एक और सच



आये दिन देश में मुस्लिमों की दशा को लेकर आरक्षण का खेल खेला जाता है और इस खेल में पिसता है बहुसंख्यक वर्ग का अधिकार। आज ये आंकड़े अपने आप में बहुत कुछ बायन कर रहे है कि देश की वर्तमान स्थिति क्या है? मुस्लिमों की संख्या में वृद्धि का दो कारण है कि उनकी धार्मिक रूढ़िवादिता तथा दूसरी है घुसपैठ अगर इन दोनों विषयों से निपट लिया जाये तो निश्चित रूप से मुस्लिमों को देशा की मुख्‍य धारा से जुड़ने से कोई रोक नही सकता है। इन आंकड़ों पर गौर करें-

1991 से 2001 के बीच बांग्लादेश से सटे असम
सीमावर्ती: जिलों का जनसंख्या वृ
द्धि प्रतिशत
सीमावर्ती जिले
मुस्लिम
गैर मुस्लिम
कुल
धुबरी
29.5
7.1
22.9
ग्वालपाड़ा
31.7
14.4
23.0
हैलाकांडी
27.2
13.3
20.9
करीमगंज
29.4
14.5
21.9
कछार
24.6
16.0
18.9
अन्य जिले
बरपेटा
25.8
10.0
18.9
नगांव
32.1
11.3
22.2
मारीगांव
27.2
16.3
21.2
दरांग
28.9
9.6
15.8
असम की जनसंख्या में मुसलमानों का बढ़ता प्रतिशत
सीमावर्ती जिले
1991
2001
धुबरी
70.4
74.3
ग्वालपाड़ा
50.2
53.6
हैलाकांडी
54.8
57.6
करीमगंज
49.2
52.3
कछार
34.5
36.1
अन्य जिले
बरपेटा
56.1
59.4
नगांव
47.2
51.0
मारीगांव
46.0
47.6
दरांग
32.0
35.6
पश्‍िचम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या (प्रतिशत में)
सीमावर्ती जिले
1991
2001
दक्षि24 परगना
29.9
33.2
उत्तर 24 परगना
24.2
24.2
नादिया
24.9
25.4
मुर्तिशाबाद
61.4
63.7
मालदा
47.5
49.7
कोलकाता
17.7
20.3
दक्षिण दिनाजपुर
36.8
38.4
उत्तर दिनाजपुर
36.8
38.4
जलपाईगुड़ी
10.0
10.8
कूच बिहार
23.4
24.2
कुल
23.6
25.2

यदि आज कोई सच में मुस्लिमों का हितचिंतक है और उनकी दशा और दिशा की चिंता करता है तो इन आंकड़ों पर गौर करे और उन्हें धार्मिक अंधविश्वास से दूर कर, उनके समुचित जीवन के निर्माण की व्यवस्था की जा सकती है, और घुसपैठ पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिऐ क्योकि घुसपैठी न तो हिन्दू न मुसलमान, घुसपैठियों घुट पेठिया होता है तभी अरब के देशों में भी घुसपैठ मुस्लिमों के साथ अत्यधिक कड़ा रुख रखा जाता है।


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चिट्ठाकारी के मठाधीशों का असली चेहरा



देवाशीष जी का साक्षत्‍कार पढ़ रहा था कि हिन्‍दी चिट्ठाकारी में मठाधीशी नही है किन्‍तु उनकी बातों में कितनी सच्‍चाई है, यह बात उनके कृत्‍यो के द्वारा पता चलता है। उक्‍त लेख पर मैने एक टिप्‍पणी चिट्ठाकार पर अपने प्रतिबन्‍ध को लेकर की थी और जानना चाहा था कि क्‍या वास्‍तव में चिट्ठाकारी में मठा‍धीशी नही है? उस टिप्‍पणी के प्रतिउत्‍तर में देबाशीष जी की जो प्रतिक्रिया मिली कि चिट्ठाकार गूगल समूह न होकर एक उनका व्‍यक्तिगत साईट है, और उस पर उन्‍हे पूर्ण मनमानी करने का अधिकार है। शायद आप सब को भी पता नही होगा कि जिस चिट्ठकार समूह के आप सदस्‍य है वह समूह देबाशीष जी की सम्‍पत्ति है और किस श्रेणी के लोगों को आने की अनुमति है और किस को नही। अब जरूरी है कि सच्‍चाई और वास्‍तविकता सामने आये।

अगर देवाशीष जी अपनी टिप्‍पणी को गौर से पढ़े और विश्लेषण करे तो निष्कर्ष यही आयेगा कि देबाशीष जी ने खुद की बातो को घता साबित किया है। देवाशीष जी की उक्‍त टिप्‍पणी निम्‍न है Debashish said...

प्रमेंद्र, आपने यह राज़ क्यों बनाये रखा मैं नहीं जानता। चिट्ठाकार पत्र समूह में कई बार कह चुका हूं, वह समूह कोई सार्वजनिक संपत्ति नहीं है, मेरी साईट है, इसकी नीति मैंने बनाई है जो http://groups.google.com/group/Chithakar/web/group-charter पर बड़े साफ शब्दों में लिखी है। स्पष्ट लिखा है कि समूह में "भड़काऊ, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप या धर्म जैसे संवेदनशील मसलों पर संदेश" वर्जित हैं और "ऐसे संदेश भेजने वाले सदस्य की सदस्यता बिना किसी चेतावनी के समाप्त कर दी जायेगी"। आपके और अन्य कुछ मामलों में यही किया गया। जो चार्टर से सहमत नहीं वो समूह में रह कर क्या करेंगे। यह आपकी अभिव्यक्ति पर रोक तो नहीं हैं क्योंकि ज़ाहिर तौर पर "चिट्ठाकार" कोई एकलौता मंच नहीं है जहाँ आप अपनी बात रख सकें, आपके अनेक चिट्ठे हैं, अन्य समूह भी हैं, नहीं हैं तो आप बना सकते हैं। आपको समान राय वाले समूह में ही रहना चाहिये, जहाँ मतैक्य न हों वहाँ क्यों रहना? यह जिद करना कि आप मेरी साईट पर आकर "मूंग दलेंगे" तो बचकानी जिद है। अपनी ही साईटों की नीति तय करना अगर आपकी दृष्टि में मठाधीशी है तो मैं आपकी सोच पर केवल तरस ही खा सकता हूं।
एक बात और जो मैं काफी दिनों से कहना चाह रहा था। मुझे विश्वास है कि आप चिट्ठाकारी में कुछ कहने आये हैं पर फिर ये शत्रुता का व्यवहार क्यों। हम दोनों एक दूसरे की विचारधारा से परीचित हैं यह तो अच्छी बात है, मैं कट्टर हिंदूवाद की विचारधारा से विरोध रखता हूं पर व्यक्तिगत तौर पर आग्रह नहीं पालता। मेरी बैंगानी बंधुओं और शशि सिंह से भी इस बाबत राय नहीं मिलती, पर हम अच्छे मित्र हैं। मैंने जगदीश भाटिया पर ब्लॉगवाणी द्वारा डीडॉज अटैक के आरोप का बड़ा तकनीकी तौर पर संयत स्पष्टीकरण दिया, मैथिलि जी ने स्वयं जवाब को सराहा। पर आपने क्या किया? अपने ब्लॉग पर मुझे शिखंडी करार दे दिया, जबकि तकनीक और इस सारे मामले की बारीकी से ही आप अनभिज्ञ थे। यहाँ तो हिन्दू मुस्लिम, साँप्रदायिकता की बहस भी न थी। मैं क्यों न समझूं कि आप की खुन्नस अब व्यक्तिगत हो चुकी है, वैचारिक नहीं रही। मुझे यह खुन्नस निकालनी होती तो मैं समूह में केवल अपने जाने पहचाने लोगों कौ ही आमंत्रित करता। विचारधारा का विरोध अस्विकार्य होता तो क्या अनुनाद, अरुण अरोरा वगैरह समूह में शामिल रहते? ठंडे दिमाग से सोचिये ज़रा।

मै देवाशीष जी की ही टिप्पणी का क्रमबद्ध उल्‍लेख करूँगा, उनकी बिन्‍दुवार उनकी टिप्‍पणी के अंश तथा उसके नीचे मैने अपनी बात रखी है -
चिट्ठाकार पत्र समूह में कई बार कह चुका हूं, वह समूह कोई सार्वजनिक संपत्ति नहीं है, मेरी साईट है, इसकी नीति मैंने बनाई है जो http://groups.google.com/group/Chithakar/web/group-charter पर बड़े साफ शब्दों में लिखी है।

कई लोगों को नही पता होगा कि ‘’चिट्ठाकार समूह’’ आपकी प्रोपराईटरशिप में चल रही है अन्‍यथा मुझ जैसे कई लोग आपके चिट्ठाकार समूह के नाम से बने चिट्ठाकार व्‍यापार मंडल की सदस्‍यता ग्रहण न करते। मुझे चिट्ठकार समूह पर आपके द्वारा किये गये बैन पर हर्ष है कि इस बाबत कई लोगों को सच्चाई से रूबरू होने का अवसर मिला, कि वे किसी सामुदायिक चिट्ठाकार समूह के सदस्य न होकर किसी की नि‍जी सम्‍पत्ति में घुसे हुऐ है। आप जिस प्रकार से चिट्ठाकार समूह का नेतृत्‍व कर रहे है इससे यह नही प्रतीत होता है कि चिट्ठाकार समूह कोई समुदायिक विचार का मंच है, जैसा कि आपके बातों से भी स्‍पष्‍ट हो गया है। नेतृत्‍व हर समाज में होता है, इसमें प्रोपराईटरशिप या स्‍वामित्‍व की बात कहॉं से आ जाती। आपके द्वारा दिये गये तथाकथित व्‍यापार चार्टर लिंक को मैने अपने बैन होने के बाद काफी पढ़ा था। किन्‍तु आपके अन्‍दर का भय मुझे आज दिखा, कि जो चिट्ठाकार सर्वजनिक तौर पर खुला रहता था आज वह बन्‍द है। उस चार्टर को बन्द करके फिर लिंक देकर मुझे पढने के लिये कहना, हँसने योग्य प्रसंशनीय कार्य है।


समूह में "भड़काऊ, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप या धर्म जैसे संवेदनशील मसलों पर संदेश" वर्जित हैं और "ऐसे संदेश भेजने वाले सदस्य की सदस्यता बिना किसी चेतावनी के समाप्त कर दी जायेगी"। आपके और अन्य कुछ मामलों में यही किया गया। जो चार्टर से सहमत नहीं वो समूह में रह कर क्या करेंगे।

मुझे आपकी इस उत्‍तर पर तरस आ रहा है, कि आप इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे है। क्‍योकि आपने टिप्‍पणी मे कहा था कि - समूह में "भड़काऊ, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप या धर्म जैसे संवेदनशील मसलों पर संदेश" वर्जित हैं किन्‍तु मै इस बात का पूर्ण खंडन करता हूँ कि मेरे द्वारा 2006 से आज तक चिट्ठाकार समूह तो क्‍या किसी भी समू‍ह पर इस तरह की पो‍स्टिग नही की गई है, तो नियमों के उल्‍लंघन की बात कहाँ से आ जाती है। मेरी आपत्ति के बाद आपका तर्क प्रस्‍तुत करना नैतिक दायित्‍व है, जबकि आप इस समूह का नेतृत्‍व कर रहे है। यदि आप इसके प्रोप्राइटर या मालिक है तो नैतिकता समाप्‍त हो जाती है। स्‍पष्‍ट है कि जब अपराध हुआ ही नही तो चेतावनी क्‍या? कार्यवाही क्‍या ? आप पिछले कई महीनों से मठाधीशी की परिभाषा तलाश रहे है मेरे याद दिलाने से ज्ञान हो गया होगा। इसी के साथ पुन: एक कहावत कहना चाहूँगा – कस्तूरी कुंडल बसै , मृग ढूढै वनमाही। आप फिर कहेगे कि मै आपको शिखड़ी के बाद मृग कह रहा हूँ। पुनरावलोकन कर लें कि मैने चिट्ठाकार व्‍यापार मंडल के किसी नियम का उल्लघन तो नही किया। अगर मेरे द्वारा संदेश नही गया तो किसी नियम के उल्‍लघंन का प्रश्‍न ही कहाँ उठता? बिना नियमों के उल्‍लंघन के मेरी चिट्ठाकारी की दुकान का राजिस्‍ट्रेशेन कैन्सिल करना न्‍यायोचित नही है।


यह आपकी अभिव्यक्ति पर रोक तो नहीं हैं क्योंकि ज़ाहिर तौर पर "चिट्ठाकार" कोई एकलौता मंच नहीं है जहाँ आप अपनी बात रख सकें, आपके अनेक चिट्ठे हैं, अन्य समूह भी हैं, नहीं हैं तो आप बना सकते हैं। आपको समान राय वाले समूह में ही रहना चाहिये, जहाँ मतैक्य न हों वहाँ क्यों रहना? यह जिद करना कि आप मेरी साईट पर आकर "मूंग दलेंगे" तो बचकानी जिद है।

आपको ही बैन जैसे लुच्‍चे साधनों की आवाश्‍कता होगी, क्‍योकि आप हिन्‍दुत्‍व से अपने को दूर रखना चाहते है। हिन्दुत्‍व ही सर्वधर्म सम्‍भाव कि बात करता है, असली सेक्यूलरिज्‍म हिन्‍दुत्‍व में ही पोषित होता है। बाकी तो आपकी ही तरह पूछते रहते है कि मेरे अंगने में तुम्‍हारा क्‍या काम है? जहॉं तक ब्‍लाग्स की बात है तो मेरे लिये लिखने के मंचों की कमी नही है। जहाँ तक गूगल समूह की बात है तो आपकी व्‍यापार मंडल भी गूगल के रहमोकरम पर ही है, और गूगल तो सबके माई-बाप है। माई-बाप की जागीर में सभी संतानो का हिस्‍सा बराबर का होता है। चालबाज संताने ही पूरे पर दावा ठोकती है। समूह बनाना कौन सा बड़ा काम है? बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं, कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ||एहि धनु पर ममता केहि हेतू, सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू || मैने भी खेल खेल में बहुत से समूह और ब्‍लाग बना डाले है, पर स्‍वामित्‍व का ऐसा दावा, मतभिन्‍नता रखने वालो पर इतना बड़ा प्रहार मुझसे आज तक न हुआ। जहॉं तक मतैक्‍य की बात है तो मुझे लगता है आपका ही मत लोगो से नही मिलता है, तभी जो भी आता है आपकी घंटी बजाकर चला जाता है, किसी का नाम लेने की जरूरत नही है। जहॉं तक मूँग दलने की बात है तो आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि मूँग की दाल काफी मॅहगी है, पेट खराब होने पर काफी फयादा करती है। ऐसी चीज दलने में नुकसान ही क्‍या है? खुद ही सोचिये व्‍यापार मंडल की साइट पर मूँग नही दला जायेगा तो क्‍या मौसम की जानकारी प्रकाशित होगी? वैसे मेरे पास व्‍यापार मंडल में न तो मूँग दलने का समय है न बाजार लगाने का, मुझे लगाता है कि मूँग दलने और इस तरह के बाजार लगाने की आपकी पुरानी आदत है। आप आपने आदत से मजबूर है, नही तो अकारण बैंन नही लगातें।
 
अपनी ही साईटों की नीति तय करना अगर आपकी दृष्टि में मठाधीशी है तो मैं आपकी सोच पर केवल तरस ही खा सकता हूं।
 
आपको तरस खाने की जरूरत नही है वैसे आप कुछ भी खा सकते है, मूँग की दाल खाइये, फायदा करेगी। जैसा कि मैने पहले ही कहा था कि मठाधीशी तो कुछ के रग रग में है, जो अकारण सम्‍प्रभु बने रहने की कोशिश करते रहते है, मुझे आपका नाम लेने में जरा भी हिचक नही है। क्‍योकि जो कर्म आपने किया और फिर सीना जोरी के साथ सबके सामने यह कह रहे है कि आप चिट्ठकार व्‍यापार मंडल के प्रोपइटर है तो यह आप अपनी सबसे बड़ी मूर्खता को उजागर कर रहे है।
 
एक बात और जो मैं काफी दिनों से कहना चाह रहा था। मुझे विश्वास है कि आप चिट्ठाकारी में कुछ कहने आये हैं पर फिर ये शत्रुता का व्यवहार क्यों। हम दोनों एक दूसरे की विचारधारा से परीचित हैं यह तो अच्छी बात है, मैं कट्टर हिंदूवाद की विचारधारा से विरोध रखता हूं पर व्यक्तिगत तौर पर आग्रह नहीं पालता। मेरी बैंगानी बंधुओं और शशि सिंह से भी इस बाबत राय नहीं मिलती, पर हम अच्छे मित्र हैं।
 
अकारण प्रतिबंध दुराग्रह नही तो क्‍या है? जो कहना था आप कह सकते थे किन्‍तु लगता है कि आप प्रतिबंधित कर अपनी ताकत का प्रर्दशन करना चाहते थे। आपको यह कैसे लगा कि यह शत्रुता का व्‍यवहार कर रहा हूँ, हर चोर को दूसरा आदमी चोर ही नज़र आता है। मुझे तो नही लगता कि आपकी कोई अपनी विचारधारा है, सिवाय पिचाल खेलने के।
 
जहाँ तक मुझे लगता है कि मेरी कई व्‍यक्तियों के साथ वैचारिक दूरी है, वह संघ, गांधी, हिन्‍दुत्‍व के अलावा बहुत कुछ विषय है। हम एक दूसरे की खिचाई करते है किन्‍तु व्‍यक्तिगत दुराग्रह नही करते। किन्‍तु आपका मामला भिन्‍न है जो आपके आधीन और आपके नक्‍शेकदम पर नही चलता उसकी कोई विचारधारा नही। यह हिटलरशाही, तुगलकशाही, सद्दामशाही नही तो और क्‍या है? इसी को साहित्यिक भाषा में मठाधीशी कहते है।
 
मैंने जगदीश भाटिया पर ब्लॉगवाणी द्वारा डीडॉज अटैक के आरोप का बड़ा तकनीकी तौर पर संयत स्पष्टीकरण दिया, मैथिलि जी ने स्वयं जवाब को सराहा। पर आपने क्या किया? अपने ब्लॉग पर मुझे शिखंडी करार दे दिया, जबकि तकनीक और इस सारे मामले की बारीकी से ही आप अनभिज्ञ थे।यहाँ तो हिन्दू मुस्लिम, साँप्रदायिकता की बहस भी न थी। मैं क्यों न समझूं कि आप की खुन्नस अब व्यक्तिगत हो चुकी है, वैचारिक नहीं रही।
 
लगता है कि आपकी ऑंखे ठीक काम नही कर रही है, अगर न कर रही हो तो चश्‍मा लगवा लीजिऐ। क्‍योकि जिस लेख की बात आप कर वह मानवेन्‍द्र जी का है मेरा नही, क्‍योकि उन दिनों मै अपने ब्‍लाग से अनुपस्थित था और जिसकी स्‍पष्‍ट सूचना ब्‍लाग के हेडर पर मौजूद थी। एक बात स्‍पष्‍ट कर दूँ कि आपके चिट्ठाकार व्‍यापार मंडल पर प्रतिबंध के बाद वह लेख आया था। इससे यह कहना कि शुरूवात मैने की है यह निहायत ही ओछा आरोप है जो सर्वथा गलत है।
 
मुझे लगता है कि आपने मैथिली जी की बात भी स्‍पष्‍टता से नही पढ़ी क्‍योकि मैथिली जी ने कही भी क्लीन चिट नही दिया है क्‍योकि उनका कहना था कि – हो सकता है ? अर्थात उन्‍होने गांरटी के साथ नही कहा है कि गलती नही हुई है। मैथिली जी ने यहॉं श्रेष्‍ठ अग्रज की भूमिका निभाई है दो के विवाद के निपटारे के लिये उन्‍होने यह बात कहीं थी न कि किसी को सही साबित करने के लिये।
 
अब आप अपने आपको शिखड़ी मानो या शूपनर्खा, इसमें मेरा क्‍या दोष है ? जहॉं तक की गई टिप्‍पणी को देखने के बाद कोई छोटा सा बच्‍चा भी यह कहेगा कि यह किसी व्‍यक्ति विशेष के लिये नही कहा गया है, किन्‍तु चोर की दाढ़ी में तिनका यहीं दिखाई पढ़ता है, तिनका हो न हो चोर अपनी दाढ़ी जरूर साफ करता है। अब आप अपने शिखड़ी समझ रहे है तो भला चोर की दाढ़ी मे तिनका कहने वाले का क्‍या दोष ?
 
चूकिं तत्‍कालीन लेखन ने वह टिप्‍पणी भाटिया जी के ब्‍लाग पर की थी किन्‍तु भाटिया जी ने उसे प्रकाशित नही किया। तो लेखक को अपनी बात टिप्‍पणी से परे होकर ब्‍लाग पर करनी पड़ी।
 
मुझे यह खुन्नस निकालनी होती तो मैं समूह में केवल अपने जाने पहचाने लोगों कौ ही आमंत्रित करता। विचारधारा का विरोध अस्विकार्य होता तो क्या अनुनाद, अरुण अरोरा वगैरह समूह में शामिल रहते? ठंडे दिमाग से सोचिये ज़रा!
 
आपकी यह बात खुद ही उक्‍त लोगों से आपकी वैचारिक दूरी को उजागर करती है। आपकी महानता ही है कि उक्‍त लोगों को किस प्रकार इस समूह में झेल रहे है। उक्‍त लोग आपके सदैव आभारी रहेगे कि आपने अभी तक इन पर अपने प्रोप्राइटरी कार्यवाही का दंडा चला कर इनका रजिस्‍ट्रेशन कैन्सिल नही किया।
 
श्री देबाशीष जी की टिप्‍पणी के सर्मथन में एक और टिप्‍पणी आई थी मै उसका भी उल्‍लेख करना चाहूँगा, जो जरूरी है -
दिनेशराय द्विवेदी said...
देबू भाई के बारे में जानने का अवसर मिला। धन्यवाद्।
मैं उन के इस विचार से सहमत हूँ, यह कानून भी यही कहता है कि दूसरे कि संपत्ति पर आप यदि कुछ कर रहे हैं तो उस की सहमति से कर रहे हैं। आप एक लायसेंसी हैं। अब आप वहाँ कोई भी ऐसा काम करते हैं जो संपत्ति के स्वामी द्वारा स्वीकृत नहीं है तो संपत्ति के स्वामी को आप को वहाँ से बेदखल करने का पूरा अधिकार है। आप उसे कोसते रहें तो कोसते रहें। आखिर संपत्ति के स्वामी ने अपने वैध अधिकार का उपयोग किया है कोई बेजा हरकत नहीं की है।
16 February, 2008 5:18 PM
श्री द्विवेदी जी अधिवक्‍ता है विधिक मामलों के जानकार है, कानून क्‍या कहता है जितना उन्‍होने पढ़ा वह कह दिया। किन्‍तु सच्‍चाई यह है कि विचारमंच कभी किसी की सम्‍पत्ति नही हो सकती है, और यदि आप कानून के जानकार है तो आपको पता होगा कि किसी कारखाने का मालिक, प्रोपराईटर जब अपने किसी अदना से नौकर को भी उसकी गलती की वजह से कम्‍पनी से निकालता है तो उसे चार्टशीट देनी होती है, उसे उसके अपकृत्‍य से बिन्‍दुवार अवगत कराया जाता है, तथा एक इन्‍क्‍वाईरी ऑफिसर नियुक्‍त किया जाता है जो मामले की पूर्ण जॉंच करता है। जहॉं तक सम्म‍पत्ति की बात है तो मकान मालिक और किरायेदार के सम्‍बन्‍ध में राजस्‍थान के कानून भारत के अन्‍य राज्‍यों से बहुत ज्‍यादा भिन्‍न नही होगें, और शायद प्राकृतिक न्‍याय के सम्‍बनघ में भी आप अ‍नभिज्ञ है। किसी की कब्‍जेदारी को वि‍मुक्‍त करना एक पूर्ण विधिक प्रक्रिया है। जिसके पालन न किये जाने की गणना आपराधिक अपकृत्‍य में की जाती है। आपने उपयुक्‍त टिप्‍प्‍णी की अपेक्षा नही थी। किसी अधिवक्‍ता का इस प्रकार का कथन सच में उसकी विधिक अनभिज्ञता का घोतक है।


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ब्‍लागवाणी पर पंसदगी की व्‍यवस्‍था है तो नपंसदगी की भी होनी चाहिऐ



काफी दिनों से मेरे मन में यह प्रश्‍न उठ रहा था कि मै ब्‍लागवाणी की कुछ कमियों को उजागर करूँ। उन कमियों में मुझे लगता है कि पसंद ब्‍लागवाणी की सबसे बड़ी कमी है क्‍योकि यह पंसद लेख को पढ़ने से पहले आ जाती है। अर्थात जब कोई लेखे अभी तक पढ़ा नही गया है तो वह पंसद कैसे हो जाता है ? क्‍योकि कोई चिट्ठाजगत या नारद से पढ़ कर तो ब्‍लागवाणी पर पंसद करने आयेगा नही। :) 
 
एक कल्‍पना मन में उपजी की पंसद की जगह अगर नापसंद का उल्‍लेख होता तो ब्‍लागवाणी पर लेखे की इस सूची का क्‍या रूप रेखा होती यह सोच कर मुझे हँसी आ रही है। क्‍योकि बहुत से लेख या लेखक ऐसे होते है जिन्‍हे कुछ लोग पंसद करने ही नही है, और इस प्रक्रिया में हम कह सकते है कि लेख नापंसद किया गया। मेरे मानना है कि लेख के लिये साकारात्‍मक वोट की व्‍यवस्‍था है तो नकारात्‍मक राय की भी व्यपस्‍था होनी चाहिऐ ताकि लेख को नापसंद के न‍जरिये से भी देखा जा सकें। 
 
यह प्रयोग भी अजमाया जरूर जाना चाहिऐ क्‍योकि नापंसदगी का नजरिया निश्चित रूप से नया क्रान्तिकारी कदम होगा, जो मुझ जैसे कई लेखको को वाट लगाता रहेगा :)


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कवि कुलवंत से मुलकात और उनके सम्‍मान के बीच महाशक्ति की 200वीं पोस्‍ट



हिन्‍दी चिट्ठाकारी में कवि कुलवंत सिंह कोई आम नाम नही है, कवि कुलवंत मुम्‍बई स्थित भाभा परमाणु शोध संस्‍थान में साइन्टिफिक ऑफिसर पद पर कार्यरत है। कहा जाता है कि जिस व्‍यक्ति का कद जितना बड़ा होता है, वह उतना ही विनम्र होता है। जब विनम्रता की बात आई है तो मुझे एक छोटी कहनी याद आ रही है उसका उल्‍लेख करना चाहूँगा।
एक बार एक राजा अपने सैनिको के साथ शिकार पर निकलते है, किन्‍तु हाथियों के झुंड के भंयकर हमले में उनकी सैनिक तिरत बितर हो जाते है। वही दूर रात्रि में एक एक दीपक की रोशनी में एक अन्‍धा साधू अपनी कुटिया के बाहर बैठा था। तभी एक आदमी आया बोला- ऐ सूरदास! हमारी सेना हाथी के हमले से बिछड़ गई है यहॉं आदमी तो नही आया था? साधू बोला कि हे सैनिक अभी कोई नही आया आप जाकर मेरी कुटिया में आराम करें जब कोई आयेगा तो मै अवश्‍य बता दूँगा, और सैनिक कुटिया में चले जाते है। फिर एक और आदमी आता है और फिर उसने हे साधु जी कह कर वही प्रश्‍न दोहराया। और साधु ने मंत्री शब्‍द का सम्‍बोधन कर उसे अपनी कुटिया में भेज दिया। कुछ देर पश्‍चात एक और आदमी आता है और वह साधू को हे महात्‍मन कह कर सम्‍बोधित किया और साधू ने उन्‍हे राजन कह कर सम्‍बोधित किया। 
साधू जी महाराज अन्‍धे थे किन्‍तु उन लोगों की वाणी के द्वारा पहचान लिया कि कौन व्‍यक्ति कैसा है। इसी प्रकार कुछ कवि कुलवंत जी के साथ भी मैने अनुभव किया कि उनकी बात के साथ उनका व्‍यक्तित्‍व झलकता है। शनिवार 16 फरवरी को उन्‍होने मुझे रात्रि 10.45 बजे अपने इलाहाबाद आगमन की सू‍चना दी, जैसा कि मैने पिछली पोस्‍ट में बताया था कि कवि कुलवंत का इलाहाबाद में सम्‍मानित किया है। अगले दिन अर्थात रविवार को पूरे दिन कवि कुलवंत का कार्यक्रम तय था और फोन पर ही उन्‍होने दोपहर 11 बजे का मिलने का समय दिया। अगले दिन मै करीब 11.15 पर उनके सम्‍मान समारोह स्‍थल पर मय साथीगण पहुँच गया,और सायं 4 बजे तक उनके कार्यक्रम मे शामिल रहा। इस दौर छोटी मोटी बाते हो जाती थी, किन्‍तु जो चिट्ठाकार मिलन वार्ता होना चाहिए था वह सम्‍भव नही हो पा रहा था। क्‍योकि वहॉं पहले से कार्यक्रम का सम्‍पदन हो रहा था और भारत के अनेको प्रान्‍त से कवि और साहित्‍यकार पधारे हुऐ थे। लगभग 3.30 बजे कवि कुलवंत को करीब 300-350 व्‍यक्तियों की करतल ध्‍वनि के बीच सम्‍मान से अलंकृत किया गया। एक चिट्ठाकार को सम्‍मानित होता देख मेरे मन को अत्‍यंत प्रसन्‍नता हो रही थी। सम्‍मानित होने के पाश्‍चात वे हमारे ( मेरे और ताराचंद्र) के पास आये और हम दोनो ने उन्‍हे बधाई दिया। कार्यक्रम करीब रात्रि 8 बजे तक का था हम बहुत चाहते थे कि कवि सम्‍मेलन में उनको सुनना किन्‍तु हमारे घर से बार बार मोबाइल पर बुलावा आ रहा था। और हम दोनो मित्रों ने अन्तिम भेंट समझकल उन्‍हे चरण स्‍पर्शकर पुन: इलाहाबाद भ्रमण का निमंत्रण दिया। और क्‍योकि इस बार उनके व्‍यस्‍त कार्यक्रम में यह नही हो सका। कवि कुलवंत की बहुत इच्‍छा थी परन्‍तु उनका कार्यक्रम बहुत व्‍यस्त था। हमारे मित्र तारा चंद्र ने कहा कि कवि कुलवंत को कल सुबह संगम स्‍नान करवा दिया जाये किन्‍तु तब तक हम लोग कार्यक्रम स्‍थल से काफी दूर हो चले थे। इसके बाद मै और ताराचंद्र काफी देर तक उनके बारे में बात करते रहे।
 
अगले दिन फिर कवि कुलवंत जी का फोन आया और वे कहने लगे कि स्‍टेशन से बोल रहा हूँ, सोचा चलते चलते नमस्‍कार करता चलूँ। मैने तुरंत पूछा कि आपकी ट्रेन कितने बजे कि है? उन्‍होने बताया कि करीब 30 मिनट में आ जायेगी और इसके आगे मुझे पता था कि स्‍टेशन पर 30 मिनट रूकेगी भी। मैने कहा कि आप 5 मिनट रूकिये मै आपसे मिलने आ रहा हूँ, उन्‍होने मना किया कि तुम्‍हे कुछ काम होगा, मैने कहा कि हॉं अध्‍ययन कर रहा था किन्‍तु कवि कुलवंत से मिलने का अवसर फिर जल्‍द नसीब होगा। यह सुनकर वे प्रसन्‍नता से बोले आ जाओं। मै तुरंत जैसे को तैसा भेष में मिलने पहुँच गया क्‍योकि समय का ध्‍यान रखना था, अगर टिप टॉंप होने लगता तो समय जाया जाता :) 10 मिनट के अन्‍दर ही मै स्‍टेशन पहुँच गया और हजारों की भीड़ में उनकी पगड़ी ने मुझे उन्‍हे पहचानने में पूरी मदद कर दी। फिर हम दोनो काफी देर तक आपसी चर्चा करते रहे। यह चर्चा इस लिये भी महत्‍वपूर्ण थी क्‍योकि कल हम लोग करीब 6 घंटे साथ होने के बाद भी कुछ बात न कर सकें थे। इसके बाद महाशक्ति, महाशक्ति समूह, मेरे पाठक संख्‍या, हिन्‍द युग्‍म, ब्‍लावाणी, श्री ज्ञान दत्‍त पाण्‍डेय जी, श्री समीर लाल, एडसेंस, श्री अनूप शुक्‍ल जी, श्री अमित अग्रवाल, श्री रविरतलामी सहित कई विषयों पर चर्चा हुई।
 
सर्वप्रथम उन्‍होने महाशक्ति के बारे मे जाना कि मै उस पर क्‍या करता हूँ? मैने उन्‍हे बताया कि यह मेरा वह ब्‍लागर है जिसे कुछ लोगों द्वारा सामप्रदायिक ब्‍लाग की संज्ञा दी जाती है। (यह सुनकर वे हस पड़े और मै भी मुस्‍कारा दिया।) महाशक्ति समूह के बारे में, मैने बताया कि इस ब्‍लाग का उद्देश्‍य अनियमित तथा नये ब्‍लागरों को मंच देना है क्‍योकि नये और अनियमित ब्लागर जब छिटके रहेगें तो उन्हे वह प्रोत्‍साह नही मिल पाता है जो मिलना चाहिए, इसी लिये यह मंच बनाया गया है। यही कारण है महाशक्ति समूह में जिसे जब समय मिलता है तब लिखता है, कोई बंधेज नही है कि वो अप्रकाशित रचना ही डाले। अनिय‍मित का नाम सुन कर वे प्रशन्‍नता से बोले कि अनियमित तो मै भी हूँ क्‍या मुझे महाशक्ति समूह में जगह मिलेगी, यह शब्‍द सुनकर मेरी प्रसन्‍नता की सीमा नही दिख रही थी, मैने कहा कि यह तो मेरे और समूह के लिये गौरव की बात होगी। उन्‍होने मेरे पाठको की संख्‍या जाननी चाहिए, मैने स्‍पष्‍टता से कहा कि मै महीने में चाहूँ लिखू या न लिखू सभी ब्‍लागों पर 750 से 2500 तक की औसत से महीने मे सभी ब्‍लागों सभी ब्‍लाग पर 4000 से 8000 तक पाठक आ जाते है। हिन्‍द युग्‍म पर भी चर्चा की और कभी देर तक एक दूसरे के विचारों को सुनते रहे। ब्‍लागवाणी के बारे में भी चर्चा हुई। अनूप शुक्‍ला जी के बारे में बात किया गया कि फुरसतिया वही है। ज्ञानदत्त जी के ब्‍लाग ज्ञानदत्‍त पाण्‍डेय की मानासिक हलचल पर भी चर्चा हुई उनका पूछना था कि उनहोने इतना बड़ा नाम क्‍यो रखा? इसका उत्‍तर तो मेरे पास न था किन्‍तु मन में जरूर सोचा कि कभी पांडेय जी से जरूर पूछूँगा :) मैने उन्‍हे यह भी बताया कि समीर लाल जी भी आ रहे है, इसी स्‍थान पर उनसे भी मिलना होगा। उन्‍होने महाशक्ति समूह को और बढ़ाने की बात कही किन्‍तु मैने अपनी समस्‍या का हवाला दिया जिसमें धन भी था, इसी पर एडसेस पर बात शुरू होती है, मैने उनसे कहा कि अभी मेरे पास समय का अभाव है धन का भी, मेरी पहली प्रथमिकता होगी कि मै अपनी पढ़ाई पूरी कर वकालत पेशे से जीविकोत्‍पार्जन में आऊ क्‍योकि आज हिन्‍दी में इतना पैसा नही है कि हम इस पर काम कर सकें। उन्‍होने पूछा कि क्‍या ब्‍लाग से पैसा कमाया जा सकता है मैने कहा कि एडसेंस से ऐसा होता है और अग्रेजी में अमिल अग्रवाल एक बड़ा नाम है जैसा कि हिन्‍दी के कई बलागरों से सुना है किन्‍तु हिन्‍दी में रवि रतलामी का नाम आता है जिन्होने अभी तक यह बताया है कि उनका ब्राडबैंड का खर्चा निकल आता है। जहाँ तक मेरा एडसेस से मेरा तालुक है तो मुझे अपने दो साल कि ब्‍लागिंग में कोई उप‍लब्धि नही मिली है, हॉं यह जरूर कह सकता हूँ कि अगर आपके 25000 तक पाठक प्रति माह के हो तो आप कुछ उम्मीद कर सकतें है। यही कारण है कि मैने अपने महाशक्ति ब्‍लाग से विज्ञापन हटा भी दिया क्‍योकि मेरा नया टे‍म्पलेट की शोभा विज्ञापनो से खराब हो रही थी कहो तो अब विज्ञापनो के लिये जगह नही है।
 
इतनी चर्चा हो ही रही थी कि अचानक उन्‍होने कहा कि मै ट्रेन की स्थिति देख लूँ, यह कह कर वे देखने चले गये, लौट कर आये तो घबरा कर बोले की ट्रेन तो प्‍लेटफार्म नम्‍बर 6 पर आयेगी और छूटने में पॉच मिनट बाकी है, हम दौड़ते हुऐ प्‍लेट नम्‍बर पॉच पहुँच गये, वहॉं पहुँच कर पता चला कि ट्रेन अभी 30 मिनट और लेट है। अन्‍तोगत्‍वा मै और कवि कुलवंत जी करीब अगले 1 घन्‍टे तक विभिन्‍न मुद्दो पर चर्चा करते रहे और एक दूसरे को बेहतर जानते रहे।
 
अन्‍तोगत्‍वा रेल ने हमारी चिट्ठाकार मिलन वार्ता की समाप्ति की सीटी बजा दी। रेल की सीटी तथा कवि कुलवंत के चरणस्‍पर्श के साथ ही जल्‍द ही पुन: मिलने के वायदे के साथ यह भेंट वार्ता समाप्‍त हो गई।

महाशक्ति की 200वीं पोस्‍ट
आज यह बातते हुऐ खुशी हो रही है कि इस पोस्‍ट के साथ ही महाशक्ति ब्‍लाग पर आज 200 पोस्‍ट पूरे हो गये। यह 200 पोस्‍ट मेरी व्‍यक्तिगत उपलब्‍धी नही है इसे पूरे होने में श्री मानवेन्‍द्र जी के 3 तारा चन्‍द्र के 8, राजकुमार के 1 तथा मेरे 188 लेखो का योगदान है। मेरे व्‍यक्तिगत ब्‍लाग पर अन्‍य लेखको के लिखने का भी रोचक इतिहास है, - महशक्ति समूह के गठन से पहले वे महाशक्ति पर ताराचन्‍द्र और राजकुमार महाशक्ति पर लिखते थे किन्‍तु महाशक्ति समूह के गठन के बाद से वही के हो गये। और फिर कुछ दिनों पूर्व एक दौर ऐसा भी आया कि मै खुद करीब दो हफ्ते तक महाशक्ति ब्‍लाग मेरे नियत्रंण नही रहा और इसका पूरा जिम्‍मा मेरे भइया मानवेन्‍द्र प्रताप सिंह ने ले लिया और उन्‍होने अपने स्‍वाभाव के विपरीत किसी ब्‍लाग के लिये पहली बार लेखा लिखा। मेरे ब्‍लाग के इस दोहरे शतक पर अपने सहयोगियों को बधाई तथा 200 लेखों के पाठको से मिले स्‍नेह को प्रणाम करता हूँ।


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मोनिका सेलेस (Monica Seles) का भी अलविदा



मार्टीना हिंगिस (Martina Hingis) की असमयिक विदाई से टेनिस प्रेमी उबरे भी नही थी कि विश्‍व टेनिस इतिहास में अपने जोरदार आवाज के द्वारा प्रतिद्वन्‍दी खिलाड़ी को स्‍तब्‍ध कर देने वाली मोनिका सेलेस (Monica Seles) ने भी अपने सन्‍यास की घोषणा कर दिया। मोनिका एक महान खिलाड़ी है जो अपने खेल के दम पर चार ऑस्ट्रेलियन, तीन फ्रेंच ओपन और दो यूएस ओपन सहित 9 ग्रैन्‍डस्‍लैमों पर कब्‍जा किया। कहा जाता है कि व्‍यक्ति अपने व्‍यवहार से महान होता है, सेलेस ने संन्‍यास लेते हुए कहा कि टेनिस उनके जीवन का अभिन्‍न अंग और जब कभी भी चैरिटेबल मैच में बुलाया जायेगा वह अवश्‍य खेलेगी। किन्‍तु मुझे अपने प्रशंसकों की कमी खलेगी।

मोनिका सेलेसे वह नाम है जो स्‍टेफी ग्राफ से टेनिस साम्राज्‍य को चुनौती दे रहा था, इसी चुनौती को देखकर स्‍टेफी के एक प्रशंसक Günter Parche 1993 में हैम्‍बर्ग में उनकी पीठ में छूरा भोक दिया। वह 1991 से लेकर इस घटना तक वह विश्‍व की नम्‍बर एक खिलाड़ी रही। इस चोट से वह करीब 3 साल तक नही उबर पाई और 1996 में वापसी कनाडियन ओपन जीत कर की, और अस्‍टेलियन ओपन के रूप में नौवां खिताब जीत कर बता दिया कि उनमें दम है। वापसी के बाद सर्वोच्‍च महिला टेनिस संघ संसय में था कि मोनिका की वापसी पर रैंक क्‍या हो? क्‍योकि वह इस घटना के समय नम्‍बर वन थी, अन्‍तोगत्‍वा टेनिस इतिहास में पहली बार एक समय में दो खिलाड़ी नम्‍बर वन थे।

डब्ल्यूटीए टूर की मुख्य कार्यकारी लारा स्काट ने कहा, 'सेलेस डब्ल्यूटीए टूर के इतिहास की महान चैंपियनों में एक हैं तथा वह दुनिया के लाखों टेनिस प्रेमियों की आदर्श हैं।' उन्होंने कहा 'मोनिका ने कोर्ट पर जीत के लिए जो प्रतिबद्धता और इच्छाशक्ति दिखाई उसे कोई कभी नहीं भूलेगा। कोर्ट के बाहर वह बहुत मिलनसार रही और हमेशा दूसरों की मदद करने में भी आगे रही।'

मोनिका सेलेस का उल्‍लेख इस पोस्‍ट में भी है - भारत मे हिगिंस ने किया जोरदार वापसी आगाज


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प्रत्यक्षा जी को कितने वोट मिले?



तरकश के चुनाव के बारे में मैने अपने पिछले लेख आलोक पुराणिक को हरा दिया, और कह रहे हो कि हार गये में काफी कुछ लिखा था, एक बात का उल्‍लेख और करना चाहता था किन्‍तु किसी कारणवश उस पोस्‍ट में नही कर सका था। अब मै इस छोटी सी मुनिया पोस्‍ट में कर रहा हूँ। :) मै प्रत्‍यक्षा जी से कभी बात नही हुई, न ही चैट से न ही ईमेल के द्वारा किन्‍तु प्रत्‍यक्षा जी पर यह मेरी दूसरी पोस्‍ट है पता नही क्‍यो उन पर लिखने अच्‍छा लगा है। :)

हिन्‍दी ब्लाग जगत में प्रत्‍यक्षा जी को कौन नही जानता है अगर कभी भी हिन्‍दी ब्‍लागर की चर्चा हो तो प्रत्‍यक्षा जी की चर्चा जरूर होती है। पहले जब मै हिन्‍दी ब्‍लाग को पढ़ता था तो प्रत्‍यक्षा जी की जुगलबंदी मुझे बहुत अच्‍छी लगती थी। इस चुनाव में जो सबसे रोचक बात जो सामने आई कि प्रत्‍यक्षाजी को कितने वोट मिले है, यह सभी जानना चाहते थे, और मै भी उनमें से एक था। :) फिर मैन भी तिकड़म लगाया और अनुमान लगाया कि कुल 492 वोट पडे़ थे, और प्रत्‍यक्षा जी को छोड़ कर सभी का मत प्रत्‍यासी के मतों का योग 460 था, और रचना सिंह जी ने बहुत पहले ही अपना नाम वापस ले लिया था, इस प्रकार 32 वोट के आस पास प्रत्‍यक्षा जी को वोट मिले होगें। :) खैर यह आधिकारिक तो नही है किन्‍तु आधिकारिक के काफी निकट जरूर है :)

नजीते चाहे जो भी हो किन्‍तु प्रत्‍यक्षा जी के वोटो की जानकारी पाने वालो की लिस्‍ट देखकर लगता है कि वह कितनी लोकप्रिय है। उनकी कलम को नमन है।

सम्बन्धित का लिंक
प्रत्‍यक्षा जी पर पहली पोस्‍ट - प्रत्‍यक्षा जी का जन्‍मदिन बार बार क्‍यो चला आता है ?


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मै समीर लाल बोल रहा हूँ



वर्ष 2008 मेरी ब्‍लागिंग के लिये अब तक अच्छा ही जा रहा है। काफी कुछ अच्छा ही अच्छा घटित हो रहा है। आज श्री समीर लाल जी से मेरी बात हुई। पिछले दो दिनों से उनकी टिप्पणी का रैला देख कर लग रहा था कि उड़न तश्‍तरी कनाड़ा पहुँच गई। मन में गुस्सा तो बहुत था कि इतने वायदे किया आज तक एक भी पूरा नही किया। चाहे वह कनाड़ा की बर्फ की तस्वीर हो, या हर पोस्ट पर टिप्पणी करने का वायदा या फिर भारत यात्रा के दौरान मिलने का, एक भी पूरा नही किया। गुस्से के मारे मन कर रहा था कि लालों के लाल श्री समीर लाल जी पर पोस्ट लिख दूँ किन्तु समय ही नहीं मिल रहा था। किन्तु आज एक फोन आया मुझे लगा कि यह कवि कुलवंत जी का होगा क्योंकि वह आज ही आने वाले थे और पहुँचते ही फोन करने को कहा था, किन्तु जब आवाज आई कि मैं समीर लाल बोल रहा हूँ तो खुशी का ठिकाना नहीं था। मेरी कुशल क्षेम पूछी और कुछ इधर उधर की गपशप हुई। अन्त में 27 तारीख को इलाहाबाद से गुजरेंगे और फिर होगी एक और ब्‍लागर मीट इलाहाबाद जंक्‍शन पर। :) श्री समीर लाल जी ने ज्ञानजी को भी सूचित करने को कहा है रात काफी हो गई है अब उनको फोन कल ही करूँगा। पोस्‍ट खत्‍म होते होते कवि कुलवंत जी का भी फोन आ गया कल 11 बजे हिन्‍दुतानी एकेडमी में उनसे मिलने का कार्यक्रम बना है, जहां उन्हें सम्मानित किया जाना है। उन्‍हे सम्मानित किये जाने की हार्दिक बधाई।


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आलोक पुराणिक को हरा दिया, और कह रहे हो कि हार गये



तरकश का पुरस्कार भी हिन्दी ब्‍लागिंग के ब्लागर के लिये भारत रत्न से कम नहीं है। :) इसका अनुमान मुझे तब पता चला कि जब मेरे मित्र तारा चन्द्र ने मुझसे पूछा कि क्या हुआ चुनाव का परिणाम? हमने तो कहा कि हम तो हार गये, और यह कहते हुए मैंने परिणाम का लिंक उसे भेज दिया। पर मुझे तब उनकी बात पर इतनी हंसी आई की मैं उसे रोक नहीं सका कि जब उसने कहा कि (श्री) आलोक पुराणिक जी को हरा दिया, और कह रहे हो कि हार गये। निश्चित रूप से उसके यह शब्द प्रोत्साहन देने वाले थे। वाकई में आलोक पुराणिक को हम और वो तब से पढ़ रहे थे जब से जागरण जोश में उनका प्रपंचतंत्र आता था और मित्र का कहना भी गलत नही था। उनका यह कहना मात्र हास्य था क्योंकि यह चुनाव किसी की जीत या हार का नही था बल्कि आपसी प्रेम व्यवहार का था।
आलोक पुराणिक

मैंने शुरूवाती तौर पर इस चुनाव के लिये कोई तैयारी नहीं कि थी, और प्रथम दौर में अपना नाम देख कर आश्चर्य भी हुआ क्योंकि मैंने दोनों दौर में अपने को वोट नहीं दिया था। मेरा इस चुनाव में सक्रिय न होने का प्रमुख कारण था कि मेरी मास्टर डिग्री की परीक्षाओं, इन परीक्षाओं के चलते मैंने मित्र से कहा कि मैं रुचि नहीं ले रहा हूँ किन्तु मित्र ने कहा कि जब बिना प्रयास के प्रथम दस में आ गये हो तो थोड़ा जोर लगाओगे तो जीत भी हाथ आ सकती है, पर मैंने असमर्थता जता दी। पर मित्रता इसी को कहते है कि उसने कहा कि तुम मुझे अपना चुनाव एजेंट तो बना ही सकते हो बाकी का काम मैं कर दूँगा, मैंने भी हां कर दिया। बस उसकी शर्त यही थी कि अपने मेल से सभी को एक बार मेल कर दो, मैंने ऐसा कर भी दिया। बाकी जो कुछ भी हुआ मित्र तारा चंद्र का कमाल है कि इस मुझे चौथे स्थान पर ला कर खड़ा कर दिया। :) इस चुनाव में मुझे जो सम्मान दिया गया शायद ही मै उसका अधिकारी होता क्योंकि इस चुनाव में मुझे ज्ञानजी, गुरूजी श्री आलोक जी, शास्त्री जी, और युनुश खान भाई के समकक्ष खड़ा होने का अवसर प्रदान किया। अत: आप सभी के प्यार को मैं कभी भुला नहीं पाऊँगा। आप सभी पाठकों का कोटिश: धन्यवाद। वैसे मित्र तारा चंद्र जो इस चुनाव में मेरे एजेन्‍ट की भूमिका में थे वे भी अपनी रिर्पोट प्रस्तुत करने को कह रहे थे, किन्तु अब वे परीक्षा कार्य में व्यस्त होने के कारण नहीं कर पा रहे है आशा है कि जल्द ही वे आयेंगे :) आप सभी को पुन: आपके स्नेह के लिये धन्यवाद।


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5 सेकेंड की चूक हो जाती तो यह मेरी अन्तिम चिट्टाकार भेंटवार्ता होती!



आते आते 13 फरवरी भी निकट आ गई, इसमें 13-14 का कोई सम्बन्‍ध नही है। 13 फरवरी को महाशक्ति समूह के वरिष्‍ठ लेखक एवं कवि श्री आशुतोष मिश्र ‘मासूम’ अपने गृहनगर जमशेदपुर से दिल्ली पुरूषोत्‍तम एक्‍सप्रेस से जाने वाले थे इसकी सूचना तीन दिनों पूर्व उन्होने मुझे काल करने तीन चार दिनों पहले दी‍ थी।

कल सुबह ही मैने उनके मोबाइल पर काल किया किन्‍तु कोई उत्तर नही मिला फिर मैने उनके निवास पर कॉल किया तो उनके पिताजी ने फोन उठाया और काफी अच्छी तरह से बात की और मुझे पूरी वस्‍तु स्थिति से अवगत कराया कि बंगलौर का सिम होने के कारण रोमिग में होने के कारण बात नही हो पा रही थी। फिर मै भी कुछ देर शान्त होकर बैठ गया कि जब बर्थ नम्‍बर नही पता है तो मिलना कैसे होगा। और कुछ कुछ समय पर काल करता रहा।
 
फिर शाम को अपने दिमाग की चिकरघिन्‍नी दौड़ई और पहुँच गया आरकुट की शरण में, क्‍योकि जब फोन पर आशुतोष जी से बात हुई थी तो उन्‍होने बताया था कि उनके बंगलौर के एमबीए के कुछ मित्र इलाहाबाद में रहते है वह उनके मिलने वाले है, आरकुट की शरण में पहुँच कर उनके मित्र अविराम जी को काल किया और पूरी वस्‍तु स्थिति से अवगत कराया और उन्‍होने मुझे ट्रेन के बारे में पूरी जानकारी दी। जानकारी पाकर मैने भारतीय रेलवे की साईट पर ट्रेन की समय देखा तो वह 6.50 पर राईट टाईम थी कि वह जंक्शन पर 7.10 पर आ जायेगी। मेरे पास अब मात्र 20 मिनट था स्‍टेशन पहुचने के लिये, तुरंत ही राजकुमार को फोन किया तैयार हो जाओं कहीं चलना है। राजकुमार का निवास मेरे घर से करीब 4 किमी की दूरी पर है किसी ने किसी तरह मै 10 मिनट में स्‍टेशन और जानसेनगंज की भीड़ को पार करते हुऐ 10 मिनट में राजकुमार के यहॉं पहुँच गया और जिन्‍दगी में पहली बार पाया कि राजकुमार आज समय से तैयार है, मन को प्रसन्नता हुई। फिर तुरंत पतली गली से जंक्शन की ओर निकल लिया जहॉं से जंक्शन 1 एक किमी पड़ता समय 7.12 के आस-पास हो रहे थे और ट्रेन छूटने में 8 मिनट शेष थे हम लोग किसी ने किसी प्रकार 4 मिनट में जक्शन के काफी निकट पहुँच गये पहले प्लेटफार्म नम्‍बर 5 दिख रहा था जहॉं पर दिख रहा था कि एक ट्रेन खड़ी है हम लोगों ने यहॉं से भी शॉटकट मारने की कोशिश की ताकि समय बचाया जा सकें और पटरी के बीचेा बीच एक निक पड़े, ताकि बाकि 3 मिनट में मिलना होगा तो मिल ही लेगें। जब पटरी से पार करने लगे तो पूर्व दिशा से एक ट्रेन आती हुई दिखी और हम उसे पार कर गये किन्‍तु पश्चिम की ओर मैने कोई ध्‍यान नही दिया, जबकि उधर से भी ट्रेन आ रही थी इसका आभास मुझे तब हुआ कि जब हम दोनो के पटरी से प्‍लेटफार्म पर चड़ने के 5 सेकेड के अन्‍दर ही पश्चिम की दिशा से आने वाली ट्रेन पटरी से गुजर गई। और उसके गुजरने के बाद पूर्व वाली ट्रेन गुजरी जिसको हम लोग देख रहे थे। उस ट्रेन के गुजरने के बाद मै तो हक्काबका रह गया क्‍योकि हमारे द्वारा 5 सेकेड की देरी हमारे लिये यह अन्तिम ब्‍लागर मीट हो सकती थी। सबसे बड़ी गलती हमारी ही थी किन्‍तु एक उस ट्रेन ने स्‍टेशन पर पहुँचने पर एक बार भी हार्न नही दिया जबकि पूरब वाली लगा तार दे रही थी। मै इस घटना को लेकर काफी देर तक सोचते रहे और पुरूषोत्‍तम के बारे में भूल ही गये। फिर अचानक हमें याद आया कि हम किसी अन्य उद्देश्‍य और देखा तो प्लेटफार्म नम्‍बर 5 या 6 पर जो ट्रेन है वह पुरूषोत्‍तम न होकर गोरखपुर बम्‍बई एक्‍सप्रेस है, हमें लगा कि ट्रेन छूट गई है। फिर स्टेशन पर एक विभागीय अधिकारी टहल रहे थे उनसे पूछा कि पुरूषोत्‍तम छूट गई क्‍या तो उन्‍होने के कहा कि वह प्लेटफार्म नम्‍बर 1 पर खड़ी है। हम चल दिये नम्‍बर एक की ओर, और जब समय सारणी देखा तो पता चला कि ट्रेन 30 मिनट लेट है।
 
आगे का हिस्‍सा अगले चरण में लिखूँगा कि बचे आधे घन्‍टे में हम दोनो ने क्‍या किया ? तथा 15 मिनट की संक्षिप्‍त ब्‍लागर मीट में क्‍या हुआ? आज जीवन में मुझे एक शिक्षा जरूर मिली कि जल्‍दबाजी ठीक नही होती, भगवान की कृपा है कि आज मै यह लेख लिख पा रहा हूँ। क्‍योकि दुर्घटना कभी बोल कर नही आती है।


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वैलेन्‍टाईन डे - टिप्‍पणी को लेख का दर्जा नही दिया जाना चाहियें



आज सुबह से वैलेन्‍टाईन डे पर लिखने को सोच रहा था, मैटर बहुत था किन्‍तु कहॉ से लिखूँ यह सोच पाना कठिन था। अचानक योगेश समदर्शी जी का लेख पढ़ा और लिखने का कोना मुझे मिल ही गया। अब मै टिप्‍पणी को लेख का दर्जा नही दूँगा, अगर आप योगेश जी के साथ मेरे विचार भी पढ़ना चाहे तो उक्‍त लिंक ("प्यार के व्यापारिकरण का उत्सव....") पर किल्‍क कर वही पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करें।

आप सभी को माता-पिता पूजन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं :)  महाशक्ति समूह - एक हो सारा भारत


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फेमली प्रॉब्लम



दो व्यक्ति एक बार में बैठे थे 
एक ने कहा .." यार.... बहुत बड़ी फेमिली प्रॉब्लम है "..
दूसरा व्यक्ति : तु पहले मेरी सुन...
मैंने एक विधवा महिला से शादी की जिसके एक लड़की थी ..कुछ दिनों बाद पता चला कि मेरे पिताजी को उस विधवा महिला कि पुत्री से प्यार है ...और उन्होने इस तरह मेरी ही लड़की से शादी कर ली ..अब मेरे पिताजी मेरे दामाद बन गए और मेरी बेटी मेरी माँ बन गयी....और मेरी ही पत्नी मेरी नानी हो गयी !!

ज्यादा प्रॉब्लम तब हुई जब जब मेरे लड़का हुआ ..अब मेरा लड़का मेरी माँ का भाई हो गया तो इस तरह मेरा मामा हो गया ....... परिस्थिति तो तब ख़राब हुई जब मेरे पिताजी को लड़का हुआ ....मेरे पिताजी का लड़का यानी मेरा भाई मेरा ही नवासा( दोहिता ) हो गया और इस तरह मैं स्वयम का ही दादा हो गया और स्वयं का ही पोता बन गया .....
" और तू कहता है कि तुझे फेमिली प्रॉब्लम है .". 
सूचना - ये रचना संकलन मात्र है, मेरी स्‍वयं की नही कै।


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चौपाटी में लाठी



भारत जैसे विशाल देश में, जब भाषा तथा क्षेत्रवाद को लेकर विवाद होते है तो कष्‍ट की अनुभूति होती है। मुझे मराठियों से काफी लगाव है इसका मुख्‍य कारण छत्रपति शिवाजी और काफी हद तक बाला साहब का व्‍यक्तित्‍व है। हाल के दिनों में जिस प्रकार मुम्‍बई में राज के सैनिकों ने तांडव किया वह यह दर्शाता है कि भारत में अभी भी क्षेत्रवाद का अंत नही है। 
तमिलनाडु से लेकर पूवोत्‍तर भारत राज्‍यों में जो दहशत देखने को मिलती है वह यह दर्शाता है कि भारत नागरिक आज भारत में भी सुरक्षित नही है। आज केन्‍द्र सरकार हो या राज्‍य सरकार आज अपने देश की सुरक्षा की गारंटी लेने को तैयार नही है। मेरे ख्‍याल से राज की मराठी व्‍यक्तियों को लेकर चिन्‍ता जायज है किन्‍तु उनका प्रर्दशन नाजायज था। पर यहॉं पर यह बात स्‍वीकार करने होगी कि जिनती चिन्‍ता राज ठाकरें को है शायद उतनी मराठियों को नही होगी। राज ठाकरे की नीयत महाराष्‍ट्र के अपनी पैठ बानने ही और वह इस नब्‍ज को दबा रहे है।
आज एक प्रश्‍न उठता है कि इस क्षेत्रवाद का अंत क्‍या होगा ? क्‍या सरकार को इस आतंरिक आतंकवाद को नियत्रण में करने का साहस नही है ? इस आंतरिक आंतंकवाद को देशद्रोह माना जाना चाहिए। और इसके पोषको को दण्डित किया जाना चाहिए ताकि भारत के सविधान की मूलभावना कि हम भारत के लोग को बरकरार रखा जा सकें।


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कुछ बातें ...



आज काफी दिनों बाद लिख रहा हूँ, चाहता हूँ कि कुछ न कुछ अच्‍छी खबरें ही सुनाऊँ, तो प्रस्‍तुत कुछ अच्छे काम जो युवाओं द्वारा किये जा रहे है-

अत्‍यंत हर्ष का विषय है कि हिन्‍द युग्‍म ने हिन्‍दी ब्‍लागिंग के क्षेत्र में दिनों दिन मील का पत्‍थर निर्माण करता चल रहा है। हाल के दिनों में युग्‍म के वरिष्‍ठ साथी श्री मोहिन्‍दर कुमार जी तथा श्रीमती रंजना भाटिया जी ने तरकश द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में प्रथम स्‍थान प्राप्‍त किया। जो निश्चित रूप से किसी भी लेखक, कवि या समूह के लिये गर्व विषय होगा कि उनके साथी अथवा उनके सदस्‍य अपनी प्रतिभा का लोह मनवा रहे है। सर्व प्रथम इन दोनो साथियों को बधाई देना चाहूँगा।

अभी हाल में सूचना मिली की हमारे एक और वर‍िष्‍ठ साथी श्री सजीव सारथी के कुशल मार्ग दर्शन में कुछ साथियों ने पहला सुर नाम की संगीतमय प्रस्‍तुति प्रस्‍तुत किया है, जिसके लिये सजीव जी तथा उनके टीम की जितनी तारीफ की जाये कम होगी। इस सीडी के बारे में इतना जरूर कहना चाहूँगा कि इस संगीतमय प्रस्‍तुति में इसमें युग्‍म के विभिन्‍न कवियों के 10 कविताओं/गीतों को समाविष्‍ट किया गया है, तथा विभिन्‍न उम्दा नवोदित गायकों ने इसमें अपनी आवाज दिया है।

हिन्‍द युग्‍म की ओर से विश्‍व‍ पुस्तक मेले में, अपनी सहभागिता भी दिखाने का प्रयास किया है, इस मेले में युग्‍म का भी स्‍टाल लगा हुआ, आप सभी पाठको से नि‍वेदन है कि आप सभी एक बार अवश्‍य आपनी उपस्थिति दर्ज करवा कर हमारें प्रयासों को देखे और हमें और कुछ नया करने के लिये प्रेरित करें। इस स्‍टाल पर आपको इस सीडी सहित अन्‍य समाग्रियॉं भी मिल जायेगी। आप सभी हाल नम्‍बर 12 ए, स्‍टैन्‍ड नम्‍बर एस1/10 वाणी प्रका‍शन के समाने जरूर पधारने का कष्‍ट कीजिएगा। याद रखिऐगा भूलियेगा मत :)


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