परमवीर चक्र विजेता अब्‍दुल हमीद



अब्दुल हमीद
अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई, 1933 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में स्थित धरमपुर नाम के छोटे से गाँव में गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम मोहम्मद उस्मान था। उनके यहां परिवार की आजीविका को चलाने के लिए कपड़ों की सिलाई का काम होता था। लेकिन अब्दुल हमीद का दिल इस सिलाई के काम में बिल्कुल नहीं लगता था, उनका मन तो बस कुश्ती दंगल और दांव पेचों से लगता था, क्योंकि पहलवानी उनके खून में थी जो विरासत के रूप में मिली थी। उनके पिता और नाना दोनों ही पहलवान थे। शुरू से ही लाठी चलाना, कुश्ती करना और बाढ़ में नदी को पार करना, और सोते समय फौज और जंग के सपने देखना तथा अपनी गुलेल से पक्का निशाना लगाना वीर हमीद की खूबियों में था, और वे इन सभी चीजों में सबसे आगे रहते थे।
उनका एक गुण सबसे अच्छा था जो कि दूसरों की हर समय मदद करना, जरूरतमंद लोगों की सहायता करना और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना और बर्दास्त न करना। ऐसी ही घटना एक बार उनके गांव में हुई जब एक गरीब किसान की फसल को जबरदस्ती वहां के जमींदार के लगभग 50 गुंडे काटकर ले जाने के लिये आये, हमीद को इस बात का पता चला और उन्हें यह बात बर्दाश्त नहीं हुई और उन 50 गुंडों से वे अकेले ही भिड़ गए, जिसके कारण उन सभी गुंडों को भागना पड़ा और उस गरीब किसान की फसल बच गयी। एक बार तो उन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाकर गाँव में आयी भीषण बाढ़ में डूबती दो युवतियों की जान बचाई, और अपने साहस का परिचय दिया।


अब्दुल हमीद का बचपन
अब्दुल हमीद की बचपन से ही इच्छा वीर सिपाही बनने की थी। वह अपनी दादी से कहा करते थे कि – “मैं फौज में भर्ती होऊंगा" दादी जब कहती – “पिता की सिलाई की मशीन चला " तब कहते थे “हम जाईब फौज में! तोहरे रोकले ना रुकब हम, समझलू " दादी को उनकी जिद के आगे झुकना पड़ता और कहना पड़ता –“अच्छा-अच्छा जइय फौज में।" हमीद खुश हो जाते इस तरह अपने पिता उस्मान से भी फौज में भर्ती होने की जिद करते थे, और कपड़ा सीने के धंधे से इंकार कर देते।

सेना में भर्ती
21 वर्ष के अब्दुल हमीद जीवन यापन के लिये रेलवे में भर्ती होने के लिये गये परन्तु उनके संस्कार उन्हें प्रेरित कर रहे थे, सेना में भर्ती होकर देश सेवा के लिये। अतः उन्होंने एक सैनिक के रूप में 1954 में अपना कार्य प्रारम्भ किया। हमीद 27 दिसम्बर, 1954 को ग्रेनेडियर्स इन्फेंट्री रेजिमेंट में शामिल किये गये थे। जम्मू कश्मीर में तैनात हमीद पाकिस्तान से आने वाले घुसपैठियों की खबर लेते हुए मजा चखाते रहते थे, ऐसे ही एक आतंकवादी डाकू इनायत अली को जब उन्होंने पकड़ लिया तो प्रोत्साहन स्वरूप उनको पदोन्नति देकर सेना में लांस नायक बना दिया गया। 1962 में जब चीन ने भारत की पीठ में छुरा भोंका तो अब्दुल हमीद उस समय नेफा में तैनात थे, उनको अपने अरमान पूरे करने का विशेष अवसर नहीं मिला। उनका अरमान था कोई विशेष पराक्रम दिखाते हुए शत्रु को मार गिराना।
1965 का युद्ध
8 सितम्बर 1965 की रात में पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमला करने पर, उस हमले का जवाब देने के लिये भारतीय सेना के जवान उसका मुकाबला करने को खड़े हो गये। वीर अब्दुल हमीद तरनतारन जिले के खेमकरण सेक्टर में सेना की अग्रिम पंक्ति में तैनात थे। पाकिस्तान ने उस समय का अपराजेय माने जाने वाले अमेरिकन पैटन टैंकों के साथ, खेमकरन सेक्टर के असल उताड़ गांव पर हमला कर दिया। भारतीय सैनिकों के पास न तो टैंक थे और न ही बड़े हथियार, लेकिन उनके पास था भारत माताकी रक्षा के लिये लड़ते हुए मर जाने का हौसला। भारतीय सैनिक अपनी साधारण “ थ्री नॉट थ्री रायफल" और एल. एम. जी. के साथ पैटन टैंकों का सामना करने लगे। हवलदार वीर अब्दुल हमीद के पास “गन माउनटेड जीप" थी जो पैटन टैंकों के सामने मात्र एक खिलौने के समान थी। 
वीर अब्दुल हमीद ने अपनी जीप में बैठकर अपनी गनसे पैटन टैंकों के कमजोर अंगों पर एकदम सटीक निशाना लगाकर एक-एक कर ध्वस्त करना प्रारम्भ किया। उनको ऐसा करते देख अन्य सैनिकों का भी हौसला बढ़ गया और देखते ही देखते पाकिस्तानी फौज में भगदड़ मच गयी। वीर अब्दुल हमीदने अपनी 'गन माउन्टेड जीप' से सात पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट किया था। देखते ही देखते भारत का असल उताड़ गाँव पाकिस्तानी पैटन टैंकों की कब्रगाह बन गया। लेकिन भागते हुए पाकिस्तानियों का पीछा करते वीर अब्दुल हमीद की जीप पर एक गोला गिर जाने से वे बुरी तरह से घायल हो गये और अगले दिन 9 सितम्बर को उनका स्वर्गवास हो गया लेकिन उनके स्वर्ग सिधारने की आधिकारिक घोषणा 10 सितम्बर को की गयी थी।

सम्मान और पुरस्कार
इस युद्ध में असाधारण बहादुरी के लिये उन्हें पहले महावीर चक्र और फिर सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया। 28 जनवरी 2000 को भारतीय डाक विभाग द्वारा वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पाँच डाक टिकटों के सेट में उनके सम्मान में ३ रुपये का एक सचित्र डाक टिकट जारी किया गया। इस डाक टिकट पर रिकॉइललेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हमीद का रेखाचित्र बना हुआ है। चौथी ग्रेनेडियर्स ने अब्दुल हमीद की स्मृति में उनकी कब्र पर समाधि का निर्माण किया है। हर साल उनकी शहादत के दिन यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है। उताड़ निवासी उनके नाम से गाँव में एक डिस्पेंसरी, पुस्तकालय और स्कूल चलाते हैं। सैन्य डाक सेवाने 10 सितंबर, 1979 को उनके सम्मान में एक विशेष आवरण जारी किया है। सारा देश उनकी बहादुरी को प्रणाम करता है।

अब्दुल हमीद प्रश्नोत्तरी
अब्दुल हमीद ने कितने टैंक तोड़े थे?
परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद ने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965 Indo-Pak War) में अपना पराक्रम दिखाया था। 'असल उत्‍तर की लड़ाई' (Battle Of Asal Uttar) में हमीद ने अकेले ही पाकिस्तान के आठ पैटन टैंक बर्बाद कर दिए। पाकिस्तान के तरण तारण जिले में एक गांव हैं, आसल उत्‍ताड़।

अब्दुल हमीद ने दुश्मन के टैंकों को कैसे नष्ट किया?
इस बार हमीद ने देर ना करते हुए अपनी जीप में बैठे और टैंकों की ओर निकल पड़े। सामने से फायरिंग भी हो रही थी, लेकिन हमीद को कपास की खड़ी फसल का फायदा हुआ और दुश्मन उन्हें सीधे निशाने पर ना ले सका। वहीं हमीद ने पहले प्रमुख टैंक को नष्ट किया और फिर अपनी स्थिति बदल कर दो और टैंक ध्वस्त कर दिए।

वीर अब्दुल हमीद कैसे शहीद हुए थे?
साल 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वीर अब्दुल हमीद ने पाकिस्तानी दुश्मनों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी। उन्होंने पाकिस्तान के 7 पैटर्न टैंकों के परखच्चे उड़ा दिए थे। इसी दौरान वह शहीद हो गए थे।

अब्दुल हमीद कब शहीद हुए थे?
युद्धक्षेत्र में ही 10 सितंबर, 1965 को अब्दुल हमीद शहीद हुए, लेकिन तब तक वह अप्रतिम शौर्य की अविस्मरणीय दास्तां लिख चुके थे। इससे पहले कि अब्दुल हमीद की जांबाजी का किस्सा याद करें, आइए उनके निजी जीवन के बारे में जानते हैं। यूपी के गाजीपुर जिले के धरमपुर गांव में 1 जुलाई, 1933 को हमीद का जन्म हुआ था।

अब्दुल हमीद को परमवीर चक्र कब मिला?
57 साल पहले, 10 सितंबर 1965 को अब्‍दुल हमीद ने देश पर सर्वस्‍व न्‍योछावर कर दिया। मरणोपरांत परमवीर चक्र (भारत का सबसे बड़ा वीरता पदक) से सम्मानित अब्दुल हमीद को 'टैंक डिस्‍ट्रॉयर' के नाम से जाना जाता है।

1965 के युद्ध में शहीद वीर अब्दुल हमीद को कौन से वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया?
उनकी नज़र 4 ग्रेनेडियर के क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद के पोस्टर पर पड़ी। अब्दुल हमीद को 1965 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई में खेमकरन सेक्टर में पाकिस्तान के कई पैटन टैंक नष्ट करने के लिए परमवीर चक्र मिला था

अब्दुल हमीद को परम वीर चक्र क्यों मिला?
अविचलित, सीक्यूएमएच अब्दुल हमीद ने गोलीबारी जारी रखी और गंभीर रूप से घायल होने से पहले अपनी टुकड़ी को पाकिस्तान के सात टैंकों को नष्ट करने के लिए प्रेरित किया। उनकी विशिष्ट बहादुरी, प्रेरक नेतृत्व और सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें परमवीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया था।


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एक अंग्रेज जिलाधिकारी पर श्री राम कृपा



मधुरांतकम चेंगलपेट जिले का एक छोटा-सा शहर है, जो मद्रास (वर्तमान में चेन्नई) से पांडिचेरी के रास्ते पर है। वहां पर श्री रामचन्द्र जी का एक छोटा-सा मंदिर है। उस मंदिर के नजदीक एक बड़ी झील भी है। मद्रास से पांडिचेरी जाने वालों को उसी सड़क से जाना पड़ता है, जो मधुरांतकम की उस झील के बांध पर है। वह झील इतनी सुन्दर और काफी बड़ी है कि जिन लोगों को उस रास्ते पर जाना पड़ता है, उन लोगों का मन उस झील की तरफ आकर्षित हो जाता है और वे लोग उस झील के सुन्दर और मनोहर दृश्य को कभी भूल नहीं सकते।
उपर्युक्त झील और श्री रामचन्द्र जी के मंदिर के बारे में एक विचित्र लेकिन सच्ची कहानी प्रचलित है, जिससे मालूम होता है कि एक ईसाई अंग्रेज साहब भी श्री रामचन्द्र जी के भक्त बन सके और उनको भगवान के दर्शन भी मिले थे।
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बात १८८२ ई० की है। उस समय लियानल प्राइस साहब चेंगलपेट जिले के कलक्टर थे। उनको मधुरांतकम की झील देखने की बड़ी इच्छा हुई। झील इतनी बड़ी थी कि उसके आस-पास के कई गाँवों की खेती बारी के लिये उसका जल पर्याप्त था। लेकिन दुर्भाग्य से हर साल बरसात में जब झील भर जाती थी, तब उसका बाँध टूटकर सारा पानी बाहर चला जाता था और झील हमेशा सूखी-की-सूखी ही रह जाती थी।
इलाके वाले प्रतिवर्ष गर्मी के दिनों में उस झील के बांध की मरम्मत करते थे। हर साल मरम्मत के समय मि० प्राइस खुद वहाँ आकर पड़ाव डालते और अपनी मौजूदगी में ही सारा काम कराते थे। बरसात में बाढ़ से इसका बाँध हर साल टूट जाया करता था। कलक्टर साहब की झील की बड़ी चिंता होती थी। सन् १८८२ में भी सदा की तरह झील की मरम्मत शुरू हुई। स्वयं कलेक्टर साहब उसका निरीक्षण कर रहे थे। एक बार आप मंदिर के पास से निकले। उनकी इच्छा हुई कि चलकर मन्दिर देख आवें।
वे मंदिर में आये। ब्राह्मणों ने उनको मंदिर दिखाया। साहब ने देखा कि एक स्थान पर ढेरों पत्थर जमा हैं। साहब ने ब्राह्मणों से पत्थरों के जमा कर रखने का कारण पूछा। ब्राह्मणों ने जवाब दिया- 'साहब! श्री सीता जी का मंदिर बनाना है। लेकिन उसके लिये हम लोग सिर्फ पत्थर ही जमा कर सके हैं। शेष काम के लिये काफी धन जमा करने में हम असमर्थ हैं। ऐसे सत्कार्य के सफलतापूर्वक सिद्ध होने में धन का अभाव ही एक बाधा हो रही है। ' 'मुझे भी तुम्हारी देवी जी से एक प्रार्थना करने दो।'
वहां के भक्त ब्राह्मण अपनी-अपनी मनोवृत्ति के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र जी और माता सीताजी के गुणों और महिमाओं का वर्णन करने लगे। उसे सुनकर साहब ने उन लोगों से पूछा- 'क्या तुम लोग विश्वास करते हो कि तुम्हारी देवी भक्तों की मनोकामना पूरी करेंगी ?"
ब्राह्मणों ने दृढ़तापूर्वक जवाब दिया- 'निस्सन्देह।' कलक्टर साहब ने फिर पूछा-'अच्छा, यदि मैं भी तुम्हारी देवी जी से कुछ प्रार्थना करूं तो मेरी भी इच्छा उनकी कृपा से पूरी होगी?' ब्राह्मणों ने जवाब दिया जरूर।' तब साहब ने उन लोगों से कहा, 'यदि तुम लोगों की बात सच हो तो मैं भी तुम्हारी देवी जी से प्रार्थना करता हूँ कि इस झील की रक्षा, जिसकी मरम्मत हर साल हो रही है और पीछे जिसका नाश भी होता आ रहा है, यदि तुम्हारी देवी जी की कृपा से हो जाये, तो तुम्हारी देवी जी का मंदिर बनाने का भार मैं अपने ऊपर लूँगा।' प्रार्थना करके साहब वहां से लौट गए। मरम्मत का काम पूरा हो जाने के बाद साहब अपने घर चले गये।
फिर वर्षा शुरू हुई। साहब को बड़ी चिंता लगी। अबकी बार साहब घर में चुप न बैठ सके। उन्होंने मधुरांतकम में अपना पड़ाव डाला। एक रात को बहुत जोर से पानी बरस रहा था। इतने जोर से वृष्टि हो रही थी कि उस समय बाहर निकलना भी बहुत कठिन था। साहब बहुत अधीर हो उठे। उनको जरा भी चैन न मिला। वे तुरंत हाथ में छतरी लेकर झील की तरफ लपके। उनके दो नौकर, जो उस समय जाग रहे थे, पीछे-पीछे चले। उनको साहब के काम पर बड़ा अचरज हो रहा था।
साहब झील के बांध पर आकर खड़े हो गये। आकाश से मूसलाधार वृष्टि हो रही थी। रह-रहकर बिजली चमकती थी। बिजली के प्रकाश में साहब ने देखा कि झील पानी से ठसाठस भरी है। अब यदि थोड़ा भी जल उसमें ज्यादा पड़ जाएगा तो बस, सारा परिश्रम व्यर्थ हो जायेगा।
साहब घबड़ाये हुए वहाँ आकर खड़े हो गये, जहाँ हर साल बांध टूटता था। लेकिन वहाँ उन्हें कहीं टूट जाने का कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ा। अकस्मात् वहाँ बिजली की रोशनी दीख पड़ी। उस तेज:पुंज के बीच में श्याम और गौर वर्ण के दो सुन्दर युवक हाथ में धनुष-बाण लिए खड़े नजर आये। उन दोनों के सुन्दर और सुदृढ़ शरीर और उनके अनुपम रूप-लावण्य को देखकर साहब को बड़ा अचंभा हुआ। एक साथ आश्चर्य और भय का अनुभव होने लगा। वे एकाग्र दृष्टि से उसी तरफ देखने लगे, जहाँ दोनों वीर खड़े थे। अब साहब को पक्का विश्वास हो गया कि वे दोनों अलौकिक और अतुलनीय हैं। साहब अपनी छतरी और टोपी दूर फेंक कर उन करुणा मूर्तियों के पैरों पर गिर पड़े और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे।
नौकरों को साहब का यह अद्भुत आचरण देखकर संदेह हुआ कि कहीं हमारे साहब पागल तो नहीं हो गये। वे दोनों दौड़कर साहब के पास आये और घबड़ाये हुए से पूछने लगे– 'साहब! आपको क्या हो गया?" साहब उन लोगों से गद्गद स्वर में कहने लगे- 'नादानो। उधर देखते नहीं हो ?' देखो उधर, उधर ! कैसे सुन्दर दो सुन्दर और बलवान् युवक हाथों में धनुष-बाण लिये खड़े हैं। उनके चारों ओर बिजली की रोशनी सी  फैल रही है। उनमें एक हैं श्याम वर्ण के और दूसरे गौर वर्ण के। उनकी आँखों से करुणा की मानो वर्षा हो रही है। उनको देखते ही हमारी व्यग्रता मिटती जा रही है। अभी उन दोनों को देख लो। उधर देखो, उधर !!!'
नौकरों को कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा। साहब को पूरा विश्वास हो गया कि स्वयं श्री रामचन्द्रजी और लक्ष्मण जी ने ही झील की रक्षा की। दूसरे दिन सवेरे ही मधुरांतकम के लोगों ने पहली बार देखा कि झील पानी से परिपूर्ण है। लोगों के आनन्द की कोई सीमा न थी। साहब ने अपने कथनानुसार दूसरे ही दिन से श्रीसीताजी के मंदिर का काम शुरू कर दिया। जब तक मंदिर का काम पूरा न हुआ, तब तक वे वहीं रहे। जिस दिन झील की रक्षा हुई, उस दिन से वहाँ के श्री रामचंद्र जी का नाम पड़ा 'एरि कात्त पेरुमाल' अर्थात 'भगवान जिसने झील की रक्षा की है।'
श्री जानकी जी के मंदिर में एक पत्थर पर तमिल में यह बात खुदी हुई है, जिसके माने यह है कि, 'यह धर्म कार्य जान कंपनी की जागीर - कलेक्टर लियानल प्राइसका है।' इस विचित्र घटना से हम लोगों को मालूम होता है कि एक अंग्रेज ईसाई सज्जन श्री रामचंद्र जी के भक्त बनकर उनके दर्शन पा सके और श्रीसीता जी के मन्दिर के निर्माता बने। जो मनुष्य भगवान का सच्चा भक्त है और भगवान पर विश्वास करके उनको मानता है, वह चाहे जिस कुल का भी क्यों न हो, उसपर दया सिन्धु भगवान की पूर्ण रूप से अनुकम्पा रहती है।

संकलन


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लंगोट पहनने के फायदे और लाभ



जब भी लंगोट का नाम आता है तो मन में हनुमान जी का नाम सबसे पहले आता है क्योंकि वे हमेशा लंगोट पहनते है, दूसरा लंगोट साधकों का भी प्रतीक है क्योंकि जब पहले के साधु साधना करते थे तो वे अपने शरीर पर लंगोट के अलावा कुछ भी धारण नहीं करते थे, ऐसे साधकों को आज भी देखा जा सकता है। इसके अलावा लंगोट ब्रह्मचर्य का भी प्रतीक है क्योंकि माना जाता है कि जो व्यक्ति लंगोट पहनता है उसका उसकी काम वासना पर नियंत्रण रहता है। लंगोट त्रिकोण आकार में बना एक अन्तः वस्त्र है और इसे अधिकतर कुश्ती करने वाले पहलवान व जिम जाने वाले व्यक्ति अपने अभ्यास के दौरान पहनते है। अभ्यास के दौरान ये अन्तः अंगों को ढके भी रखता है और उन्हें चोट से भी बचाए रखता है। इसके अलावा भी लंगोट की अन्य खासियत होती है। लंगोट में किसी खास तरह के रंग की प्राथमिकता नहीं दी जाती लेकिन फिर भी लाल रंग का लंगोट बहुत लोकप्रिय होता हैं। इसके पीछे लोगों के अपने अपने मत है कोई इसे आस्था से जोड़ता है तो कोई इसे चिकित्सा शास्त्र से। पहले के समय में अनेक लोग और साधु ब्रह्मचर्य का पालन करते थे जिसके कारण वे हमेशा लंगोट धारण किये हुए रखते थे क्योंकि उनका मानना है कि लंगोट कामेच्छा पर नियंत्रण बनाए रखने में बहुत सहायक होता है।

Langot Nappies Pahanne ke Fayde Laabh

अकसर आपने पहलवान लोगों को लंगोट पहनते देखा होगा जो अखाड़े में जाते हैं। अखाड़े में जाने वाले लोग लंगोट पहनना जरूरी मानते हैं। लंगोट भारतीय पुरुषों द्वारा एक लुंगी या अंडरक्लॉकिंग के रूप में पहना जाने वाला एक अंडरगारमेंट है। मलयालम में, इसका नाम लैंकोटी / लंगोटी कहते है। लंगोट को “कौपीन” भी कहा जाता हैं। लेकिन लंगोट पहना अखाड़े में ही नहीं अब कुछ जि‍म्‍स में जटिल वर्कआउट के दौरान लंगोट पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। आइए जानते हैं कि लंगोट पहनना पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए कितना जरूरी है।
अखाड़े में वर्जिश या कुश्ती समय पुरुष लंगोट जरूर पहनते हैं। लंगोट आज से नहीं बल्कि वैदिक काल से हमारे देश में पुरुष अंडरवियर के तौर पर लंगोट पहनते आ रहे हैं। धीरे-धीरे पुरुषों का ये पारंपरिक अंतर्वस्‍त्र अखाड़े या योग तक ही सीमित कर रह गया है। इसे कई नाम से जाना जाता था। कौपिनम, कौपीन, लंकौटी, लंगौटी और लंगौट। आपको जानकर हैरानी होगी कि पारम्परिक तौर पर अंडरवियर के तौर पर लंगोट पहनना पुरुष के जननांगों के लिए बेहतरीन होता हैं। बल्कि ये सेक्सुअल लाइफ को भी बेहतर बनाता हैं।
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इसका संबंध पुरुषों के स्वास्थ्य से भी है। लंगोट पहनना उनकी सेक्सुअल लाइफ को भी बेहतर बनाता है। इसलिए अब कुछ जिम में जटिल वर्कआउट के दौरान लंगोट पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। आपने अकसर उन लोगों को लंगोट पहनते देखा होगा जो अखाड़े में जाते हैं। अखाड़े में जाने वाले लोग लंगोट पहनना जरूरी मानते हैं। पर क्‍या आप जानते हैं कि इसका संबंध पुरुषों के स्वास्थ्य से भी है। लंगोट पहनना उनकी सेक्सुअल लाइफ को भी बेहतर बनाता है। इसलिए अब कुछ जि‍म्स में जटिल वर्कआउट के दौरान लंगोट पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। आइए जानते हैं कि लंगोट पहनना पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए कितना जरूरी है।
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अन्तःवस्त्र लंगोट द्वारा ऊर्जा संरक्षण, लंगोट बांधने का सबसे बड़ा फायदा पहुंचता है आपके टेस्टिल्स यानी अंडकोशों को। कई बार ज्यादा मेहनत करने की वजह से उनका साइज बढ़ जाता है। आम भाषा में हम ये भी कहते हैं कि उनमें पानी भर गया है। अगर एक बार ऐसा हो गया तो फिर वो आपरेशन से ही ठीक होता है। लंगोट आपके अंडकोशों को टाइट करके रखता है इससे पानी भरने की समस्या नहीं होती। इसके अलावा इससे लोवर एबडॉमिन की मसल्स को सपोर्ट मिलता है। जिनके पेट के निचले हिस्से में ज्यादा हैवी कसरत करने से सूजन आ जाती है उन्हें भी इसका इस्तेमाल करना चाहिए। रनिंग करते वक्त भी लंगोट पहनना चाहिए इससे नीचे की चीजें इधर उधर नहीं भागतीं। वैसे तो लंगोट किसी भी कलर का हो सकता है मगर लाल लंगोट अनुशासन का प्रतीक होता है। लाल रंग बजरंग बली से भी जुड़ता है। अखाड़ों में आमतौर पर हनुमान जी की ही प्रतिमा लगी होती है। लाल रंग की निशानी भी होती है।
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जिस तरह से हमारे पूर्वज लंगोट का इस्तेमाल करते थे उसे देखकर ये कहा जा सकता है कि लंगोट हमारी परम्पराओं में से एक है, किन्तु पीढ़ी को हमारे पुराने रिवाजों के बारे में पता नहीं हैं, जिसके फलस्वरूप वे इन सब चीजों से वंचित रह जाते हैं। हमारी पीढ़ी को लंगोट की महानता के बारे में कुछ नहीं पता और यही वजह है कि हम अपनी परम्परा को पीछे छोड़ते जा रहे हैं, जिसका खामियाजा हमें आने वाले समय में भोगना होगा। मांगलिक कार्यों खासकर रामचरितमानस के अखंड पाठ, किसी भी तरह का यज्ञ, महा यज्ञ आदि में जो ध्वज लगता है वह लंगोट के आकार का ही होता है जो ब्रह्मचर्य की ओर जाने का इशारा करता है, यानी ऊर्जा संरक्षण का संदेश देता है। कुल मिलाकर यह ऊर्जा संरक्षण का प्रतीक चिह्न है। आज भी यह बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी सहित अनेक देवताओं को चढ़ाया जाता है। मन्नतें पूरी होने पर अनेक देव स्थानों पर लंगोट चढ़ाने की परंपरा आज भी जीवित है।
वाराणसी घाट पर लंगोट पहना हुआ व्‍यक्ति
वाराणसी घाट पर लंगोट पहना हुआ व्‍यक्ति

क्या है लंगोट - लंगोट असल में पुरुषों का अंडरगारमेंट है। इसे पुरुषों का अंत: वस्त्र भी कहा जाता है। यह अनस्टिच्ड यानी बिना सिला तिकोना कपड़ा होता है। जिसे विशेष तौर पर पुरुष जननांग यानी टेस्टिकल्‍स और पेनिस एरिया को ढकने के लिए बनाया जाता है। पर इसे बांधने का एक खास तरीका होता है। जिसके कारण यह पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।
लंगोट का अर्थ - लंगोट दो शब्दों का मेल है। लंगोट को समझने के लिए इसको तोड़ कर इसका वास्तविक रूप देखा जा सकता हैं। लंगोट = लं + गोट मतलब जो लं.. और गोट दोनों को ही सम्हाल कर रखें, उनकी रक्षा करें वो लंगोट कहलाता है।
लंगोट कैसे पहनी जाती है - लंगोट देखने में भले ही साधारण लगे पर इसे बांधने का एक खास तरीका होता है। जिसे आप किसी भी जिम में जाकर सीख सकते हैं। लंगोट को टेस्टिकल्‍स और पेनिस एरिया पर इस तरह लपेटा जाता है कि उसे सपोर्ट मिले और अनावश्यक दबाव भी न बनें। यह अंडकोषों के आकार को संतुलित रखता है।
  • लंगोट बांधने के लिए लंगोट के तीन हिस्से होते है,
  • ऊपर की और दो पतली रस्सी होती है।
  • उनको कमर पर बांधा जाता है, की तरफ से उसके पश्चात तीसरे हिस्से को पीछे की तरफ रखते है।
  • उसको नीचे की तरफ से प्राइवेट पार्ट के साथ ऊपर की बंदी दो रसिया के बीच में से निकलकर वापस पीछे की तरफ लेकर जाना होता है।
  • इस प्रकार पीछे की तरफ दोनों रस्सियों के मध्य लगा देते है।
Langot Nappies Pahanne ke Fayde Laabh


लंगोट कैसे पहनें
लंगोट एक प्रकार का अंडरवियर जो पारंपरिक रूप से भारतीय उप महाद्वीप में पुरुष पहनते है। जॉकस्ट्रैप के समान, यह कपड़े के त्रिकोण से बना होता है जिसमें शीर्ष पर टाई होती है और नीचे से कपड़े की एक लंबी पट्टी लटकती है। एक बार जब आप इसे अपनी जगह पर स्थापित कर लेते हैं, तो पट्टियों को सही ढंग से लपेटना और बांधना एक साधारण बात है। कुछ लोग वजन उठाते समय, योग करते समय, या कुश्ती जैसे खेल में लंगोट पहनते हैं, जहां उन्हें जननांगों की सुरक्षा में इसको पहनते है।

लंगोट बांधना
1. लंगोट एक तरफ ऐसा होना चाहिए जहां आप सीम को महसूस कर सकें और एक तरफ जहां आप नहीं कर सकें। इसे और अधिक आरामदायक बनाने के लिए, जब आप इसे अपनी जगह पर लगाना शुरू करें तो इसका निर्बाध भाग आपके शरीर की ओर होना चाहिए।
2. त्रिकोण के लंबे, सपाट किनारे को, जिसमें से दो पट्टियाँ फैली हुई होनी चाहिए, अपनी पीठ के शीर्ष पर रखें। प्रत्येक हाथ में एक पट्टा पकड़ें और प्रत्येक को सामने की ओर लाएँ ताकि आप कपड़े को खींच सकें। आपका तल कपड़े की लंबी पट्टी, या त्रिकोण का बिंदु, आपके पीछे और आपके पैरों के बीच लटका होना चाहिए।
3. कपड़े के लंबे टुकड़े को अपने पैरों से होते हुए अपने कंधे के ऊपर खींचें। अपने पैरों के बीच पहुंचें और कपड़े को पकड़ें। इसे अपने पैरों के बीच खींचें, यह सुनिश्चित करते हुए कि आप इसे सीधा और चिकना रखें। इसे अपनी कमर तक लाएँ और सिरे को अपने कंधे पर फेंकें।  कपड़े को कस कर खींचते समय, सुनिश्चित करें कि आपके गुप्तांग आपके शरीर से टिके हुए हैं और पीछे की ओर निर्देशित हैं। लंबे टुकड़े को अपने कंधे पर फेंकने से जब आप अपना लंगोट सामने बांधेंगे तो वह रास्ते से हट जाएगा। 
4. डोरियों को अपने सामने लाएँ और उन्हें एक बार पार करें। उन्हें चारों ओर खींचें ताकि वे कस जाएं और फिर एक धागे को दूसरे के ऊपर लपेटें जैसे कि आप एक चौकोर गाँठ बाँधना शुरू कर रहे हों, या जैसे आप अपने जूते बाँधना शुरू कर रहे हों। यह आपकी प्राकृतिक कमर के बराबर होना चाहिए।
5. पीछे की ओर डोरियों को फिर से क्रास करें। डोरियों को कस कर खींचते हुए, उन्हें अपनी पीठ के चारों ओर लपेटें। उन्हें एक-दूसरे के पास से गुजारें और विपरीत दिशा में फिर से सामने लाएँ। जब आप ऐसा कर रहे हों तो तारों को कस कर रखें।
6. डोरियों को सामने एक सुरक्षित धनुष में बाँधें। डोरियों को अपने शरीर के केंद्र की बजाय अपने कूल्हों के एक तरफ थोड़ा सा बांधें - इससे लंगोट बंधने के बाद थोड़ा अधिक आरामदायक हो जाएगा। फिर, डोरियों को कसकर खींचें और फिर एक धनुष बांधें, जैसे कि आप जूते के फीते बांध रहे हों। इससे लंगोट सुरक्षित हो जाएगा और आप चौकोर गाँठ भी बाँध सकते हैं ।

7. कपड़े के लंबे टुकड़े को पीठ में सुरक्षित करने के लिए अपने पैरों के माध्यम से पीछे खींचें। कपड़े के लंबे टुकड़े को अपने कंधे से खींच लें और इसे उस गाँठ पर लटका दें जिसे आपने अभी बाँधा है। पीछे से अपने पैरों के माध्यम से पहुंचें और इसे अपने पैरों के माध्यम से खींचने के लिए पकड़ें। इसे तना हुआ खींचें, और फिर सिरे को पीछे त्रिकोण के शीर्ष पर दबा दें।
 

कार्डियो के समय है जरूरी - जब भी आप कोई जटिल एक्सरसाइज या वर्कआउट करें तो उस समय लंगोट जरूर पहने। यह पुरुषों के प्राइवेट पार्ट की हेल्‍थ के लिए जरूरी है। इससे उस पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता। कार्डियो करते समय भी आप इस तरह अपना ख्याल रख सकते हैं।

सेहत से है लंगोट का संबंध - इससे पुरुषों के टेस्टिकल्स यानी अंडकोशों की सेहत अच्छी रहती है। कई बार ज्यादा वर्कआउट या मेहनत करने की वजह से उनका आकार बढ़ जाता है। जिससे उनमें दर्द होने लगता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रजनन क्षमता बनाए रखने के लिए टेस्टिकल्‍स की सेहत का ध्यान रखना सबसे ज्यादा जरूरी है। कई बार इनमें पानी भर जाने की समस्या भी हो जाती है। जो सेक्‍स लाइफ पर बुरा असर डालती है। इन सब समस्याओं से बचाने में लंगोट काफी मददगार है।

स्किन फ्रेंडली - लंगोट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सादा सूती कपड़े यानी काटन का बना होता है। जिससे किसी भी तरह के रैशेज या अन्‍य समस्याएं नहीं होती। इसे स्किन फ्रेंडली माना जाता है। जिससे अनावश्यक हीट जनरेट नहीं होती। इसलिए भी लंगोट पहनना पुरुषों की सेहत के लिए अच्छा माना जाता है।

क्या लंगोट बांधना जरूरी है - लंगोट बांधने के क्या फायदे होते हैं ये हमने आपको बता दिए हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं जो सालों से जिम कर रहे हैं और लंगोट भी नहीं बाँधते और उन्हें कोई प्रॉब्लम भी नहीं हुई है। आप सपोर्टर या टाइट अंडरवियर पहनकर भी काम चला सकते हैं, लेकिन ये जरूरी तो नहीं कि अगर बाकी लोगों को कोई परेशानी नहीं हुई है तो आपको भी नहीं होगी। दूसरी बात ये भी है कि अकसर लोग ये बताते ही नहीं हैं कि उनके अंडकोषों में पानी भर गया है। अगर आपको लंगोट बांधने से एलर्जी नहीं है तो फिर इसे बांधने में हिचकिचाहट कैसी। ये आपकी तैयारी का एक हिस्सा होता है। अगर आप स्पोर्ट्स शूज नहीं पहनेंगे तब भी उतनी ही बेंच प्रैस लगाएंगे जितनी शूज पहनकर मगर शूज, ट्रैक पैंट, टी शर्ट हमारी तैयारी का हिस्सा होता है। इसी तरह से लंगोट हमारी तैयारी का हिस्सा होता है। आप भारतीय हैं तो इसका सम्मान करें और कसरत से पहले लंगोट पहने। इससे आपका माइंड और बॉडी कड़ी मेहनत के लिए तैयार हो जाएंगे।


लंगोट पहनने के फायदे
  1. लंगोटी शारीरिक व्यायाम या योग अभ्यास के दौरान हड्डी और अंग के विस्थापन और तंत्रिकाओं पर खिंचाव को रोकता हैं।
  2. लंगोट पहनने से पुरुषों के टेस्टिल्स यानी अंडकोषों की सेहत अच्छी रहती है। कई बार ज्यादा वर्कआउट या मेहनत करने की वजह से उनका आकार बढ़ जाता है। जिससे उनमें दर्द होने लगता है।
  3. वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रजनन क्षमता बनाए रखने के लिए टेस्टिकल्‍स की सेहत का ध्यान रखना सबसे ज्यादा जरूरी है। कई बार इनमें पानी भर जाने की समस्या भी हो जाती है। जो सेक्स लाइफ पर बुरा असर डालती है।
  4. यह ऊर्जा को पूरे शरीर में सही और सही अनुपात में प्रवाहित करने में सक्षम बनाता है।
  5. लंगोटी के उपयोग से व्यायाम या योग अभ्यास के दौरान ऊर्जा, शक्ति और सहनशक्ति मिलती है।
  6. लंगोट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सादा सूती कपड़े यानी कॉटन का बना होता है। जिससे किसी भी तरह के रैशेज या अन्य समस्या नहीं होती। इसे स्किन फ्रेंडली माना जाता है। जिससे अनावश्यक हीट जनरेट नहीं होती। इसलिए भी लंगोट पहनना पुरुषों की सेहत के लिए अच्‍छा माना जाता है।
  7. जब भी आप कोई हैवी एक्सरसाइज या वर्कआउट करते है तो लंगोट पहनना एक तरह मदद करता है। इसे पहनने से एक्सरसाइज के दौरान पुरुषों के प्राइवेट पार्ट पर ज्यादा दबाव नहीं बनता है और पुरुष इसमें ज्यादा आराम महसूस करते हैं।
  8. पारम्परिक तौर पर अंडरवियर के तौर पर लंगोट पहनना पुरुष के जननांगों के लिए बेहतरीन होता हैं। बल्कि ये सेक्सुअल लाइफ को भी बेहतर बनाता हैं।
  9. अंत:वस्‍त्र लंगोट काम वासना पर नियंत्रण तो करता ही है, इसे पहनने वाले को कभी हाइड्रोशील की बीमारी नहीं होती और अंडकोश को यह चोट से बचाता है, ख़ासकर साइकिल, मोटर साइकिल आदि से गिरने पर लगने वाली चोट से। दौड़ने, चलने, योगासन व व्यायाम में सुविधाजनक है।
लंगोट पहनने के कोई नुकसान नहीं है
लंगोट बांधने का सबसे बड़ा फायदा पहुंचता है आपके टेस्टिल्स यानी अंडकोशों को कई बार ज्‍यादा मेहनत करने की वजह से उनका साइज बढ़ जाता है। आम भाषा में हम ये भी कहते हैं कि उनमें पानी भर गया है। अगर एक बार ऐसा हो गया तो फिर वो आपरेशन से ही ठीक होता है। लंगोट आपके अंडकोशों को टाइट करके रखता है इससे पानी भरने की समस्या नहीं होती। इसके अलावा इससे लोवर एबडॉमिन की मसल्स को सपोर्ट मिलता है। जिनके पेट के निचले हिस्से में ज्यादा हैवी कसरत करने से सूजन आ जाती है उन्हें भी इसका इस्तेमाल करना चाहिए। रनिंग करते वक्त भी लंगोट पहनना चाहिए इससे नीचे की चीजें इधर उधर नहीं भागतीं। वैसे तो लंगोट किसी भी कलर का हो सकता है मगर लाल लंगोट (lal langot) अनुशासन का प्रतीक होता है। लाल रंग बजरंग बली से भी जुड़ता है। अखाड़ों में आमतौर पर हनुमान जी की ही प्रतिमा लगी होती है। लाल रंग की निशानी भी होती है।
वर्तमान समय में लंगोट के स्थान पर ज़्यादातर लोग लंगोट की जगह इलास्टिक स्प्पोर्टर को उपयोग करते है। जो लंगोट की तरह ही होता है। उसे बांधने की जरूरत नहीं होती है। इसका उपयोग लंगोट की तरह ही होता है। ये लंगोट से भिन्न है। लंगोट और सपोटर दोनों उसे प्रकार है। जिस प्रकार अंडरवियर और निक्कर अब कपडे दोनों ही पहनने के परन्तु अलग अलग यूज़ है दोनों का। सपोर्टर के ऊपर की तरफ एक इलास्टिक रबर होता है। उसके अलावा उसके अंदर की तरफ ग्रोइन एरिया में डबल लेयर होती है कपड़े की जिसका यूज़ ग्रोइन गार्ड डालने में किया जाता है। बाकी इसकी संरचना अंडरवियर की तरह ही होती है।

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