वंदेमातरम के बहाने लोकतंत्र का मजाक



अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन 1905 में किया था और इसके खिलाफ जो मशहूर बंग-भंग आंदोलन हुआ था, उसमें भी वंदेमातरम् ही मुख्य गीत था। राष्ट्रीय स्वयं संघ के संस्थापक डाॅ. केशव बलिराम हेडगेवार को तो वंदेमातरम् आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए ही नागपुर में स्कूल से निकाल दिया गया था और 1925 में उन्होंने संघ की स्थापना की।

आज कांग्रेस वंदेमातरम् को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है। जाहिर है कि शरीयत आदि का जो हवाला इस महान गीत के खिलाफ दिया गया है उसे लेकर कांग्रेस को अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक की काफी चिंता है। मगर यही कांग्रेस अगर वह आजादी के पहले वाली कांग्रेस की उत्तराधिकारी है तो 1915 के बाद अपना हर अधिवेशन वंदेमातरम् से शुरू करती रही है और आज तक करती है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने तो वंदेमातरम् को अपनी आजाद हिंद फौज का प्रयाण गीत बना दिया था और सिंगापुर में जो आजाद हिंद फौज रेडियो स्टेशन था वहां से उसका लगातार प्रसारण होता था।

14 अप्रैल 1906 को कोलकत्ता में वंदेमातरम् गाते हुए देशभक्तों का एक बड़ा जुलूस निकला था। इस जुलूस में महर्षि अरविंद भी थे जो आईसीएस की अपनी नौकरी छोड़़ कर देश और समाज की लड़ाई में शामिल हो गए थे। इस जुलूस पर लाठियां चली और महर्षि अरविंद भी घायल हुए। बाद में महर्षि ने खुद वंदेमातरम् का सांगीतिक अंग्रेजी अनुवाद किया। महर्षि ने अपनी पुस्तक महायोगी में लिखा है कि वंदेमातरम् से बड़ा राष्ट्रीयता का प्रतीक दूसरा नहीं हो सकता। बाकी सबको छोडि़ये, अंग्रेजों की रची किताब कैम्ब्रिज हिस्ट्री आॅफ इंडिया में भी लिखा है कि वंदेमातरम् संसार की महानतम साहित्यिक और राष्ट्रीय रचनाओं में से एक है। महात्मा गांधी की हर प्रार्थना सभा वंदेमातरम से शुरू होती थी।

आलोक तोमर, वरिष्ठ पत्रकार
(महाशक्ति वंदेमातरम् समग्र - एक प्रयास वंदेमातरम् विशिष्ट लेख संकलन) 


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