रामधारी सिंह ''दिनकर''



छायावादी कवियों में प्रमुख नामों में रामधारी सिंह दिनकर का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। 23 सितम्बर 1908 को बिहार के मुंगेर जिले सिमरिया नामक कस्बे में हुआ था। पटना विश्वविद्यालय से इन्‍होने स्नातक बीए की डिग्री हासिल की और तत्पश्चात वे एक सामान्‍य से विद्यालय में अध्यापक नियुक्त हो गये। रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते है।
दिनकर जी को सरकार के विरोधी रूप के लिये भी जाना जाता है, भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया। इनकी गद्य की प्रसिद्ध पुस्तक संस्कृत के चार अध्याय के लिये साहित्य अकादमी तथा उर्वशी के लिये ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। 24 अप्रैल 1974 को उन्होंने अपने आपको अपनी कविताओं में हमारे बीच जीवित रखकर सदा सदा के लिए अमर हो गये।
दिनकर जी विभिन्‍न सकरकारी सेवाओं में होने के बावजूद उनके अंदर उग्र रूप प्रत्‍यक्ष देखा जा सकता था। शायद उस समय की व्‍यवस्‍था के नजदीक होने के कारण भारत की तत्कालीन दर्द को समक्ष रहे थे। तभी वे कहते है –
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
26 जनवरी,1950 ई. को लिखी गई ये पंक्तियॉं आजादी के बाद गणतंत्र बनने के दर्द को बताती है कि हम आजाद तो हो गये किन्‍तु व्‍यवस्‍था नही नही बदली। नेहरू की नीतियों के प्रखर विरोधी के रूप में भी इन्‍हे जाना जाता है तथा कर्इ मायनों में इनहोने गांधी जी से भी अपनी असहमति भी जातते दिखे है, परसुराम की प्रतीक्षा इसका प्रत्‍यक्ष उदाहरण है । यही कारण है कि आज देश में दिनकर का नाम एक कवि के रूप में नही बल्कि जनकवि के रूप में जाना जाता है।


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पंगेबाज जी महाशक्ति के शहर में



आज का दिन हमारे लिए काफी अच्छा रहा, हुआ यूँ कि अक्सर क्‍लास के समय मै अपने मोबाइल को या तो नहीं ही ले जाता हूँ या तो स्विच आफ कर देता हूँ, पर ऐसा कल मै नही कर सका। पौने सात बजे के आसपास मेरे पास कॉल आती है, जिसमें बड़े बड़े अक्षरों में पंगेबाज लिखा हुआ था, इस प्रकार की काल अकारण नहीं आती थी। काफी दिनों से नेट पर दूरी के कारण उनसे मेरी बात नहीं हो सकी थी, अचानक फोन आ जाने से खुशी का ठिकाना नही था, मै क्या बोलूं मुझे समझ नही आ रहा था। उन्होंने कहा कि मै कल आपके शहर मे रहूंगा। यह जानकर और भी खुशी हुई। उन्होंने कहा कि मैंने तुम्हें ईमेल किया था किन्तु तुम्‍हारा कोई उत्तर नहीं आया मैंने अपनी समस्या बता कर रात में दोबारा बात करने की अनुमति लेकर मैने वार्ता समाप्त किया।

रात्रि 9.30 बजे मैने बात किया और यात्रा का सम्पूर्ण विवरण लिया, पता लगा कि प्रातः 7.00 से 10.00 तक उनका कोई अपना कार्यक्रम नही था तो मैने उस समय को अपने लिये देने का अनुरोध किया, जैसा कि उन्होंने बात की दौरान यह बताया था कि शायद पूरे दिन उनके पास समय नहीं रहेगा। उन्‍होने मेरे अनुरोध को सहर्ष स्‍वीकार कर लिया। उनके इतनी बात के बाद मुझे रात्रि में ठीक से नीद नही आयी और सोने में करीब 11.30 बज गये किन्‍तु रोज की बात प्रात: 4.30 पर जगना हो गया। प्रात: काल सबसे पहले उठ कर ईमेल चेक करने बैठ गया शायद कोई अपडेट हो किन्‍तु ऐसा नही था, फिर मैने अपने विश्वविद्यालय की साईट देखी तो खुशी का ठिकाना न रहा, क्‍योकि मै परास्‍नतक की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुका था, इसे सज्जन के चरणो का इलाहाबाद में आने का प्रभाव कहा जा सकता था। 10 मिनट की देरी के साथ प्रयागराज राईट टाईम थी, और मै स्‍टेशन पर 6.45 पर पहुँच चुका था, सवा सात बजे तक हम लोग घर पहुँच चुके थे, थोडा चाय पानी के पश्चात मैने स्‍नान की बात कही, तो अरूण जी और उनके मित्र ने हामी भरी, स्‍नान के प्रति उत्‍साह को देखते हुये मैने स्‍नान के आगे गंगा शब्‍द और जोड़ दिया तो अरूण जी के मित्र का उत्‍साह देखते ही बन रहा था, इसी के साथ गंगा स्‍नान का कार्यक्रम थी बन गया।

8.30 बजे तक हम संगम पहुँच चुके थे, और 9.30 बजे तक स्‍नान हो गया, नाव के द्वारा गंगाजी और यमुना जी के धाराओ को एक होते देखा जो एक अद्भुत दृश्‍य था। 10.10 तक हम लोग घर पर आ गये, और ड्राइवर पापाजी को उच्च न्यायालय छोड़ कर आ चुका था, मैने कहा कि आपको आपके गंतव्य तक छोड़ आएगा, जब पुन: कहेंगे तो तो वह आप को ले भी आयेगा किंतु भोजन के बाद अरुण जी ने हमें अपने साथ हमें चलने को कहा तो मुझे काफी अच्छा लगा किन्तु मै और भैया उस समय तक भोजन नहीं किए थे, जल्‍दी जल्‍दी में भोजन किया और सामान्य घरेलू वेश मै और मेरे भइया, अरुण जी और उनके मित्र करीब 11 बजे चल दिये।

गन्तव्य पर पहुँच कर इतनी बड़ी बड़ी मशीनों को नजदीक से देखने का अच्छा अनुभव था, उक्त स्थान का निरीक्षण करते करते हमें 4.30 बज गये थे जबकि श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी ने मिलने का सर्वोत्तम समय 3 से 5 बजे के मध्य था तो अचानक ही उनसे मिलने का कार्यक्रम बनाना पड़ा, समय और परिस्थिति के अनुसार हम जैसे थे वैसे ही वहां पहुँच गये। श्रीज्ञान जी के साथ मेरी दूसरी भेंट थी, उन्‍होने बड़ी गर्म जोशी के साथ हमारा स्वागत किया। श्रीज्ञान जी ने पूर्व ही तैयारी कर रखी थी, उनकी पत्नी जी ने श्री अरूण जी के स्‍वागत के लिये सेवई और ढोकला भेजा था, इससे तो हम जान ही सकते है श्रीमती जी भी प्रत्‍यक्ष और परोक्ष चिट्ठाकारी और चिट्ठाकारों में रूचि रखती है। निश्चित रूप से पाडेय जी से मिलना एक अच्‍छा अनुभव रहा। जिस समय हमने श्री ज्ञानजी से अनुमति ली, घड़ी 5.25 बजा रही थी, अर्थात उन्‍होने अपने बेस्‍ट समय से अतिरिक्‍त समय दिया, क्‍योकि 5.30 बजे पर उनकी नियमित मिटिग होती है। प्रणाम, हस्‍तमिलन व अलिंगन के साथ हमने पाड़ेय जी की चम्‍बल विहार से विदा लिये, तथा श्री अरूण जी ने श्री पाड़ेय जी को दिल्‍ली यात्रा के दौरान अपने यहॉं आने का निमंत्रण भी दिया।

जिस काम के लिये हम सुबह से निकल थे, उसे सम्‍पन करने के बाद हम घर की ओर प्रस्‍थान कर दिये, और इधर-उघर की करना प्रारम्‍भ कर दिया। करीब 6.50 पर हम घर पर थे, सर्वप्रथम मैने चाय के लिये पूछा अरूण जी ने मना कर दिया, किन्‍तु उनके मित्र ने पीने की इच्‍छा जाहिर की, फिर मैने अरूण जी की इच्‍छा की टोह ली तो उन्‍होने कम दूध की चाय की इच्‍छा जाहिर की। मैने डरते हुये ब्‍लैक टी के बारे में पूछा तो उन्होने कहा कि इससे अच्‍छा हो ही क्या सकता है।

वहां से लौटने के बाद से ही, अरुण जी मेरे घर से जल्दी प्रस्‍थान की इच्छा जाहिर कर रहे थे, जबकि मै उन्हे रात्रि 9 बजे भोजन के उपरान्‍त जाने को कह रहा था किन्तु उन्होंने अपनी बात पर जोर देते हुए, प्रस्थान करने की बात मुझसे मनवा ही ली। 7.15 मिनट के आस-पास हमने घर छोड़ दिया, घर छोड़ने से पूर्व अरुण जी मेरे पिताजी से मिले और दिल्ली आने पर मिलने निमंत्रण दिया। हमारे चलने के बाद अरुण जी ने स्टेशन पर ही रुकने और कुछ देर घूमने की बात कही। इस पर मैंने कहा कि स्टेशन पर आपको घूमने के लिये कुछ नही मिलेगा सिवाय गंदगी के,और आप चाहे तो सिविल लाइंस छोड़ देता हूँ आप अपने आगे के 2 घंटे काफी अच्छी तरीके से घूम सकते है। उन्हें भी यह बात जच गई और मैंने उन्हें काफी हाऊस पर छोड़ कर प्रयाग में अंतिम प्रणाम लेकर अपने गंतव्य पर चल पड़ा।

सिविल लाइन्‍स में उन्हें छोड़ने के बाद, मेरा भी वहां से जाने का मन नही कर रहा था, इसे पिछले 12 घंटे के साथ-साथ रहने का प्रतिफल ही कहा जा सकता है। अत्‍मीयता अपने आप ही हो जाती है। काफी अधूरे मन से मै वहॉ से चल दिया। रात्रि करीब 9.25 पर मैंने अरुण जी के पास फोन किया, कि आप स्टेशन पहुँच गये है कि नहीं ? उन्होंने बताया कि मै स्टेशन पहुँच गया हूँ और इस समय ट्रेन में विश्राम कर रहा हूँ। कुशलता के साथ स्टेशन पहुँचने की खबर पाकर मन अति प्रसन्न हुआ। रात्रि बीत गई पता ही नहीं चला, सुबह करीब 6.45 पर मैंने हाल लेने की सोची किन्तु किसी कारणवश नहीं कर सका, करीब 9 बजे अरुण जी ने मुझे फोन कर बताया कि मै दिल्‍ली पहुँच गया हूँ।

इस दौरान जिन चिट्ठाकारों की चर्चा हुई उनके नाम निम्न है - श्री अनूप शुक्ल जी, श्री समीर लाल जी, श्री अफलातून जी, श्री ज्ञान दत्त पांडेय जी, श्री संतोष कुमार पांडेय जी, श्री अभय जी, श्री रामचन्‍द्र शुक्‍ल जी, श्री उन्मुक्त जी तथा बहुत से अन्य ब्लॉग तथा सम्मानित ब्लॉगरों के बारे में चर्चा हुई। अरुण जी की इस यात्रा के सम्बन्ध में काफी कुछ और भी लिखा जा सकता है, जल्द ही फिर लिखूँगा।


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हमारे नेट कनेक्शन पर शनि की छाया



हमारे इंटरनेट कनेक्शन पर लगता है कि शनि महाराज की छाया पड़ गई है। पिछली पोस्ट में मैंने करीब 100 मीटर तार चोरी किये जाने की घटना का उल्लेख किया था। काफी जद्दोजहद के बाद लूकरगंज एक्सचेंज के एस.डी.ओ. ने उसे करीब हफ्ते में लगवाया, इसके लिए भी काफी दबाव डालना पड़ा। चूंकि उनका कहना था कि लाइन को अब मै नीचे जमीन से ले जाऊँगा, इसलिये मै ठेकेदार का इंतजार कर रहा हूं जिसे खुदाई करना है। मैंने उनसे जोर देकर कहा कि महोदय करीब 7 दिन बीतने को है, किंतु हमारी समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। अब आपका ठेकेदार महीने भर न मिले तो हम बिल भरने को क्यों तैयार रहे। प्रतिदिन के हिसाब से 33 रुपये मै इंटरनेट का देता हूँ, आज सात दिन का करीब 230 रुपये के आसपास बिल होता है। उपभोक्ता यदि एक दिन भी बिल जमा करने के देरी कर दे तो तुरंत अधिभार ठोक दिया जाता है किन्तु यहाँ हमारे 230 रुपये की कोई कीमत नहीं है ? यह कहने पर उन्होने अगले दिन पुन: तार लगवा दिया।

अभी इंटरनेट को चले 4 दिन भी नहीं हुए थे कि चोरों की कृपा हमारे तार पर फिर हो गई, इस बार हमारी लाइन ही नहीं करीब 1500 फोन लाइन पर व्यापक दृष्टिपात किया गया। इस बार टेलीफोन बाक्स के नीचे आग लगाकर कॉपर के तार को चोरी करने का प्रयास किया गया। चोर तो कामयाब न हुये किन्तु 1500 फोन का बंटाधार हो ही गया। मैंने स्वयं उस बक्से को देखा तो करीब जिसमें 5 किलो कॉपर के तार निकल सकते थे। जो कुछ भी हो 5 किलो तारे के लिये लगभग 1500 लोगों को लाखों रुपये नुकसान सहना पड़ रहा है। कल पुन: एस.डी. ओ से मिला तो उन्होंने इसे ठीक करने में दो हफ्तें का समय लगेगा यह जानकारी दी। जैसा भी हो आज देश में बेकारी इतनी हो गई है कि लोगों के पास छोटी-छोटी घटनाएं करना कोई बड़ी बात नही रह गई है। किन्तु यह छोटी छोटी घटनाएं किसी किसी पर बहुत भारी पड़ जाती है। जैसे हम पर ही, इस समय मोबाइल से नेट का उपयोग किया जा रहा है न स्पीड है न संतोष किन्तु जो पैसे लग रहे है अलग।


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गूगल एडसेंस - दो साल में अर्श से फर्श तक



हमने पहली बार अक्टूबर 2006 में एडसेंस लगाया था, जिसका पहला 169 डॉलर का भुगतान अप्रैल 2008 में निर्गत हुआ था, किन्तु हमें वो आज तक मिला ही नहीं। :( कमाई का सिलसिला यू ही जारी रहा और मई में फिर 103 डॉलर का भुगतान जारी हुआ, किन्तु यहाँ भी हमारा दुर्भाग्य हम पर हावी रहा और इसका भी पेमेंट हमें आज तक नहीं मिला। गूगल एडसेंस और हमारा दुर्भाग्य, दोनों मिल कर हम पर हावी है। पहले तो हमारा पिन ही नहीं आ रहा था, तीन रिक्वेस्ट किया तब जाकर पिन ने हमारे दरवाजे पर दस्तक दी। अब तो रही सही कसर गूगल वालों ने पूरी कर दिया और हमारे (लगभग सभी हिन्दी ब्लागों से) ब्लॉग से विज्ञापन ही गायब कर दिया।
हमारे दो भुगतानों को न मिलने से हमें बहुत निराशा हुई, क्योंकि यह अब पांच अंकों में कमाई का का मामला हो चुका था। मई जून मिला कर पुन: हमने 183 डालर अर्जित कर लिया था, पिछले भुगतान हमें न प्राप्त होने पर हमने गूगल से सम्पर्क किया और अपने पुराने भुगतानों को न प्राप्त होने की बात कहीं, और पिछले भुगतान को कैंसिल कर नये भुगतान में जोड़ कर कोरियर सर्विस द्वारा भेजने को कहा, और हमें सकारात्मक उत्तर मिला। और उन्‍होने जून तक का भुगतान 455 डालर में से कोरियर का 25 डालर काट कर 430 डालर हमें 27 अगस्त को भेज दिया है। अभी तक मुझे यह राशि भी प्राप्त नही हुई है, चूकिं 25 डालर देने के बाद आशा करता हूँ कि यह मुझे मिल जायेगे।
इस समय सबसे बड़ी समस्या यह आ गई है कि जून तक का भुगतान लेने के बाद जुलाई के मध्य से विज्ञापन दिखना बंद हो गया, जब तक एडसेंस चल रहा था मैने 48 डालर अर्जित कर चुकें थे, 15 जुलाई से लेकर आज तक 48 से 53 डालर ही हो सका है, और सही गति रही हो 100 डालर की सीमा में पहूँचने में करीब एक-ढ़ेड़ साल लग जायेगे। मुझे दुख हो रहा है कि मैने अपने पैसे मगवाने में जल्दी कर दिया, काश एक माह रूक गया होता तो मेरा 53 डालर भी क्लीयर हो गया होते। वाह री किसमत, इसे ही कहेगे कि 3 महीने में मात्र 5 डाल ही मिले, जबकि हमने दो सालों में करीब आधा दर्जन बार हमने एक दिन में 5 डालर तक प्राप्त किये थे।
जो होता है अच्छा ही होता है, यही मान के चल रहा हूँ, कि बिज्ञापन फिर से शुरू होगे और 100 डालर तक जल्दी पहुँचेगा। अभी तो मेरी गूगल के फोकट के विज्ञापन दिखाने के कोई इच्छा नहीं है, वैसे भी जब गूगल ने हमारा ध्यान नहीं रखा तो हम क्यों उसके फोकट के विज्ञापन दिखाएं। जब तक विज्ञापन नही दिखते है, तब तक के लिये मै गूगल एडसेंस को अलविदा कर रहा हूँ। चूंकि इसका कारण भी है कि जहाँ ऐड लगा होता है वहाँ ऐड की अनुपलब्धता के कारण रिक्तता आ जाती है, जिससे ब्‍लाग की शोभा ही बिगड़ती है।
गूगल के विज्ञापन हटने के बाद थोड़ा लेखन से भी रुझान कम हुआ, किन्तु जब मै आया था तो पैसे की सोच कर लिखने नही आया था। लिखना मेरी रूचि और स्वभाव था। मुझे उसे नही बदलना चाहिये। पैसे तो हम कमाते रहेंगे, क्योंकि कमाने के लिये तो पूरी ज़िन्दगी ही पड़ी है। मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मेरी लेखन में निरंतरता बनी रहे। मेरे कुछ नियमित पाठक मुझसे लगातार मुझे मेल करके राष्ट्रवादी विचारधारा के लेखकों को मांग करते है। मै अपने पाठको को नाराज नही करना चाहूंगा, जिस चीज के लिये महाशक्ति जानी जाती थी, आने वाले कुछ दिनों में आपको महाशक्ति उसी रूप में मिलेगी।
खैर अब तक तो मै अपने दो सालो की ब्‍लाग अर्निंग 430 डालर (18770 रूपये) की आशा कर ही सकता हूँ जो मुझे एक हफ्ते में मिल ही सकते है, इलाहाबादी बन्धु पार्टी के लिये तैयार रहे।


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क्यों परेशां हो बदलने को धर्म दूसरों का?



पोप ने उड़ीसा में हुई हिंसा पर दुख प्रकट किया और निंदा की. लेकिन यह दुख और निंदा दोनों अपने ईसाई भाई-बहनों के लिए थी. हिंदू भाई-बहनों के लिए न उनके पास दिल है और न समय. जो ईसाई इस हिंसा में मरे उनके लिए पोप ने आंसू बहाए, पर स्वामीजी और उनके चार चेलों के लिए न उनके पास आंसू हैं और न कोई सहानुभूति का शब्द.
शुरुआत किसने की? स्वामीजी और उनके चार चेलों को क्यों मारा गया? क्या यह धर्म के नाम पर हिंसा नहीं है? इन लोगों को मार कर ईसाई क्या सोच रहे थे कि हिंदुओं को दुख नहीं होगा? क्या वह चुपचाप कभी मुस्लिम आतंकवादियों और कभी ईसाईयों द्वारा मारे जाते रहेंगे और कुछ नहीं कहेंगे? क्या हिन्दुओं को तकलीफ नहीं होती? क्या जब उनकी दुर्गा माता की नंगी तस्वीर बनाई जाती है तो उनका दिल नहीं दुखता? इन सवालों का जवाब क्या है और कौन यह जवाब देगा?
अब भी कभी किसी मुसलमान या ईसाई के साथ अन्याय होता है, सारे मुसलमान, सारे ईसाई और बहुत सारे हिंदू खूब चिल्लाते हैं. हिंदुओं को गालियां देते हैं. उनके संगठनों पर पाबंदी लगाने की बात करते हैं. भारतीय प्रजातंत्र तक को गालियां दी जाने लगती हैं. पर जब हिन्दुओं के साथ अन्याय होता है तो यह सब चुप रहते हैं. कश्मीर से पंडित बाहर निकाल दिए गए, कौन बोला इन में से? जम्मू में आतंकवादियों ने कई हिन्दुओं को मार डाला, कौन बोला इन में से? मुझे लगता है कि मुसलमान और ईसाईयों से ऐसी उम्मीद करना सही नहीं है कि वह कभी किसी हिंदू पर अन्याय होने पर दुःख प्रकट करेंगे. शायद उनके धर्म में ही यह नहीं है. पर हिंदू तो हिन्दुओं को गाली देना बंद करें. जब हिंदू हिंदू को गाली देता है तो मुसलमान और ईसाइयों का हौसला बढ़ता है. मुझे यकीन है कि अगर हिंदू हिंदू को गाली देना बंद कर दे तो भारत में धर्म के नाम पर दंगे कम हो जायेंगे. हिन्दुओं का एक होना जरूरी है, मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ नहीं, बल्कि मुसलमानों और ईसाईयों को यह बताने के लिए कि भारत में हिंदुओं के साथ मिलजुल कर रहो. इसी में सबकी भलाई है.

न हिंदू बुरा है,
न मुसलमान बुरा है,
करता है जो नफरत,
वो इंसान बुरा है.
और अब एक निवेदन पोप से:
क्यों परेशान हो?
बदलने को धर्म दूसरों का,
खुदा का कोई धर्म नहीं होता.


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