Dwadash Jyotirlinga Strotram (In Hindi)



A Jyotirlinga or Jyotirling or Jyotirlingam is a devotional Ling (mark) representing the god Shiva. The word jyotirlinga made by two words, Jyoti means 'radiance or shine' and lingam the 'mark or sign' of Shiva.
Jyotirlingam, means the Radiant sign of The Almighty power. There are twelve traditional Jyotirlinga temples in India.
This hymn (stotra) is recite or chanting to worship of those 12 jyotirlinga of lord shiva; The Dwadash Jyotirlingam Stotra is as follows –

Shree 12 Jyotirlinga Stotram In Hindi

सौराष्ट्रदेशे विशदेsतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम ।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ।।1।।
अर्थ – जो शिव अपनी भक्ति प्रदान करने के लिए सौराष्ट्र प्रदेश में दया पूर्वक अवतरित हुए हैं, चंद्रमा जिनके मस्तक का आभूषण बना है, उन ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान श्री सोमनाथ की शरण में मैं जाता हूँ

श्रीशैलश्रृंगे विबुधातिसंगेतुलाद्रितुंगेsपि मुदा वसन्तम ।
तमर्जुनं मल्लिकापूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम ।।2।।
अर्थ – जो ऊँचाई के आदर्श भूत पर्वतों से भी बढ़कर ऊँचे श्री शैल के शिखर पर, जहाँ देवताओं का अत्यन्त समागम रहता है, प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा जो संसार-सागर से पार कराने के लिए पुल के समान है, उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुन को मैं नमस्कार करता हूँ।

अवन्तिकायां विहितावतारंमुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम ।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम ।।3।।
अर्थ – संत जनो को मोक्ष देने के लिए जिन्होंने अवन्तिपुरी (वर्तमान में उज्जैन) में अवतार धारण किया है, उन महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं अकाल मृत्यु से बचाने के लिए प्रणाम करता हूँ

कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय ।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे ।।4।।
अर्थ – जो सत्पुरुषों को संसार सागर से पार उतारने के लिए कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के निकट मान्धाता के पुर में सदा निवास करते हैं, उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान ऊँकारेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम ।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ।।5।।
अर्थ – जो पूर्वोत्तर दिशा में चिताभूमि (वर्तमान में वैद्यनाथ धाम) के भीतर सदा ही गिरिजा के साथ वास करते हैं, देवता और असुर जिनके चरण कमलों की आराधना करते हैं, उन श्री वैद्यनाथ को मैं प्रणाम करता हूँ

याम्ये सदंगे नगरेsतिरम्ये विभूषितांग विविधैश्च भोगै: ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ।।6।।
अर्थ – जो दक्षिण के अत्यन्त रमणीय सदंग नगर में विविध भोगो से संपन्न होकर आभूषणों से भूषित हो रहे हैं, जो एकमात्र सदभक्ति और मुक्ति को देने वाले हैं, उन प्रभु श्रीनागनाथ जी की शरण में मैं जाता हूँ

महाद्रिपार्श्चे च तट रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रै: ।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे ।।7।।
अर्थ – जो महागिरि हिमालय के पास केदारश्रृंग के तट पर सदा निवास करते हुए मुनीश्वरो द्वारा पूजित होते हैं तथा देवता, असुर, यज्ञ और महान सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं, उन एक कल्याण कारक भगवान केदारनाथ का मैं स्तवन करता हूँ।

सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरीतीरपवित्रदेशे ।
यद्दर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ।।8।।
अर्थ – जो गोदावरी तट के पवित्र देश में सह्य पर्वत के विमल शिखर पर वास करते हैं, जिनके दर्शन से तुरन्त ही पातक नष्ट हो जाता है, उन श्री त्र्यम्बकेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ

सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै: ।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ।।9।।
अर्थ – जो भगवान श्री रामचन्द्र जी के द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम में अनेक बाणों द्वारा पुल बाँधकर स्थापित किये गए, उन श्री रामेश्वर को मैं नियम से प्रणाम करता हूँ

यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि ।।10।।
अर्थ – जो डाकिनी और शाकिनी वृन्द में प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं, उन भक्ति हितकारी भगवान भीम शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ

सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ।।11।।
अर्थ – जो स्वयं आनंद कन्द हैं और आनंदपूर्वक आनन्द वन (वर्तमान में काशी) में वास करते हैं, जो पाप समूह के नाश करने वाले हैं, उन अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की शरण में मैं जाता हूँ

इलापुरे रम्यविशालकेsस्मिन समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम ।
वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णे श्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ।।12।।
अर्थ – जो इलापुर के सुरम्य मंदिर में विराजमान होकर समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं, जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है, उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान शिव की शरण में मैं जाता हूँ

ज्योतिर्मयद्वादशलिंगानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोsतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ।।13।।
अर्थ – यदि मनुष्य क्रमशः कहे गये इन द्वादश ज्योतिर्मय शिव लिंगों के स्तोत्र का भक्ति पूर्वक पाठ करें तो इनके दर्शन से होने वाला फल प्राप्त कर सकता है

बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम और स्थान – Twelve Jyotirlingam and Place
  1. सोमनाथ गुजरात
  2. मल्लिकार्जुन आँध्र प्रदेश
  3. महाकालेश्वर मध्य प्रदेश
  4. ऊँकारेश्वर मध्य प्रदेश
  5. केदारनाथ उत्तराखंड
  6. भीमाशंकर महाराष्ट्र
  7. काशी विश्वनाथ उत्तर प्रदेश
  8. त्र्यम्बकेश्वर महाराष्ट्र
  9. वैद्यनाथ धाम झारखंड
  10. नागेश्वर गुजरात
  11. रामेश्वरम तमिलनाडु
  12. घृष्णेश्वर महाराष्ट्र



It is believed that a person will see these lingas with devotion mind and attention, and then he reaches a higher level of spiritual attainment. And also get grace of lord Shiva.

How To Chant – It has to be recited in front of Lord Shiva with holy mind; you can chant this hymn twice in a day.

Shiva Mantras, Dwadash Jyotirling Stotram, All Strotram


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