कालेज की लड़कियॉं



खामोश हैं उदास है पागल हैं लड़किया।
देखों किसी के प्‍यार में घायल है लडकिया।।
ऐ कालेज के लड़कों नज़र से इनको समझों।
पैरो की बेडि़यॉं नही, पायल है लड़कियॉं।।
समझे तेरे दिल जज्‍बात को फिर भी।
अपने मंजर जिन्दगी की कायल है लड़कियॉं।।
बे खौफ़ तेरे जीवन में, यूं साथ न छोड़े।
हर जिन्‍दगी में नदियों की साहिल है लड़कियॉं।।


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11 टिप्‍पणियां:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत अच्छी कविता है बन्धुवर. बस दिक्कत यही है कि ये लड़कियां कॉलेज की जिन्दगी के बाद बड़ी तेजी से बदल जाती हैं.

Udan Tashtari ने कहा…

ज्ञानी जी कह गये तो
हम हर हाल में चुप ही रह जाते हैं...,
मौन शब्दों से अपनी बात कह जाते हैं.
-शुभकामनायें

Rakesh Pasbola ने कहा…

हर जिन्‍दगी में नदियों की साहिल है लड़कियॉं।।
आखिरी लाईन पूरी कविता को समझने में काफी मदद करती है. आैर जैसा कि पाण्डे जी कहा है कि ये लड़कियां कॉलेज की जिन्दगी के बाद बड़ी तेजी से बदल जाती हैं. बिल्कुल सत्य है.

Sanjeet Tripathi ने कहा…

क्या बॉस! किधर है लड़कियां :)

पन लोचा जे है बावा कि जैसे ही कॉलेज में दिखती इन लड़कियों के परिचय संसार में आप शामिल हो जाओगे, ये कुछ और लगने लगेंगी पर पहले जैसी न लगेंगी। जितना ज्यादा आप इनके नज़दीक जाते जाओगे ये उतना ही बदलती हुई सी लगेंगी!!

Unknown ने कहा…

बहुत ही अच्छी कविता है,कालेज की याद आ गयी।

बसंत आर्य ने कहा…

ये भी जिक्र कर दिया होता कि ये गजल अंजुम रहबर की है तो वे कितनी खुश होती?

बसंत आर्य ने कहा…

ये भी जिक्र कर दिया होता कि ये गजल अंजुम रहबर की है तो वे कितनी खुश होती?

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

बंसत जी न आपका कोई ईमेल मिला न कोई सम्‍पर्क सूत्र, चूकिं यह कविता, तारा चन्‍द्र जी ने डाली है इसलिये उनकी बात आने तक हमें इंतजार करना चाहिऐ।

मुझे लगता है कि वे नये है ज्‍यादा जानकारी नही है अगर आप जैसा कह रहे है कि रचना कोई रहबर की है तो मै ताराचन्‍द्र जी से कहूँगा कि आगे से वे अपनी ही रचना डाले और यदि किसी अन्‍य की डालते है तो उनके लेखक या कवि के नाम से डालें।

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
संतोष कुमार पांडेय "प्रयागराजी" ने कहा…

ओ.के.
जानकारी देने के लिए धन्यवाद।

बेनामी ने कहा…

करते हैं थैंक्स आपको, कविता लिखी सुन्दर
पढने से खुल गई मेरे भेजे की खिडकियां

सुन लें सुझाव मेरा, और पीछा रहे इनके
देने दें इन्हें देती हैं जितनी भी झिडकियां

आपकी डेढ किलो तुकबन्दी में पचास ग्राम मेरी भी सही.....