द्विविवाह - Bigamy



भा० द० सं० की धारा 494 ऐसे विवाह को दण्डनीय बनाती है जो विवाह के पक्षकार की पति अथवा पत्नी के जीवित रहने के कारण शून्य है। इस प्रकार के विवाह को अंग्रेजी विधि में द्विविवाह (Bigamy) कहा जाता है। धारा 494 के अनुसार- "जो कोई पति अथवा पत्नी के जीवित होते हुए किसी ऐसी दशा में विवाह करेगा जिसमें ऐसा विवाह इस कारण से शून्य है कि वह ऐसे पति अथवा पत्नी के जीवन काल में होता है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुमनि से भी दंडनीय होगा।" इस धारा के लागू होने के लिए आवश्यक है कि विवाह करने वाले पक्षकारों के बीच पहले ही वैध रूप से विवाह सम्बन्ध विद्यमान हो तथा उसके बाद उसने किसी अन्य से विवाह कर लिया हो।

गोपाल बनाम राजस्थान राज्य, (1979) 3 S.C.C. 170 के मामले में यह कहा गया है कि यदि किसी विवाह को इस आधार पर शून्य घोषित किया जा सकता है कि उसके किसी पक्षकार ने पति अथवा पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह किया है तो इस प्रकार विवाह शून्य बनाते ही धारा 494 का प्रवर्तन प्रारम्भ हो जाता है। धारा 494 के लागू होने के लिए यह आवश्यक है कि-

  1. अभियुक्त व्यक्ति पहले से विवाहित हो,
  2. जिस व्यक्ति से अभियुक्त का विवाह हुआ था वह जीवित हो,
  3. अभियुक्त ने दूसरे व्यक्ति से पुनर्विवाह किया हो,
  4. पुनःविवाह पहली पत्नी अथवा पति के जीवन काल में किये जाने के कारण शून्य हो।

लिंगेरी ओबुलासा बनाम आई० वेंकट रेड्डी (क्रि० ला० रि० 1979 एस० सी० 439)


विवाह की वैधानिकता-धारा 494 के लागू होने के लिए यह आवश्यक है कि पक्षकारों के बीच हुआ पहला ही वैध विवाह अस्तित्व में हो अर्थात् वैध विवाह के होते हुए पति अथवा पत्नी के जीवन काल में पुनर्विवाह करने पर ही धारा 494 लागू होगी। अपवाद-धारा 494 द्वारा स्पष्ट रूप से दो अपवादों का उल्लेख किया गया है-

  1. यदि सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय ने किसी विवाह को शून्य घोषित कर दिया हो तो पक्षकारों द्वारा पति अथवा पत्नी के जीवित रहते विवाह करना अपराध नहीं है।
  2. यदि विवाह के किसी पक्षकार ने पति अथवा पत्नी के बारे में निरन्तर सात साल से कुछ भी नहीं सुना हो अर्थात् उसे उसके बारे में कुछ भी सूचना नहीं मिली हो तो ऐसे व्यक्ति द्वारा पुनः विवाह करना अपराध नहीं है।

राधिका समीना बनाम शोहबीव नगर पुलिस स्टेशन हैदराबाद (1977 Cr. L.J. 1655) के मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि यदि मुस्लिम पुरुष का विवाह विशिष्ट विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954) के तहत हुआ और यदि वह दूसरा विवाह करता है तो उसे इस धारा के तहत दोषी सिद्ध किया जा सकता है।



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