काफी दिनो से चिट्ठाकारी असक्रिय रहा हूँ, गाहे बगाहे एकाध पोस्ट डाल देता था, ताकि लय बनी रहे किंतु जिस प्रकार मास्टर ब्लास्टर फार्म मे है उस प्रकार का फार्म न पाने में भी असमर्थ प्रतीत होता हूँ। आज अपनी दूसरी पारी प्रारंभ कर रहा हूँ। गाँव मे एक प्रचलित कहावत कही जाती है कि बूढ़ा बरधा हराई नही भूलता है उसी प्रकार इतने दिनो से हूँ कुछ फार्म गड़बड़ जरूर हुआ है किन्तु आशा है कि जल्द प्राप्त कर लूँगा।
हाल मे कुछ ब्लागों से पता चला कि बड़ा लोचा हो गया है, कोई किसी को खली बना रहा है तो तो कोई महाबली किन्तु खली और महाबली गले मिल कर मौज ले रहे। चिट्ठाकारी मे जब तक ही धर पटक न होती रही तब तक चैन नहीं पड़ता है। यही कारण है कि ज्यादातर पोस्ट पेट्रोल से बुझी होती है बस धांसू माचिस रूपी टिप्पणी की जरूरत है फिर देखो तमाशा फोकट का।
चिट्ठाकारी मे हर ब्लॉगर की अपनी अगल विधा है तो कोई सचिन जैसा है तो कोई गांगुली तो कोई द्रविड़ तो कोई अगैरा वगैरा की तरह अपनी उपयोगिता दिखता है। सभी का अपनी उपयोगिता है बिना ग्यारह खिलाड़ी के टीम पूरी नही होती, सचिन या सहवाग लाख शतक ठोक दे पर टीम तब तक नहीं जीतेगी जबकि खुद टीम वर्क के साथ काम न किया गया हो। उसी प्रकार चिट्ठकारी मे मै रहूँ या न रहूँ चिट्ठकारी को कोई फर्म नही पड़ा, उसी प्रकार किसी एक व्यक्ति के बल पर आज न चिट्ठाकारी चल रही है और न कभी चल पाएगा। चिट्ठाकारी एक बहता हुआ मृदुल पानी के समान है जो जितना प्रवाहित होगा उतना ही निर्मल होगा। यदि कोई इसे रोकने का प्रयास करेगा तो अपने आप इसके प्रभाव में बह जायेगा।
ब्लॉगिंग मस्ती है विचार का प्रवाह है और अपनी सोच है, मुझे तो दिल की बात लिखने में बड़ा मजा आता है काफी दिनो से दिल की बात नहीं लिखी थी आज बहुत दिनो के बाद ऐसी पोस्ट लिख रहा हूँ, दिल को सुकून मिल रहा है। कुछ लोग चिट्ठाकारी को डायरी बोलते है तो गलत नहीं है, मेरा मन में चाहे जो लिखूँ, कभी खुद के लिये तो कभी सबके लिये।
शेष फिर ......
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