सादगी की प्रतिमा भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री



लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय उत्तरप्रदेश में हुआ था। उनके पिता शारदा प्रसाद एक गरीब शिक्षक थे, जो बाद में राजस्व कार्यालय में लिपिक (क्लर्क) बने। अपने पिता और अपनी माता श्रीमती रामदुलारी देवी के तीन पुत्रों में से वे दूसरे थे। शास्त्री जी की दो बहनें भी थीं। बचपन में ही उनके पिता का निधन हो गया। 1928 में उनका विवाह श्री गणेश प्रसाद की पुत्री ललिता देवी से हुआ और उनके छह संतान हुई। स्नातक की शिक्षा समाप्त करने पश्चात् वे भारत सेवक संघ से जुड़ गए और देश सेवा का व्रत लेते हुए यहां से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् शास्त्री जी को उत्तरप्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। वे गोविन्द वल्लभ पंत के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में प्रहरी एवं यातायात मंत्री बने। यातायात मंत्री रहते उन्होंने प्रथम बार किसी महिला को बस संवाहक (कंडक्टर) के पद पर नियुक्त किया। प्रहरी विभाग के मंत्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियंत्रण में रखने के लिए लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग आरम्भ कराया । 1951 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त हुए। उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जितवाने के लिए बहुत परिश्रम किया।
Lal Bahadur Shastri Family Photo - 1964
जवाहरलाल नेहरू का प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद शास्त्री जी ने 9 जून, 1964 को प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया। बचपन में ही पिता का सिर से साया उठ जाने के उपरांत मां ने कदम-कदम पर आर्थक संघर्षों से जूझ-जूझ कर अपने बेटे लाल बहादुर का लालन-पालन किया था। हाई स्कूल में अध्ययन करते समय लाल बहादुर पण्डित निष्कामेश्वर मिश्र एवं रामनारायण मिश्र नामक दो अध्यापकों के निकट समपर्क में आए। इन अध्यापकों से लाल बहादुर ने आत्मविश्वास की शिक्षा अर्जित करते हुए हर मुसीबत में धैर्य से मुकाबला करते हुए आगे बढ़ने का संकल्प लिया।
आत्म्विश्वास के धनी लालबहादुर शास्त्री को अंग्रेजों के अत्याचारों व गांधीजी के अहिंसा के बजे बिगुल से अन्र्तआत्मा को झकझोर दिया और वे गांधीजी द्वारा चलाए गए आंदोलन में सक्रिय हो गए। आजादी के आंदोलन में भाग लेने से भला रोटी तो मिलती नहीं थी, सो उन्होंने आंदोलन में भाग लेने के साथ-साथ आर्थिक संकटों का मुकाबला करने के लिए अपने एक मित्र की खादी के कपड़े व वस्त्रों की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया। नौकरी के साथ शास्त्री ने शिवप्रसाद गुप्त द्वारा चलाए गए काशी विद्यापीठ में पढ़ाई भी की। यहां से वे परीक्षा उत्तीर्ण कर प्रयाग आए और वहां वे नेहरू परिवार के सम्पर्क में आए और पूरी तरह राजनैतिक और सामाजिक कार्यों में जुट गए। कुछ ही समय उपरान्त शास्त्री जी प्रयाग नगरपालिका के सदस्य निर्वाचित हुए। जिससे उनके जनसेवा के कार्यों का विस्तार होने लगा। वे इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट के सदस्य बने। इस ट्रस्ट के अध्यक्ष पण्डित जवाहरलाल नेहरू थे। वर्ष 1930 से 1935 तक वे का कांग्रेस कमेटी इलाहाबाद के मंत्री तथा बाद में अध्यक्ष बने। वर्ष 1937 में उत्तरप्रदेश प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के मंत्री चुने गए और जनप्रिय हो गए। वर्ष 1941 और फिर 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान विदेशी हुकूमत ने शास्त्री को गिरफ्तार कर लिया। ऐसे समय में उनके घर की आर्थिक स्थिति बहुत बिगड़ गई लेकिन बड़ी सूझबूझ व धैर्य के साथ उन्होंने संकट का मुकाबला किया। वर्ष 1946 में शास्त्री उत्तरप्रदेश निर्वाचित समिति के सदस्य चुन लिए गए।
भारत देश की आजादी के बाद वे सन् 1951-52 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य बने, उन्हीं दिनों केन्द्र में मंत्रीमंडल बनाया गया और शास्त्री को केन्द्रीय रेल व परिवहन मंत्री बनाया गया। उन्होंने मंत्रित्व पद पर रहते हुए रेल सेवाओं में अनेकानेक सुधार किए, किन्तु आलियालर (दक्षिण भारत) में रेल दुर्घटना में जब सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो गई तो शास्त्री इस सदमे को बर्दाश्त न कर सके वपद से इस्तीफा दे दिया। वर्ष 1956-57 मेंइलाहाबाद से लोकसभा चुनावों में भारी मतों से निर्वाचित हुए और उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में संचार परिवहन मंत्री बना दिया गया। कुछ ही समय उपरान्त उन्हें वाणिज्य मंत्री का पद सौंपा गया। मई,1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लालबहादुर शास्त्री को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। वर्ष 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया था उस समझौते के दौरान वे फरवरी, 1966 में ताशकंद समझौते में गए तो उनका वहीं निधन हो गया था। वर्ष 1966 की 11 फरवरी को शास्त्री जी के निधन की खबर सुनते ही पूरे भारत में शोक छा गया। उनके पार्थिव शरीर को भारत लाया गया और दिल्ली के विजयघाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। आज वे हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी यादें हमेशा -हमेशा हर भारतवासी के मन में प्रेरणादायक के रूप में ताजी है।


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