आज कल संघ के सम्बन्ध मे काफी चर्चा चल रही है, ऐसे मे बड़े भइया की डायरी मे रखे एक पत्र को यहॉं यथापव रखूँगा। जो संघ के बारे मे संक्षिप्त कहते हुऐ भी बहुत कुछ कहता है।
प्रिय मित्र,
संघ क्या है यह समझना और समझाना दोनो ही कठिन है, कोई इन्हे फॉंसीवादी कहता है तो कोई सम्प्रदायिकता फैलाने वाला संगठन। जितने प्रकार के लोग मिलते है उतनी प्रकार की तुलानाऐ की जाती है।ऐसे तुलना करने वाले किस प्रकार के थर्मामीटर का प्रयोग करते है यह विचार करने प्रश्न है। यदि वातारण की आद्रता नापने वाला है तो वह शरीर के ताप को कैसे सही बतायेगा, यदि कोई चाहे कि ट्रकों की माप करने वाले काँटे से एक किलो चीनी को कैसे तौला जा सकता है।
संघ क्या है यह समझना और समझाना दोनो ही कठिन है, कोई इन्हे फॉंसीवादी कहता है तो कोई सम्प्रदायिकता फैलाने वाला संगठन। जितने प्रकार के लोग मिलते है उतनी प्रकार की तुलानाऐ की जाती है।ऐसे तुलना करने वाले किस प्रकार के थर्मामीटर का प्रयोग करते है यह विचार करने प्रश्न है। यदि वातारण की आद्रता नापने वाला है तो वह शरीर के ताप को कैसे सही बतायेगा, यदि कोई चाहे कि ट्रकों की माप करने वाले काँटे से एक किलो चीनी को कैसे तौला जा सकता है।
इसी प्रकार कुछ लोग पाँच किलों चीनी तौलने वाले तराजू से ट्रक को तौलने का प्रयास कर रहे है। कई वर्षो से संघ कार्य करने वाले लोगों से पूछता हूँ तो पाता हूँ कि उनके पास इस प्रश्न की जानकारी नही है कि संघ क्या ? किसी काम से मध्य प्रदेश के सतना जिले मे जाना हुआ, वर्षा के दिन थे, एक संघी भाई से भेंट हुई, जिज्ञासा वश उनसे मैनें यही दो प्रश्न किये--
- संघ क्या है ?
- आप मुसलमानों के सम्बन्ध मे इतना विद्वेश क्यों फैलाते है?
मैने जिनसे प्रश्न किया वे इंजीनियरिंग कालेज मे प्राध्यापक थे। पहले प्रश्न के उत्तर मे वे कहते है- मै भी करीब 10 वर्षों से इसी के शोध मे हूँ। दूसरे प्रश्न का उत्तर वे मंद मंद मुस्काराहट के साथ टाल गये। मुझे लगा कि प्रोफेसर साहब मेरे प्रश्न से बचना चाहते है, और मै विजेता सा भाव लिये प्रसन्न हो चुप रह गया।
वहॉं रहने दौरान ही प्रकृति का प्रकोप बरपाभयंकर वर्षा हुई। मै अपने कमरें मे बैठा वर्षा का आनन्द ले रहा था। तभी अचानक प्रोफेसर साहब आये और कहने लगे मेरे साथ चलो। उनके कहने मे कुछ जल्दी पन का भाव था अत: मैने भी बिना प्रश्न किये तहमत(लुंगी) उतार कर पैंट शर्ट पहन, छाता लेकर मै उनके साथ हो दिया। रास्ते मे साथ चलते हुऐ उन्होने बताया कि कई इलाकों मे बाढ़ आई है, वहॉं आपकी सहायता की जरूरत है। यह वाक्या लगभग सुबह के पॉंच बजे का था। स्थान विशेष पर पहुचने पर पता चला कि यहाँ पर शायंकाल से ही सहायता चालू है।" जो मेरे आनन्द का विषय था कि वह किसी कि मृतयु और तबाही का कारण बनी हुई थी", जिनके कार्य व्यवहार को मै गालियॉं दिया करता था वे ही उन डूबतो के तिनके का सहारा बने थे। बुद्धि के तर्को का माहिर मै किंकर्तव्यविमूड़ बना सब कुछ देख रहा था। मुझे क्या करना चाहिये यह मेरी समझ मे नही आ रहा था? जिन्हे मै न जाने क्या क्या कहता था वो किसी माहिर खिलाड़ी की भातिं इस विपदा से भी खेल रहे थे, लोगों को काल के गाल से निकालने का काम कर रहे थे।
मुझे एक शिविर मे ले लाये जाने वाले लोगों के नामों की सूचीं बनाने तथा किसी की पूछतॉंछ मे सहायता करने को कहा गया था। मेरे द्वारा बनाई गई सूची और वहॉं काम करने वाले लोगों के भेदभाव रहित काम ने मुझे मेरे दूसरे प्रश्न का उत्तर दे रहे थे।
आपका
...................................
आपका
...................................
Share:
8 टिप्पणियां:
अच्छी कोशिश है... भ्रम की चादर उतरनी चाहिये.
बात सही है कि यहाँ ट्रक वाले कांटे से चीनी तोलने की कोशिश हो रही है। कहा जा रहा है कि वे वर्दी में विश्वास करते हैं, इसलिए वे तालिबान जैसे हैं। न्यूयॉर्क में हुए आतंकी हमलों के बाद कुछ जाहिल लोगों ने पश्चिम में बसे सिखों पर इसलिए हमला किया क्योंकि वे पगड़ी पहनते थे, और उन के हिसाब से तालिबानी लगते थे। यह तो उन्हीं जाहिलों जैसा काम हुआ। संघ एक सफल संगठन भले न रहा हो, पर वह मुसलमानों के खिलाफ नहीं है। हाँ, वह भारत का हिन्दू स्वरूप बनाए रखने की बात करते हैं - जो चर्चा का विषय हो सकता है। संघ वाले जब राहत कार्य में भाग लेते हैं, उस समय वे पीड़ितों की पैंट उतार के उस का मज़हब नहीं देखते। संघ के आलोचक उस समय सो रहे होते हैं।
अब क्या है न कि संघ की तरह सेवा करके वाहवाही नहीं मिलती न, इसलिए बहुत से लोग वाहवाही वाला काम करते हैं 'धर्मनिरपेक्षता' का झंडा उठाओ, संघ के विरोध में लिखो और वाहवाही पाओ।
"यहाँ ट्रक वाले कांटे से चीनी तोलने की कोशिश हो रही है।"
रमन भाई ने लाख टके की बात इस सूत्र-वाक्य मे कह दिया। मजा आ गया।
जब गुजरात में भूकंप ने तबाही मचाई थी, जो लोग सबसे पहले सहायता करने पहूँचे थे, वे संघी थे.
एक रेल दूर्घटना के बाद लालूजी घटना स्थल पर पहूँचे तब तक राहत का काम निपट चुका था. तो गुस्साए लालू खुद पर जानलेवा हमले की रट लगाये रहे. शायद उन्हे सहायता करते संघी दिख गए थे.
अच्छा लिखा प्रमेन्द्र.
और कितने ही मुर्ख हैं जो संघ को तालिबान और सिमी से जोडते हैं.. अब इसका क्या ईलाज?
मैं कभी शाखा में गया नहीं और संघ की विचारसरणी में मेरी कोई आस्था भी नहीं.. पर संघ के कार्यों को कोई कैसे झुटला सकता है?
यह तो गनिमत है कि संघ को बजरंगीयों से नही जोडते....
कम शब्दों में सब कुछ कह दिया प्रमेन्द्रजी आपने, अच्छा लिखा है, उम्मीद है और भी आगे लिखेंगे और शायद लोगों को सत्य पता चले कि RSS है क्या?
RSS => Ready for Selfless Service
शायद यह उत्तर भी गलत नहीं है.
टिप्पणी पोस्ट करें