्स या छोटे व्यवसायों में वृद्धी मंच, विकास और वित्त पोषण आवश्यकताओं को दर्शाने के लिए इसे श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। शिशु, किशोर और तरुण नाम की तीन श्रेणियों को इस उद्देश्य के लिए बनाया गया है। यहाँ आप देख सकते है कि आपका व्यवसाय किस श्रेणी में आता है इसकी श्रेणियों के बारे में जानकारी नीचे दी गई है।
  • शिशु श्रेणी – जैसा कि नाम से ही विदित है यह श्रेणी शुरूआती श्रेणी है। वे सभी व्यापार जोकि अभी – अभी शुरू हुए है और लोन के लिए देख रहे है इस श्रेणी में आते है। इस श्रेणी में आने वाले सभी माइक्रो यूनिट्स के लिए 50,000 रूपये तक का लोन दिया जायेगा। शिशु श्रेणी के लिए ब्याज दर 10 से 12 % तक की रेंज में है।
  • किशोर श्रेणी – यह उनके लिए है जिन्होंने अपना कारोबार शुरू किया है और अब वह प्रतिष्ठित हो रहा है। इस श्रेणी में आने वाली यूनिट्स के लिए 50,000 रूपये से लेकर 5 लाख रूपये तक का लोन देने का प्रावधान है। किशोर श्रेणी के लिए ब्याज दर 14 से 17% तक की रेंज में है।
  • तरुण श्रेणी – वे सभी छोटे कारोबार जो स्थापित हो कर प्रतिष्ठित हो गये है इस श्रेणी के अंतर्गत आते है। उनको उनके व्यापार को बेहतर करने में कुछ वित्तीय आवश्यकता हो सकती है। इसलिए वे सभी छोटे करोबारी इस श्रेणी के अंतर्गत आते हुए 10,00,000 रूपये तक का लोन लेने के लिए पात्र हैं। तरुण श्रेणी के लिए ब्याज दर 16 % से शुरू होती है।
मुद्रा लोन के फायदे - Benefits of Mudra Loan
  • मुद्रा लोन का उपयोग कर 50,000 रूपये से 10 लाख के बीच वित्त पाने में सक्षम हो सकते है।
  • बिना किसी प्रक्रिया शुल्क और बिना किसी परेशानी के लोन प्राप्त कर सकते हैं।
  • मुद्रा लोन मुख्य रूप से छोटे और सूक्ष्म स्तर के कारोबार पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय बड़े पैमाने के करोबार पर ध्यान देने के लिए है।
  • मुद्रा लोन पर ब्याज दर अन्य बैंकर की ब्याज दर की तुलना में बहुत कम और सस्ती है।
आवेदकों और लोन लेने वालों के लिए मुद्रा लोन के लिए पात्रता मानदंड - Eligibility Criteria for Mudra Loan for Applicants & Loaners 
 वे सभी गैर खेती सूक्ष्म व्यवसायी जिनको आय सृजन और 10 लाख रूपये के ऊपर या नीचे आर्थिक सहायता की आवश्यकता होती है, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत इस लोन के लिए आवेदन कर सकते हैं यह माइक्रो यूनिट्स विकास और पुनर्वित्त एजेंसी योजना के तहत शुरू की गई है।
भाग लेने वाले बैंक अर्थात वे बैंक जोकि मुद्रा लोन की पेशकश करने के लिए तैयार हैं उनका सख्त पात्रता मानदंड है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, राज्य सहकारी बैंकों, माइक्रो फाइनेंस संसथानों, गैर – बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को इसमें भाग लेने के लिए और मुद्रा लोन प्रदान करने के लिए अनुमति दी गई है। हालाँकि उन्हें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि-
  • उनके पास सीधे 3 साल के लिए लाभ रिकॉर्ड हैं।
  • उनके पास 3% या उससे कम NPAs हैं।
  • उनके पास कम से कम 9% का CRAR है।
  • उनके पास कम से कम 100 करोड़ रूपये की कुल कीमत है।
जब तक इन आवश्यकताओं को बैंकों तथा गैर बैंकिंग कंपनियों द्वारा पूरा नही किया जाता, वे किसी भी मुद्रा लोन की पेशकश के लिए पात्र नहीं होंगे।

यह लोन सिर्फ छोटे व्यापारियों के लिए है। इसका कोई सटीक मानदंड नहीं है, लेकिन एक चीज पक्का है कि आपको लोन मिल सकता है यदि आपका कारोबार उच्च हो। इस योजना के लिए एक चीज और है कि यह पढ़ाई के उद्देश्यों के लिए नहीं है। यह लोन आपके घर खरीदने के लिए भी नहीं हो सकता है। आप इससे वाहन खरीद सकते है किन्तु यह भी आपके व्यक्तिगत न हो कर व्यावसायिक हो सकता है। 18 साल से ऊपर की उम्र का कोई भी व्यक्ति मुद्रा लोन ले सकता है। 

मुद्रा बैंक लोन योजना के लिए एप्प्लाई करने का तरीका - Process of Apply for Mudra Bank Loan Scheme
यहाँ सभी श्रेणियों अर्थात शिशु, किशोर और तरुण के लिए मुद्रा बैंक लोन योजना को लागू करने के बारे में जानकारी दी गई है। आपको इसमें एप्प्लाई करने से पहले एक व्यापर विचार तैयार करना होगा, एवं आपको आवेदन पत्र के साथ अपने व्यापार विचार को पेश करना पड़ेगा।
  • सबसे पहले उधारकर्ता (जो लोन लेना चाहता है) को प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत अपने नजदीकी निजी या व्यावसायिक बैंक में जाने की जरुरत है।
  • इसके बाद लोन आवेदन के साथ अपने व्यापर विचार को प्रस्तुत करें (यह फॉर्म में दिया जायेगा), और आवेदन फॉर्म के साथ ही अपनी पहचान का प्रमाण, अपने पते का प्रमाण और हालहि के पासपोर्ट के आकर की फोटो को उपलब्ध कराने की जरूरत है।
  • सभी औपचरिकताएँ बैंक के निर्देश के अनुसार उधारकर्ता द्वारा भरी जानी है।
  • उपरोक्त चरणों के पूरा होने के बाद, लोन मंजूर किया जायेगा और लोन साधक को उपलब्ध कराया जायेगा।
ST, SC और OBC महिलाओं के लिए मुद्रा लोन - Mudra loan for women ST, SC and OBC 
सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस योजना के तहत अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग श्रेणी की महिलाओं के लिए लोन देने की प्राथमिकता दी जाएगी। हालाँकि वहाँ इस तरह का कोई आरक्षण नहीं है यहाँ तक कि इस बारे में किसी भी प्रकार के मापदंड का खुलासा नहीं किया गया है। लेकिन यह सुविधा बाद में उपलब्ध कराई जा सकती है। 

मुद्रा लोन कार्ड - Mudra Loan Card 
संक्षेप में, एक हाथ से जब यह कार्ड एक पूर्व स्वीकृत लोन राशि के साथ एक क्रेडिट कार्ड के रूप में कार्य करता है, उसी समय यह डेबिट कार्ड की तरह भी कार्य करता है। मुद्रा कार्ड, रूपये प्लेटफार्म के साथ काम करेगा और यह पॉइंट ऑफ़ सेल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। कार्ड उपयोगकर्ताओं के लिए निम्न अनुमति है-
  • एटीएम से पैसे निकाल सकते हैं।
  • पॉइंट ऑफ़ सेल पर कार्ड स्वाइप कर सकते हैं।
  • अधिक पैसे निकालनी की सुविधा के लाभ के लिए क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल कर सकते हैं।
कुछ बैंक जिनमें मुद्रा कार्ड की अनुमति दी गई है वे हैं- सहकारी बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, अल्लाहाबाद बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, केनरा बैंक, एक्सिस बैंक, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया और विजय बैंक आदि। इसके अलावा और भी बैंकों में यह कार्ड जल्द ही लागू किया जा सकता है।


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