खान पान से गंभीर से गंभीर बीमारी को कहें अलविदा



जब भी भोजन किया जाये तो भोजन का एक समय निश्चित होना चाहिए। ऐसा नहीं की कभी भी कुछ भी खा लिया। हमारा ये जो शरीर है वो कभी भी कुछ खाने के लिए नहीं है। इस शरीर में जठर (अमाशय) है, उसमें अग्नि प्रदीप्त होती है। जठर में जब अग्नि सबसे ज्यादा तीव्र हो उसी समय भोजन करे तो आपका खाया हुआ, एक एक अन्न का हिस्सा पाचन में जाएगा और रस में बदलेगा और इस रस में से मांस, मज्जा, रक्त, मल, मूत्र, मेद और आपकी अस्थियाँ इनका विकास होगा। सूर्योदय के लगभग ढाई घंटे तक जठरग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होती है। सूर्य का उदय जैसे ही हुआ उसके अगले ढाई घंटे तक जठराग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होती है। इस समय सबसे ज्यादा भोजन करें। इस समय आप कुछ भी खा सकते हैं।


अगर आप को आलू का पराठा खाना है तो सवेरे के खाने में खाइये, मूली का परांठा भी सुबह के खाने में खाइये। मतलब, आपको जो चीज सबसे ज्यादा पसंद है वह सुबह खाना चाहिये। रसगुल्ला , खाडी जलेबी, आपको पसंद है तो सुबह खाना चाहिये और सुबह पेट भरके खाईये। पेट की संतुष्टी हुई, मन की भी संतुष्टि हो जाती है। पेट की संतुष्टि से ज्यादा मन की संतुष्टि महत्व की है। हमारा मन खास तरह की वस्तुये जैसे, हार्मोन्स, एंजाईम्स से संचालित है। मन को आज की भाषा में डॉक्टर पिनियल ग्लांड्स कहते हैं , हालाँकि वो है नहीं। पिनियल ग्लॅंड (मन) संतुष्टि के लिए सबसे आवश्यक है । अगर भोजन आपको अगर तृप्त करता है तो पिनियललॅंड आपकी सबसे ज्यादा सक्रिय है तो जो भी एंझाईम्स चाहीए शरीर को वो नियमित रूप में समान अंतर से निकलते रहते है। और जो भोजन से तृप्ति नहीं है तो पिनियल ग्लॅंड मे गडबड होती है। और पिनियल ग्लॅंड की गडबड पूरे शरीर मे पसर जाती है। और आपको तरह तरह के रोगो का शिकार बनाती है। अगर आप तृप्त भोजन नहीं कर पा रहे तो निश्चित 10-12 साल के बाद आपको मानसिक क्लेश होगा और रोग होंगे। मानसिक रोग बहुत खराब है। आप सिजोफ्रेनिया डिप्रेशन के शिकार हो सकते है आपको कई सारी बीमारीया आ सकती है। कभी भी भोजन करे तो, पेट भरे ही ,मन भी तृप्त हो। ओर मन के भरने और पेट के तृप्त होने का सबसे अच्छा समय सवेरे का है। दोपहर को भूख लगे है तो थोडा और खा लीजीए। लेकिन सुबह का खाना सबसे ज्यादा। दोपहर का भोजन थोडा कम करिए नाश्ते(सुबह के भोजन) से एक तिहाई कम कर दीजीए और रात का भोजन दोपहर के भोजन का एक तिहाई कर दीजीए। अगर आप सवेरे 6 रोटी खाते है तो दोपहर को 4 रोटी और शाम को 2 रोटी खाईए। ।भारत में आजकल उल्टा चक्कर चल रहा है। लोग नाश्ता कम करते हैं। लंच थोडा ज्यादा करते हैं और डिनर सबसे ज्यादा करते हैं। भोजन करने का यह तरीका सर्वाधिक नुकसानदायक है। वैदिक नियम है - नाश्ता सबसे ज्यादा लंच थोडा कम और डिनर सबसे कम करना चाहिए। हमें अंग्रेजो की नक़ल बंद करनी होगी अंग्रेजो की जलवायु भारत की जलवायु से भिन्न है। वे अपनी जलवायु के हिसाब से नाश्ता कम करते हैं क्योंकि वहां पर सूरज के दर्शन कम होते हैं और उनकी जठराग्नि मंद होती है। भारी नाश्ता उनकी प्रकृति के विरुद्ध है। भारत में तो सूर्य हजारो सालो से निकलता है और अगले हजारो सालों तक निकलेगा! जलवायु के हिसाब से हमारी जठराग्नि बहुत तीव्र है। बिना अधिक कसरत किये हमारी जठराग्नि तीव्र रहती है। इसलिए सुबह का खाना आप भरपेट खाईए।
मनुष्य को छोडकर जीव जगत का हर प्राणी इस सूत्र का पालन कर रहा है। आप चिड़िया को देखो, कितने भी तरह की चिड़िया सवेरे सूरज निकलते ही उनका खाना शुरू हो जाता है, और भरपेट खाती है। 6 बजे के आसपास राजस्थान, गुजरात में जाओ सब तरह की चिड़िया अपने काम पर लग जाती है। खूब भरपेट खाती है और पेट भर गया तो चार घंटे बाद ही पानी पीती है। गाय को देखिए सुबह उठते ही खाना शुरू हो जाता है। भैंस, बकरी ,घोड़ा सब सुबह उठते ही खाना खाना शुरू करेंगे और पेट भरकर खाएंगे। फिर दोपहर को आराम करेंगे तो यह सारे जानवर,जीव जंतु जो हमारी आँखो से दीखते है और नहीं भी दिखते ये सबका भोजन का समय सवेरे का हैं। सूर्योदय के साथ ही थे सब भोजन करते है। इसलिए, थे हमसे ज्यादा स्वस्थ रहते है।

तो सुबह के खाने का समय तय कीजिये। सूरज उगने के ढाई घंटे तक। यानी 9.30 बजे तक, ज्यादा से ज्यादा 10 बजे तक आपका भोजन हो जाना चाहिए। और ये भोजन तभी होगा जब आप नाश्ता बंद करेंगे। आप बाहर निकलिए घर के तो सुबह भोजन कर के ही निकलिए। दोपहर एक बजे में जठराग्नी की तीव्रता कम होना शुरू होता है तो उस समय थोडा हलका खाए यानी जितना सुबह खाना उससे कम खाए तो अच्छा है। ना खाए तो और भी अच्छा। खाली फल खाएं, जूस दही मट्ठा पिये। शाम को फिर खाये।

शाम का भोजन भी जठराग्नि के अनुसार ही करना चाहिए। जठराग्नी सुबह सुबह बहुत तीव्र होगी और शाम को जब सूर्यास्त होने जा रहा है, तभी तीव्र होगी। इसलिए शाम का खाना सूरज छिपने से पहले खा लेना चाहिए क्योंकि सूरज अस्त होने के बाद जठराग्नि भी मंद हो जाती है इसलिए सूरज डूबने के पहले 5.30 बजे - 6 बजे खाना चाहिये। उसके बाद अगर रात को भूख लगे तो दूध पीजिये। दूध के अतिरिक्त कुछ भी न लें। इसका कारण यह है की शाम को सूरज डूबने के बाद हमारे पेट में जठर स्थान में कुछ हार्मोन और रस या एंजाइम पैदा होते है जो दूध को पचाते है। इसलिए सूर्य डूबने के बाद जो चीज खाने लायक है वो दूध है। तो रात को दूध पी लीजिए। उसके बाद जितना जल्दी हो सके सो जाइये।

भोजन के बाद विश्राम के नियम: सुबह और दोपहर के भोजन के बाद 20 से 40 मिनट की झपकी लें। लेकिन शाम का खाना खाने के बाद कम से कम 500 कदम टहलना चाहिए।


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घरेलू धनिये के सर्वश्रेष्ठ औषधीय फायदे



धनिये के फायदे और नुकसान
Coriander (Dhaniya) In Hindi
घरेलू धनिये के सर्वश्रेष्ठ औषधीय फायदे

भारतीय भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए जितने महत्वपूर्ण मसाले होते हैं, उतना ही योगदान सब्जी, दाल और सलाद को जायकेदार बनाने के लिए गार्निशिंग का होता है। गार्निशिंग के लिए वैसे तो बहुत सारी चीजों का इस्तेमाल किया जा सकता है। मगर सबसे प्रमुख धनिया के पत्ते होते हैं। बाजार में मात्र 5 से 10 रुपए में मिल जाने वाली धनिया खाने के स्वाद को दोगुना कर देती है, साथ ही इसमें सेहत का रस भी घोल देती है। इतना ही नहीं, धनिया की हरी चटनी भी लगभग हर कोई खाना पसंद करता है। ऐसे में देखा जाए तो धनिया के पत्ते भारतीय भोजन को स्वादिष्ट बनाने का मुख्‍य इंग्रीडिएंट हैं। लेकिन धनिया के पत्ते खाने का स्वाद तब ही बढ़ा पाएंगे जब आप बाजार से अच्छी, ताजी और हरी-भरी धनिया लेकर आएंगी। बहुत सारे लोग यह बात नहीं जानते हैं कि बाजार में आपको कई वैरायटी की धनिया पत्ती मिल जाती हैं। मगर खाने को स्वादिष्ट केवल देसी धनिया के पत्ते ही बना सकते हैं।
धनिया एक जड़ी-बूटी के रूप में अपने आप उगने वाला प्राकृतिक पौधा होता है जिसकी पत्तियां और बीजों का प्रयोग हर घर में किया जाता है। धनिया एक हर जगह पर खाने में प्रयोग की जाने वाली हरी पत्तियों की टहनियां होती हैं जो खाने में प्रयोग की जाती हैं। इनसे बहुत ही हल्की और सुगंधित महक आती है जिससे खाने का स्वाद बढ़ता है और खाना सुगंधित भी हो जाता है। इसे सभी जगहों पर प्रयोग किया जाता है। धनिया का प्रयोग सब्जी को सजाने और मसाले के रूप में किया जाता है क्योंकि इसके प्रयोग से सब्जी में स्वाद बढ़ जाता है। धनिये के बीज को सुखाकर सूखे मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। धनिया जितना खाना का स्वाद बढ़ाने के लिए फायदेमंद होता है उतना ही स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है। धनिया हर प्रकार से यहाँ तक की धनिया का पानी भी स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। खाने में भले ही मिर्च-मसले न हो लेकिन अगर उसकी धनिया से सजावट की जाये तो उसके स्वाद में चार-चाँद लग जाते हैं।
घरेलू धनिये के सर्वश्रेष्ठ औषधीय फायदे

धनिया की तासीर (Dhaniya Ki Taseer)
धनिया की तासीर ठंडी होती है। धनिया में बहुत से पोषक तत्व जैसे – फॉस्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थियामिन, मैगनीज, जिंक, पोटैशियम, फाइबर, कैल्शियम, आयरन, विटामिन बी6, मैग्नीशियम, विटामिन ए, विटामिन सी, सोडियम पाए जाते हैं।
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धनिये के औषधीय फायदे -(Medicinal Benefits of Coriander In Hindi) :
  1. एनीमिया में फायदेमंद (Dhaniya Goods For Anemia)
    अगर किसी व्यक्ति को किसी कारण वश खून की कमी हो जाती है तो उसके लिए धनिया के बीजों का सेवन बहुत अधिक लाभदायक होता है क्योंकि धनिया में आयरन की मात्रा पाई जाती है जो खून में हीमोग्लोबिन बनाता है इसलिए धनिया के बीजों के सेवन से खून की कमी नहीं होती है।
  2. ऑस्टियोपोरोसिस में फायदेमंद (Dhaniya Goods For Osteoporosis)
    आप धनिया के पानी के सेवन से ऑस्टियोपोरोसिस के होने से बच सकते हैं क्योंकि धनिया के पानी में विटामिन ए और विटामिन के पाई जाती हैं जो कैल्शियम संश्लेषण में मदद करती हैं। इसके सेवन से हड्डियों को कैल्शियम मिल जाता है और हम ऑस्टियोपोरोसिस रोग के खतरे से बच जाते हैं।
  3. कोलेस्ट्रोल कम करने में फायदेमंद (Dhaniya Goods For Reduce Cholesterol)
    आज के समय में बहुत से ऐसे कारण होते हैं जिसकी वजह से हमारे शरीर में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है और हमें बहुत से रोगों का शिकार होना पड़ जाता है लेकिन आप धनिया का प्रयोग करके खराब कोलेस्ट्रोल को कम कर सकते हैं जिससे बहुत से रोगों के होने का खतरा भी कम हो जाता है। विशेषज्ञों के एक प्रयोग से यह पता चला है कि धनिया के बीज में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो कोलेस्ट्रोल को कम कर सकते हैं। अगर आपको हाई कोलेस्ट्रोल की समस्या है तो आप धनिया के बीजों को पानी में उबालकर उस पानी को छानकर पिएं। इस पानी को पीने से हाई कोलेस्ट्रोल की समस्या ठीक हो जाएगी।
  4. डायबिटीज में फायदेमंद-(Dhaniya Goods For Diabetes)
    जिन लोगों को डायबिटीज की समस्या होती है उनके लिए धनिया का सेवन बहुत अधिक लाभकारी होता है क्योंकि धनिया का सेवन शरीर में शुगर लेवल को कम कर देता है और इंसुलिन की मात्रा को बढ़ा देता है जिससे हमारे शरीर का शुगर लेवल नियंत्रण में रहता है और हमें कोई परेशानी नहीं होती। आप धनिया का सेवन अपना भोजन पकाते समय भोजन में कर सकते हैं इससे भी बहुत लाभ होगा।
  5. थायराइड में फायदेमंद-(Dhaniya Good For Thyroid)
    अगर आपको थायराइड की समस्या है तो आप धनिया का सेवन कर सकते हैं। आप रात के समय धनिया को पानी में भिगोकर रख दें और सुबह के समय उस पानी को पी लें इससे आपकी थायराइड की समस्या ठीक हो जाएगी।
  6. पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद-(Dhaniya Goods For Digestive System)
    किसी व्यक्ति का पूरा शरीर उसके पाचन तंत्र पर निर्भर करता है क्योंकि पाचन तंत्र की वजह से ही शरीर को पूरी ऊर्जा मिलती है और अगर वह सही तरह से काम न करें तो बहुत सी समस्याएं हो जाती हैं जैसे कब्ज, गैस, अपच, पेट दर्द, उल्टी, दस्त आदि। ऐसे में धनिया का सेवन आपके लिए बहुत अधिक फायदेमंद होता है क्योंकि धनिया के सेवन से बहुत सी बीमारियों को दूर किया जा सकता हैं। आप थोडा सा धनिया पाउडर लें और उसमें हींग और काला नमक मिला लें। अब इस मिश्रण को एक गिलास पानी में घोलकर पिएं इससे आपकी पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं ठीक हो जाएंगी।
  7. मासिक धर्म में फायदेमंद-(Dhaniya Goods For Menstrual Cycle)
    जब किसी महिला को मासिक धर्म से संबंधित कोई परेशानी होती है या मासिक धर्म बहुत अधिक होता है तो वह धनिया का सेवन करें यह उसके लिए बहुत अधिक लाभकारी होगा। आप थोड़े से धनिया का बिज लें और उन्हें पानी में डालकर उबालें। अब उस पानी को छान लें और उसमें अपने हिसाब से चीनी मिलाकर सेवन करें। इस पानी के सेवन से मासिक धर्म की समस्या ठीक हो जाएगी।
  8. वजन कम करने में फायदेमंद-(Dhaniya Goods For Weight Loss)
    अगर आपका वजन बहुत अधिक है और आप अपना वजन कम करना चाहते हैं तो आप धनिया का सेवन कर सकते हैं क्योंकि धनिया का सेवन करने से आपका वजन बहुत कम हो जाएगा। अपने वजन को कम करने के लिए सबसे पहले आप धनिया के कुछ बीज लें। अब इन बीजों को एक गिलास पानी में डाल दें और गैस पर उबालने के लिए रख दें। जब पानी की मात्रा आधे गिलास के बराबर हो जाए तो उसे छान लें और इस पानी ओ दिन में दो बार पिएं। इसके सेवन से आपका वजन बहुत अधिक कम हो जाएगा।
  9. सर्दी जुकाम में फायदेमंद-(Dhaniya Goods For Cold)
    सर्दियों और बरसात के मौसम में अक्सर देखा जाता है कि लोगों को सर्दी जुकाम की समस्या हो जाती है जो कुछ जीवाणुओं की वजह से होती है अगर आपको भी यह समस्या है तो आप धनिया का सेवन कर सकते हैं क्योंकि धनिया में जीवाणुरोधी गुण पाए जाते हैं जो जीवाणुओं से हमारी रक्षा करते हैं।
हरा धनिया अपनी डेली डायट में शामिल करने के तीन आसान तरीके हैं
  1. आप दाल और सब्जी में हरा धनिया के पत्तियां महीन काटकर मिलाएं। ध्यान रखें सब्जी बनने और दाल पकने के बाद धनिया मिलाया जाता है। धनिया मिलाकर इन्हें नहीं पकाते हैं। क्योंकि ऐसा करने से धनिया के प्राकृतिक गुणों में कमी आती है।
  2. धनिए की चटनी बनाकर खाएं। हरा धनिया के साथ प्याज और हरी मिर्च को पीसकर चटनी तैयार करें बाद में इसमें स्वादानुसार नमक मिलाकर इसका सेवन करें। यह पाचन को दुरुस्त करती है और गैस, बदहजमी जैसी समस्याओं से बचाती है।
  3. तीसरी विधि है कि आप हरे धनिए का रायता बनाकर खाएं। इसे पीसकर रायते में मिला लें। या फिर पिसे हुए हरे धनिया को छाछ, जलजीरा, आम पना इत्यादि में मिलाकर इसका सेवन करें।
सूजन में फायदेमंद (Dhaniya Goods For Swelling)
अगर आपके किसी अंग पर किसी वजह से सूजन आ गई है तो धनिया का प्रयोग आपके लिए बहुत फायदेमंद होगा क्योंकि धनिया में सूजन को कम करने के गुण पाए जाते हैं । आप धनिया के एशेंशियल ऑइल का प्रयोग सूजन वाले भाग पर करें इससे आपकी सूजन कम हो जाएगी।

धनिये के अन्य फायदे -(Dhaniya Ke Fayde) :
  1. अनिद्रा के लिए : आप नींद लाने वाली दवाइयों के सेवन की जगह पर धनिया का सेवन कर सकते हैं क्योंकि इससे आपको नींद भी आ जाएगी और आपको किसी भी तरह की कोई मानसिक हानि नहीं होगी जबकि दवाइयों का प्रयोग करने से मानसिक रोग होने का खतरा रहता है इसलिए आपके लिए दवाइयों की जगह पर धनिया का प्रयोग करना बहुत लाभकारी होता है।
  2. आँखों के लिए : धनिया में विटामिन ए की भरपूर मात्रा पाई जाती है जो आँखों की रौशनी बढ़ाने में मदद करती है। आप धनिया को अपने खाने में मिलाकर सेवन कर सकते हैं इससे आपको बहुत अधिक फायदा होगा।
  3. कमजोरी के लिए : धनिया का सेवन करने से कमजोरी और चक्कर आने की समस्या दूर हो जाती है। आप रात के समय में धनिया पाउडर और आंवला पाउडर को पानी में भिगोकर रख दें और सुबह के समय उसका सेवन करें।
  4. जलन के लिए : जब किसी वजह से आपकी आँखों हाथों और पैरों में जलन होती है तो आपको धनिया का सेवन करना चाहिए इससे आपको आँखों, पेट, हाथों और पैरों में जलन होनी बंद हो जाएगी। सबसे पहले आप सौंफ, मिश्री और साबुत धनिया को समान मात्रा में लें और उन्हें पीस लें। भोजन करने के बाद आप एक चम्मच या दो चम्मच उस पाउडर का सेवन करें इससे आपकी जलन की समस्या बिलकुल ठीक हो जाएगी।
  5. त्वचा के लिए : धनिया के सेवन से हमारी त्वचा साफ होने के साथ-साथ ग्लो भी करने लगती है। धनिया का सेवन करके आप त्वचा के बहुत से रोगों से छुटकारा पा सकते हैं क्योंकि धनिया में कीटाणुनाशक, एंटीऑक्सीडेंट और एंटीसेप्टिक गुण पाए जाते हैं जो त्वचा के रोगों को दूर करते हैं।
  6. नकसीर के लिए : हरे धनिये की बीस से इक्कीस ग्राम पत्तियां लें और उसमें चुटकी भर कपूर को मिला लें और पीस लें। इसे पिसने के बाद इसका रस निकालकर छान लें। अब इस रस को एक-एक बूंद करके अपने नाक में डालें इससे आपकी नाक से निकलने वाला खून रुक जाएगा और नकसीर की समस्या ठीक हो जाएगी।
  7. पथरी के लिए : धनिया के प्रयोग से पथरी को आसानी से बाहर निकाला जा सकता है। आप सुबह के समय हरे धनिया को पानी में उबाल लें और ठंडा होने पर उसे छान लें। आप इस पानी का सेवन प्रतिदिन सुबह के समय खाली पेट करें। इस पानी के सेवन से पथरी यूरिन के साथ बाहर निकल जाएगी और आपकी पथरी की समस्या ठीक हो जाएगी।
  8. पेट की बिमारियों के लिए : धनिया के कुछ पत्ते और जीरा लेकर थोड़े से पानी में डालें। इसके थोड़ी देर बाद उसमें चाय की पत्ती और सौंफ डाल दें और अपने स्वादनुसार उसमें चीनी और अदरक डालें। इसे थोड़ी देर उबालने के बाद ठंडा होने के लिए रख दें। हल्का गर्म रहने पर आप इस काढ़े का सेवन करें इससे आपकी पेट से संबंधित समस्या जैसे गैस ठीक हो जाएगी।
  9. मुंह के छालों के लिए : धनिया में किट्रोनेलोल नाम का एक एंटीसेप्टिक पाया जाता है जो मुंह के छालों और घावों को ठीक करने में मदद करता है। धनिया का प्रयोग बहुत से टूथपेस्ट में भी किया जाता है क्योंकि यह आपको खुलकर सांस लेने में बहुत मदद करता है और मुंह से बदबू को भी समाप्त कर देता है।
  10. मुंहासों के लिए : आप धनिया का जूस बनाकर उसमें हल्दी पाउडर मिलाकर लेप बना लें अब इस लेप को दिन में दो बार अपने चेहरे पर लगाएं और कुछ देर बाद इसे पानी से धो दें। इस क्रिया को करने से आपके चेहरे के दाग-धब्बे और मुंहासे ठीक हो जाएंगे और आपके चेहरे का ग्लो भी वापस आ जाएगा। अगर आपको घमोरिया हो गया है तो आप धनिया का पानी लेकर उससे स्नान करें आपकी घमोरिया की परेशानी ठीक हो जाएगी।
  11. रक्तचाप के लिए : धनिया हमारे शरीर के नर्वस सिस्टम की सहायता से रक्तचाप को कम करने में मदद करता है। धनिया रक्तचाप में दवा की तरह काम करता है जिसकी वजह से बहुत से रोगों से छुटकारा मिल जाता है।
  12. संक्रमण के लिए : धनिया के प्रयोग से बहुत से संक्रमण के कणों को अपने शरीर से दूर रखा जा सकता है। जब आप प्रतिदिन धनिया का सेवन करते हैं तो आपकी संक्रमण रोगों से रक्षा होती है क्योंकि इसके सेवन में पेट में होने वाले कीड़े और बैक्टीरिया मर जाते हैं जिससे पेट को आराम और ठंडक मिलती है।
  13. सेमोलिना बैक्टीरिया के लिए : धनिया में कुछ ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो इस बैक्टीरिया को दूर रखने में मदद करते हैं। आप धनिया का प्रयोग अपने भोजन में कर सकते हैं इससे भी आपको लाभ होगा।
  14. हृदय के लिए : धनिया का सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रण में रहता है और रक्तचाप भी ठीक रहता है जिससे हृदय की बहुत सी बीमारियों से हमारा बचाव होता है। धनिया में ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो हृदय के लिए बहुत ही लाभकारी होते हैं। धनिया के सेवन से दिल के दौरे की समस्या भी ठीक हो जाती है।
धनिया के नुकसान-(Coriander Side Effects In Hindi)
  1. एलर्जी : हो सकता है कि धनिया का सेवन करने से आपको चक्कर, सूजन, रैशेज, साँस लेने में कठिनाई आदि समस्याएं हो सकती हैं इसलिए धनिया का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।
  2. कैंसर : धनिया का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इसके सेवन से त्वचा पर सनबर्न की समस्या हो जाती है जिसके लंबे समय तक होने पर कैंसर का कारण भी बन सकती है।
  3. गर्भवती महिला : जब धनिया का सेवन अधिक हो जाता है तो शरीर की ग्रंथिय प्रभावित हो जाती है इसलिए गर्भवती महिलाएं और दूध पिलाने वाली महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से उनके भ्रूण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  4. लीवर : एक नजर से देखा जाए तो धनिया हमारे शरीर के लिए बहुत लाभकारी होता है लेकिन जब धनिया का जरूरत से ज्यादा सेवन किया जाता है तो उससे पित्त पर दवाब पड़ता है जिससे लीवर की परेशानी हो सकती है।
Disclaimer: इस लेख में बताई विधि, तरीक़ों व दावों को केवल सुझाव और जानकारी के रूप में लें, इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट पर अमल करने से पहले डॉक्टर/वैद्य/चिकित्सक की सलाह जरूर लें।


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परमवीर चक्र विजेता अब्‍दुल हमीद



अब्दुल हमीद
अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई, 1933 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में स्थित धरमपुर नाम के छोटे से गाँव में गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम मोहम्मद उस्मान था। उनके यहां परिवार की आजीविका को चलाने के लिए कपड़ों की सिलाई का काम होता था। लेकिन अब्दुल हमीद का दिल इस सिलाई के काम में बिल्कुल नहीं लगता था, उनका मन तो बस कुश्ती दंगल और दांव पेचों से लगता था, क्योंकि पहलवानी उनके खून में थी जो विरासत के रूप में मिली थी। उनके पिता और नाना दोनों ही पहलवान थे। शुरू से ही लाठी चलाना, कुश्ती करना और बाढ़ में नदी को पार करना, और सोते समय फौज और जंग के सपने देखना तथा अपनी गुलेल से पक्का निशाना लगाना वीर हमीद की खूबियों में था, और वे इन सभी चीजों में सबसे आगे रहते थे।
उनका एक गुण सबसे अच्छा था जो कि दूसरों की हर समय मदद करना, जरूरतमंद लोगों की सहायता करना और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना और बर्दास्त न करना। ऐसी ही घटना एक बार उनके गांव में हुई जब एक गरीब किसान की फसल को जबरदस्ती वहां के जमींदार के लगभग 50 गुंडे काटकर ले जाने के लिये आये, हमीद को इस बात का पता चला और उन्हें यह बात बर्दाश्त नहीं हुई और उन 50 गुंडों से वे अकेले ही भिड़ गए, जिसके कारण उन सभी गुंडों को भागना पड़ा और उस गरीब किसान की फसल बच गयी। एक बार तो उन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाकर गाँव में आयी भीषण बाढ़ में डूबती दो युवतियों की जान बचाई, और अपने साहस का परिचय दिया।


अब्दुल हमीद का बचपन
अब्दुल हमीद की बचपन से ही इच्छा वीर सिपाही बनने की थी। वह अपनी दादी से कहा करते थे कि – “मैं फौज में भर्ती होऊंगा" दादी जब कहती – “पिता की सिलाई की मशीन चला " तब कहते थे “हम जाईब फौज में! तोहरे रोकले ना रुकब हम, समझलू " दादी को उनकी जिद के आगे झुकना पड़ता और कहना पड़ता –“अच्छा-अच्छा जइय फौज में।" हमीद खुश हो जाते इस तरह अपने पिता उस्मान से भी फौज में भर्ती होने की जिद करते थे, और कपड़ा सीने के धंधे से इंकार कर देते।

सेना में भर्ती
21 वर्ष के अब्दुल हमीद जीवन यापन के लिये रेलवे में भर्ती होने के लिये गये परन्तु उनके संस्कार उन्हें प्रेरित कर रहे थे, सेना में भर्ती होकर देश सेवा के लिये। अतः उन्होंने एक सैनिक के रूप में 1954 में अपना कार्य प्रारम्भ किया। हमीद 27 दिसम्बर, 1954 को ग्रेनेडियर्स इन्फेंट्री रेजिमेंट में शामिल किये गये थे। जम्मू कश्मीर में तैनात हमीद पाकिस्तान से आने वाले घुसपैठियों की खबर लेते हुए मजा चखाते रहते थे, ऐसे ही एक आतंकवादी डाकू इनायत अली को जब उन्होंने पकड़ लिया तो प्रोत्साहन स्वरूप उनको पदोन्नति देकर सेना में लांस नायक बना दिया गया। 1962 में जब चीन ने भारत की पीठ में छुरा भोंका तो अब्दुल हमीद उस समय नेफा में तैनात थे, उनको अपने अरमान पूरे करने का विशेष अवसर नहीं मिला। उनका अरमान था कोई विशेष पराक्रम दिखाते हुए शत्रु को मार गिराना।
1965 का युद्ध
8 सितम्बर 1965 की रात में पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमला करने पर, उस हमले का जवाब देने के लिये भारतीय सेना के जवान उसका मुकाबला करने को खड़े हो गये। वीर अब्दुल हमीद तरनतारन जिले के खेमकरण सेक्टर में सेना की अग्रिम पंक्ति में तैनात थे। पाकिस्तान ने उस समय का अपराजेय माने जाने वाले अमेरिकन पैटन टैंकों के साथ, खेमकरन सेक्टर के असल उताड़ गांव पर हमला कर दिया। भारतीय सैनिकों के पास न तो टैंक थे और न ही बड़े हथियार, लेकिन उनके पास था भारत माताकी रक्षा के लिये लड़ते हुए मर जाने का हौसला। भारतीय सैनिक अपनी साधारण “ थ्री नॉट थ्री रायफल" और एल. एम. जी. के साथ पैटन टैंकों का सामना करने लगे। हवलदार वीर अब्दुल हमीद के पास “गन माउनटेड जीप" थी जो पैटन टैंकों के सामने मात्र एक खिलौने के समान थी। 
वीर अब्दुल हमीद ने अपनी जीप में बैठकर अपनी गनसे पैटन टैंकों के कमजोर अंगों पर एकदम सटीक निशाना लगाकर एक-एक कर ध्वस्त करना प्रारम्भ किया। उनको ऐसा करते देख अन्य सैनिकों का भी हौसला बढ़ गया और देखते ही देखते पाकिस्तानी फौज में भगदड़ मच गयी। वीर अब्दुल हमीदने अपनी 'गन माउन्टेड जीप' से सात पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट किया था। देखते ही देखते भारत का असल उताड़ गाँव पाकिस्तानी पैटन टैंकों की कब्रगाह बन गया। लेकिन भागते हुए पाकिस्तानियों का पीछा करते वीर अब्दुल हमीद की जीप पर एक गोला गिर जाने से वे बुरी तरह से घायल हो गये और अगले दिन 9 सितम्बर को उनका स्वर्गवास हो गया लेकिन उनके स्वर्ग सिधारने की आधिकारिक घोषणा 10 सितम्बर को की गयी थी।

सम्मान और पुरस्कार
इस युद्ध में असाधारण बहादुरी के लिये उन्हें पहले महावीर चक्र और फिर सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया। 28 जनवरी 2000 को भारतीय डाक विभाग द्वारा वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पाँच डाक टिकटों के सेट में उनके सम्मान में ३ रुपये का एक सचित्र डाक टिकट जारी किया गया। इस डाक टिकट पर रिकॉइललेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हमीद का रेखाचित्र बना हुआ है। चौथी ग्रेनेडियर्स ने अब्दुल हमीद की स्मृति में उनकी कब्र पर समाधि का निर्माण किया है। हर साल उनकी शहादत के दिन यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है। उताड़ निवासी उनके नाम से गाँव में एक डिस्पेंसरी, पुस्तकालय और स्कूल चलाते हैं। सैन्य डाक सेवाने 10 सितंबर, 1979 को उनके सम्मान में एक विशेष आवरण जारी किया है। सारा देश उनकी बहादुरी को प्रणाम करता है।

अब्दुल हमीद प्रश्नोत्तरी
अब्दुल हमीद ने कितने टैंक तोड़े थे?
परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद ने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965 Indo-Pak War) में अपना पराक्रम दिखाया था। 'असल उत्‍तर की लड़ाई' (Battle Of Asal Uttar) में हमीद ने अकेले ही पाकिस्तान के आठ पैटन टैंक बर्बाद कर दिए। पाकिस्तान के तरण तारण जिले में एक गांव हैं, आसल उत्‍ताड़।

अब्दुल हमीद ने दुश्मन के टैंकों को कैसे नष्ट किया?
इस बार हमीद ने देर ना करते हुए अपनी जीप में बैठे और टैंकों की ओर निकल पड़े। सामने से फायरिंग भी हो रही थी, लेकिन हमीद को कपास की खड़ी फसल का फायदा हुआ और दुश्मन उन्हें सीधे निशाने पर ना ले सका। वहीं हमीद ने पहले प्रमुख टैंक को नष्ट किया और फिर अपनी स्थिति बदल कर दो और टैंक ध्वस्त कर दिए।

वीर अब्दुल हमीद कैसे शहीद हुए थे?
साल 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वीर अब्दुल हमीद ने पाकिस्तानी दुश्मनों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी। उन्होंने पाकिस्तान के 7 पैटर्न टैंकों के परखच्चे उड़ा दिए थे। इसी दौरान वह शहीद हो गए थे।

अब्दुल हमीद कब शहीद हुए थे?
युद्धक्षेत्र में ही 10 सितंबर, 1965 को अब्दुल हमीद शहीद हुए, लेकिन तब तक वह अप्रतिम शौर्य की अविस्मरणीय दास्तां लिख चुके थे। इससे पहले कि अब्दुल हमीद की जांबाजी का किस्सा याद करें, आइए उनके निजी जीवन के बारे में जानते हैं। यूपी के गाजीपुर जिले के धरमपुर गांव में 1 जुलाई, 1933 को हमीद का जन्म हुआ था।

अब्दुल हमीद को परमवीर चक्र कब मिला?
57 साल पहले, 10 सितंबर 1965 को अब्‍दुल हमीद ने देश पर सर्वस्‍व न्‍योछावर कर दिया। मरणोपरांत परमवीर चक्र (भारत का सबसे बड़ा वीरता पदक) से सम्मानित अब्दुल हमीद को 'टैंक डिस्‍ट्रॉयर' के नाम से जाना जाता है।

1965 के युद्ध में शहीद वीर अब्दुल हमीद को कौन से वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया?
उनकी नज़र 4 ग्रेनेडियर के क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद के पोस्टर पर पड़ी। अब्दुल हमीद को 1965 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई में खेमकरन सेक्टर में पाकिस्तान के कई पैटन टैंक नष्ट करने के लिए परमवीर चक्र मिला था

अब्दुल हमीद को परम वीर चक्र क्यों मिला?
अविचलित, सीक्यूएमएच अब्दुल हमीद ने गोलीबारी जारी रखी और गंभीर रूप से घायल होने से पहले अपनी टुकड़ी को पाकिस्तान के सात टैंकों को नष्ट करने के लिए प्रेरित किया। उनकी विशिष्ट बहादुरी, प्रेरक नेतृत्व और सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें परमवीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया था।


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एक अंग्रेज जिलाधिकारी पर श्री राम कृपा



मधुरांतकम चेंगलपेट जिले का एक छोटा-सा शहर है, जो मद्रास (वर्तमान में चेन्नई) से पांडिचेरी के रास्ते पर है। वहां पर श्री रामचन्द्र जी का एक छोटा-सा मंदिर है। उस मंदिर के नजदीक एक बड़ी झील भी है। मद्रास से पांडिचेरी जाने वालों को उसी सड़क से जाना पड़ता है, जो मधुरांतकम की उस झील के बांध पर है। वह झील इतनी सुन्दर और काफी बड़ी है कि जिन लोगों को उस रास्ते पर जाना पड़ता है, उन लोगों का मन उस झील की तरफ आकर्षित हो जाता है और वे लोग उस झील के सुन्दर और मनोहर दृश्य को कभी भूल नहीं सकते।
उपर्युक्त झील और श्री रामचन्द्र जी के मंदिर के बारे में एक विचित्र लेकिन सच्ची कहानी प्रचलित है, जिससे मालूम होता है कि एक ईसाई अंग्रेज साहब भी श्री रामचन्द्र जी के भक्त बन सके और उनको भगवान के दर्शन भी मिले थे।
bhagwan shri ram


बात १८८२ ई० की है। उस समय लियानल प्राइस साहब चेंगलपेट जिले के कलक्टर थे। उनको मधुरांतकम की झील देखने की बड़ी इच्छा हुई। झील इतनी बड़ी थी कि उसके आस-पास के कई गाँवों की खेती बारी के लिये उसका जल पर्याप्त था। लेकिन दुर्भाग्य से हर साल बरसात में जब झील भर जाती थी, तब उसका बाँध टूटकर सारा पानी बाहर चला जाता था और झील हमेशा सूखी-की-सूखी ही रह जाती थी।
इलाके वाले प्रतिवर्ष गर्मी के दिनों में उस झील के बांध की मरम्मत करते थे। हर साल मरम्मत के समय मि० प्राइस खुद वहाँ आकर पड़ाव डालते और अपनी मौजूदगी में ही सारा काम कराते थे। बरसात में बाढ़ से इसका बाँध हर साल टूट जाया करता था। कलक्टर साहब की झील की बड़ी चिंता होती थी। सन् १८८२ में भी सदा की तरह झील की मरम्मत शुरू हुई। स्वयं कलेक्टर साहब उसका निरीक्षण कर रहे थे। एक बार आप मंदिर के पास से निकले। उनकी इच्छा हुई कि चलकर मन्दिर देख आवें।
वे मंदिर में आये। ब्राह्मणों ने उनको मंदिर दिखाया। साहब ने देखा कि एक स्थान पर ढेरों पत्थर जमा हैं। साहब ने ब्राह्मणों से पत्थरों के जमा कर रखने का कारण पूछा। ब्राह्मणों ने जवाब दिया- 'साहब! श्री सीता जी का मंदिर बनाना है। लेकिन उसके लिये हम लोग सिर्फ पत्थर ही जमा कर सके हैं। शेष काम के लिये काफी धन जमा करने में हम असमर्थ हैं। ऐसे सत्कार्य के सफलतापूर्वक सिद्ध होने में धन का अभाव ही एक बाधा हो रही है। ' 'मुझे भी तुम्हारी देवी जी से एक प्रार्थना करने दो।'
वहां के भक्त ब्राह्मण अपनी-अपनी मनोवृत्ति के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र जी और माता सीताजी के गुणों और महिमाओं का वर्णन करने लगे। उसे सुनकर साहब ने उन लोगों से पूछा- 'क्या तुम लोग विश्वास करते हो कि तुम्हारी देवी भक्तों की मनोकामना पूरी करेंगी ?"
ब्राह्मणों ने दृढ़तापूर्वक जवाब दिया- 'निस्सन्देह।' कलक्टर साहब ने फिर पूछा-'अच्छा, यदि मैं भी तुम्हारी देवी जी से कुछ प्रार्थना करूं तो मेरी भी इच्छा उनकी कृपा से पूरी होगी?' ब्राह्मणों ने जवाब दिया जरूर।' तब साहब ने उन लोगों से कहा, 'यदि तुम लोगों की बात सच हो तो मैं भी तुम्हारी देवी जी से प्रार्थना करता हूँ कि इस झील की रक्षा, जिसकी मरम्मत हर साल हो रही है और पीछे जिसका नाश भी होता आ रहा है, यदि तुम्हारी देवी जी की कृपा से हो जाये, तो तुम्हारी देवी जी का मंदिर बनाने का भार मैं अपने ऊपर लूँगा।' प्रार्थना करके साहब वहां से लौट गए। मरम्मत का काम पूरा हो जाने के बाद साहब अपने घर चले गये।
फिर वर्षा शुरू हुई। साहब को बड़ी चिंता लगी। अबकी बार साहब घर में चुप न बैठ सके। उन्होंने मधुरांतकम में अपना पड़ाव डाला। एक रात को बहुत जोर से पानी बरस रहा था। इतने जोर से वृष्टि हो रही थी कि उस समय बाहर निकलना भी बहुत कठिन था। साहब बहुत अधीर हो उठे। उनको जरा भी चैन न मिला। वे तुरंत हाथ में छतरी लेकर झील की तरफ लपके। उनके दो नौकर, जो उस समय जाग रहे थे, पीछे-पीछे चले। उनको साहब के काम पर बड़ा अचरज हो रहा था।
साहब झील के बांध पर आकर खड़े हो गये। आकाश से मूसलाधार वृष्टि हो रही थी। रह-रहकर बिजली चमकती थी। बिजली के प्रकाश में साहब ने देखा कि झील पानी से ठसाठस भरी है। अब यदि थोड़ा भी जल उसमें ज्यादा पड़ जाएगा तो बस, सारा परिश्रम व्यर्थ हो जायेगा।
साहब घबड़ाये हुए वहाँ आकर खड़े हो गये, जहाँ हर साल बांध टूटता था। लेकिन वहाँ उन्हें कहीं टूट जाने का कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ा। अकस्मात् वहाँ बिजली की रोशनी दीख पड़ी। उस तेज:पुंज के बीच में श्याम और गौर वर्ण के दो सुन्दर युवक हाथ में धनुष-बाण लिए खड़े नजर आये। उन दोनों के सुन्दर और सुदृढ़ शरीर और उनके अनुपम रूप-लावण्य को देखकर साहब को बड़ा अचंभा हुआ। एक साथ आश्चर्य और भय का अनुभव होने लगा। वे एकाग्र दृष्टि से उसी तरफ देखने लगे, जहाँ दोनों वीर खड़े थे। अब साहब को पक्का विश्वास हो गया कि वे दोनों अलौकिक और अतुलनीय हैं। साहब अपनी छतरी और टोपी दूर फेंक कर उन करुणा मूर्तियों के पैरों पर गिर पड़े और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे।
नौकरों को साहब का यह अद्भुत आचरण देखकर संदेह हुआ कि कहीं हमारे साहब पागल तो नहीं हो गये। वे दोनों दौड़कर साहब के पास आये और घबड़ाये हुए से पूछने लगे– 'साहब! आपको क्या हो गया?" साहब उन लोगों से गद्गद स्वर में कहने लगे- 'नादानो। उधर देखते नहीं हो ?' देखो उधर, उधर ! कैसे सुन्दर दो सुन्दर और बलवान् युवक हाथों में धनुष-बाण लिये खड़े हैं। उनके चारों ओर बिजली की रोशनी सी  फैल रही है। उनमें एक हैं श्याम वर्ण के और दूसरे गौर वर्ण के। उनकी आँखों से करुणा की मानो वर्षा हो रही है। उनको देखते ही हमारी व्यग्रता मिटती जा रही है। अभी उन दोनों को देख लो। उधर देखो, उधर !!!'
नौकरों को कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा। साहब को पूरा विश्वास हो गया कि स्वयं श्री रामचन्द्रजी और लक्ष्मण जी ने ही झील की रक्षा की। दूसरे दिन सवेरे ही मधुरांतकम के लोगों ने पहली बार देखा कि झील पानी से परिपूर्ण है। लोगों के आनन्द की कोई सीमा न थी। साहब ने अपने कथनानुसार दूसरे ही दिन से श्रीसीताजी के मंदिर का काम शुरू कर दिया। जब तक मंदिर का काम पूरा न हुआ, तब तक वे वहीं रहे। जिस दिन झील की रक्षा हुई, उस दिन से वहाँ के श्री रामचंद्र जी का नाम पड़ा 'एरि कात्त पेरुमाल' अर्थात 'भगवान जिसने झील की रक्षा की है।'
श्री जानकी जी के मंदिर में एक पत्थर पर तमिल में यह बात खुदी हुई है, जिसके माने यह है कि, 'यह धर्म कार्य जान कंपनी की जागीर - कलेक्टर लियानल प्राइसका है।' इस विचित्र घटना से हम लोगों को मालूम होता है कि एक अंग्रेज ईसाई सज्जन श्री रामचंद्र जी के भक्त बनकर उनके दर्शन पा सके और श्रीसीता जी के मन्दिर के निर्माता बने। जो मनुष्य भगवान का सच्चा भक्त है और भगवान पर विश्वास करके उनको मानता है, वह चाहे जिस कुल का भी क्यों न हो, उसपर दया सिन्धु भगवान की पूर्ण रूप से अनुकम्पा रहती है।

संकलन


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लंगोट पहनने के फायदे और लाभ



 जब भी लंगोट का नाम आता है तो मन में हनुमान जी का नाम सबसे पहले आता है क्योकि वे हमेशा लंगोट पहनते है, दूसरा लंगोट साधकों का भी प्रतीक है क्योंकि जब पहले के साधु साधना करते थे तो वे अपने शरीर पर लंगोट के अलावा कुछ भी धारण नहीं करते थे, ऐसे साधकों को आज भी देखा जा सकता है। इसके अलावा लंगोट ब्रह्मचर्य का भी प्रतीक है क्योकि माना जाता है कि जो व्यक्ति लंगोट पहनता है उसका उसकी कामवासना पर नियंत्रण रहता है। लंगोट त्रिकोण आकार में बना एक अन्तः वस्त्र है और इसे अधिकतर कुश्ती करने वाले पहलवान व जिम जाने वाले व्यक्ति अपने अभ्यास के दौरान पहनते है। अभ्यास के दौरान ये अन्तः अंगों को ढके भी रखता है और उन्हें चोट से भी बचाए रखता है। इसके अलावा भी लंगोट की अन्य खासियत होती है। लंगोट में किसी खास तरह के रंग की प्राथमिकता नहीं दी जाती लेकिन फिर भी लाल रंग का लंगोट बहुत लोकप्रिय होता हैं। इसके पीछे लोगों के अपने अपने मत है कोई इसे आस्था से जोड़ता है तो कोई इसे चिकित्सा शास्त्र से। पहले के समय में अनेक लोग और साधु ब्रह्मचर्य का पालन करते थे जिसके कारण वे हमेशा लंगोट धारण किये हुए रखते थे क्योंकि उनका मानना है कि लंगोट कामेच्छा पर नियंत्रण बनाए रखने में बहुत सहायक होता है।

Langot Nappies Pahanne ke Fayde Laabh


अकसर आपने पहलवान लोगों को लंगोट पहनते देखा होगा जो अखाड़े में जाते हैं। अखाड़े में जाने वाले लोग लंगोट पहनना जरूरी मानते हैं। लंगोट भारतीय पुरुषों द्वारा एक लुंगी या अंडरक्लॉकिंग के रूप में पहना जाने वाला एक अंडरगारमेंट है। मलयालम में, इसका नाम लैंकोटी / लंगोटी कहते है। लंगोट को “कौपीन” भी कहा जाता हैं। लेकिन लंगोट पहना अखाड़े में ही नहीं अब कुछ जि‍म्‍स में जटिल वर्कआउट के दौरान लंगोट पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। आइए जानते हैं कि लंगोट पहनना पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए कितना जरूरी है।
अखाड़े में वर्जिश या कुश्ती समय पुरुष लंगोट जरूर पहनते हैं। लंगोट आज से नहीं बल्कि वैदिक काल से हमारे देश में पुरुष अंडरवियर के तौर पर लंगोट पहनते आ रहे हैं। धीरे-धीरे पुरुषों का ये पारंपरिक अंतर्वस्‍त्र अखाड़े या योग तक ही सीमित कर रह गया है। इसे कई नाम से जाना जाता था। कौपिनम, कौपीन, लंकौटी, लंगौटी और लंगौट। आपको जानकर हैरानी होगी कि पारम्परिक तौर पर अंडरवियर के तौर पर लंगोट पहनना पुरुष के जननांगों के लिए बेहतरीन होता हैं। बल्कि ये सेक्सुअल लाइफ को भी बेहतर बनाता हैं।

इसका संबंध पुरुषों के स्वास्थ्य से भी है। लंगोट पहनना उनकी सेक्सुअल लाइफ को भी बेहतर बनाता है। इसलिए अब कुछ जिम में जटिल वर्कआउट के दौरान लंगोट पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। आपने अकसर उन लोगों को लंगोट पहनते देखा होगा जो अखाड़े में जाते हैं। अखाड़े में जाने वाले लोग लंगोट पहनना जरूरी मानते हैं। पर क्‍या आप जानते हैं कि इसका संबंध पुरुषों के स्वास्थ्य से भी है। लंगोट पहनना उनकी सेक्सुअल लाइफ को भी बेहतर बनाता है। इसलिए अब कुछ जि‍म्‍स में जटिल वर्कआउट के दौरान लंगोट पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। आइए जानते हैं कि लंगोट पहनना पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए कितना जरूरी है।

अन्तःवस्त्र लंगोट द्वारा ऊर्जा संरक्षण, लंगोट बांधने का सबसे बड़ा फायदा पहुंचता है आपके टेस्टिल्स यानी अंडकोषों को। कई बार ज्‍यादा मेहनत करने की वजह से उनका साइज बढ़ जाता है। आम भाषा में हम ये भी कहते हैं कि उनमें पानी भर गया है। अगर एक बार ऐसा हो गया तो फिर वो आपरेशन से ही ठीक होता है। लंगोट आपके अंडकोषों को टाइट करके रखता है इससे पानी भरने की समस्या नहीं होती। इसके अलावा इससे लोवर एबडॉमिन की मसल्स को सपोर्ट मिलता है। जिनके पेट के निचले हिस्से में ज्यादा हैवी कसरत करने से सूजन आ जाती है उन्हें भी इसका इस्तेमाल करना चाहिए। रनिंग करते वक्त भी लंगोट पहनना चाहिए इससे नीचे की चीजें इधर उधर नहीं भागतीं। वैसे तो लंगोट किसी भी कलर का हो सकता है मगर लाल लंगोट अनुशासन का प्रतीक होता है। लाल रंग बजरंग बली से भी जुड़ता है। अखाड़ों में आमतौर पर हनुमान जी की ही प्रतिमा लगी होती है। लाल रंग की निशानी भी होती है।

जिस तरह से हमारे पूर्वज लंगोट का इस्तेमाल करते थे उसे देखकर ये कहा जा सकता है कि लंगोट हमारी परम्पराओं में से एक है, किन्तु पीढ़ी को हमारे पुराने रिवाजों के बारे में पता नहीं हैं, जिसके फलस्वरूप वे इन सब चीजों से वंचित रह जाते हैं। हमारी पीढ़ी को लंगोट की महानता के बारे में कुछ नहीं पता और यही वजह है कि हम अपनी परम्परा को पीछे छोड़ते जा रहे हैं, जिसका खामियाजा हमें आने वाले समय में भोगना होगा।

मांगलिक कार्यों खासकर रामचरितमानस के अखंड पाठ, किसी भी तरह का यज्ञ, महा यज्ञ आदि में जो ध्वज लगता है वह लंगोट के आकार का ही होता है जो ब्रह्मचर्य की ओर जाने का इशारा करता है, यानी ऊर्जा संरक्षण का संदेश देता है। कुल मिलाकर यह ऊर्जा संरक्षण का प्रतीक चिह्न है। आज भी यह बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी सहित अनेक देवताओं को चढ़ाया जाता है। मन्नतें पूरी होने पर अनेक देव स्थानों पर लंगोट चढ़ाने की परंपरा आज भी जीवित है।

क्या है लंगोट
लंगोट असल में पुरुषों का अंडरगारमेंट है। इसे पुरुषों का अंत: वस्त्र भी कहा जाता है। यह अनस्टिच्ड यानी बिना सिला तिकोना कपड़ा होता है। जिसे विशेष तौर पर पुरुष जननांग यानी टेस्टिकल्‍स और पेनिस एरिया को ढकने के लिए बनाया जाता है। पर इसे बांधने का एक खास तरीका होता है। जिसके कारण यह पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।
लंगोट का अर्थ
लंगोट दो शब्दों का मेल है। लंगोट को समझने के लिए इसको तोड़ कर इसका वास्तविक रूप देखा जा सकता हैं। लंगोट = लं + गोट मतलब जो लं.. और गोट दोनों को ही सम्हाल कर रखें, उनकी रक्षा करें वो लंगोट कहलाता है।
लंगोट कैसे पहनी जाती है
लंगोट देखने में भले ही साधारण लगे पर इसे बांधने का एक खास तरीका होता है। जिसे आप किसी भी जिम में जाकर सीख सकते हैं। लंगोट को टेस्टिकल्‍स और पेनिस एरिया पर इस तरह लपेटा जाता है कि उसे सपोर्ट मिले और अनावश्यक दबाव भी न बनें। यह अंडकोषों के आकार को संतुलित रखता है।
  • लंगोट बांधने के लिए लंगोट के तीन हिस्से होते है,
  • ऊपर की और दो पतली रस्सी होती है।
  • उनको कमर पर बांधा जाता है, की तरफ से उसके पश्चात तीसरे हिस्से को पीछे की तरफ रखते है।
  • उसको नीचे की तरफ से प्राइवेट पार्ट के साथ ऊपर की बंदी दो रसिया के बीच में से निकलकर वापस पीछे की तरफ लेकर जाना होता है।
  • इस प्रकार पीछे की तरफ दोनों रस्सियों के मध्य लगा देते है।
Langot Nappies Pahanne ke Fayde Laabh


कार्डियो के समय है जरूरी
जब भी आप कोई जटिल एक्सरसाइज या वर्कआउट करें तो उस समय लंगोट जरूर पहने। यह पुरुषों के प्राइवेट पार्ट की हेल्‍थ के लिए जरूरी है। इससे उस पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता। कार्डियो करते समय भी आप इस तरह अपना ख्याल रख सकते हैं।

सेहत से है लंगोट का संबंध
इससे पुरुषों के टेस्टिकल्स यानी अंडकोषों की सेहत अच्छी रहती है। कई बार ज्यादा वर्कआउट या मेहनत करने की वजह से उनका आकार बढ़ जाता है। जिससे उनमें दर्द होने लगता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रजनन क्षमता बनाए रखने के लिए टेस्टिकल्‍स की सेहत का ध्यान रखना सबसे ज्यादा जरूरी है। कई बार इनमें पानी भर जाने की समस्या भी हो जाती है। जो सेक्‍स लाइफ पर बुरा असर डालती है। इन सब समस्याओं से बचाने में लंगोट काफी मददगार है।

स्किन फ्रेंडली
लंगोट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सादा सूती कपड़े यानी काटन का बना होता है। जिससे किसी भी तरह के रैशेज या अन्‍य समस्याएं नहीं होती। इसे स्किन फ्रेंडली माना जाता है। जिससे अनावश्यक हीट जनरेट नहीं होती। इसलिए भी लंगोट पहनना पुरुषों की सेहत के लिए अच्छा माना जाता है।

क्या लंगोट बांधना जरूरी है
लंगोट बांधने के क्या फायदे होते हैं ये हमने आपको बता दिए हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं जो सालों से जिम कर रहे हैं और लंगोट भी नहीं बाँधते और उन्हें कोई प्रॉब्लम भी नहीं हुई है। आप सपोर्टर या टाइट अंडरवियर पहनकर भी काम चला सकते हैं, लेकिन ये जरूरी तो नहीं कि अगर बाकी लोगों को कोई परेशानी नहीं हुई है तो आपको भी नहीं होगी। दूसरी बात ये भी है कि अकसर लोग ये बताते ही नहीं हैं कि उनके अंडकोषों में पानी भर गया है। अगर आपको लंगोट बांधने से एलर्जी नहीं है तो फिर इसे बांधने में हिचकिचाहट कैसी। ये आपकी तैयारी का एक हिस्सा होता है। अगर आप स्पोर्ट्स शूज नहीं पहनेंगे तब भी उतनी ही बेंच प्रैस लगाएंगे जितनी शूज पहनकर मगर शूज, ट्रैक पैंट, टी शर्ट हमारी तैयारी का हिस्सा होता है। इसी तरह से लंगोट हमारी तैयारी का हिस्सा होता है। आप भारतीय हैं तो इसका सम्मान करें और कसरत से पहले लंगोट पहने। इससे आपका माइंड और बॉडी कड़ी मेहनत के लिए तैयार हो जाएंगे।

लंगोट पहनने के फायदे
  1. लंगोटी शारीरिक व्यायाम या योग अभ्यास के दौरान हड्डी और अंग के विस्थापन और तंत्रिकाओं पर खिंचाव को रोकता हैं।
  2. लंगोट पहनने से पुरुषों के टेस्टिल्स यानी अंडकोषों की सेहत अच्छी रहती है। कई बार ज्यादा वर्कआउट या मेहनत करने की वजह से उनका आकार बढ़ जाता है। जिससे उनमें दर्द होने लगता है।
  3. वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रजनन क्षमता बनाए रखने के लिए टेस्टिकल्‍स की सेहत का ध्यान रखना सबसे ज्यादा जरूरी है। कई बार इनमें पानी भर जाने की समस्या भी हो जाती है। जो सेक्स लाइफ पर बुरा असर डालती है।
  4. यह ऊर्जा को पूरे शरीर में सही और सही अनुपात में प्रवाहित करने में सक्षम बनाता है।
  5. लंगोटी के उपयोग से व्यायाम या योग अभ्यास के दौरान ऊर्जा, शक्ति और सहनशक्ति मिलती है।
  6. लंगोट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सादा सूती कपड़े यानी कॉटन का बना होता है। जिससे किसी भी तरह के रैशेज या अन्य समस्या नहीं होती। इसे स्किन फ्रेंडली माना जाता है। जिससे अनावश्यक हीट जनरेट नहीं होती। इसलिए भी लंगोट पहनना पुरुषों की सेहत के लिए अच्‍छा माना जाता है।
  7. जब भी आप कोई हैवी एक्सरसाइज या वर्कआउट करते है तो लंगोट पहनना एक तरह मदद करता है। इसे पहनने से एक्सरसाइज के दौरान पुरुषों के प्राइवेट पार्ट पर ज्यादा दबाव नहीं बनता है और पुरुष इसमें ज्यादा आराम महसूस करते हैं।
  8. पारम्परिक तौर पर अंडरवियर के तौर पर लंगोट पहनना पुरुष के जननांगों के लिए बेहतरीन होता हैं। बल्कि ये सेक्‍सुअल लाइफ को भी बेहतर बनाता हैं।
  9. अंत:वस्‍त्र लंगोट काम वासना पर नियंत्रण तो करता ही है, इसे पहनने वाले को कभी हाइड्रोशील की बीमारी नहीं होती और अंडकोश को यह चोट से बचाता है, ख़ासकर साइकिल, मोटर साइकिल आदि से गिरने पर लगने वाली चोट से। दौड़ने, चलने, योगासन व व्यायाम में सुविधाजनक है।
लंगोट पहनने के कोई नुकसान नहीं है
लंगोट बांधने का सबसे बड़ा फायदा पहुंचता है आपके टेस्टिल्स यानी अंडकोशों को कई बार ज्‍यादा मेहनत करने की वजह से उनका साइज बढ़ जाता है। आम भाषा में हम ये भी कहते हैं कि उनमें पानी भर गया है। अगर एक बार ऐसा हो गया तो फिर वो ऑपरेशन से ही ठीक होता है। लंगोट आपके अंडकोशों को टाइट करके रखता है इससे पानी भरने की समस्या नहीं होती। इसके अलावा इससे लोवर एबडॉमिन की मसल्स को सपोर्ट मिलता है। जिनके पेट के निचले हिस्से में ज्यादा हैवी कसरत करने से सूजन आ जाती है उन्हें भी इसका इस्तेमाल करना चाहिए। रनिंग करते वक्त भी लंगोट पहनना चाहिए इससे नीचे की चीजें इधर उधर नहीं भागतीं। वैसे तो लंगोट किसी भी कलर का हो सकता है मगर लाल लंगोट (lal langot) अनुशासन का प्रतीक होता है। लाल रंग बजरंग बली से भी जुड़ता है। अखाड़ों में आमतौर पर हनुमान जी की ही प्रतिमा लगी होती है। लाल रंग की निशानी भी होती है।

वर्तमान समय में लंगोट के स्थान पर ज़्यादातर लोग लंगोट की जगह इलास्टिक स्प्पोर्टर को उपयोग करते है। जो लंगोट की तरह ही होता है। उसे बांधने की जरूरत नहीं होती है। इसका उपयोग लंगोट की तरह ही होता है। ये लंगोट से भिन्न है। लंगोट और सपोटर दोनों उसे प्रकार है। जिस प्रकार अंडरवियर और निक्कर अब कपडे दोनों ही पहनने के परन्तु अलग अलग यूज़ है दोनों का। सपोर्टर के ऊपर की तरफ एक इलास्टिक रबर होता है। उसके अलावा उसके अंदर की तरफ ग्रोइन एरिया में डबल लेयर होती है कपड़े की जिसका यूज़ ग्रोइन गार्ड डालने में किया जाता है। बाकी इसकी संरचना अंडरवियर की तरह ही होती है।


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बडगुजर या बढ़गुजर राजपूत Badgujar Rajputs



बडगूजर (राघव) भारत की सबसे प्राचीन सूर्यवंशी राजपूत जातियों में से एक है। वे प्राचीन भारत के सबसे सम्मानित राजवंशो में से हैं। उन्होंने हरावल टुकड़ी या किसी भी लड़ाई में आगे की पहली पंक्ति में मुख्य बल गठित किया। बडगुजर ने मुस्लिम राजाओं की सर्वोच्चता को प्रस्तुत करने के बजाय मरना चुना। मुस्लिम शासकों को अपनी बेटियों को न देने के लिए कई बडगूजरों की मौत हो गई थी। कुछ बडगुजर उनके कबीले नाम बदलकर सिकरवार को उनके खिलाफ किए गए बड़े पैमाने पर नरसंहार से बचने के लिए बदल दिया।
Badgujar Rajputs

वर्तमान समय में एक उपनिवेश को शरण मिली, जिसे राजा प्रताप सिंह बडगूजर के सबसे बड़े पुत्र राजा अनूप सिंह बडगूजर ने स्थापित किया था। उन्होंने सरिस्का टाइगर रिजर्व में प्रसिद्ध नीलकांत मंदिर समेत कई स्मारकों का निर्माण किया, कालीजर में किला और नीलकंठ महादेव मंदिर शिव उपासक हैं; अंबर किला, अलवर, मच्छारी, सवाई माधोपुर में कई अन्य महलों और किलों; और दौसा का किला। नीलकंठ बडगूजर जनजाति की पुरानी राजधानी है। उनके प्रसिद्ध राजाओं में से एक राजा प्रताप सिंह ने कहा बडगूजर था, जो पृथ्वीराज चौहान के भतीजे थे और मुस्लिम आक्रमणकारियों के खिलाफ अपनी लड़ाई में सहायता करते थे, जिनका नेतृत्व 1191 में मुहम्मद ऑफ घोर ने किया था। वे मेवार और महाराणा के राणा प्रताप के पक्ष में भी लड़े थे) हम्मर अपने जनरलों के रूप में। उनमें से एक, समर राज्य के राजा नून शाह बडगुजर ने अंग्रेजों के साथ लड़ा और कई बार अपनी सेना वापस धकेल दिया लेकिन बाद में 1817 में अंग्रेजों के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर किए। बडगूजर हेपथलाइट्स, या हंस के साथ उलझन में नहीं हैं, क्योंकि वे केवल 6 वीं शताब्दी की ओर आए थे। इस बडगूजर की एक शाखा, राजा बाग सिंह बरगुजर विक्रमी संवत 202 मे, जो एडी.145 से मेल खाते थे, अंतर 57 वर्ष है। इस जगह को 'बागोला' भी कहा जाता था। उन्होंने उसी वर्ष सिलेसर झील के पास एक झील भी बनाई और जब इसे लाल पानी खोला गया, जिसे कंगनून कहा जाता था।
महाराजा अचलदेव बड़गूजर के लिए कहा जाता है कि जब खलीफा -अल- मामून ने 880 विक्रम संवत भारत पर चढ़ाई करि थी तो मेवाड़ के महाराणा खुम्मान के नेतृत्व में भारत के सभी राजपूत राजाओं ने मिलकर उससे युद्ध किया था, उस सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व महाराज अचलदेव बड़गूजर ने किया था। राजस्थान में जालौर जिले में स्थित भीनमाल प्राचीन गुर्जर देश (गुर्जरात्रा) की राजधानी थी, जिसका वास्तविक नाम "श्रीमाल" था, जो बाद में भिलमाल और फिर भीनमाल हुआ।
गल्लका लेख के अनुसार अवन्ति के राजा नागभट्ट प्रतिहार ने 7 वी सदी में गुर्जरो को मार भगाया और गुर्जर देश पर कब्जा किया, गुर्जर देश पर आधिपत्य करने के कारण ही नागभट्ट प्रतिहार गुरजेश्वर कहलाए जैसे रावण लंकेश कहलाता था। यही से इनकी एक शाखा दौसा,अलवर के पास राजौरगढ़ पहुंची, राजौरगढ़ में स्थित एक शिलालेख में वहां के शासक मथनदेव पुत्र सावट को गुर्जर प्रतिहार लिखा हुआ है जिसका अर्थ है गुर्जरदेश से आए हुए प्रतिहार शासक। इन्ही मथंनदेव के वंशज 12 वी सदी से बडगूजर कहलाए जाने लगे क्योंकि राजौरगढ़ क्षेत्र में पशुपालक गुर्जर/गुज्जर समुदाय भी मौजूद था जिससे श्रेष्ठता दिखाने और अंतर स्पष्ट करने को ही गुर्जर प्रतिहार राजपूत बाद में बडगूजर कहलाने लगे।
पशुपालक शूद्र गुर्जर/गुज्जर समुदाय का राजवंशी बडगूजर क्षत्रियों से कोई सम्बन्ध नहीं था। पशु पालक गुज्जर/गुर्जर दरअसल बडगूजर (गुर्जर प्रतिहार) राजपूतों के राज्य में निवास करते थे। राजा रघु के वंशज (क्योंकि श्रीराम और लक्ष्मण जी दोनों रघु के वंशज थे) होने के कारण ही इन्होंने राघव/रघुवंशी पदवी धारण की, इनकी वंशावली में एक अन्य शासक रघु देव के होने के कारण भी इनके द्वारा राघव टाइटल लिखा जाना बताया जाता है। इस प्रकार बडगूजर राजपूत वंशावली में श्रीमाल (गुर्जरदेश की राजधानी भीनमाल का प्राचीन नाम) का होना तथा राजौरगढ़ शिलालेख में बड़गुजरो के पूर्वज मथनदेव को गुर्जर प्रतिहार सम्बोधित किया जाना आधुनिक बडगूजर राजपूत वंश को प्रतिहार राजपूत वंश की ही शाखा होना सिद्ध करता है।

बड़गूजर वंश की कुलदेवी :- मां आशावारी
राजौरगढ के महाराजा अचलदेव बड़गूजर जी ने कुलदेवी मां आशावारी का भव्य गढ़ ( मन्दिर ) बनवाया था। महाराज अचलदेव बड़गूजर मेवाड़ के महाराणा खुम्मान के समकालीन थे। महाराज अचलदेव बड़गूजर ने 9 वी शताब्दी के अंदर राजौरगढ का दुर्ग , कुलदेवता नीलकंठ महादेव जी का मंदिर , कुलदेवी आशावारी माँ का मंदिर बनवाया। महाराजा अचलदेव बड़गूजर ने कई जैन मंदिर का निर्माण करवाया। कहा जाता है कि अचलदेव बड़गूजर के समय में राजौरगढ को काशी की संज्ञा दी जाती थी। जबकि राजौरगढ ( राजगढ़ ) तो महाराज बाघराज बड़गूजर के वंशज राजदेव बड़गूजर ने अपने नाम पर तीसरी सदी में बसाया ओर सम्पूर्ण ढूंढाड़ क्षेत्र में बड़गूजर राजपुतो की स्थिति को मजबूत किया।
कछवाहा राजपूतों के आगमन से पूर्व सम्पूर्ण ढूँढाड़ बड़गूजर राजपुतो के अधिकार में था। बड़गूजर राजपुतो के शासन काल के कई किले एवं महल बनवाये गए जिसे कछवाह के आगमन के बाद वो सभी उनके अधिकार में चले गये। पहले माताजी का छोटा सा मन्दिर था और मूर्ति खंडित अवस्था मे थी परंतु वर्तमान में देवती , राजौरगढ , माचेड़ी से निकले बड़गूजर जागीरदारों ने पुनः मन्दिर का निर्माण करवाया और पुनः शक्ति केंद्र के रूप में उभारा है। मुगल - बड़गूजर युद्ध और कछवाहा - बड़गूजर युद्ध मे मन्दिर को बहुत हानि उठानी पड़ी है इसके बावजूद भी बड़गूजर राजपूतों ने अपनी प्राचीन राजधानी को वर्तमान समय तक कायम रखा। समाज के कुछ लोगो ने मिलकर सभी को एक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष माताजी के गढ़ ( मन्दिर ) में मिलन समारोह का आयोजन किया जाता है। वर्तमान समय मे बड़गूजर राजपूतों की राजौरा शाखा का बहुत योगदान रहा है।


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राठौड़ क्षत्रिय वंश की सभी शाखाओं का इतिहास



राठौड़ क्षत्रिय वंश की सभी शाखाओं का इतिहास


राठौड़ वंश के गोत्राचार
  1. वंश -सूर्यवंश
  2. गोत्र-गोतम
  3. गुरु- वशिष्ट
  4. निकास -अयोध्या
  5. ईष्ट -सीताराम ,लक्ष्मीनारायण
  6. नदी -सरयू
  7. पहाड़ -गांगेय
  8. कुण्ड -सूर्य
  9. वृक्ष-नीम
  10. पितृ -सोम
  11. कुलदेवी -नागणेचा
  12. भेरू-मंडोर, कोडमदेसर
  13. कुलदेवी स्थान -नागाणा जिला -बाड़मेर
  14. चिन्ह -चिल
  15. क्षेत्र -नारायण
  16. पूजा -नीम
  17. बड-अक्षय
  18. गाय-कपिला
  19. बिडद-रणबंका
  20. उपाधि -कमधज
  21. शाखा -तेरह में से दानेसरा राजस्थान में है
  22. निशान -पचरंगा
  23. घाट -हरिद्वार
  24. शंख -दक्षिणवर्त
  25. सिंहासन -चन्दन का
  26. खांडा-जगजीत
  27. तलवार -रणथली
  28. घोड़ा -श्यामकर्ण
  29. माला -रतन
  30. शिखा -दाहिनी
  31. बंधेज -वामी (बाया)
  32. पाट-दाहिना
  33. पुरोहित -सेवड
  34. चारण -रोहडिया
  35. भाट-सिगेंलिया
  36. ढोली-देहधड़ा
  37. ढोल -भंवर
  38. नगारा- रणजीत
राठोड़ों के प्रमुख राज्य
राजपुताना – जोधपुर, बीकानेर, कुशलगढ़, किशनगढ़ .
मालवा- रतलाम, सैलाना, अलीराजपुर, ईडर, झाबुआ, जोबेट, काछी, मुलयान, बड़ोदा व अमझेरा.
संयुक्त प्रान्त (उ प्र) – रायपुर (एटा), खिमशेपुर, विजयपुर, मांडा ढहिया.
बिहार – खरसवां, सिंगभूमि .
उड़ीसा – बोनई, रेसखोल.
हिमाचल – जुब्बल, चम्बा.
हरियाणा – जहाजगढ़.

राठौड़ वंश की सभी शाखाओं का इतिहास
राजपूतों के इतिहास में राठौड़ों का विशेष स्थान है। संस्कृत अभिलेखों, ग्रंथों आदि से राठौड़ों को राष्ट्रकूट लिखा है। कहीं-कहीं रट्ट या राष्ट्रोड भी लिखा है। राठौर राष्ट्रकूट का प्राकृत रूप है। चिन्तामणि विनायक वैद्य के अनुसार यह नाम न होकर एक सरकारी पद था। इस वंश का प्रवर्तक राष्ट्रकूट (प्रांतीय शासक) था।
राठौड़ अथवा राठौड एक राजपूत गोत्र है जो उत्तर भारत में निवास करते हैं। राठौड़ अपने को राम के कनिष्ठ पुत्र कुश का वंशज बताते हैं। इस कारण वे सूर्यवंशी हैं। वे पारम्परिक रूप से राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र मारवाड़ में शासन करते थे। इनका प्राचीन निवास कन्नौज और बदायू था। जहाँ से सीहा मारवाड़ में ई. सन् 1243 के लगभग आया। राजस्थान के सम्पूर्ण राठौड़ो के मूल पुरुष राव सीहा जी माने जाते है जिन्होंने पाली से राज प्रारम्भ किया उनकी छतरी पाली जिले के बिटु गांव में बनी हुई है।
सीहा के वंशज चूण्डा ने पहले मण्डोर पर और उसके पौत्र जोधा ने जोधपुर बसाकर वहाँ अपनी राजधानी स्थापित की। मुग़ल सम्राटों ने अपनी आधी विजयें ‘लाख तलवार राठोडान‘ अर्थात एक लाख राठोड़ी तलवारों के बल पर प्राप्त की थी क्योंकि युद्ध के लिए 50000 बन्धु बान्धव तो एक मात्र सीहाजी के वंशज के ही एकत्रित हो जाते थे। राठौड़ों का विरुद रणबंका है अर्थात वे लड़ने में बांके हैं। 1947 से पूर्व भारत में अकेले राठौड़ो की दस से ज्यादा रियासतें थी और सैकड़ों ताजमी ठिकाने थे जिनमें मुख्य जोधपुर, मारवाड़, किशनगढ़, बीकानेर, ईडर, कुशलगढ़, सैलाना, झाबुआ, सीतामऊ, रतलाम, मांडा, अलीराजपुर वही पूर्व रियासतों में मेड़ता, मारोठ और गोड़वाड़ घाणेराव मुख्य थे।
राठौड़ वंश की कुलदेवी नागणेचिया माता - राठौड़ो की कुलदेवी नाग चेचियाजी है जिसका पहले नाम राठेश्वरी था। नाग चेचियाजी का पुराना मंदिर नागाना तहसील पचपदरा में हैं। दुसरा मंदिर जोधपुर के किले में जनानी ड्योढ़ी में हैं। गांवों में नागनेचियाजी का थान सामान्यतः नीम के वृक्ष के नीचे होता है। इसी कारण राठौड़ नीम का पेड़ काटते या जलाते नहीं हैं।
राठौड़ वंश की शाखाएं – धांधल, भडेल, धूहड़िया, हटडिया, मालावत, गोगादेव, महेचा, राठौड़, बीका, मेडतिया, बीदावत, बाल चांपावत, कांधलोत, उदावत, देवराजोत, गहड़वाल, करमसोत, कुम्पावत, मंडलावत, नरावत आदि।

राठौड़ों का प्राचीन इतिहास वृत :- राम के पुत्र कुश के कुल में सुमित्र अयोध्या का अंतिम राजा था। नंद वंश के महापद्मनंद ने अयोध्या राज्य को मगध साम्राज्य में मिला लिया। सुमित्र के बाद यशोविग्रह तक के मुख्य व्यक्तियों के नाम ही बडुवों (बहीभट्टों) की बहियों से तथा अन्य साहित्यिक स्त्रोतों से प्राप्त होते हैं। अतः इन साधनों के आधार पर सुमित्र से आगे की वंश परम्परा दी जा रही है। सुमित्र के दो वंशजों में कूर्म के वंशज रोहितास (बिहार), निषिध, ग्वालियर और नरवर होते हुए राजस्थान में आये जो कछवाह कहलाते हैं। दूसरे वंशज विश्वराज के वंशधर क्रमशः मूलराय व राष्ट्रवर के नाम से इनके वंशज राष्ट्रवर (राठौड़) कहलाये। बाद के संस्कृत साहित्य में कहीं कहीं राष्ट्रवर (राठौड़ों) का संस्कृतनिष्ठ शब्द ‘राष्ट्रकूट’ या ‘राष्ट्रकूटियो’ भी लिखा है।

सूरज प्रकाश के लेखक करणीदान व टॉड के अनुसार तेरह खांपों की उत्पत्ति इस प्रकार हुई – (सूरजवंश प्रकाश-करणीदान पृ. 84 से 194)
  1. दानेश्वरा :- धर्मविम्ब एक दानी व्यक्ति हुआ। अतः इनके वंशज दानेश्वरा कहलाये। इनको कमधज भी कहा जाता था।
  2. अभैपुरा :- पुंज के दूसरे पुत्र भानुदीप कांगड़ा (हि. प्र.) के पास था। देवी ज्वालामुखी ने उसे अकाल के भय से रहित कर दिया अर्थात अभय बना दिया। इस कारण उसके वंशज अभयपुरा कहलाये।
  3. कपालिया :- पुंज के तीसरे पुत्र वीरचंद थे। इसने शिव को कपाल चढ़ा दिया था। इस कारण इनके वंशज कपालिया कहलाये।
  4. कुरहा :- पुंज के पुत्र अमरविजय ने परमारों से कुरहगढ़ जीता। संभवतः कुरह स्थान के नाम से कुरहा कहलाये।
  5. जलखेड़ा :- पुंज के पुत्र सजनविनोद ने तंवरों को परास्त किया और जलंधर की सहायता से जल प्रवाह में बहा दिया। अतः इसके वंशज जलखेड़ा कहलाये।
  6. बुगलाणा :- पुंज के पुत्र पदम ने बुगलाणा स्थान के नाम से बुगलाणा कहलाये।
  7. अहर :- पुंज के पुत्र अहर के वंशज ‘अहर’ कहलाये। बंगाल की तरफ चले गए।
  8. पारकरा :- पुंज के पुत्र वासुदेव ने कन्नौज के पास कोई पारकरा नामक नगर बसाया अतः उसके वंशज ‘पारकर’ कहलाये।
  9. चंदेल :- दक्षिण में पुंज के पुत्र उग्रप्रभ ने चंदी व चंदावर नगर बसाये अतः चंदी स्थान के नाम से चंदेल कहलाये। (चंदेल-चंद्रवंशी इनसे भिन्न हैं।)
  10. वीर :- सुबुद्धि या मुक्तामान बड़ा वीर हुआ। इसे वीर की उपाधि दी। इस कारण इनके वंशज वीर राठौड़ कहलाये।
  11. दरियावरा :- भरत ने बरियावर स्थान पर राज्य किया। स्थान के नाम से ये ‘बरियावर’ कहलाये।
  12. खरोदिया :- कृपासिंधु (अनलकुल) खरोदा स्थान के नाम से खरोदिया राठौड़ कहलाये।
  13. जयवंशी :- चंद्र व इसके वंशज जय पाने के कारण जयवंशी कहलाये।
राठौड़ों की खांपें और उनके ठिकाने
राठौड़ों की प्राचीन तेरह खांपें थी। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेश्वरा खांप के राठौड़ थे। सींहाजी के वंशजों से जो खांपें चली वे इस प्रकार हैं –
  1. ईडरिया राठौड़ :- सोगन (पुत्र सीहा) ने ईडर पर अधिकार जमाया। अतः ईडर के नाम से सोगन के वंशज ईड़रिया राठौड़ कहलाये। (टॉड कृत राजस्थान-अनु केशवकुमार ठाकुर पृ. 356)
  2. हटुण्डिया राठौड़ :- सोगन के वंशज हस्तिकुण्डी (हटूंडी) में रहे। वे हटुण्डिया राठौड़ कहलाये। (अ) (टॉड) कृत राजस्थान-अनु. केशवकुमार ठाकुर पृ. 356) (ब) जोधपुर इतिहास में ओझा लिखते है कि सीहाजी से पहले हस्तिकुण्डी (हटकुण्डी) में राष्ट्रकूट बालाप्रसाद राज करता था। उसके वंशज हटुण्डिया राठौड़ है।
  3. बाढेल (बाढेर) राठौड़ :- सीहाजी के छोटे पुत्र अजाजी के दो पुत्र बेरावली और बिजाजी ने द्वारका के चावड़ों को बाढ़ कर (काट कर) द्वारका (ओखा मण्डल) पर अपना राज्य कायम किया।इस कारण बेरावलजी के वंशज बाढेल राठौड़ हुए। आजकल ये बाढेर राठौड़ कहलाते है। गुजरात में पोसीतरा, आरमंडा, बेट द्वारका बाढेर राठौड़ो के ठिकाने थे।
  4. बाजी राठौड़ :- बेरावलजी के भाई बीजाजी के वंशज बाजी राठौड़ कहलाते है। गुजरात में महुआ, वडाना आदि इनके ठिकाने थे। बाजी राठौड़ आज भी गुजरात में ही बसते है।
  5. खेड़ेचा राठौड़ :- सीहा के पुत्र आस्थान ने गुहिलों से खेड़ जीता। खेड़ नाम से आस्थान के वंशज खेड़ेचा राठौड़ कहलाते है। 
  6. धुहड़िया राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के वंशज धुहड़िया राठौड़ कहलाते है।
  7. धांधल राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धांधल के वंशज धांधल राठौड़ कहलाये। पाबूजी राठौड़ इसी खांप के थे। इन्होंने चारणी को दिये गये वचनानुसार पाणिग्रहण संस्कार को बीच में छोड़ चारणी की गायों को बचाने के प्रयास में शत्रु से लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की। यही पाबूजी लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
  8. चाचक राठौड़ :- आस्थान के पुत्र चाचक के वंशज चाचक राठौड़ कहलाये।
  9. हरखावत राठौड़ :- आस्थान के पुत्र हरखा के वंशज।
  10. जोलू राठौड़ :- आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र जोलू के वंशज।
  11. सिंघल राठौड़ :- जोपसा के पुत्र सिंघल के वंशज। ये बड़े पराक्रमी हुए। इनका जैतारण पर अधिकार था। जोधा के पुत्र सूजा ने बड़ी मुश्किल से उन्हें वहां से हटाया।
  12. ऊहड़ राठौड़ :- जोपसा के पुत्र ऊहड़ के वंशज।
  13. मूलू राठौड़ :- जोपसा के पुत्र मूलू के वंशज।
  14. बरजोर राठौड़ :- जोपसा के पुत्र बरजोर के वंशज।
  15. जोरावत राठौड़ :- जोपसा के वंशज।
  16. रैकवाल राठौड़ :- जोपसा के पुत्र राकाजी के वंशज है। ये मल्लारपुर, बाराबकी, रामनगर, बडनापुर, बैहराइच (जि. रामपुर) तथा सीतापुर व अवध जिले (उ.प्र.) में हैं। बोडी, रहका, मल्लापुर, गोलिया कला, पलवारी, रामनगर, घसेड़ी, रायपुर आदि गांव (उ.प्र.) में थे।
  17. बागड़िया राठौड़ :- आस्थानजी के पुत्र जोपसा के पुत्र रैका से रैकवाल हुए। नौगासा बांसवाड़ा के एक स्तम्भ लेख बैशाख वदि 1361 में मालूम होता है कि रामा पुत्र वीरम स्वर्ग सिधारा। ओझाजी ने इसी वीरम के वंशजों को बागड़िया राठौड़ माना जाता है (जोधपुर राज्य का इतिहास-ओझा पृ. 634) क्योंकि बांसवाड़ा का क्षेत्र बागड़ कहलाता था।
  18. छप्पनिया राठौड़ :- मेवाड़ से सटा हुआ मारवाड़ की सीमा पर छप्पन गांवों का क्षेत्र छप्पन का क्षेत्र है। यहाँ के राठौड़ छप्पनिया राठौड़ कहलाये। यह खांप बागड़िया राठौड़ों से ही निकली है। (जोधपुर का राज्य इतिहास-ओझा पृ. 134) उदयपुर रियासत के कणतोड़ गांव की जागीर थी। (राजपूताने का इतिहास प्रथम भाग-गहलोत पृ. 347)
  19. आसल राठौड़ :- आस्थान के पुत्र आसल के वंशज आसल राठौड़ कहलाये।
  20. खोपसा राठौड़ :-आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र खीमसी के वंशज।
  21. सिरवी राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र शिवपाल के वंशज।
  22. पीथड़ राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र पीथड़ के वंशज।
  23. कोटेचा राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र रायपाल हुए। रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र कोटा के वंशज कोटेचा हुए। बीकानेर जिले में करणाचण्डीवाल, हरियाणा में नाथूसरी व भूचामण्डी, पंजाब में रामसरा आदि इनके गांव है।
  24. बहड़ राठौड़ :- धुहड़ के पुत्र बहड़ के वंशज।
  25. ऊनड़ राठौड़ :- धुहड़ के पुत्र ऊनड़ के वंशज।
  26. फिटक राठौड़ :- रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र थांथी के पुत्र फिटक के वंशज फिटक राठौड़ हुए। (जोधपुर राज्य की ख्यात जिल्द 1 पृ 21 )
  27. सुण्डा राठौड़ :- रायपाल के पुत्र सुण्डा के वंशज।
  28. महीपालोत राठौड़ :- रायपाल के पुत्र महिपाल के वंशज। (दयालदास की ख्यात जिल्द 1 पृ 54 )
  29. शिवराजोत राठौड़ :- रायपाल के पुत्र शिवराज के वंशज। (दयालदास की ख्यात जिल्द 1 पृ 54 )
  30. डांगी :-रायपाल के पुत्र डांगी के वंशज। (दयालदास की ख्यात जिल्द 1 पृ 54 ) ढोलिन से शादी की अतः इनके वंशज डांगी ढोली हुए।
  31. मोहणोत :- रायपाल के पुत्र मोहण ने एक महाजन की पुत्री से शादी की। इस कारण मोहण के वंशज मुहणोत वैश्य कहलाये। मुहणोत नैणसी इसी खांप से थे।
  32. मापावत राठौड़ :- रायपाल के वंशज मापा के वंशज।
  33. लूका राठौड़ :- रायपाल के वंशज लूका के वंशज।
  34. राजक :- रायपाल के वंशज राजक के वंशज।
  35. विक्रमायत राठौड़ :- रायपाल के पुत्र विक्रम के वंशज। (राजपूत वंशावली -ईश्वरसिंह मढाढ ने रादां, मूपा और बूला भी रायपाल के पुत्रों से निकली हुई खांपें मानी जाती है। )
  36. भोवोत राठौड़ :- रायपाल के पुत्र भोवण के वंशज। (नैणसी भाग 2 पृ. 476)
  37. बांदर राठौड़ :- रायपाल के पुत्र कानपाल हुए। कानपाल के जालण और जालण के पुत्र छाड़ा के पुत्र बांदर के वंशज बांदर राठौड़ कहलाये। घड़सीसर (बीकानेर राज्य) में बताये जाते है।
  38. ऊना राठौड़ :- रायपाल के पुत्र ऊना के वंशज। (नैणसी भाग 2 पृ. 476)
  39. खोखर राठौड़ :- 
  40. सिंहमकलोत राठौड़ :- छाड़ा के पुत्र सिंहल के वंशज। अलाउद्दीन के सातलेक के समय सिवाना पर चढ़ाई की।
  41. बीठवासा उदावत राठौड़ :- रावल तीड़ा के पुत्र कानड़दे के पुत्र रावल के पुत्र त्रिभवन के पुत्र उदा के ‘बीठवास’ जागीर था। अतः उदा के वंशज बीठवासिया उदावत कहलाये। उदाजी के पुत्र बीरमजी बीकानेर रियासत के साहुवे गांव से आये। जोधाजी ने उनको बीठवासिया गांव की जागीर दी। इस गांव के अतिरिक्त वेगडियो व धुनाडिया गांव भी इनकी जागीर में थे। (मा. प. वि. भाग तृतीय पृ. 496)
  42. सलखावत :- छांडा के पुत्र तीड़ा के पुत्र सलखा के वंशज सलखाखत राठौड़ कहलाये।
  43. जैतमालोत :- सलखा के पुत्र जैतमाल के वंशज जैतमालोत राठौड़ कहलाये। (जो. राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ.184 ) ये बीकानेर रियासत में भी कहीं 2 निवास करते है।
  44. जुजाणिया :- जैतमाल सलखावत के पुत्र खेतसी के वंशज है। गांव थापणा इनकी जागीर में था।
  45. राड़धडा :- जैतमाल के पुत्र खींवा ने राड़धडा पर अधिकार किया। अतः उनके वंशज राड़धडा स्थान के नाम से राड़धडा राठौड़ कहलाये। (जो. राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ. 184 )
  46. महेचा :- 
  47. बाढ़मेरा :- मल्लीनाथ के छोटे पुत्र अरड़कमल ने बाड़मेर इलाके नाम से इनके वंशज बाढ़मेरा राठौड़ कहलाये।
  48. पोकरण :- मल्लीनाथ के पुत्र जगमाल के जिन वंशजों का पोकरण इलाके में निवास हुआ। वे पोकरण राठौड़ कहलाये। नीमाज का इतिहास- पं. रामकरण आसोपा पृ. 4 क्ष. जा. सूची पृ. 22 )
  49. खाबड़िया :- मल्लीनाथ के पुत्र जगमाल के पुत्र भारमल हुए। भारमल के पुत्र खीमूं के पुत्र नोधक के वंशज जामनगर के दीवान रहे इनके वंशज कच्छ में है। भारमल के दूसरे पुत्र मांढण के वंशज माडवी (कच्छ) में रहते है वंशज, खाबड़ (गुजरात) इलाके के नाम से खाबड़िया राठौड़ कहलाये।
  50. कोटड़िया :- जगमाल के पुत्र कुंपा ने कोटड़ा पर अधिकार किया अतः कुंपा के वंशज कोटड़िया राठौड़ कहलाये। (जोधपुर राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ. 191 ) जगमाल के पुत्र खींवसी के वंशज भी कोटडिया राठौड़ कहलाये।
  51. गोगादे :- सलखा के पुत्र विराम के पुत्र गोगा के वंशज गोगादे राठौड़ कहलाते है। (जोधपार राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ. 195-197) केतु (चार गांव) सेखला (15 गांव) खिराज आदि इनके ठिकाने थे।
  52. देवराजोत :- बीरम के पुत्र देवराज के वंशज देवराजोत राठौड़ कहलाये। (जोधपुर राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ. 195-197) सेतरावों इनका मुख्य ठिकाना था। सुवालिया आदि भी इनके ठिकाने थे।
  53. चाड़देवोत :- वीरम के पौत्र व देवराज के पुत्र चाड़दे के वंशज चाड़देवोत राठौड़ हुए। जोधपुर परगने का देछु इनका मुख्य ठिकाना था। गीलाकोर में भी इनकी जागीर थी।
  54. जैसिधंदे :- वीरम के पुत्र जैतसिंह के वंशज।
  55. सतावत :- चुण्डा वीरमदेवोत के पुत्र सत्ता के वंशज।
  56. भींवोत :- चुण्डा के पुत्र भींव के वंशज। खाराबेरा (जोधपुर) इनका ठिकाना था।
  57. अरड़कमलोत :- चुण्डा के पुत्र अरड़कमल वीर थे। राठौड़ो और भाटियों के शत्रुता के कारण शार्दूल भाटी जब कोडमदे मोहिल से शादी कर लौट रहा था, तब अरड़कमल ने रास्ते में युद्ध के लिए ललकारा और युद्ध में दोनों ही वीरता से लड़े। शार्दूल भाटी ने वीरगति पाई और कोडमदे सती हुई। अरड़कमल भी उन घावों से कुछ दिनों बाद मर गए। इस अरड़कमल के वंशज अरड़कमलोत राठौड़ कहलाये।
  58. रणधीरोत :- चुण्डा के पुत्र रणधीर के वंशज है। फेफाना इनकी जागीर थी।
  59. अर्जुनोत :- राव चुण्डा के पुत्र अर्जुन वंशज। (राजपूत वंशावली – ठा. ईश्वरसिंह मढाढ पृ. 82 )
  60. कानावत :-चुण्डा के पुत्र कान्हा वंशज कानावत राठौड़ कहलाये।
  61. पूनावत :- चुण्डा के पुत्र पूनपाल के वंशज है। गांव खुदीयास इनकी जागीर में था।
  62. जैतावत राठौड़ :- राव रणमलजी के जयेष्ठ पुत्र अखैराज थे। इनके दो पुत्र पंचायण व महाराज हुए। पंचायण के पुत्र जैतावत कहलाते है।
    १.) पिरथीराजोत जैतावत :- जैताजी के पुत्र पृथ्वीराज के वंशज पिरथीराजोत जैतावत कहलाते हैं। बगड़ी (मारवाड़) व सोजत खोखरों, बाली आदि इनके ठिकाने थे।
    २.) आसकरनोत जैतावत :- जैताजी के पौत्र आसकरण देइदानोत के वंशज आसकरनोत जैतावत है। मारवाड़ में थावला, आलासण, रायरो बड़ों, सदामणी, लाबोड़ी मुरढावों आदि इनके ठिकाने थे।
    ३.) भोपतोत जैतावत :- जैताजी के पुत्र देइदानजी भोपत के वंशज भोपतोत जैतावत कहलाते हैं। मारवाड़ में खांडों देवल, रामसिंह को गुडो आदि इनके ठिकाने थे।
  63. कलावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र अखैराज, इनके पुत्र पंचारण के पुत्र कला के वंशज कलावत राठौड़ कहलाते हैं। कलावत राठौड़ों के मारवाड़ में हूण व जाढ़ण दो गांवों के ठिकाने थे।
  64. भदावत :- राव रणमल के पुत्र अखैराज के बाद क्रमशः पंचायत व भदा हुए। इन्हीं भदा के वंशज भदावत राठौड़ कहलाये। देछु (जालौर) के पास तथा खाबल व गुडा (सोजत के पास) इनके मुख्य ठिकाने थे।
  65. पावत :- 
  66. जोधा राठौड़ :- 
  67. उदावत राठौड़ :- 
  68. बीदावत राठौड़ :- 
  69. मेड़तिया राठौड़ :- 
  70. चाँपावत राठौड़ :- 
  71. मण्डलावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र मण्डलाजी ने वि. सं. 1522 में सारूंडा (बीकानेर राज्य) पर अधिकार कर लिया था। यह इनका मुख्य ठिकाना था। इन्हीं मण्डला के वंशज मण्डलावत राठौड़ है।
  72. खरोत :- बाला राठौड़ – राव रिड़मल (रणमल) के पुत्र भाखरसी के वंशज भाखरोत कहलाये। इनके पुत्र बाला बड़े बहादुर थे। इन्होनें कई युद्धों में वीरता का परिचय दिया। चित्तौड़ के पास कपासण में राठौड़ों और शीशोदियों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में बाला घायल हुए। सिंघलों से वि. सं. 1536 में जोधपुर का युद्ध मणियारी नामक स्थान हुआ। इस युद्ध में चांपाजी मारे गए। बाला ने सिंघलो को भगाकर अपने काकाजी का बदला लिया। इन्हीं बाला के वंशज बाला राठौड़ कहलाये। मोकलसर (सिवाना) नीलवाणों (जालौर) माण्डवला (जालौर) इनके ताजमी ठिकाने थे। ऐलाणों, ओडवाणों, सीवाज आदि इनके छोटे छोटे ठिकाने थे।
  73. पाताजी राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र पाता भी बड़े वीर थे। वि. सं. 1495 में कपासण (चित्तौड़ के पास) स्थान पर शीशोदियों व राठौड़ों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में पाताजी वीरगति को प्राप्त हुआ। इनके पातावत राठौड़ कहलाये। पातावतों के आऊ (फलौदी- 4 गांव) करण (जोधपुर) पलोणा (फलौदी) ताजीम के ठिकाने थे। इनके अलावा अजाखर, आवलो, केरलो, केणसर, खारियों (मेड़ता) खारियों (फलौदी) घंटियाली, चिमाणी, चोटोलो, पलीणो, पीपासर भगुआने श्री बालाजी, मयाकोर, माडवालो, मिठ्ठियों भूंडासर, बाड़ी, रणीसीसर, लाडियो, लूणो, लुबासर, सेवड़ी आदि छोटे छोटे ठिकाने जोधपुर रियासत में थे।
  74. रूपावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र रूपा ने बीका का उस समय साथ दिया जब वे जांगल देश पर अधिकार रहे थे। इन्हीं रूपा के वंशज रूपावत राठौड़ हुए। मारवाड़ में इनका चाखू एक ताजीमी ठिकाना था। दूसरा ताजीमी ठिकाना भादला (बीकानेर राज्य) था। इनके अतिरिक्त ऊदट (फलौदी) कलवाणी (नागौर) भेड़ (फलौदी) मूंजासर (फलौदी) मारवाड़ में तथा सोभाणो, उदासर आदि बीकानेर राज्य के छोटे छोटे ठिकाने थे।
  75. करणोत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र करण के वंशज करणोत राठौड़ कहलाये। इसी वंश में दुर्गादास (आसकरणोत) हुए। जिन पर आज भी सारा राजस्थान गर्व करता है। अनेकों कष्ट सहकर इन्होनें मातृभूमि की इज्जत रखी। अपनी स्वामिभक्ति के लिए ये इतिहास में प्रसिद्ध रहे है।
  76. माण्डणोत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र मांडण के वंशज माण्डणोत राठौड़ कहते हैं। मारवाड़ में अलाय इनका ताजीमी ठिकाना था। इनके अतिरिक्त गठीलासर, गडरियो, गोरन्टो, रोहिणी, हिंगवाणिया आदि इनके छोटे छोटे ठिकाने थे।
  77. नाथोत राठौड़ :- नाथा राव रिड़मल के पुत्र थे। राव चूंडा नागौर के युद्ध में भाटी केलण के हाथों मारे गए। नाथाजी ने अपने दादा का बेर केलण के पुत्र अक्का को मार कर लिया। इन्हीं नाथा के वंशज नाथोत राठौड़ कहलाते हैं। पहले चानी इनका ठिकाना था।नाथूसर गांव इनकी जागीर में था।
  78. सांडावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र सांडा के वंशज।
  79. बेरावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र बेरा के वंशज। दूधवड़ इनका गांव था।
  80. अडवाल राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र अडवाल के वंशज। ये मेड़ता के गांव आछोजाई में रहे। राव रिड़मल के पुत्र ;-
  81. खेतसिंहोत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र जगमाल के पुत्र खेतसी के वंशज। इनको नेतड़ा गांव मिला था
  82. लखावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र लखा के वंशज।
  83. डूंगरोज राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र डूंगरसी के वंशज डूंगरसी को भाद्रजूण मिला था।
  84. भोजाराजोत राठौड़ :- राव रिड़मल के पौत्र भोजराज जैतमालोत के वंशज। इन्हें पलसणी गांव मिला था। (राव रिड़मल के पुत्र हापा, सगता, गोयन्द, कर्मचंद और उदा के वंशजों की जानकारी उपलब्ध नहीं। उदा के वंशज बीकानेर के उदासर आदि गांव में सुने जाते हैं )


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मुस्लिम संत हरिदास ठाकुर यवन की कृष्ण भक्ति



श्री हरिदास जी का जन्म वर्तमान जैसोर जिले के बूढ़न नामक ग्राम में एक संभ्रान्त मुसलमान के घर हुआ था। किसी पूर्व संस्कार के कारण बाल्यकाल से ही हरिदास को हरि नाम बड़ा प्यारा लगता था, श्रीकृष्ण की लीलाओं को वे बड़े चाव से सुना करते, धीरे-धीरे हरिदास का मन मुसलमानी मजहब से (कुछ लोगों का कहना है कि हरिदास जी का जन्म हिन्दू कुल में हुआ था और वे पीछे से मुसलमान हो गये थे) हट गया और उन्होंने अपना जीवन श्रीकृष्ण के चरणारविन्दों में समर्पण कर दिया, दिन रात उच्च स्वर से हरिनाम कीर्तन करने लगे। उनका विश्वास था कि जो भूल से भी हरिनाम ले लेता या सुन लेता है वह नरक से बच जाता है। मनुष्य की तो बात ही क्या है यदि नीच से नीच पशुओं के कानों में भी हरिनाम सुना दिया जाय तो उनका भी उद्धार हो सकता है। इसी कारण वे जोर जोर से हरि कीर्तन किया करते थे। यही तो सच्ची शुद्धि है। जो विश्वास पूर्वक सच्चे मन से भगवद् भक्त होकर हिन्दू धर्म को मानना चाहता है उसे जगत्‌ में कौन रोक सकता है ? अस्तु !


बेफायोल के वन में हरिदास जी ने कुटिया बना रखी थी, हरिनाम अधिक लेने के कारण इनका नाम हरिदास पड़ गया था, चारों ओर इस बात की ख्याति हो गयी थी। भक्त की बड़ी कठिन परीक्षा हुआ करती है। इंद्रिय भोगों के बड़े बड़े लुभावने पदार्थ उसके सामने आकर उसके मन को डिगाना चाहते हैं, इसी के अनुसार उस देश के दुरात्मा जमीदार रामचंद्र खां के मन में हरिदास का तप नाश करने की प्रवृत्ति हुई और उसने इस काम के लिये एक परम सुन्दरी वेश्या को हरिदास की कुटिया पर भेजा। वेश्या ने तीन रात तक लगातार बड़ी चेष्टा की परन्तु वह हरिदास के हरि चरण लीन चित्त में जरा सी भी चंचलता उत्पन्न नहीं कर सकी। जिसका मन एक बार उस अलौकिक रूप सुधा का रस आस्वादन कर चुका है वह विलास रसिका के रसालाप की ओर कैसे खींच सकता है ? हरिदास जी प्रतिदिन तीन लाख नाम जप किया करते थे, वेश्या ने तीन रात तक कीर्तन किया। उसके पापों का बहुत सा संचित नष्ट हो गया। मन में शुभ स्फुरणा हुई। वेश्या ने सोचा कि मेरे बिना बुलाये ही सैकड़ों मनुष्य मेरे रूप दर्शन की लालसा से मेरे घर पर आ और मेरे रूप पर मोहित होकर अपना सर्वस्व दे जाते हैं, पता नहीं हरिदास किस रस में डूब रहा है, न मालूम किस अनूप रूप पर मोहित हो रहा है जो इतनी चेष्टा करने पर भी मेरी ओर नहीं ताकता। धन्य है इस हरिदास को जो भोगों की वासना को इस प्रकार पददलित कर भगवन्नाम अमृत पान में उन्मत्त हो रहा है, मैंने तो अपना जीवन केवल पापों के बटोरने में लगाया, मेरी क्या गति होगी ? यों सोचते सोचते वेश्या का अंतर पिघल गया। उसके नेत्रों से आँसू बहने लगे और वह तुरंत दौड़कर संत के चरणों में गिर पड़ी और बोली कि प्रभो ! बिना समझे प्रमाद से मैंने बड़ा अपराध किया हैं, मेरा उद्धार कीजिये 1 वेश्या पर इतनी भगवत् कृपा देखकर भक्त हरिदास का हृदय भर आया, उन्होंने उसे हरिनाम मन्त्र देकर कहा कि जाओ, अपनी धन-सम्पति गरीबों को लुटा दो और इसी कुटिया में बैठकर साधन करो। मैं जाता हूँ। वेश्या साधन में लग गयी उसका नरक हृदय साक्षात् वैकुण्ठ धाम बन गया। भगवान उसमें निवास करने लगे, साधु सङ्ग से सूखा वृक्ष हरा भरा हो गया। वेश्या परम भक्तिमती होकर परमात्मा को पा गयी।

वहाँ से हरिदास जी चांदपुर के जमीदार के कुल पुरोहित बलरामाचार्य के घर पर आये; बलराम और उनके दोनों जमींदार शिष्य हरिदास जी की भक्ति देखकर मुग्ध हो गए और उनको गुरु सदृश मानने लगे। भक्त को कौन नहीं मानता ? जिसको भगवान ने अपनाया उसको जगत् ने अपना लिया।
गरल सुधा रिपु करै मिताई।
गोपद सिन्धु अनल सितलाई ॥
जमीदार पुत्र रघुनाथ ने इसी समय भक्ति प्राप्त की और आगे चलकर वे परम भक्त हुए। हरिदास जी एक दिन कह रहे थे कि हरि नाम से मुक्ति होती हैं, हरिनाम के आभास से ही मुक्ति होती है। इस बात को सुनकर गोपाल चक्रवर्ती नामक एक मनुष्य ने ब्यङ्ग करके कहा कि इसकी बात किसी को नहीं माननी चाहिये, जो फल योग और तप से नहीं मिलता वह केवल हरिनाम से कभी नहीं मिल सकता, यदि ऐसा हो तो मेरी नाक कट जाये। हरिदास जी ने कहा कि 'यदि ऐसा न होता होगा तो मेरी नाक कट जायेगी' बड़े आश्चर्य की बात है कि थोड़े ही दिनों बाद कुष्ठ रोग से गोपाल की नाक गलकर गिर पड़ी। हरिदास जी चांदपुर से आकर फुलिया नामक ग्राम में रहने लगे। यहाँ के मुसलमान काजी को मालूम हुआ कि हरिदास मुसलमान होकर भी काफिरों के आचरण करता है। अतएव उसने हरिदास को अपने मत के अनुसार सीधे रास्ते पर लाना चाहा, हरिदास की दूसरी कठोर परीक्षा का प्रारम्भ हुआ। हरिदास जी पकड़े जाकर विचार के लिये काजी साहब के सामने लाये गये। काजी ने कहा "तैंने मुसलमान होकर काफिरों का मजहब कैसे मंजूर किया ? जाओ, इस बेवकूफी को छोड़कर फिर कलमा पढ़ लो नहीं तो कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी।" इन शब्दों को सुनकर हरिदास जी को जरा सा भी भय नहीं हुआ। भयहारी भगवान के भक्त-सुलभ चरण कमलों की आश्रित यमराज से भी नहीं डरता, प्राणों की आहुति तो वह पहले दे चुकता है। भगवान ने गीता में कहा है" यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणानि विचाल्यते। "जिसमें स्थित होकर वह बड़े भारी दुःख से भी विचलित नहीं होता। हरिदास जी ने निर्भयता परन्तु स्वभाव सुलभ नम्रता के साथ काजी से कहा “भाई ! ईश्वर एक है, अखण्ड और अव्यय है, वह हिंदू मुसलमान के लिये अलग अलग नहीं होता, उसकी जैसी प्रेरणा होती है मनुष्य वैसे ही करता है, मुझे कृष्ण नाम प्यारा लगता है इसी से मैं इसे लेता हूँ इसमें तुम्हारा क्या बिगड़ता है? ”
हरिदास जी की इन बातों से काजी कुछ नरम हुआ परन्तु उसके मंत्रियों ने कहा कि यदि इसको दंड नहीं दिया जाएगा तो इसकी देखा देखी और भी मुसलमान हिंदू हो जायेंगे। अतएव काजी ने हरिदास के बाइस बाजारों में बेंत लगाने का दंड दिया। दुष्ट मन्त्रियों ने सोचा कि बेतों की मार से भी यदि हरिदास बच जायगा और नाम नहीं छोड़ेगा तब समझेंगे कि इसका हरिनाम सत्य है। काजी ने हरिदास जी को फिर समझाकर हरिनाम छोड़ने के लिये कहा। परन्तु हरिदास ने स्वीकार नहीं किया वे बोले टुकड़े टुकड़े देह हो प्राण जाय सुर धाम। तब भी मैं छाँड़ों नहीं पावन हरि का नाम। काजी को यह सुनकर बड़ा क्रोध हुआ और उसने प्राण दण्ड की आज्ञा दे दी। फाँसी पर चढ़ाकर या गोली मारकर प्राण लेने की जगह निर्दयतापूर्वक बाजारों में घुमा घुमा कर बेंते मार मारकर प्राण लेने की व्यवस्था की गयी। हरिदास जी किंचित भी नहीं घबराये ! एक बाजार में लाकर उनको बांध दिया गया और बड़ी निर्दयता से उन पर कोड़े लगने लगे। परंतु हरिदास जी का हरिनाम संकीर्तन ज्यों का त्यों जारी रहा उधर हरिदास जी बड़े जोर से बोलते "हरि"। उधर दुष्ट बड़े जोर से बेंत मारता। यों एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे करके बाइस बाजारों में हरिदास जी की पीठ पर बेतें मारी गयी। चमड़ा उड़ गया, रक्त की धारा से सारा शरीर भीज गया और लाल हो गया। इधर प्रेमाश्रुओं की धारा भी बह चली, पीठ से काजी के पाप की नदी और आगे से भक्त के प्रेम की निर्मल नदी बहने लगी। हरिदास जी नामोच्चारण और भी बड़े जोर जोर से करने लगे, गाँव भर में हाहाकार मच गया। बड़ी भीड़ हो गयी, सब लोग शाप देने लगे। कोई कहता था ईश्वर इस अन्याय को नहीं सहेंगे। कोई कहता था इस अन्याय से पृथ्वी काँप उठेगी, कोई कहता था काजी का समूल वंश नाश हो जाएगा। इधर हरिदास जी का मन दूसरी ही चिंता में मग्न था। उन्हें अपने ऊपर मार पड़ने और कष्ट पाने के लिये क्षोभ नहीं था उन्हें यह विश्वास था कि अभी ये लोग मुझ पर जितना अत्याचार कर रहे हैं समय आने पर न्यायकर्ता परमेश्वर की ओर से इन लोगों को इससे भी अधिक कष्टदायक दण्ड भोगना पड़ेगा। उनके भावी कष्ट की भावना से संत हरिदास का चित्त द्रवित हो गया। पापों से हटाने के लिये हरिदास जी ने उन लोगों से कहा कि भाई ! शांत हो ओ, मुझे मारने से तुम्हें क्या लाभ होगा ? तुम मुझे क्यों मार रहे हो ? मैंने तुम्हारा कोई नुकसान नहीं किया, हिंदू हो या मुसलमान परन्तु यह तो सभी को मानना पड़ेगा कि निर्दोष जीव को सताना पाप है, भगवान साक्षी हैं मैं ये बातें इसलिए नहीं होता कि: बेतों की चोट से मुझे दर्द हो रहा है परन्तु इसीलिए कहता हूं कि तुम लोग भ्रम से अपना भविष्य बड़ा दुःख मय बना रहे हो !
हरिदास जी के इन शब्दों से उन लोगों पर कुछ असर तो हुआ परन्तु उन्होंने अपना काम छोड़ा नहीं। हरिदास जी को बड़ी दया आयी। उनके नेत्रों से आँसुओं की धारा बहने लगी, उन्होंने अपना हृदय खोलकर दयामय भगवान के सामने रखा और बड़े जोर से बोले, कि हे मेरे कृष्ण ! हे मेरे स्वामी ! हे दयासिन्धु ! इन गरीबों पर दया करो, इनके इस अपराध को क्षमा कर दो, बेचारे भूले हुए जीव हैं अपना भला बुरा सोचने में असमर्थ हैं इन पर कृपा करो यों कहकर हरिदास जी रोने लगे, भीड़ के लोगों ने कहा कि हरिदास क्या कह रहे हैं ? पागल तो नहीं हो गये ? मारने वाले के लिये ईश्वर से क्षमा याचना करना कहाँ का धर्म है ? यूं कहते कहते लोग भक्त की महिमा से प्रेम में भर गये और हरि नाम ले लेकर नाचने लगे। इधर हरिदास जी को प्रेम-मूर्च्छा हो गयी। भगवान ! धन्य है क्या आपने इसलिए कहा है तजता नहीं मुझे जो हरिजन पाकर भी अतिशय संतान। पदवी अपनी देव दुर्लभ देता हूं उसको मैं आप प्रेममत्त हरिदास जी के भावावेश से काजी के सेवकों ने समझा कि इसकी मृत्यु हो गयी। इसलिये उसी अवस्था में उन्हें उठाकर गङ्गा जी में बहा दिया। गंगा में बहते बहते हरिदास को चेत हो गया और वे किनारे पर आकर बाहर निकल आये। लोगों की अपार भीड़ लगी हुई थी। काजी ने जब इनके जीने की बात सुनी तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। वह दौड़कर आया और सन्त हरिदास जी के चरणों में गिर पड़ा। उसने क्षमा प्रार्थना की और अन्त में वह परम भक्त बन गया। हरिदास जी हरि ध्वनि करते हुए चल दिये।

इसके बाद श्री हरिदास जी नवद्वीप में आये और वहाँ अद्वैताचार्य से मिले, इसी समय नवद्वीप में भगवान चैतन्य प्रकट हुए और बंगाल के हरि भक्ति की सुधा-धारा में प्लावित कर दिया। हरिदास का शेष जीवन श्री चैतन्य महाप्रभु के संग में बीता ! बोलो भक्त और उनके भगवान की जय !


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श्रीराम की पुनः लंका - यात्रा और सेतु भंग



पद्म पुराण के अनुसार एक समय भगवान श्रीराम को राक्षस राज विभीषण का स्मरण हो आया। उन्होंने सोचा कि ‘विभीषण धर्म पूर्वक शासन कर रहा है कि नहीं ? देव - विरोधी व्यवहार ही राजा के विनाश का सूत्र है। मैं विभीषण को लंका का राज्य दे आया हूँ, अब जाकर उसे सम्हालना भी चाहिए। कहीं राज मद में उससे अधर्माचरण तो नहीं हो रहा है। अतएव मैं स्वयं लंका जाकर उसे देखूँगा और हितकर उपदेश दूँगा, जिससे उसका राज्य अनन्त काल तक स्थायी रहेगा। ' श्रीराम यों विचार कर ही रहे थे कि भरतजी आ पहुँचे। भरत जी  के नम्रता से पूछने पर श्रीराम ने कहा -‘भाई ! तुमसे मेरा कुछ भी गोपनीय नहीं है, तुम और यशस्वी लक्ष्मण मेरे प्राण हो। मैंने निश्चय किया है कि मैं लंका जाकर विभीषण से मिलूँ, उसकी राज्य - पद्धति को देखूँ और उसे कर्तव्य का उपदेश दूँ। 'भरत ने कभी लंका नहीं देखी थी, इससे उसने भी साथ चलने की इच्छा प्रकट की, श्रीराम ने स्वीकार कर लिया और लक्ष्मण को सारा राज्य का कार्यभार सौंप कर दोनों भाई पुष्पक विमान पर चढ़ लंका के लिये विदा हुए।

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पहले भरत के दोनों पुत्रों की राजधानी में जाकर उनसे मिले और उनके कार्य का निरीक्षण किया, तदनंतर लक्ष्मण के पुत्रों की राजधानी में गये और वहाँ छः दिन ठहर कर सब कुछ देखा - भाला। इसके बाद भारद्वाज और अत्रि के आश्रमों को गये। फिर आगे चलकर श्रीराम ने चलते हुए विमान पर से वह सब स्थान दिखलाये जहाँ श्री सीताजी का हरण हुआ था, जटायु की मृत्यु हुई थी, कबन्ध को मारा था और बालि का वध किया था। तत्पश्चात किष्किंधापुरी में जाकर राजा सुग्रीव से मिले। सुग्रीव ने राजघराने के सब स्त्री पुरुषों, नगरी के समस्त नर नारियों समेत श्री राम और भरत का बड़ा भारी स्वागत किया। फिर सुग्रीव को साथ लेकर विमान पर से भरत को विभिन्न स्थान दिखाया और उनकी कथा सुनाते हुए लंका में जा पहुंचे, राजा विभीषण को उनके दूतों ने यह शुभ समाचार सुनाया।

श्री राम के लंका पधारने का संवाद सुनकर विभीषण को बड़ी प्रसन्नता हुई | सारा नगर बात की - बात में सजाया गया और अपने मंत्रियों को साथ लेकर विभीषण अगवानी के लिये चला। सुमेरु स्थित सूर्य की भांति विमानस्थ श्रीराम को देखकर साष्टांग प्रणाम पूर्वक विभीषण ने कहा —'प्रभो ! आज मेरा जन्म सफल हो गया, आज मेरे सारे मनोरथ सिद्ध हो गये। क्योंकि आज मैं जगद्बन्ध अनिन्द्य आप दोनों स्वामियों के चरण - दर्शन कर रहा हूँ। आज स्वर्गवासी देवगण भी मेरे भाग्य की श्लाघा कर रहे हैं। मैं आज अपने को त्रिदश पति इन्द्र की अपेक्षा भी श्रेष्ठ समझ रहा हूँ। ' सर्वरत्न सुशोभित उज्ज्वल भवन में महोत्तम सिंहासन पर श्रीराम विराजे, विभीषण अर्घ्य देकर हाथ जोड़ भरत और सुग्रीव की स्तुति करने लगा। लंका निवासी प्रजा की राम दर्शनार्थ भीड़ लग गयी। प्रजा ने विभीषण को कहलाया, ' प्रभो ! हमको इस अनोखी रूप माधुरी को देखे बहुत दिन हो गये। युद्ध के समय हम सब देख भी नहीं पाए थे। आज हम दीनों पर दया का हमारा हित करने के लिये करुणामय हमारे घर पधारे हैं, अतएव शीघ्र ही हम लोगों को उनके दर्शन कराइये। ' विभीषण ने श्रीराम से पूछा और दयामय की आज्ञा पाकर प्रजा के लिये द्वार खोल दिये। लंका के नर-नारी श्री राम-भरत की झांकी देखकर पवित्र और मुग्ध हो गये। यों तीन दिन बीते। चौथे दिन रावण माता कैकसी ने विभीषण को बुलाकर कहा, ' बेटा ! मैं भी श्रीराम के दर्शन करूँगी। उनके दर्शन से महामुनि गण भी महा पुण्य के भागी होते हैं। श्रीराम साक्षात् सनातन विष्णु हैं, वही यहाँ चार रूपों में अवतीर्ण हैं। सीता जी स्वयं लक्ष्मी हैं। तेरे भाई रावण ने यह रहस्य नहीं जाना। तेरे पिता ने कहा था कि रावण को मारने के लिये भगवान विष्णु रघुवंश में दशरथ के यहाँ प्रादुर्भूत होंगे। ' विभीषण ने कहा – ' माता ! आप नये वस्त्र पहन कर कंचन - थाल में चंदन, मधु, अक्षत, दधि, दूर्वा का अर्घ्य सजाकर भगवान श्रीराम का दर्शन करें। सरमा ( विभीषण - पत्नी ) को आगे कर और अन्यान्य देव कन्याओं को साथ लेकर आप श्रीराम के समीप जाये। मैं पहले ही वहां चला जाता हूँ।'
विभीषण ने श्रीराम के पास जाकर वहाँ से सब लोगों को बिल्कुल हटा दिया और श्रीराम से कहा, ‘देव ! रावण, कुम्भ कर्ण और मेरी माता कैकसी आपके चरण कमलों के दर्शनार्थ आ रही हैं, आप कृपापूर्वक उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ करें। ' श्रीराम ने कहा, 'भाई ! तुम्हारी मां तो मेरी ' मां ' ही है। मैं ही उनके पास चलता हूँ, तुम जाकर उनसे कह दो, इतना कहकर विभु श्रीराम उठकर चले और कैकसी को देखकर मस्तक से उसे प्रणाम किया तथा बोले- आप मेरी धर्म माता हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। अनेक पुण्य और महान तप के प्रभाव से ही मनुष्य को आपके ( विभीषण - सदृश भक्तों की जननी के ) चरण - दर्शन का सौभाग्य मिलता है। आज मुझे आपके दर्शन से बड़ी प्रसन्नता हुई। जैसे श्री कौशल्या जी हैं, वैसे ही मेरे लिये आप हैं। ' बदले में कैकसी ने मातृ भाव से आशीर्वाद दिया और भगवान श्रीराम को विश्व पति जानकर उनकी स्तुति की। इसके बाद 'सरमा' ने भगवान की स्तुति की। भरत को सरमा का परिचय जानने की इच्छा हुई, उनके इशारे को समझ कर 'इङ्गित विद’ श्री राम ने भरत से कहा, ' यह विभीषण की साध्वी भार्या हैं, इनका नाम सरमा है। यह महाभागा सीता की प्रिय सखी हैं, और इनकी सखिता बहुत दृढ़ है। ' इसके बाद सरमा को समायोचित उपदेश दिया। फिर विभीषण को विविध उपदेश देकर कहा कि ' हे निष्पाप ! देवताओं का प्रिय कार्य करना, उनका अपराध कभी न करना। लंका में कभी मनुष्य आवे तो उनका कोई राक्षस वध न करने पावें। ' विभीषण ने आज्ञानुसार चलना स्वीकार किया।

तदनंतर वापस लौटने के लिये सुग्रीव और भरत सहित श्रीराम विमान पर चढ़े। तब विभीषण ने कहा ' प्रभु ! यदि लंका का पुल ज्यों - का - त्यों बना रहेगा तो पृथ्वी के सभी लोग यहाँ आकर हम लोगों को तंग करेंगे, इसलिए क्या करना चाहिये ? ' भगवान ने विभीषण की बात सुनकर पुलको बीच में से तोड़ डाला और दश योजन के बीच के टुकड़े के फिर तीन टुकड़े कर दिये। तदनंतर उस एक - एक टुकड़े के फिर छोटे - छोटे टुकड़े कर डाले, जिससे पुल टूट गया और यों लंका के साथ भारत का मार्ग पुनः विछिन्न हो गया।


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महाकाल लेटेस्‍ट सावन मैसेज और फोटो



 क्या करूँगा में अमीर बन कर

मेरा महाकाल तो फ़क़ीरों का
दीवाना है Kya karoonga mein ameer ban kar
Mera mahaankaal to fakeero ka
Deevaana hai

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नाकाम होगा हर वो मकसद

जिसमें महाकाल का नाम नहीं होंगे
पूरा होगा उसका हर मकसद
जो महाकाल के दीवाने होंगे

Naakaam hoga har vo makashad
jisame mahaankaal ka naam nahin honge
Poora hoga usaka har makashad
jo mahaankaal ke deevaane honge

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सबसे बड़ा तेरा दरबार हैं तू
ही सबका पालन हार हैं
सजा दे या माफी महाकाल तू
ही हमारी सरकार हैं Sabase bada tera darbar hain to
Hai sabka paalan haar hai
Saja de ya maape mahakaal too
Hee hamaaree sarakaar hain

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क्या खोया क्या नहीं पाया छोर के दुनिया
दारी को लग जा तू महाँकाल के भक्ति में
पता नहीं है शयद तुझको कितना दम है
महाँकाल के शक्ति में

Kya khoya kya nahin paaya chhor ke duniya
Daaree ko lag ja too mahaankaal ke bhakti mein
Pata nahin hai shayad tujhako kitana dam hai
Mahaankaal ke shakti mein

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किसी ने कहा लोहा है हम
किसी ने कहा फौलाद है हम
माँ कसम भाग दौड़ मच गई जब
हमने कहा महाकाल के भक्त है हम Kisee ne kaha loha hai ham
Kisee ne kaha phaulaad hai ham
Maan kasam bhaag daud mach gaee jab
Hamane kaha mahaankaal ke bhakt hai ham

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जो समय की चाल हैं
अपने भक्तों की ढाल हैं
पल में बदल दे सृष्टि को
वो महाकाल हैं Jo samay kee chaal hain
Apane bhakton kee dhaal hain
Pal mein badal de srshti ko
Vo mahaankaal hain

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माया को चाहने वाला बिखर जाता है
और मेरे महाकाल को चाहने वाला
निखर जाता है Maaya ko chaahane vaala bikhar jaata hai
Aur mere mahaankaal ko chaahane vaala
Nikhar jaata hai

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#महाकाल तेरी कृपा रही तो एक दिन अपना
भी मुकाम होगा
#1 करोड़ की #लंबोरहिनी कार होगा और शीशे
पे #महाकाल तेरा नाम होगा

#Mahakal teree kurpa rahee to ek din apana
Bhee mukaam hoga
#1 Crore kee #Lamborhini car hoga aur sheeshe
Pe #Mahakal tera naam hoga

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राजनीति वो करते है जिन्हें वोट चाहिए
महांकाल भक्त हूँ सिर्फ और सिर्फ
महाकाल का सपोट चाहिए 
Raajaneetee vo karate hai jinhe vot chaahie
Mahaankaal bhakt hoon sirph aur sirph
Mahaankaal ka saport chaahie

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जिद पर अड़ जाये तो रुख
मोर दे तूफानों का अभी
तूने तेवर ही कहां देखा हैं
महाकाल के दीवानों का अभी 
Jid par ad jaye to rukh
mod de toofano ka abhi
Tune tevar he kahaan dekha hai
mahakal ke divaanon ka abhee

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तेरे ही दम पर मेरा सफर जारी है
भटक ना जाऊँ कही महाकाल
ये तेरी ही जिम्मेदारी है 
Tere hee dam par mera saphar jaaree hai
Bhatak na jaoo kahee mahaankaal
Ye teree hee jimmedaaree hai

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जिनके रोम रोम में शिव है
वही विष पिया करते है
जमाना उन्हें क्या जलाएगा
जो श्रृंगार ही अंगार से किया करते है 
 Jinake rom rom mein shiv hai
Vahee vish piya karate hai
Jamaana unhen kya jalaega
Jo shingaar hee angaar se kiya karate hai

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तेरी चौखट पे सर रख दिया है
भार मेरा उठाना पड़ेगा
में भला हूँ बुरा हूँ मेरे महाकाल
तुझको अपना बनाना पड़ेगा

Teree chaukhat pe sar rakh diya hai
Bhaar mera uthaana padega
Mein bhala hoon bura hoon mere mahakal
Tujhako apana banaana padega

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कोई दौलत का दीवाना
कोई शोहरत का दीवाना
शीशे सा मेरा दिल
में तो सिर्फ महाकाल का दीवाना

Koee daulat ka deewana
koi shohrat ka deewana
Sheeshe sa mera dil
Mein to sirf mahakal ka deewana

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कौन कहता है भारत में FOGG
चल रहा है
यहाँ तो महाकाल के भक्तों का
ख़ौफ़ चल रहा है Kaun kahata hai bhaarat mein fogg
Chal raha hai
Yahaan to mahaankaal ke bhakton ka
Khauf chal raha hai

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भले ही मूर्ति बन कर बैठा है
पर मेरे साथ खड़ा है
जब भी संकट आए मुझ पर
मुझसे पहले मेरा महांकाल खड़ा है Bhale hee moorti ban kar baitha hai
Par mere saath khada hai
Jab bhee sankat aae mujh par
Mujhase pahale mera mahaankaal khada hai

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तुमने कैसे कह दिया अपने आपको रावण
वो तो महाकाल का ऐसा भक्त था
जिसने खुद शिव मंत्र लिख दियाTumane kaise kah diya apane aapako raavan
Vo to mahaankaal ka aisa bhakt tha
Jisane khud shiv mantr likh diya

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ना हुनर मेरे पास है ना

किस्मत मेरे पास है
बस रहता हूँ में बेफिक्र क्योंकि
महाकाल मेरे पास है

Na hunar mere paas hai na
kismat mere paas hai
Bas rahata hoon mein bephikr kyoonki
Mahaankaal mere paas hai

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ना जीने की खुसी ना मौत का गम
जब तक है दम महाकाल के
भक्त रहेंगे हम Na jeene kee khusee na maut ka gam
Jab tak hai dam mahaankaal ke
Bhakt rahenge ham

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चिता भस्म से तेरा नित
नित हो शृंगार
काल भी तेरे आगे हाथ
जोड़ खड़ा लाचारChita bhasm se tera nit
Nit ho shrngaar
Kaal bhee tere aage haath
Jod khada laachaar

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ना गिनकर देता है ना तोल कर देता है
जब भी मेरा महाकाल देता है तो
छप्पड़ फाड़ के देता है Na ginakar deta hai na tol kar deta hai
Jab bhee mera mahaakaal deta hai
To chhappad phaad ke deta hai

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घर पर रहते है ना घाट पर रहते है
हम तो उनकी सरण में रहते है
जिन्हें लोग महाकाल कहते हैं
Ghar par rahate hai na ghaat par rahate hai
Ham to unakee saran mein rahate hai
Jinhen log mahaankaal kahate hain

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जिंदगी जब महांकाल पे फिदा हो जाती है
सारी मुश्किलें अपने आप जीवन
से जुदा हो जाती है Jindagee jab mahaankaal pe phida ho jaatee hai
Saaree mushkilen apane aap jeevan
Se juda ho jaatee hai

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दुनिया पर किया गया भरोसा तो टूट सकता है
लेकिन दुनिया के मालिक महाकाल पर किया
गया भरोसा कभी नहीं टूटता है 
Duniya par kiya gaya bharosha to toot sakata hai
Lekin duniyaan ke maalik mahaankaal par kiya
Gaya bharosha kabhee nahin tootata hai

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जो अमृत पीते है उन्हें देव कहते है
जो बिष पीते है उन्हें देवों के देव
महादेव कहते है 
Jo amrt peete hai unhen dev kahate hai
Jo bish peete hai unhen devo ke dev
Mahaadev kahate hai

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राम उसका रावण भी उसका
जीवन उसका मरण भी उसका
ताण्डव है और ध्यान भी वो है
अज्ञानी का ज्ञान भी वो है 
Raam usaka raavan bhee usaka
Jeevan usaka maran bhee usaka
Taandav hai aur dhyaan bhee vo hai
Agyaanee ka gyaan bhee vo hai

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खुल चूका है नेत्र तीसरा
शिव शम्भु त्रिकाल का
इस कलियुग में वो ही बचेगा
जो भक्त होगा महाकाल का 

Khul chooka hai netr teesara
Shiv shambhu trikaal ka
Is kalayug mein vo hee bachega
Jo bhakt hoga mahaankaal ka

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शेरों वाली दहाड़ फिर सुनाने आए है
आग उगलने को फिर परवाने आए है
रास्ता भी छोड़ दिया स्वयं काल ने
जब उसने देखा महाकाल के दीवाने आए है S
hero vaalee dahaad phir sunaane aae hai
Aag ugalane ko phir paravaane aae hai
Raasta bhee chhod diya svayan kaal ne
Jab usane dekha mahaankaal ke deevaane aae hai

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आग लगे उस जवानी को जिसमें
महाकाल नाम की दीवानगी न हो 
Aag lage us jawani ko jisame
Mahakal naam ki diwangi na ho

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नीम का पेड़ कोई चन्दन से कम नहीं
दरभंगा जिला कोई London से कम नहीं
जहाँ बरस रहा है मेरे महाकाल का प्यार
वो दरबार भी कोई स्वर्ग से कम नहीं 
Neem ka ped koee chandan se kam nahin
Darabhanga jila koee London se kam nahin
Jahaan baras raha hai mere mahaankaal ka pyaar
Vo darabaar bhee koee svarg se kam nahin

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चिंता नही है काल की
बस कृपा बनी रहे
महाकाल की 
Chinta nahin hai kaal kee
Bas krpa banee rahe
Mahaakaal kee

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कष्ट मिटे जब सब ये बोले
नाम जपो तुम बम बम भोले 
Kasht mite jab sab ye bole
Naam japo tum bam bam bhole

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जँहा पर आकर लोगों की नवाबी
ख़त्म हो जाती है
बस वहीं से 
महाकाल के दीवानो
की बादशाही शुरू होती है 
Janha par aakar logon kee navaabee
Khatm ho jaatee hai
Bas vaheen se mahaankaal ke deevaano
Kee baadashaahee shuroo hotee hai

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तू भस्म का शृंगार है
मेरा पहला और आखरी प्यार है
सबके लिए तो देव है तू
लेकिन मेरे लिए संसार है 
Too bhasm ka shrngaar hai
Mera pahala aur aakharee pyaar hai
Sabake lie to dev hai too
Lekin mere lie sansaar hai

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झुकता नहीं महाकाल भक्त
किसी के आगे
वो काल भी क्या करेगा
महाकाल के आगे 
Jhukata nahin mahaankaal bhakt
Kisee ke aage
Vo kaal bhee kya karega
Mahaankaal ke aage

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इश्क़ दी गली विच कोई कोई पार हुआ
कई जन्म लगे सती को तब जाके
महाकाल को प्यार हुआ 
Ishq dee galee vich koee koee paar hua
Kaee janm lage satee ko tab jaake
Mahaankaal ko pyaar hua

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