प्रेम ही ईश्वर है



सरल विश्वास और निष्कपटता रहने से भगवत प्राप्ति का लाभ होता है। एक व्यक्ति की किसी साधु से भेंट हुई। उसने साधु से उपदेश देने के लिये विनय पूर्वक प्रार्थना की। साधू ने कहा-'भगवान से ही प्रेम करों तब उस व्यक्ति ने कहा भगवान को न तो मैंने कभी देखा है और न उनके विषय में कुछ जानता ही हूँ, फिर उनसे कैसे प्रेम करूँ?' साधु ने पूछा 'अच्छा, तुम्हारा किससे प्रेम है ?' उसने कहा-'इस संसार में मेरा कोई नहीं है, केवल एक *मेढ़ा है, उसी को मैं प्यार करता हूँ।' साधु बोले-'उस मेढ़े के भीतर ही नारायण विद्यमान हैं, यह जानकर उसी की जी लगाकर सेवा करना और उसी को हृदय से प्रेम करना।' इतना कहकर साधु चले गये।

 
उस आदमी ने भी, उस मेड में नारायण है, यह विश्वास कर तन मन से उसकी सेवा करना शुरू कर दिया। बहुत दिनों बाद उस रस्ते से लौटते समय साधु ने उस आदमी को खोज कर उससे पूछा- क्यों जी, अब कैसे हो? उस आदमी ने प्रणाम कर के कहा- गुरुदेव! आपकी कृपा से मैं बहुत अच्छा हूँ आपने जो कहा था, उसके अनुसार भावना रखने से मेरा बहुत कल्याण हुआ है। मैं मेड के भीतर कभी- कभी एक अपूर्व मूर्ति देखता हूँ- उसके चार हाथ है, उस विष्णु रूपा चतुर्भुज मूर्ति का दर्शन कर परमानन्द में डूब जाता हूँ कहा भी गया है- हरि व्यापक सर्वत्र सामना। प्रेम ते प्रगट होहिं मैं जाना।।

* मेढ़ा - सींग वाला एक चौपाया जो लगभग डेढ़ हाथ ऊँचा और घने रोयों से ढका होता है ।


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प्रेरक कहानी - कर्म की जड़ें



एक हरा-भरा चरागाह था, जहाँ भगवान श्री कृष्ण की गाय चरा करती थीं। आश्चर्य की बात यह थी कि उस चरागा हमें अन्य कोई अपने पशु लेकर नहीं जाता था। यदि कोई अपने पशु लेकर वहाँ जाता, तो वहाँ की सारी घास भूरी हो जाती और सूख जाती। फलत: ऐसी घास को पशु न खाते। इन पशुओं के स्वामी भी निराश होते, जब वे देखते कि हरी घास न मिलने के कारण उनके पशु दूध नहीं दे रहे हैं। एक दिन श्रीकृष्ण के गायों से ईर्ष्या रखने वाले कुछ लोग उनकी गायों के पीछे-पीछे चरागाह चले गये। वहाँ श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ बातचीत करते हुए एक वृक्ष के नीचे बैठे हुए थे पशुओं के पीछे जाते हुए इन लोगों ने वहाँ एक चमत्कार देखा।

Krishna Balaram milking cows

उन्होंने देखा कि श्री कृष्ण की गौएँ घास की पत्तियों के साथ बातचीत कर रही हैं। घास की पत्तियाँ गायों से कह रही थीं-'प्यारी गायों, हमें खाओ, हमें चबाओ, हमारे दूध को मक्खन में बदल दो, ताकि यशोदा और गोपियाँ श्रीकृष्ण के सामने उसे खाने के लिये अर्पित करें। घास की पत्तियों की बातें सुनकर गौएँ भी बड़ी उत्सुक हुई और उनसे बोली 'हम कितनी घास खा सकती हैं, तुम तो बड़ी जल्दी उगती हो।' घास की पत्तियों ने इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए कहा-'हम इस तरह उगकर अपनी जड़ तक पहुँचना चाहती हैं। हम इतनी जल्दी उगकर यह चाहती हैं कि श्रीकृष्ण के लिये हम अर्पित हो जाये। हमारा जीवन शीघ्र ही समाप्त हो जाय और फिर बाद में हमें जीने की आवश्यकता न हो। यही कारण है कि हम श्रीकृष्ण की गायों की प्रतीक्षा करती हैं; क्योंकि श्रीकृष्ण गोशाला में अपनी प्रत्येक गाय का दूध पीते हैं।'

Sri Krishna Balaram

श्रीकृष्ण की गाय का पीछा करनेवाले लोग पहले स्तब्ध रह गये, किंतु बाद में उन्हें बोध हुआ। हे परमेश्वर! हमें भी घास की हरी-भरी पत्तियाँ बना दो। हम अपने को बिना किसी भेदभाव के आपके श्रीचरणों में पूर्णतया समर्पित कर देंगे। आप हमारे कर्मों की जड़ों पर इस तरह प्रहार करें कि जीवन के उपवन या चरागाह की हमें फिर कोई आवश्यकता न पड़े। आपके बिना हमारा जीवन नीरस है, निष्फल है, भूरा और सूखा है। जब आप हमारे साथ होंगे, तब हम हरे-भरे प्रकाश मान होकर आपके श्रीचरणों में विनयावनत हो जाएंगे।


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