सूक्ति और आदर्श वचन




  1. बड़े-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान करने वाले पुण्यात्मा लोग जिस मार्ग से जाते हैं, तीर्थों द्वारा भी लोग उसी मार्ग से जाते हैं। -अथर्ववेद (18/4/7)
  2. न्याय और धर्म का प्रतिष्ठा के लिए जैसे संत की पवित्रता आवश्यक है, वैसे ही योद्धा की तलवार भी।- अरविंद (दि डाक्ट्रिन आफ पैसिव रेसिस्टेंस,दी मारलिटी आफ बायकाट)
  3. जो कल्याणकारी कार्य हो, उसे आज कर डालिये। आपका यह समय हाथ से निकल न जाय क्योंकि कार्यों के अधूरे होने पर भी मृत्यु आपको खींच ले जाएगी। -वेदव्यास (महाभारत, शांतिपर्व 175/14)
  4. भगवान यदि अस्पृश्यता को सहता हो, तो मैं उसे भगवान मानने को तैयार नहीं हूं। -लोकमान्य तिलक (धार्मिक मतें)
  5. कायर मनुष्य कभी सदाचारी और नीतिमान हो ही नहीं सकता। -महात्मा गांधी (मोहनमाला, 66)
  6. जो जैसा व्यवहार करता है, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करने वाला पुरुष न तो अधर्म को प्राप्त होता है और न अमंगल का ही भागी होता है। -वेदव्यास (महाभारत, उद्योगपर्व, 178/53)
  7. पुर: प्रवृत्तप्रतीपप्रहता: पन्थान: पौरुषस्य। अर्थात पौरुष के मार्ग आगे-आगे चलने वाले प्रताप के द्वारा प्रशस्त होते हैं। -बाणभट्ट (हषर्चरित, पृ. 191)
  8. पशु का नियंत्रण गीता पढ़ाने से नहीं होता, दण्ड-प्रयोग से ही होता है। -माधव स. गोलवलकर (भाषण, कानपुर, 22 फरवरी, 1972 ई.)


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2 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Bahut badhiya vachan hain!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत अच्छे वाक्य इकठ्ठे किये हैं.