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What an Idea- जब यूपी से 4 मुख्यमंत्री निकल सकते है तो भारत से 10-12 प्रधानमंत्री निकल जाये तो क्‍या बुरा है ?



आंध्र प्रदेश के विभाजन की बात उठी ही थी कि हमारी बुआ मायावती ने उत्तर प्रदेश को चिन्‍दी चिन्‍दी करने की ठान ली। सरपट कलम लेकर बुंदेलखंड और हरित प्रदेश नाम के नये राज्य की चिट्ठी प्रधानमंत्री को लिख डाली। चूंकि कांग्रेस भी नये राज्य का सारा श्रेय खुद लेना चाहती थी तो इसलिये दोनो अर्जियो को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। प्रधानमंत्री के चपरासी ने उस टोकरी को खाली भी न कर पाया था कि हमारी गजगामिनी बुआ मायावती ने पूर्वांचल वाली चिट्ठी भी प्रधानमंत्री को भेज दिया, यह भी नहीं सोचा कि पूर्व की चिट्ठी का क्या हश्र हुआ था।
मायावती जी हरित प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल के जब अलग हो जाएंगे तो उत्‍तर प्रदेश बचेगा ही कहाँ ? मायावती का तर्क है कि राज्‍य काफी बड़ा और विकास होने में काफी दिक्कतें आती है। पूर्वांचल और हरित प्रदेश में आय का काफी अंतर दिखता है। अन्तर तो भारत के अन्‍य राज्‍यों में भी दिखाई पड़ रहा है, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों की विकास दर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और उड़ीसा आदि से बहुत ज्यादा है। कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों की अलग अलग स्थिति है। मायावती 2.50 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल वाले राज्य को संभालने में दिक्कत महसूस कर रही है, अच्छा है कि हमारे प्रधानमंत्री के मन में 32 लाख किमी वाले भारत को चला पाने में दिक्कत महसूस नहीं कर रहे है। मायावती की स्थिति मनमोहन सिंह की होती तो अब वो भी भारत को कई भागों में बढ़ाने की मांग कर चुके होते है।
मायावती की सोच के हिसाब से भारत को भी कई देशों के बांट देना चाहिये क्योंकि आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से भारत में उत्तर प्रदेश से ज्यादा भिन्नता है कि तो मांग के हिसाब से भारत को भी बांट देना चाहिए, मनमोहन जी हमारी राय पर भी विचार कीजियेगा, अगर 2.50 लाख वर्ग किमी के उत्तर प्रदेश में 5 नये मुख्यमंत्री के सपने देखे जा सकते है तो 32 लाख वर्ग किमी के भारत में 10-12 प्रधानमंत्री और निकल जाये तो क्या बुरा होगा ?


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भाजपा का दर्द - जिन्‍ना से जसवंत तक



भारतीय जनता पार्टी में आम चुनाव में हार के बाद जिस प्रकार का कलह मजा है, इसके दूरगामी परिणाम दिखाई पड़ते दिख रहे है। 1998 तक देश की सबसे अनुशासित प‍ार्टियों में गिनी जाने वाली भाजपा आज अपने अ‍तीत को भूल कर कांग्रेसी पथ पर चलने को अग्रसर दिखाई पड़ती है। सात साल के केन्‍द्रीय सत्‍ता सुख के काल में भाजपा के नेता कार्यकर्ताओं से विमुख हो चुके थे, उनके दम्‍भ था कि अटल के भरोसे पर कोई भी चुनाव जीता जा सकता है, मगर जो होना था उसका परिणाम हमारे समाने है। अटल के काल मे ही भाजपा सत्‍ता के सिंहासन से घूल चाटती हुई, पराभाव के रसातल में पहुँच गई।

जसवंत सिंह
आडवानी भी जिन्‍ना का गुणगान कर चुके थे और अब जसवंत ने भी किया, दोनो के गुणगान मे बहुत बड़ा अंतर है। आडवानी ने जो किया मै उस पर जाना नही चाहूँगा किन्‍तु जसवंत पर जरूर कहना चाहूँगा। जिस व्‍यक्ति ने भाजपा निर्माण से लेकर आज तक अपना जीवन अपनी पार्टी को दिया आज वही पार्टी उन्‍हे बाहर का रास्‍ता दिखा दिया, और कारण सरदार पटेल पर टिप्‍पणी को बताया जा रहा है। जसवंत सिंह को पार्टी से निकालना भाजपा की सबसे बड़ी राजनैतिक भूलो में से एक होगी। अपनी लिखी पुस्‍तक सरदार पटेल पर टिप्‍पणी दुर्भाग्‍य पूर्ण है किन्‍तु अनुचित नही है। देश की अखंडता में जिनता योगदान सरदार पटेल का रहा है उसे कोई भी भूला नही सकता किन्‍तु यह भी भूला दिया जाना कि गलत होगा कि सरदार पटेल भी हमेंशा गांधी के हाथ की कठ‍पुतली साबित हुये है। एक बड़ा जनमानस चाहे वह हिन्दू रहा होगा या मुसलमान विभाजन के पक्ष में नही था किन्‍तु नेहरू-गांधी पदलिप्‍सा के आगे पूरा देश लाचार रहा और विभाजन की भीषण विभीषिका से जूझता रहा।

आज यह शोध का विषय होना चाहिये कि क्‍या भारत विभाजन रोका जा सकता था ? मेरी नज़र में इसका उत्तर हाँ में आएगा क्योंकि आज देश में जितने मुसलमान है उतने आज पाकिस्तान में भी नही है। जब आज मुस्लिम स्वतंत्रता पूर्वक रह सकते है तो तब भी रह सकते थे किन्तु नेहरू के मोह में गांधी जी के आँखो में पट्टी सी बांध दी थी। नेहरू के अतिरक्ति कोई भी ऐसा भारतीय नेता इस हैसियत में नही था कि व गांधी जी के गलत बातों का विरोध कर सकें, यहाँ तक कि सरदार पटेल भी नही। देश के साथ साथ काग्रेस का एक बड़ा जनमानस खुद सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने की इच्‍छा रखता था किन्‍तु नेहरू और गांधी के प्रभाव में जो वस्‍तु स्थिति हमारे समाने आयी उससे हम भली भाति परिचित है, कि देश कि इच्‍छा के विरूद्ध हमने नेहरू के रूप में देश का पहला प्रधानमंत्री पाया।


जिन्‍ना और गांधी यह भूलना गुनाह होगा कि गांधी जी ने नेहरू के राजनैतिक कैरियर बनाने के लिये सुभाष चंद्र बोस के साथ क्‍या-क्‍या नही किया ? काग्रेस समिति के पूर्ण बहुतमत के फैसले का विरोध करते है गांधी ने सुभाष बावू को अध्‍यक्ष पद के चुनाव में हराने के लिये क्‍या क्‍या नही किया। गांधी जी उस हद तक गिरे जिस हद तक उन्‍हे ने जाना चाहिये था, पटेल, टंडन सहित अनेको नेताओं को चुप कराने के लिये उन्‍होने नेताजी की जीत को आपनी हार बताने लगे।

नेहरू, गांधी व पटेल आज जरूरत है कि देश के विभाजन की सही विभिषिका देश के समाने रखी जाये, वही जसवंत सिंह ने रखने का प्रयास किया था। भारत विभाजन के लिये जिन्‍ना से ज्‍यादा दोषी नेहरू, गांधी और कांग्रेस पार्टी है जो जो मुस्लिमो को साथ नही रख सकें, आज यही काग्रेस पार्टी मुस्लिमों को की सबसे बड़ी हितैसी बनी हुई है। गेहू के साथ सदैव घुन पीसा जाता है, नेहरू और गांधी के पापों के छिट्टे पटेल पर पड़ना स्‍वाभाविक ही था।

गांधी और सुभाष

जसवंत सिंह की किताब पर जो रवैया भाजपा का है वह र्दुभाग्य पूर्ण है, वह एक लेखक की किताब को अपनी विचारधारा से तुलना कर रही है और किताब के लेखक के विचारों को अपनी विचारधारा से जोड़ रही है। भाजपा के अंदर की इस कुस्‍ती को असली मजा देश विभाजन की दोषी कांग्रेस ले रही है।त् इंटरनेट के विभिन्न सूत्रों से 

साभार


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कल्‍याण गये मानो पाप धुला, भाजपा माघ में नहाई गंगा



माघ की एकादशी को भाजपा ने अखिरकार गंगा स्नान जैसा पुण्‍य प्राप्‍त ही कर लिया। क्योंकि कल्‍याण का कद उनके पापी स्वरूप पर भारी पड़ता था। जिससे छुटकारा पाना निश्चित रूप से गंगा स्नान के पुण्य के बराबर था। कल्याण के जाने से आखिरकार भाजपा से माथे से एक बोझ कम हो गया। कल्याण भाजपा के सम्मानित नेताओं में से एक थे किन्तु उन्होंने अपनी छवि जिस प्रकार बना ली थी। उससे से यही लगता था कि ये खुद निकल जाये तो ठीक है नहीं तो इनके कर्म बेइज्जत कर भगाने के योग्य था। जिसे आम तौर पर स्थानीय राजनीति में देखा जाता है। कल्‍याण ने अपनी स्थिति सच में बैंगन की भांति बना ली थी। न उसमें निष्ठा बची थी न जनाधार।

आज जागरण में उनके भाजपा छोड़ने की खबर 2X6 कलाम में थी, किसी राष्‍ट्रीय स्‍तर के नेता की पार्टी छोड़ने की यह खबर उसके प्रदेश में ही 2X6 कलाम के कलाम में छपे तो राजनीतिक हलकों में उसके औकात का पता चल ही जाता है। तभी किसी ने पेपर देख कर ठीक ही कहा कि कल्‍याण की सही औकात रह गई थी। हो सकता है कि कल्‍याण के साथ नाइंसाफी हुई हो किन्‍तु जो भितराघात उन्‍होने भाजपा के साथ की शर्मनाक था। आज भाजपा मौजूदा हालत में उत्‍तर प्रदेश में भले खाता न खोल सके इसका अपशोस न होगा किन्‍तु इतना तो जरूर है कि आगे सफलता प्राप्‍त करने का मार्ग जरूर तैयार हो गया है।

आज कल भारतीय जनता पार्टी के सभी कार्यकर्ता वरिष्‍ठ नेता बन गये है, जिनके पास जमीन नही थी वे आसमान में पहुँच गये है, किन्‍तु आसमान में पहुँचने के कारणों को इग्‍नोर कर रहे है। अगर आज भाजपा राजनैतिक इतिहास में अपने चरम पर पहुँची तो कार्यकर्ता और जनता के बल पर तो वही गर्त की बड़ रही है तो फिर स्‍वयं कार्यकर्ता और जनता की वजह से। पहले भाजपा के वरिष्‍ठ नेताओं की की पहुँच कार्यकताओं तक तो कार्यकर्ताओं की आम जनता तक होती थी किन्तु 1998-2004 के सत्तात्‍मक दौर में भाजपा का नेत्तृव कार्यकताओं से दूर हुआ तो कार्यकर्ता जनता से और जनता ने भाजपा को सत्‍ता से दूर कर दिया।

उत्‍तर प्रदेश में भाजपा की सबसे बड़ी कमी है कि केन्‍द्रीय नेतृत्‍व के द्वारा कार्यकर्ताओं की न सुना जाना, और इसी के परिणाम स्‍वारूप बड़े पैमाने पर भाजपाईयों को बसपा और सपा की ओर पलायन हुआ। भाजपा को सोचना होगा कि क्‍या कारण है कि जो कार्यकर्ता भाजपा में संतुष्ट नही होते है वे सपा और बसपा में संतुष्ट कैसे हो जाते है? जरूरत है कि भाजपा इस मंत्र का पता लाएंगे और अपने आधार को भागने से रोके, तभी भाजपा केन्द्रीय सत्‍ता सीन हो पायेगी।


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अल्‍लाह ने दिये अबाध बिजली अपूर्ति की गांरटी



आज बकरीद के मौके पर बिजली कटौती नहीं होगी। खबर है कि कल प्रदेश सरकार की मुखिया ने अल्लाह से एक दिन के अल्लाह मियां से उनके पास रखे जनरेटर की मांग की थी जिसे अल्लाह मियां ने धर्मनिरपेक्ष सरकार के समर्थन में बिजली के सीमित अतिरिक्त उत्पाद की मॉंग को स्वीकार कर लिया। जिसे आज संपूर्ण उत्तर प्रदेश के 24 घंटे आबाध बिजली की आपूर्ति की जायेगी।

यहां तो 10 बजे बिजली कटनी चाहिए थी अभी तक 10.30 तक कटी नहीं, क्‍या आपकी सरकारो ने भी ऐसी कोई मांग अल्लाह मियां से की हो जो टिप्पणी के माध्यम से जरूर सूचित कीजिए। काश हमारे भगवान के पास भी कोई अतिरिक्त जनरेटर होता, तो हमारे भी त्यौहार उजाले में मनाये जाते।


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इलाहाबाद विश्वविद्यालय : छात्रसंघ पर प्रतिबन्‍ध अनुचित



इलाहाबाद विश्वविद्यालय और छात्र राजनीति का बहुत पुराना रिश्ता है, उस रिश्ते को आज इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा छात्र संद्य चुनाव न करवा कर तोड़ जा रहा है। हो सकता हो कि छात्र संद्य के चुनाव न करवाने से इलाहाबाद विश्वविद्यालय को काफी फायदे मिलते है, जैसा कि कुछ छात्र नेताओं के मुँह से मैने सुना है कि छात्रसंद्य के अभाव में जो पैसा छात्रों के कल्‍याण हेतु आता है वह सब केवल विवि प्रशासन जेब तक ही सीमित हो कर रह जाता है। मुझे इस बात में काफी दम भी लगती है क्योंकि मैने स्‍वय इलाहाबाद विवि के छात्रावास और अध्‍ययन कक्ष देखे है जिनमें व्यवस्था के नाम पर आपको कुछ नही मिलेगा। आज जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय केंद्रीय दर्जा प्राप्त कर चुका है और वहॉं व्यवस्था के नाम पर सिर्फ अव्‍यवस्‍था दिखती है तो निश्चित रूप से दाल में कुछ काला है कि बात जरूर सामने आती है।
आज इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन की अराजकता से ग्रसित है। जब यह विश्वविद्यालय स्‍वनियत्रण में आया है तब से इसके कुलपति अपने आपको विश्वविद्यालय के सर्वेसर्वा मानने लगे है। करोड़ो रूपये की छात्र कल्‍याण हेतु आर्थिक सहायता सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गई है। जो काम छात्रों के काम छात्र संघ होने पर तुरंत हो जाता था आज कर्मचारी उसी काम को करने में हफ्तो लगा देते है। जिस छात्र संघ ने कई केन्‍द्रीय मंत्री और राज्‍य सरकार को मंत्री देता आ रहा है उस पर प्रतिबंध लगाना गैरकानूनी है। आज जबकि जेएनयू और डीयू जैसे कई केन्‍द्रीय विश्वविद्यालयों में चुनाव हो रहे है तो इलाहाबाद केन्‍द्रीय विवि में चुनाव न करवाना निश्चित रूप से विश्‍वविद्यालय प्रशासन द्वारा अपनी खामियों के छिपाने का प्रयास मात्र है।विश्वविद्यालय राजनीति का अखड़ा नही है किन्तु छात्रसंघ से देश को प्रतिनिधित्‍व का साकार रूप मिलता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन को चाहिये कि अपनी गलती को मान कर छात्रों के सम्‍मुख मॉफी मॉंग कर जल्‍द ही चुनाव तिथि घोषित करना चाहिये। वरन युवा शक्ति के आगे प्रशासन को झ़कना ही पड़ेगा।


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इलाहाबाद का यश चला बनारस



आज भारतीय जनता पार्टी ने डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी को वाराणसी से लड़ने की घोषणा कर ही दी, जिसका अनुमान इलाहाबाद के लोगो को काफी पहले लग चुका था। इलाहाबाद से डॉक्टर जोशी का जाना इलाहाबाद और इलाहाबादियों दोनो के लिये धक्के के समान है। 2004 के आम चुनावों में जिस प्रकार डाक्‍टर जोशी पराजित हुए वह दुर्भागयपूर्ण था। डॉक्टर जोशी करीब 32 हजार वोटो से इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव हारे थे,यह हार बेमानी थी क्योंकि करछना के मौजूदा विधायक रेवती रमण और डॉक्टर जोशी के मध्‍य करछना में वोटो का अंतर 29 हजार का था,जो चौकाने वाला परिणाम दे रहा था। खैर रात गई बात गई अब समय है कि नई परिस्थितियों के हिसाब से आयोजन किया जाये।
डॉक्टर जोशी एक बड़े राजनेता के साथ साथ एक बड़े वैज्ञानिक, अच्छे शिक्षक भी रहे है। भाजपा में उनकी छवि केसरिया छवि के नेता के रूप में जानी जाती है। शायद ही आज भाजपा के पास उनसे ज्‍यादा अच्‍छा राष्‍टवादी विचारधारा का वक्‍ता उपलब्‍ध हो। राममंदिर से लेकर कश्‍मीर यात्रा तक डा. जोशी भारतीय जनमानस में हमेशा याद किये जाते है। 1996 की 13 दिन की वाजपेई सरकार में डाक्‍टर जोशी को गृहमंत्री का दायित्‍व दिया जाना निश्चित रूप से आज भी उनकी स्थिति आडवानी जी के बाद दूसरे नम्‍बर के नेता की है। इसमें दो राय नही होनी कि अगली भाजपा सरकार में वे महत्‍वपूर्ण पद से नवाजे जायेगे।
डाक्‍टर जोशी ने इलाहाबाद के अंदर जो कुछ भी किया वह इलाहाबाद के विकास के लिये पर्याप्‍त है उतना पिछले 5 सालों में नही हुआ। शिक्षा और विकास के मामलो में जोशी ने इलाहाबाद को नये आयामो तक पहुँचाया। इलाहाबाद को डाक्‍टर जोशी कमी जरूर खलेगी। और अब भाजपा का नया विकल्‍प इलाहबाद में क्‍या होगा यह एक बड़ी चुनौती का प्रश्‍न होगा।


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मुस्लिम सेक्यूलर और हिन्दू सम्प्रदायिक क्यो ?



आज देश में दहशत का माहौल बनाया जा रहा है, कहीं आतंकवाद के नाम पर तो कहीं महाराष्ट्रवाद के नाम पर। आखिर देश की नब्ज़ को हो क्या गया है। एक तरफ अफजल गुरु को फांसी के सम्बन्ध में केंद्र सरकार ने मुँह में लेई भर रखा है तो वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र की ज्वलंत राजनीति से वहां की प्रदेश सरकार देश का ध्यान हटाने के लिये लगातार साध्वी प्रज्ञा सिंह पर हमले तेज किए जा रही है और इसे हिन्दू आतंकवाद के नाम पर पोषित किया जा रहा है। यह सिर्फ इस लिये किया जा रहा है कि उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमलों से बड़ी एक न्यूज तैयार हो जो मीडिया के पटल पर लगातार बनी रहे।
आज भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व इस्लामिक आतंकवाद से जूझ रहा है, विश्व की पॉंचो महाशक्तियों भी आज इस्लामिक आतंकवाद से अछूती नहीं रह गई है। आज रूस तथा चीन के कई प्रांत आज इस्लामिक अलगाववादी आतंकवाद ये जूझ रहे है। इन देशों में आज आतंकवादी इसलिये सिर नहीं उठा पा रहे है क्योंकि इन देशों में भारत की तरह सत्तासीन आतंकवादियों के रहनुमा राज नही कर रहे है।
भारत में आज दोहरी नीतियों के हिसाब से काम हो रहा है, मुस्लिमों की बात करना आज इस देश में धर्मनिरपेक्षता है और हिन्दुत्व की बात करना इस देश में साम्प्रदायिकता की श्रेणी में गिना जाता है। आज हिन्दुओं को इस देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया है। इस कारण है कि मुस्लिम वोट मुस्लिम वोट के नाम से जाने जाते है जबकि हिंदुओं के वोट को ब्राह्मण, ठाकुर, यादव, लाला और एससी-एसटी के नाम से जाने जाते है। जिसने वोट हिन्दू मतदाओं के नाम पर निकलेगा उस दिन हिन्दुत्व और हिन्दू की बात करना साम्प्रदायिकता श्रेणी से हट कर धर्मनिरपेक्षता की श्रेणी में आ जायेगा, और इसे लाने वाली भी यही सेक्युलर पार्टियां ही होगी।


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अंतककियों का अगला निशाना भोपाल/शिमला तो नही



जयपुर, बेंगलुरु और उसके बाद अहमदाबाद, जिस प्रकार भाजपा शासित राज्यों पर लगातार हमले हो रहे है, इससे यह जान पड़ता है कि आतंकियों का अगला निशाना अब भोपाल या शिमला हो सकता है। आतंकवाद भाजपा या कांग्रेस नही देखता है किन्तु जो परिदृश्य दिख रहा है कि यह सुनियोजित तरीके से देश के ही तत्व यह कुकृत्‍य कर रहे है।

देश के भीतर पल रहे विषबीजों का काम है जो आने वाले चुनावों में भाजपा के शासन को कलंकित दिखाना चाहते है। जिस प्रकार की हरकत केन्द्र सरकार ने संसद में कि उससे तो यही लगता है कि सरकार सत्ता के लिये कुछ भी कर सकती है, अगर बम विस्फोट भी होते हैं तो इसमें कोई शक नहीं कि खुफिया तंत्र की विफलता के पीछे सरकार का ही हाथ होता है। राजनीति का स्तर सत्ता की भूख के लिये इतना गिरना नहीं चाहिये।

भगवान दोनों जगह हुए विस्फोट में शहीद हुए लोगों की आत्मा को शान्ति प्रदान करें।


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दक्षिण में कमल खिला



कुमारस्‍वामी और कांग्रेस की मिली भगत को दरकिनार करते हुये कर्नाटक में बहुमत की ओर पहुँच रही है। कर्नाटक में खिलने का अर्थ है केन्‍द्र के प्रधानमंत्री आवास में भगवा रहराने के की ओर एक कदम आगे बढ़ रहे है।
ठन्‍ड़ा रहा पिछला हफ्ता
पिछले कई हफ्तो से प्रतिसप्‍ताह आराम से 8 से 15 डालर प्रति मिल जाते थे किन्‍तु जब से गूगलवालों ने पब्लिक सर्विस ऐड लगाया है, तब से कई दिनों से खाते खुलने का प्रतीक्षा कर रहा हूं। :)


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भाजपा में शामिल हुए 200 से अधिक मुसलमान



कर्नाटक विधान सभी चुनाव के पूर्व करीब 200 मुस्लिम व्‍यक्ति भारतीय जनता पार्टी में श‍ामिल होकर, आने वाले चुनाव में बड़े परिवर्तन की उम्‍मीद जाहिर कर दी है। वर्तमान परिष्दृय काफी बदल का आया हुआ है क्‍योकि जिन सेक्‍युलर पार्टी के द्वारा भारतीय जनता पार्टी को अंल्‍पसंख्‍यक विशेषकर मु‍सलमानों के प्रति अछूत घोषित किया जाता था। उन सेक्‍युलर पार्टियों पर इन मुस्लिम नागरिकों का तमाचा है। 
मंगलौर के चित्र

आज की देश तोडू राजनीति से आम नागरिक त्रस्‍त हो गया है। लोक सभा के आम चुनाव की सरगर्मी दिखने लगी है। वर्तमान सरकार अपने गिनेचुने दिन गिर रही है। क्‍योकि आज जनता को लगता कि देश में एक ही पार्टी है जो विकास के साथ साथ सुसरकार दे सकती है।


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भाजपा के यज्ञदत्‍त शर्मा विजयी



उत्तर प्रदेश विधान परिषद इलाहाबाद-झांसी खण्ड स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी डा. यज्ञदत्त शर्मा ने कांटे के संघर्ष में अपने निकटतम प्रतिद्वन्द्वी निर्दलीय प्रत्याशी डा. बाबूलाल तिवारी को 3,224 मतों से शिकस्त देकर हैट्रिक बनाई, जबकि द्वितीय मतों की गणना में पीछा करते-करते इण्डियन जस्टिस पार्टी के इन्द्रेश कुमार सोनकर पांचवें, सपा के मुनेश्वर मिश्र 17 वें व कांग्रेस के प्रदीप कुमार मिश्र 20 वें राउण्ड में ही दौड़ से बाहर हो गये।

प्रथम वरीयता मतों की गणना में भाजपा के डा. यज्ञदत्त शर्मा को 9957, निर्दलीय डा.बाबूलाल तिवारी 7927 व शिक्षक नेता लवकुश कुमार मिश्रा को 4811, कांग्रेस के प्रदीप कुमार मिश्र को 3646, सपा के मुनेश्वर मिश्र को 1316, इण्डियन जस्टिस पार्टी के इन्द्रेश कुमार सोनकर को 116 मतों पर सन्तोष करना पड़ा। निर्दलीय प्रत्याशियों में अमर सिंह राठौर 2043, रामआसरे पटेल 1073, गया प्रसाद पटेल 1508, मुनेश्वर मिश्र 1316, केशव देव त्रिपाठी 1233, शरद श्रीवास्तव 1179 मत हासिल कर सके।

गौर तलब हो कि श्री शर्मा इलाहाबाद के मीरापुर के रहने वाले है, और 2001 तक सेवा समिति विद्यामन्दिर के प्रधानाचार्य रहे है। भाजपा को चारों ओर उत्‍तर प्रदेश में मिल रही हार से उक्‍त जीत से काफी रहत मिली है और निश्चित रूप से नये ऊर्जा का संचार होगा।


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आज राष्ट्रीय शर्म दिवस है



आज भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला दिन है। आज एक विदेशी देश की सरपरस्‍ती जाताने के लिये भारत सरकार क्‍या क्‍या दमन के तरीके अपना रही है। जिस मशाल का प्रर्दशन जनता न देख सके वैसे आयोजन से क्‍या लाभ? यह कहना गलत न होगा कि आज देश में विदेशी सत्‍ता की बू की झलक आ ही गई है।

आज मुझे मनमोहन नीत सरकार को, चीनी सरकार का ऐजेंट कहने में जरा भी हिचक नही है। एक तरफ तिब्‍बती जनता का दमन किया जा रहा है वही भारतीय सरकार चीन के जश्‍न में जाम पे जाम लिये जा रही है। आज की सत्‍ता की घिनौनी हरकत ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया है। एक पराये देश की दमन कारी नीति के सर्मथन में पूरी दिल्‍ली को कफ्यू ग्रस्‍त जैसा महौल कर दिया है। देश के गृहमंत्रालय भी ''चीनी मेहरिया'' (मशाल) के दर्शन कोई नागरिक न कर ले इस लिये, सभी सरकारी इमारतों की राजपथ की ओर खुलने वाली खिड़कियां व दरवाजे बंद रहेंगे। पीएमओ, वित्त मंत्रालय और गृह मंत्रालय भी राजपथ पर हैं इसलिए यह नियम उन पर भी लागू होगा।

कितनी शर्म की बात है कि यह प्रधानमंत्री कार्यालय से भी इस मशाल को दूर रखा गया, शायद सोनिया-मनमोहन सरकार को अपने कार्यालय पर ही भरोसा नही है। इस र्निलज्‍ज सरकार में कम से थोड़ा तो पानी रहा नही तो राष्‍ट्रपति भवन को भी न छोड़ते।

कई सितारों ने इस मशाल दौड़ का बहिष्‍कार किया वे बधाई के पात्र है सबसे अधिक भूटिया जिन्‍होने सरकार की नीति ही नही सरकारी नुमाइन्‍दों के मुँह पर खीच खीच के तमाचे मारे है। भूटिया स्‍पष्‍टता से कहा कि तिब्‍बती दमन के अपराधी के उत्‍सव में मै भाग नही लूँगा। भूटिया का कहना स्‍वाभाविक है वह सिक्किम से जुडे है जिसे चीन अपना अंग मानता है।

हमारी सरकार एक औरत के छत्रछाया में चूडि़यॉं पहन के बैठी है। इसके मंत्री अरूणाचल जाते है तो सिर्फ यह घोषण करने की ''अरूणाचल भारत का अभिन्‍न अंग है।'' अरूणाचल तो भारत का अंग है ही उसे बताने की क्‍या जरूरत है। मै सच में एक बात कहना चहाता हूँ कि अगर ऐसे मंत्री की सुरक्षा न हो तो अरूणाचल ही नही पूरे भारत में जूतियाये जाये। भारत का अंग वास्‍तव में सिक्किम और अरूणाचल तब होगे कि वहाँ पर कुछ काम हो। किन्‍तु काम के नाम पर इन ''नमक चोरों'' की जेब खाली हो जाती है। आज भी देश के दोनो प्रदेश रेल यातायात से अछूते है। क्‍या संसाधनों की कमी के बल पर भारत के अंग बनाये रखेगें? 
चीन की मशाल न‍िकली जरूर है, इसमें तिब्‍बत का शौर्य जगेगा तो भारत का शर्म।


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अफजल के नाम पर समाज सेविका का असली चेहरा



भारत में डायनों की कमी नही है, जो समय समय पर अपना पिचासिनी रूप दिखाने के तत्‍पर रहती है। यह जानी मानी समाज सेविका मेधा पाटेकर है जो दिल्‍ली में अफजल के समर्थन में घरने पर बैठी है।

ये भारत के लिये पूतना से कम नही है जो कृष्‍ण को मारने के लिये सुन्‍दर स्‍त्री का रूप धरती है किन्‍तु सत्‍य के आये असली चेहरा आ ही जाता है। आज अफजल के मामले में मेधा की असली चेहरा सामने आ ही गया है। जो समाज सेविका के नाम पर आंतकवादियों के साथ दे रही है।  (यह चित्र अक्‍टूबर 2006 का है)




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चिट्ठाकारी के मठाधीशों का असली चेहरा



देवाशीष जी का साक्षत्‍कार पढ़ रहा था कि हिन्‍दी चिट्ठाकारी में मठाधीशी नही है किन्‍तु उनकी बातों में कितनी सच्‍चाई है, यह बात उनके कृत्‍यो के द्वारा पता चलता है। उक्‍त लेख पर मैने एक टिप्‍पणी चिट्ठाकार पर अपने प्रतिबन्‍ध को लेकर की थी और जानना चाहा था कि क्‍या वास्‍तव में चिट्ठाकारी में मठा‍धीशी नही है? उस टिप्‍पणी के प्रतिउत्‍तर में देबाशीष जी की जो प्रतिक्रिया मिली कि चिट्ठाकार गूगल समूह न होकर एक उनका व्‍यक्तिगत साईट है, और उस पर उन्‍हे पूर्ण मनमानी करने का अधिकार है। शायद आप सब को भी पता नही होगा कि जिस चिट्ठकार समूह के आप सदस्‍य है वह समूह देबाशीष जी की सम्‍पत्ति है और किस श्रेणी के लोगों को आने की अनुमति है और किस को नही। अब जरूरी है कि सच्‍चाई और वास्‍तविकता सामने आये।

अगर देवाशीष जी अपनी टिप्‍पणी को गौर से पढ़े और विश्लेषण करे तो निष्कर्ष यही आयेगा कि देबाशीष जी ने खुद की बातो को घता साबित किया है। देवाशीष जी की उक्‍त टिप्‍पणी निम्‍न है Debashish said...

प्रमेंद्र, आपने यह राज़ क्यों बनाये रखा मैं नहीं जानता। चिट्ठाकार पत्र समूह में कई बार कह चुका हूं, वह समूह कोई सार्वजनिक संपत्ति नहीं है, मेरी साईट है, इसकी नीति मैंने बनाई है जो http://groups.google.com/group/Chithakar/web/group-charter पर बड़े साफ शब्दों में लिखी है। स्पष्ट लिखा है कि समूह में "भड़काऊ, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप या धर्म जैसे संवेदनशील मसलों पर संदेश" वर्जित हैं और "ऐसे संदेश भेजने वाले सदस्य की सदस्यता बिना किसी चेतावनी के समाप्त कर दी जायेगी"। आपके और अन्य कुछ मामलों में यही किया गया। जो चार्टर से सहमत नहीं वो समूह में रह कर क्या करेंगे। यह आपकी अभिव्यक्ति पर रोक तो नहीं हैं क्योंकि ज़ाहिर तौर पर "चिट्ठाकार" कोई एकलौता मंच नहीं है जहाँ आप अपनी बात रख सकें, आपके अनेक चिट्ठे हैं, अन्य समूह भी हैं, नहीं हैं तो आप बना सकते हैं। आपको समान राय वाले समूह में ही रहना चाहिये, जहाँ मतैक्य न हों वहाँ क्यों रहना? यह जिद करना कि आप मेरी साईट पर आकर "मूंग दलेंगे" तो बचकानी जिद है। अपनी ही साईटों की नीति तय करना अगर आपकी दृष्टि में मठाधीशी है तो मैं आपकी सोच पर केवल तरस ही खा सकता हूं।
एक बात और जो मैं काफी दिनों से कहना चाह रहा था। मुझे विश्वास है कि आप चिट्ठाकारी में कुछ कहने आये हैं पर फिर ये शत्रुता का व्यवहार क्यों। हम दोनों एक दूसरे की विचारधारा से परीचित हैं यह तो अच्छी बात है, मैं कट्टर हिंदूवाद की विचारधारा से विरोध रखता हूं पर व्यक्तिगत तौर पर आग्रह नहीं पालता। मेरी बैंगानी बंधुओं और शशि सिंह से भी इस बाबत राय नहीं मिलती, पर हम अच्छे मित्र हैं। मैंने जगदीश भाटिया पर ब्लॉगवाणी द्वारा डीडॉज अटैक के आरोप का बड़ा तकनीकी तौर पर संयत स्पष्टीकरण दिया, मैथिलि जी ने स्वयं जवाब को सराहा। पर आपने क्या किया? अपने ब्लॉग पर मुझे शिखंडी करार दे दिया, जबकि तकनीक और इस सारे मामले की बारीकी से ही आप अनभिज्ञ थे। यहाँ तो हिन्दू मुस्लिम, साँप्रदायिकता की बहस भी न थी। मैं क्यों न समझूं कि आप की खुन्नस अब व्यक्तिगत हो चुकी है, वैचारिक नहीं रही। मुझे यह खुन्नस निकालनी होती तो मैं समूह में केवल अपने जाने पहचाने लोगों कौ ही आमंत्रित करता। विचारधारा का विरोध अस्विकार्य होता तो क्या अनुनाद, अरुण अरोरा वगैरह समूह में शामिल रहते? ठंडे दिमाग से सोचिये ज़रा।

मै देवाशीष जी की ही टिप्पणी का क्रमबद्ध उल्‍लेख करूँगा, उनकी बिन्‍दुवार उनकी टिप्‍पणी के अंश तथा उसके नीचे मैने अपनी बात रखी है -
चिट्ठाकार पत्र समूह में कई बार कह चुका हूं, वह समूह कोई सार्वजनिक संपत्ति नहीं है, मेरी साईट है, इसकी नीति मैंने बनाई है जो http://groups.google.com/group/Chithakar/web/group-charter पर बड़े साफ शब्दों में लिखी है।

कई लोगों को नही पता होगा कि ‘’चिट्ठाकार समूह’’ आपकी प्रोपराईटरशिप में चल रही है अन्‍यथा मुझ जैसे कई लोग आपके चिट्ठाकार समूह के नाम से बने चिट्ठाकार व्‍यापार मंडल की सदस्‍यता ग्रहण न करते। मुझे चिट्ठकार समूह पर आपके द्वारा किये गये बैन पर हर्ष है कि इस बाबत कई लोगों को सच्चाई से रूबरू होने का अवसर मिला, कि वे किसी सामुदायिक चिट्ठाकार समूह के सदस्य न होकर किसी की नि‍जी सम्‍पत्ति में घुसे हुऐ है। आप जिस प्रकार से चिट्ठाकार समूह का नेतृत्‍व कर रहे है इससे यह नही प्रतीत होता है कि चिट्ठाकार समूह कोई समुदायिक विचार का मंच है, जैसा कि आपके बातों से भी स्‍पष्‍ट हो गया है। नेतृत्‍व हर समाज में होता है, इसमें प्रोपराईटरशिप या स्‍वामित्‍व की बात कहॉं से आ जाती। आपके द्वारा दिये गये तथाकथित व्‍यापार चार्टर लिंक को मैने अपने बैन होने के बाद काफी पढ़ा था। किन्‍तु आपके अन्‍दर का भय मुझे आज दिखा, कि जो चिट्ठाकार सर्वजनिक तौर पर खुला रहता था आज वह बन्‍द है। उस चार्टर को बन्द करके फिर लिंक देकर मुझे पढने के लिये कहना, हँसने योग्य प्रसंशनीय कार्य है।


समूह में "भड़काऊ, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप या धर्म जैसे संवेदनशील मसलों पर संदेश" वर्जित हैं और "ऐसे संदेश भेजने वाले सदस्य की सदस्यता बिना किसी चेतावनी के समाप्त कर दी जायेगी"। आपके और अन्य कुछ मामलों में यही किया गया। जो चार्टर से सहमत नहीं वो समूह में रह कर क्या करेंगे।

मुझे आपकी इस उत्‍तर पर तरस आ रहा है, कि आप इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे है। क्‍योकि आपने टिप्‍पणी मे कहा था कि - समूह में "भड़काऊ, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप या धर्म जैसे संवेदनशील मसलों पर संदेश" वर्जित हैं किन्‍तु मै इस बात का पूर्ण खंडन करता हूँ कि मेरे द्वारा 2006 से आज तक चिट्ठाकार समूह तो क्‍या किसी भी समू‍ह पर इस तरह की पो‍स्टिग नही की गई है, तो नियमों के उल्‍लंघन की बात कहाँ से आ जाती है। मेरी आपत्ति के बाद आपका तर्क प्रस्‍तुत करना नैतिक दायित्‍व है, जबकि आप इस समूह का नेतृत्‍व कर रहे है। यदि आप इसके प्रोप्राइटर या मालिक है तो नैतिकता समाप्‍त हो जाती है। स्‍पष्‍ट है कि जब अपराध हुआ ही नही तो चेतावनी क्‍या? कार्यवाही क्‍या ? आप पिछले कई महीनों से मठाधीशी की परिभाषा तलाश रहे है मेरे याद दिलाने से ज्ञान हो गया होगा। इसी के साथ पुन: एक कहावत कहना चाहूँगा – कस्तूरी कुंडल बसै , मृग ढूढै वनमाही। आप फिर कहेगे कि मै आपको शिखड़ी के बाद मृग कह रहा हूँ। पुनरावलोकन कर लें कि मैने चिट्ठाकार व्‍यापार मंडल के किसी नियम का उल्लघन तो नही किया। अगर मेरे द्वारा संदेश नही गया तो किसी नियम के उल्‍लघंन का प्रश्‍न ही कहाँ उठता? बिना नियमों के उल्‍लंघन के मेरी चिट्ठाकारी की दुकान का राजिस्‍ट्रेशेन कैन्सिल करना न्‍यायोचित नही है।


यह आपकी अभिव्यक्ति पर रोक तो नहीं हैं क्योंकि ज़ाहिर तौर पर "चिट्ठाकार" कोई एकलौता मंच नहीं है जहाँ आप अपनी बात रख सकें, आपके अनेक चिट्ठे हैं, अन्य समूह भी हैं, नहीं हैं तो आप बना सकते हैं। आपको समान राय वाले समूह में ही रहना चाहिये, जहाँ मतैक्य न हों वहाँ क्यों रहना? यह जिद करना कि आप मेरी साईट पर आकर "मूंग दलेंगे" तो बचकानी जिद है।

आपको ही बैन जैसे लुच्‍चे साधनों की आवाश्‍कता होगी, क्‍योकि आप हिन्‍दुत्‍व से अपने को दूर रखना चाहते है। हिन्दुत्‍व ही सर्वधर्म सम्‍भाव कि बात करता है, असली सेक्यूलरिज्‍म हिन्‍दुत्‍व में ही पोषित होता है। बाकी तो आपकी ही तरह पूछते रहते है कि मेरे अंगने में तुम्‍हारा क्‍या काम है? जहॉं तक ब्‍लाग्स की बात है तो मेरे लिये लिखने के मंचों की कमी नही है। जहाँ तक गूगल समूह की बात है तो आपकी व्‍यापार मंडल भी गूगल के रहमोकरम पर ही है, और गूगल तो सबके माई-बाप है। माई-बाप की जागीर में सभी संतानो का हिस्‍सा बराबर का होता है। चालबाज संताने ही पूरे पर दावा ठोकती है। समूह बनाना कौन सा बड़ा काम है? बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं, कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ||एहि धनु पर ममता केहि हेतू, सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू || मैने भी खेल खेल में बहुत से समूह और ब्‍लाग बना डाले है, पर स्‍वामित्‍व का ऐसा दावा, मतभिन्‍नता रखने वालो पर इतना बड़ा प्रहार मुझसे आज तक न हुआ। जहॉं तक मतैक्‍य की बात है तो मुझे लगता है आपका ही मत लोगो से नही मिलता है, तभी जो भी आता है आपकी घंटी बजाकर चला जाता है, किसी का नाम लेने की जरूरत नही है। जहॉं तक मूँग दलने की बात है तो आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि मूँग की दाल काफी मॅहगी है, पेट खराब होने पर काफी फयादा करती है। ऐसी चीज दलने में नुकसान ही क्‍या है? खुद ही सोचिये व्‍यापार मंडल की साइट पर मूँग नही दला जायेगा तो क्‍या मौसम की जानकारी प्रकाशित होगी? वैसे मेरे पास व्‍यापार मंडल में न तो मूँग दलने का समय है न बाजार लगाने का, मुझे लगाता है कि मूँग दलने और इस तरह के बाजार लगाने की आपकी पुरानी आदत है। आप आपने आदत से मजबूर है, नही तो अकारण बैंन नही लगातें।
 
अपनी ही साईटों की नीति तय करना अगर आपकी दृष्टि में मठाधीशी है तो मैं आपकी सोच पर केवल तरस ही खा सकता हूं।
 
आपको तरस खाने की जरूरत नही है वैसे आप कुछ भी खा सकते है, मूँग की दाल खाइये, फायदा करेगी। जैसा कि मैने पहले ही कहा था कि मठाधीशी तो कुछ के रग रग में है, जो अकारण सम्‍प्रभु बने रहने की कोशिश करते रहते है, मुझे आपका नाम लेने में जरा भी हिचक नही है। क्‍योकि जो कर्म आपने किया और फिर सीना जोरी के साथ सबके सामने यह कह रहे है कि आप चिट्ठकार व्‍यापार मंडल के प्रोपइटर है तो यह आप अपनी सबसे बड़ी मूर्खता को उजागर कर रहे है।
 
एक बात और जो मैं काफी दिनों से कहना चाह रहा था। मुझे विश्वास है कि आप चिट्ठाकारी में कुछ कहने आये हैं पर फिर ये शत्रुता का व्यवहार क्यों। हम दोनों एक दूसरे की विचारधारा से परीचित हैं यह तो अच्छी बात है, मैं कट्टर हिंदूवाद की विचारधारा से विरोध रखता हूं पर व्यक्तिगत तौर पर आग्रह नहीं पालता। मेरी बैंगानी बंधुओं और शशि सिंह से भी इस बाबत राय नहीं मिलती, पर हम अच्छे मित्र हैं।
 
अकारण प्रतिबंध दुराग्रह नही तो क्‍या है? जो कहना था आप कह सकते थे किन्‍तु लगता है कि आप प्रतिबंधित कर अपनी ताकत का प्रर्दशन करना चाहते थे। आपको यह कैसे लगा कि यह शत्रुता का व्‍यवहार कर रहा हूँ, हर चोर को दूसरा आदमी चोर ही नज़र आता है। मुझे तो नही लगता कि आपकी कोई अपनी विचारधारा है, सिवाय पिचाल खेलने के।
 
जहाँ तक मुझे लगता है कि मेरी कई व्‍यक्तियों के साथ वैचारिक दूरी है, वह संघ, गांधी, हिन्‍दुत्‍व के अलावा बहुत कुछ विषय है। हम एक दूसरे की खिचाई करते है किन्‍तु व्‍यक्तिगत दुराग्रह नही करते। किन्‍तु आपका मामला भिन्‍न है जो आपके आधीन और आपके नक्‍शेकदम पर नही चलता उसकी कोई विचारधारा नही। यह हिटलरशाही, तुगलकशाही, सद्दामशाही नही तो और क्‍या है? इसी को साहित्यिक भाषा में मठाधीशी कहते है।
 
मैंने जगदीश भाटिया पर ब्लॉगवाणी द्वारा डीडॉज अटैक के आरोप का बड़ा तकनीकी तौर पर संयत स्पष्टीकरण दिया, मैथिलि जी ने स्वयं जवाब को सराहा। पर आपने क्या किया? अपने ब्लॉग पर मुझे शिखंडी करार दे दिया, जबकि तकनीक और इस सारे मामले की बारीकी से ही आप अनभिज्ञ थे।यहाँ तो हिन्दू मुस्लिम, साँप्रदायिकता की बहस भी न थी। मैं क्यों न समझूं कि आप की खुन्नस अब व्यक्तिगत हो चुकी है, वैचारिक नहीं रही।
 
लगता है कि आपकी ऑंखे ठीक काम नही कर रही है, अगर न कर रही हो तो चश्‍मा लगवा लीजिऐ। क्‍योकि जिस लेख की बात आप कर वह मानवेन्‍द्र जी का है मेरा नही, क्‍योकि उन दिनों मै अपने ब्‍लाग से अनुपस्थित था और जिसकी स्‍पष्‍ट सूचना ब्‍लाग के हेडर पर मौजूद थी। एक बात स्‍पष्‍ट कर दूँ कि आपके चिट्ठाकार व्‍यापार मंडल पर प्रतिबंध के बाद वह लेख आया था। इससे यह कहना कि शुरूवात मैने की है यह निहायत ही ओछा आरोप है जो सर्वथा गलत है।
 
मुझे लगता है कि आपने मैथिली जी की बात भी स्‍पष्‍टता से नही पढ़ी क्‍योकि मैथिली जी ने कही भी क्लीन चिट नही दिया है क्‍योकि उनका कहना था कि – हो सकता है ? अर्थात उन्‍होने गांरटी के साथ नही कहा है कि गलती नही हुई है। मैथिली जी ने यहॉं श्रेष्‍ठ अग्रज की भूमिका निभाई है दो के विवाद के निपटारे के लिये उन्‍होने यह बात कहीं थी न कि किसी को सही साबित करने के लिये।
 
अब आप अपने आपको शिखड़ी मानो या शूपनर्खा, इसमें मेरा क्‍या दोष है ? जहॉं तक की गई टिप्‍पणी को देखने के बाद कोई छोटा सा बच्‍चा भी यह कहेगा कि यह किसी व्‍यक्ति विशेष के लिये नही कहा गया है, किन्‍तु चोर की दाढ़ी में तिनका यहीं दिखाई पढ़ता है, तिनका हो न हो चोर अपनी दाढ़ी जरूर साफ करता है। अब आप अपने शिखड़ी समझ रहे है तो भला चोर की दाढ़ी मे तिनका कहने वाले का क्‍या दोष ?
 
चूकिं तत्‍कालीन लेखन ने वह टिप्‍पणी भाटिया जी के ब्‍लाग पर की थी किन्‍तु भाटिया जी ने उसे प्रकाशित नही किया। तो लेखक को अपनी बात टिप्‍पणी से परे होकर ब्‍लाग पर करनी पड़ी।
 
मुझे यह खुन्नस निकालनी होती तो मैं समूह में केवल अपने जाने पहचाने लोगों कौ ही आमंत्रित करता। विचारधारा का विरोध अस्विकार्य होता तो क्या अनुनाद, अरुण अरोरा वगैरह समूह में शामिल रहते? ठंडे दिमाग से सोचिये ज़रा!
 
आपकी यह बात खुद ही उक्‍त लोगों से आपकी वैचारिक दूरी को उजागर करती है। आपकी महानता ही है कि उक्‍त लोगों को किस प्रकार इस समूह में झेल रहे है। उक्‍त लोग आपके सदैव आभारी रहेगे कि आपने अभी तक इन पर अपने प्रोप्राइटरी कार्यवाही का दंडा चला कर इनका रजिस्‍ट्रेशन कैन्सिल नही किया।
 
श्री देबाशीष जी की टिप्‍पणी के सर्मथन में एक और टिप्‍पणी आई थी मै उसका भी उल्‍लेख करना चाहूँगा, जो जरूरी है -
दिनेशराय द्विवेदी said...
देबू भाई के बारे में जानने का अवसर मिला। धन्यवाद्।
मैं उन के इस विचार से सहमत हूँ, यह कानून भी यही कहता है कि दूसरे कि संपत्ति पर आप यदि कुछ कर रहे हैं तो उस की सहमति से कर रहे हैं। आप एक लायसेंसी हैं। अब आप वहाँ कोई भी ऐसा काम करते हैं जो संपत्ति के स्वामी द्वारा स्वीकृत नहीं है तो संपत्ति के स्वामी को आप को वहाँ से बेदखल करने का पूरा अधिकार है। आप उसे कोसते रहें तो कोसते रहें। आखिर संपत्ति के स्वामी ने अपने वैध अधिकार का उपयोग किया है कोई बेजा हरकत नहीं की है।
16 February, 2008 5:18 PM
श्री द्विवेदी जी अधिवक्‍ता है विधिक मामलों के जानकार है, कानून क्‍या कहता है जितना उन्‍होने पढ़ा वह कह दिया। किन्‍तु सच्‍चाई यह है कि विचारमंच कभी किसी की सम्‍पत्ति नही हो सकती है, और यदि आप कानून के जानकार है तो आपको पता होगा कि किसी कारखाने का मालिक, प्रोपराईटर जब अपने किसी अदना से नौकर को भी उसकी गलती की वजह से कम्‍पनी से निकालता है तो उसे चार्टशीट देनी होती है, उसे उसके अपकृत्‍य से बिन्‍दुवार अवगत कराया जाता है, तथा एक इन्‍क्‍वाईरी ऑफिसर नियुक्‍त किया जाता है जो मामले की पूर्ण जॉंच करता है। जहॉं तक सम्म‍पत्ति की बात है तो मकान मालिक और किरायेदार के सम्‍बन्‍ध में राजस्‍थान के कानून भारत के अन्‍य राज्‍यों से बहुत ज्‍यादा भिन्‍न नही होगें, और शायद प्राकृतिक न्‍याय के सम्‍बनघ में भी आप अ‍नभिज्ञ है। किसी की कब्‍जेदारी को वि‍मुक्‍त करना एक पूर्ण विधिक प्रक्रिया है। जिसके पालन न किये जाने की गणना आपराधिक अपकृत्‍य में की जाती है। आपने उपयुक्‍त टिप्‍प्‍णी की अपेक्षा नही थी। किसी अधिवक्‍ता का इस प्रकार का कथन सच में उसकी विधिक अनभिज्ञता का घोतक है।


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चौपाटी में लाठी



भारत जैसे विशाल देश में, जब भाषा तथा क्षेत्रवाद को लेकर विवाद होते है तो कष्‍ट की अनुभूति होती है। मुझे मराठियों से काफी लगाव है इसका मुख्‍य कारण छत्रपति शिवाजी और काफी हद तक बाला साहब का व्‍यक्तित्‍व है। हाल के दिनों में जिस प्रकार मुम्‍बई में राज के सैनिकों ने तांडव किया वह यह दर्शाता है कि भारत में अभी भी क्षेत्रवाद का अंत नही है। 
तमिलनाडु से लेकर पूवोत्‍तर भारत राज्‍यों में जो दहशत देखने को मिलती है वह यह दर्शाता है कि भारत नागरिक आज भारत में भी सुरक्षित नही है। आज केन्‍द्र सरकार हो या राज्‍य सरकार आज अपने देश की सुरक्षा की गारंटी लेने को तैयार नही है। मेरे ख्‍याल से राज की मराठी व्‍यक्तियों को लेकर चिन्‍ता जायज है किन्‍तु उनका प्रर्दशन नाजायज था। पर यहॉं पर यह बात स्‍वीकार करने होगी कि जिनती चिन्‍ता राज ठाकरें को है शायद उतनी मराठियों को नही होगी। राज ठाकरे की नीयत महाराष्‍ट्र के अपनी पैठ बानने ही और वह इस नब्‍ज को दबा रहे है।
आज एक प्रश्‍न उठता है कि इस क्षेत्रवाद का अंत क्‍या होगा ? क्‍या सरकार को इस आतंरिक आतंकवाद को नियत्रण में करने का साहस नही है ? इस आंतरिक आंतंकवाद को देशद्रोह माना जाना चाहिए। और इसके पोषको को दण्डित किया जाना चाहिए ताकि भारत के सविधान की मूलभावना कि हम भारत के लोग को बरकरार रखा जा सकें।


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सबका होल निचोड़ - क्‍योकि इन बंदरों का रंग भागवा न हो कर लाल था



 


गुजरात चुनाव में बहुतों ने बहुत कुछ बोल लिया है और मैंने लगभग सभी को पढ़ा और सुना, किन्तु एक गन्‍दी बदबू लगभग सभी जगह पढने और सुनने को मिली कि हिटलर मोदी, साम्‍प्रदायिक मोदी। आज मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि पत्रकारिता की लगाम आज विदेशी ताकतों के हाथों गिरवी रखी जा चुकी है, और मीडिया भी विदेशी जुबान बोलने लगी है। यह मोदी का विरोध नहीं हो रहा है बल्कि राष्‍ट्रीयता का विरोध है। गुजरात चुनाव के दौरान कांग्रेस बैकफुट पर रही और पत्रकारिता मुख्य विपक्षी दल के भूमिका में थी। कुछ ने मोदी को हिन्दूवादी कहा मै भी कहता हूँ किन्तु एक बात यह जरूर कहना चाहूंगा कि सरकारे जो बनती है उनका कोई धर्म नहीं होता है अगर सरकारो हिन्दू या ..... का नाम दिया तो यह देश के व्यवस्था का अपमान है।

गुजरात में मोदी की जीत ने न सिर्फ भाजपा में जीतने का जज्बा दिखाया अपितु 2009 के आम चुनाव में भाजपा को मुख्य संघर्ष में भी ले आई। मेरे विचार से आज में आज अगर कोई लोकनायक नेता है तो सिर्फ मोदी ही है। जिस प्रकार कांग्रेस के केन्द्रीय मंत्री दिनशा पटेल को को 85 हजार से ज्यादा मतों से हराया यह कोई आम बात नही है वास्तव में यह लोक नायक के दर्जे को दर्शाता है। मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने दर्शा दिया कि हमारे पास भी एक पश्चिम बंगाल है जो सुशासन के बल पर भाजपा का अभेद दुर्ग बना हुआ है।

मै गुजरात और बंगाल की तुलना नहीं करूँगा क्योंकि वे तुलनीय है भी नही। क्योंकि एक ओर जहां सूर्य उदित होता है तो दूसरी ओर अस्त होता है। आज बंगाल इसलिए नहीं रो रहा है कि वहां संसाधनों की कमी है इसलिए रो है कि वहां कि सरकार और मुख्यमंत्री निकम्मा है। आज मोदी के व्यक्तित्व के आगे हिन्दू और मुस्लिम दोनों प्रभावित है। जबकि बुद्धदेब की सरकार के गुर्गों ने ही नंदीग्राम के महिलाओं के साथ र्दुव्‍यवहार किया। गर मुसलमान मरता है तो देश का कुंठित मानसिकता का एक बुद्धिजीवी कीड़ा रेंगने लगता है तो यह भूल जाता है कि देश के इतिहास में दंगे पहली बार नहीं हुऐ, और यह जरूर हुआ है कि दंगों के बाद देश में पहली बार शान्ति जरूर हुई है। 84 के दंगे की विभीषिका आज भी जनता को याद है। किस प्रकार सिखों को कांग्रेसियों ने चुन चुन कर मारा था। आज एक सिख प्रधानमंत्री ही दंगों के सरगना जगदीश टाइटलर को अपने मंत्रिमंडल में जगह दिये हुये है। क्यों नहीं कांग्रेस से प्रश्न किया जाता कि क्‍यो बचा रही है अपराधियों को? यह प्रदेश प्रश्‍न पूछने वाला देश में कोई मीडिया नहीं है क्योंकि विदेशी ताकतों के हाथ बिकी हुई है। नंदीग्राम में हिन्दू भी मारे गये और मुस्लिम भी, किन्तु देश के धर्मनिरपेक्ष में अंधे बुद्धिजीवियों को यह नहीं दिखा क्‍यो ? क्योंकि इन बंदरों का रंग भगवा न हो कर लाल था, यह हनुमान को नही लेनिन को पूजते है।

इधर एक लेख और देखने को मिला नरेंद्र मोदी की जीत और बेनज़ीर भुट्टो की हत्या एक ही जैसा दु:खद प्रसंग है! क्योंकि इसमें पढ़ने लायक कुछ भी नहीं था। यह एक हास्‍यास्‍पद प्रसंग ही कहा जायेगा कि आज देश के विचारको में यह मत है। जिस प्रदेश की जनता ने मोदी को 48% वोट दे कर जिताती है उस जनता को ही जनता, गुनहगार मानती है। देश के आम चुनाव में कांग्रेस 145 सीट लेकर जीत जाती है और भाजपा 138 सीट लेकर हारा माना जाता है तो यह देश का र्दुभाग्य ही है।

गुजरात की हार में न तो महारानी का कोई जिम्मेदारी थी न युवराज की, बस जिम्मेदारी थी स्‍थानीय टट्टूओं की, अगर यह जीत होती तो सारा श्रेय मैडम को जाता, हार हुई तो टट्टुओं की। और टट्टू जन कर भी क्या सकते है? अपनी जिम्मेदारी लेने से मैडम की नजरों में कद ऊंचा होगा, और जनता तो एक रखैल है जिससे तो समय पर ही काम पड़ेगा। यह कहना गलत न होगा कि कांग्रेस नेताओं का मैडम जी के साथ हिन्दू विवाह है और जनता के साथ मुस्लिम विवाह :)

गुजरात के बाद हिमाचल प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी 2/3 बहुमत की ओर है अब यह कहना गलत होगा कि गुजरात जी एक तुक्का थी। गुजरात के बाद हिमाचल में हार की जिम्मेदारी किसकी होगी, जल्द की कांग्रेस के पार्टी प्रवक्ता घोषणा करेंगे। खुद वामपंथियों और छद्म पत्रकारों के सीने पर जरूर सॉप लोट जायेगा। और अब नरेन्द्र मोदी को उनकी जीत पर अपनी सार्वजनिक पहली बधाई देता हूँ।



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मोदी एक मंत्र है



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 नरेन्द्र मोदी एक नाम होकर एक मंत्र हो गया है। न सिर्फ समर्थक अपितु असमर्थक भी अपने आपको मोदी महिमा के गुण गान से नही रोक पा रहे है। क्या बात हो गई कि एक व्यक्ति को कहा जा रहा है कि वह व्यवस्था पर भारी पड़ रहा है? अगर एक व्यक्ति पूरी व्यवस्था पर भारी पढ़ रहा है तो उसमें कुछ न कुछ तो बात जरूर होगी।
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मै बात करूँ तो मै मोदी को तब से जानता हूँ जब वह भाजपा के राष्‍ट्रीय महासचिव हुआ करते थे, और मै मोदी को कभी पसंद नहीं करता था। जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी की ताजपोशी हुई तो मुझे कतई यह नेता अच्छा नहीं लगता था। कारण था कि मुझे मोदी की सूरत पसंद नही थी किन्तु बाद सीरत का कायल हो गया। आज यह नेता मुझे ही नहीं पूरे देश के युवाओं की आंखों का तारा बन गया है। जो भी है वह मोदी के गुणगान कर रहा है। और होना भी चाहिए।
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गोधरा के बाद जो कुछ गुजरात में हुआ वह वक्‍त की जरूरत थी। क्योंकि गोधरा में जिस प्रकार 59 कारसेवक जिन्दा जलाये गये वो दृश्‍य दिल दहला देने वाला था। क्या हिंदू के वोट के तराजू में हिन्दू के प्राणों का मोल नहीं होता है? इन राजनीतिज्ञों की चालों से तो यही लगता है। गुजरात दंगों के समय जो हाय तौबा मची उससे तो यही प्रतीत होता है कि राजनीति में वोट की ही कीमत है, तभी जाहिरा और शराहब्‍बुदीन का दर्द दिखता है किन्तु वही जलती हुई ट्रेन और सिख का खुलेआम कत्लेआम नहीं दिखता है। क्या वह दृश्य सोचा जा सकता है कि एक हज यात्रा की बस को जला दिया जाता? यह तो केवल एक प्रश्न है जबकि दृश्‍य आपके सामने ही प्रकट कर देते है। आगरा में बस की टक्‍कर से जिस प्रकार एक मुस्लिम छात्र की मौत हुई, उसके जवाब में आगरा में कई इलाकों की हिन्दू दुकानों को निशाना बना कर लूट लिया गया, तथा इलाहाबाद में कुरान के पन्ने फाड़े जाने के षड्यंत्र का खुद ही पर्दाफाश हो गया किन्तु इसके परिणाम स्वरूप अगर नुकसान हुआ तो सिर्फ हिन्दुओं का कारण है कि सेक्युलर पार्टियों की नज़र मे हिन्दू केवल जाति में बटी हुई नाजायज औलाद है जब मन चाहा बांट कर वोट ले लिया। मऊ की घटना सभी को याद है कि मुलायम की शह पर मारे गये तो सिर्फ हिन्दू। अगर बेस्ट बेकरी की बात करें तो उसमें मरने वाले हिन्दू ही थे। जाहिरा की आना कानी काफी सच कहती है कि सच क्या था?
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आज उक्त बात यह बताती है कि गुजरात के हिंदुओं ने बता दिया हिंदुओं की ओर उठने वाली आंखें नोच ली जायेगी तो गलत क्या है? इतिहास गवाह है कि भाजपा के शासन के पहले जब कांग्रेस का शासन था तो लगातार 10 वर्षों तक गुजरात साम्प्रदायिक दंगे हुए किंतु गुजरात दंगों के बाद पिछले साल 5 सालों में कोई दंगा नहीं हुआ इस मामले में एक वरिष्ठ पत्रकार कहते है कि गुजरात दंगों के बाद मुसलमान सहम गया है। अर्थात अगर दंगों की वजह से दंगे बंद है तो क्यो न एक बार समर छिड़ जाने दो, कि दंगे हमेशा के लिये बन्द हो जाये? अगर गुजरात में आज समरसता है तो इसका कारण केवल और केवल मोदी है जो गुजरात में समाज के संतुलन को बरकरार कर दिया है। नही तो समाज के मुट्ठी भर लोग 85 प्रतिशत वाले भाग पर भारी पड़ते थे। और समय समय पर वैमन्‍यस्‍य फैलाते थे।
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यही कारण है कि आज यत्र सर्वत्र मोदी मंत्रोउच्चरण हो रहा है। और मोदी भाजपा पर भारी हो गये है। और यदि मोदी भाजपा पर भारी है तो कौन पिता का ख्वाब नहीं होता है कि उसके बेटे उससे बड़ा नाम हो? अब वह दिन दूर नहीं जब मोदी के नेतृत्व में दिल्ली के शासन में भगवा लहराएगा। अब आज मोदी की प्रशंसा क्यो होनी चाहिए यह आप खुद तय कर सकते है ?


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