आज का दिन हमारे लिये काफी अच्छा रहा, हुआ यूँ कि अक्सर क्लास के समय मै अपने मोबाईल को या तो नही ही ले जाता हूँ या तो स्वीच्ड आफ कर देता हूँ, पर ऐसा कल मै नही कर सका। पौने सात बजे के आसपास मेंरे पास कॉल आती है, जिसमें बड़े बड़े अक्षरों में पंगेबाज लिखा हूँआ था, इस प्रकार की काल अकारण नही आती थी। काफी दिनों से नेट पर दूरी के कारण उनसे मेरी बात नही हो सकी थी, अचानक फोन आ जाने से खुशी का ठिकाना नही था, मै क्या बोलूँ मुझे समझ नही आ रहा था। उन्होने कहा कि मै कल आपके शहर मे रहूंगा। यह जानकर और भी खुशी हुई। उन्होने कहा कि मैने तुम्हे ईमेल किया था किन्तु तुम्हारा कोई उत्तर नही आया मैने अपनी समस्या बता कर रात में दोबारा बात करने की अनुमति लेकर मैने वार्ता समाप्त किया।
रात्रि 9.30 बजे मैने बात किया और यात्रा का सम्पूर्ण विवरण लिया, पता लगा कि प्रात: 7.00 से 10.00 तक उनका कोई अपना कार्यक्रम नही था तो मैने उस समय को अपने लिये देने का अनुरोध किया, जैसा कि उन्होने बात की दौरान यह बताया था कि शायद पूरे दिन उनके पास समय नही रहेगा। उन्होने मेरे अनुरोध को सहर्ष स्वीकार कर लिया। उनके इतनी बात के बाद मुझे रात्रि में ठीक से नीद नही आयी और सोने में करीब 11.30 बज गये किन्तु रोज की बात प्रात: 4.30 पर जगना हो गया। प्रात: काल सबसे पहले उठ कर ईमेल चेक करने बैठ गया शायद कोई अपडेट हो किन्तु ऐसा नही था, फिर मैने अपने विश्वविद्यालय की साईट देखी तो खुशी का ठिकाना न रहा, क्योकि मै परास्नतक की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुका था, इसे सज्जन के चरणो का इलाहाबाद में आने का प्रभाव कहा जा सकता था। 10 मिनट की देरी के साथ प्रयागराज राईट टाईम थी, और मै स्टेशन पर 6.45 पर पहुँच चुका था, सवा सात बजे तक हम लोग घर पहुँच चुके थे, थोडा चाय पानी के पश्चात मैने स्नान की बात कही, तो अरूण जी और उनके मित्र ने हामी भरी, स्नान के प्रति उत्साह को देखते हुये मैने स्नान के आगे गंगा शब्द और जोड़ दिया तो अरूण जी के मित्र का उत्साह देखते ही बन रहा था, इसी के साथ गंगा स्नान का कार्यक्रम थी बन गया।
8.30 बजे तक हम संगम पहुँच चुके थे, और 9.30 बजे तक स्नान हो गया, नाव के द्वारा गंगाजी और यमुना जी के धाराओ को एक होते देखा जो एक अद्भुत दृश्य था। 10.10 तक हम लोग घर पर आ गये, और ड्राईवर पापाजी को उच्व न्यायालय छोड़ कर आ चुका था, मैने कहा कि आपको आपके गन्तव्य तक छोड़ आयेगा, जब पुन: कहेगे तो तो वह आप को ले भी आयेगा किन्तु भोजन के बाद अरूण जी ने हमें अपने साथ हमें चलने को कहा तो मुझे काफी अच्छा लगा किन्तु मै और भइया उस समय तक भोजन नही किये थे, जल्दी जल्दी में भोजन किया और सामान्य घरेलू वेश मै और मेरे भइया, अरूण जी और उनके मित्र करीब 11 बजे चल दिये।
गन्तव्य पर पहुँच कर इतनी बड़ी बड़ी मशीनो को नजदीक से देखने का अच्छा अनुभव था, उक्त स्थान का निरीक्षण करते करते हमें 4.30 बज गये थे जबकि श्रीमान ज्ञान दत्त पाण्डेय जी ने मिलने का सर्वात्तम समय 3 से 5 बजे के मध्य था तो अचानक ही उनसे मिलने का कार्यक्रम बनाना पड़ा, समय और परिस्थिति के अनुसार हम जैसे थे वैसे ही वहॉं पहुँच गये। श्रीज्ञान जी के साथ मेरी दूसरी भेंट थी, उन्होने बड़ी गर्म जोशी के साथ हमारा स्वागत किया। श्रीज्ञान जी ने पूर्व ही तैयारी कर रखी थी, उनकी पत्नी जी ने श्री अरूण जी के स्वागत के लिये सेवई और ढोकला भेजा था, इससे तो हम जान ही सकते है श्रीमती जी भी प्रत्यक्ष और परोक्ष चिट्ठाकारी और चिट्ठाकारों में रूचि रखती है। निश्चित रूप से पाडेय जी से मिलना एक अच्छा अनुभव रहा। जिस समय हमने श्री ज्ञानजी से अनुमति ली, घड़ी 5.25 बजा रही थी, अर्थात उन्होने अपने बेस्ट समय से अतिरिक्त समय दिया, क्योकि 5.30 बजे पर उनकी नियमित मिटिग होती है। प्रणाम, हस्तमिलन व अलिंगन के साथ हमने पाड़ेय जी की चम्बल विहार से विदा लिये, तथा श्री अरूण जी ने श्री पाड़ेय जी को दिल्ली यात्रा के दौरान अपने यहॉं आने का निमंत्रण भी दिया।
जिस काम के लिये हम सुबह से निकल थे, उसे सम्पन करने के बाद हम घर की ओर प्रस्थान कर दिये, और इधर-उघर की करना प्रारम्भ कर दिया। करीब 6.50 पर हम घर पर थे, सर्वप्रथम मैने चाय के लिये पूछा अरूण जी ने मना कर दिया, किन्तु उनके मित्र ने पीने की इच्छा जाहिर की, फिर मैने अरूण जी की इच्छा की टोह ली तो उन्होने कम दूध की चाय की इच्छा जाहिर की। मैने डरते हुये ब्लैक टी के बारे में पूछा तो उन्होने कहा कि इससे अच्छा हो ही क्या सकता है।
वहॉं से लौटने के बाद से ही, अरूण जी मेरे घर से जल्दी प्रस्थान की इच्छा जाहिर कर रहे थे, जबकि मै उन्हे रात्रि 9 बजे भोजन के उपरान्त जाने को कह रहा था किन्तु उन्होने अपनी बात पर जोर देते हुये, प्रस्थान करने की बात मुझसे मनवा ही ली। 7.15 मिनट के आस-पास हमने घर छोड़ दिया, घर छोड़ने से पूर्व अरूण जी मेरे पिताजी से मिले और दिल्ली आने पर मिलने निमत्रण दिया। हमारे चलने के बाद अरूण जी ने स्टेशन पर ही रूकने और कुछ देर घूमने की बात कही। इस पर मैने कहा कि स्टेशन पर आपको घूमने के लिये कुछ नही मिलेगा सिवाय गंदगी के,और आप चाहे तो सिविल लाइंस छोड़ देता हूँ आप अपने आगे के 2 घन्टे काफी अच्छी तरीके से घूम सकते है। उन्हे भी यह बात जच गई और मैने उन्हे काफी हाऊस पर छोड़ कर प्रयाग में अन्तिम प्रणाम लेकर अपने गंत्वय पर चल पड़ा।
सिविल लाइन्स में उन्हे छोड़ने के बाद, मेरा भी वहॉं से जाने का मन नही कर रहा था, इसे पिछले 12 घन्टो के साथ-साथ रहने का प्रतिफल ही कहा जा सकता है। अत्मीयता अपने आप ही हो जाती है। काफी अधूरे मन से मै वहॉ से चल दिया। रात्रि करीब 9.25 पर मैने अरूण जी के पास फोन किया, कि आप स्टेशन पहुँच गये है कि नही ? उन्होने बताया कि मै स्टेशन पहुँच गया हूं और इस समय ट्रेन में विश्राम कर रहा हूँ। कुशलता के साथ स्टेशन पहुँचने की खबर पाकर मन अति प्रसन्न हुआ। रात्रि बीत गई पता ही नही चला, सुबह करीब 6.45 पर मैने हाल लेने की सोची किन्तु किसी कारण वश नही कर सका, करीब 9 बजे अरूण जी ने मुझे फोन कर बताया कि मै दिल्ली पहुँच गया हूँ।
इस दौरान जिन चिट्ठाकारों की चर्चा हुई उनके नाम निम्न है - श्री अनूप शुक्ल जी, श्री समीर लाल जी, श्री अफलतातून जी, श्री ज्ञान दत्त पांडेय जी, श्री संतोष कुमार पांडेय जी, श्री अभय जी, श्री रामचंन्द्र शुक्ल जी, श्री उन्मुक्त जी तथा बहुत से अन्य ब्लाग तथा सम्मानित ब्लागरों के बारे में चर्चा हुई। अरूण जी की इस यात्रा के सम्बन्ध में काफी कुछ और भी लिखा जा सकता है, जल्द ही फिर लिखूँगा।
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17 टिप्पणियां:
सबसे पहले तो परास्नातक की परीक्षा में सफल होने पर बधाई, तुम्हारी मिठाईयां उधार रहीं.
कल अरुण जी अपने अनुभव कल सुना चुके हैं, सुनकर बहुत अच्छा लगा.
परीक्षा पास करने की बधाई।सच मे अच्छा लगता है जब किसी से दिल से मिला जाय्।
परीक्षा पास की है, बधाई मगर पहले मिठाई.... :)
ब्लॉगर मिलन की भी बधाई....
बबधाई
और
मिठाई भी
खुद ही
खा लेना
फिर एक बार
बबधाई।
अच्छा लगा
पंगेबाज जी
का घूमना
घुमाना और
आपका यात्रा
विवरण बतलाना।
पंगेबाजजी से मिलने की तो हमारी भी तमन्ना है...देखते हैं कब मिल पाते हैं...बहरहाल यात्रा विवरण अच्छा लगा
आगे भी इसी प्रकार सफलताएं प्राप्त करते रहें
'चम्बल विहार' नाम सुनकर भी अच्छा लगा
अरे वाह इतने सारे महान ब्लॉगरों से एक साथ मुलाकात… आपको बधाई हो और साथ ही पास होने की भी… हम भी पंगेबाज जी से मिलते-मिलते रह गये…(इसका किस्सा फ़िर कभी) आपकी इस मुलाकात के बारे में पढ़कर अच्छा लगा…
परास्नातक परीक्षा पास करने की बधाई। पंगेबाज आगमन कथा सुन कर अच्छा लगा। हमारी क्या -क्या तारीफ़ हुयी जरा विस्तार से बताया जाये। संकोच करने की कोई आवश्यता नहीं। :)
बहुत सारी बधाइयाँ इतनी ढॆर सारी उपल्बधियों के लिये लेकिन सबसे पहले परीक्षा उत्तीर्ण होने पर अधिक!
ब्लागर मीट शानदार रही ! मगर फ़ोटू कहाँ है , दर्शन करायें ।
प्रमेन्द्र जी आप के इस चिट्ठे को पढ़ने के बाद यह लगा कि हम इलाहाबाद में है । वहां कि हर जगह आखों के सामने आ गई। आप को बधाई परीक्षा पास होने और पंगेबाज से आप के मलाकात का संजीव विवरण देने के लिए।
पंगेबाज से तो
हम पहले ही
मिल चुके हैं
और बतलाएं
एक सीक्रेट
नाम के हैं
वे पंगेबाज
पर उनका
है मन चंगा
उनसे मिलकर
लगता है ऐसा
नहा ली हो गंगा।
परीक्षा पास करने के लिए आपको हार्दिक बधाई।
परास्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने की बहुत-२ बधाई। मिठाई तो खैर तुम्हारे से इलाहाबाद आकर वसूल ली जाएगी नहीं तो उससे पहले दिल्ली आए तो तब वसूल ली जाएगी, इसलिए उसकी तो कोई टेन्शन नहीं है! ;)
परन्तु एक बात बताओ यार, अपने विवरण में कई जगह ऐसे लिखे हो कि प्रतीत होता है अरूण जी से बहुत डरे हुए थे। इसका क्या कारण है? अरूण जी मेरे को कभी डरावनी शख्सियत के मालिक नहीं लगे, हर बार मुस्कुराते हुए हंसी मज़ाक करते हुए ही मिले हैं!!
अरूण जी से पूछा जाए कि क्या बात है अरूण जी, प्रमेन्द्र को काहे इंटीमिडेट किए हुए थे आप?
बधाई हो..
मेरी मिठाई कहां है??
वैसे भी दो बार मिठाई चाहिये,
1 आपके पास होने की और दूसरी इतने अच्छे लोगों से मिलने की.. :)
परीक्षा में पास होने की बधाई..बढ़िया रही आपकी मिलन कथा. अब अरुण जी पंगेबाज की कलम से भी सुना जाये.
अरे वाह, चर्चा में हम भी हैं।
परीक्षा पास करने की और ब्लॉगर मिलन की बधाई।
बहुत बढ़िया तरीके से पूरा वर्णन किया है।
परास्नातक उत्तीर्ण करने और पंगेबाज़जी के साथ मिलकर इलाहाबाद में पंगेबाज़ी करने के लिए बहुत-बहुत बधाई।
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