संजय भाई की टिप्पणी






मैंने अपने पिछले पोस्ट में एक चित्र और कविता प्रकाशित किया था तथा इसमें संजय भाई की टिप्पणी ने मुझे आगे यह लिखने के लिये प्रेरित किया। संजय भाई ने क्या कहा आप वही जाकर देखे तो अच्छा होगा। किन्तु मैने उन्होंने जितना कहा और मैने जितना पढ़ा है उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि वे यह कहना चाह रहे है कि हिन्दू धर्म प्राचीन काल से ही अन्य धर्मों को आत्मसात करता आ रहा है, किन्तु अन्य धर्मों में हिंदू धर्म जैसा भाव नहीं है।

संजय भाई ने जो कहा वह सही है, हिन्दू धर्म ने सदैव ही सभी धर्मों के साथ मैत्री का भाव रखा, जो शांतिप्रिय धर्म तथा आक्रमणकारी धर्म आये सभी के साथ समान भाव रखा। यही कारण है कि जब भारत का संविधान बना तो भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की घोषणा की गई।

जब हम हिन्दू धर्म की अन्य धर्मों के साथ तुलना करते है तो लगता है अन्य धर्म हिन्दू धर्म की इस करुणा को उसकी कमजोरी समझते है। हिन्दू धर्म सदैव सभी धर्मों के साथ वसुधैव-कुटुम्बकम् की भावना रखता है। सभी धर्मों की अच्छाइयों को आत्मसात किया है।

जब हम भारत मे इस परिवेश को देखते है तो अत्यंत पीड़ा होती है। अन्य धर्म के अनुयायी धन को लोभ देकर मतान्तरण करवाते है। अभी हाल मे ही एक पादरी द्वारा धन ले-दे कर ईसाई धर्म की मान्यता देने का मामला सामने आया है।

जब हम भारत के आदिवासी इलाकों मे जाते है तो देखने को मिलता है कि ईसाई मिशनरी द्वारा किस प्रकार भोले भाले हिंदुओं के सामने हिन्दू देवी देवताओं को अपमानित कर ईसाई धर्म को श्रेष्ठ बताने को प्रयास करते है, और धन तथा अनय ह‍थगन्‍डों से धर्मान्‍तरण करने के प्रयास बन्‍द होगें। या कि पूर्ण रूप से धर्मांतरण बन्‍द हो, जबकि स्वेच्छा से किया जाये।

हिन्दू धर्म तो सदैव ही कह रहा है वसुधैव-कुटुम्बकम पर ईसाई धर्म कब कहेगा और अपने अनर्गल प्रयास बंद करेगा।

संजय भाई आपका नामोल्लेख बिना पूर्व अनुमति के किया है , अगर आपको खराब लगे तो मै आपका नाम हटाने या पूरा लेख हटाने को तैयार हूँ।


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एक तरफ भगवान श्री कृष्‍ण तो दूसरी तरफ ईसा



आज मै अनत:जाल ( Internet ) पर विचरण कर रहा था, एक चित्र देखने को मिला, और देखते ही देखते एक कविता भी बन गई। चित्र और कविता दोनों आपके सम्मुख है बताईये कैसी लगी? आप कविता की बुराई कर सकते है पर चित्र अपने आप मे अद्वितीय है।


एक तरफ भगवान श्री कृष्‍ण तो दूसरी तरफ ईसा

एक तरफ योगेश्‍वर है,
तो एक तरफ है ईसा।
दोनों मे नही कोई अन्‍तर
दोनों ही पूजे जाते है।
हो सकती है पूजा पद्धति अलग अलग,
पूजते है केवल मानव।
तो क्‍यों सब बन जाते है,
इस ईश्‍वर के कारण दानव।


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