अनुगूँज - ये बाते तब पर भी न बदलेगीं।



हिन्‍दुस्‍तान अमेरिका बन जायेगा तो कोई बड़ी बात न होगी क्योंकि दिन प्रतिदिन भारत अमेरिकी नक्शेकदम पर चल ही रहा है। नारी से लेकर खिलाड़ी तक सभी अमेरिकी रंग में रगते दिख रहें। जहां नारी 8 गज की साड़ी चाहती थी वही 2 गज मे ही उसका काम चल जाता है और फिर कहती है कि मुझे अंग प्रदर्शन से परहेज नही है, जब देने वाले ने दिया है तो दिखाऊँ क्‍यो न? अर्थात कुछ स्त्री जाति का मानना है कि ईश्वर ने उन्हें अंग-प्रदर्शन के लिये है। यह वाहियात सोच अमेरिकी ही हो सकती है जबकि भारतीय मानस की सोच तो यह कि ईश्वर ने अगर अंग दिया है जो उसे ढकने के लिये वस्त्र भी।

India and USA

जितने मुँह उतनी बातें इसलिए मूल विषय पर आना जरूरी है। भारत चाहे अमेरिका बन जाये या बन जाये इराक-ईरान किन्तु कुछ बातें सदैव अपरिवर्तित रहेगी। मै उन्ही पर चर्चा करना पसंद करूँगा।

  1. अगर हिन्‍दोस्‍तान अमेरिका बन जायेगा तो भी हिन्‍दोस्‍तान, हिन्‍दोस्‍तान ही रहेगा। कारण साफ है कि कुत्ते की दुम कितनी भी सीधी की जाए वो सीधी होने वाली नहीं है।
  2. सबसे बड़ी समस्या आएगी कि नेताओं का क्या होगा और उनकी मक्कारी का ? क्योंकि यह जाति हमारे देश में काफी तेजी से बढ़ रही है तब पर भी आरक्षण की मांग की जा रही है। भारत के अमेरिकामय हो जाने पर नेताओं की नीयत में बदलाव कम ही संभव है या कह सकते है कि असम्‍भव है।
  3. शिक्षा में आरक्षण भी अपरिवर्तित रहेगा। जब भारत परतन्‍त्र से स्वतंत्र हुआ तब से लेकर आरक्षण सेठ के ब्याज की भांति बढ़ता जा रहा है। भारत में आरक्षण इसलिये लागू किया गया कि सभी को समानता दिलाई जाएगी। किंतु समानता दिलाने के नाम पर एक अच्‍छे तथा परिश्रमी वर्ग को ठगा जा रहा है। जहाँ एक विद्यार्थी 121 अंक प्राप्त करके भी उच्‍च शिक्षा के वंचित रह जाता है वही एक छात्र जो 50 से लेकर -50 अंक पाने पर भी उच्‍च शिक्षा ग्रहण करने का पात्र होता है। यह एक प्रकार से हास्‍यास्‍पद होगा कि भारत के तत्कालीन उपराष्‍ट्रपति की पुत्री भी आरक्षण का लाभ लेती है। वोटों के खेल के नाम पर आरक्षण रूपी गेंद को तब तक लात मारा जाएगा जब तक कि क्रांति का उद्गार न होगा।
  4. भारत आज सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका दूसरा, किन्तु हम आज भी अमेरिका जैसा बनने की कोशिश कर रहे है। हमारे देश में के नागरिक अपने अधिकार के बारे में तो जानते है कि कर्तव्य से अनभिज्ञ रहते है। भारत को अमेरिका बनने के बाद भी यह कायम रहेगा।
  5. हम भारत में रहकर भारत को अमेरिका बनाने की धारणा भी भारतीयों में बरकरार रहेगी। यह शर्म की बात है, जहां हमें सूरज बनकर पूरे विश्व को रोशनी दिया है वही हम सूरज को दिया दिखाने अर्थात भारत को अमेरिका बनने की बात कर रहे है। यह भी मानसिकता भारतीयों में नहीं बदलेगी।



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स्वामी विवेकानंद के 125 अनमोल वचन



125 Quotes of Swami Vivekananda in Hindi
स्वामी विवेकानन्द के 125 अनमोल विचार
Swami Vivekananda
कलकत्ता में 12 जनवरी 1863 को स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ। युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने विवेकानंद ने दिए अनमोल विचार- स्वामी विवेकानंद ने कहा है
  1. पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता और एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान।' ध्यान के द्वारा ही हम इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। शम, दम और तितिक्षा अर्थात मन को रोकना, इन्द्रियों को रोकने का बल, कष्ट सहने की शक्ति और चित्त की शुद्धि तथा एकाग्रता को बनाए रखने में ध्यान बहुत सहायक होता है।
  2. मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं–निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।
  3. जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।
  4. जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है–अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है।
  5. आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो।
  6. मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है? देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते, इसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते। सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता है, वही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता पहुँचाता है। इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात् मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं।
  7. हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।
  8. मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है।
  9. पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो।
  10. सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्र- सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।
  11. संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना।"
  12. उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये.
  13. उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
  14. ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है!
  15. जिस तरह से विभिन्न स्त्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है।
  16. किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो जरूर बढ़ाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िए, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिए, और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दीजिए।
  17. कभी मत सोचिए कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।
  18. अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है।
  19. एक शब्द में, यह आदर्श है कि तुम परमात्मा हो।
  20. उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
  21. हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।
  22. जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
  23. सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
  24. विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
  25. इस दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के हैं, न कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है।
  26. जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पे विश्वास नहीं कर सकते।
  27. सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
  28. विश्व एक व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
  29. जिस दिन आपके सामने कोई समस्या न आये – आप यकीन कर सकते है की आप गलत रास्ते पर सफर कर रहे है।
  30. यह जीवन अल्पकालीन है, संसार की विलासिता क्षणिक है, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते है, वे वास्तव में जीते है।
  31. एक शब्द में, यह आदर्श है कि तुम परमात्मा हो।
  32. सुख और दुःख सिक्के के दो पहलु है। सुख जब मनुष्य के पास आता है तो दुःख का मुकुट पहन कर आता है।
  33. जीवन का रहस्य भोग में नहीं अनुभव के द्वारा शिक्षा प्राप्ति में है।
  34. विश्व में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते है, क्योंकि उनमें समय पर साहस का संचार नहीं हो पाता। वे भयभीत हो उठते है।
  35. किसी मकसद के लिए खड़े हो तो एक पेड़ की तरह, गिरो तो बीज की तरह। ताकि दुबारा उगकर उसी मकसद के लिए जंग कर सको।
  36. पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बँधाये दूर हो जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं की महान कार्य सभी धीरे -धीरे होते है।
  37. लगातार पवित्र विचार करते रहे, बुरे संस्कारों को दबाने के लिए एकमात्र समाधान यही है।
  38. जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी है तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को गद्दार मानता हुँ जो उनके बल पर शिक्षित हुआ और अब वह उसकी और ध्यान नही देता।
  39. हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिसमें चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति बढ़े, बुद्धि का विकास हो और मनुष्य अपने पैर पर खड़ा हो सके।
  40. मन की एकाग्रता ही समग्र ज्ञान है।
  41. देश की स्त्रियां विद्या, बुद्धि अर्जित करें, यह मैं ह्रदय से चाहता हूँ, लेकिन पवित्रता की बलि देकर यदि यह करना पड़े तो कदापि नहीं।
  42. यही दुनिया है! यदि तुम किसी का उपकार करो तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यो ही तुम उस कार्य को बंद कर दो, वे तुरंत तुम्हे बदमाश साबित करने में नहीं हिचकिचाएंगे।
  43. जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मर्यादा छोड़कर किनारों को छोड़ अथवा तोड़ जाते है, लेकिन सज्जन पुरुष प्रलय के समान भयंकर आपत्ति एवं विपत्ति में भी अपनी मर्यादा नहीं बदलते।
  44. दुनिया मज़ाक करें या तिरस्कार, उसकी परवाह किये बिना मनुष्य को अपना कर्तव्य करते रहना चाहिये।
  45. 83डर निर्बलता की निशानी है।
  46. जिंदगी का रास्ता बना बनाया नहीं मिलता है, स्वयं को बनाना पड़ता है, जिसने जैसा मार्ग बनाया उसे वैसी ही मंज़िल मिलती है।
  47. शुभ एवं स्वस्थ विचारो वाला ही सम्पूर्ण स्वस्थ प्राणी है।
  48. कर्म का सिद्धांत कहता है – ‘जैसा कर्म वैसा फल’। आज का प्रारब्ध पुरुषार्थ पर अवलम्बित है। ‘आप ही अपने भाग्य विधाता है’। यह बात ध्यान में रखकर कठोर परिश्रम पुरुषार्थ में लग जाना चाहिये।
  49. इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है क्योंकि सफलता का आनंद उठाने के लिए ये जरूरी है।
  50. जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो – उससे लोगों को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति बुद्धिमान मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्र में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो – वे जितना शीघ्र बह जाए उतना अच्छा ही है।
  51. खड़े हो जाओ, हिम्मतवान बनो, ताकतवर बन जाओ, सब जवाबदारियाँ अपने सिर पर ओढ़ लो, और समझो की अपने नसीब के रचयिता आप खुद हो।
  52. जिंदगी बहुत छोटी है, दुनिया में किसी भी चीज़ का घमंड अस्थाई है पर जीवन केवल वही जी रहा है जो दूसरों के लिए जी रहा है, बाकी सभी जीवित से अधिक मृत है।
  53. आज अपने देश को आवश्यकता है – लोहे के समान मांसपेशियों और वज्र के समान स्नायुओं की। हम बहुत दिनों तक रो चुके, अब और रोने की आवश्यकता नहीं, अब अपने पैरों पर खड़े हो और मनुष्य बनो।
  54. जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सके, चरित्र गठन कर सके और विचारो का सामंजस्य कर सके। वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है।
  55. एक नायक बनो, और सदैव कहो – “मुझे कोई डर नहीं है”।
  56. आपको अपने अंदर से बाहर की तरफ विकसित होना पड़ेगा। कोई भी आपको यह नहीं सीखा सकता, और न ही कोई आपको आध्यात्मिक बन सकता है। आपकी अपनी अंतरात्मा के अलावा आपका कोई शिक्षक नहीं है।
  57. हमारा कर्तव्य है की हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीने के संघर्ष में प्रोत्साहित करें, और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लेन का प्रयास करें।
  58. हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें; और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें।
  59. इस दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के हैं, ना कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है।
  60. एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो । अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो । यही सफल होने का तरीका है।
  61. तुम फ़ुटबाल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे बजाये गीता का अध्ययन करने के।
  62. कभी भी यह न सोचे की आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है।
  63. भय और अधूरी इच्छाएं ही समस्त दुःखों का मूल है।
  64. भगवान की एक परम प्रिय के रूप में पूजा की जानी चाहिए, इस या अगले जीवन की सभी चीजों से बढ़कर।
  65. यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।
  66. हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा, और परमात्मा उसमें बसेंगे।
  67. बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
  68. जिस क्षण मैंने यह जान लिया कि भगवान हर एक मानव शरीर रुपी मंदिर में विराजमान हैं, जिस क्षण मैं हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया और उसके भीतर भगवान को देखने लगा – उसी क्षण मैं बन्धनों से मुक्त हूँ, हर वो चीज जो बांधती है नष्ट हो गयी, और मैं स्वतंत्र हूँ।
  69. वेदान्त कोई पाप नहीं जानता, वो केवल त्रुटी जानता है। और वेदान्त कहता है कि सबसे बड़ी त्रुटि यह कहना है कि तुम कमजोर हो, तुम पापी हो, एक तुच्छ प्राणी हो, और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है और तुम ये वो नहीं कर सकते।
  70. जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
  71. भला हम भगवान को खोजने कहाँ जा सकते हैं अगर उसे अपने ह्रदय और हर एक जीवित प्राणी में नहीं देख सकते।
  72. तुम्हे अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होना है। कोई तुम्हे पढ़ा नहीं सकता, कोई तुम्हे आध्यात्मिक नहीं बना सकता । तुम्हारी आत्मा के आलावा कोई और गुरु नहीं है।
  73. पहले हर अच्छी बात का मज़ाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है, और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
  74. 27दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
  75. किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।
  76. स्वतंत्र होने का साहस करो। जहाँ तक तुम्हारे विचार जाते हैं वहां तक जाने का साहस करो, और उन्हें अपने जीवन में उतारने का साहस करो।
  77. किसी चीज से डरो मत। तुम अद्भुत काम करोगे। यह निर्भयता ही है जो क्षण भर में परम आनंद लाती है।
  78. प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है। इसलिए प्रेम जीवन का सिद्धांत है। वह जो प्रेम करता है जीता है, वह जो स्वार्थी है मर रहा है। इसलिए प्रेम के लिए प्रेम करो, क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है, वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए सांस लेते हो।
  79. सबसे बड़ा धर्म है अपने स्वभाव के प्रति सच्चे होना। स्वयं पर विश्वास करो।
  80. सच्ची सफलता और आनंद का सबसे बड़ा रहस्य यह है वह पुरुष या स्त्री जो बदले में कुछ नहीं मांगता, पूर्ण रूप से निस्स्वार्थ व्यक्ति, सबसे सफल है।
  81. जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है; यह अग्नि का दोष नहीं है।
  82. बस वही जीते हैं,जो दूसरों के लिए जीते हैं।
  83. शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है । विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है । प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
  84. हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं। हवा बह रही है; वो जहाज जिनके पाल खुले हैं, इससे टकराते हैं, और अपनी दिशा में आगे बढ़ते हैं, पर जिनके पाल बंधे हैं हवा को नहीं पकड़ पाते। क्या यह हवा की गलती है ?…।।हम खुद अपना भाग्य बनाते हैं।
  85. ना खोजो ना बचो, जो आता है ले लो।
  86. शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी आपको कमजोर बनाता है –, उसे ज़हर की तरह त्याग दो।
  87. एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
  88. कुछ मत पूछो, बदले में कुछ मत मांगो, जो देना है वो दो; वो तुम तक वापस आएगा, पर उसके बारे में अभी मत सोचो।
  89. जो तुम सोचते हो वो हो जाओगे। यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तुम कमजोर हो जाओगे; अगर खुद को ताकतवर सोचते हो, तुम ताकतवर हो जाओगे।
  90. मनुष्य की सेवा करो। भगवान की सेवा करो।
  91. मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं। जब वो केन्द्रित होती हैं; चमक उठती हैं।
  92. आकांक्षा, अज्ञानता, और असमानता – यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं।
  93. यह भगवान से प्रेम का बंधन वास्तव में ऐसा है जो आत्मा को बांधता नहीं है बल्कि प्रभावी ढंग से उसके सारे बंधन तोड़ देता है।
  94. कुछ सच्चे, ईमानदार और ऊर्जावान पुरुष और महिलाएं; जितना कोई भीड़ एक सदी में कर सकती है उससे अधिक एक वर्ष में कर सकते हैं।
  95. जब लोग तुम्हें गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो, तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।
  96. खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
  97. धन्य हैं वो लोग जिनके शरीर दूसरों की सेवा करने में नष्ट हो जाते हैं।
  98. श्री रामकृष्ण कहा करते थे,” जब तक मैं जीवित हूँ, तब तक मैं सीखता हूँ ”। वह व्यक्ति या वह समाज जिसके पास सीखने को कुछ नहीं है वह पहले से ही मौत के जबड़े में है।
  99. जीवन का रहस्य केवल आनंद नहीं है बल्कि अनुभव के माध्यम से सीखना है।
  100. कामनाएं समुद्र की भांति अतृप्त है, पूर्ति का प्रयास करने पर उनका कोलाहल और बढ़ता है।
  101. स्त्रियों की स्थिति में सुधार न होने तक विश्व के कल्याण का कोई भी मार्ग नहीं है।
  102. भय ही पतन और पाप का मुख्य कारण है।
  103. आज्ञा देने की क्षमता प्राप्त करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति को आज्ञा का पालन करना सीखना चाहिए।
  104. प्रसन्नता अनमोल खजाना है छोटी -छोटी बातों पर उसे लूटने न दे।
  105. जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी।
  106. जगत को जिस वस्तु की आवश्यकता होती है वह है चरित्र। संसार को ऐसे लोग चाहिए जिनका जीवन स्वार्थहीन ज्वलंत प्रेम का उदाहरण है। वह प्रेम एक -एक शब्द को वज्र के समान प्रतिभाशाली बना देगा।
  107. हम भले ही पुराने सड़े घाव को स्वर्ण से ढक कर रखने की चेष्टा करें, एक दिन ऐसा आएगा जब वह स्वर्ण वस्त्र खिसक जायेगा और वह घाव अत्यंत वीभत्स रूप में आँखों के सामने प्रकट हो जायेगा।
  108. जब तक लोग एक ही प्रकार के ध्येय का अनुभव नहीं करेंगे, तब तक वे एकसूत्र से आबद्ध नही हो सकते। जब तक ध्येय एक न हो, तब तक सभा, समिति और वक्तृता से साधारण लोगो एक नहीं कर सकता।
  109. यदि उपनिषदों से बम की तरह आने वाला और बम गोले की तरह अज्ञान के समूह पर बरसने वाला कोई शब्द है तो वह है ‘निर्भयता’
  110. अगर आप ईश्वर को अपने भीतर और दूसरे वन्य जीवों में नहीं देख पाते, तो आप ईश्वर को कही नहीं पा सकते।
  111. आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी और उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान नहीं बन सकता।
  112. तुम्हारे ऊपर जो प्रकाश है, उसे पाने का एक ही साधन है – तुम अपने भीतर का आध्यात्मिक दीप जलाओ, पाप ऒर अपवित्रता स्वयं नष्ट हो जायेगी। तुम अपनी आत्मा के उददात रूप का ही चिंतन करो।
  113. संभव की सीमा जानने केवल एक ही तरीका है असम्भव से आगे निकल जाना।
  114. स्वयं में बहुत सी कमियों के बावजूद अगर में स्वयं से प्रेम कर सकता हुँ तो दूसरों में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे घृणा कैसे कर सकता हुँ।
  115. जन्म, व्याधि, जरा और मृत्यु ये तो केवल आनुषंगिक है, जीवन में यह अनिवार्य है, इसलिये यह एक स्वाभाविक घटना है।
  116. हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा, और परमात्मा उसमे बसेंगे।
  117. उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
  118. ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है!
  119. जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है।
  120. किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।
  121. कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।
  122. अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करें, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है।
  123. जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिये, नहीं तो लोगो का विश्वास उठ जाता है।
  124. उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
  125. हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।

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आज के समय में ग्राहकों को कुछ मुफ्त देने का चलन बढ़ गया है। मसलन एक के साथ एक मुफ्त, लेकिन बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने सभी मल्टीनेशनल और नेशनल कंपनियों को अपने उत्पादों पर ज्यादा मुफ्त देने की होड़ लगी है। कुछ दिन पहले दूल्हा घर का वैवाहिक विज्ञापन आया था। जिसमें एक सूट के साथ एक सूट, बच्चे का सूट, और मेहंदी लगाना इसके अलावा भी साली के लिए एक कलाई घड़ी भी मुफ्त थी। यानी अब बाई वन गेट फॉर फोर फ्री का जमाना आ गया है। एक के साथ एक का युग जा रहा है। अब एक साथ दो या दो के साथ चार फ्री का जमाना आ गया है। आश्चर्य की बात तो तब होगी जब हमें एक के साथ दो-चार नहीं बल्कि इक्कीस मुफ्त मिलेगा। मतलब सीधे-सीधे 21 वस्तुओं का इकट्ठा फायदा होगा। यह बात अब सच होने जा रही है। अब लुभावने के नियम लागू हो चुके हैं। विदेश से समें अव्वल दर्जे के घोटाले किये है। बाद में यह भी सुना जा सकता है कि गेहूं घोटाला भी हुआ है। तो क्या होगा? इसकी उच्चस्तरीय जांच होगी फिर निष्कर्ष यही निकलेगा कि सरकार ने एक के साथ इक्कीस मुफ्त लिया था इसलिए `एक´ का तो पता नहीं पर `इक्कीस´ तो हमारे खेतों में लहलहा रहें है। तथा किसान उनसे अपरिचित की तरह मिलते हुए कहते है कि “अतिथि देवो भव:।“

इसलिए अब मुफ्त का चलन बढ़ने के साथ ही हमारी आवश्यक देशी चीजों उत्पादित करने की जरूरत नहीं, किसान को भी मुफ्त में खरपतवार मिल रहें है। और सरकार की उदारीकरण नीति को फायदा हो रहा जिसमें हमारे यहाँ कोई भी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां आये और चाहे उधार बेचे या एक से इक्कीस नहीं बयालीस मुफ्त में दे। देश में ग्राहकों की कमी नहीं है क्योंकि सरकार भी एक `अच्छा ग्राहक´ बन गया है जिसे `सस्ता´ और आयात कीजिए और एक के साथ 21 वस्तुएं बिल्कुल मुफ्त पाइये।

buy one get one free

एक खबर के मुताबिक भारत अमेरिका से 50 लाख टन गेंहूँ आयात करने जा रहा है। इस गेंहूँ की खासियत के तौर पर इस आयात किया जा रहा है। पहला यह कि हमारे देश में गेंहूँ के दाम 750 से 1100 रूपये कुन्तल यानि `सस्ता´ है। दूसरा इसके साथ हमें इक्कीस प्रकार के खरपतवार बिल्कुल मुफ्त मिल रहें है। यह खरपतवार हमारे देश के उत्पादन वाली जमींनों पर राज करेंगे साथ ही हम लोगों के शरीर में कैंसर जैसे विभिन्न प्रकार के रोग पैदा करते धन्य बनाकर मोक्ष दिलाएंगे।

इससे पहले 1984 में भी हमारी सरकार ने `कांग्रेस घास´ खरीदी थी जो आज हमारे देश के काफी हिस्से पर बखूबी राज कर रही है। ऑस्ट्रेलिया ने पिछले वर्ष हमे एक के साथ 14 खरपतवार मुफ्त में दिये थे। हमारी सरकार को यह फायदेमंद साबित नहीं हुआ इसलिए इस बार अमेरिका से 14 के बदले 21 मुफ्त के आधार पर लेना ज्यादा अच्छा लगा।

बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने हमारी कमर तोड़ दी तभी हम अपने किसानों को 750 रूपये के साथ 100 रूपये ही मुफ्त दिये है। अच्छे ब्रांड की कीमत ज्यादा कम नहीं होती। देश की बाजार पर सभी अच्छी कंपनियों की पकड़ बन गयी है। अमेरिका द्वारा दिये गये मुफ्त खरपतवार हमारे साथ कदम से कदम मिलाकर चलेंगे। फिर जब पता चलेगा तो उसको निकालने के किसानों के साथ सरकार को आजादी की तरह आन्दोलन छेड़ना पड़ेगा। इसका हल भी उन्हीं के पास रहेगा अर्थात दवा भी उन्हीं की रहेगी। अब `दर्द भी तुम दो, दवा भी तुम दो´ तब दर्द के बाद दवा मुफ्त नहीं मिलेगी बल्कि इसको आयात करने के लिए अच्छी कीमत अदा करनी पड़ेगी। यह दवा खरपतवार के साथ हमारी ऊर्जावान भूमि को नष्ट कर देगी। अर्थात दवा ऐसी जो खून चूस कर बुखार ठीक करती हो।

इस मुफ्त की चीजों मे वाइल्ड गार्लिक, वेस्टर्न रैंग वीड, लेैटाना, ज्लेरियस के साथ ही सबसे अधिक खतरनाक ब्रोमस रिजीडस और ब्रोमन सरेजस है जो हमारे लहलहाते खेतों में अपनी छाप बहुत तेजी से छोड़ते है। वैसे भी हमारे यहां विदेशी उत्पाद काफी पसंद किया जाता है। चाहे वह क्रिकेट का कोच हो या फिर अन्य वस्तुएं। हमें आजादी के उनकी कमी हमेशा खलती रहती है।

हमने विदेशी प्रोडक्ट के साथ उनकी संस्कृति भी मुफ्त में ले ली, और जो पूरे देश में अपनी गहरी पैठ बना ली है। इस आयात के पीछे `घोटाले´ का भी मकसद हो सकता है, क्योंकि हमारे देश में `घोटाला परियोजना´ को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे पहले चाहे चारा घोटाला, तेल घोटाला या फिर स्टांप घोटाला रहा हो सभी में अव्वल दर्जे के घोटाले किये है। बाद में यह भी सुना जा सकता है कि गेहूं घोटाला भी हुआ है। तो क्या होगा? इसकी उच्चस्तरीय जांच होगी !



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