किडनैपिंग पर क्या कानून है? – Law on Kidnapping in Hindi



अपहरण पर कानून धारा 363a भारतीय दंड संहिता
अपहरण पर कानून धारा 363a भारतीय दंड संहिता
किसी नाबालिग लड़के, जिसकी उम्र सोलह साल से कम है या नाबालिग लड़की, जिसकी उम्र अठारह साल से कम है, को उसके संरक्षक की आज्ञा के बिना कहीं ले जाना अपहरण का अपराध है तथा इसके लिए अपराधी को सात साल की कैद और जुर्माना हो सकता है।
अपहरण
किसी नाबालिग लड़के, जिसकी उम्र सोलह साल से कम है या नाबालिग लड़की, जिसकी उम्र अठारह साल से कम है, को उसके संरक्षक की आज्ञा के बिना कहीं ले जाना अपहरण का अपराध है तथा इसके लिए अपराधी को सात साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। अगर कोई बहला फुसला कर भी बच्चों को ले जाए तो कहने को तो बच्चा अपनी मर्जी से गया, लेकिन कानून में वह अपराध होगा। 
 
व्यपहरण (Kidnapping )पर कानून
(अंतर्गत धारा 362, 364, 364क, 365, 366, 367, 369 भारतीय दंड संहिता)
व्यपहरण
किसी बालिग व्यक्ति को जोर जबरदस्ती से या बहला फुसला कर किसी कारण से कहीं ले जाया जाए तो यह व्यपहरण का अपराध है। यह कारण निम्नलिखित हो सकते है। जैसे:- फिरौती की रकम के लिए, उसे गलत तरीके से कैद रखने के लिए, उसे गंभीर चोट पहुंचाने के लिए, उसे गुलाम बनाने के लिए इत्यादि। 
 
धारा 366 भारतीय दंड संहिता Section 366 in The Indian Penal Code
धारा के अन्तर्गत विवाह आदि के करने को विवश करने के लिए किसी स्त्री को अपहृत करना या उत्प्रेरक करने के बारे में बताया गया है। इसमें बताया गया है कि जो कोई किसी स्त्री का अपहरण या व्यपहरण उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी व्यक्ति से विवाह करने के लिए उस स्त्री को विवश करने के आशय से या यह विवश की जाएगी, यह सम्भाव्य जानते हुए अथवा आयुक्त सम्भोग करने के लिए उस स्त्री को विवश, यह विलुब्ध करने के लिए, यह सम्भाव्य जाने हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक से भी दण्डनीय होगी। 
 
अनैतिक व्यापार पर कानून
(अंतर्गत धारा 366 क, 366ख, 372, 373 भारतीय दंड संहिता)
यदि कोई व्यक्ति किसी भी लड़की को वेश्यावृति के लिए खरीदता या बेचता है तो उसे दस साल तक की कैद और जुर्माना की सजा होगी। अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम, 1956 यदि कोई व्यक्ति वेश्यावृति के लिए किसी व्यक्ति को खरीदता बेचता, बहलाता फुसलाता या उपलब्ध करवाता है तो उसे तीन से चौदह साल तक की कैद और जुर्माने की सजा होगी। 
 
धारा 366 क भारतीय दंड संहिता Section 366A in The Indian Penal Code
धारा 366 क के अन्तर्गत अप्राप्त लड़की को उपादान के बारे में बताया गया है। इसके अन्तर्गत कहा गया है कि जो कोई अठारह वर्ष से कम आयु की अप्राप्तवय लड़की को, अन्य व्यक्ति से आयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध करने के आशय से या तद्द्वारा विवश या विलब्ध किया जाएगा, यह सम्भाव्य जानते हुए ऐसी लड़की को किसी स्थान से जाने को कोई कार्य करने को, किसी भी साधन द्वारा उत्प्रेरित करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माना से भी दण्डनीय होगा।
 
धारा 366 ख भारतीय दंड संहिता Section 366B in The Indian Penal Code 
धारा 366 (ख) के अन्तर्गत विदेश से लड़की को आयात करने के बारे में बताया गया है कम आयु की किसी लड़की का भारत के बाहर उसके किसी देश से या जम्मू-कश्मीर से आयात उसे किसी अन्य व्यक्ति से आयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध करने के आशय से या तद्द्वारा विवश या विलुब्ध की जाएगी, यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा, वह कारवास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। 
 
धारा 372 भारतीय दंड संहिता  Section 372 in The Indian Penal Code
 वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए अप्राप्तवय को बेचने के बारे में प्रावधान करती है। इसके अंतर्गत बताया गया है कि जो कोई 18 वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को इस आशय से कि ऐसा व्यक्ति से आयुक्त संभोग करने के लिए या किसी विधि विरुद्ध या दुराचार प्रयोजन के लिए कम में लाया या उपयोग किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी ऐसे किसी प्रयोजन के लिए काम में लाया जाएगा, या उपभोग किया जाएगा, बेचेगा, भाड़े पर देगा या अन्यथा व्ययनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
(6 धारा के अन्तर्गत 2 स्पष्टीकरण दिये गये हैं। स्पष्टीकरण 1 के अन्तर्गत बताया गया है कि जबकि अठारह वर्ष से कम आयु की नारी किसी वेश्या को, या किसी अन्य व्यक्ति को, जो वेश्यागृह चलाता हो या उसका प्रबंध करता हो, बेची जाए, भाड़े पर दी जाए या अन्यथा व्ययनित की जाए, तब इस प्रकार ऐसी नारी को व्ययनित करने वाले व्यक्ति के बारे में,जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उप धारणा की जाएगी कि उसने उसको इस आशय से व्ययनित किया है कि वह वेश्यावृत्ति के उपभोग में लाई जाएगी। स्पष्टीकरण -2 के अन्तर्गत आयुक्त सम्भोग से इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे व्यक्तियों में मैथुन अभिप्रेत है जो विवाह से संयुक्त नहीं है, या ऐसे किसी सम्भोग या बंधन से संयुक्त नहीं कि जो यद्यपि विवाह की कोटि में तो नहीं आता तथापि इस समुदाय की, जिसके वे हैं या यदि वे भिन्न समुदायों के हैं, जो ऐसे दोनों समुदायों की स्वीय विधि या रूञ्ढ़ि द्वारा उनके बीच में विवाह सदृश्य सम्बन्ध अभिसात किया जाता है। 
 
धारा 373 भारतीय दंड संहिता Section 373 in The Indian Penal Code
वेश्यावृत्ति के प्रयोजन के लिए अप्राप्वय का खरीदना आदि के बारे में हैं जो कोई अठारह वर्ष में कम आयु के किसी व्यक्ति को इस आशय के बारे में है कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी वेश्यावृत्ति या किसी व्यक्ति से आयुक्त सम्भोग करने के लिए या किसी विधि विरुद्ध दुराचार प्रयोजन के लिए काम में लाया या उपयोग किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी ऐसे किसी प्रयोजन के लिए काम में लाया जाएगा या उपभोग किया जाएगा, खरीदेगा, भाड़े पर लेगा या अन्यथा उसका कब्जा अभिप्रेत करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
इस धारा के स्पष्टीकरण के अन्तर्गत बताया गया है कि अठारह वर्ष से कम आयु की नारी को खरीदने वाला, भाड़े पर लेने वाला या अन्यथा उसका कब्जा करने वाले तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि ऐसी नारी का कब्जा उसने इस आशय से अभिप्रेत किया है कि वह वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए उपभोग में लायी जाएगी।


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कहानी - असफल स्‍याही लेखन की



मैंने भी एक असफल स्याह चिठ्ठा लिखने प्रयास किया था आज से लगभग दो माह पहले दिनांक 17/01/2007 को अपनी कुछ मजबूरियों को लेकर। इसके प्रति प्रेरित होने तथा असफल होने के पीछे कई कारण थे। कारण कि मैं इस ओर प्रेरित हुआ ? उन दिनों मै भिन्न कारणों से हिन्दी टंकण नहीं कर पा रहा था। तब उन्हीं दिनों सागर भाई ने मुझे बाराहा के लिये कई घंटों की ऑनलाइन कोचिंग मुझे दी थी पर मुझे बाराहा पर लिखने में बिल्कुल भी मजा नहीं आता था और न ही आज भी आता है। मुझे एक पत्र लिखना हुआ, IndicIME के बिना मैं बिल्कुल विकलांग सा लगने लगता हूँ। फिर मैंने एक जुगाड़ लगाया कि कलम और कागज का उपयोग किया जाये और मैंने किया भी, पर मेरे पास समस्याओं की कमी नहीं थी और मेरा स्कैनर भी ठीक नहीं था। तो एक और जुगाड़ असफल जुगाड़ लगाया और पत्र का फोटो अपने कैमरे से खींच लिया। उस पर उसका रूप देखने के बाद मुझे लगा कि उक्त दस्तावेज को यहीं दफना देना उचित होगा।
पर जब बात चल ही चुकी है तो मैं भी पीछे क्यों रहूँ असफलता भुनाने से, तो देखिए वह पत्र जो मैंने 17 जनवरी को लिखा था।
कहानी - असफल स्‍याही लेखन की


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भगवान झूलेलाल जंयती (चैत्र शुक्‍ल द्वि‍तीया) पर विशेष



क्या है भगवान झूलेलाल की कहानी
 
क्या है भगवान झूलेलाल की कहानी
Story of Lord Jhulelal
झूलेलाल को वेदों में वर्णित जल-देवता, वरुण देव का अवतार माना जाता है। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज भी पूजता है। उनका विश्वास है कि जल से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और जल ही जीवन है। जल-ज्योति, वरुणावतार, झूलेलाल सिंधियों के ईष्ट देव हैं जिनके आगे दामन फैलाकर सिंधी यही मंगलकामना करते हैं कि सारे विश्व में सुख-शांति, अमन-चैन, कायम रहे और चारों दिशाओं में हरियाली और खुशहाली बने रहे।
 
चैत्र मास की प्रथम किरण के उदय होते ही विक्रम संवत का शंखनाद हो उठता है और इसी शंखनाद के गुंजन से गूंजती है- एकता व भाईचारे की आवाज़। यही आवाज़ न केवल सिंधी समुदाय को बल्कि समूचे राष्ट्र को एक नयी राह दिखलाती है। चंद्र मास की द्वितीय तिथि को सिंधी दिवस-‘चेटीचण्ड’ का महान पर्व मनाया जाता है। पाकिस्तान के ठट्टा शहर में जहाँ झूलेलाल जी ने जन्म लिया था, विस्थापन के बाद बिहार से गए याकूब भाई ने वहाँ कब्जा जमाया। संभवतः किसी अलौकिक चमत्कार को भाँपकर वे भी झूलेलाल जी का मुरीद बन गया। तब से उसने व उसके परिजनों ने झूलेललाजी की अखंड ज्योति को आज भी कायम रखा है। यहाँ के वर्तमान रह वासियों की आस्था भी परवान पर है। कुछ विद्वानों के अनुसार सिंध का शासक मिरखशाह अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा था जिसके कारण सिंधी समाज ने 40 दिनों तक कठिन जप, तप और साधना की। तब सिंधु नदी में से एक बहुत बड़े नर मत्स्य पर बैठे हुए भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और कहा मैं 40 दिन बाद जन्म लेकर मिरखशाह के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाऊंगा। चैत्र माह की द्वितीया को एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उडेरोलाल रखा गया। अपने चमत्कारों के कारण बाद में उन्हें झूलेलाल, लालसांई, के नाम से सिंधी समाज और ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर के नाम से मुसलमान भी पूजने लगे। चेटीचंड के दिन श्रद्धालु बहिराणा साहिब बनाते हैं। शोभा यात्रा में ‘छेज’ (जो कि गुजरात के डांडिया की तरह लोक नृत्य होता है) के साथ झूलेलाल की महिमा के गीत गाते हैं। ताहिरी (मीठे चावल), छोले (उबले नमकीन चने) और शरबत का प्रसाद बांटा जाता है। शाम को बहिराणा साहिब का विसर्जन कर दिया जाता है। सिंधु नदी के किनारे जिंदपीर पर जहाँ झूलेलालजी ब्रह्मलीन हुए थे, वहाँ आज भी प्रतिवर्ष चालीस दिनों का मेला लगता है जिसे चालीहा कहा जाता है। इसी चालीहे के दौरान प्रत्येक सिंधी भाषी चाहे वह जहाँ भी हो, यथासंभव अपनी धार्मिक मर्यादाओं का पालन करता है।
 
भगवान झूलेलाल के अवतार-धारण की भी एक गाथा है। इतिहास में दर्ज है कि झूलेलालजी ने किसी भाषा या किसी धर्म की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव समाज के उत्थान के लिए जन्म लिया था। मिरख बादशाह के जनता पर अत्याचार तो उसी दिन बंद हो गए थे, जिस दिन बादशाह ने स्वयं ललसाईं की वाणी सुनी थी। तत्पश्चात लोगों में जल के प्रति आस्था बढ़ी और सिंधी भाषा में यह कहावत स्थापित हुई- 'जो बहू जल का महत्व नहीं समझे वह घी-मक्खन की कीमत भी नहीं समझेगी।' यही वजह है कि विश्व भर के तमाम दरवेशों, पीरों और मौलाओं में सर्वाधिक पूजे जाते हैं झूलेलालजी।
 
दमादम मस्त कलंदर... गीत को लोकप्रियता भले ही बांग्लादेश की गायिका रूना लैला द्वारा गाने के बाद मिली हो लेकिन सदियों से इस गीत के बोल झूलेलाल जी की अर्चना में समर्पित किए जाते रहे हैं। संपूर्ण विश्व में संभवतः यह एकमात्र गीत ऐसा है, जिसे पचासों नामचीन गायकों ने अपनी-अपनी शैली में प्रस्तुत किया है। आबिदा परवीन, अदनान सामी, साबरी ब्रदर्स, भगवंती नावाणी, लतिका सेन, विशाल-शेखर जैसे कई गायक इस कतार में हैं। चारई चराग तो दर बरन हमेशा, पंजवों माँ बारण आई आं भला झूलेलालण... अर्थात चारों दिशाओं में आपके दीप प्रज्वलित हैं। मैं पाँचवाँ चिराग लेकर आपके समक्ष हाजिर हूँ। माताउन जी जोलियूँ भरींदे न्याणियून जा कंदे भाग भला झूलेलालण... अर्थात हर माँ की आशाओं को पूरा करना और हर एक कन्या के भविष्य को सुनहरा बनाना। लाल मुहिंजी पत रखजंए भला झूलेलालण, सिंधुड़ीजा सेवण जा शखी शाहबाज कलंदर, दमादम मस्त कलंदर... अर्थात हे ईश्वर, मेरी लाज बचाए रखना, पीरों के पीर मैं सिर्फ आपके भरोसे हूँ। पूरे गीत का आशय यह है कि अपने पैदा किए हुए हर जीव को सुखी, संपन्न और शांति का जीवन देना ईश्वर।
 
इस गीत में सिंधी सभ्यता समाहित है। अपने जीवन के सरल बहाव के साथ-साथ परोपकार की भावना भी हर सिंधी भाषी में मिलती है। विस्थापन के बाद सिंधियों की पहली जरूरत थी अपना पैर जमाना। इस प्रारंभिक समस्या से काफी कुछ मुक्ति पाने के बाद सिंधी युवा परोपकार के कामों में लगातार आ रहे हैं। अब संस्थाओं का गठन केवल स्वभाषियों के विकास ही नहीं, बल्कि समस्त मानव समाज सेवा के लिए होने लगा है। विश्व इतिहास में यह एकमात्र सभ्यता ऐसी है, जो विस्थापन पश्चात अल्प समय में ही अपनी भाषा, भूषा, भोजन और भजन को कायम रख सकी है। विस्थापित से स्थापित हुआ यह समाज अब दूसरों की स्थापना का भी सहयोगी है।
 
Story of Lord Jhulelal

Story of Lord Jhulelal

Story of Lord Jhulelal
 Story of Lord Jhulelal


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वर्ष प्रतिपदा - भारतीयता का उत्‍सव



हिन्दू नव-वर्ष का आरंभ हो रहा है. हिंदू नव वर्ष
 हिन्दू नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाए
भारतीय संस्कृति के अनुसार वर्ष का प्रारम्‍भ चैत्र शुक्‍ल से होता है। यह सृष्टि के आरम्भ का दिन भी है। यह वैज्ञानिक तथा शास्त्रशुद्ध गणना है। इसकी काल गणना बड़ी प्राचीन है। सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक 1 अरब, 95 करोड़, 58 लाख, 85 हजार, 106 वर्ष बीत चुके है। यह गणना ज्‍योतिष विज्ञान के द्वारा निर्मित है। आधुनिक वैज्ञानिक भी सृष्टि की उत्पत्ति का समय एक अरब वर्ष से अधिक बता रहे है। अपने देश में कई प्रकार की काल गणना की जाती है- युगाब्द(कलियुग का प्रारम्भ), श्री कृष्ण संवत, शक संवत आदि है।
मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्रीराम का राज्‍याभिषेक।

चन्द्रमा की गति के साथ अपनी कालगणना क्‍यों जुड़ी? भोला भाला ग्रामीण भी चन्द्रमा की गति से परिचित है। वह जानता है कि आज पूर्णिमा है या द्वितीया। इस प्रकार काल गणना हिन्दू जीवन के रोम-रोम एवं भारत के कण-कण से अत्‍यन्‍त गहराई से जुड़ी है। ठिठुरती ठंड मे पड़ने वाला ईसाई नववर्ष पहली जनवरी से भारतवासियों का कोई सम्बन्ध नहीं है।
मॉं दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्‍भ

दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्‍भ

प्रतिपदा हमारे लिये क्‍यों महत्‍वपूर्ण है, इसके पौराणिक सामाजिक एवं ऐतिहासिक सन्‍दर्भ निम्‍न है-
  1. मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्रीराम का राज्‍याभिषेक।
  2. मॉं दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्‍भ
  3. युगाब्‍द(युधिष्‍ठिर संवत्) का आरम्‍भ
  4. उज्‍जयिनी सम्राट- विक्रामादित्‍य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्‍भ
  5. शालिवाहन शक् संवत् ( भारत सरकार का राष्‍ट्रीय पंचाग)
  6. महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्‍थापना
  7. संघ के संस्‍थापक केशव बलिराम हेडगेवार का जन्‍म दिन। 
  8. महान सम्राट विक्रमादित्य के संवत्सर का यहीं से आरंभ माना जाता है। 
  9. ईरान में 'नौरोज' का आरंभ भी इसी दिन से होता है, जो संवत्सरारंभ का पर्याय है। 
  10. 'शक्ति संप्रदाय' के अनुसार इसी दिन से नवरात्रि का शुभारंभ होता है। 
  11. सतयुग का आरंभ भी इसी दिन से हुआ 
  12. ब्रह्म पुराण में ऐसे संकेत मिलते हैं कि इसी तिथि को ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। इसका उल्लेख अथर्ववेद तथा शतपथ ब्राह्मण में भी मिलता है। 
  13. सृष्टि के संचालन का दायित्व इसी दिन से सारे देवताओं ने संभाल लिया था। 
  14. 'स्मृत कौस्तुभ' के मतानुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रेवती नक्षत्र के 'विष्कुंभ योग' में भगवान श्री विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था।
'शक्ति संप्रदाय' के अनुसार इसी दिन से नवरात्रि का शुभारंभ होता है।

सामान्यतः सभी धर्मों और पंथों में , मानव आचरण के दो पहलू सामने आते हैं , वे हैं अच्छाई और बुराई ...! इनके पक्ष में चलने वाले क्रमशः अच्छे और बुरे लोग माने जाते हैं। जो कुछ ३१ दिसम्बर की रात और १ जनवरी के प्रारंभ को लेकर यूरोप - अमेरिका और ईसाई समुदाय सहित अन्य लोग देख देखी करते हैं वह अच्छाई तो नहीं है !!! यथा शराब पीना, अश्लील नाचगाना , सामान्य मर्यादाओं को तिलांजली देना ! होटल , रेस्तरां और पब में जा कर मौज मजे के नाम पर जो कुछ होता है !! वह न तो सभ्यता का हिस्सा है और न ही उसे अच्छा होने का सर्टिफिकेट दिया जा सकता है। इसलिए सभ्यता अनुकूल यह नया साल नहीं है इसमें सृष्टि जानी या नक्षत्रिय सरोकार भी नहीं है। बल्की यह सामान्यतः दिन - प्रतिदिन के क्रियाकलापों को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया में निर्मित सत्रारंभ है। इसकी तुलना कभी भी भारतीय नववर्ष से नहीं की जा सकती , क्योंकि वह ईश्वरीय है, सृष्टिजन्य है, नक्षत्रिय है इसी कारण सम्पूर्ण हिन्दू समाज में सभी धार्मिक आयोजन , कार्य शुभारंभ मुहूर्त, मानव जीवन से सम्बद्ध मांगलिक कार्यों को आज भी बड़ी निष्ठा से इन्ही आधार पर आयोजित किया जाता
 भारतीय संस्कृति के अनुसार वर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है।

आप सभी को भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऐं।
 


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टीम इण्डिया की हार और अदिति का विरोध



टीवी पर टीम इण्डिया का विरोध हो रहा था और लोग कर रहे थे हाय हाय तो अदिति भी शामिल होगई हाय हाय में



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स्‍वामी विवेकानन्‍द की एक आकंक्षा



स्‍वामी विवेकानन्‍द की एक आकंक्षा

तुम्‍हारे भविष्‍य को निश्चित करने का यही समय है। इस लिये मै कहता हूँ, कि तभी इस भरी जवानी मे, नये जोश के जमाने मे ही काम करों। काम करने का यही समय है इसलिये अभी अपने भाग्‍य का निर्णय कर लो और काम में जुट जाओं क्‍योकिं जो फूल बिल्‍कुल ताजा है, जो हाथों से मसला भी नही गया और जिसे सूँघा ही नहीं गया, वही भगवान के चरणों मे चढ़ाया जाता है, उसे ही भगवान ग्रहण करते हैं। इसलिये आओं ! एक महान ध्‍येय कों अपनाएँ और उसके लिये अपना जीवन समर्पित कर दें - स्‍वामी विवेकानंद 
स्वामी विवेकानंद की दुर्लभ चित्र
 
 
 

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प्रतीक जी का साक्षात्‍कार : न तुम काबिल न हम काबिल



हिन्‍दी ब्‍लॉग के सबसे युवा चिठ्ठाकार श्री प्रतीक पाण्डेय जी का कल जन्‍मदिन था। युवा के साथ साथ प्रतीक जी का लेखन काफी उम्दा है, जिससे हिन्‍दी ब्‍लॉग के पाठक काफी प्रभावित रहते है। हिन्‍दी ब्‍लॉग के साथ साथ प्रतीक जी अंग्रेजी ब्लॉग मे भी हाथ आजमाते रहते है, और वहां पर भी इन‍के नियमित पाठक है। सर्वप्रथम तो मै उन्हे जन्मदिन कि बधाई देगा कि यह दिन उनके जीवन मे हमेशा प्रसन्नता ले कर आये। वैसे मेरा उनका साक्षात्कार लेने का कोई मन नही था किंतु अचानक किस प्रकार यह मन बन गया कि मैंने उनका साक्षात्कार ले ही लिया।

हमेशा की तरह आज मैने उनके गपशप कमरे की हरी बत्ती जलती देख कर मिलने जा पहुचा, प्रतीक जी उपस्थित भी थे। मेरे उनके बीच जो बात हुई वह निम्न है--

स्‍वयं प्रतीक भाई जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं, जल्दी से मिठाई खिलाएं। :)

प्रतीक जी (मुस्कुराते हुए) धन्यवाद, आपके लिए मिठाई रखी है, आगरा कब आ रहे हैं :-)

स्वयं- (मजाक के मूड मे) आगरा, क्या आपने ने पागल समझ रखा है :) आयेगें जरूर आयेंगे, पर समय लगेगा किंतु पगलाने के बाद :)

प्रतीक जी: (मजाक के मूड मे) नहीं... पागल तो नहीं समझा है। लेकिन अगर आप मिठाई खाने के लिए आगरा न आएँ, तो उससे भी गए-बीते हैं। :-) हम तो मिठाई खाने कहीं भी चले जाते हैं :-)

स्‍वयं: (शिकायती लहजें में) कामधेनु और सुलाकी की मिठाई मेरे पास रखी है कब खाने आ रहे है? अभी तक तो आप प्रयाग आये नही ?

प्रतीक जी विनम्रता के साथ) अरे, मैं तो भूल ही गया था। परीक्षाएं खत्म हो जाए, फिर आता हूँ। :-)

स्‍वयं स्वागत है, आपका इन्तजार रहेगा। आपने आज क्या क्या किया? क्योकि आज का दिन आपका है। प्रतीक जी कुछ ख़ास नहीं किया... वही सब कुछ किया जो रोज़ करता हूँ।

स्‍वयं (शरारत की मुद्रा मे) कुछ खास जो खास लोगों को बताते हो :)

प्रतीक जी (मुस्कुराते हुए) नहीं, कुछ भी ख़ास नहीं :-)

स्‍वयं (शंकित मन से) क्या आप मुझे आपने जन्म दिन का छोटा सा साक्षात्कार देगें? मेरे ब्लाग के लिये

प्रतीक जी (गंभीरता के साथ) हाँ, बिल्कुल।(हंसते हुऐ) लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं किसी साक्षात्कार देने के काबिल हूँ।

स्‍वयं (साथ साथ हँसते हुऐ) तो मै ही कहॉं लेने लायक हूँ, कहावत है न जब मिल बैठेगें दो अंधे यार

प्रतीक जी तो फिर ठीक है :-)

तो आईये शुरू करते है आपका और मेरा पहला साक्षात्कार (दोनो के द्वारा जोरदार ठाहके के साथ शुरू होता है साक्षात्कार)

प्रश्‍न कर्ता पहला प्रश्न

आपका हिन्दी चिट्ठाकारी मे प्रवेश कैसे हुआ?

प्रतीक जी पहले मैं अंग्रेजी में एक ब्लॉग लिखा करता था। तभी इच्छा हुई कि हिन्दी में भी एक ब्लॉग बनाया जाए। हिन्दी में ब्लॉग बनाने के बाद पता चला कि क़रीब दस लोग पहले से हिन्दी में ब्लॉग लिख रहे हैं। तभी से हिन्दी ब्लॉग लेखन शुरू हो गया।

प्रश्‍न कर्ता दूसरा प्रश्न

जैसा कि आप हिन्दी के प्रारंभिक चिट्ठाकारों मे से है, और जमाने मे हिन्दी लिखने और पड़ने बाले भी कम थे। जब आपको पहली टिप्पणी मिली तो कैसा लगा ?

प्रतीक जी जब मुझे पता चला कि हिन्दी में अन्य ब्लाग भी हैं, तो कुछ ब्लॉग्स पर मैंने टिप्पणी की। उस वक़्त सभी नए चिट्ठाकारों के स्वागत् के लिए उत्सुक रहते थे। तो सभी ने उत्साहवर्धन के लिए टिप्पणी की।

प्रश्‍न कर्ता तीसरा प्रश्न

आपको कैसे ब्लाग लिखने की सूझी ? (प्रतीक जी कुछ सोच रहे थे, फिर प्रश्नकर्ता ने कहा) शायद यह पहले प्रश्न का समरूप है या आप उत्तर देना चाहेगें?

प्रतीक जी हाँ, तभी मैं सोचने में लगा था कि क्या उत्तर हो सकता है। इसका भी उत्तर तो वही पहले वाले की तरह है।

प्रश्‍न कर्ता चौथा प्रश्‍न

आपकी अब तक कि सबसे अच्छी पोस्ट कौने सी थी ?

प्रतीक जी पोस्ट का नाम है - जिम में मेरे अनुभव। यह पोस्ट मुझे सबसे अच्छी लगती है, क्योंकि इसमें लिखा एक-एक शब्द सच है।

बहुत खूब (प्रश्‍नकर्ता ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुऐ कहा)

प्रश्न कर्ता पाचवा प्रश्न

जब आपको लगता है कि यह मेरी सबसे अच्छी पोस्ट है और कोई टिप्पणी करने नही आता या जैसी टिप्पणी आप चाहते है, (सकारात्मक या नकारात्मक में) नही मिलती है तो कैसा लगता है ?

प्रतीक जी तो काफ़ी ख़राब लगता है और लगता है कि लोगों में कुछ समझ नहीं अच्छी और खराब पोस्ट की :-)

प्रश्‍न कर्ता आपके जीवन मे कोई ऐसा क्षण जो आपको याद हो।

प्रतीक जी वैसे तो मुझे अपना पूरा जीवन ही याद है, लेकिन मुझे सबसे ज़्यादा ख़ुशी तब हुई थी जब मैंने पहली बार स्वामी विवेकानंद का सम्पूर्ण साहित्य ऑनलाइन ख़रीदा था :-)

है न अजीब :-) (मेरी रजामंदी/हूकारी लेते हुऐ)

(प्रश्नकर्ता ने रजामंदी देते हुऐ कहा) जी हॉं यह तो बहुत ही रोमांचक होता ही है, जब कोई नया काम आप करते है।

प्रश्नकर्ता छठा प्रश्न

अक्सर सभी ब्लॉगरों की समस्या होती है समय संयोजन और परिवार के द्वारा ब्लागिंग मे सहयोग की। यह आपके साथ कैसे होता है? अर्थात कि आप समय संयोजन कैसे करते है, और आपके परिवार का आपके ब्लागिंग के प्रति क्या दृष्टिकोण रहता है?

प्रतीक जी नहीं, मेरे साथ कभी ऐसा नहीं होता है। क्योंकि मैं ब्लॉगिंग के मामले में बहुत आलसी जीव हूँ और केवल तभी ब्लॉगिंग करता हूँ जब मेरे पास पर्याप्त खाली समय होता है।

प्रश्नकर्ता और आपके परिवार का दृष्टिकोण :) (प्रश्नकर्ता द्वारा परिवार की ओर इंगित करने पर)

प्रतीक जी परिवार वालों को भी कोई समस्या नहीं है।

प्रश्नकर्ता यह तो आपके लिये अच्छा है और हमारे लिये भी (दोनों एक साथ हँसते है)

प्रश्नकर्ता छठा प्रश्न

आपको किस प्रकार के लेख पढ़ने मे अच्छा लगता है?

प्रतीक जी मैं हर तरह के लेख पढ़ता हूँ। पढ़ना मेरा शौक़ है। लेकिन कम्प्यूटर के स्क्रीन पर मुझे ज़्यादा पढ़ने की इच्छा नहीं होती है। छपे हुए शब्द ही अधिक सुहाते हैं। इसलिए छोटी ब्लॉग पोस्ट पसंद आती हैं। हालाँकि हिन्दी ब्लॉग जगत् की लंबी पोस्ट्स भी जैसे-तैसे पढ़ लेता हूँ। :-)

प्रश्‍नकर्ता द्वारा बीच मे टोकते हुऐ यानी कि लोगों छोटी पोस्ट लिखनी पडेगी :)

प्रश्‍न कर्ता सातँवा प्रश्न

क्या आप अपने लेखन मे भी यही मानक रखते है?

प्रतीक जी नहीं, मेरे ब्लॉग पर पोस्ट का आकार विषय के हिसाब से होता है। कभी-कभी पोस्ट लंबी भी हो जाती हैं, लेकिन छोटी पोस्ट लिखने की ही कोशिश करता हूँ।

प्रश्‍न कर्ता आठवॉं प्रश्न

इस समय हिन्दी ब्लाग विवादों का अखाड़ा बन रहा है, ब्लगर कई ध्रुवो मे बंट रहे है। आप इस विषय में क्या सोचते है?

प्रतीक जी फिलहाल ज़्यादा कुछ नहीं कह सकता हूँ, क्योंकि मैं काफ़ी वक़्त से चिट्ठाकारी से दूर हूँ और यहाँ क्या चल रहा है इसकी जानकारी मुझे नहीं है। लेकिन मेरा मानना है कि ब्लॉग जगत् में सबको पहले की तरह एक परिवार बनकर काम करना चाहिए और गुटबाज़ी से दूर रहना चाहिए। हिन्दी चिट्ठाकारी के भविष्य के लिए यही अच्छा है।

साक्षात्‍कार के बीच और कुछ बाते और व्‍यवधान

प्रश्‍न कर्ता क्या आप है? (इंटरनेट लाइन मे व्‍यवधान होने के कारण सम्पर्क टूट गया था)

प्रतीक जी not at my desk

प्रश्‍न कर्ता क्‍या आप है ?

प्रतीक जी काफी देर बाद हाँ, प्रमेंद्र भाई, कहिए

प्रश्न कर्ता कहाँ चले गये थे आप? (चुटकी लेते हुऐ)

प्रतीक जी पास के बाज़ार तक गया था (हँसते हुऐ)

प्रश्‍न कर्ता अच्छा साक्षात्कार मे ही बाजार हो आये

प्रतीक जी हाँ :-)

प्रश्‍न कर्ता कुछ लम्बी तो नहीं खींच रहा है, प्रश्न कठिन तो नही है?

प्रतीक जी हाँ, बहुत कठिन हैं। इतने कठिन तो परीक्षाओं में भी नहीं आते हैं :-)

प्रश्नकर्ता :-) (प्रश्नकर्ता ने भी हल्‍की मुस्कान दिया)

प्रश्नकर्ता नौवां प्रश्न

आपको खाने मे क्या पंसद है?

प्रतीक जी - मैं खाने का बहुत शौकीन हूँ। हर तरह का खाना पसंद है। ख़ास तौर पर पनीर के पकवान और खीर बहुत पसंद हैं।

प्रश्‍न कर्ता अरे वाह सुन कर मुँह मे पानी आ गया (मजाक के लहजे में,)

प्रतीक जी मेरे मुंह में तो बताकर ही पानी आ गया :-) मजाक पर नहले पर दहला देते हुऐ) (दोनो मिलकर हँसते है।)

प्रश्‍न कर्ता 10वॉं प्रश्न

आपकी प्रिय अभिनेत्री कौन है? | कृपया नई मे ही बतायेगा :)

प्रतीक जी नई अभिनेत्रियों में प्रीति जिंटा और ऐश्वर्या राय, अगर ऐश्वर्या राय को अभिनेत्री कहा जा सके तो, वैसे मेरे ख़्याल से वे मॉडल ज़्यादा और अभिनेत्री कम हैं :-)

फिर से कुछ अन्य बातें होने लगी

प्रश्नकर्ता आप 21 साल के पूरे हो रहे है? तो पूरे 21 प्रश्न पूछूँगा कोई दिक्कत तो नही है?

प्रतीक जी हाँ, अभी तो कहीं जाना है। दरअसल भैया को छोड़ने रेलवे स्टेशन जाना है। अगर आप 7 बजे बाद ऑनलाइन आ सकें, तब तो कोई दिक्कत ही नहीं है। नहीं तो आप मुझे प्रश्न ई-मेल कर दीजिए, मैं 7 बजे उत्तर दे दूंगा।

प्रश्नकर्ता ईमेल ठीक रहेगा :)

प्रतीक जी ठीक है। आप ई-मेल कर दीजिए। मैं चलता हूँ फिर मिलेंगे नमस्कार

प्रश्नकर्ता : नमस्कार

ईमेल से किये गये प्रश्‍न

प्रश्‍न कर्ता आपने कभी कोई कविता लिखी है? यदि हॉं तो पोस्ट किया है?

प्रतीक जी कविता तो नहीं कह सकते, लेकिन एक-दो बार कुछ तुकबंदियाँ की थीं। उन्हें पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि अगर मैं आगे कविता न लिखूँ तो ही पाठकों की प्राण रक्षा हो सकेगी। :-) सो आगे कभी कविता लिखने का विचार मन में पैदा नहीं हुआ।

प्रश्‍न कर्ता आपकी मनपसंद पुस्तक कौन सी?

प्रतीक जी मैं अपने जीवन में सबसे ज़्यादा स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित हूँ। स्वामी विवेकानंद का सम्पूर्ण साहित्य मुझे बहुत पसंद है।

प्रश्नकर्ता स्कूल के दिनों मे कोई शरारत या यादगार घटना?

प्रतीक जी स्कूल के दिनों में मैंने बहुत-सी शरारतें की हैं। हाँ, सबसे यादगार घटना यह रही है कि एक बार स्कूल के वार्षिकोत्सव में मुझे ढेर सारे इनाम मिले थे, इतने सारे कि उन्हें एक झोले में भरकर घर ले जाना पड़ा था।

प्रश्‍न कर्ता आपका मनपंसद खिलाड़ी कौन?

प्रतीक जी दूसरे करोड़ों भारतीयों की ही तरह मुझे भी सचिन तेन्दुलकर सबसे ज़्यादा पसंद है। उम्मीद है कि इस विश्व-कप में भी सचिन का जादू चलेगा।

प्रश्‍न कर्ता एक दिन के लिये आपको भारत का प्रधानमंत्री बना दिया जाये तो आप क्या करेगें।

प्रतीक जी एक दिन में कुछ नहीं होने का। भारत में करने और होने को बहुत कुछ है। वैसे भी हर समस्या का हल राजनीति और सत्ता के ज़रिए नहीं हो सकता है। बहुत-सी गम्भीर समस्याएँ हैं जिन्हें भिन्न स्तर पर हल करने की ज़रूरत है।

प्रश्‍न कर्ता आप आपने जन्म दिन को किस तरह मानाऐगें।

प्रतीक जी उसी तरह मनाऊँगा जैसे बाक़ी दिन मनाता हूँ और वैसे भी अपने लिए तो 'हर दिन होली रात दीवाली' है।

प्रश्‍न कर्ता आपके जिन्दगी मे प्यार के क्या मायने है?

प्रतीक जी इस सवाल को सुनकर लग रहा है कि मानो मैं कोई अभिनेता हूँ, क्योंकि अक़्सर ये सवाल फ़िल्मी पत्रकार अभिनेताओं से करते हैं। :-)
मेरा मानना है कि हर इन्सान की ज़िन्दगी में प्यार की वही अहमियत होती है, जो हवा, पानी की होती है। प्यार के बिना ज़िन्दा रहना नामुमकिन है।
प्रश्‍न कर्ता आप अपने कैरियर मे किस क्षेत्र बनाना चाहते है?

प्रतीक जी फ़िलहाल तो सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाना चाहता हूँ। आगे रब जाने।

प्रश्‍न कर्ता आपको हिन्दी ब्लाग का काम देव कहा जाता है तो कैसा लगता है? पाठक गण अक्सर आपके टाइमपास का इंतजार करते रहते है। कैसे खोजते है आप टाइम पास के इतने अच्छे साधन ? :)

प्रतीक जी अपनी तारीफ़ तो सभी को अच्छी लगती है, भले ही वह झूठी क्यों न हो। लेकिन मेरा मानना है कि लोगों को मुझे 'कामदेव' कहने से पहले यह भी सोचना चाहिए कि यह सुनकर कामदेव को कितना बुरा लगेगा।

लोग जो मनोरंजक ई-मेल मुझे फ़ॉरवर्ड करते हैं, उन्हीं को मैं टाइमपास पर चिपका देता हूँ। इसमें मेरी अपनी मेहनत और दिमाग़ का रत्ती भर भी नहीं है। सारा श्रेय उन लोगों का है जो अपना क़ीमती वक़्त लगाकर यह काम करते हैं।

प्रश्‍न कर्ता टाईमपास की कोई टिप्प्णी जो आपको अच्छी लगी हो और याद हो।

प्रतीक जी टाइमपास पर कई रोचक टिप्पणियाँ होती रहती हैं। किसी एक को चुनना बाक़ियों पर अन्याय करना होगा।

करीब तीन घन्‍टे बाद फिर मिलना हुआ और बात प्रारम्‍भ होती है।
प्रश्‍नकर्ता प्रतीक जी, प्रश्न तो आपको मिल गये होगें
प्रतीक हाँ, उन्हीं के उत्तर लिख रहा था :-)

प्रश्‍नकर्ता जी धन्यवाद, जो आप मेरा इतना सहयोग कर रहे है।
प्रतीक जी क्या मज़ाक कर रहे हो भाई। आप मेरा साक्षात्कार लेकर मुझे celebrity बना रहे हो, तो इतना करना तो बन ही पड़ता है। :-) (भीनी भीनी मुस्‍कराहट देते हुऐ)
प्रश्‍नकर्ता :-) प्रश्‍नकर्ता ने भी मुस्‍कराहट का रिपलाई किया।

कुछ देर बाद

प्रश्‍नकर्ता अभी कुल 20 प्रश्न हुऐ है 1 बाकी मुझे पूछना बाकी है।

फिर शुरू होता है दौर

प्रतीक जी : कौन-सा प्रश्न बाक़ी है भाई? पूछिए... 21 प्रश्नों के उत्तर देकर लगेगा कि पूरे 21 साल बेकार नहीं गए अब तक। कोई तो 21 प्रश्न पूछ रहा है :-)

(प्रश्नकर्ता भी हँसता है)

प्रश्न कर्ता 21 वॉं प्रश्न
कभी आपके जीवन मे दो रास्ते आये पहला चिट्ठाकारी दूसरा कोई और तो आप किसको चुनेंगे ?

प्रतीक जी यह तो पक्के तरीके से तभी कहा जा सकता है जब पता हो कि दूसरा रास्ता क्या है।

पर इसका उत्तर तो यह है कि ब्लॉगिंग को मैं अधिकांश चीज़ों की तुलना में कम महत्व देता हूँ। इसलिए छोड़ना पड़े तो शायद सबसे पहले ब्लॉगिंग ही जाएगी। :-)

आप रखने के लिये स्वतंत्र है

करियर, मित्र या जो आपकी प्रिय हो आप कंफ्यूज है कया? :)

प्रतीक जी हाँ... समझ नहीं आ रहा कि किसे रखूँ दूसरी चीज़ की जगह पर :-)

me: एक प्रश्न और है, इसके अलावा जो कभी मै अपने विषय मे सोचता हूँ

प्रतीक जी कहिए... शायद वो कुछ सरल हो :-)

me: इसका उत्तर नही मिलेगा

?

प्रतीक जी इसका उत्तर तो यह है कि ब्लॉगिंग को मैं अधिकांश चीज़ों की तुलना में कम महत्व देता हूँ। इसलिए छोड़ना पड़े तो शायद सबसे पहले ब्लॉगिंग ही जाएगी। :-)

प्रश्‍न कर्ता 22वॉं प्रश्न था कि आपके पिता जी आपसे कहे कंप्यूटर, ब्लागिंग छोड दो, एक दम से कभी देखना भी मत तो आप ऐसा करेगें?

प्रतीक जी इस बारे में मेरा मानना थोड़ा अलग है क्योंकि मैं ज्यादातर काम अपने सही-ग़लत की सोच के आधार पर करता हूँ

और मेरे हिसाब से अगर पिताजी ऐसा कहें, बिना किसी पुख़्ता वजह के, तो मैं शायद ब्लॉगिंग नहीं छोड़ूंगा :-) मैं बिना किसी ख़ास कारण के ब्लॉगिंग नहीं छोड़ता अगर मुझे ठीक लगेगा और महसूस होगा कि ब्लॉगिंग छोड़ना सही है, तभी छोड़ूंगा... अन्यथा नहीं।

इसी के साथ साक्षात्कार समाप्‍त होता है।

हम लोग पिछले 4 घन्‍टे से हो रही साक्षात्कार से मुक्त हो कर चर्चा मे तल्लीन होते है।

स्‍वयं आज इलाहाबाद मे एयर शो हुआ था वहॉं गया तो सब कुछ खत्म हो चुका था :)

प्रतीक जी ये तो गुगली हो गई :-)

स्‍वयं हा हा

वही यह फोटो ली थी नये यमुना पुल पर

प्रतीक जी अच्छा... नई तस्वीर है, इसीलिए इतने ख़ूबसूरत लग रहे हो

स्वयं आप तो बड़ी जल्दी खूबसूरती पहचान लिये

:)

आज मैने एक लेख पोस्ट किया था अभी तक बोहनी नही हुई

प्रतीक जी हम किए देते हैं, कड़ी दीजिए

स्‍वयं लगता है अबस भाई कखग भाई व तथद भाई सदमे से बाहर नही निकल पाये है। :-)

देता हूँ अमर बलिदानी बालक वीर हकीकत राय क्योंकि टिप्पणी करने मे ये ही भाई आगे रहते है।प्रतीक जी हा हा... सही कहा :-)

प्रतीक जी प्रमेंद्र भाई, थोड़ी देर में बात करता हूँ। माताजी बुला रही हैं।

स्वयं ठीक है, यह जरूरी है, नमस्ते पुन: आपको जन्मदिन कि हार्दिक शुभकामनाऐ

प्रतीक जी नमस्ते धन्यवाद


कुछ कमी हो तो क्षमा कीजियेगा


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अमर बलिदानी बालक वीर हकीकत राय



अमर बलिदानी बालक वीर हकीकत राय
वीर हकीकत राय
शाहजहाँ के शासन काल की बात है। पंजाब के सियालकोट मे सन् 1719 में जन्में वीर हकीकत राय जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। यह बालक 4-5 वर्ष की आयु में ही इतिहास तथा संस्कृत आदि विषय का पर्याप्त अध्ययन कर लिया था। सियालकोट के एक छोटे-से मदरसे में हकीकत राय पढ़ता था। एक लंबी दाढ़ी वाले मौलवी साहब वहाँ बच्चों को पढ़ाया करते थे। एक दिन मौलवी कहीं बाहर गये तो उनकी अनुपस्थिति में बच्चे खेलने-कूदने लगे। हकीकत राय इस खेल-कूद में सम्मिलित नहीं हुआ, इस पर दूसरे बच्चों ने उसे छेड़ा। एक मुसलमान बच्चे ने हकीकत राय को गाली दी, दूसरे ने सारे हिंदुओं को और तीसरे ने हिंदुओं के देवी-देवताओं को- भगवती दुर्गा को।
इस पर हकीकत चुप न रह सका। वह बोल उठा, ‘अगर मैं भी बदले में यही शब्द कहूँ तो तुम बुरा तो नहीं मानोगे?’ एक बच्चे ने कहा, ‘तो क्या तू ऐसा भी कर सकता है?’ हकीकत राय ने कहा, ‘क्यों नहीं? मुझे भी तो भगवान ने जुबान दी है।’ दूसरा बच्चा बोला, ‘तो कहकर देख।’ और हकीकत राय ने वही शब्द दुहरा दिये। आखिर बच्चा ही तो था और साथ ही अपने धर्म का पक्का भी। चारों ओर सन्नाटा छा गया। मौलवी साहब आये तो मुसलमान बच्चों ने नमक-मिर्च लगाकर सारी घटना उन्हें सुनाई। मौलवी साहब ने आँखें फाड़ते हुए पूछा, ‘हकीकत! क्या सचमुच ही तूने यह सब कुछ कहा है?’ हकीकत ने दृढ़ता से उत्तर दिया, ‘हाँ, लेकिन उससे पहले इन सबने भी तो मेरी देवी भगवती के लिये वही सब कुछ कहा था।’ मौलवी साहब ने इस्लाम की तौहीन का यह मामला सियालकोट के हाकिम अमीर बेग की अदालत में भेज दिया। वहाँ भी हकीकत राय ने सब कुछ स्वीकार कर लिया। हाकिम ने मुल्लाओं की सहमति ली। उन्होंने बताया कि इस्लाम की तौहीन करने वाले के लिये शहर में मौत की सजा लिखी है।’
Haqiqat Rai
हकीकत राय का बूढ़ा बाप रो पड़ा। उसकी माँ बिलखने लगी। उसकी नन्ही-सी पत्नी बेहोश होकर गिर पड़ी। हकीकत राय की अवस्था उस समय मात्र 13 वर्ष की थी। हाकिम के निर्णय के विरूद्ध लाहौर में अपील भी की गई, वहाँ से भी वही फैसला बहाल रहा। हकीकत जेल की सलाखों के पीछे बैठा था। वह निश्चिंत था, गंभीर था और प्रसन्न भी। मौत का फैसला सुनकर उसके हृदय में घबराहट नहीं थी।
काजी, मुल्ला और उसके बूढ़े माँ-बाप सलाखों के बाहर आकर खड़े हो गये। काजी ने कहा, ‘हकीकत! अगर तू मुसलमान बन जाये तो मरने से बच सकता है।’
हकीकत राय का चेहरा तमतमा उठा। वह कुछ बोलना ही चाहता था कि उसके बूढ़े पिता भागमल हिचकियाँ लेते हुए कह उठे, ‘हाँ-हाँ बेटा, मुसलमान बन जा, अगर तू जीवित रहेगा तो हमारी आंखें तुझे देखकर ठंडी तो होती रहेंगी।’
हकीकत ने कहा, ‘आप भी यही कहने लगे, पिताजी! तो क्या मैं मुसलमान बन जाने पर फिर कभी नहीं मरूँगा? और अगर एक-न-एक दिन मरना ही है तो फिर दो दिन के जीवन के लिये धर्म छोड़ने से क्या लाभ?’ काजी ने कहा, ‘बड़ा लाभ होगा तुम्हें हकीकत।’ शाही दरबार में इज्जत, बेशुमार दौलत और..........।’
वीर हकीकत राय बलिदान दिवस
हकीकत राय हँस पड़ा, ‘बस-बस इतना ही? इतने भर के लिए ही मैं अपना धर्म छोड़ दूँ, काजी साहब? धर्म कभी बदला नहीं जाता, वह तो अटल होता है। जीवन भर के लिए वह हमारे साथ रहता है और मरने पर भी हमारे साथ ही जाता है।’
माता पिता और सम्बन्धियों ने बहुत समझाया, किंतु हकीकत राय टस-से-मस न हुआ। इस्लाम का अपमान करने के अपराध में हकीकत राय का सिर काट देने का आयोजन खुले मैदान में किया गया था। मैदान हिंदू और मुसलमान स्त्री-पुरुषों से खचाखच भरा हुआ था। जिस समय उस मैदान में हकीकत राय लाया गया, वह तलवारों की छाया में था, हथकड़ी-बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, मुसलमानी फौजों से घिरा हुआ था। काजी ने एक बार फिर उससे मुसलमान हो जाने के लिये कहा। उसने फिर उसी दृढ़ता से उत्तर दिया, ‘मैं धर्म नहीं छोड़ सकता, दुनिया छोड़ सकता हूँ।’
मुल्ला ने काजी को संकेत किया और काजी ने जल्लाद को। जल्लाद ने तलवार उठाई और उस फूल जैसे बच्चे को अपनी तलवार के नीचे देखा तो उसका पत्थर-जैसा हृदय भी पिघल गया। तलवार उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ी।
काजी और मुल्लाओं की त्योरियां चढ़ गयी। सारी भीड़ में हलचल-सी मच गई। किंतु एक क्षण बाद ही सबने देखा कि हकीकत राय स्वयं तलवार उठाकर जल्लाद के हाथों में दे रहा है। हकीकत ने तलवार देकर कहा, ‘घबराओ नहीं, जल्लाद! लो, अपने कर्तव्य का पालन करो।’ जल्लाद ने तलवार थामी और हकीकत की गर्दन पर दे मारी। एक छोटी-सी किंतु तीखी रक्त की धार पृथ्वी पर बह निकली।

~ वीर हकीकत राय की रागनी ~ वीर हकीकत राय बलिदान दिवस ~ वीर हकीकत की कहानी ~ हकीकत राय का जीवन परिचय ~ धर्मवीर हकीकत राय


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एक पत्र - संघ और भ्रन्तियॉं



आज कल संघ के सम्बन्ध में काफी चर्चा चल रही है, ऐसे में बड़े भैया की डायरी में रखे एक पत्र को यहां यथावत रखूँगा। जो संघ के बारे मे संक्षिप्त कहते हुए भी बहुत कुछ कहता है।
प्रिय मित्र,
संघ क्या है यह समझना और समझना दोनों ही कठिन है, कोई इन्‍हे फासीवाद कहता है तो कोई साम्प्रदायिकता फैलाने वाला संगठन। जितने प्रकार के लोग मिलते है उतनी प्रकार की तुलानाऐ की जाती है।ऐसे तुलना करने वाले किस प्रकार के थर्मामीटर का प्रयोग करते है यह विचार करने प्रश्‍न है। यदि वातावरण की आर्द्रता मापने वाला है तो वह शरीर के ताप को कैसे सही बतायेगा, यदि कोई चाहे कि ट्रकों की माप करने वाले कांटे से एक किलो चीनी को कैसे तौला जा सकता है।
इसी प्रकार कुछ लोग पाँच किलो चीनी तौलने वाले तराजू से ट्रक को तौलने का प्रयास कर रहे है। कई वर्षो से संघ कार्य करने वाले लोगों से पूछता हूं तो पाता हूँ कि उनके पास इस प्रश्न की जानकारी नहीं है कि संघ क्या ? किसी काम से मध्यप्रदेश के सतना जिले में जाना हुआ, वर्षा के दिन थे, एक संघी भाई से भेंट हुई, जिज्ञासा वश उनसे मैंने यही दो प्रश्‍न किये--
संघ क्या है ?
आप मुसलमानों के सम्‍बन्‍ध मे इतना विद्वेश क्‍यों फैलाते है?
मैने जिनसे प्रश्न किया वे इंजीनियरिंग कॉलेज मे प्राध्यापक थे। पहले प्रश्‍न के उत्‍तर मे वे कहते है- मै भी करीब 10 वर्षों से इसी के शोध मे हूँ। दूसरे प्रश्‍न का उत्‍तर वे मंद मंद मुस्कुराहट के साथ टाल गये। मुझे लगा कि प्रोफेसर साहब मेरे प्रश्‍न से बचना चाहते है, और मै विजेता सा भाव लिये प्रसन्न हो चुप रह गया।
वहॉं रहने दौरान ही प्रकृति का प्रकोप बरपा भयंकर वर्षा हुई। मै अपने कमरे में बैठा वर्षा का आनंद ले रहा था। तभी अचानक प्रोफेसर साहब आये और कहने लगे मेरे साथ चलो। उनके कहने में कुछ जल्दी पन का भाव था अत: मैने भी बिना प्रश्न किए तहमत (लुंगी) उतार कर पैंट शर्ट पहन, छाता लेकर मै उनके साथ हो दिया। रास्ते मे साथ चलते हुए उन्होंने बताया कि कई इलाकों मे बाढ़ आई है, वहां आपकी सहायता की जरूरत है। यह वाक्‍या लगभग सुबह के पांच बजे का था। स्थान विशेष पर पहुंचने पर पता चला कि यहां पर सायंकाल से ही सहायता चालू है।" जो मेरे आनंद का विषय था कि वह किसी की मृत्यु और तबाही का कारण बनी हुई थी", जिनके कार्य व्यवहार को मै गालियां दिया करता था वे ही उन डूबते के तिनके का सहारा बने थे। बुद्धि के तर्कों का माहिर मै किन्कर्तव्यविमुढ बना सब कुछ देख रहा था। मुझे क्‍या करना चाहिये यह मेरी समझ मे नही आ रहा था? जिन्हे मै न जाने क्‍या क्‍या कहता था वो किसी माहिर खिलाड़ी की भांति इस विपदा से भी खेल रहे थे, लोगों को काल के गाल से निकालने का काम कर रहे थे।
मुझे एक शिविर मे ले लाये जाने वाले लोगों के नामों की सूची बनाने तथा किसी की पूछताछ मे सहायता करने को कहा गया था। मेरे द्वारा बनाई गई सूची और वहां काम करने वाले लोगों के भेदभाव रहित काम ने मुझे मेरे दूसरे प्रश्न का उत्तर दे रहे थे।
आपका
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भगवान श्री राम की मृत्यु कैसे हुई



Ram Bhagwan Ki Mrityu Kaise Hui Thi
इस दुनिया में आने वाला इंसान अपने जन्म से पहले ही अपनी मृत्यु की तारीख यम लोक में निश्चित करके आता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जो आत्मा सांसारिक सुख भोगने के लिए संसार में आई है, वह एक दिन वापस जरूर जाएगी, यानी कि इंसान को एक दिन मरना ही है। लेकिन इंसान और ईश्वर के भीतर एक बड़ा अंतर है। इसलिए हम भगवान के लिए मरना शब्द कभी इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि इसके स्थान पर उनका इस ‘दुनिया से चले जाना’ या ‘लोप हो जाना’, इस तरह के शब्दों का उपयोग करते हैं।
Ram Bhagwan Ki Mrityu Kaise Hui Thi
हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के महान अवतार प्रभु राम के इस दुनिया से चले जाने की कहानी काफी रोचक है। हर एक हिन्दू यह जानना चाहता है कि आखिरकार हिन्दू धर्म के महान राजा भगवान राम किस तरह से दूसरे लोक में चले गए। वह धरती लोक से विष्णु लोक में कैसे गए इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
 
Ram Bhagwan Ki Mrityu Kaise Hui Thi

हिन्दू धर्म के प्रमुख तीन देवता है ब्रह्मा, विष्णु और महेश, इनमें से भगवान विष्णु के कई अवतारों ने विभिन्न युग में जन्म लिया। यह अवतार भगवान विष्णु द्वारा संसार की भलाई के लिए लिए गए थे। भगवान विष्णु द्वारा कुल 10 अवतारों की रचना की गई थी, जिसमें से भगवान राम सातवें अवतार माने जाते हैं। यह अवतार भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और पूजनीय माना जाता है।
Ram Bhagwan Ki Mrityu Kaise Hui Thi
प्रभु श्रीराम के बारे में महर्षि वाल्मीकि द्वारा अनेक कथाएं लिखी गई हैं, जिन्हें पढ़कर कलयुग के मनुष्य को श्रीराम के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वाल्मीकि के अलावा प्रसिद्ध महाकवि तुलसीदास ने भी अनगिनत कविताओं द्वारा कलियुग के मानव को श्री राम की तस्वीर जाहिर करने की कोशिश की है। भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक, सभी जगहों पर भगवान राम के मंदिर स्थापित किये गए हैं। इनमें से कई मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से बनाए गए हैं।
Ram Bhagwan

भगवान श्री राम की मुक्ति से पूर्व यदि हम उनके जीवनकाल पर नजर डालें तो प्रभु राम ने पृथ्वी पर 10 हजार से भी ज्यादा वर्षों तक राज किया है। अपने इस लम्बे परिमित समय में भगवान राम ने ऐसे कई महान कार्य किए हैं, जिन्होंने हिन्दू धर्म को एक गौरवमयी इतिहास प्रदान किया है। प्रभु राम अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे, जिनका विवाह जनक की राजकुमारी सीता से हुआ था। अपनी पत्नी की रक्षा करने के लिए भगवान राम ने राक्षसों के राजा रावण का वध भी किया था।
Ram Bhagwan Ki Mrityu Kaise Hui Thi
फिर कैसे भगवान राम इस दुनिया से लोप हो गए? वह क्या कारण था जो उन्हें अपने परिवार को छोड़ विष्णु लोक वापस पधारना पड़ा। पद्म पुराण में दर्ज एक कथा के अनुसार, एक दिन एक वृद्ध संत भगवान राम के दरबार में पहुंचे और उनसे अकेले में चर्चा करने के लिए निवेदन किया। उस संत की पुकार सुनते हुए प्रभु राम उन्हें एक कक्ष में ले गए और द्वार पर अपने छोटे भाई लक्ष्मण को खड़ा किया और कहा कि यदि उनके और उस संत की चर्चा को किसी ने भंग करने की कोशिश की तो उसे मृत्युदंड प्राप्त होगा।
Ram Bhagwan Ki Mrityu Kaise Hui Thi

लक्ष्मण ने अपने ज्येष्ठ भ्राता की आज्ञा का पालन करते हुए दोनों को उस कमरे में एकांत में छोड़ दिया और खुद बाहर पहरा देने लगे। वह वृद्ध संत कोई और नहीं बल्कि विष्णु लोक से भेजे गए काल देव थे जिन्हें प्रभु राम को यह बताने भेजा गया था कि उनका धरती पर जीवन पूरा हो चुका है और अब उन्हें अपने लोक वापस लौटना होगा।
अभी उस संत और श्रीराम के बीच चर्चा चल ही रही थी कि अचानक द्वार पर ऋषि दुर्वासा आ गए। उन्होंने लक्ष्मण से भगवान राम से बात करने के लिए कक्ष के भीतर जाने के लिए निवेदन किया लेकिन श्रीराम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण ने उन्हें ऐसा करने से मना किया। ऋषि दुर्वासा हमेशा से ही अपने अत्यंत क्रोध के लिए जाने जाते हैं, जिसका खामियाजा हर किसी को भुगतना पड़ता है, यहां तक कि स्वयं श्रीराम को भी। 

लक्ष्मण के बार-बार मना करने पर भी ऋषि दुर्वासा अपनी बात से पीछे ना हटे और अंत में लक्ष्मण को श्री राम को श्राप देने की चेतावनी दे दी। अब लक्ष्मण की चिंता और भी बढ़ गई। वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार अपने भाई की आज्ञा का पालन करें या फिर उन्हें श्राप मिलने से बचाएं।
लक्ष्मण हमेशा से अपने ज्येष्ठ भाई श्री राम की आज्ञा का पालन करते आए थे। पूरे रामायण काल में वे एक क्षण भी श्रीराम से दूर नहीं रहे। यहां तक कि वनवास के समय भी वे अपने भाई और सीता के साथ ही रहे थे और अंत में उन्हें साथ लेकर ही अयोध्या वापस लौटे थे। ऋषि दुर्वासा द्वारा भगवान राम को श्राप देने जैसी चेतावनी सुनकर लक्ष्मण काफी भयभीत हो गए और फिर उन्होंने एक कठोर फैसला लिया।

लक्ष्मण कभी नहीं चाहते थे कि उनके कारण उनके भाई को कोई किसी भी प्रकार की हानि पहुंचा सके। इसलिए उन्होंने अपनी बलि देने का फैसला किया। उन्होंने सोचा यदि वे ऋषि दुर्वासा को भीतर नहीं जाने देंगे तो उनके भाई को श्राप का सामना करना पड़ेगा, लेकिन यदि वे श्रीराम की आज्ञा के विरुद्ध जाएंगे तो उन्हें मृत्यु दंड भुगतना होगा, यही लक्ष्मण ने सही समझा।
वे आगे बढ़े और कमरे के भीतर चले गए। लक्ष्मण को चर्चा में बाधा डालते देख श्रीराम ही धर्म संकट में पड़ गए। अब एक तरफ अपने फैसले से मजबूर थे और दूसरी तरफ भाई के प्यार से निस्सहाय थे। उस समय श्रीराम ने अपने भाई को मृत्यु दंड देने के स्थान पर राज्य एवं देश से बाहर निकल जाने को कहा। उस युग में देश निकाला मिलना मृत्यु दंड के बराबर ही माना जाता था।

लेकिन लक्ष्मण जो कभी अपने भाई राम के बिना एक क्षण भी नहीं रह सकते थे उन्होंने इस दुनिया को ही छोड़ने का निर्णय लिया। वे सरयू नदी के पास गए और संसार से मुक्ति पाने की इच्छा रखते हुए वे नदी के भीतर चले गए। इस तरह लक्ष्मण के जीवन का अंत हो गया और वे पृथ्वी लोक से दूसरे लोक में चले गए। लक्ष्मण के सरयू नदी के अंदर जाते ही वह अनंत शेष के अवतार में बदल गए और विष्णु लोक चले गए।
अपने भाई के चले जाने से श्री राम काफी उदास हो गए। जिस तरह राम के बिना लक्ष्मण नहीं, ठीक उसी तरह लक्ष्मण के बिना राम का जीना भी प्रभु राम को उचित ना लगा। उन्होंने भी इस लोक से चले जाने का विचार बनाया। तब प्रभु राम ने अपना राज-पाट और पद अपने पुत्रों के साथ अपने भाई के पुत्रों को सौंप दिया और सरयू नदी की ओर चल दिए।
वहां पहुंचकर श्री राम सरयू नदी के बिलकुल आंतरिक भूभाग तक चले गए और अचानक गायब हो गए। फिर कुछ देर बाद नदी के भीतर से भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए। इस प्रकार से श्री राम ने भी अपना मानवीय रूप त्याग कर अपने वास्तविक स्वरूप विष्णु का रूप धारण किया और वैकुंठ धाम की ओर प्रस्थान किया।
भगवान राम का पृथ्वी लोक से विष्णु लोक में जाना कठिन हो जाता यदि भगवान हनुमान को इस बात की आशंका हो जाती। भगवान हनुमान जो हर समय श्री राम की सेवा और रक्षा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाते थे, यदि उन्हें इस बात का अंदाजा होता कि विष्णु लोक से श्री राम को लेने काल देव आने वाले हैं तो वे उन्हें अयोध्या में कदम भी ना रखने देते, लेकिन उसके पीछे भी एक कहानी छिपी है।
जिस दिन काल देव को अयोध्या में आना था उस दिन श्री राम ने भगवान हनुमान को मुख्य द्वार से दूर रखने का एक तरीका निकाला। उन्होंने अपनी अंगूठी महल के फर्श में आई एक दरार में डाल दी और हनुमान को उसे बाहर निकालने का आदेश दिया। उस अंगूठी को निकालने के लिए भगवान हनुमान ने स्वयं भी उस दरार जितना आकार ले लिया और उसे खोजने में लग गए।
जब हनुमान उस दरार के भीतर गए तो उन्हें समझ में आया कि यह कोई दरार नहीं बल्कि सुरंग है जो नाग-लोक की ओर जाती है। वहां जाकर वे नागों के राजा वासुकि से मिले। वासुकि हनुमान को नाग-लोक के मध्य में ले गए और अंगूठियों से भरा एक विशाल पहाड़ दिखाते हुए कहा कि यहां आपको आपकी अंगूठी मिल जाएगी। उस पर्वत को देख हनुमान कुछ परेशान हो गए और सोचने लगे कि इस विशाल ढेर में से श्री राम की अंगूठी खोजना तो कूड़े के ढेर से सूई निकालने के समान है।
लेकिन जैसे ही उन्होंने पहली अंगूठी उठाई तो वह श्री राम की ही थी। लेकिन अचंभा तब हुआ जब दूसरी अंगूठी उठाई, क्योंकि वह भी भगवान राम की ही थी। यह देख भगवान हनुमान को एक पल के लिए समझ ना आया कि उनके साथ क्या हो रहा है। इसे देख वासुकि मुस्कुराए और उन्हें कुछ समझाने लगे।
वे बोले कि पृथ्वी लोक एक ऐसा लोक है जहां जो भी आता है उसे एक दिन वापस लौटना ही होता है। उसके वापस जाने का साधन कुछ भी हो सकता है। ठीक इसी तरह श्रीराम भी पृथ्वी लोक को छोड़ एक दिन विष्णु लोक वापस आवश्य जाएंगे। वासुकि की यह बात सुनकर भगवान हनुमान को सारी बातें समझ में आने लगीं। उनका अंगूठी ढूंढ़ने के लिए आना और फिर नाग-लोक पहुंचना, यह सब श्री राम का ही फैसला था।
वासुकि की बताई बात के अनुसार उन्हें यह समझ आया कि उनका नाग-लोक में आना केवल श्री राम द्वारा उन्हें उनके कर्तव्य से भटकाना था ताकि काल देव अयोध्या में प्रवेश कर सकें और श्री राम को उनके जीवनकाल के समाप्त होने की सूचना दे सकें। अब जब वे अयोध्या वापस लौटेंगे तो श्रीराम नहीं होंगे और श्रीराम नहीं तो दुनिया भी कुछ नहीं है।


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महाशक्ति पर 319 हिट ! आखिर माजरा क्‍या था ?



मेरे ब्लॉग पर 319 हिट हुई इसकी चर्चा काफी हुई। लिंकित मन पर निलिमा जी भी बरस पड़ी नारद रूपी जीतेन्द्र चौधरी जी पर कि कुछ गड़बड़ है। नीलिमा जी ने कई मुद्दे उठाऐ उन मुद्दों से मेरा कोई सरोकार नही है, पर मेरे ब्‍लाग पर 319 हिट के उत्‍तर के लिये मै बाध्य हूँ। बताता हूँ हुआ क्‍या:-
  • अचानक मै नारद पर पहुँचा देखा कि मेरे लेख के समाने हिट कम है।फिर मेरे मन मे आया कि हर व्यक्ति का अपना एक पाठक वर्ग होता है, जो अक्सर नारद पर से उसके ब्लॉग पर जाता है। इस प्रकार कुछ के ब्लॉग के समान रेटिंग ज्यादा होती है तो कुछ के सामने कम, पर मैने ऐसा महसूस किया कि जिनके लेख के सामने हिट ज्यादा होती है उनके ब्लॉग पर अन्‍य लोग भी जाते है यह सोच कर कि शायद अच्छा लिखा हो इस कारण ज्यादा लोग गये होंगे। इस प्रकार पाठक के मनोभाव पर असर पड़ता है और वह इस बहाने मैंने आपने लेख के सामने अनगिनत क्लिक किया और विवादित होने का कारण बना। पर मैने जैसा सोचा था वैसा हुआ मुझे अपने इस लेख एक दिन मे सर्वाधिक पाठक पाने को भी मिले मेरे गणक के हिसाब से मैने 80 से ज्‍यादा पाठक पाये थे। अर्थात मैने पाठक के हृदय को परिवर्तित करने मे सफलता भी पाई।
  • एक बात मै कहना चाहता हूँ कि नारद पर इस क्लिक रेटिंग से विभिन्न ब्लॉगरों को दिक्कत का सामना करना पड़ता होगा। अनूप जी, समीर जी भाटिया जी व जीतूजी आदिके लेखों पर अधिक क्लिक होते है, पर कुछ ब्लॉग ऐसे है जिन पर एक भी क्लिक नहीं होता है नारद पर होने के बाद भी जैसा कि एक ब्‍लाग है जिस पर रामायण और महाभारत है।
  • अत: जीतू जी से अनुरोध है कि वे इस रेटिंग पद्धति की तरफ ध्यान दे, हो करे तो यह साप्ताहिक किया जा सकता है। जिससे कि पाठकों के मन पर किसी लेख के प्रति विपरीत प्रभाव न जाये।
  • नारद पर और क्‍या हो रहा यह मै नही जानता, किंतु महाशक्ति पर 319 हिट के लिये जीतूजी या नारद जिम्मेदार नहीं हे।
  • मैंने यह सब काफी सोच समझ कर, बिना किसी गलत उद्देश्य के लिये किया था। मैंने अपने हिट संबंधी बात को अपने लेख मे कहना चाहता था पर समयाभाव के कारण मै यह तत्काल न कर सका, क्योंकि यह 26 फरवरी के बाद यह मेरा कोई लेख है ।
अब तो आप म‍हाशक्ति पर 319 चटकें की बात तो समझ ही गये होगें। :)


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॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥ - Shri Ram Raksha Stotram



॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥ - Shri Ram Raksha Stotram 
॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्‌ ॥ - Shri Ram Raksha Stotra

विनियोग:
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः। श्री सीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः। श्रीमान हनुमान कीलकम। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः।
अथ ध्यानम्‌:
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌। वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकार दीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम।

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥1॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम्‌ ॥2॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरांतकम्‌ ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥3॥
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥4॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥5॥
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः ।
स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥6॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥7॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
उरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्‌ ॥8॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥9॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्‌ ।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥10॥
पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ।
न दृष्टुमति शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥11॥
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्‌ ।
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाऽभिरक्षितम्‌ ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ ।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥14॥
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्‌ ।
अभिरामस्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः ॥16॥
तरुणौ रूप सम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥
शरण्यौ सर्र्र्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ ।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥20॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥
इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयाऽन्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥
रामं दूवार्दलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्‌ ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥25॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌ ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥26॥
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥
श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचंसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयलुर्नान्यं
जाने नैव जाने न जाने ॥30॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनन्दनम्‌ ॥31॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥
कूजन्तं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥34॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्‌ ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥35॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्‌ । तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम्‌ ॥36॥
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रामेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥37॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥
॥ इति रामरक्षास्तोत्र संपूर्णम्‌ ॥

Ramraksha Stotra


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