Major International Airports in India



Major International Airports in India
भारत के प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे
  1. अन्ना अं॰ हवाई अड्डा - चेन्नई
  2. इन्दिरा गाँधी अं॰ हवाई अड्डा - नई दिल्ली
  3. कालीकट अं॰ हवाई अड्डा - कोझीकोड
  4. कोचीन अं॰ हवाई अड्डा - कोच्चि
  5. गोपीनाथ बारडोली अं॰ हवाई अड्डा - गुवाहटी
  6. चौधरी चरण सिंह अं॰ हवाई अड्डा - लखनऊ
  7. छत्रपति शिवाजी अं॰ हवाई अड्डा - मुम्बई
  8. जयपुर अं॰ हवाई अड्डा - जयपुर
  9. त्रिवेन्द्रम अं॰ हवाई अड्डा - तिरुअनन्तपुरम
  10. दाबोलिम अं॰ हवाई अड्डा - गोवा
  11. देवी अहिल्याबाई होल्कर अं॰ हवाई अड्डा - इंदौर
  12. नेताजी सु॰ बोस अं॰ हवाई अड्डा - कोलकाता
  13. बाबा साहेब अम्बेदकर अं॰ हवाई अड्डा - नागपुर
  14. मंगलुरु अं॰ हवाई अड्डा - मंगलुरु
  15. राजीव गाँधी अं॰ हवाई अड्डा - हैदराबाद
  16. लाल बहादुर शास्त्री अं॰ हवाई अड्डा - वाराणसी
  17. वीर सावरकर अं॰ हवाई अड्डा - पोर्ट ब्लेयर
  18. शेख अलआलम अं॰ हवाई अड्डा - श्रीनगर
  19. श्री गुरु रामदास जी अं॰ हवाई अड्डा - अमृतसर
  20. स॰ बल्लभभाई पटेल अं॰ हवाई अड्डा - अहमदाबाद


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पुष्य नक्षत्र पर करें ये काम, कार्य सिद्धि के साथ मिलेगी स्थायी समृद्धि



 
हिन्दू धर्म ग्रंथों में पुष्य नक्षत्र को सबसे शुभकारक नक्षत्र कहा जाता है। पुष्य का अर्थ होता है कि पोषण करने वाला और ऊर्जा-शक्ति प्रदान करने वाला नक्षत्र। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति हमेशा ही लोगों की भलाई व सेवा करने के लिए तत्पर रहते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे जातक अपनी मेहनत और साहस के बल पर जिंदगी में तरक्की प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि इस शुभ दिन पर संपत्ति और समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था। जब भी गुरुवार अथवा रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र आता है तो इस योग को क्रमशः गुरु पुष्य नक्षत्र और रवि पुष्य नक्षत्र के रूप में जाना जाता है। यह योग अक्षय तृतीया, धन तेरस, और दिवाली जैसी धार्मिक तिथियों की भांति ही शुभ होता है। कहते हैं कि इस दिन माँ लक्ष्मी घर में बसती है और वहां एक लंबे समय तक विराजती है इसीलिए, इस यह घड़ी पावन कहलाती है। पुष्य नक्षत्र का स्वभाव फलप्रदायी और ध्यान रखने वाला है। पुष्य नक्षत्र के दौरान किए जाने वाले कार्यों से जीवन में समृद्धि का आगमन होता है। इस दिन ग्रहों के अनुकूल स्थितियों में भ्रमण कर रहे होने से वे आपके जीवन में शांति, संपत्ति और स्थायी समृद्धि लेकर आते हैं।


वैदिक ज्योतिष में महात्मय 
हमारे वैदिक ज्योतिष में बारह राशियों में समाविष्ट होने वाले 27 नक्षत्रों में आठवें नक्षत्र ‘पुष्य’ को सबसे शुभ नक्षत्र कहते हैं। इसी नक्षत्र में गुरु उच्च का होता है। देवों के आशीर्वाद से पुरस्कृत इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति और दशा स्वामी शनि हैं। कर्क राशि के अंतर्गत समाविष्ट होने से इस नक्षत्र के राशिधिपति चंद्र हैं। इस प्रकार से गुरु व चंद्र के शुभ संयोग इस नक्षत्र में होने से किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए पुष्य नक्षत्र श्रेष्ठ माना जाता है। क्या आपकी जन्मकुंडली में महत्वपूर्ण ग्रह अच्छी स्थिति में विराजमान है ? 

जीवन में समृद्धि का आगमन
पुष्य नक्षत्र का दशा स्वामी शनि होने से इस नक्षत्र के दरमियान घर में आयी संपत्ति या समृद्धि चिरस्थायी रहती है। पुष्य नक्षत्र में किए गए कामों को हमेशा सफलता व सिद्धि मिलती है। इसलिए, विवाह को छोड़कर हर एक कार्यों के लिए पुष्य नक्षत्र को शुभ माना जाता है। दिवाली के दिनों में चोपड़ा खरीदने के लिए व्यापारीगण पुष्य नक्षत्र को विशेष महत्व देते हैं। इसके अलावा, वर्ष के दौरान भी पुष्य नक्षत्र में जब गुरु पुष्यामृत योग बन रहा हो तब सोने, आभूषण और रत्नों को खरीदने की प्रथा सदियों से प्रचलित है।

पुष्य नक्षत्र में किए जाने वाले मांगलिक कार्य 
  • इस मंगलकर्ता नक्षत्र के दौरान घर में आयी संपत्ति या समृद्धि चिरस्थायी रहती है।
  • ज्ञान और विद्याभ्यास के लिए पावन दिन।
  • इस दिन आध्यात्मिक कार्य किए जा सकते हैं।
  • मंत्रों, यंत्रों, पूजा, जाप और अनुष्ठान हेतु शुभ दिन।
  • माँ लक्ष्मी की उपासना और श्री यंत्र की खरीदी करके जीवन में समृद्धि ला सकते हैं।
  • इस समय के दौरान किए गए तमाम धार्मिक और आर्थिक कार्यों से जातक की उन्नति होती है।
गुरु, शनि और रवि पुष्य नक्षत्र
गुरुवार और रविवार के दिन पड़ने वाले पुष्य योग को गुरु पुष्य और रवि पुष्य नक्षत्र कहते हैं। गुरु पुष्य और रवि पुष्य योग सबसे शुभ माने जाते हैं। इस समय के दौरान छोटे बालकों के उपनयन संस्कार और उसके बाद सबसे पहली बार विद्याभ्यास के लिए गुरुकुल में भेजा जाता है। इसका ज्ञान के साथ अटूट संबंध है एेसा कह सकते हैं। इसके अलावा, शनि व गुरु के संबंध को उत्तम ज्ञान की युति कहते हैं। पंचाग को देखकर हर एक कार्य करना चाहिए।

पुष्य नक्षत्रः मांगलिक कार्यों से शुभ फलों की प्राप्ति का पावन पर्व 
  • इस दिन पूजा या उपवास करने से जीवन के हर एक क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति होती है।
  • कुंडली में विद्यमान दूषित सूर्य के दुष्प्रभाव को घटाया जा सकता है।
  • इस दिन किए कार्यों को सिद्धि व सफलता मिलती है।
  • धन का निवेश लंबी अवधि के लिए करने पर भविष्य में उसका अच्छा फल प्राप्त होता है।
  • काम की गुणवत्ता और असरकारकता में भी सुधार होता है।
  • इस शुभदायी दिन पर महालक्ष्मी की साधना करने से उसका विशेष व मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
पुष्य नक्षत्र को ब्रह्याजी का श्राप मिला था, इसलिए यह नक्षत्र शादी-विवाह के लिए वर्जित माना गया है। पुष्य नक्षत्र में दिव्य औषधियों को लाकर उनकी सिद्धि की जाती है। जीवन में संपत्ति और समृद्धि को आमंत्रित करने के लिए पुष्य नक्षत्र व्यक्ति को पूरा अवसर प्रदान करता है। इस दिन किए गए सभी मांगलिक कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण होते हैं।


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॥ सर्वरोगनाशक श्रीसूर्यस्तवराजस्तोत्रम् ॥




विनियोग
ॐ श्री सूर्यस्तवराजस्तोत्रस्य श्रीवसिष्ठ ऋषिः । अनुष्टुप् छन्दः । 
श्रीसूर्यो देवता । सर्वपापक्षयपूर्वकसर्वरोगोपशमनार्थे पाठे विनियोगः ।

 ऋष्यादिन्यास
श्रीवसिष्ठऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे । श्रीसूर्यदेवाय नमः हृदि । सर्वपापक्षयपूर्वकसर्वरोगापशमनार्थे पाठे विनियोगाय नमः अञ्जलौ । 

ध्यानं
ॐ रथस्थं चिन्तयेद् भानुं द्विभुजं रक्तवाससे । 
दाडिमीपुष्पसङ्काशं पद्मादिभिः अलङ्कृतम् ॥ 

मानस पूजनं एवं स्तोत्रपाठ
ॐ विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः । 
लोकप्रकाशकः श्रीमान् लोकचक्षु ग्रहेश्वरः ॥ 
लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा । 
तपनः तापनः चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः ॥ 
गभस्तिहस्तो ब्रध्नश्च सर्वदेवनमस्कृतः । 
एकविंशतिः इत्येष स्तव इष्टः सदा मम ॥ 
॥ फलश्रुतिः ॥ 

 श्रीः आरोग्यकरः चैव धनवृद्धियशस्करः । 
स्तवराज इति ख्यातः त्रिषु लोकेषु विश्रुतः ॥ 
यः एतेन महाबहो द्वे सन्ध्ये स्तिमितोदये । 
स्तौति मां प्रणतो भूत्वा सर्व पापैः प्रमुच्यते ॥ 
कायिकं वाचिकं चैव मानसं यच्च दुष्कृतम् । 
एकजप्येन तत् सर्वं प्रणश्यति ममाग्रतः ॥ 
एकजप्यश्च होमश्च सन्ध्योपासनमेव च । 
बलिमन्त्रोऽर्घ्यमन्त्रश्च धूपमन्त्रस्तथैव च ॥ 
अन्नप्रदाने स्नाने च प्रणिपाति प्रदक्षिणे । 
पूजितोऽयं महामन्त्रः सर्वव्याधिहरः शुभः ॥  
एवं उक्तवा तु भगवानः भास्करो जगदीश्वरः । 
आमन्त्र्य कृष्णतनयं तत्रैवान्तरधीयत ॥ 
 साम्बोऽपि स्तवराजेन स्तुत्वा सप्ताश्ववाहनः । 
पूतात्मा नीरुजः श्रीमान् तस्माद्रोगाद्विमुक्तवान् ॥ 

 भगवान् सूर्यनामावली
१. विकर्तन २. विवस्वान् ३. मार्तण्ड ४. भास्कर ५. रवि ६. लोकप्रकाशक ७. श्रीमान् ८. लोकचक्षु ९. ग्रहेश्वर १०. लोकसाक्षी ११. त्रिलोकेश १२. कर्ता १३. हर्ता १४. तमिस्रहा १५. तपन १६. तापन १७. शुचि १८. सप्ताश्ववाहन १९. गभस्तिहस्त २०. ब्रघ्न ( ब्रह्मा ) २१. सर्वदेवनमस्कृत इति ।



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