इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय - गीता हो राष्‍ट्रीय ग्रन्‍थ और मदिंरों और हिन्‍दुओं का संगरक्षण दे सरकार



इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने ताजे फैसले में कहा कि मंदिर या कोई भी धार्मिक संस्था की संपत्ति जिला न्यायाधीश की पूर्व अनुमति के बगैर बेची नहीं जा सकती, ऐसी बिक्री शून्य व अवैध मानी जायेगी तथा राज्य सरकार को निर्देश जारी किया कि एक तदर्थ बोर्ड का गठन किया जाये, तब तक के लिये कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति आर एम सहाय की अध्यक्षता में तदर्थ बोर्ड गठित करने के साथ ही सरकार को निर्देश दिया है कि वह मंदिरों व धार्मिक संस्थाओं की रक्षा के लिए विशेष पुलिस बल बनाये और यह कार्यवाही तीन माह में पूरी कर दी जाये।


Allahabad High Court Building at Allahabad

माननीय न्यायमूर्ति ने 104 पृष्ठ का निर्णय में इतिहास के साक्ष्य प्रकट करते हुए कहा कि विगत 1300 वर्षों से लगातार सांप्रदायिक एवं समाज विरोधी तत्वों द्वारा हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त किया जा रहा है इस प्रकार के प्रकरणों से सीख लेते हुए राज्य का यह दायित्व है कि वह हिन्दू मंदिरों व धार्मिक संस्थाओं को संरक्षण प्रदान करें और इसके लिए अलग से पुलिस बल या स्पेशल सेल गठित किया जाये।
न्यायालय ने धार्मिक स्वतंत्रता से सम्बन्धित संविधान की अनुच्छेद 25 व 26 का जिक्र करते हुए कहा कि हिन्दुओं को भी धार्मिक आजादी का पूर्ण संरक्षण मिलना चाहिए क्योंकि आजादी के बाद से कुछ विशेष सम्प्रदाय के व्यक्तियों की जनसंख्या पूरे भारत के कुछ जिले/मोहल्लों में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है और इसके फल स्वरूप हिन्दू जनसंख्या अपनी सुरक्षा के लिये अपनी जमीन व मंदिर की संपत्ति बेचकर सुरक्षित हिन्दू बहुल क्षेत्रों में बस रहे है।

न्यायालय ने राज्य को निर्देशित किया कि मंदिरों की सुरक्षा के लिए कानून बनाये ताकि समाज विरोधी सांप्रदायिक तत्वों के मंदिरों पर हमले की प्रवृत्ति पर रोक लगायी जा सके। इसी के साथ न्यायालय ने तिल भांडेश्वर वाराणसी स्थित श्री सालिग्राम शिला गोपाल ठाकुर की प्रतिमा पुनस्र्थापित कर रखरखाव का निर्देश दिया है और राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह मंदिर के सेवाइती को पूर्ण सहयोग प्रदान करें ताकि मंदिर में राग, भोग व पूजा शांतिपूर्ण ढंग से चलती रहे। एक संप्रदाय की बढ़ती आबादी व तनाव के चलते मंदिर बेचकर उसे इलाहाबाद लाया जा रहा था। इस मामले में न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय के आदेश को रद कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति एसएन श्रीवास्तव ने गोपाल ठाकुर मंदिर के सेवाइत श्यामल राजन मुखर्जी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

न्यायालय ने हिन्दू मंदिरों की देखरेख व सुरक्षा के लिए राज्य सरकार को हिन्दू मंदिरों का बोर्ड गठित करने को भी कहा, जो मंदिरों का पंजीकरण, रखरखाव व प्रबंधन का काम देखेगा इसके सदस्य सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय तथा प्रमुख सचिव धर्मादा उप्र सरकार सदस्य सचिव होंगे। माननीय न्यायालय ने तदर्थ बोर्ड से कहा कि मामले की जॉच कर चार माह में राज्य सरकार को रिर्पोट सौंप दें। और राज्‍य सरकार को भी आदेश दिया कि वह किसी को भी मंदिरों या धार्मिक संस्थाओं, मठ आदि की संपत्ति बेचने की अनुमति न दे जब तक कि जिला न्यायाधीश की अनुमति न प्राप्त कर ली गई हो एक अन्य मामले में माननीय न्यायमूर्ति श्री श्रीवास्तव ने फैसला देते हुए कहा कि राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्र गान , राष्ट्रीय पक्षी और राष्ट्रीय पुष्प के समान भगवद् गीता को राष्ट्रीय धर्मशास्त्र घोषित किया जाना चाहिए। जस्टिस श्रीवास्तव ने वाराणसी के गोपाल ठाकुर मंदिर के पुजारी श्यामल राजन मुखर्जी की याचिका पर फैसला देते हुए कहा कि देश की आजादी के आंदोलन की प्रेरणा स्रोत रही भगवद् गीता भारतीय जीवन पद्धति है। उन्होंने कहा कि इसलिए संविधान के अनुच्छेद 51(ए) के तहत देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह इसके आदर्शों पर अमल करें और इस राष्ट्रीय धरोहर की रक्षा करें।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि भगवद् गीता के उपदेश किसी खास संप्रदाय की नहीं है बल्कि सभी संप्रदायों की गाइडिंग फोर्स है। गीता के उपदेश बिना परिणाम की परवाह किए धर्म के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देते हैं। यह भारत का धर्मशास्त्र है जिसे संप्रदायों के बीच जकड़ा नहीं जा सकता। न्यायमूर्ति एसएन श्रीवास्तव ने कहा कि संविधान के मूल कर्तव्यों के तहत राज्य का यह दायित्व है कि भगवद् गीता को राष्ट्रीय धर्मशास्त्र की मान्यता दे।

न्यायालय ने यह भी कहा कि भारत में जन्मे सभी सम्प्रदाय, सिख, जैन, बौद्ध आदि हिंदुत्व का हिस्सा है जो भी व्यक्ति ईसाई, पारसी, मुस्लिम, यहूदी नहीं है वह हिन्दू हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 के तहत अन्य धर्मों के अनुयायियों की तरह हिंदुओं को भी अपने सम्प्रदायों का संरक्षण प्राप्त करने का हक है। न्यायालय ने कहा है कि भगवत गीता हमारे नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों की संवाहक है यह हिन्दू धर्म के हर सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह इसके आदर्शों को अमल में लाये। माननीय न्यायमूर्ति के इन फैसलों से इस अल्पसंख्यकों की वास्तविकता स्पष्ट करती है वरन इलाहाबाद और आगरा की घटनाओं के बाद हुई हिंसा से इनकी कट्टरता भी प्रकट करती है। इसके पूर्व में भी माननीय न्यायमूर्ति ने मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं का जो फैसला दिया था वह गलत नहीं था। क्योंकि आज वे संख्या में भले हिन्दुओं से कम है किन्तु आज जिन इलाकों में वे हिन्दुओं से संख्या बल में ज्यादा है वहां पर हिन्दुओं का सर्वाधिक अहित हुआ है। आगरा में ट्रक के टक्कर के परिणाम हिन्दुओं की दुकानों को लूट कर किया गया इलाहाबाद के करेली की अफवाह के परिणाम स्वरूप हिन्दू बस्ती की तरफ हमले की योजना रची गई अगर कर्फ्यू न लगा होता तो शायद वस्तुस्थिति कुछ और होती तथा इसके साथ ही साथ कर्फ्यू के कारण कई परिवारों के भोजन नसीब नहीं हुआ। वास्तव आज न्यायालय के निर्णय समाज और सरकार को वास्तविकता का शीशा दिखा रहा है। जो सरकार आज अल्पसंख्यकवाद का ढोंग रच रही है उसे वास्तविकता के आगे जागना होगा।

माननीय न्यायमूर्ति जी को उनके फैसले तथा स्वर्णिम कार्यकाल के लिये हार्दिक शुभकामनाएं।



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3 टिप्‍पणियां:

संजीव कुमार सिन्‍हा ने कहा…

इलाहाबाद कोर्ट का यह फ़ैसला कि गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाया जाय, गौरवमयी हैं. भारत मूलतः हिन्दुओं का देश हैं. वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वधर्म समभाव हमारा ध्येय हैं. यह देश का दुर्भाग्य हैं कि हमारे देश की राष्ट्रीयता से जुड़ी प्रतीकें आज विवाद का विषय बनी हुई हैं. राष्ट्रगीत वंदेमातरम का विरोध कुछ मुसलमान और सेकुलर लोग कर रहे हैं. ऐसे समय में इलाहाबाद कोर्ट का यह निर्णय ऐतिहासिक हैं.

MEDIA GURU ने कहा…

ji han srivastav ji ne bahut hi achha sughav diya hai. jis per sarkar ko turant amal karna chahiye. pramendra ji mai aapke vishlesn se 100 fisdi sahmat hoon.

Pratik Pandey ने कहा…

भैया, मुझे हतबुद्धि को तो न्यायालय का यह सुझाव गड़बड़ जान पड़ता है। गीता को ही क्यों? संहिताओं को क्यों नहीं? उपनिषदों को क्यों नहीं? फिर क़ुरआन को क्यों नहीं? इंजील को क्यों नहीं?