ओणम पर्व का महत्व और कथा



 
भार‍त विविध धर्मों, जातियों तथा संस्कृतियों का देश है। भारत भर के उत्सवों एवं पर्वों का विश्व में एक अलग स्थान है। सर्वधर्म समभाव के प्रतीक केरल प्रांत का मलयाली पर्व 'ओणम' समाज में सामाजिक समरसता की भावना, प्रेम तथा भाईचारे का संदेश पूरे देश में पहुंचा कर देश की एकता एवं अखंडता को मजबूत करने की प्रेरणा देता है। ओणम केरल का सबसे बड़ा त्योहार है। केरल में इस त्योहार का वही महत्त्व है जो उत्तर भारत में विजयादशमी या दीपावली का या पंजाब में वैशाखी का। ओणम का त्योहार प्रतिवर्ष अगस्त-सितम्बर में मनाया जाता है। मलयाली सम्वत् के अनुसर यह महीना सावन का होता है।
पुराणों के अनुसार जब विष्णु भगवान ने वामन का अवतार धारण किया उस समय मलयालम प्रदेश राजा बलि के राज्य में था। बलि के राज में चोरी नहीं होती थी। बलि को अपने अच्छे शासन पर तथा अपनी शक्ति पर गर्व था। विष्णु भगवान ने उसका घमंड तोडने के लिए वामन का रूप धारण किया और भिक्षा मांगने के लिए वे बलि के पास पहुँचे। बलि ने कहा, ‘‘जो चाहो, मांग लो।’’ वामन ने तीन पग पृथ्वी मांगी। बलि ने तुरन्त प्रार्थना स्वीकार कर ली। अब विष्णु भगवान ने अपना विराट रूप प्रकट किया। उन्होंने दो पगों में सारा ब्रह्माड नाप लिया। अभी एक पग पृथ्वी उन्हें चाहिए थी। बलि को अपनी भूल का अहसास हुआ तो उसका घमंड जाता रहा। लेकिन अपने वचन से वह नहीं डिगा। एक पग पृथ्वी के बदले उसने अपना सिर नपवा दिया तथा विष्णु भगवान के चरणों से दब कर पाताल लोक चला गया। किन्तु पाताल जाने से पूर्व उसने भगवान से एक वरदान मांगा कि उसे हर वर्ष एक बार अपने प्रिय मलयालम क्षेत्र मेंआने की स्वीकृति दी जाये। माना जाता है कि तभी से बलि ओणम पर्व के अवसर पर मलयालम की यात्रा पर आता है। उसके स्वागत में केरल निवासी हंसी-खुशी से यह त्योहार मनाते हैं।
ओणम त्योहार के विषय में एक दूसरी कथा भी प्रचलित है। उसके अनुसार परशुराम ने सारी पृथ्वी जीतकर ब्राह्मणों को दान दे दी। अपने रहने के लिये भी स्थान नहीं रखा। तब सहयाद्रि पर्वत की एक कंदरा में बैठकर उन्होंने जल के स्वामी वरूण की आराधना की। उनके कठिन तप से वरूण देवता प्रसन्न हो गये। उन्होंने प्रकट होकर परशुराम से कहा, ‘‘तुम यहीं से अपना परशु समुद्र में फेंको, जहाँ वह गिरेगा वहाँ तक की भूमि तुम्हारी हो जायेगी।’’ परशुराम ने ऐसा ही किया। इस प्रकार जो भूमि उन्होंने समुद्र से प्राप्त की उसका नाम परशुक्षेत्र हुआ। उसी को आज केरल या मलयालम कहते हैं। परशुराम ने वहाँ भगवान का एक मंदिर बनवाया। वह आजकल तिरूक्कर अप्पण ने नाम से प्रसिद्ध है। जिस दिन परशुराम ने मंदिर में विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित की थी, उसकी पुण्य स्मृति में ओणम का पर्व मनाया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अतिरिक्त ओणम का त्योहार ऋतु परिवर्तन से भी संबंधित है। यह त्योहार ऐसे समय आता है जब वर्षा के बाद केरल की भूमि हरी-भरी हो जाती है। नारियल और ताड़ के वृक्षों के झुरमुटों के बीच बड़े-बड़े सरोवर जल से भर कर लहराते रहते हैं। चाय, इलायची, काली मिर्च के अतिरिक्त धान के खेत भी कटने को तैयार हो जाते हैं। चारों तरफ रंग बिरंगे सुगंधित पुष्पों की निराली छटा मन को प्रसन्न करती है। वर्षा के बाद नई फसल को घर में लाने की तैयारियों में किसान प्रसन्न मन से लगे होते हैं। केरल में सबके लिये वर्ष का यह समय सर्वोत्तम होता है। हरेक के मन में नई आशा और उत्साह का राज्य होता है।
ओणम का मुख्य त्योहार तिरू ओणम के दिन मनाया जाता है। उसकी तैयारियाँ दस दिन पहले से होने लगती है। सांयकाल बच्चे ढेर सारे फूल इकट्ठे करके लाते हैं। अगले दिन प्रातः काल गोरब से लिपे हुये स्थान पर इन फूलों को गोलाई में सजा दिया जाता है। घर को फूल मालाओं से सजाते हैं। ओणम त्योहार प्रारम्भ होने के पहले ही दिन घर में विष्णु भगवान की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस अवसर पर लोग विशेष प्रकार का भोजन करते हैं। इस भोज को पूवक कहते हैं। स्त्रियां थपत्ति कलि नाम के नृत्य से मनोरंजन करती हैं। वृत का आकार बनाकर स्त्रियां ताली बजाती हुई नाचती जाती हैं तथा विष्णु भगवान की प्रार्थना के गीत गाती जाती हैं। बच्चे वामन भगवान की आराधना के गीत गाते हैं। इन गीतों को ओनलप्पण कहते हैं। ज्यों-ज्यों तिरूओणम का दिन पास आता है त्यों-त्यों घर के सामने सजाये जाने वाले फूलों की संख्या में वृद्धि होती जाती है। उनसे जो वृत बनाया जाता है वह भी बड़ा होता जाता है। आखिर के चार दिन बड़ी चहल-पहल रहती है। तिरूओणम के एक दिन पहले परिवार का सबसे वृद्ध व्यक्ति परिवार के सदस्यों को बड़े सवेरे स्नान के बाद पहनने के लिये नये वस्त्र देता है। रात मे सावन देव की मिट्टी की मूर्ति तैयार की जाती हैं उसके सामने मंगल दीप जलाये जाते हैं।
दूसरे दिन तिरूओणम का मुख्य त्योहार होता है। तब सावन देव और फूलों की देवी का विधि के साथ पूजन होता है। लड़कियाँ उन्हें वाल्लसन नाम के पकवान की भेंट चढाती हैं और लड़के तीर चलाकर इस भेंट को प्रसाद रूप में वापस प्राप्त करते हैं। इस दिन हर घर में विशेष भोजन बनाया जाता है। प्रातःकाल जलपान में भुने हुए या भाप में पकाये हुए केले खाये जाते हैं। जिसे नेन्द्रम कहते हैं। यह जलपान नेन्द्रकाय नाम के विशेष केले से तैयार किया जाता है जो केवल केरल में ही पैदा होता है। भोजन में चावल, दाल, पापड़ और केले के व्यजंन मुख्य रूप से बनाये जाते हैं।
ओणम के अवसर पर केरल के लोग गणेश जी की आराधना भी करते है। संध्या समय विष्णु भगवान की सभी मूर्तियाँ तख्ते पर रखी जाती है और पूजन के बाद उन्हें आदर के साथ किसी निकट के जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है। इस अवसर पर घरों में धार्मिक कार्य, पूजा पाठ होते हैं तथा स्वादिष्ट पकवान बनाये जाते हैं। इसके साथ ही सार्वजनिक मनोरंजन के क्रियाकलाप भी होते हैं। जिसमें नौका दौड़ का प्रमुख स्थान है। मलयालम भाषा में इसे वल्लुमकली कहते है। विविध आकृतियों की नावें जैसे मछली के आकार की, सर्प के आकार की नावें दौड़ में भाग लेती हैं। नावों के ऊपर लाल रेशमी छत्र तने रहते हैं। नाव खेने वाले नाव खेते समय एक विशेष प्रकार का गीत गाते हैं जिसे बाॅची पटक्कल कहते हैं अर्थात् नाव का गीत। केरल के सागर तट पर हजारों दर्शक नौका दौड़ देखने के लिये खडे़ रहते हैं। दीपावली, दशहरा, सरस्वती पूजा, और नागपूजा के त्योहार भी केरल में मनाये जाते हैं पर ओणम का त्योहार वहाँ का सर्व-प्रमुख त्योहार है।

ओणम पर्व पर क्या-क्या होता है खास
  1. इस अवसर पर मलयाली समाज के लोगों ने एक-दूसरे को गले मिलकर शुभकामनाएं देते हैं। साथ ही परिवार के लोग और रिश्तेदार इस परंपरा को साथ मिलकर मनाते हैं।
  2. इसके साथ ही ओणम नई फसल के आने की खुशी में भी मनाया जाता है।
  3. इसके साथ ही कई तरह की सब्जियां, सांभर आदि भी बनाया जाता है।
  4. ओणम पर्व पर राजा बलि के स्वागत के लिए घरों की आकर्षक साज-सज्जा के साथ तरह-तरह के पकवान बनाकर उनको भोग अर्पित करती है।
  5. हर घर के सामने रंगोली सजाने और दीप जलाने की भी परंपरा हैं।
  6. हर घर में विशेष पकवान बनाए जाते हैं। खास तौर पर चावल, गुड़ और नारियल के दूध को मिलाकर खीर बनाई जाती है।


Share:

कोई टिप्पणी नहीं: