जयपुर, बेंगलुरु और उसके बाद अहमदाबाद, जिस प्रकार भाजपा शासित राज्यों पर लगातार हमले हो रहे है, इससे यह जान पड़ता है कि आतंकियों का अगला निशाना अब भोपाल या शिमला हो सकता है। आतंकवाद भाजपा या कांग्रेस नही देखता है किन्तु जो परिदृश्य दिख रहा है कि यह सुनियोजित तरीके से देश के ही तत्व यह कुकृत्य कर रहे है।
देश के भीतर पल रहे विषबीजों का काम है जो आने वाले चुनावों में भाजपा के शासन को कलंकित दिखाना चाहते है। जिस प्रकार की हरकत केन्द्र सरकार ने संसद में कि उससे तो यही लगता है कि सरकार सत्ता के लिये कुछ भी कर सकती है, अगर बम विस्फोट भी होते हैं तो इसमें कोई शक नहीं कि खुफिया तंत्र की विफलता के पीछे सरकार का ही हाथ होता है। राजनीति का स्तर सत्ता की भूख के लिये इतना गिरना नहीं चाहिये।
भगवान दोनों जगह हुए विस्फोट में शहीद हुए लोगों की आत्मा को शान्ति प्रदान करें।
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अन्तिम संस्कार Antim Sanskar
अन्तिम संस्कार
भारतीय संस्कृति में सस्कारों की प्रधानता है। संस्कारों में अन्तिम संस्कार अन्तेष्टि संस्कार को कहा जाता है जिसे अन्तिम संस्कार भी कहा जाता है। अन्त्येष्टि संस्कार को हम परिभाषित करने के लिये अन्तिम इष्टि या कर्म भी कह सकते है। यह मनुष्य के जीवन का सबसे अन्तिम कर्म होता है इसके पश्चात कोई अन्य कर्म या कार्य मनुष्य के लिये शेष नही होता है। अन्तिम संस्कार का उद्देश्य शरीर की भौतिक सत्ता को परमात्मा में विलीन करने की होती है। हिन्दु धर्म में मनुष्य की यह अन्तिम क्रिया शरीर को जलाने से शुरू होती है। इस बात की पुष्टि करते हुये यजुर्वेद कहता है- मास्मातं शरीरम्।
वैदिक धर्म में मनुष्य की आयु 100 वर्ष निधारित की गई है- जीवेम शरद: शतम्। इस धर्म में पुर्नजन्म की धारणा मिलती है जिसके कारण हम यह देखते है कि मनुष्य अपने जीवन काल में सभी अच्छे कामों को करना चाहता है ताकि उसे अगले जन्म उच्च कोटि का का जन्म मिले अथवा परमात्मा उसें अपने में अंगीकृत कर ले। विद्वान बौधायन कहते है कि मनुष्य जन्म और मृत्यु के पश्चात हये समस्त संस्कारों से परलोक को जीतता है।
आत्मा अजर और अमर होती है। श्रीमद् भगवतगीता कहती है कि -
शरीर की इस अंतिम क्रिया के लिये मत्स्य पुराण में शव को जलाने, गाड़ने तथा प्रवाह देने की बात कहीं गई है- य: संस्थित: पुरूषो दह्यते वा निखन्यते वाSपि निकृष्यते वा। सम्पूर्ण विश्व में शव को गाड़ने की प्रथा दिखती है किन्तु आज चीन समेत कई देश हिन्दू संस्कृति के दाह प्रथा को मान्यता दे रहे है। क्योंकि यह शरीर की अंतिम क्रिया का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। चीन सरकार ने 14 मार्च 1985 के आदेश में कुछ जाति के लोगें को छोड़कर शेष धर्म जाति के लोगों में शव के गाड़ने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है तथा पुरानी कब्र को पुनः जोतने का आदेश दे दिया है।
हिन्दू पद्धति में मृत्यु के बाद संस्कारों के आयोजन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि हिन्दू धर्म में सम्बन्धियों के मध्य प्रेम के कारण ही वह मृतक के वियोग को सहन नहीं कर सकता है किन्तु मृत्यु के पश्चात होने वाले कर्मकाण्डों के फल स्वरूप वह मृत आत्मा की शान्ति के लिये लग जाता है इस व्यस्तता के कारण वह इस दुखद वेला को भूल जाता है। अन्त्येष्टि संस्कार में यह शोकापनयन की सर्वश्रेष्ठ मनोवैज्ञानकि औ व्यवहारिक प्रक्रिया है।
अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे ताकि संस्कारों की अगली श्रृंखला में सुधार कर सकूँ।
पिछली कडि़याँ - संस्कार:भारतीय दर्शन (Sanskar: Indian Philosophy) , हिन्दू विवाह
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भारतीय संस्कृति में सस्कारों की प्रधानता है। संस्कारों में अन्तिम संस्कार अन्तेष्टि संस्कार को कहा जाता है जिसे अन्तिम संस्कार भी कहा जाता है। अन्त्येष्टि संस्कार को हम परिभाषित करने के लिये अन्तिम इष्टि या कर्म भी कह सकते है। यह मनुष्य के जीवन का सबसे अन्तिम कर्म होता है इसके पश्चात कोई अन्य कर्म या कार्य मनुष्य के लिये शेष नही होता है। अन्तिम संस्कार का उद्देश्य शरीर की भौतिक सत्ता को परमात्मा में विलीन करने की होती है। हिन्दु धर्म में मनुष्य की यह अन्तिम क्रिया शरीर को जलाने से शुरू होती है। इस बात की पुष्टि करते हुये यजुर्वेद कहता है- मास्मातं शरीरम्।
वैदिक धर्म में मनुष्य की आयु 100 वर्ष निधारित की गई है- जीवेम शरद: शतम्। इस धर्म में पुर्नजन्म की धारणा मिलती है जिसके कारण हम यह देखते है कि मनुष्य अपने जीवन काल में सभी अच्छे कामों को करना चाहता है ताकि उसे अगले जन्म उच्च कोटि का का जन्म मिले अथवा परमात्मा उसें अपने में अंगीकृत कर ले। विद्वान बौधायन कहते है कि मनुष्य जन्म और मृत्यु के पश्चात हये समस्त संस्कारों से परलोक को जीतता है।
आत्मा अजर और अमर होती है। श्रीमद् भगवतगीता कहती है कि -
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥
व्यक्ति अपने पुराने कपड़े त्याग कर नये कपड़े धारण करता है उसी प्रकार आत्मा भी अपने कर्मो के आधार पर अपने पुराने शरीर को त्यागकर नये शरीर(योनि) को धारण करता है। यह तभी सम्भव होता है कि जब मनुष्य के शरीर का उचित कियाओं द्वारा आत्मा की शान्ति के लिये संस्कार क्रिया प्रतिपादित किये जाते है। आत्मा का शरीर त्याग के बाद शवदाह, शवयात्रा, अस्थिचयन, प्रवाह, पिण्डदान श्राद्ध, बह्मभोज आदि शरीरान्त के पश्चात ऐसे किये जाने वाले अनिवार्य कर्म है, जिनकी पूर्ति के बिना आत्मा की शान्ति सम्भव नही है। इन सभी कर्मो को विधि विधान से किये जाने पर आत्मा प्रेतयोनि में नही भटकती है। शरीर की इस अंतिम क्रिया के लिये मत्स्य पुराण में शव को जलाने, गाड़ने तथा प्रवाह देने की बात कहीं गई है- य: संस्थित: पुरूषो दह्यते वा निखन्यते वाSपि निकृष्यते वा। सम्पूर्ण विश्व में शव को गाड़ने की प्रथा दिखती है किन्तु आज चीन समेत कई देश हिन्दू संस्कृति के दाह प्रथा को मान्यता दे रहे है। क्योंकि यह शरीर की अंतिम क्रिया का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। चीन सरकार ने 14 मार्च 1985 के आदेश में कुछ जाति के लोगें को छोड़कर शेष धर्म जाति के लोगों में शव के गाड़ने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है तथा पुरानी कब्र को पुनः जोतने का आदेश दे दिया है।
हिन्दू पद्धति में मृत्यु के बाद संस्कारों के आयोजन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि हिन्दू धर्म में सम्बन्धियों के मध्य प्रेम के कारण ही वह मृतक के वियोग को सहन नहीं कर सकता है किन्तु मृत्यु के पश्चात होने वाले कर्मकाण्डों के फल स्वरूप वह मृत आत्मा की शान्ति के लिये लग जाता है इस व्यस्तता के कारण वह इस दुखद वेला को भूल जाता है। अन्त्येष्टि संस्कार में यह शोकापनयन की सर्वश्रेष्ठ मनोवैज्ञानकि औ व्यवहारिक प्रक्रिया है।
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पिछली कडि़याँ - संस्कार:भारतीय दर्शन (Sanskar: Indian Philosophy) , हिन्दू विवाह
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हँसों जम के हँसो
1
वैलेंनटाईन डे के दिन एक प्रेमी जोड़ा एक बाग में मिलता है, प्रेमी जोड़ा पेड़ के तले बैठ जाता है. प्रेमिका की तारीफ करते हुए प्रेमी बोलता है, तुम्हारी आँखें बहुत प्यारी हैं, इनमें डूबने को मन करता है, इन आँखों में मुझे सारी दुनिया नजर आती है।
इतने में पेड़ से आवाज आती है, रे भाई कल शाम से मेरा गधा गुम है, हो सके तो देख बताओ ना कहां है।
2
बॉस गुस्से में कर्मचारी से बोला, तुमने कभी उल्लू देखा है।
कर्मचारी ने सिर झुकाते हुए कहा, नहीं सर।
बॉस ने जोर से डांटा, नीचे क्या देख रहे हो, मेरी तरफ देखो।
3
बॉस गुस्से में कर्मचारी से बोला, तुमने कभी उल्लू देखा है।
कर्मचारी ने सिर झुकाते हुए कहा, नहीं सर।
बॉस ने जोर से डांटा, नीचे क्या देख रहे हो, मेरी तरफ देखो।
4
संता बुदबुदाते हुए समाजशास्त्र के प्रश्न पत्र को हल कर रहा था, भारत में हर तीन मिनट बाद एक औरत एक बच्चे को जन्म देती है। आने वाली भयावह स्थिति पर किस प्रकार नियंत्रण पाया जा सकता है?
बंता पीछे से कहता है, पहले उस औरत को तलाश करना चाहिए।
5
शिक्षक (छात्र से) - बताओ फोर्ड क्या है?
छात्र (शिक्षक से) - गाड़ी।
शिक्षक - वेरी गुड, अब बताओ ऑक्सफोर्ड क्या है?
छात्र - बैलगाड़ी।
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जो मजा विरोध भरी टिप्पणी में है वो और कहाँ ?
आज हमारी एमए की परीक्षा समाप्त हो गयी, मुझे पूर्ण विश्वास है कि अक्टूबर तक हम परास्नाकत डिग्री धारक हो जायेगे। फरवरी माह से ही परीक्षा दे दे कर थक गये थे। करीब दो माह तक अब कोई परीक्षा नही है, अगर आ गई तो परीक्षा की खैर नही, हमारी तैयारी जोरो से चल रही है। :)
इधर बहुत दिनों से कुछ गम्भीर लेखन नही हुआ, कुछ मजा नही आ रहा है। कहते है गर्म तावे पर पानी डालने पर जो आवाज निकलती है उसे सुन कर बड़ा मजा आता है। उसी गर्म तावे की भातिं मेरी भी स्थिति है, काफी दिनों से अन्दर ही अन्दर बहुत विषयों की का तावा बहुत गर्म हो गया है बस लिख कर पोस्ट करने की देर है, फिर देखिये आपके गर्मा गर्म टिप्पणी रूपी पानी क्या गुल खिलाता है। :)
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इधर बहुत दिनों से कुछ गम्भीर लेखन नही हुआ, कुछ मजा नही आ रहा है। कहते है गर्म तावे पर पानी डालने पर जो आवाज निकलती है उसे सुन कर बड़ा मजा आता है। उसी गर्म तावे की भातिं मेरी भी स्थिति है, काफी दिनों से अन्दर ही अन्दर बहुत विषयों की का तावा बहुत गर्म हो गया है बस लिख कर पोस्ट करने की देर है, फिर देखिये आपके गर्मा गर्म टिप्पणी रूपी पानी क्या गुल खिलाता है। :)
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इन जयचन्द्रों का अंत कब होगा ?
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के एक हिन्दू विधायक को वहां का मुलायम और लालू बनने का शौक चढ़ा है। तभी उसे हिन्दुओं के 52 शक्तिपीठों में एक हिंगलाज मंदिर को समाप्त कर, बांध बनाने का पूरी विधानसभा में अकेला समर्थन कर रहा था। यह हिन्दुत्वों का और उस माता का दुर्भाग्य है कि उसके कैसे जयचंदो को जन्म दिया।
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बलूचिस्तान प्रांत में हिन्दू के 52 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज माता के मंदिर का अस्तित्व खतरे में नज़र आ रहा है। पाकिस्तान की संघीय सरकार ने मंदिर पास बांध बनाने का प्रस्ताव रखा है जिसे बलूचिस्तान प्रदेश सरकार ने संघीय सरकार से अपनी परियोजना को बदलने का अनुरोध किया है।
इस मंदिर के महत्व में कहा जाता है कि यह हिंगलाज हिंदुओं के बावन शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर काफी दुर्गम स्थान पर स्थित है, पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नी सती के पिता दक्ष ने जब शिवजी की आलोचना की तो सती सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने आत्मदाह कर लिया। माता सती के शरीर के 52 टुकड़े गिरे जिसमें से सिर गिरा हिंगलाज में। हिंगोल यानी सिंदूर, उसी से नाम पड़ा हिंगलाज। हिंगलाज सेवा मंडली के वेरसीमल के देवानी ने बीबीसी को बताया कि चूंकि माता सती का सिर हिंगलाज में गिरा था इसीलिए हिंगलाज के मंदिर का महत्व बहुत अधिक है।
जब किसी पवित्र खजू़र के पेड़ को बचाये जाने के लिये सड़क को मोड़ा जा सकता था तो 52 शक्ति पीठों में से एक हिंगलात माता के मन्दिर को क्यो नही बचाया जा सकता है। प्रान्तीय सरकार के सभी सदस्य इस मंदिर को बचाये जाने के पक्ष में है किन्तु हर जगह लालू-मुलायम जैसे सेक्यूलर नेता पाये जाते है। ऐसा ही उस प्रान्त भी है हिंदू समुदाय से संबंध रखने वाले एक विधायक ने मंदिर के पास बाँध के निर्माण की हिमायत की। बलूचिस्तान प्रांतीय असेंबली के सदस्य बसंत लाल गुलशन ने ज़ोर दे कर कहा है कि `धर्म को सामाजिक-आर्थिक विकास की राह में अवरोध बनाए बगैर' सरकार को इस परियोजना पर काम जारी रखना चाहिए।
हे भगवान इस धरा से इन जयचन्द्रों का अंत कब होगा ?
इस मंदिर के महत्व में कहा जाता है कि यह हिंगलाज हिंदुओं के बावन शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर काफी दुर्गम स्थान पर स्थित है, पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नी सती के पिता दक्ष ने जब शिवजी की आलोचना की तो सती सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने आत्मदाह कर लिया। माता सती के शरीर के 52 टुकड़े गिरे जिसमें से सिर गिरा हिंगलाज में। हिंगोल यानी सिंदूर, उसी से नाम पड़ा हिंगलाज। हिंगलाज सेवा मंडली के वेरसीमल के देवानी ने बीबीसी को बताया कि चूंकि माता सती का सिर हिंगलाज में गिरा था इसीलिए हिंगलाज के मंदिर का महत्व बहुत अधिक है।
जब किसी पवित्र खजू़र के पेड़ को बचाये जाने के लिये सड़क को मोड़ा जा सकता था तो 52 शक्ति पीठों में से एक हिंगलात माता के मन्दिर को क्यो नही बचाया जा सकता है। प्रान्तीय सरकार के सभी सदस्य इस मंदिर को बचाये जाने के पक्ष में है किन्तु हर जगह लालू-मुलायम जैसे सेक्यूलर नेता पाये जाते है। ऐसा ही उस प्रान्त भी है हिंदू समुदाय से संबंध रखने वाले एक विधायक ने मंदिर के पास बाँध के निर्माण की हिमायत की। बलूचिस्तान प्रांतीय असेंबली के सदस्य बसंत लाल गुलशन ने ज़ोर दे कर कहा है कि `धर्म को सामाजिक-आर्थिक विकास की राह में अवरोध बनाए बगैर' सरकार को इस परियोजना पर काम जारी रखना चाहिए।
हे भगवान इस धरा से इन जयचन्द्रों का अंत कब होगा ?
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फेडरर तुम हार गये पर दिल जीत लिया

नडाल ने रविवार को विंबलडन के इतिहास के सबसे लंबे फाइनल में 6-4, 6-4, 6-7, 6-7, 9-7 से जीत दर्ज करके फेडरर का लगातार छठा विंबलडन खिताब जीतने का सपना भी तोड़ दिया। नडाल ने चार बार फ्रेंच ओपन का खिताब जीता है जबकि यह उनका पहला विंबलडन खिताब है। विंबलडन में सेंटर कोर्ट पर हुये इस ऐतिहासिक मैच को मै आधा ही देख सका, जब तक मेरा फेडरर हारता रहा। :) क्योकि वर्षा बाधित मैंच का यही दौर था। फेडरर की बादशाहत अभी खत्म नही हुई है अभी वह नाडल से 500 एटीपी प्वाइंट लेखकर 231वें हफ्ते दुनिया के नंबर एक बने रहेंगे जबकि नडाल भी लगातार 155वें हफ्ते दुनिया के दूसरे खिलाड़ी रहेंगे।
राफएल नाडल, रोजर फेडरर के लिये कहते है कि मुझे पता है कि इस तरह का फाइनल हारना कितना मुश्किल होता है। वह महान चैंपियन हैं। वह हारे या जीते उनका दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक रहता है। हम करीबी मित्र नहीं हैं लेकिन मैं हमेशा उसका काफी सम्मान करता हूं। मैं अपने लिए काफी खुश हूं लेकिन उसके लिए दुखी भी हूं क्योंकि वह इस खिताब का भी हकदार था। हार से उनकी अहमियत कम नही होती है आल इंग्लैंड क्लब के बेताज बादशाह रहे रोजर फेडरर अब भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ टेनिस खिलाड़ी हैं।
नाडाल को खिताबी जीत पर मेंरी ओर से खिताब की बहुत बहुत बधाई। पर बच कर रहना अबकी बार फ्रेंच ओपन का विजेता फेडरर होगा। क्योंकि विंबलडन में मिथक टूटा है तो अगली बार रोलां गैरोस पर फेडरर ही जीतेंगे।
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फेडरर तुम हार गये पर दिल जीत लिया

फेडरर होने का मतलब शानदार खेल होता है, और फेडरर इसीलिये वर्षो से नम्बर एक नही है। फेडरर कई वर्षो से अपने कैरियर के चरम पर थे और चरम पर होने पर गिरवाट की 100 प्रतिशत सम्भवन होती है, इसी गिरावट का दौर फेडरर के साथ हो रहा है। पहले विम्बडन के पहने दो सेट तो नाडल ने हलुआ की तरह जीत लिया मानो वह किसी गैरवरीय के खिलाफ खेल रहे थे लगा कि लीन सेटों मेंखेल समाप्त हो जायेगा, किन्तु खेल अभी खत्म नही हुआ था अगले दो सेटों में फेडरर ने वापसी की जो मेरे हिसाब से असंम्भव थी क्योकि दो सेटो में फेडरर की 80 प्रतिशत नाव डूब चुकी थी किन्तु फेडरर ने अपने आपको बचाया और खेल को अपनी नाम के अनुसार पाँच दौर तक ले गये।
नडाल ने रविवार को विंबलडन के इतिहास के सबसे लंबे फाइनल में 6-4, 6-4, 6-7, 6-7, 9-7 से जीत दर्ज करके फेडरर का लगातार छठा विंबलडन खिताब जीतने का सपना भी तोड़ दिया। नडाल ने चार बार फ्रेंच ओपन का खिताब जीता है जबकि यह उनका पहला विंबलडन खिताब है। विंबलडन में सेंटर कोर्ट पर हुये इस ऐतिहासिक मैच को मै आधा ही देख सका, जब तक मेरा फेडरर हारता रहा। :) क्योकि वर्षा बाधित मैंच का यही दौर था। फेडरर की बादशाहत अभी खत्म नही हुई है अभी वह नाडल से 500 एटीपी प्वाइंट लेखकर 231वें हफ्ते दुनिया के नंबर एक बने रहेंगे जबकि नडाल भी लगातार 155वें हफ्ते दुनिया के दूसरे खिलाड़ी रहेंगे।
राफएल नाडल, रोजर फेडरर के लिये कहते है कि मुझे पता है कि इस तरह का फाइनल हारना कितना मुश्किल होता है। वह महान चैंपियन हैं। वह हारे या जीते उनका दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक रहता है। हम करीबी मित्र नहीं हैं लेकिन मैं हमेशा उसका काफी सम्मान करता हूं। मैं अपने लिए काफी खुश हूं लेकिन उसके लिए दुखी भी हूं क्योंकि वह इस खिताब का भी हकदार था। हार से उनकी अहमियत कम नही होती है आल इंग्लैंड क्लब के बेताज बादशाह रहे रोजर फेडरर अब भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ टेनिस खिलाड़ी हैं।
नाडाल को खिताबी जीत पर मेंरी ओर से खिताब की बहुत बहुत बधाई। पर बच कर रहना अबकी बार फ्रेंच ओपन का विजेता फेडरर होगा। क्योकि विंबलडन में मिथक टूटा है तो अगली बार रोला गैरोस पर फेडरर ही जीतेगे।
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बहस - भारत के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की न्यूनतम आयु कितनी है ?
भारत के प्रधानमंत्री की न्यूनतम आयु कितनी है ? इस प्रश्न पर में और कुछ मित्रों में पिछले कई दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है और हम सभी विभिन्न प्रकार की सामान्य ज्ञान तथा सविंधान की पुस्तकों का गहन अध्ययन कर रहे है। आपके नज़र में प्रधान मंत्री पद की न्यूनतम आयु पर अपनी स्पष्ट राय रखें। साथ ही साथ दाई और मतदान बोर्ड पर अपना मत अंकित करें। मै अपनी बात अगली पोस्ट में रखूँगा। :)
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चिट्ठाकारी में महाशक्ति के दो साल
बीते माह की 30 तारीख को हमारे चिट्ठाकारी जीवन 2 साल पूरे हो गये, और देखिए, मै यहीं बात भूल गया कि 30 जून को मैने अपना ब्लाग बनाया था। खैर देर आये दुरूस्त आये की तर्ज पर हम दुरूस्त आ गये है, और अपने चिट्ठाकारी के तीसरे साल में पहुँच कर 2 साल पूरे करने की घोषणा करते है।
हुआ यो कि मै अपने पढ़ाई लिखाई, खेल कूद जैसे विषयों पर छुट्टी में ज्यादा व्यस्त था। और इन दिनों मुझे याद ही नही रहा कि मै कभी चिट्ठाकार भी हुआ करता था। :) आज अचानक गाहे बगाहे ही याद आ गया कि मेरे चिट्ठाकारी शुरू किये दो साल पूरे हो गये है। थोड़ा दुख भी हुआ कि उस दिन पोस्ट न डाल सका, क्योकि खास दिन की पोस्ट का कुछ खास ही महत्व होता है।
इधर चिट्ठाकारी और कम्प्यूटर से दूरी का मुझे सकारात्मक परिणाम देखने को भी मिला, 2006 के ग्रेजुएशन में मेरा अब तक का सबसे खराब शैक्षिक प्रदर्शन हुआ था, और मै मात्र 0.42 प्रतिशत अंक की कमी के कारण 50 प्रतिशत अंक भी नही पा पाया था, मुझे इसकी कसक आज तक है। कई ऐसी परीक्षाये आयोजित होती है जिसमें 50 प्रतिशत की मॉंग होती है और मै अयोग्य हो जाता हूँ और दिल पर सिर्फ और सिर्फ खीझ और सिर्फ निराशा ही हाथ आती है।
चूकिं मेरी इच्छा विधि की पढ़ाई की थी और 2006 की असफलता के ग्रहण के कारण इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश न हो सका था। इच्छा के विपरीत साल न खराब हो इस लिये राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से एम ए का फार्म भर दिया था और फिर इस बार मैने पक्का इरादा किया था कि परास्नातक में अच्छा प्रर्दशन करूँगा। और इसी विश्वास के कारण अर्थशास्त्र परास्नातक में प्रथम सेमेस्टर में 58, द्वितीय में 65 तथा हफ्ते भर पूर्व घोषित तृतीय सेमेस्टर में 76 प्रतिशत अंक लाये थे। यह मेरी अब तक की दी गई किसी भी परीक्षा का सर्वोत्तम अंक है। निश्चित रूप से आशा के अनुरूप सफलता पर खुशी मिलती है।
2007 के शुरू होते ही विधि की पढ़ाई की प्रबल इच्छा फिर जाग गई, और असमजस में था कि एमए के साथ विधि कैसे होगा, किन्तु कुछ मित्रों ने बताया कि मुक्त विश्वविद्यालय की पढ़ाई के साथ किसी और विश्वविद्यालय से डिग्री कोर्श कर सकते है, मुक्त विश्वविद्यालय के गुरूजनों से सम्पर्क किया तो उन्होने भी ऐसा ही उत्तर दिया। अक्टूबर माह में मैने विधि में प्रवेश ले लिया और कम समय में पर्याप्त तैयारी के बोझ के साथ लग गया। फरवरी में एमए तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा के बाद ही 15 अप्रेल से विधि के पर्चे भी प्रारम्भ हो गये। मेरी बहुत अच्छी तैयारी नही थी, किन्तु जहां चाह तहाँ राह की धारण सत्य हुई 2 जुलाई को मेरा विधि का परिणाम हुआ, रिजल्ट आशा के विवरीत हुआ, करीब 60 से 65 प्रतिशत की उम्मीद लगा कर बैठा था किन्तु 56 प्रतिशत पर आ कर रूक गया, तो भी परिणाम ठीक ही रहा। 7 और 9 जुलाई को मेरा एमए का अन्तिम सेमेस्टर होगा, और इस साल मेरे पास काफी समय होगा विधि के लिये और पूरी कोशिश करूँगा कि अगली परीक्षाऍं भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करूँ।
पिछले तीस जून 2007 का लेख - चिट्ठाकारी में महाशक्ति के एक साल
हुआ यो कि मै अपने पढ़ाई लिखाई, खेल कूद जैसे विषयों पर छुट्टी में ज्यादा व्यस्त था। और इन दिनों मुझे याद ही नही रहा कि मै कभी चिट्ठाकार भी हुआ करता था। :) आज अचानक गाहे बगाहे ही याद आ गया कि मेरे चिट्ठाकारी शुरू किये दो साल पूरे हो गये है। थोड़ा दुख भी हुआ कि उस दिन पोस्ट न डाल सका, क्योकि खास दिन की पोस्ट का कुछ खास ही महत्व होता है।
इधर चिट्ठाकारी और कम्प्यूटर से दूरी का मुझे सकारात्मक परिणाम देखने को भी मिला, 2006 के ग्रेजुएशन में मेरा अब तक का सबसे खराब शैक्षिक प्रदर्शन हुआ था, और मै मात्र 0.42 प्रतिशत अंक की कमी के कारण 50 प्रतिशत अंक भी नही पा पाया था, मुझे इसकी कसक आज तक है। कई ऐसी परीक्षाये आयोजित होती है जिसमें 50 प्रतिशत की मॉंग होती है और मै अयोग्य हो जाता हूँ और दिल पर सिर्फ और सिर्फ खीझ और सिर्फ निराशा ही हाथ आती है।
चूकिं मेरी इच्छा विधि की पढ़ाई की थी और 2006 की असफलता के ग्रहण के कारण इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश न हो सका था। इच्छा के विपरीत साल न खराब हो इस लिये राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से एम ए का फार्म भर दिया था और फिर इस बार मैने पक्का इरादा किया था कि परास्नातक में अच्छा प्रर्दशन करूँगा। और इसी विश्वास के कारण अर्थशास्त्र परास्नातक में प्रथम सेमेस्टर में 58, द्वितीय में 65 तथा हफ्ते भर पूर्व घोषित तृतीय सेमेस्टर में 76 प्रतिशत अंक लाये थे। यह मेरी अब तक की दी गई किसी भी परीक्षा का सर्वोत्तम अंक है। निश्चित रूप से आशा के अनुरूप सफलता पर खुशी मिलती है।
2007 के शुरू होते ही विधि की पढ़ाई की प्रबल इच्छा फिर जाग गई, और असमजस में था कि एमए के साथ विधि कैसे होगा, किन्तु कुछ मित्रों ने बताया कि मुक्त विश्वविद्यालय की पढ़ाई के साथ किसी और विश्वविद्यालय से डिग्री कोर्श कर सकते है, मुक्त विश्वविद्यालय के गुरूजनों से सम्पर्क किया तो उन्होने भी ऐसा ही उत्तर दिया। अक्टूबर माह में मैने विधि में प्रवेश ले लिया और कम समय में पर्याप्त तैयारी के बोझ के साथ लग गया। फरवरी में एमए तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा के बाद ही 15 अप्रेल से विधि के पर्चे भी प्रारम्भ हो गये। मेरी बहुत अच्छी तैयारी नही थी, किन्तु जहां चाह तहाँ राह की धारण सत्य हुई 2 जुलाई को मेरा विधि का परिणाम हुआ, रिजल्ट आशा के विवरीत हुआ, करीब 60 से 65 प्रतिशत की उम्मीद लगा कर बैठा था किन्तु 56 प्रतिशत पर आ कर रूक गया, तो भी परिणाम ठीक ही रहा। 7 और 9 जुलाई को मेरा एमए का अन्तिम सेमेस्टर होगा, और इस साल मेरे पास काफी समय होगा विधि के लिये और पूरी कोशिश करूँगा कि अगली परीक्षाऍं भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करूँ।
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