अमर बलिदानी बालक वीर हकीकत राय



अमर बलिदानी बालक वीर हकीकत राय
वीर हकीकत राय
शाहजहाँ के शासन काल की बात है। पंजाब के सियालकोट मे सन् 1719 में जन्में वीर हकीकत राय जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। यह बालक 4-5 वर्ष की आयु में ही इतिहास तथा संस्कृत आदि विषय का पर्याप्त अध्ययन कर लिया था। सियालकोट के एक छोटे-से मदरसे में हकीकत राय पढ़ता था। एक लंबी दाढ़ी वाले मौलवी साहब वहाँ बच्चों को पढ़ाया करते थे। एक दिन मौलवी कहीं बाहर गये तो उनकी अनुपस्थिति में बच्चे खेलने-कूदने लगे। हकीकत राय इस खेल-कूद में सम्मिलित नहीं हुआ, इस पर दूसरे बच्चों ने उसे छेड़ा। एक मुसलमान बच्चे ने हकीकत राय को गाली दी, दूसरे ने सारे हिंदुओं को और तीसरे ने हिंदुओं के देवी-देवताओं को- भगवती दुर्गा को।
इस पर हकीकत चुप न रह सका। वह बोल उठा, ‘अगर मैं भी बदले में यही शब्द कहूँ तो तुम बुरा तो नहीं मानोगे?’ एक बच्चे ने कहा, ‘तो क्या तू ऐसा भी कर सकता है?’ हकीकत राय ने कहा, ‘क्यों नहीं? मुझे भी तो भगवान ने जुबान दी है।’ दूसरा बच्चा बोला, ‘तो कहकर देख।’ और हकीकत राय ने वही शब्द दुहरा दिये। आखिर बच्चा ही तो था और साथ ही अपने धर्म का पक्का भी। चारों ओर सन्नाटा छा गया। मौलवी साहब आये तो मुसलमान बच्चों ने नमक-मिर्च लगाकर सारी घटना उन्हें सुनाई। मौलवी साहब ने आँखें फाड़ते हुए पूछा, ‘हकीकत! क्या सचमुच ही तूने यह सब कुछ कहा है?’ हकीकत ने दृढ़ता से उत्तर दिया, ‘हाँ, लेकिन उससे पहले इन सबने भी तो मेरी देवी भगवती के लिये वही सब कुछ कहा था।’ मौलवी साहब ने इस्लाम की तौहीन का यह मामला सियालकोट के हाकिम अमीर बेग की अदालत में भेज दिया। वहाँ भी हकीकत राय ने सब कुछ स्वीकार कर लिया। हाकिम ने मुल्लाओं की सहमति ली। उन्होंने बताया कि इस्लाम की तौहीन करने वाले के लिये शहर में मौत की सजा लिखी है।’
Haqiqat Rai
हकीकत राय का बूढ़ा बाप रो पड़ा। उसकी माँ बिलखने लगी। उसकी नन्ही-सी पत्नी बेहोश होकर गिर पड़ी। हकीकत राय की अवस्था उस समय मात्र 13 वर्ष की थी। हाकिम के निर्णय के विरूद्ध लाहौर में अपील भी की गई, वहाँ से भी वही फैसला बहाल रहा। हकीकत जेल की सलाखों के पीछे बैठा था। वह निश्चिंत था, गंभीर था और प्रसन्न भी। मौत का फैसला सुनकर उसके हृदय में घबराहट नहीं थी।
काजी, मुल्ला और उसके बूढ़े माँ-बाप सलाखों के बाहर आकर खड़े हो गये। काजी ने कहा, ‘हकीकत! अगर तू मुसलमान बन जाये तो मरने से बच सकता है।’
हकीकत राय का चेहरा तमतमा उठा। वह कुछ बोलना ही चाहता था कि उसके बूढ़े पिता भागमल हिचकियाँ लेते हुए कह उठे, ‘हाँ-हाँ बेटा, मुसलमान बन जा, अगर तू जीवित रहेगा तो हमारी आंखें तुझे देखकर ठंडी तो होती रहेंगी।’
हकीकत ने कहा, ‘आप भी यही कहने लगे, पिताजी! तो क्या मैं मुसलमान बन जाने पर फिर कभी नहीं मरूँगा? और अगर एक-न-एक दिन मरना ही है तो फिर दो दिन के जीवन के लिये धर्म छोड़ने से क्या लाभ?’ काजी ने कहा, ‘बड़ा लाभ होगा तुम्हें हकीकत।’ शाही दरबार में इज्जत, बेशुमार दौलत और..........।’
वीर हकीकत राय बलिदान दिवस
हकीकत राय हँस पड़ा, ‘बस-बस इतना ही? इतने भर के लिए ही मैं अपना धर्म छोड़ दूँ, काजी साहब? धर्म कभी बदला नहीं जाता, वह तो अटल होता है। जीवन भर के लिए वह हमारे साथ रहता है और मरने पर भी हमारे साथ ही जाता है।’
माता पिता और सम्बन्धियों ने बहुत समझाया, किंतु हकीकत राय टस-से-मस न हुआ। इस्लाम का अपमान करने के अपराध में हकीकत राय का सिर काट देने का आयोजन खुले मैदान में किया गया था। मैदान हिंदू और मुसलमान स्त्री-पुरुषों से खचाखच भरा हुआ था। जिस समय उस मैदान में हकीकत राय लाया गया, वह तलवारों की छाया में था, हथकड़ी-बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, मुसलमानी फौजों से घिरा हुआ था। काजी ने एक बार फिर उससे मुसलमान हो जाने के लिये कहा। उसने फिर उसी दृढ़ता से उत्तर दिया, ‘मैं धर्म नहीं छोड़ सकता, दुनिया छोड़ सकता हूँ।’
मुल्ला ने काजी को संकेत किया और काजी ने जल्लाद को। जल्लाद ने तलवार उठाई और उस फूल जैसे बच्चे को अपनी तलवार के नीचे देखा तो उसका पत्थर-जैसा हृदय भी पिघल गया। तलवार उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ी।
काजी और मुल्लाओं की त्योरियां चढ़ गयी। सारी भीड़ में हलचल-सी मच गई। किंतु एक क्षण बाद ही सबने देखा कि हकीकत राय स्वयं तलवार उठाकर जल्लाद के हाथों में दे रहा है। हकीकत ने तलवार देकर कहा, ‘घबराओ नहीं, जल्लाद! लो, अपने कर्तव्य का पालन करो।’ जल्लाद ने तलवार थामी और हकीकत की गर्दन पर दे मारी। एक छोटी-सी किंतु तीखी रक्त की धार पृथ्वी पर बह निकली।

~ वीर हकीकत राय की रागनी ~ वीर हकीकत राय बलिदान दिवस ~ वीर हकीकत की कहानी ~ हकीकत राय का जीवन परिचय ~ धर्मवीर हकीकत राय


Share:

एक पत्र - संघ और भ्रन्तियॉं



आज कल संघ के सम्बन्ध में काफी चर्चा चल रही है, ऐसे में बड़े भैया की डायरी में रखे एक पत्र को यहां यथावत रखूँगा। जो संघ के बारे मे संक्षिप्त कहते हुए भी बहुत कुछ कहता है।
प्रिय मित्र,
संघ क्या है यह समझना और समझना दोनों ही कठिन है, कोई इन्‍हे फासीवाद कहता है तो कोई साम्प्रदायिकता फैलाने वाला संगठन। जितने प्रकार के लोग मिलते है उतनी प्रकार की तुलानाऐ की जाती है।ऐसे तुलना करने वाले किस प्रकार के थर्मामीटर का प्रयोग करते है यह विचार करने प्रश्‍न है। यदि वातावरण की आर्द्रता मापने वाला है तो वह शरीर के ताप को कैसे सही बतायेगा, यदि कोई चाहे कि ट्रकों की माप करने वाले कांटे से एक किलो चीनी को कैसे तौला जा सकता है।
इसी प्रकार कुछ लोग पाँच किलो चीनी तौलने वाले तराजू से ट्रक को तौलने का प्रयास कर रहे है। कई वर्षो से संघ कार्य करने वाले लोगों से पूछता हूं तो पाता हूँ कि उनके पास इस प्रश्न की जानकारी नहीं है कि संघ क्या ? किसी काम से मध्यप्रदेश के सतना जिले में जाना हुआ, वर्षा के दिन थे, एक संघी भाई से भेंट हुई, जिज्ञासा वश उनसे मैंने यही दो प्रश्‍न किये--
संघ क्या है ?
आप मुसलमानों के सम्‍बन्‍ध मे इतना विद्वेश क्‍यों फैलाते है?
मैने जिनसे प्रश्न किया वे इंजीनियरिंग कॉलेज मे प्राध्यापक थे। पहले प्रश्‍न के उत्‍तर मे वे कहते है- मै भी करीब 10 वर्षों से इसी के शोध मे हूँ। दूसरे प्रश्‍न का उत्‍तर वे मंद मंद मुस्कुराहट के साथ टाल गये। मुझे लगा कि प्रोफेसर साहब मेरे प्रश्‍न से बचना चाहते है, और मै विजेता सा भाव लिये प्रसन्न हो चुप रह गया।
वहॉं रहने दौरान ही प्रकृति का प्रकोप बरपा भयंकर वर्षा हुई। मै अपने कमरे में बैठा वर्षा का आनंद ले रहा था। तभी अचानक प्रोफेसर साहब आये और कहने लगे मेरे साथ चलो। उनके कहने में कुछ जल्दी पन का भाव था अत: मैने भी बिना प्रश्न किए तहमत (लुंगी) उतार कर पैंट शर्ट पहन, छाता लेकर मै उनके साथ हो दिया। रास्ते मे साथ चलते हुए उन्होंने बताया कि कई इलाकों मे बाढ़ आई है, वहां आपकी सहायता की जरूरत है। यह वाक्‍या लगभग सुबह के पांच बजे का था। स्थान विशेष पर पहुंचने पर पता चला कि यहां पर सायंकाल से ही सहायता चालू है।" जो मेरे आनंद का विषय था कि वह किसी की मृत्यु और तबाही का कारण बनी हुई थी", जिनके कार्य व्यवहार को मै गालियां दिया करता था वे ही उन डूबते के तिनके का सहारा बने थे। बुद्धि के तर्कों का माहिर मै किन्कर्तव्यविमुढ बना सब कुछ देख रहा था। मुझे क्‍या करना चाहिये यह मेरी समझ मे नही आ रहा था? जिन्हे मै न जाने क्‍या क्‍या कहता था वो किसी माहिर खिलाड़ी की भांति इस विपदा से भी खेल रहे थे, लोगों को काल के गाल से निकालने का काम कर रहे थे।
मुझे एक शिविर मे ले लाये जाने वाले लोगों के नामों की सूची बनाने तथा किसी की पूछताछ मे सहायता करने को कहा गया था। मेरे द्वारा बनाई गई सूची और वहां काम करने वाले लोगों के भेदभाव रहित काम ने मुझे मेरे दूसरे प्रश्न का उत्तर दे रहे थे।
आपका
...................................


Share: