खान पान से गंभीर से गंभीर बीमारी को कहें अलविदा



जब भी भोजन किया जाये तो भोजन का एक समय निश्चित होना चाहिए। ऐसा नहीं की कभी भी कुछ भी खा लिया। हमारा ये जो शरीर है वो कभी भी कुछ खाने के लिए नहीं है। इस शरीर में जठर (अमाशय) है, उसमें अग्नि प्रदीप्त होती है। जठर में जब अग्नि सबसे ज्यादा तीव्र हो उसी समय भोजन करें तो आपका खाया हुआ, एक एक अन्न का हिस्सा पाचन में जाएगा और रस में बदलेगा और इस रस में से मांस, मज्जा, रक्त, मल, मूत्र, मेद और आपकी अस्थियाँ इनका विकास होगा। सूर्योदय के लगभग ढाई घंटे तक जठरग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होती है। सूर्य का उदय जैसे ही हुआ उसके अगले ढाई घंटे तक जठराग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होती है। इस समय सबसे ज्यादा भोजन करें। इस समय आप कुछ भी खा सकते हैं।


अगर आप को आलू का पराठा खाना है तो सवेरे के खाने में खाइये, मूली का परांठा भी सुबह के खाने में खाइये। मतलब, आपको जो चीज सबसे ज्यादा पसंद है वह सुबह खाना चाहिये। रसगुल्ला, खाडी जलेबी, आपको पसंद है तो सुबह खाना चाहिये और सुबह पेट भरकर खाइये। पेट की संतुष्टि हुई, मन की भी संतुष्टि हो जाती है। पेट की संतुष्टि से ज्यादा मन की संतुष्टि महत्व की है। हमारा मन खास तरह की वस्तुये जैसे, हार्मोन्स, एंजाईम्स से संचालित है। मन को आज की भाषा में डॉक्टर पिनियल ग्लांड्स कहते हैं , हालाँकि वो है नहीं। पिनियल ग्लॅंड (मन) संतुष्टि के लिए सबसे आवश्यक है । अगर भोजन आपको अगर तृप्त करता है तो पिनियललॅंड आपकी सबसे ज्यादा सक्रिय है तो जो भी एंझाईम्स चाहिए शरीर को वो नियमित रूप में समान अंतर से निकलते रहते है। और जो भोजन से तृप्ति नहीं है तो पिनियल ग्लॅंड में गडबड होती है। और पिनियल ग्लॅंड की गडबड पूरे शरीर में पसर जाती है। और आपको तरह तरह के रोगो का शिकार बनाती है। अगर आप तृप्त भोजन नहीं कर पा रहे तो निश्चित 10-12 साल के बाद आपको मानसिक क्लेश होगा और रोग होंगे। मानसिक रोग बहुत खराब है। आप सिजोफ्रेनिया डिप्रेशन के शिकार हो सकते है आपको कई सारी बीमारियाँ आ सकती है। कभी भी भोजन करें तो, पेट भरे ही ,मन भी तृप्त हो। ओर मन के भरने और पेट के तृप्त होने का सबसे अच्छा समय सवेरे का है। दोपहर को भूख लगे है तो थोडा और खा लीजीए। लेकिन सुबह का खाना सबसे ज्यादा। दोपहर का भोजन थोडा कम करिए नाश्ते (सुबह के भोजन) से एक तिहाई कम कर दीजिए और रात का भोजन दोपहर के भोजन का एक तिहाई कर दीजिए। अगर आप सवेरे 6 रोटी खाते है तो दोपहर को 4 रोटी और शाम को 2 रोटी खाईए। ।भारत में आजकल उल्टा चक्कर चल रहा है। लोग नाश्ता कम करते हैं। लंच थोडा ज्यादा करते हैं और डिनर सबसे ज्यादा करते हैं। भोजन करने का यह तरीका सर्वाधिक नुकसानदायक है। वैदिक नियम है - नाश्ता सबसे ज्यादा लंच थोडा कम और डिनर सबसे कम करना चाहिए। हमें अंग्रेजों की नकल बंद करनी होगी अंग्रेजों की जलवायु भारत की जलवायु से भिन्न है। वे अपनी जलवायु के हिसाब से नाश्ता कम करते हैं क्योंकि वहां पर सूरज के दर्शन कम होते हैं और उनकी जठराग्नि मंद होती है। भारी नाश्ता उनकी प्रकृति के विरुद्ध है। भारत में तो सूर्य हजारों सालो से निकलता है और अगले हजारों सालों तक निकलेगा! जलवायु के हिसाब से हमारी जठराग्नि बहुत तीव्र है। बिना अधिक कसरत किये हमारी जठराग्नि तीव्र रहती है। इसलिए सुबह का खाना आप भरपेट खाईए।


मनुष्य को छोडकर जीव जगत का हर प्राणी इस सूत्र का पालन कर रहा है। आप चिड़िया को देखो, कितने भी तरह की चिड़िया सवेरे सूरज निकलते ही उनका खाना शुरू हो जाता है, और भरपेट खाती है। 6 बजे के आसपास राजस्थान, गुजरात में जाओ सब तरह की चिड़िया अपने काम पर लग जाती है। खूब भरपेट खाती है और पेट भर गया तो चार घंटे बाद ही पानी पीती है। गाय को देखिए सुबह उठते ही खाना शुरू हो जाता है। भैंस, बकरी ,घोड़ा सब सुबह उठते ही खाना खाना शुरू करेंगे और पेट भरकर खाएंगे। फिर दोपहर को आराम करेंगे तो यह सारे जानवर, जीव जंतु जो हमारी आँखो से दिखते है और नहीं भी दिखते ये सबका भोजन का समय सवेरे का हैं। सूर्योदय के साथ ही थे सब भोजन करते है। इसलिए, थे हमसे ज्यादा स्वस्थ रहते है।
तो सुबह के खाने का समय तय कीजिये। सूरज उगने के ढाई घंटे तक। यानी 9.30 बजे तक, ज्यादा से ज्यादा 10 बजे तक आपका भोजन हो जाना चाहिए। और ये भोजन तभी होगा जब आप नाश्ता बंद करेंगे। आप बाहर निकलिए घर के तो सुबह भोजन कर के ही निकलिए। दोपहर एक बजे में जठराग्नी की तीव्रता कम होना शुरू होता है तो उस समय थोडा हलका खाए यानी जितना सुबह खाना उससे कम खाए तो अच्छा है। ना खाए तो और भी अच्छा। खाली फल खाएं, जूस दही मट्ठा पिये। शाम को फिर खाये।
शाम का भोजन भी जठराग्नि के अनुसार ही करना चाहिए। जठराग्नी सुबह सुबह बहुत तीव्र होगी और शाम को जब सूर्यास्त होने जा रहा है, तभी तीव्र होगी। इसलिए शाम का खाना सूरज छिपने से पहले खा लेना चाहिए क्योंकि सूरज अस्त होने के बाद जठराग्नि भी मंद हो जाती है इसलिए सूरज डूबने के पहले 5.30 बजे - 6 बजे खाना चाहिये। उसके बाद अगर रात को भूख लगे तो दूध पीजिये। दूध के अतिरिक्त कुछ भी न लें। इसका कारण यह है की शाम को सूरज डूबने के बाद हमारे पेट में जठर स्थान में कुछ हार्मोन और रस या एंजाइम पैदा होते है जो दूध को पचाते है। इसलिए सूर्य डूबने के बाद जो चीज खाने लायक है वो दूध है। तो रात को दूध पी लीजिए। उसके बाद जितना जल्दी हो सके सो जाइये।
भोजन के बाद विश्राम के नियम: सुबह और दोपहर के भोजन के बाद 20 से 40 मिनट की झपकी लें। लेकिन शाम का खाना खाने के बाद कम से कम 500 कदम टहलना चाहिए।


Share:

कोई टिप्पणी नहीं: