मोह में दुःख



रामनगर के एक शाहजी ने एक सफेद चूहा पाल रखा था। उसे वे बड़े प्यार से खिलाते-पिलाते तथा देख भाल किया करते थे। शाहजी जब दुकानपर जाते, तो उसे अपने साथ ही ले जाते और जब वे दुकान से घर लौटते, तो उसे भी लौटा लाते थे। शाहजी की दुकान आटा-दाल की थी। उनकी दुकान में चूहे बहुत पैदा हो गये थे, इसलिये चूहों को मारने के वास्ते शाहजी ने एक बिल्ली पाल ली। जब बिल्ली बड़ी हुई, तब दुकान के चूहों का शिकार करने लगी, 4-6 चूहे नित्य मारकर खा जाती थी। शाहजी उसके चूहा पकड़ने पर बड़े प्रसन्न होते थे।
एक दिन की बात है कि बिल्ली को शिकार करने के लिये एक भी चूहा न मिला। बिल्ली भूखी थी, उसे अपने-बिराने का ज्ञान तो था ही नहीं। उसने झट शाहजी का पाला हुआ सफेद चूहा मारकर खा लिया। शाहजी अब करते क्या, देखते रह गये। जब बिल्ली को मारने दौड़े, तब वह भाग गयी। शाहजी दुःख में निमग्न बैठे कुछ सोच रहे थे कि इतने में उधर से उनके गुरु महाराज आ निकले। शाहजी को चिन्तित देखकर बोले-'क्यों, क्या हुआ? कुशल तो है?' शाहजी बोले महाराज! वैसे तो आपकी कृपा से सब कुशल-मंगल है, परंतु मेरे एक पाले हुए सफेद चूहे को बिल्ली खा गया।' गुरुजी ने कहा कि 'जब तुमने चूहा पाला था तो फिर बिल्ली क्यों पाल ली?' शाहजी ने कहा कि 'मैंने तो बिल्ली को दुकान से चूहों को मारने के वास्ते पाला था।' महात्मा जी ने कहा कि 'क्या और चूहों में जान नहीं थी?' तब शाहजी बोले 'हुआ करे जान, मुझे क्या, मुझे तो इसी चूहे से प्रेम था। मैंने इसे बड़ी मोहब्बत से पाला था। तब महात्माजी ने कहा कि 'भाई! तुम्हारे दुख का कारण चूहा नहीं है, बल्कि ममता है (यह मेरा है ऐसा भाव)।' शाहजी ने कहा-'हाँ महाराज!'
महात्माजी ने कहा कि संसार की समस्त वस्तुएँ नाशवान् हैं और प्रत्येक प्राणी को मृत्यु रूपी बिल्ली अवश्य खायेगी। यदि तुम सांसारिक पदार्थों में ममता करोगे तो दुःख से सताये जाओगे इन पदार्थों और स्त्री, पुत्र, धन आदि की ममता (मोह) छोड़कर अपने कर्तव्य का धैर्य के साथ पालन करो और सब में आत्मवत् भाव करो तभी दुख से छुटकारा पा सकोंगे।
यस्मिन् सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद् विजानतः।
तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः॥
जिस ज्ञानी मनुष्य की दृष्टि में सभी प्राणी अपनी आत्मा के तुल्य हो जाते हैं, उसको फिर शोक, मोह नहीं होता।

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