निबंध - भारत की वर्तमान दशा और विचार राष्‍ट्रवाद के परिपेक्ष मे



कितना घोर कलयुग आ गया है जिस देश का दिया खाते है, उसकी मान्यताओं को मानने में शर्म करते है। आज कल इस वामपंथियों के पास कोई काम नहीं है। जब चाहते है कांग्रेस के साथ वैलेंटाइन डे की डेट पर चले जाते है जब चुनाव आता है तो तलाक की अर्जी लगा देते है। क्या करे धोबी का कुत्ता न घर का घाट का ? कुत्ता भी इस वामपंथियों से अच्छा है जो कम से कम मालिक के नमक हरामी तो नहीं करता है।

ये वामपंथियों के पास कोई काम धाम नहीं है बस इनकी पूरी टीम आज कल यही देख रही है कि संघ के कार्यक्रमों मे कौन-कौन जा रहा है। अब यह ही देखिये भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान राहुल द्रविड़ ने हाल में ही नागपुर मे संघ द्वारा संचालित सरस्वती विद्या मंदिर के द्वारा आयोजित विद्यालय के सूर्य नमस्कार कार्यक्रम का उद्घाटन किया था। द्रविड़ ने दीप प्रज्वलित करने के बाद बच्चों से प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हुए कहा कि ‘सूर्य नमस्कार करने से शरीर पूरी तरह फिट रहता है।‘


इन वामपंथियों की तुच्छ मानसिकता यह है कि ये किसी को संघ के साथ पचा नहीं पाते है। दोष द्रविड़ के बयान में न था दोष उनके संघ के कार्यक्रम में शामिल होने तथा सूर्य नमस्कार के समर्थन करने का। अगर यही द्रविड़ खुले आम किसी वामपंथी सभा में होते तो गलत नहीं होता है अगर संघ की बात आती है तो यह गलत हो जाता है।

आजकल सरकार स्कूलों में भोग शिक्षा (सेक्स एजुकेशन) के कार्यक्रम चलाने जा रही है क्या यह हमारे परिवेश के लिये ठीक है। हाल में ही बाबा राम देव ने स्कूलों में सेक्स एजुकेशन का विरोध किया था। उनका कहना था कि आज पीढी के लिये भोग शिक्षा के अपेक्षा योग शिक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

क्या वास्तव मे हमारे स्कूलों में सेक्स शिक्षा की जरूरत है? इण्‍टर (12वी) की शिक्षा के पहले इस प्रकार शिक्षा की जरूरत तो मुझे नहीं लगती है क्योंकि हमारे देश वैवाहिक आयु 18-21 वर्ष है तो इससे पहले शिक्षा देने क्या औचित्य है ? आखिर हम बच्चों को इनके बारे में बात कर सिद्ध करना चाहते है। जिस समय पढ़ाई लिखाई और खेलकूद का माहौल होना चाहिए उस अवस्था में हम वयस्क श्रेणी की शिक्षा देने का प्रयास कर रहे है। हम पश्चात परम्पराओं का अनुकरण तो कर रहे है पर उनसे कोई सीख नहीं ले रहे है।

राहुल द्रविड़ के बारे किया गयी वामपंथियों की टिप्पणी उनकी विकृत मानसिकता की ओर इंगित करता है। इन को वामपंथियों भारत के अल्पसंख्यकों पर हो रहा अत्याचार तो दिखता है किन्तु भारत मे ही तथा भारत के बाहर हो रहे हिन्दुओं पर अत्याचार इन्हें नहीं दिखता। विदेशों में ख़ासकर वर्तमान मे कजाकिस्तान में हाल में ही एक हिन्दू मंदिर को तोड़ा गया तथा अब वहाँ रह रहे हिन्दुओं अपने भीषण ठंड में अपने घरों से बाहर निकाला जा रहा है। इस परिपेक्ष मे भारत सरकार की चुप्पी कहां तक उचित है? क्यों चुप है सेक्युलर पार्टियां ?

जब यही घटनाये भारत में होती है तो पूरा विश्व समुदाय हो हल्ला मचाता है, चाहे वह उड़ीसा के ग्राहम स्टेनस का मामला हो या गुजरात की घटनाऐ, भारत सरकार सफाई देती नहीं थकती किन्तु जब विदेशों में भरतवंशी के साथ यह घटनाऐ होती है तो हमारी मौन हो कर तमाशा देखती है। वह क्यों नहीं विश्व समुदाय के सामने अपना विरोध दर्ज करती है।

जब हमारी सरकार तथा वो पार्टियां भारत में ही जिनके वोटों से सत्ता रस का भोग करती है उनके हितों की रक्षा नहीं कर सकती तो हम भारत के बाहर इन सत्ता के दलालों से क्या अपेक्षा रखे। जब ये हमारे हितों की रक्षा नहीं कर सकते, हमारे मान्यता मर्यादाओं की लाज की रक्षा नहीं कर सकते तो इन्हें सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं है।



मै यहां बात हिन्दू और मुसलमानों की नहीं कर रहा हूँ, मैं बात भारतीयता की कर रहा हूँ। चाहे कोई भी हो चाहे हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई-जैन-बौद्ध किसी भी धर्म के व्यक्ति को अपने भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि कोई हिंदू किसी मुस्लिम से ज्यादा बड़ा देश भक्त है। हमारे सामने कई उदाहरण है जब मुस्लिमों ने देश की रक्षा में अपना अमूल्य योगदान दिया है, और इसी कारण आज हमारा देश गर्व और सम्मान के साथ उन्हें याद भी करता है इस कारण से एनही कि वे मुस्लिम है इस कारण से कि वह जो अपने प्राणों का बलिदान किया वह एक सच्चा भारतीय था।

भारतीय मुस्लिम समाज आज अन्य विश्व के देशों के मुस्लिम राष्ट्रों से काफी पिछड़ा हुआ है। कारण यह नहीं है कि मुस्लिम आगे बढ़ना नहीं चाहते है कारण है कि उन्हें आगे बढ़ने नहीं देना चाहते है। जब पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम राष्ट्रों के मुस्लिमों की सोच बदल रही है तो भारत के मुस्लिमों में क्यों नहीं। अभी हाल में ही बांग्लादेश में मुल्ला मौलवियों ने पोलियो तथा परिवार नियोजन के बारे लोगों से चर्चा की तो यह भारत में क्यों नहीं संभव है।


हाल के कुछ हफ्ते पहले ही किसी एक विधायक को आगरा के निकट हिन्दू यज्ञ में शामिल होने के कारण मुस्लिम धर्म से निकाल दिया गया। यह सोच कहाँ तक उचित है। तो ये मौलवियों भारत के महामहिम राष्ट्रपति जी को क्यों नहीं निकाल देते है जो हिन्दू पवित्र धर्म ग्रन्थ गीता का नियमित पाठ करते है। वे नहीं कर सकते है क्योंकि किसी साफ व्यक्तित्व को अगर दागदार करेंगे तो उनके ही धर्म के वे राष्ट्रवादी व्यक्ति इसका विरोध करेंगे। आगरा के विधायक की बात दब सकती है पर राष्ट्रपति पर की जाने वाली कार्यवाही, इनके आवाही-तवाही नियम कानून की धज्जियां उडा देंगे।

मैंने कभी बचपन में इस्लामिक राष्ट्र मालदीव के बारे में सुना था कि इस राष्ट्र में आप अपने साथ इस्लाम के अतिरिक्त किसी और धर्म के किसी भी प्रकार के धार्मिक चिन्ह या प्रतीक नहीं ले जा सकते है यह कितना सही है यह मुझे स्पष्ट ज्ञात नहीं अगर आप में से किसी को इस बात की जारी हो तो मेरी इस शंका का निवारण करें। जब मालदीव जैसा छोटा राष्ट्र अपने देश के मानव मूल्यों तथा आस्था को बरकरार रख सकता है। तो क्या भारत में वन्देमातरम, सूर्य नमस्कार, योग, वास्तु शास्त्र सहित वैदिक मान्यताओं का विरोध देश के साथ विश्वासघात नहीं है?


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10 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर लेख प्रमेन्द्र जी
पूरे लेख से सहमत होते हुए एक बात से आंशिक रूप से असहमत हूँ वह है यौन शिक्षा के बारे में आपके विचार। इस शिक्शा पद्दति को भोग शिक्षा कहना अनुचित है क्यों कि इसमें सिर्फ़ शारिरिक संबंधों के बारे में शिक्षा नहीं दी जाती वरन अपने शरीर के प्रति जागरुकता भी सिखाई जाती है।
फिर भी एक प्रश्न तो मन में आ ही जाता है कि किसी भी विज्ञान को सही तरीके से सीखने के लिये उसका प्रेक्टिकल ज्ञान जरूरी होता है तो इस शिक्षा पद्दति के बारे में क्या किया जायेगा प्रेक्टिकल ज्ञान देने के लिये ?क्टि
बाकी जिन लोगों के लिये आपने लेख लिखा है उन लोगों को विरोध करने के अलावा कुछ आता भी है ? हम उनके बारे में लिख पढ़ कर क्यों पना समय और जायका खराब करें?

Prabhash Anand ने कहा…

PARMENDRA JI NAMAKAR
YAH MERA DURBHAGYA HAI KI MUJHE HINDI TYPING NADI AATI.
AAPKA LEKH PADA BAHUT HI ACHHA LEKH THA HAI. MAIN AAPKI BAATON SE PURNATAH SAHMAT HOON. ASHA HAI AISE LEKH BHAVISYA MEIN BHI PRAKASHIT HOTE RAHENGE.

बेनामी ने कहा…

काफ़ी आक्रामक चिंतन है आपका. भाई जी, बहुत ही सटीक अघात किया है वामपंथियों की मानसिकता पर.रही बात भारत सरकार के सफ़ाई देने की तो बंधु सदा कमजोर ही ऐसा करते आये हैं जो कर्मठ हैं उन्हें आगे आकर पलटवार करना आता है. सरकार के लिये देश के अंदर की समस्याएं ही काफ़ी हैं. बाकी सब भी अच्छा लिखा है... ...बस ऐसा जा़री रखें.

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

@ सागर भाई मेरा सिर्फ इतना कहना था कि एक पेड़ भी फलने फलने का समय होता है, जब उसका समय आता है तो वह अपने आप फल देने लगता है। ठीक उसी प्रकार बालको को इस बारे श्रेणी की जानकारी देने से कोई लाभ नही है। मै यौन शिक्षा का विोध नही करता हूँ किन्‍तु इसे 18 से कम उम्र के व्‍यक्ति को देने के खिलाफ है। आज कल वेसे भी युवा पथ भ्रष्‍ट हो रहे है। मै देखता हूँ कि वे बच्‍चे 10 से 18 साल के बीच के वे सिकरेट पान मसाला आदि का सेवन करते है। आये दिन छेडखानी के मामले भी आते है, जब अभी की विभीषिका इतनी दयनीय है तो जब लोगो को पता होगा तो क्‍या होगा

@ प्रभाश जी नमस्‍कार हिन्‍दी टाईपिंग बहुत सरल, मै तो लिखता रहता हूँ और आपकी प्रतीक्षा मे लिखता रहूँगा, अपना सहयोग और स्‍नेह प्रदान करते रहे।


@ भाई हंसमुख जी, धन्‍यवाद की आपको मेरा लिखा पंसद आया।

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

इन वामपथियों की तो सोच ही सठियाई हुयी है, वैसे इनकी गलती भी नही है, इनके अधिकतर कार्यकर्ता 60 साल बाद वाले ही हैं, लेकिन यौन शिक्षा के संबध मे तुम्हारे विचारों से मै सहमत नही, यौन शिक्षा वक्त की आवशयकता है, सही -बुरे मे अंतर आज टी वी संस्कृति मे 14-15 साल की उभ्र मे ही मिल जाना चाहिये।

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

यौन शिक्षा का अर्थ सिर्फ़ कन्डोम और एडेस की जानकारी देना भर नही है, बल्कि जवानी की दहलीज पर खडे युवक-युवतियों को गुमराह होने से बचाना भी है। मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब मैने हाई स्कूल लखनऊ के महानगर ब्वाएज इन्टर स्कूल से वर्ष 1977 मे किया था तब भी यौन शिक्षा अनिवार्य थी, लेकिन उसकी सोच जैसा आप सोच रहे हो वैसी कतई नही थी।

बेनामी ने कहा…

यौन शिक्षा के तो अपने भी पक्षधर है.
बाकि आपने जो वामपंथियों के बारे में कहा है, वह एकदम सही है. दोगलेपन का उदाहरण देना हो तो वामपंथि सर्वोत्तम है.
हिन्दू बिखरे हुए तथा कमजोर है इसलिए यह हाल है.

ePandit ने कहा…

अब भैया इन वामपंथियों का क्या कहें। सूर्य नमस्कार एक योगासन है ये इसको भी धर्म से जोड़ रहे हैं। और अगर धर्म से भी जुड़ा है तो कोई गंदा काम है क्या जो ये लोग विरोध कर रहे हैं।

इन वामपंथियों का तो नारा है - हम तो विरोध करेगा।

लोग 'सन बाथ' करते हैं, उसकी हिन्दी करो: 'सूर्य स्नान' अब ये लोग उसका भी विरोध करेंगे क्या।

NK. ने कहा…

परमेन्द्र जी,

आपका लेख मुझे बहुत अच्छा लगा. पर मैं आपके यह कहने से सहमत नहीं हूं कि सेक्स एजुकेशन भोग शिक्षा है क्योंकि यह हमारे समाज में यौन विषय के बारे में वो जागरुकता बढ़ाने के लिए जरूरी है. जो कि हमारे समाज में नदारद है और उसके चलते हम यौन शोषण और बलात्कार जैसे अपराधों में बढ़ोत्तरी देखते हैं. बाकी सब बहुत अच्छा है.

धन्यवाद
नीरज.

Rakesh sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर लेख प्रमेन्द्र जी
पूरे लेख से हूँ ।