नमामि शमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं - शिव रुद्राष्टकम



Shiv Rudrashtkam - Namami Shamishan

शिव रुद्राष्टकम
नमामि शमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं॥1॥

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोहं॥2॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेहं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥

कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्मधारी॥6॥

न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शम्भो ॥8॥

" रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥ "


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श्री गणेश स्तुति एवं भगवान गणपति के मंत्र




वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥

सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः ।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः ॥

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥

मूषिकवाहन मोदकहस्त चामरकर्ण विलम्बित सूत्र ।
वामनरूप महेस्वरपुत्र विघ्नविनायक पाद नमस्ते ॥




ॐ गं गणपतये नमः ।
ऐसा शास्त्रोक्त वचन हैं कि गणेश जी का यह मंत्र चमत्कारिक और तत्काल फल देने वाला मंत्र हैं। इस मंत्र का पूर्ण भक्तिपूर्वक जप करने से समस्त बाधाएं दूर होती हैं। षडाक्षरी का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि दायक है।

ॐ वक्रतुण्डाय हुम् ।
 किसी के द्वारा की गई तांत्रिक क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं कि शीघ्र पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना कि जाती हैं। उच्छिष्ट गणपति के मंत्र का जाप अक्षय भंडार प्रदान करने वाला है ।

ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।
आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए विघ्नराज रूप की आराधना का यह मंत्र जपे ।

ॐ गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:।
मंत्र जाप से कर्म बंधन, रोग निवारण, कुबुद्धि, कुसंगति, दुर्भाग्य, से मुक्ति होती हैं। समस्त विघ्न दूर होकर धन, आध्यात्मिक चेतना के विकास एवं आत्मबल की प्राप्ति के लिए हेरम्ब गणपति का मंत्र जपे ।

ॐ गूं नम:।
रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक समृद्धि प्राप्त होकर सुख सौभाग्य प्राप्त होता है।

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरदे नमः
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात।

लक्ष्मी प्राप्ति एवं व्यवसाय बाधाएं दूर करने हेतु उत्तम माना गया है ।

ॐ गीः गूं गणपतये नमः स्वाहा।
इस मंत्र के जाप से समस्त प्रकार के विघ्नों एवं संकटों का नाश होता है।

ॐ श्री गं सौभाग्य गणपत्ये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा।
विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है ।

ॐ वक्रतुण्डेक द्रष्टाय क्लींहीं श्रीं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मं दशमानय स्वाहा ।
इस मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष संकटनाशक, गणेश स्त्रोत, गणेश कवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्त्रोत मयूरेश स्त्रोत, गणेश चालीसा का पाठ करने से गणेश जी की शीघ्र कृपा प्राप्त होती है ।

ॐ वर वरदाय विजय गणपतये नमः।
इस मंत्र के जाप से मुकदमे में सफलता प्राप्त होती हैं।

ॐ गं गणपतये सर्वविघ्न हराय सर्वाय सर्वगुरवे लम्बोदराय ह्रीं गं नमः।
वाद-विवाद, कोर्ट कचहरी में विजय प्राप्ति, शत्रु भय से छुटकारा पाने हेतु उत्तम।

ॐ नमःसिद्धिविनायकाय सर्वकार्यकर्त्रे सर्वविघ्न प्रशमनाय सर्व राज्य वश्यकारनाय सर्वजन सर्व स्त्री पुरुषाकर्षणाय श्री ॐ स्वाहा।
इस मंत्र के जाप को यात्रा में सफलता प्राप्ति हेतु प्रयोग किया जाता हैं।

ॐ हुं गं ग्लौं हरिद्रा गणपत्ये वरद वरद सर्वजन हृदये स्तम्भय स्वाहा।
यह हरिद्रा गणेश साधना का चमत्कारी मंत्र हैं।

ॐ ग्लौं गं गणपतये नमः।
गृह कलेश निवारण एवं घर में सुखशान्ति कि प्राप्ति हेतु।

ॐ गं लक्ष्म्यौ आगच्छ आगच्छ फट्।
इस मंत्र के जाप से दरिद्रता का नाश होकर, धन प्राप्ति के प्रबल योग बनने लगते हैं।

ॐ गणेश महालक्ष्म्यै नमः।
व्यापार से सम्बन्धित बाधाएं एवं परेशानियां निवारण एवं व्यापर में निरंतर उन्नति हेतु।

ॐ गं रोग मुक्तये फट्।
भयानक असाध्य रोगों से परेशानी होने पर उचित ईलाज कराने पर भी लाभ प्राप्त नहीं हो रहा हो, तो पूर्ण विश्वास सें मंत्र का जाप करने से या जानकार व्यक्ति से जाप करवाने से धीरे-धीरे रोगी को रोग से छुटकारा मिलता हैं।

ॐ अन्तरिक्षाय स्वाहा।
इस मंत्र के जाप से मनोकामना पूर्ति के अवसर प्राप्त होने लगते हैं।

गं गणपत्ये पुत्र वरदाय नमः।
इस मंत्र के जाप से उत्तम संतान कि प्राप्ति होती हैं।

ॐ वर वरदाय विजय गणपतये नमः।
इस मंत्र के जाप से मुकदमे में सफलता प्राप्त होती हैं।

ॐ श्री गणेश ऋण छिन्धि वरेण्य हुं नमः फट ।
यह ऋण हर्ता मंत्र हैं। इस मंत्र का नियमित जाप करना चाहिए। इससे गणेश जी प्रसन्न होते है और साधक का ऋण चुकता होता है। कहा जाता है कि जिसके घर में एक बार भी इस मंत्र का उच्चारण हो जाता है उसके घर में कभी भी ऋण या दरिद्रता नहीं आ सकती।

जप विधि- प्रात: स्नानादि शुद्ध होकर कुश या ऊन के आसन पर पूर्व की और मुख होकर बैठें। सामने गणेश जी का चित्र, यंत्र या मूर्ति स्थापित करें फिर षोडशोपचार या पंचोपचार से भगवान गजानन का पूजन कर प्रथम दिन संकल्प करें।

इसके बाद- भगवान गणेश का एकाग्रचित्त से ध्यान करें। नैवेद्य में यदि संभव हो तो बूंदी या बेसन के लड्डू का भोग लगाये नहीं तो गुड़ का भोग लगाये । साधक को गणेश जी के चित्र या मूर्ति के सम्मुख शुद्ध घी का दीपक जलाएं। रोज 108 माला का जाप करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती हैं। यदि एक दिन में 108 माला संभव न हो तो 54, 27, 18 या 9 मालाओं का भी जाप किया जा सकता है। मंत्र जाप करने में यदि आप असमर्थ हो, तो किसी ब्राह्मण को उचित दक्षिणा देकर उनसे जाप करवाया जा सकता हैं।


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ब्रह्मचर्य का नियम एवं शक्ति तथा ब्रह्मचर्य का पालन




ब्रह्मचर्य तो महान तप है , जो इसका पूर्ण पालन कर लेते है वे तो वह देव स्वरूप ही होता है ।
” न तपस्तप इत्याहुः ब्रह्मचर्य तपोत्तमम् ।
उर्ध्वरेता भवेद्यस्तु स देवौ न तु मानुषः ॥”
लेकिन यह बहुत कठिन है क्योंकि पितामह ने सृष्टि के लिए प्रकृति की रचना करके सारे प्राणियों को मन व इन्द्रियों से युक्त कर रखा है तथा बुद्धि को त्रिगुण से युक्त कर के तब सृष्टि का रचना किया है। अतः हम रज तम से प्रवृत्त हो कर संकल्प से या लोभ वश काम आदि के वशीभूत हो जाते है । काम को वश में करने का एक ही उपाय है , संकल्प का नाश । तथा सभी प्रकृति के प्रतिनिधियों (स्त्री जाति) को सृष्टि के लिए सहायक समझना होगा, भोग्य दृष्टि से नहीं देखना चाहिए तथा अविवाहित पुरुषों को तो किसी को गलत दृष्टि से देखना भी नहीं चाहिए। ब्रह्मचर्य में अनंत गुण है। 
आयुस्तेजो बलं वीर्यं प्रज्ञा श्रीश्च महदयशः ।
पुण्यं च हरि प्रियत्वं च लभते ब्रह्मचर्यया ॥

ब्रह्मचर्य क्या है?
ब्रह्मचर्य (Brahmacharya ) अर्थात् मन-वचन-काया के द्वारा किसी भी प्रकार के विषय-विकार में हिस्सा नहीं लेना या उसे प्रोत्साहन नहीं देना। आप विवाहित हैं या नहीं उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। जो यह समझना और सीखना चाहते हैं कि ब्रह्मचर्य का पालन कैसे किया जाये, उनके लिए ज्ञानी पुरुष की यह अद्वितीय नई दृष्टि एकमात्र पुख्ता उपाय है। ब्रह्मचर्य शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है:- ब्रह्म + चर्य , अर्थात ज्ञान प्राप्ति के लिए जीवन बिताना। ब्रह्मचर्य योग के आधारभूत स्तंभों में से एक है। ब्रह्मचर्य का अर्थ है सात्विक जीवन बिताना, शुभ विचारों से अपने वीर्य का रक्षण करना, भगवान का ध्यान करना और विद्या ग्रहण करना। यह वैदिक धर्म वर्णाश्रम का पहला आश्रम भी है, जिसके अनुसार यह 25 वर्ष तक की आयु का होता है और जिस आश्रम का पालन करते हुए विद्यार्थियों को भावी जीवन के लिये शिक्षा ग्रहण करनी होती है। ब्रह्मचर्य से असाधारण ज्ञान पाया जा सकता है वैदिक काल और वर्तमान समय के सभी ऋषियों ने इसका अनुसरण करने को कहा है क्यों महत्वपूर्ण है ब्रह्मचर्य- हमारी जिंदगी मे जितना जरूरी वायु ग्रहण करना है उतना ही जरूरी ब्रह्मचर्य है। आज से पहले हजारों वर्ष से हमारे ऋषि मुनि ब्रह्मचर्य का तप करते आए हैं क्योंकि इसका पालन करने से हम इस संसार के सर्वसुखो की प्राप्ति कर सकते हैं। ब्रह्मचर्य वो अवस्था है जिसमे व्यक्ति का दिल और दिमाग ईश्वर भक्ति में लीन रहता है। जिस व्यक्ति का अपनी सभी इन्द्रियों पर सम्पूर्ण रूप से कण्ट्रोल है वही ब्रह्मचर्य का सही तरीके से पालन कर रहा है। इसका पालन करने वालो के लिए भौतिक सुख सुविधा और सम्भोग मायने नहीं रखता। मायने रखता है ईश्वर में उनका ध्यान और आत्म संतुष्टि। ऐसे व्यक्ति दूसरी स्त्रियों को गलत नजर से नहीं देखते हैं। जो सत्य को जान ले और वेदों का अध्ययन करे वो ब्रह्मचारी है।

प्राचीन भारतीय संस्कृति में ब्रह्मचर्य का विस्तृत वर्णन मिलता है। जिसमें सनातन धर्म के ऋषियों ने आध्यात्मिक यात्रा के लिये ब्रह्मचर्य को महत्वपूर्ण बताया है। लेकिन जिस ब्रह्मचर्य की बात ऋषियों ने की थी, उसको आज ज्यादातर गलत तरीके से लोगों के सामने पेश किया जा रहा है। जिसमें यह कहा जा रहा है कि अगर आप मात्र 30 दिनों तक ब्रह्मचर्य (वीर्य को रोकना) का पालन करते हो तो आपको असाधारण शक्ति शक्ति की प्राप्ति हो जायेगी। आप कभी बीमार नहीं होंगे और आप अपने जीवन में जो भी भौतिक सुख सुविधायें पाना चाहते है, उसको बहुत ही आसानी से प्राप्त कर लेंगे। ऐसे ही लुभाने वाली बातें आज कल वीडियो में बताई जाती है। जिससे लोगों का समय बर्बाद होता है और वो ब्रह्मचर्य को सही तरीके से कभी जान ही नहीं पाते है। वैसे इंटरनेट की दुनिया में ज्यादातर लोगों का मकसद होता है पैसा कमाना वो फिर चाहे लोगों को गलत जानकारी देकर ही क्यों न कमाया जाये। इसलिये ब्रह्मचर्य को लेकर इतना झूठा प्रचार किया जा रहा है।
ब्रह्मचर्य का सीधा सा अर्थ यह होता है कि आपकी जीवनचर्या ब्रह्म की तरह हो जाना अर्थात जब मनुष्य का आचरण ब्रह्म के केंद्र से संचालित होने लगता है, तो उस मनुष्य को ब्रह्मचारी कहा जाता है। जब व्यक्ति ब्रह्मचर्य को प्राप्त होता है तो उसको इस जगत की बहुत सी भौतिक सुख सुविधाये, ब्रह्मचर्य के सुख से छोटी प्रतीत होने लगती है। इस जगत की बहुत सी भौतिक सुख सुविधाये में एक सुख जो पुरुष को स्त्री से और स्त्री को पुरुष मिलता है यानी संभोग का सुख वो भी मनुष्य को बहुत छोटा दिखाई देने लगता है और फिर ब्रह्मचर्य को प्राप्त होने वाला व्यक्ति इन सब छोटी-छोटी बातों में अपना समय व्यर्थ नही गंवाता है। लेकिन यहां इसका मतलब यह नहीं है कि ब्रह्मचारी व्यक्ति शादी नहीं कर सकता। ब्रह्मचर्य का विवाह से कोई संबंध नही होता है और ना ही वीर्य से कोई मतलब होता है। कुछ लोग अपने अहंकार को बढ़ावा देने के लिये वीर्य को बहुत अशुद्ध बता देते है, जबकि वो यह भूल जाते है कि जिस शरीर को वह धारण किये हुये है वह भी एक वीर्य का विस्तृत रूप है और वीर्य तो मनुष्य का प्राकृतिक गुण है, यह गुण मनुष्य का ही नही अपितु समस्त प्राणी जगत के जीवों का है। इसलिये वीर्य को ब्रह्मचर्य के लिये अशुद्ध मानना गलत है। एक बात यहां ध्यान देने वाली यह कि जिस ब्रह्मचर्य की परिभाषा, आज के लोगो द्वारा गढी जा रही है, उसका केंद्र काम ही है। इस बात को आप इस तरह समझे कि जो व्यक्ति संभोग करता है वो कामी और जो व्यक्ति काम को त्याग दे वो ब्रह्मचारी। इसलिये मनुष्य काम के साथ चले या फिर काम के विपरीत कुल मिलाकर बात एक ही होती है। जबकि ब्रह्मचर्य का इन सब छोटी-छोटी बातो से कोई लेना देना नही होता है। हां ब्रह्मचर्य में एक बात जरूरी होती है कि जब व्यक्ति ब्रह्मचर्य को उपलब्ध होता है तो वो हर किसी से एक स्वस्थ्य सम्बंध बनाता है। जैसे कि ब्रह्मचारी व्यक्ति हर किसी महिला को काम भरी निगाहों से नही देखता है। कुल मिलाकर ब्रह्मचर्य का अर्थ है सत्य को जान लेना। इस प्रकार अब आप समझ गये होगे कि ब्रह्मचर्य क्या है। ब्रह्मचर्य में इतनी शक्ति है कि व्यक्ति इससे अपने आप को पा लेता है और उसे असाधारण ज्ञान भी प्राप्त होता है। सालों पहले हमारे ऋषि मुनि ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए तप करते थे जिसके फलस्वरूप वो एक लम्बी आयु जीते थे और सेहतमंद जीवन जीते हुए सर्व सुख प्राप्त करते थे। उनके सुखी जीवन को देखकर ये बात साबित होती है कि ब्रह्मचर्य के फायदे बहुत सारे और मूल्यवान हैं।

ब्रह्मचर्य की प्रचण्ड शक्ति
ब्रह्मचर्य में उतरने से मनुष्य के अंदर प्रचण्ड शक्ति का उद्गम होता है। ब्रह्मचर्य की शक्ति इतनी प्रचण्ड होती है कि मनुष्य अपने इन्द्रियों का राजा हो जाता है। ब्रह्मचर्य की शक्ति से मनुष्य के मन में इतनी संकल्प शक्ति पैदा होती है कि मनुष्य उस संकल्प शक्ति से ब्रह्मांड में विचरण कर सकता है। और वो पंचभूत का महारथी बन जाता है। जिससे वो किसी भी प्रकार की शरीर को धारण कर सकता है। ब्रह्मचर्य की शक्ति असीम है, इसको शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता है।

ब्रह्मचारी के लक्षण
ब्रह्मचारी एक वृक्ष की तरह होता है, जिसमें सहनशीलता कोई सीमा नहीं होती है। ब्रह्मचारी, मनुष्य जाति को बिना किसी स्वार्थ के एक खुशहाल जीवन जीने का रास्ता दिखाता है। ब्रह्मचारी हमेशा निष्काम भाव से जीता है। इसलिये जिसके जीवन में कोई इच्छा ना बची हो उसे ही ब्रह्मचारी कहते है।
ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें
वैसे तो ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिये कोई विशेष नियम नहीं होता है, क्योंकि ब्रह्मचर्य कोई शारीरिक क्रिया नहीं है, जिसे आप कर सके। लेकिन यदि आप ब्रह्मचर्य को उपलब्ध होना चाहते है तो आप ध्यान में बैठना शुरू करें। जैसे-जैसे आपका ध्यान गहरा होता जायेगा वैसे-वैसे आपका अपनी इंद्रियों में कंट्रोल होता जायेगा और आप धीरे-धीर ब्रह्मचर्य को उपलब्ध होते जायेंगे। ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए आंतरिक भावना होनी चाहिए और उसके लिए भगवान से मन-वचन-काया से ब्रह्मचर्य का पालन करने की शक्ति मांगनी चाहिए। मन को कंट्रोल करने के बजाय उन कारणों को ढूँढ निकाले जिससे मन विषय-विकार में फंस जाता है और तुरंत ही वह लिंक तोड़ डालें। ब्रह्मचर्य के पालन से होने वाले फायदे और विषय-विकार से होने वाले नुकसान का आकलन करें। विवाहित लोगों के लिए, आपसी सहमति से ब्रह्मचर्य व्रत लेना या फिर एक दूसरे के प्रति वफादार रहना, वही इस काल में ब्रह्मचर्य पालन करने के समान है।

ब्रह्मचर्य के नियम
  • आप अपने आहार-विहार को सही रखें।
  • ईश्वर पर पूरा भरोसा करें।
  • कुछ समय प्रकृति में बिताए और अपने आस पास के खूबसूरत प्राकृतिक को अपने अन्दर आत्मसात कर ले।
  • गलत लोगों की संगति से दूर रहे।
  • जो भी काम करे उसको होशपूर्ण करें।
  • जो भी काम करें उसे पूरे होशोहवास और एकाग्र होकर करें।
  • दिन में कुछ समय मौन अर्थात चुप रहने की कोशिश करें।
  • दिन में कुछ समय मौन रहें।
  • दुष्ट और दुराचारी लोगों से दूर रहे।
  • दूसरों की निंदा करने से बचें।
  • दूसरों की बुराइयां करना और गलतियाँ गिनाना बंद करें।
  • दैनिक जीवन का कुछ समय प्रकृति के साथ बिताये।
  • बिना वजह फालतू की बातें न करें।
  • बेवजह किसी से बात ना करें।
  • भगवान पर पूर्ण भरोसा रखें।
  • मन में हमेशा अच्छे विचारों को जगह दें।
  • हमेशा हल्का फुल्का सात्विक भोजन करें।

ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें
  • अच्छी धार्मिक पुस्तकें पढ़ा करें जैसे रामायण, महाभारत, गीता, पुराण आदि।
  • अपने मन को मजबूत करें और ये मान ले की काम वासना से आपको सुख नहीं मिलेगा। जब आप इस धारणा को मन में जगह दे देंगे तो तब आप अच्छी तरह और तन्मयता से ब्रह्मचर्य का पालन कर पाएंगे।
  • जब भी किसी चीज को देखकर आपका मन भटकने लगे तो मन को तुरंत समझा दें कि आपके सामने जो है वो बस एक हाड़ मांस का पुतला है।
  • जिनसे आपको आकर्षण हो सकता है उनसे दूर रहे। ध्यान करे और अपने मन को अच्छी और भक्तिमय चीजों पर लगाने का प्रयत्न करें। रोज़ अगर ये प्रयास करेंगे तो आप पूरी तरह से अपने मन पर काबू कर पाएंगे।
  • दिन भर का कुछ समय सत्संग और भक्ति के लिए निकाले। सत्संग आपको ईश्वर के करीब ले जाएगा और आपका मन कामुकता की और नहीं जाएगा। गुरु के उपदेश आपको जीवन में अच्छी बातें सिखाएंगे जो आपको ब्रह्मचर्य का पालन करने में मदद करेंगे।
  • नित्य क्रिया से निपटने के बाद अपने हाथों और पैरो को ज़रुर साफ़ करे।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करना सीखने में गुरु बहुत मदद कर सकते है और आप उनके बताए नियमों और संस्कारों पर चलकर सख़्ती से अपने ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते है।
  • ब्रह्मचारी का पालन करने वालो को सिनेमा का त्याग करना चाहिए क्योंकि आजकल के सिनेमा में अश्लीलता और भड़काऊ चीजे दिखाई जाती हैं।
  • रात को जल्दी सोने और सुबह जल्दी ब्रह्म मुहूर्त में उठने की आदत डाले और रात को हाथ पैर धोकर साफ़ कपड़े पहनकर सोए। सोने से पहले और उठने के बाद ईश्वर का स्मरण करें।
  • रोज़ योग और प्राणायाम करने की आदत डाले। सुबह साफ़ और शुद्ध वातावरण में और शांत वातावरण में एक्सरसाइज करें।
  • सुबह शाम ईश्वर की पूजा में मन और उनका मंत्र जाप करे, इससे मन एकाग्र होगा। उनसे प्रार्थना करें कि वो आपका मन भटकने न दे और ब्रह्मचर्य का पालन करने में आपकी मदद करें।
  • हफ्ते में एक बार सख़्ती से उपवास जरूर करें क्योंकि उपवास हमें अपने आप पर कंट्रोल करना सिखाता है,साथ ही संकल्प शक्ति को स्ट्रांग करना सिखाता है।
  • हमेशा अच्छे और ब्रह्मचर्य का पालन करने वालो की संगत में रहे। दुष्ट लोगो से दूर रहे क्योंकि उनके गलत विचार आप पर बुरा असर डाल सकते है।
  • हमेशा सात्विक भोजन करे और सडा हुआ, तेज मसालेदार, नॉन वेज आदि गरिष्ट भोजन न करे। हमेशा ईमानदारी से कमाए पैसे से ख़रीदा हुआ भोजन खाए।
  • हमेशा साफ़ सुथरे और हल्के कपड़े पहने।
गृहस्थ जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें
यह सवाल हर शादी शुदा स्त्री पुरुष के मन में रहता है कि गृहस्थ जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें। ब्रह्मचर्य का विवाह से कोई संबंध नहीं होता है। आप जिस भी अवस्था में है, सिर्फ ध्यान करना शुरू कर दीजिए। ब्रह्मचर्य के लिये किसी अवस्था का होना मायने नहीं रखता है। इसलिये आप जीवन की किसी भी स्थिति में रहकर ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो सकते है।
ब्रह्मचर्य के फायदे
  • अगर आप मन, वाणी व बुद्धि को शुद्ध रखना चाहते है तो आप को ब्रह्मचर्य पालन करना बहुत जरूरी है आयुर्वेद का भी यही कहना है कि अगर आप ब्रह्मचर्य का पालन पूर्णतया 3 महीने तक करते है तो आप को मनोबल, देहबल और वचनबल में परिवर्तन महसूस होगा , जीवन के ऊँचे से ऊँचे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचर्य का जीवन मे होना बहुत जरूरी है।
  • अपने दिल और अपने मन को कंट्रोल करना सीख जाते हैं।
  • उनमें लोगों से अच्छे से बात करने की समझ और कुशलता आ जाती है।
  • उसे छोटी छोटी सी चीज भी ख़ुशी देती है।
  • ऐसा व्यक्ति तनाव भरे माहौल में भी संयम के साथ काम कर पाते है।
  • ब्रह्मचर्य करने वालों की सोच अच्छी और पवित्र होती है क्योंकि उनका उनकी इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण होता है।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले जो भी काम करना शुरू करते हैं वो खत्म करने के बाद ही छोड़ते हैं।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों के अन्दर ऊर्जा बनी रहती है।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करने से चित्त एकदम शुद्ध हो जाता है।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करने से देह निरोगी रहती है।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करने से मनोबल बढ़ता है।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करने से रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है।
  • ब्रह्मचर्य के पालन से शारीरिक क्षमता, मानसिक बल , बौद्धिक क्षमता और दृढ़ता बढ़ती है।
  • ब्रह्मचर्य पालन करने वाला व्यक्ति किसी भी कार्य को पूरा कर सकता है।
  • ब्रह्मचर्य मनुष्य का मन उनके नियंत्रण में रहता है।
  • ब्रह्मचर्य मनुष्य की एकाग्रता और ग्रहण करने की क्षमता बढ़ाता है।
  • ब्रह्मचर्य से व्यक्ति का आत्मविश्वास पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ जाता है।
  • ब्रह्मचर्य से व्यक्ति की एकाग्रता और याददाश्त बढ़ती है।
  • ब्रह्मचर्य से व्यक्ति के सांस लेने की प्रक्रिया सुधरती है।
  • ब्रह्मचारी मनुष्य हर परिस्थिति में भी स्थिर रह कर उसका सामना कर सकता है।
  • ब्रह्मचारी  तनाव मुक्त रहते हैं।
  • ब्रह्मचारी स्वयं की नज़रों में ऊपर उठता है।
  • व्यक्ति अपने आपको पहले के मुकाबले अच्छे से प्रस्तुत करना और व्यक्त करना सीख जाता है।
  • व्यक्ति अपने काम पर ज्यादा ध्यान लगा पाता है।
  • व्यक्ति का अपने मन और अपने भावों पर पूर्ण नियंत्रण होगा।
  • व्यक्ति को अपने जीवन में मज़ा आने लगता है।
  • व्यक्ति टाइम मैनेजमेंट सीख जाता है इसलिए उसे ज्यादा फ्री टाइम मिलने लगता है।
  • व्यक्ति मानसिक रूप से सुदृढ़ होगा।
  • समाज में लोगों से जुड़ने और बात करने का डर खत्म हो जाता है।
ब्रह्मचर्य के नुकसान
वैसे तो ब्रह्मचर्य से कोई नुकसान नहीं होता है। लेकिन इतना जरूर है कि जो व्यक्ति रिश्तों के डोर में बंधा है, वो धीरे-धीरे रिश्तों के डोर से मुक्त होने लगता है और उसके मन से संग्रह करने की लालसा विसर्जित होने लगती है। जिससे शायद ही वो अपने सगे संबंधी के अनुरूप अपना जीवन बिता पाये। ब्रह्मचर्य में भौतिक सुख सुविधाओं की जरूरतें सीमित हो जाती है। इसलिए ऐसे व्यक्तियों को ब्रह्मचर्य में नहीं उतरना चाहिये, जिनके मन में ब्रह्मचर्य का पालन करने से भौतिक सुख सुविधाओं की पूर्ति करनी हो। क्योंकि ब्रह्मचर्य से सदा उनको हानि ही होगी।


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