एक तरफ भगवान श्री कृष्‍ण तो दूसरी तरफ ईसा



आज मै अनत:जाल ( Internet ) पर विचरण कर रहा था, एक चित्र देखने को मिला, और देखते ही देखते एक कविता भी बन गई। चित्र और कविता दोनों आपके सम्मुख है बताईये कैसी लगी? आप कविता की बुराई कर सकते है पर चित्र अपने आप मे अद्वितीय है।


एक तरफ भगवान श्री कृष्‍ण तो दूसरी तरफ ईसा

एक तरफ योगेश्‍वर है,
तो एक तरफ है ईसा।
दोनों मे नही कोई अन्‍तर
दोनों ही पूजे जाते है।
हो सकती है पूजा पद्धति अलग अलग,
पूजते है केवल मानव।
तो क्‍यों सब बन जाते है,
इस ईश्‍वर के कारण दानव।


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6 टिप्‍पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत सुन्दर! क्योंकि ईश्वर या प्रकृति ने हममें दानवीय तत्व भी डाल दिये हैं । वैसे ,सबने चाहा तो यही था कि धर्म द्वारा मनुष्यों को जोड़े पर वह न हो सका ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
miredmiragemusings.blogspot.com/

ePandit ने कहा…

वाह वाहु, सुन्दर चित्र और सुन्दर ही कविता। चित्र में ही कविता खोज निकाली आपने।

पंकज बेंगाणी ने कहा…

सही चित्र जुगाडे हो भाई

बेनामी ने कहा…

महाशक्तिजी,
चित्र व कविता के भाव दोनो ही सुन्दर है.

हम तैयार है, मगर क्या ईसाईयों में इतनी हिम्मत होगी :)

हरिराम ने कहा…

जिस प्रकार एक ही माता-पिता के बच्चे, अर्थात् भाई-बहन कभी प्यार मिलकर रहते हैं, तो कभी लड़ते-झगड़ते हैं। उसी प्रकार एक ही धर्म के अनुयायी भी आपस में लड़ते हैं। जैसे थाईलैण्ड और वर्मा दोनों ही बौद्ध धर्मावलम्बी देश हैं, किन्तु उनमें एक बुद्ध की मूर्ति को लेकर 9 बार लड़ाई हुई और हजारों लोग मारे गए। यदि बुद्ध जिन्दा होते तो क्या बच्चों का यह आचरण देखकर आत्महत्या नहीं कर लेते?

कृष्ण ने आपस में लड़ते-लड़ते अपने विशाल यदुवंश का अन्त अपनी आँखों के सामने ही देखा था? क्यों नहीं रोक सके? या स्वयं ही नाश करवा दिया? यह सब संसार नाटक में पूर्व-निश्चत है? क्या युद्ध में मरना-मारना परम पुण्य है? यही है कहता है भगवानुवाच उर्फ गीता ज्ञान?

Mohinder56 ने कहा…

वाह वाहु, सुन्दर चित्र और सुन्दर ही कविता।