इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: एनपीए घोषित खाते के खिलाफ दीवानी वाद नहीं, जाना होगा ऋण वसूली न्यायाधिकरण



इलाहाबाद हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि किसी बैंक खाते को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) घोषित किया जाता है और उस पर सुरक्षा हित अधिनियम (SARFAESI Act, 2002) के तहत कार्यवाही शुरू हो चुकी हो, तो ऐसे मामलों में दीवानी अदालत में वाद दायर करना कानूनन वर्जित है। इसके लिए केवल ऋण वसूली न्यायाधिकरण (Debt Recovery Tribunal - DRT) ही सक्षम मंच है।
यह आदेश ओमनारायणश्री एग्रीफार्मर प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया, जिसमें कंपनी ने पंजाब नेशनल बैंक द्वारा उसके खाते को NPA घोषित किए जाने और बाद में की गई नीलामी संबंधी कार्यवाहियों को चुनौती दी थी। कंपनी ने वाणिज्यिक न्यायालय में वाद दाखिल किया था और अंतरिम स्थगन (स्टे) की मांग की थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था।

क्या था मामला?
ओमनारायणश्री एग्रीफार्मर कंपनी ने पंजाब नेशनल बैंक से व्यवसाय के लिए नकद ऋण सीमा और टर्म लोन सुविधा प्राप्त की थी। ऋण अदायगी में चूक के चलते बैंक ने जुलाई 2024 में खाते को NPA घोषित कर दिया और 6 अगस्त 2024 को SARFAESI अधिनियम की धारा 13(2) के तहत नोटिस जारी किया। इसके बाद बैंक ने संपत्ति कब्जे की कार्रवाई और नीलामी की प्रक्रिया शुरू की।
कंपनी ने इसे चुनौती देते हुए वाणिज्यिक न्यायालय में वाद दायर किया और यह दलील दी कि NPA घोषित किए जाने की वैधता पर सवाल उठाया गया है, जो कि SARFAESI अधिनियम की धारा 13(4) के अंतर्गत नहीं आता, इसलिए DRT का क्षेत्राधिकार लागू नहीं होता।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि SARFAESI अधिनियम की धारा 34 के अनुसार, जब बैंक SARFAESI कानून के तहत किसी भी प्रकार की कार्रवाई करता है — चाहे वह नोटिस हो, संपत्ति कब्जा हो या नीलामी — तो ऐसे मामलों में दीवानी अदालत को अधिकार नहीं है।
अदालत ने मार्डिया केमिकल्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2004) जैसे प्रमुख निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई मामला SARFAESI अधिनियम के अंतर्गत आता है, तो उसकी सुनवाई केवल DRT या DRAT ही कर सकते हैं।


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